सोमवार, दिसंबर 26, 2011

कुरान का सच

कुरान का सच

हर एक सच्चे भारतीय को इस नोट को पठनी चाहिए ।

इस लेख को लिखने से मेरा किसी भी धर्म का विरोध करने का कोई उद्देश्य नही है। कुरान मुसलमानों का मजहबी ग्रन्थ है.मुसलमानों के आलावा इसका ज्ञान गैर मुस्लिमों को भी होना आवश्यक है।इस्लाम पूरी दुनिया को दो हिस्सो मे बांट देता है:-

१.दारुल-इस्लाम यानी जंहा मुसलमानो का शासन हो. २.दारुल-हर्ब यानी जंहा मुसलमान हो लेकिन उनका शासन न हो

कुरान पर एतिहासिहर एक सच्चे भारतीय को इस नोट को पठनी चाहिए।

क निर्णय- माननिय श्री झेड.एस.लोहात, मेट्रोपोलोटिन मेजिस्ट्रेट-दिल्ही।

इस एतिहासिक निर्णय के पहले की पुर्व-भूमिका:-

बडी आश्चर्य की बात यह हैं कि क्या कभी कोई धर्म अपने धर्म पुस्तक मे एसा आदेश देता हैं कि -"दुसरे धर्म के अनुयायीयो को जहां कही भी मिले उसे घेर लो, उन्हे पकडो, कत्ल करो ।" या उसे नरक की आग मे झोक दो, जब उनकी चमडी जल जायेगी तब उसकी दुसरी चमडी बदल देंगे, जिससे वो यातनाओ का रसास्वाद ले सके ।" एसा अभिगम तो किसी की कल्पनाओ में ना आए।

फ़िर भी यह हकिकत है, और ठोस हकिकत है।

सन-१९८३ में हिन्दु-महासभा के कार्यकर्ता ईन्द्रसेन शर्मा और राजकुमार ने "कुरान मजीद" मे से यह आयात(संदर्भ) को मद्देनजर रखते हुए, उसके पोस्टर छपवाकर जनता में बाटे, और विशेषकर: होजीकाझी(दिल्ही)के विस्तार में बांटे थे। उनके मतानुसार "कुरान मजीद" की ये आयात(संदर्भ) दिक्कत पैदा करने वाली थी- (उन दो युवानो का कहना था-)-

"यह उपर्युक्त आयातो से यह स्पष्ट होता हैं कि- उसमे ईर्ष्या, द्वेष, ध्रुणा, छल, कपट, लडाई, झगडे, लूंट-फ़िरोती, मारामारी और हत्याओ करने का आदेश मिलता हैं। इसी कारण से देश और दुनिया के देशो में मुसलमानो और गैर-मुस्लिमो के बीच दंगे-फ़साद होते रहते हैं। जब तक कुरान से उपर्युक्त आयाते निकाल नही देते तब तक मुसलमानो और गैर-मुस्लिमो के बीच दंगे-फ़साद रोक पाना संभव नही।"

दिल्ही के न्यायमूर्ति ने इस बारे में अपना निर्णय देते हुए कहा कि-"मैंने खुद "कुरान मजीद" की ये आयातो को और उन पोस्टर कि लेखनी को जांचा हैं, और पूरे तौर पर तुलना करने पर, मुझे यह मालूम हुआ कि ये सब आयाते कुरान में उपलब्ध हैं, और आयातो को पोस्टरो में मूल स्वरुप में ली गयी हैं।

न्यायमूर्ति आगे कहते हैं कि-

"ये आयातो का बहुत सूक्ष्म तौर पर निरीक्षण करने पर मालूम होता हैं कि ये आयाते भारी-भयंकर हैं और ध्रुणास्पद हैं, और एक ओर मुसलमान और दूसरी और बिन-मुस्लिमान के बीच भेदभाव और धिक्कार पैदा कर्रे एसी हैं। इसी लिए तहोमतदार(कार्यकर्ता ईन्द्रसेन शर्मा और राजकुमार) के सामने कोई प्रथमदर्शी केस नही है, और इसी लिए उसे मुक्त करने का आदेश दिया जाता है।"

ऎतिहासिक निर्णय

मेट्रोपोलोटिन मेजिस्ट्रेट माननिय श्री झेड.एस.लोहात की अदालत में दिल्ही स्टेट विरुध्ध ईन्द्रसेन शर्मा

एफ़.आई.आर.नं.२३७/८३ ई.पी.कोड.दफ़ा २९५/(A) के तहत पुलिस स्टेशन होझकाझी।

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