बुधवार, अक्तूबर 02, 2013

दूरात्मा गाँधी अँगरेजों और मुसलमानों का दलाल था

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• दूरात्मा गाँधी अँगरेजों और मुसलमानों का दलाल था •••



भारत के रक्षा मंत्रालय के सैनिक समाचार के 8 फरवरी 2009 के अंक में पढ़े गाँधी 1889 में ब्रिटिश एम्बुलैंस यूनिट में भर्ती हुआ था उसकी फोटो भी पाँचवें नंबर पर छपी हूई है । वो अँगरेजों का आजीवन वेतन भोगी नौकर था । देखो उसकी नीचता और हिन्दूद्रोह, गाँधी हिन्दूऔं का पाप और हिन्दुस्तान का अभिशाप है, गाँधीवाद से देश हिजङापंथी सीख गया है । देश बचाना है तो नोटों पर गाँधी के बदले सुभाष, वीर सावरकर, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह आदि के चित्र छापो और देशभक्तों के चरित्र पढ़ाओ......!
• नोआखाली कांड के एक वर्ष पश्चात तक देश में रक्तपात होता रहा ।
मुसलमानों ने निर्दयता से हिन्दूऔं का संहार किया । कई स्थानों पर हिन्दुओं ने भी उतर दिया । बिहार, दिल्ली और पंजाब में हिन्दुओँ ने जो कुछ किया वह केवल प्रतिक्रियात्मक कार्यवाही थी । गाँधी जी यह भली-भाँती जानते थे कि यह सब कूच मुसलमानों के हिन्दूओं पर अत्याचारों के परिणामस्वरूप हो रहा है, लेकिन वे इस विषय में सदा-सर्वदा हिन्दूओं की ही निंदा करते रहे और कांग्रेस सरकार ने तो बिहार के हिन्दूओं पर गोलियाँ भी बरसाई । यह बात भुला दी गई कि यह सब नोआखाली और अन्य स्थानों के कांडो के परिणामस्वरूप हो रहा है । गाँधी ने अपनी प्रार्थना सभा के भाषणों में यह प्रचार किया कि वे मुसलमानों के साथ बहुत आदर और उदारता का व्यवहार करें और सुहरावर्दी को भले ही वह गुंडो का सरदार हो दिल्ली में स्वतंत्रता पूर्वक सैर करने दी जाए और उसे कुछ न कहा जाए ।
गाँधी के निम्नलिखित भाषणों से यह भलीभाँति ज्ञात होता है :-)-
• "हमें शांतिपूर्वक यह विचारना चाहिए कि हम कहाँ बहे जा रहे हैं...?
• हिन्दूओँ को मुसलमानों के विरुद्ध क्रोध नहीं करना चाहिए, चाहे मुसलमान उन्हें मिटाने का विचार ही क्यों न रखते हों ।
• अगर मुसलमान सभी को मार डाले तो हम बहादुरी से मर जाएँ ।
• इस दुनियां में भले उन्हीं का राज हो जाए, हम नई दुनियां के बसने वाले हो जाएँगे । कम से कम मरने से हमें बिल्कुल नहीं डरना चाहिए ।
• जन्म और मरण तो हमारे नसीब में लिखा हुआ है, फिर उसमें हर्ष-शोक क्यों करे । अगर हम हँसते-हँसते मरेंगे तो सचमुच एक नए जीवन में प्रवेश करेंगे, एक नए हिन्दुस्तान का निर्माण करेंगे ।" (दिनांक 6 अप्रैल, 1947 )
• मेरे पास रावलपिंडी से जो भाई आज मिलने आए थे वे तो तगङे थे, बहादुर थे और व्यापार में दक्ष थे । मैंने तो उस भाई से कहा आप शांत रहें और आखिर में तो ईश्वर बड़ा है । ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ ईश्वर न हो । उसका भजन करो और उसका नाम लो, सब अच्छा हो जाएगा । उन्होंने पूछा, वहाँ पाकिस्तान में जो पड़े हैं, उनका क्या करें...? मैंने उनको कहा, आप यहाँ आए क्यों, वहाँ मर क्यों नहीं गए....? मैं तो इसी चीज पर कायम हूँ कि हम पर जुल्म हो तो भी हम जहाँ पड़े हैं वहीं पड़े रहें, मर जाएँ मुसलमान लोग मार डाले तो मर जाएँ, यह न कहें कि हम अब क्या कर सकते हैं: मकान नहीं कुछ नहीं । मकान तो पड़ा है, धरती माता हमारा मकान है, उपर आकाश है । जो मुसलमान डर से भाग गए, उनके मकान पड़े हैं, जमीन पड़ी हैं । तो क्या कहूँ कि आप मुसलमानों के घरों में चले जाएँ...? मेरी जुबान से ऐसा नहीं निकल सकता । मुसलमानों के घर कल तक थे, वे आज उनके हैं । उसमें जो हमारे शरणार्थी हैं वे अपने आप चलें जाएँ मैं आपको यह परामर्श दूँगा कि आप सिख और हिन्दू शरणार्थियों को कहें कि वे पुलिस और सेना की सहायता के बिना पाकिस्तान में अपने स्थान पर वापिस जाएँ । ( 23 सितंबर, 1947 )
• जो लोग पंजाब में मर चुके हैं उनमें से एक भी वापिस नहीं आ सकता । हमें भी अंत में माना है । यह सच है कि वे कत्ल कर दिए गए, लेकिन कोई बात नहीं है ।
• बहुत से हैजे और दूसरे कारणों से मर जाते हैं । यदि वे मुसलमानों के हाथों से कत्ल हुए है तो वीरता से मरे, उन्होंने कुछ खोया नहीं, पाया है ।
• लेकिन प्रश्न यह है कि उनका क्या होगा जिन्होंने संहार किया....? यह समझ लो कि मनुष्य बड़ी भूलें करता है । पंजाब में अँगरेजी सेना ने हमारी रक्षा की, परंतु यह कोई रक्षा नहीं है । लोगों को चाहिए खुद अपनी रक्षा करें और मौत से न डरें । मारने वाले तो हमारे मुस्लिम भाई ही तो हैं । हमारे भाई अपना धर्म बदल दें तो क्या वे अपने भाई न रहेंगे...?

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