शुक्रवार, दिसंबर 28, 2012

धर्मनिरपेक्षता नामक काल्पनिक चिड़िया को..... तथ्यों की कसौटी पर परख कर देखते हैं.

जब भी हम जैसे लोग इस्लाम के बारे में कुछ लिखते हैं तो..... मुस्लिमों और उदारवादियों द्वारा हमें..... भारतीय संविधान और धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढाया जाता है....!

इसीलिए , आइये.... आज जरा हम भी ..... धर्मनिरपेक्षता नामक काल्पनिक चिड़िया को..... तथ्यों की कसौटी पर परख कर देखते हैं... साथ ही ये भी देखने का प्रयास करते हैं कि .... आज के परिदृश्य में ""उदारवादी हिन्दू"" रहना ज्यादा उपर्युक्त है... अथवा, अब वो समय आ गया है कि... हम हिन्दुओं को ""अपना अस्तित्व बचाने के लिए कट्टरता का दामन थामना"" ही होगा..!

15 अगस्त 1947 को स्वतन्त्रता प्राप्ति तक...... हम हिन्दुओं ने उस हरामी कासिम से कर ...औरंगजेब तक इस्लाम के नाम पर जघन्य अत्याचार झेले ..... किन्तु, स्वतन्त्रता के समय तक उन्हें काफी हद तक भुला दिया गया था..... और, उसे भुला दिया जाना भी चाहिए था.... क्योंकि, उस बात को बीते सदियाँ और पीढ़ियाँ बीत चुकी थी.!

परन्तु , दुर्भाग्य से औरंगी मानसिकता अभी तक जीवित थी.... जो, भारत-पाकिस्तान के विभाजन के रूप में सामने आई।

दरअसल.... ये विभाजन... मात्र भारतवर्ष का विभाजन ही नहीं था ....वरन, लाखों-करोड़ों हिन्दू सिक्खों के लिए इस्लामिक आक्रमण काल का पुनर्योदय था .....जिसने उनकी संपत्ति, परिवार, पत्नी-बहन-बेटियाँ और घर सब कुछ छीन लिया... और, वे लुटे पिटे भारत आए।

इतना होने पर भी भारतीय हिन्दुओं ने उन हिन्दू परिवारों को आश्रय तो दिया... किन्तु भारत में बसे मुसलमानों से उसके एवज में वसूली नहीं की.... और, बात वहीँ समाप्त हो गयी....!

और तो और.... धर्म आधारित देश का दो (तीन) टुकड़ा बंटवारा होने.... तथा, मजहब के आधार पर ही अपने हिन्दू भाई-बहनों को लुटते और, हिन्दू औरतों का बलात्कार होते देखने के के बावजूद भी ... हम हिंदुओं ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य भी स्वीकार लिया...!

लेकिन.... हद तो तब हो गयी ... जब... पंथनिरपेक्ष राष्ट्र का संविधान भी स्थान-स्थान पर हिन्दू मुसलमानों के सन्दर्भ में अलग अलग बातें करता दिखाई देने लगा..... फिर चाहे वह कश्मीर हो, विवाह अधिनियम हो, हज सब्सिडि हो, अल्पसंख्यकों के नाम पर करदाताओं के पैसों से दी जाने वाली भेदभावपूर्ण विशेष सुविधाएं हों..... मस्जिदों को स्पेशल छूट और मंदिरों से बसूला जाने वाला कर हो अथवा मस्जिदों के लिए सरकारी जमीन और मंदिरों का सरकारी अधिग्रहण हो..... प्रत्येक स्थान पर हम हिन्दू ही पंथनिरपेक्षता का बोझ ढ़ोते जा रहे हैं...!

सतत मुस्लिम परस्त होती.... पंथनिरपेक्षता की परिभाषाओं से ... आज स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि...... अब तो हमारा संविधान भी नागरिक समानता की रक्षा करने में असमर्थ होता जा रहा है.... जितना यह चाहता भी है....!

अब तक तो बात सिर्फ कश्मीर में.... कश्मीरी पण्डितों की, अमरनाथ यात्रा की, असम में बोडो हिन्दुओं की अथवा केरल में जेहादी शोर की ही नहीं है ..... जहां कानून और सत्ता बेबस खड़ी तमाशा देखती रहती है.........बल्कि अब तो देश की राजधानी में भी शासन और प्रशासन संगठित कट्टरतावाद के चरणों में नतमस्तक दिखाई देने लगे हैं।

इसका सबसे ताजातरीन उदाहरण अभी कुछ दिनों पहले ...दिल्ली के चाँदनी चौक क्षेत्र में देखने को मिला ..... जहां कि प्रसिद्ध लालकिला और जामामस्जिद स्थित हैं....... मेट्रो की खुदाई के दौरान पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हुए थे..... जिसके बाद जमीन पुरातात्विक विभाग (एएसआई) के पास चली गयी।

किन्तु एएसआई कुछ निष्कर्ष निकाले और जमीन के विषय में कुछ निर्णय हो..... इससे पहले ही वहाँ के मुसलमानों ने उसे शाहजहाँकालीन कालीन अकबरावादी मस्जिद घोषित कर दिया.... और, रातों रात उस पर मस्जिद भी बना डाली।

गौरतलब है कि...यह निर्माण किसी गाँव अथवा कस्बे में नहीं वरन राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के हृदय क्षेत्र चाँदनी चौक में किया गया किन्तु आश्चर्य कि दिल्ली पुलिस, जिसका स्लोगन है “हम तुरंत कार्यवाही करते हैं”, को खबर तक नहीं लगी..... कम से कम दिल्ली पुलिस का ऐसा ही कहना है।

न्यायालय द्वारा जमीन पर किसी भी प्रकार के धार्मिक क्रियाकलाप पर रोक लगाने का आदेश भी जारी हुआ.... किन्तु कई दिनों तक नमाज़ पढ़ने से रोकने का साहस दिल्ली सरकार अथवा दिल्ली पुलिस नहीं कर सकी।

विश्वहिंदू परिषद आदि हिन्दू संगठन इस अतिक्रमण के खुले विरोध में उतर आए और हिन्दू महासभा की याचिका पर न्यायालय ने अवैध मस्जिद को तत्काल गिरने का आदेश जारी कर दिया... और, यह आदेश मिलते ही दिल्ली पुलिस की सारी वास्तविकता सामने आ गयी।

दिल्ली पुलिस ने न्यायालय में निर्लज्जता से हाथ खड़े करते हुए कह दिया कि.... अवैध मस्जिद गिराना उसके बस की बात नहीं है.!

यह इस बात का सूचक है कि.... जिन मुसलमानों को राजेन्द्र सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्र समिति जैसे सरकारी आडंबरों का प्रयोग कर तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनेता दबा कुचला पिछड़ा और वंचित बताकर तुष्टीकरण का घिनौना खेल खेल रहे हैं..... उस मुसलमान समुदाय की वास्तविक स्थिति देश में क्या है....????

बात-बात पर देश की अखंडता, राष्ट्रीय हितों और संविधान को पलीता लगाकर अपने दीनी हक़ का शोर मचाने वाले समुदाय की मानसिकता एवं शासन और प्रशासन का इस मानसिकता के सामने भीगी बिल्ली बनकर मिमियाना देश की संप्रभुता और संविधान के मुंह पर तमाचा ही कहा जा सकता है.... और, यह तमाचा स्वयं में अनोखा नहीं है ...!

आपको मालूम ही होगा कि...दिल्ली उच्च-न्यायालय लम्बे समय से जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर रहा है..... किन्तु दिल्ली पुलिस की हिम्मत नहीं पड़ रही है कि वह बुखारी को गिरफ्तार करे...!

दिल्ली पुलिस न्यायालय में जाकर बताती है कि .....उसे बुखारी नाम का कोई शख्स इलाके में मिला ही नहीं.... !

यहाँ तक कि...पूर्व में शाही इमाम रहे अब्दुल्लाह बुखारी ने तो दिल्ली के रामलीला मैदान से खुली घोषणा की थी कि वो आईएसआई का एजेंट है... और, यदि भारत सरकार में हिम्मत है तो उसे गिरफ्तार कर ले.!

सरकार और पुलिस तमाशा देखने के अतिरिक्त और कर ही क्या सकते थे.?

समझने कि बात है कि... यदि देश में राष्ट्रीय हितों की राजनीति हो रही होती तो कैसे मान लिया जाए कि कोई बुखारी राष्ट्रीय भावना और कानून से ऊपर हो सकता है अथवा भारत माँ को डायन कहने वाला कोई आज़म खाँ एक प्रदेश की सरकार में मंत्री बन सकता है??

प्रश्न उठता है कि... क्या शासन और प्रशासन को इतना भय किसी बुखारी अथवा आज़म से लगता है कि देश का कानून बार बार बौना साबित होता रहे..... या ... यह भय उस मानसिकता से है.... जो देश से पहले दीन-ए-इस्लाम को अपना मानती है।

निश्चित रूप से हर मुसलमान को हम इस श्रेणी में नहीं रख सकते ....और, न ही रखना चाहते हैं .... किन्तु यह सत्य है कि बहुमत इसी मानसिकता के साथ है..... अन्यथा, शाहबानों जैसे मामले में संविधान और सर्वोच्च न्यायालय को धता बताकर कानून नहीं बदले गए होते... और, मोहनचन्द्र शर्मा के बलिदान पर सवाल नहीं खड़े किए गए होते.. अथवा अफजल की फांसी को लटकाकर नहीं रखा जाता और बुखारी पर केस वापस लेने की अर्जी लेकर दिल्ली सरकार न्यायालय के पास नहीं गिड़गिड़ाती...!

हद तो ये है कि....गिलानी जैसे गद्दार देश की राजधानी में आकर बेधड़क चीखकर चले जाते हैं कि... कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है... और, भारत सरकार उनके कार्यक्रम को सरकारी सुरक्षा मुहैया कराने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं कर पाती है.!

एक बेहूदा सा तर्क यह दिया जाता है कि.... बुखारी को गिरफ्तार करने अथवा अवैध मस्जिद को गिराने से दंगे भड़क उठेंगे... तो प्रश्न उठता है कि..... सैकड़ों साल पुराने हिन्दू मंदिरों को सरकारी आदेश पर जब गिरा दिया जाता है.... या उसका अधिग्रहण कर लिया जाता है अथवा हिन्दुओं के शीर्ष धर्मगुरु कांची शंकराचार्य को दीपावली के अवसर पर सस्ते आरोपों में गिरफ्तार कर लिया जाता है.... तब दंगे क्यों नहीं भड़क उठते....????

तब विरोध अधिकतम शासन और प्रशासन तक ही सीमित क्यों रहता है...????

क्या यह 1919-24 के खिलाफत आंदोलन की मानसिकता नहीं है कि.... इस्लाम का शोर उठते ही सामाजिक-राष्ट्रीय समेत प्रत्येक हित को किनारे लगा दिया जाता है... और, शुरुआत दंगों से होती है..??????

जब भारत-पाकिस्तान विश्व कप में फ़ाइनल सेमीफ़ाइनल खेल रहे हों... तो, भारत के शहरों में अघोषित कर्फ़्यू लग जाता है... और, जब पाकिस्तान में ओसामा मारा जाता है तो.... भारत में शोकसभाएं होती हैं अथवा अमेरिका में कुरान जलाने की बात होती है.... तो, भारत में हिंसा भड़क उठती है.!
इसका एक मात्र कारण यह है कि.... इतिहास की मानसिकता अभी तक जीवित है ....इसीलिए वर्तमान में भी इतिहास का प्रतिबिम्ब भी झलकता है।

यदि भारत को जीवित रखना है.... तो, भारत को मुगलिस्तान बनने से रोकना होगा ....और, इसके लिए आवश्यक है कि कट्टरपंथ के आगे घुटने टेकने की आदत को बदला जाए.... और , उन्हें उन्ही कि भाषा में कठोरतम जबाब दिया जाये...!

अन्यथा, यह प्रश्न तो उठना स्वाभाविक ही है कि.... मुस्लिमों की ये तुष्टिकरण और देश की सामाजिक-राष्ट्रीय हित से खिलवाड़ कब तक चलता रहेगा....???

और, अगर.... देश का शासन तंत्र तथा राजनेता इसी प्रकार सामाजिक एवं-राष्ट्रीय हित से खिलवाड़ कर..... मुस्लिम तुष्टिकरण में लगे रहे.... तो दिन दूर नहीं.... जब भारत का हर एक नौजवान...... मुस्लिम जेहादियों और उसके पोषक राजनेताओं के विषधर भुजाओं को उनकी बाँहों से उखाड़ फेंकेगा...... और, हिन्दुस्थान को फिर से हिन्दुराष्ट्र का गौरव दिलवाएगा....!!

जय महाकाल...!!!

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