शनिवार, अक्टूबर 01, 2011

महामृत्युंजय मंत्र एवं गायत्री मंत्र (मूल संस्कृत एवं हिन्दी अनुवाद सहित)

महामृत्युंजय मंत्र एवं गायत्री मंत्र (मूल संस्कृत एवं हिन्दी अनुवाद सहित)

यह मंत्र भगवान शिव को प्रसन्न कर उनकी असीम कृपा प्राप्त करने का माध्यम है... इस मंत्र का सवा लाख बार निरंतर जप करने से आने वाली अथवा मौजूदा बीमारियां तथा अनिष्टकारी ग्रहों का दुष्प्रभाव तो समाप्त होता ही है, इस मंत्र के माध्यम से अटल मृत्यु तक को टाला जा सकता है...

हमारे चार वेदों में से एक ऋग्वेद में महामृत्युंजय मंत्र इस प्रकार दिया गया है...

ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।

इस मंत्र को संपुटयुक्त बनाने के लिए इसका उच्चारण इस प्रकार किया जाता है...

ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुवः स्वः

ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।।

ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ

इस मंत्र का अर्थ है : हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं... उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए... जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं...

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गायत्री मंत्र हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है, जिसकी महत्ता ॐ के लगभग बराबर मानी जाती है... यह यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः और ऋग्वेद के छंद 3.62.10 के मेल से बना है... इस मंत्र में सवित्र देव की उपासना है, इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है... ऐसा माना जाता है कि इसके उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है...

शाब्दिक अर्थ

: सर्वरक्षक परमात्मा

भू: : प्राणों से प्यारा

भुव: : दुख विनाशक

स्व: : सुखस्वरूप है

तत् : उस

सवितु: : उत्पादक, प्रकाशक, प्रेरक

वरेण्य : वरने योग्य

भुर्ग: : शुद्ध विज्ञान स्वरूप का

देवस्य : देव के

धीमहि : हम ध्यान करें

धियो : बुद्धियों को

य: : जो

न: : हमारी

प्रचोदयात : शुभ कार्यों में प्रेरित करें

भावार्थ : उस सर्वरक्षक प्राणों से प्यारे, दु:खनाशक, सुखस्वरूप श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतरात्मा में धारण करें... तथा वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें...


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