शनिवार, दिसंबर 02, 2017

# बोधकथा : # मेहमान ने # मकान # हड़पा

# बोधकथा : # मेहमान ने # मकान # हड़पा
एक सद्गृहस्थ का बंगला था और बच्चे सीधे सादे भोलेभाले याने बेवक़ूफ ।
एक परदेसी आया जिसे मेहमान की तरह रख लिया ।
परदेसी शातिर मक्कार था ।
उसने आते ही मकान कब बना था, मकान की जमीन की पैमाइश, कितनी ईंटें लगीं, कितनी खपरैल लगीं, दीवालों की लंबाई चौड़ाई ऊंचाई मोटाई कितनी है, रंग कौन से शेड का कौन से ब्राण्ड का लगा है, फ़र्श पर किस साइज़ की कौन से ब्राण्ड की कितनी टाइल्स लगी हैं, कौन से ब्राण्ड की कितनी नल लगी हैं, कितने मीटर पाइप लगे हैं, मकान की मलकियत के फ़र्जी कागजात भी बनवा लिये ।
कुछ दिनों में बुड्ढा मकान मालिक ज्यों ही मरा - मेहमान ने अदालत में फ़रियाद कर दी कि उसने अपने मकान में एक बुड्ढे और उसके बच्चों को पनाह दी थी लेकिन चूंकि अब बुड्ढा मर गया है - उसके बच्चे उसके मकान में हमेशा के लिये टिक न जायें उसके पहले अदालत के हुक्म से मकान से बेदखल कर दिये जायें ।
अदालत ने मकान की मालकियत के दस्तावेज मांगे सो उस मक्कार मेहमान ने तुरंत पेश कर दिये लेकिन चूँकि असली मालिक ने कभी इन अहम चीजों पर कभी खुद सोचा और न ही कागजात हिफ़ाजत से रखे इसलिये उसके मरने के बाद असली वारिस कोई भी सबूत पेश नहीं कर सके और पहली ही पेशी में मुकदमा हार गये और इस तरह शातिर मक्कार मेहमान ने मकान हड़प लिया ।
इस बोधकथा में अनेक कटु सत्य एवं शिक्षायें निहित हैं जो सिर्फ़ ध्यान से पढ़ कर मनन एवं विश्लेषण करने वाले ही समझ सकते है ।
यह बोधकथा भारत की हक़ीक़त है ।

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