सोमवार, दिसंबर 05, 2011

वोटिंग मशीन को फुलप्रूफ होना जरुरीं , चुनाव मशीनों में ट्रॉजन जिन्न सीआईए का षडयंत्र : Kiran S. Patnaik

वोटिंग मशीन को फुलप्रूफ होना जरूरी – विशेषज्ञ विशेष संवाददाता
नई दिल्ली : वोटिंग मशीन में हेरफेर करके किसी दल विशेष की जीत को सुनिश्चित किया ही जा सकता है। यह किसी राजनीतिक दल के नेता का आरोप नहीं, बल्कि सूचना-प्रौद्योगिकी से जुड़े एक विशेषज्ञ की राय है। नेट इंडिया ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के प्रमुख हरिकुमार प्रसाद का कहना है कि ईवीएम (वोटिंग मशीन) के दुरुपयोग को रोकने के लिए वेरीफिकेशन टूल का उपयोग अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। हरि कुमार प्रसाद भारत इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड (भेल) के वरिष्ठ अधिकारी रह चुके हैं। पिछले महीने अकेले हरि कुमार प्रसाद ने ही नहीं, बल्कि नागपुर के जनचैतन्य वेदिका नामक संगठन के संयोजक वी. वी. राव ने एक प्रेस सम्मेलन में पत्रकारों दिखाया कि किस तरह वोटिंग मशीन में जानबूझ कर किसी दल विशेष को लाभ पहुंचाने के लिए उसे मैनुपुलेट किया जा सकता है।
गौरतलब है कि कांग्रेस, द्रमुक, राकांपा पर आरोप लग रहे हैं कि 2009 लोकसभा चुनावों में वोटिंग मशीन में हेरफेर करके बहुमत के करीब सीटें हासिल की गयीं। खासकर तमिलनाडु, आंध्र राजस्थान और महाराष्ट्र में। इसी आरोप के तहत अन्ना द्रमुक ने हाल ही में हुए उपचुनावों का बहिष्कार भी किया। इतने बड़ा आरोप लगाने और उसे साबित कर दिखाने के बावजूद चुनाव आयोग ईवीएम में गड़बड़ किए जाने की संभावना से लगातार इंकार कर रही है। गौरतलब यह भी है कि चुनाव आयोग के तीनों आयुक्तों को कांग्रेसी समर्थक माना जाता है। इस पर काफी हंगामा भी हो चुका है। ईवीएम में हेरफेर का मामला सबसे पहले तृणमूल कांग्रेस ने उठाया था। हालांकि 1990 में बंगाल सीपीएम के नेता बिमान बसु ने ईवीएम मशीन की विश्व‍सनीयता पर अंगुली उठायी थी। अब तृणमूल कांग्रेस, सीपीएम, भाजपा, पासवान, लालू, जयललिता, मायावती, शिवसेना आदि भी ईवीएम की विश्वसनीयता पर अंगुली उठाने लगे हैं। हरि कुमार प्रसाद का कहना है कि ‘ईवीएम को एक माइक्रो कंट्रोलर संचालित करता है। ‘ट्रोजन हाउस’ नामक एक विकृत कंप्यूटर कोड के जरिए ईवीएम को संक्रमित करके प्रोग्राम में फेरबदल कर दिया जाता है। किसी एक उम्मीदवार या दल के पक्ष में इस तरह से प्रोग्राम में फेरबदल किया जा सकता है, जिससे उसे एक निश्चित वोट फीसदी प्राप्त हो जाए।’ सूचना प्रौद्योगिकी के इस रहस्योद्‍घाटन के बावजूद चुनाव आयोग चुप्पी साधे हुए है या फिर ईवीएम को ‘ब्रह्म सत्य’ बताने में तुला हुआ है। चुनाव आयोग के इस रवैए से भी साबित होता है कि दाल में जरूर कुछ काला है। हरि कुमार का कहना है कि ‘कंप्यूटर चिप बनाते समय भी ईवीएम में गड़बड़ी पैदा की जा सकती है। मुश्किल यह है कि उसे पकड़ पाना संभव नहीं। इसीलिए वेरीफिकेशन टूल की मदद लिया जाना जरूरी है। इससे पता चल जाएगा कि माइक्रो-कंट्रोलर में कोई गड़बड़ी तो नहीं।’
हरि कुमार का एक सुझाव यह भी है कि ऐसा इंतजाम हो ताकि ईवीएम में मतदान करने के साथ ही साथ एक स्लिप बाहर आ जाए, जिसमें लिखा होगा कि उक्त वोट किसे दिया गया। ठीक उसी तरह जिस तरह बैंकों के एटीएम मशीन से पैसा निकालने के बाद एक स्लिप बाहर आती है, जिससे पता चल जाता है कि उस वक्त कितने रुपए निकाले गए और कितना शेष बचा। अमेरिका के कैलिफोर्निया के ईवीएम में स्लिप आने का इंतजाम किया गया है। उनकी राय है कि बैलेट की वापसी के बजाए ईवीएम का ही उपयोग हो, मगर धांधली के सारे रास्ते बंद कर दिए जाएं। ईवीएम का फूलप्रूफ होना जरूरी है।

चुनाव मशीनों में ट्रॉजन जिन्न सीआईए का षडयंत्र ! विशेष संवाददाता
नई दिल्ली : भारतीय चुनाव प्रक्रिया को क्या सीआईए नियंत्रित कर रहा है? राजनीतिक हलकों में यह सवाल उठने लगा है। यह कोई हवाई सवाल नहीं है, बल्कि खुद सीआईए के एक एजेंट ने अमेरिकी संसद में कहा है कि सीआईए ने ट्रॉजन के जरिये कोई 25 देशों की चुनाव प्रक्रिया को मनमाने ढंग से प्रभावित किया है। ऐसे में यह प्रशन पूछना स्वाभाविक है कि क्या 2009 के लोकसभा चुनाव में भी सीआईए ने ही षडयंत्र करके कांग्रेस-संप्रग की सरकार बनवायी ? 2009 के लोकसभा चुनाव के परिणामों पर बहुत पहले से ही अंगुली उठायी जाती रही है और चुनाव मशीनों में हेर-फेर के आरोप लगाये जा रहे हैं। अन आरोपों को चुनाव आयुक्त बार-बार खारिज करते रहे हैं, फिर भी आरोपों का दौर बदस्तूर जारी है। सीपीएम महाेचिव प्रकाश करात ने मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र लिखकर ईवीएम मशीनों की विश्वसनियता पर सवाल खड़े किए हैं और सर्वदलीय बैठक की मांग की है। ध्यान रहे कि 2009 के लोकसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद से ही ईवीएम में हेरफेर का आरोप लगने लगा था। बाद में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा मशीनों पर संदेह व्यक्त करने से मामला तूल पकड़ने लगा। लाल प्रसाद-पासवान-जयललिता-सीपीएम सहित अनेक नेताओं और दलों ने इसकी विश्वसनियता पर सवाल उठाये। लेकिन चुनाव आयोग अपनी पर अड़ा रहा। गौरतलब है कि इन दिनों चुनाव आयोग के तीनों आयुक्त कांग्रेस समर्थक माने जाते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला खुल्लमखुल्ला कांग्रेसी रहे हैं।
ध्यान रखना जरूरी है कि चुनाव आयुक्त और वहां के अन्य अधिकारी सूचना तकनीक के विशेषज्ञ नहीं हैं। वे अपने तकनीकी विषयों पर निर्भर हैं। ईवीएम से जुड़ी कोई भी बड़ी जानकारी आयोग के पास नहीं है। पूर्व आईएएस अधिकारी और आईआईटी के मैकेनिकल इंजीनियर उमेश सहगल के अनुसार ‘सारा खेल ईवीएम बनानेवाली कंपनियों के हाथ में है, जो बहुत कुछ छिपा रही हैं। चुनाव आयोग जिस सोर्स कोड को पास करता है, उसे चिप की भाषा यानि ऑब्जेक्ट कोड में बदलने के बाद आयोग को दिखाया नहीं जाता। यहां बड़ी आसानी से चिप का प्रोग्राम बदला जा सकता है। अमेरिका का माइक्रो चिप कारपोरेशन और जापान की हिताची हमारे ईवीएम चिप बना रही है, जो उसमें भरे विवरण को मास्क कर देती है। अर्थात् उसके बारे में कुछ भी जानना मुश्किल है। जिस सोर्स कोड को चुनाव आयोग ने पास किया, वह भी उनके पास नहीं है। यह देश के लिए गंभीर खतरा है।’
उमेश सहगल आगे कहते हैं ‘सीआईए के एक एजेंट ने अमेरिकी कांग्रेस में कहा कि सीआईए ने ट्रॉजन के जरिये 25 देशों के चुनावों में हेरा-फेरी की है। तो क्या भारत भी उन देशों में एक है? सत्ता में बैठे लोगों को मेरी बात नागवार लगेगी, मगर उन्हें समझना चाहिए कि कल उनके साथ भी ऐसा हो सकता है। क्योंकि चुनाव मशीन की चाबी कहीं बाहर है। इसके अलावा ईवीएम बनानेवाली बीईएल और ईसीआईएल हमारे लिए रक्षा उपकरण भी बनाती है। पनडुब्बी, रडार, मिसाइल समेत सभी रक्षा उपकरणों में चिप लगे होते हैं। क्या इनके चिप भी बाहर से बन कर आते हैं? अगर ऐसा है तो इनके बारे में सारी जानकारी अन्य देशों के पास भी हैं, जो भारत के लिए खतरनाक हैं।’ By
Kiran S. Patnaik

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