मंगलवार, दिसंबर 19, 2017

आखिर संभूलाल रैगर इतना हिंसक क्यों हुआ, उसकी क्या मजबूरी रही होगी क्योंकि हिंदू तो इतना हिंसक नहीं होता

हाल ही में हुए राजस्थान के राजसमंद में हुए घटना के बारे में मैं सोच रहा था कि आखिर संभूलाल रैगर इतना हिंसक क्यों हुआ, उसकी क्या मजबूरी रही होगी क्योंकि हिंदू तो इतना हिंसक नहीं होता यह मुसलमानों का काम है लेकिन शंभूलाल के बारे में सोचते हुए मैंने उन घटनाओं को याद किया जो बचपन से मेरे जहन में हैं। क्योंकि मेरा घर मुस्लिम बहुल इलाके में है। मेरा जन्म पढ़ाई लिखाई सब मुसलमानों के बीच हुई, हिंसा मैंने बचपन से देखी हैं। यही कारण है मेरे मां बाप मुझे मुसलमानों से दोस्ती ना रखने की सलाह देते थे क्योंकि हमने शुरू से मुसलमानों को एक हिंसक समुदाय के तौर पर देखा है। मैं उन घटनाओं का जिक्र करूंगा जब मेरी उम्र 15 से 16 साल की रही होगी और तब बिहार में लालू का जंगलराज था। मेरे शहर आरा भोजपुर में उस समय नौशाद आलम, चांद मियां जैसे दर्ज़नो गैंगस्टरों का बोलबाला था।
वह तीन घटना जो मेरे मोहल्ले की है। मेरे मोहल्ले में एक पुलिसवाला रहता था ईमानदार और देशभक्त लेकिन उसकी देशभक्ति एक ही रात में मुसलमानों की भिड़ ने निकाल दी। गलती इतनी थी कि 15 अगस्त को मोहल्ले के कसाई टोला में पाकिस्तानी झंडे को उतरवाने के लिए उसकी कुछ मुसलमानों से कहासुनी हो गयी थी। जेहादियों की अनगिनत भीड़ ने उसके घर पर धावा बोल उसे उसके पत्नी व बच्चों सहित पीट-पीट कर उसकी हत्या कर दी थी। उसके परिवार में बूढ़ा बाप बचा था क्योंकि वो उस दिन घर से बाहर था। तब लोकल विधायक के दबाव में इस केस पर लीपापोती कर दी गई थी, जिस कारण उस पुलिसवाले का बूढ़ा बाप भी कलप कलप कर मरा था।
दूसरी घटना- पाकिस्तान की जीत पर आतिशबाजी कर रहे हैं मुसलमान लड़कों को रोकने पर एक दलित लड़के की बल्ले से पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। जेहादीयों की भीड़ ने एक गरीब मां बाप से उसके इकलौता बेटे को छीन लिया। तब गैंगस्टर नौशाद के दबाव में केस को रफा दफा कर दिया गया।
तीसरी घटना- मेरे बिरादरी की ही हैं। मेरा एक क्लासमेट था, जिसका नाम दुर्गेश था, जो मेरी जाति का भी था। उसकी चौदह वर्षीय बहन को एक कठमुल्ले ने प्यार के जाल में फंसाकर हैदराबाद ले गया, हफ्तों तक अपने मित्रों व रिश्तेदारों से उसका गैंग रेप करवाने के बाद उसे सऊदी अरब बेच दिया और तब उस लड़के को मोहल्ले के मुसलमानों ने पूरी तरह प्रोटेक्ट किया। लड़की के मां बाप भाई में सिर्फ उसका भाई बचा। मां वियोग में मर गई बाप ने सिस्टम व मुसलमानों के प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली। दुर्गेश ने उस मुल्ले से बदला लेने की भी कोशिश की थी, पर वो सफल न हो सका था।
इन घटनाओं से मैं सीधे जुड़ा था चूँकि तीनों घटनाओं मेरे मोहल्ले की थी और अब मैं यह सोचता हूं कि अगर उस पुलिस वाले के बूढ़े बाप, उस नाबालिग दलित लड़के के पिता और सऊदी में बिकने वाली उस नाबालिग लड़की का भाई अगर मैं होता तो तब मैं क्या करता?? और तब जब हिंदुओं के नपुंसक समाज, भ्रष्ट और बिकी हुई पुलिस और मुसलमानों को अपना दामाद समझने वाली सरकार जब साथ ना दे।
अब आइए शंभूनाथ रैगर की कहानी जो अब तक सामने आई है उसकी बात करते हैं-
शंभू के पड़ोसियों के अनुसार वो काफी सरल व शांत स्वभाव का था, उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वो किसी की हत्या भी कर सकता है।
पड़ोसियों के बयान के अनुसार उसके पड़ोस की एक मुँहबोली बहन थी जिसकी उम्र महज 13 साल की थी जो उसे राखी भी बाँधती थी। इसी गांव का मोहम्मद बबलू शेख जिसने बहला फुसलाकर झांसा देकर उसकी बहन को लेकर बंगाल के सैयदपुर गाँव भाग गया था। जिसमें पूरा हाथ सीधे सीधे मो० अफ़राजुल का था। नाबालिग लड़की की मां की गुहार पर शंभू मर्जी से सैयदपुर गया। जहां 15 दिनों तक लड़की के शारीरिक शोषण के बाद शंभू उसे छुड़ाकर गांव लाया। लड़की की माँ ने संभू को 10 हज़ार का इनाम भी दिया था। लड़की को सैयदपुर से लाने से नाराज़ बंगाली मुसलमान मज़दूरों ने शंभू को खूब पीटा भी था और उसे उसके परिवार के साथ हत्या करने की धमकी भी दी थी। जिससे वह कुछ सनकी भी हो गया था।
जिस प्रकार पांचों उंगलियां समान नहीं होती, जिस प्रकार पांच भाइयों का विचार व मिजाज समान नहीं होता ठीक उसी प्रकार कोई अपनी बहन बेटी की इज्जत तार-तार होने पर आत्महत्या कर लेता है और कोई इज्जत का बदला लेने के लिए तालिबानी रास्ता चुनता है!
अब यहां सवाल यह है कि 13 साल की बच्ची पर इन वहशियों की नजर क्या सोचकर पड़ी! जाहिर सी बात है जिस धर्म में 9 साल की बच्ची से शादी मान्य हो उन्हें 13 साल की लड़की भोग की वस्तु ही दिखेगी।
सवाल ये भी हैं अगर ऐसा आपकी बहन और बेटी के साथ होगा और समाज-प्रशासन आपका साथ नहीं देगा तो आप क्या करोगे? दुनिया का कौन वो बाप और भाई होगा जो इस तरह की घटनाओं पर चुप बैठेगा।
और एक बात माननी पड़ेगी हमारे देश के मीडिया का। क्योंकि यहाँ मारने वाला दलित जाति से है और मरने वाला मुस्लिम समुदाय से, लेकिन हमेशा की तरह हत्या में दलित व मुस्लिम ढूंढने वाली मीडिया का न्यूज़ हेडलाइंस क्या है "हिंदू ने मुस्लिम शख्स को मारा"।
रोज तिल-तिल कर मरता हुआ इंसान ही, समाज, सिस्टम व नेताओं से इंसाफ न मिलने पर थक हारकर सर पर कफ़न बाँधकर जोश ए जुनून में इस तरह के कदम उठाता है। यदि यह हत्या हिंदू के साथ हुई होती तो मीडिया इसमें जाति ढूंढती कि कहीं मरने वाला दलित और मारने वाला स्वर्ण तो नहीं और आज बड़े बड़े न्यूज़ चैनल पर डिबेट्स भी होती। खैर यहां मारने वाला दलित और मरने वाला मुस्लिम समुदाय है तो कहीं जय भीम और जय भीम का नारा खतरे में न पड़ जाए इसलिए इसे 'दलित बनाम मुस्लिम' के बजाय 'हिंदू बनाम मुस्लिम' का नाम दे रही है, कोई बात नहीं सम्भू हिन्दू ही हैं, हम उसे हिन्दू ही मानते हैं। 'दलित' शब्द तो मीडिया, नेताओं व धर्मांतरण करने वाले दलालों का प्रोपगेंडा हैं।
खैर, बुद्धिजीवियों की तरह मैं भी इस तरह की निर्मम हत्या का समर्थन नहीं करता। (जब तक मेरा परिवार सुरक्षित हैं।) ~ व्यंग
(मुझे यह पोस्ट whatsapp पर प्राप्त हुई। मूल लेखक को कोटिशः धन्यवाद जिसने बखूबी सत्य को लिखने का सराहनीय प्रयाश किया है)

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