गुरुवार, दिसंबर 29, 2011

ताजमहल की असलियत ... एक शोध लेखमाला, भारत-भारती वैभवं पर

आगरा निवासी पंडित कृष्ण कुमार पाण्डेय

सन्‌ १९७५ ई. में एक दिन श्री ओक जी से पता लेकर इंग्लैंड से भारतीय मूल के अभियन्ता श्री वी. एस. गोडबोले तथा आई. आई. टी कानपुर के प्रवक्ता श्री अशोक आठवले आये। वे नई दिल्ली से पुरातत्त्व विभाग के महानिदेशक का अनुज्ञापत्र ले कर आये थे जिसके अनुसार विभाग को उन्हें वे सभी भाग खोल कर दिखाने थे जो साधारणतया सामान्य जनता के लिये बन्द रखे जाते हैं। श्री गोडबोले ने मुझसे भी ताजमहल देखने के लिये साथ चलने का आग्रह किया। मैंने दो दिन के लिये अवकाश ले लिया तथा अगले दिन उन दानों के साथ ताजमहल गया। कार्यालय में नई दिल्ली से लाया गया अनुज्ञापत्र देने पर वहां से एक कर्मचारी चाभियों का एक गुच्छा लेकर हमारे साथ कर दिया गया। उसके साथ हम लोगों ने पहले मुखय द्वारके ऊपर का भाग देखा। तत्पश्चात्‌ ताजमहल के ऊपर का कक्ष उसकी छत एवं गुम्बज के दोनों खण्डों को देखा। नीचे आकर ताजमहल के नीचे बने कमरों तथा पत्थर चूने से बन्द कर दिये गये मार्गों आदि को देख।ज्ञ एक स्थल तो ऐसा आया जहाँ पर यदि हम लोग अवरुद्ध मार्ग को फोड़ कर आगे बढ़ सकते तो कुछ गज ही आगे चलने पर नीचे वाली कब्र की छत के ठीक नीचे होते और उक्त कब्र हमारे सर से लगभग तीस फुट ऊपर होती, अर्थात्‌ कब्र के ऊपर भी पत्थर तथा कब्र के नीचे भी पत्थर। पत्थर के ऊपर भी कमरा तथा पत्थर के नीचे भी कमरा। है न चमत्कार। मात्र इतना सत्य ही संसार के समक्ष उद्‌घटि कर दिया जाए तो ताजमहल विश्व का आठवाँ आश्चर्य मान लिया जाए।तदुपरान्त हमें बावली के अन्दर के जल तक के सातों खण्ड दिखाये गये। मस्जिद एवं तथाकथित जबाव के ऊपर के भाग एवं उनके अन्दर के भाग, बुर्जियों के नीचे हाते हुए पिछली दीवार में बने दो द्वारों को खोल कर यमुना तक जाने का मार्ग हमें दिखाया गया।

यहाँ पर दो बातें स्पष्ट करना चाहूँगा

(१) शव को कब्र में दफन करने का मुखय उद्‌देश्य यह होता है कि मिट्‌टी के सम्पर्क में आकर शव स्वयं मिट्‌टी बन जाए। इसकी गति त्वरित करने के लिये उसपर पर्याप्त नमक भी डाला जाता है। यदि शव के नीचे तथा ऊपर दोनों ओर पत्थर होंगे तो वह विकृत हो सकता है, परन्तु मिट्‌टी नहीं बन सकता।

(२) यमुना तट पर स्थित उत्तरी दीवार के पूर्व तथा पश्चिमी सिरों के समीप लकड़ी के द्वार थे। इन्हीं द्वारों से होकर हम लोग अन्दर ही अन्दर चलकर ऊपर की बुर्जियों में से निकले थे। अर्थात्‌ भवन से यमुना तक जाने के लिए दो भूमिगत तथा पक्के मार्ग थे। इन्हीं द्वारा में से एक की चौखट का चाकू से छीलकर अमरीका भेजा गया था जहाँ पर उसका परीक्षण किया गया था। ६ फरवरी १९८४ को देश एवं संसार के सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ कि वह लकड़ी बाबर के इस देश में आने से कम से कम ८० वर्ष पूर्व की है। भरत सरकार ने इसे समाचार का न तो खण्ड ही किया और न ही कोई अन्य प्रतिक्रिया व्यक्त की, परन्तु शाहजहाँ के समान उसने एक कार्य त्वरित किया। उन दोनों लकड़ी के द्वारों को निकाल कर पता नहीं कहाँ छिपा दिया तथा उन भागों को पत्थर के टुकड़ों से समेंट द्वारा बन्द करा दिया।

ताजमहल परिसर के मध्य में स्थित फौआरे के ऊँचे चबूतरे के दाहिनी-बायें बने दोनों भवनों का नाम नक्कार खाना है, अर्थात्‌ वह स्थल जहाँ परवाद्य-यन्त्र रखे जाते हों अथवा गाय-वादन होता हो। इन भवनों पर 'नक्कार खाना' नाम की प्लेट भी लगी थी। जब हम लोगों ने इन बातों को उछाला कि गम के स्थान पर वाद्ययन्त्रों का क्या काम ? तो भारत सरकार ने उन प्लेटों को हटा कर दाहिनी ओर का भवन तो बन्द करवा दिया ताकि बाईं ओर के भवन में म्यूजियम बना दियज्ञ। इस म्यूजिम में हाथ से बने पर्याप्त पुराने चित्र प्रदर्शित हैं जो एक ही कलाकार ने यमुना नदी के पार बैठ कर बनाये हैं। इन चित्रों में नीचे यमुना नदी उसके ऊपर विशाल दीवार तथा उसके भी ऊपर मुखय भवन दिखाया गया है। इस दीवार के दोनों सिरों पर उपरोक्त द्वार स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। अभी तक मैं चुप रहा हूं, परन्तु यह लेख प्रकाशित होते ही भरत सरकार अतिशीघ्र उक्त दोनों चित्र म्यूजियम से हटा देगी।

दो दिनों तक हम लोगों ने ताजमहल का कोना-कोना छान मारा। हम लोग प्रातः सात बजे ताजमहल पहुँच जाते थे तथा रात्रि होने पर जब कुछ दिखाई नहीं पड़ता था तभी वापस आते थे। इस अभियान से मेरा पर्याप्त ज्ञानवर्धन हुआ तथा और जानने की जिज्ञासा प्रबल हुई। मैंने हर ओर प्रयास किया ओर जहाँ भी कोई सामग्री उपलब्ध हुई उसे प्राप्त करनेका प्रयास किया। माल रोड स्थित स्थानीय पुरातत्त्व कार्यालय के पुस्तकालय में मैं महीनों गया। बादशाहनामा मैंने वहीं पर देखा। उन्हीं दिनों मुझे महाभारत पढ़ते हुए पृष्ठ २६२ पर अष्टावक्र के यह शब्द मिले, 'सब यज्ञों में यज्ञ-स्तम्भ के कोण भी आठ ही कहे हैं।' इसको पढ़ते ही मेरी सारी भ्रान्तियाँ मिट गई एवं तथाकथित मीनारें जो स्पष्ट अष्टकोणीय हैं, मुझे यज्ञ-स्तम्भ लगने लगीं।

एक बार मुझे नासिक जाने का सुयोग मिला। वहाँ से समीप ही त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग है। मैं उस मन्दिर में भी दर्शन करने गया। वपस आते समय मेरी दृष्टि पीठ के किनारे पर अंकित चित्रकारी पर पड़ी। मैं विस्मित होकर उसे देखता ही रहा गया। मुझे ऐसा लग रहा था कि इस प्रकार की चित्रकारी मैंने कहीं देखी है, परन्तु बहुत ध्यान देने पर भी मुझे यह याद नहीं आया कि वैसी चित्रकारी मैंने कहां पर देखी है। दो दिन मैं अत्यधिक किवल रहा। तीसरे दिन पंजाब मेल से वापसी यात्रा के समय एकाएक मुझे ध्यान आया कि ऐसी ही चित्रकारी ताजमहल की वेदी के चारों ओर है। सायं साढ़े चार बजे घर पहुँचा और बिना हाथ-पैर धोये साईकिल उठा कर सीधा ताजमहल चला गया। वहाँ जाकर मेरे आश्चर्य की सीमा न रही किताजमहल के मुखय द्वार एवं तत्रयम्बकेश्वर मन्दिर की पीठ की चित्रकारी में अद्‌भुत साम्य था। कहना न होगा कि त्रयम्बकेश्वर का मन्दिर शाहजहाँ से बहुत पूव्र का है।

सन्‌ १९८१ में मुझे भुसावल स्थिल रेलवे स्कूल में कुछ दिन के लिय जहाना पड़ा। यहाँ से बुराहनुपर मात्र ५४ कि. मी. दूर है तथा अधिकांश गाड़ियाँ वहाँ पर रुकती हैं। एक रविवार को मैं वहाँ पर चला गया। स्टेशन से तांगे द्वारा ताप्ती तट पर जैनाबाद नामक स्थान पर मुमताजमहल की पहली कब्र मुझे अक्षुण्य अवस्था में मिली। वहाँ के रहने वाले मुसलमानों ने मुझे बताया कि शाहजहाँ की बेगम मुमताजमहल अपनी मृत्यु के समय से यहीं पर दफन है। उसकी कब्र कभी खोदी ही नहीं गई और खोद कर शव निकालने का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता, क्योंकि इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता। किसी-किसी ने दबी जबान से यह भी कहा कि वे यहाँ से मिट्‌टी (खाक) ले गये थे। सन्‌ १९८१ ई. तथा सन्‌ १९८६ ई. के मेरे भुसावल के शिक्षणकाल में मैंने सैकड़ों रेल कर्मियों को यह कब्र दिखाई थी। श्री हर्षराज आनन्द काले, नागपुर के पत्र दिनांक ०८/१०/१९९६ के अनुसार उनके पास तुरातत्व विभाग के भोपाल कार्यलय का पत्र है जिसके अनुसर बुरहानपुर स्थित मुमतालमहल की कब्र आज भी अक्षुण्या है अर्थात्‌ कभी खोदी ही नहीं गई।

पिछले २२ वर्ष से मैं ताजमहल पर शोधकार्य तथा इसके प्रचार-प्रसार की दृष्टि से जुड़ा रहा हूँ। इस पर मेरा कितना श्रम तथा धन व्यय हुआ इसका लेखा-जोखा मैंने नहीं रखा। इस बीच मुझे अनेक खट्‌टे-मीठे अनुभवों से दो-चार होना पड़ा है। उन सभी का वर्णन करना तो उचित नहीं है, परन्तु दो घटनाओं की चर्चा मैं यहाँ पर करना चाहूँगा। ...

जारी hai aage...

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