Dr-Abhishek Pratap Singh Rathore
इतिहास को जितना पढियेगा, आँखे उतना भीगेंगी। मन का रोष उतना ही विद्रूप होगा। पूर्वजों ने जो झेला है, उसे देख अंतरात्मा उद्विग्न होगी। तब लगेगा हमे कोई हक नही है , खुद को लिबरल कहने का। कोई हक नही है ये कहने का की जन्मभूमि की मिट्टी दूसरों के साथ बांटी दी जाए या वहां निर्माण हो जाए किसी सार्वजनिक स्थल का।
ये अपमान होगा उन तमाम माताओं को जिन्होंने सहस्त्रों बेटों की बलि चढ़ाने के बाद भी माथे परशिकन महसूस न किया और फिर से हजारों बेटों को जनकर भेज दिया मातृभूमि की बेदीपर शीश लुटाने को । माँ समान धरा के लिए वे बेटे इस मंत्र के साथ बलिदान होते रहे कि सत्य एक दिन परास्त कर देगा तमाम असत्यों को और पुनश्च उज्ज्वल होकर स्थापित हो जाएगा विश्व के मुकुट पर।
बर्बर कौमों ने पददलित करने से पहले हमें जार जार किया हैं। पुरुषों के प्राण हरने के बाद , स्त्रियों की इज्जत लूटी। दहशत कायम करने के लिए नगर के नगर जला दिए, यहाँ तक कि जानवरो को भी नही छोड़ा। । सिर्फ इस बिला पे की हमारी उपासना पद्धति उनसे अलग थी। हमारा दर्शन उनसे सदियों आगे था। हम उनसे ज्यादा सभ्य थे।
उन्हें हमसे ईर्ष्या था , पर उनका रक्त गन्दा था, वे म्लेच्छ थे , उनकी असभ्य बुद्धि हमारी बराबरी करने की सोच भी नही सकते। इसलिए वे हमारी सभ्यता को मिटाने पर आ गये , मंदिरे तोड़ीं , पुस्तकें जलाई, ज्ञान केंद्रों से अग्निक्रीड़ा किया। जननाओं की अस्मतें लूटी। विज्ञान केंद्रों को ध्वस्त किया।
पर शायद उन्हें पता नही था ये शिव का देश था, शव के आराधकों का , हम शांति के पूजक जरूर थे , मगर मौत के उपासक भी थे । हम ऐसे कौमों में से थे जिन्होंने मृत्यु से पहले खुद का श्राद्ध किया, फिर माथे पे तिलक लगाई और कूद गए युद्धों की बेदीयों पर , मिटा दिया खुद को , ताकि ये सभ्यता मिटने न पाये।
बेटियों ने आक्रांताओं के हरम में जानें के बजाय अग्नि से सहर्ष विवाह किया। बेटों ने आवश्यकता पड़ने पर घास की रोटियाँ खाई , सर पे साफ़ा बांधा , महाकाल का आह्वान किया और हर हर महादेव के उदघोष के साथ कूद गए रक्तरंजित इतिहास के पन्नो में दफन होने को। और बता दिया शेष विश्व को की तुम मिट सकते हो हम नही।क्योंकि हम सत्य है, शिव हैं, सुंदर हैं।
आज कोई इतिहासकार ये दावा नही कर सकता कि किसी भी विदेशी आक्रांता को इस पुण्यभूमि में भारत में कभी भी निष्कंटक राज्य करने का अवसर मिला हो।।
सैनिक कम पड़ गए तो साधुओं ने हथियार उठा लिया। मर्द कम पड़ हो गए तो स्त्रियों ने दोनों हाथों में तलवारों को थाम लिया।
बालकों ने खुद को दीवार में चुनवा लिया । मगर
बर्बर म्लेच्छ सल्तनत को बताते रहे ये देश तुम्हारा नही हैं , ये मिट्टी तुम्हारी नही हैं। इसका कण कण हमारा और हम सदैव को गुलाम हो जाने वाली कौमों में से नही हैं। हम सूरज हैं , तुम बदली हो , शीत होकर धूल में मिल जाना तुम्हारा नियति है और पुनः प्रकाशित हो जाना हमारा स्वभाव।
आज समय की बेला बता रही है , बादलों का शीत होकर बूंदों में बदल जाने का वक्त आगया है। मिट्टी को पुनः उसके दुर्गावती, खारवेल , सुहलदेव राजभर, अहिल्याबाई होलकर , फतेह, जोरावर दिखने लगने हैं। यहाँ से शायद प्रकाशित हो जाने का समय आगया है , बावजूद की धुंधलापन छँटा नही हैं।
इस इतिहास का कोई निष्कर्ष नही है , ये शौर्य का गाथा है और रक़्तों का खेल है।
फिर भी मैं पुनश्च यहीँ कहूँगा, हमारे पास कोई हक नही है लिबरल कहलाने का।
पददलित लोग तब तक दानी नही कहलाये जा सकते जब तक वे कुछ अर्जित न कर पाये। हमने पुराना कुछ भी अर्जित नही किया है, जो हम दानी बने।
जन्मभूमि पे भव्य मंदिर हमारे घावों का मरहम नही हैं, ये तो शुरुआत हैं , इलाज को ढूंढ लेने का। हमें अपना सबकुछ वापस लेना हैं, ज्ञान , गौरव, वैभव और विशाल हिमालय से लेकर अनन्त महासागर तक फैला पग पग भूमि भारत। अखण्ड भारत। भले आज ये कुछ लोगों को मज़ाक लगे , पर ऐसा ही एक मज़ाक ढाई हजार साल पहले मगध के दरबारीयों ने महसूस किया था, जब एक भिक्षुक आचार्य ने निज शिखा संस्कार भंग करते हुए कहा था," घनानंद तुम विश्व की सबसे विशाल सेना लिए इस परकोटे के अंदर ही रह जाओगे और मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दुंगा। इतिहास गवाह है उस भिक्षुक ने क्या किया था। इतिहास सबके साथ न्याय करेगा।
जय मातृभूमि भारत। राजा रामचन्द्र की जय।
इतिहास को जितना पढियेगा, आँखे उतना भीगेंगी। मन का रोष उतना ही विद्रूप होगा। पूर्वजों ने जो झेला है, उसे देख अंतरात्मा उद्विग्न होगी। तब लगेगा हमे कोई हक नही है , खुद को लिबरल कहने का। कोई हक नही है ये कहने का की जन्मभूमि की मिट्टी दूसरों के साथ बांटी दी जाए या वहां निर्माण हो जाए किसी सार्वजनिक स्थल का।
ये अपमान होगा उन तमाम माताओं को जिन्होंने सहस्त्रों बेटों की बलि चढ़ाने के बाद भी माथे परशिकन महसूस न किया और फिर से हजारों बेटों को जनकर भेज दिया मातृभूमि की बेदीपर शीश लुटाने को । माँ समान धरा के लिए वे बेटे इस मंत्र के साथ बलिदान होते रहे कि सत्य एक दिन परास्त कर देगा तमाम असत्यों को और पुनश्च उज्ज्वल होकर स्थापित हो जाएगा विश्व के मुकुट पर।
बर्बर कौमों ने पददलित करने से पहले हमें जार जार किया हैं। पुरुषों के प्राण हरने के बाद , स्त्रियों की इज्जत लूटी। दहशत कायम करने के लिए नगर के नगर जला दिए, यहाँ तक कि जानवरो को भी नही छोड़ा। । सिर्फ इस बिला पे की हमारी उपासना पद्धति उनसे अलग थी। हमारा दर्शन उनसे सदियों आगे था। हम उनसे ज्यादा सभ्य थे।
उन्हें हमसे ईर्ष्या था , पर उनका रक्त गन्दा था, वे म्लेच्छ थे , उनकी असभ्य बुद्धि हमारी बराबरी करने की सोच भी नही सकते। इसलिए वे हमारी सभ्यता को मिटाने पर आ गये , मंदिरे तोड़ीं , पुस्तकें जलाई, ज्ञान केंद्रों से अग्निक्रीड़ा किया। जननाओं की अस्मतें लूटी। विज्ञान केंद्रों को ध्वस्त किया।
पर शायद उन्हें पता नही था ये शिव का देश था, शव के आराधकों का , हम शांति के पूजक जरूर थे , मगर मौत के उपासक भी थे । हम ऐसे कौमों में से थे जिन्होंने मृत्यु से पहले खुद का श्राद्ध किया, फिर माथे पे तिलक लगाई और कूद गए युद्धों की बेदीयों पर , मिटा दिया खुद को , ताकि ये सभ्यता मिटने न पाये।
बेटियों ने आक्रांताओं के हरम में जानें के बजाय अग्नि से सहर्ष विवाह किया। बेटों ने आवश्यकता पड़ने पर घास की रोटियाँ खाई , सर पे साफ़ा बांधा , महाकाल का आह्वान किया और हर हर महादेव के उदघोष के साथ कूद गए रक्तरंजित इतिहास के पन्नो में दफन होने को। और बता दिया शेष विश्व को की तुम मिट सकते हो हम नही।क्योंकि हम सत्य है, शिव हैं, सुंदर हैं।
आज कोई इतिहासकार ये दावा नही कर सकता कि किसी भी विदेशी आक्रांता को इस पुण्यभूमि में भारत में कभी भी निष्कंटक राज्य करने का अवसर मिला हो।।
सैनिक कम पड़ गए तो साधुओं ने हथियार उठा लिया। मर्द कम पड़ हो गए तो स्त्रियों ने दोनों हाथों में तलवारों को थाम लिया।
बालकों ने खुद को दीवार में चुनवा लिया । मगर
बर्बर म्लेच्छ सल्तनत को बताते रहे ये देश तुम्हारा नही हैं , ये मिट्टी तुम्हारी नही हैं। इसका कण कण हमारा और हम सदैव को गुलाम हो जाने वाली कौमों में से नही हैं। हम सूरज हैं , तुम बदली हो , शीत होकर धूल में मिल जाना तुम्हारा नियति है और पुनः प्रकाशित हो जाना हमारा स्वभाव।
आज समय की बेला बता रही है , बादलों का शीत होकर बूंदों में बदल जाने का वक्त आगया है। मिट्टी को पुनः उसके दुर्गावती, खारवेल , सुहलदेव राजभर, अहिल्याबाई होलकर , फतेह, जोरावर दिखने लगने हैं। यहाँ से शायद प्रकाशित हो जाने का समय आगया है , बावजूद की धुंधलापन छँटा नही हैं।
इस इतिहास का कोई निष्कर्ष नही है , ये शौर्य का गाथा है और रक़्तों का खेल है।
फिर भी मैं पुनश्च यहीँ कहूँगा, हमारे पास कोई हक नही है लिबरल कहलाने का।
पददलित लोग तब तक दानी नही कहलाये जा सकते जब तक वे कुछ अर्जित न कर पाये। हमने पुराना कुछ भी अर्जित नही किया है, जो हम दानी बने।
जन्मभूमि पे भव्य मंदिर हमारे घावों का मरहम नही हैं, ये तो शुरुआत हैं , इलाज को ढूंढ लेने का। हमें अपना सबकुछ वापस लेना हैं, ज्ञान , गौरव, वैभव और विशाल हिमालय से लेकर अनन्त महासागर तक फैला पग पग भूमि भारत। अखण्ड भारत। भले आज ये कुछ लोगों को मज़ाक लगे , पर ऐसा ही एक मज़ाक ढाई हजार साल पहले मगध के दरबारीयों ने महसूस किया था, जब एक भिक्षुक आचार्य ने निज शिखा संस्कार भंग करते हुए कहा था," घनानंद तुम विश्व की सबसे विशाल सेना लिए इस परकोटे के अंदर ही रह जाओगे और मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दुंगा। इतिहास गवाह है उस भिक्षुक ने क्या किया था। इतिहास सबके साथ न्याय करेगा।
जय मातृभूमि भारत। राजा रामचन्द्र की जय।
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