‘सप्तांबर,
अष्टांबर, नवाम्बर, दशाम्बर’ आपके मनमें, कभी प्रश्न उठा होगा कि
अंग्रेज़ी महीनों के नाम जैसे कि, सप्टेम्बर, ऑक्टोबर, नोह्वेम्बर,
डिसेम्बर कहीं, संस्कृत सप्ताम्बर, अष्टाम्बर, नवाम्बर, दशाम्बर जैसे शुद्ध
संस्कृत रूपोंसे मिलते क्यों प्रतीत होते हैं? विश्व की और विशेषतः युरप
की भाषाओं में संस्कृत शब्दों के स्रोत माने जाते हैं।
इस विषय की कुछ कडियां, जो आज शायद लुप्त हो चुकी हैं, उन्हें जानने, इस लेखकने जो काम किया है, वह आपके सामने प्रस्तुत करता हूं। जो जुड़ती कडियों का अनुसंधान मिलता है, वह पाठकों के सामने रखने में, एक सांस्कृतिक गौरव की अनुभूति भी छू कर आह्लादित कर देती है। आप सभी को इस आनंद-गौरव में सहभागी होने के लिए, आमंत्रण हैं।
क्या यह आकस्मिक घटना है? एक साथ अनुक्रम में, निरंतर चारों महीनों के नाम अंग्रेज़ी में आएं, ऐसी, आकस्मिक घटना होनेकी संभावना, नहीं के बराबर है। जो विद्वान संभावना (प्रॉबेबिलिटी) की, अवधारणा से परिचित है, वें इसे आकस्मिक मानने के लिए तैय्यार नहीं होंगे। पर प्रश्न यह भी है, कि, यदि सप्ताम्बर-सेप्टेम्बर है, तो वह अंग्रेजी कॅलेंडर में, क्रम में नववां महीना कैसे हुआ? और उसी प्रकार, फिर अष्टाम्बर-ऑक्टोबर-दसवां, नवाम्बर-नोह्वेम्बर-ग्यारहव ां, और दशाम्बर-डिसेम्बर-बारहवां, कैसे हुए?
इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने और संदर्भ खोजने के लिए, एन्सायक्लोपिडीया ब्रिटानिका का विश्व कोष छानकर देखा, और कुछ तथ्य हाथ लगे। संक्षेप में निम्न बिंदुओं की ओर ध्यान आकर्षित हुआ। इस विश्व कोष में, कॅलेन्डर के विषय में वैसे और भी जानकारी है। ईसवी सन, १७५० के आसपास आज कल उपयोग में लिया जाता कॅलेंडर स्वीकारा गया, जिसे ग्रेगॅरियन कॅलेंडर के नाम से जाना जाता है। उसके पहले ज्युलियन कॅलेंडर उपयोग में लिया जाता था। ऐसा भी दिखाइ देता है, कि, पुराने कॅलेंडरों के अनुसार मार्च महीने से ही वर्ष प्रारंभ होता था। यह वस्तुस्थिति ध्यान देने योग्य हैं, क्यों कि, यदि, मार्च महीने से ही वर्ष प्रारंभ हो, तो, सितम्बर सातवां महीना होता है, फिर अक्तुबर आठवां, नवम्बर नववां, और डिसम्बर दसवां महीना होगा।
दूसरा एक सहज दिखाइ देनेवाला तथ्य भी, मार्च से ही नये वर्ष के प्रारंभ की, पुष्टि करता है। वह है, फरवरी में, हर चार वर्ष में आता हुआ, लिप वर्ष का सुधार। कोई भी सुधार सामान्यतः अंत में ही किया जाता है। बहुत सारी ब्यौपारी पेढियां, वर्ष के अंत में ही, हिसाब बराबर करती हैं। आय-कर(Income Tax)का हिसाब भी, वर्षानुवर्ष डिसम्बर के अंत तक, देना होता है।
तो यह प्रश्न कि, फरवरी में ही क्यों, लिप वर्षका सुधार आता है? बडा ही तर्क संगत है। इसका उत्तर कहीं, इतिहास की जमा धूल के नीचे, छिप कर बैठा है। लगता है, कि कभी न कभी तो फरवरी वर्ष का अंतिम महीना रहा होगा। कोइ वर्ष के बीच ही कारण बिना, ऐसा सुधार करे, यह संभव नहीं, मैं तो ऐसा होना तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिसे असंभव मानता हूं। एक और कारण भी स्पष्ट है, कि अन्य माह ३० या ३१ दिन के होते हैं ; फिर क्यों अकेले फरवरी को २८ या २९ दिन देकर पक्षपात किया गया? तो यह फरवरी का लिप वर्ष का सुधार, एक; और २८ या २९ दिनके अवधि का माह होना, दूसरा; यह दोनो तथ्य फरवरी के वर्षान्त माह होने की पुष्टि करते हैं। अर्थात् मार्च कभी तो पहला महीना रहा होगा, यह तथ्य भी इसीसे प्रमाणित होता है।
तीसरा तथ्य भी इस के साथ जोडना आवश्यक है, वह यह है, कि, भारतीय शालिवाहन शक का वर्ष गुडी पडवा (वर्ष प्रतिपदा, युगादि)से ही माना जाता है। और हिंदू तिथि और अंग्रेज़ी डेट प्रायः आगे पीछे हुआ करती है। महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित दक्षिण में सभी परंपराएं शालिवाहन शक मानती हैं। शालिवाहन शक के वर्ष का प्रारंभ, वर्ष-प्रतिपदा जो मार्च में आती है, उसी से होता है। इस ईसवी सन २०१० के वर्ष में, १६ मार्च को शक संवत १९३२ प्रारंभ हुआ था, और साथ साथ विक्रमी संवत २०६७ भी प्रारंभ हुआ था। युगाब्द का ५१११ वां वर्ष भी इसी दिनसे प्रारंभ हुआ था।
पाठकों को अब ध्यान में आया होगा, कि क्यों, सितम्बर सातवां, अक्तुबर आठवां, नवम्बर नववां, और डिसम्बर दसवां होने का आभास होता है। वैसे अम्बर अर्थात, आकाश भी संस्कृत शब्द ही है। हो सकता है कि सप्ताम्बर = सप्त+अम्बर का अर्थ संदर्भ भी, आकाश का सातवां भाग इस(एक राशि) अर्थ की व्युत्पत्ति से जुडा हो।
इंग्लैंड का इतिहास: इंग्लैंड में सन १७५२ तक २५ मार्च को नवीन वर्ष दिन मनाया जाता था। सन १७५२ में पार्लियामेंट के प्रस्ताव द्वारा कानून पारित कर, नवीन वर्ष का प्रारंभ १ ली जनवरी को बदला गया था।
मार्च २५ को नये वर्षका प्रारंभ मानने के पीछे, क्या ऐतिहासिक कारण हो सकता है? यह भी कहीं इतिहास के अनजाने अज्ञात रहस्यो में खो गया है। आज कुछ अनुमान ही किया जा सकता है। कारण हो सकता है, कि इंग्लैंड का वैदिक गुरुकुल शिक्षा पद्धति और वैदिक पंचांग से जिस वर्ष संबंध टूटा होगा, उस वर्ष वैदिक गणित के अनुसार २५वी मार्च को प्रारंभ होनेवाला, भारतीय नव वर्ष रहा होगा।
संभवतः, जिस प्रकार घडी को उलटी दिशा में घुमाते घुमाते हर बीते हुए दिन का समय और वार हमें प्राप्त हो सकता है, उसी प्रकार कॅलेंडर को भी उलटी दिशा में गिनते गिनते हम २५ वी मार्च से प्रारंभ होने वाला शक संवत खोज सकते हैं।
मध्य रात्रि में सु प्रभातम्? और एक रहस्यमय प्रथा के प्रति प्रश्न खडा होना स्वाभाविक है, वह है, इंग्लैंड में मध्य रात्रिके समय दिनका आरंभ माना जाना। मध्य रात्रिमें, रात के १२ बजे, Good Morning कहते हुए नया दिन आरंभ कर देते हैं। मैंने रात के १२ बज कर १ मिनट पर, मध्य रात्रि के घोर अंधेरे में, रेडियो संचालक को गुड मॉर्निंग कहते हुए सुना है। यह मुझे तो कुछ अटपटा प्रतीत होता है। मध्य रात्रि के समय सुप्रभातम्? तो, अचरज तो यह है, कि नया दिन रात को प्रारंभ होता हुआ मान लिया जाए। क्या, रातके १२ बजे जागकर कॅलेंडर की तारीख बदलनी पडेगी?
दूसरा प्रश्न इसी प्रथा से जुडा, यह भी है, कि, फिर मध्य रात्रि के बाद की बची हुई, दूसरे दिन की प्रातः तक की अंधेरे-युक्त रात्रि का क्या हुआ? मध्य रात्रि हुयी, और तुरंत एक क्षणमें, सारी शेष रात्रि को छल्लांग लगा कर सु प्रभातम्,। क्या कोई तर्क है, इसके पीछे? इसे कॅल्क्युलस की पारिभाषिक शब्दावलि में (Discontinuity) विच्छिन्नता, सातत्य भंग, तार्किक असंगति, या त्रूटकता इत्यादि कहते हैं। यह निश्चित ही तर्कहीन ही लगता है। इस प्रश्न का कुछ तर्क संगत उत्तर भी निम्न परिच्छेद में देने का प्रयास किया है।
वास्तवमें, इंग्लैंडके रातके बारह बजे, भारतमें प्रातः है। वैदिक संस्कृति के अनुसार भारतमें, प्रातः ५:३० बजे सूर्योदय के साथ साथ तिथि बदली जाती थी। उज्जैन (भारत) और गीनीच (इंग्लैंड) के अक्षांश में ८२.५ अंशोका (डिग्रीका) अंतर है। उज्जैन या प्रयाग के अक्षांश ८२.५ है, जब ग्रीनीच के (०)-शून्य हैं। इस लिए, भारत में जब प्रातः के, ५:३० बजते हैं, तब ग्रीनीच, इंग्लैंड में पिछली रात के, १२ बजे होते हैं, होती तो मध्य रात्रि है, किंतु भारत की प्रातः से ताल मिलाने के लिए मध्य रात्रि के तुरंत बाद, शेष रात्रिकी ओर दुर्लक्ष्य करते हुए, गुड मॉर्निंग (सु प्रभातम्) हो जाती है। यह तर्क शुद्ध प्रतीत होता है। इस तथ्य की एक पुष्टि यह भी है, कि भारत को पूरब का देश भी माना जाता है, और ऐसे ही स्वीकारा जाता है। पाठकों को ’पूरब और पच्छिम” नाम का चलचित्र (मूवी)भी स्मरण होगा, जिसमें भारत को पूरब माना गया था, और ऐतिहासिक दृष्टिसे सदा स्वीकारा भी गया है।
इसी संदर्भ में कुछ और भी विधान किया जा सकता है। वास्तव में, उत्तर और दक्षिण दिशाएं, पृथ्वी के, दो ध्रुवों के कारण तर्क शुद्ध हैं। पृथ्वी गोल घुमती है, और, उत्तर ध्रुव और दक्षिण ध्रुव दो स्थिर बिंदू हैं। परंतु, पूर्व दिशा का ऐसा नहीं है। एक मंडल में, या वृत्त में, किस बिंदु को संदर्भ बिंदू (Reference Point) माना जाए, इसका कोई तर्क नहीं दिया जा सकता। इस लिए संदर्भ बिंदू प्रयाग, या उज्जैन (जो, आज कल माना जाता है) हो सकता है।
कॅलेंडर भी (हमारा कालांतर) संयोग से एक पुर्तगाली क्लायंट के साथ बातचीत करते समय सुना, कि पुर्तगाली भाषा में, अंग्रेज़ी कॅलेंडर के लिए ”कलांदर” शब्द प्रयुक्त होता है, जो शुद्ध संस्कृत ”कालांतर” से अधिक मिलता जुलता प्रतीत होता है। अब जानकारों को यह कालांतर, शुद्ध संस्कृत युगांतर, मन्वंतर, कल्पांतर इत्यादि शब्दों जैसा ही, शुद्ध संस्कृत प्रतीत हो, तो कोई विशेष अचरज नहीं।
Day, Night, Hour इत्यादि अब कुछ Day, Night, Hour इत्यादि शब्दों का विचार करते हैं। जो वास्तव में काल गणना विषय से ही जुडे हुए हैं। Day को दिवस शब्दके मूल धातु ”दिव” के साथ मेल है। इस दिव् का अर्थ दिव्यता अर्थात प्रकाश के साथ जुडा हुआ है। अपने शब्द दिवस, दिन, दिव्यता, देव (प्रकाश युक्त हस्ति) दैव (देवों पर आधारित) दिवंगत (प्रकाशमें लीन हो चुका हुआ) ऐसे शब्दों का मूल भी यह दिव धातु ही है। अंग्रेज़ी में यही दिव धातु के मूल से उदभूत Divine (प्रकाशमान आकृति), Day (दिवस), Deity (दैवी आकृति), Divination ( दैवी सहायता से ढूंढना), इत्यादि शब्दोंका तर्कशुद्ध संधान किया जा सकता है। यह सारे शब्द दिव् धातुसे उद्भूत प्रतीत होते हैं।
Night उसी प्रकारसे Night को संस्कृत ”नक्त” (अर्थात रात्रि) के साथ निकटता प्रतीत होती है। संस्कृतमें ”नक्तचर” रात्रि को विचरण करने वाले प्राणियों के लिए प्रयोजा जाता है। नक्त का अर्थ रात्रि, और चर का अर्थ विचरण करने वाला यह होता है। अंग्रेज़ी में भी Nocturnal Animal सुना होगा। इस Nocturanal का ”Noct” वाला हिस्सा ”नक्त” के साथ मिलता प्रतीत होता है। उच्चारण की दृष्टि से जैसे अष्ट से अख्ट,-अठ्ठ (प ्राकृत और पंजाबी ),–आठ (गुजराती/मराठी/हिंदी) और अंगेज़ी Eight ( उच्चारानुसारी अख्ट) इसे Night (उच्चारानुसारी नख्ट) से तुलना करने पर कुछ अधिक प्रकाश पडता है।
Hour का भी मूल ”होरा” इस संस्कृत शब्द से, जिस का अर्थ एक राशि में व्यतीत किया गया समय के अर्थ से लगाया जा सकता है। ज्योतिष को ”होरा” शास्त्र भी कहा जाता है।
यह व्युत्पत्तियां अंग्रेजी डिक्शनरियां क्यों दिखाती नहीं है? मुझे यह प्रश्न कई बार पूछा जाता है। मेरी दृष्टि में अनुमानित उत्तर शायद यह है, कि जब यह डिक्सनरियाँ रची गई, तब हम पर-तंत्र थे, और भारत में मॅकॉले प्रणीत शिक्षा प्रणाली लागु की गई थी; जो भारतियों को भारत की महानता के प्रति उदासीन रखना चाहती थी। सोचिए कि जिस भारत नें विश्व में गणित की आत्मा समझी जाने वाले अंकों का योगदान किया, उन अंकों का उल्लेख भी अरबी अंक इस नाते से किया जाता था। बहुत से लोग आज भी उन्हे अरबी अंक ही मानते हैं; तब यह बात सरलता से समझ में आती है। पर हमें इस मति भ्रमित अवस्था से बाहर आना होगा, और गौरव अनुभव करते हुए, उपर उठना होगा।
संदर्भ:(१) एन्सायक्लोपेडिया ब्रिटानीका (२) विश्व इतिहास के कुछ विलुप्त पृष्ठ– पु. ना. ओक,(३) लेखक का ही, गुजराती त्रैमासिक, ”गुर्जरी” में प्रकाशित लेख,(४) लेखक की टिप्पणियां।
इस विषय की कुछ कडियां, जो आज शायद लुप्त हो चुकी हैं, उन्हें जानने, इस लेखकने जो काम किया है, वह आपके सामने प्रस्तुत करता हूं। जो जुड़ती कडियों का अनुसंधान मिलता है, वह पाठकों के सामने रखने में, एक सांस्कृतिक गौरव की अनुभूति भी छू कर आह्लादित कर देती है। आप सभी को इस आनंद-गौरव में सहभागी होने के लिए, आमंत्रण हैं।
क्या यह आकस्मिक घटना है? एक साथ अनुक्रम में, निरंतर चारों महीनों के नाम अंग्रेज़ी में आएं, ऐसी, आकस्मिक घटना होनेकी संभावना, नहीं के बराबर है। जो विद्वान संभावना (प्रॉबेबिलिटी) की, अवधारणा से परिचित है, वें इसे आकस्मिक मानने के लिए तैय्यार नहीं होंगे। पर प्रश्न यह भी है, कि, यदि सप्ताम्बर-सेप्टेम्बर है, तो वह अंग्रेजी कॅलेंडर में, क्रम में नववां महीना कैसे हुआ? और उसी प्रकार, फिर अष्टाम्बर-ऑक्टोबर-दसवां, नवाम्बर-नोह्वेम्बर-ग्यारहव
इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने और संदर्भ खोजने के लिए, एन्सायक्लोपिडीया ब्रिटानिका का विश्व कोष छानकर देखा, और कुछ तथ्य हाथ लगे। संक्षेप में निम्न बिंदुओं की ओर ध्यान आकर्षित हुआ। इस विश्व कोष में, कॅलेन्डर के विषय में वैसे और भी जानकारी है। ईसवी सन, १७५० के आसपास आज कल उपयोग में लिया जाता कॅलेंडर स्वीकारा गया, जिसे ग्रेगॅरियन कॅलेंडर के नाम से जाना जाता है। उसके पहले ज्युलियन कॅलेंडर उपयोग में लिया जाता था। ऐसा भी दिखाइ देता है, कि, पुराने कॅलेंडरों के अनुसार मार्च महीने से ही वर्ष प्रारंभ होता था। यह वस्तुस्थिति ध्यान देने योग्य हैं, क्यों कि, यदि, मार्च महीने से ही वर्ष प्रारंभ हो, तो, सितम्बर सातवां महीना होता है, फिर अक्तुबर आठवां, नवम्बर नववां, और डिसम्बर दसवां महीना होगा।
दूसरा एक सहज दिखाइ देनेवाला तथ्य भी, मार्च से ही नये वर्ष के प्रारंभ की, पुष्टि करता है। वह है, फरवरी में, हर चार वर्ष में आता हुआ, लिप वर्ष का सुधार। कोई भी सुधार सामान्यतः अंत में ही किया जाता है। बहुत सारी ब्यौपारी पेढियां, वर्ष के अंत में ही, हिसाब बराबर करती हैं। आय-कर(Income Tax)का हिसाब भी, वर्षानुवर्ष डिसम्बर के अंत तक, देना होता है।
तो यह प्रश्न कि, फरवरी में ही क्यों, लिप वर्षका सुधार आता है? बडा ही तर्क संगत है। इसका उत्तर कहीं, इतिहास की जमा धूल के नीचे, छिप कर बैठा है। लगता है, कि कभी न कभी तो फरवरी वर्ष का अंतिम महीना रहा होगा। कोइ वर्ष के बीच ही कारण बिना, ऐसा सुधार करे, यह संभव नहीं, मैं तो ऐसा होना तार्किक और वैज्ञानिक दृष्टिसे असंभव मानता हूं। एक और कारण भी स्पष्ट है, कि अन्य माह ३० या ३१ दिन के होते हैं ; फिर क्यों अकेले फरवरी को २८ या २९ दिन देकर पक्षपात किया गया? तो यह फरवरी का लिप वर्ष का सुधार, एक; और २८ या २९ दिनके अवधि का माह होना, दूसरा; यह दोनो तथ्य फरवरी के वर्षान्त माह होने की पुष्टि करते हैं। अर्थात् मार्च कभी तो पहला महीना रहा होगा, यह तथ्य भी इसीसे प्रमाणित होता है।
तीसरा तथ्य भी इस के साथ जोडना आवश्यक है, वह यह है, कि, भारतीय शालिवाहन शक का वर्ष गुडी पडवा (वर्ष प्रतिपदा, युगादि)से ही माना जाता है। और हिंदू तिथि और अंग्रेज़ी डेट प्रायः आगे पीछे हुआ करती है। महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित दक्षिण में सभी परंपराएं शालिवाहन शक मानती हैं। शालिवाहन शक के वर्ष का प्रारंभ, वर्ष-प्रतिपदा जो मार्च में आती है, उसी से होता है। इस ईसवी सन २०१० के वर्ष में, १६ मार्च को शक संवत १९३२ प्रारंभ हुआ था, और साथ साथ विक्रमी संवत २०६७ भी प्रारंभ हुआ था। युगाब्द का ५१११ वां वर्ष भी इसी दिनसे प्रारंभ हुआ था।
पाठकों को अब ध्यान में आया होगा, कि क्यों, सितम्बर सातवां, अक्तुबर आठवां, नवम्बर नववां, और डिसम्बर दसवां होने का आभास होता है। वैसे अम्बर अर्थात, आकाश भी संस्कृत शब्द ही है। हो सकता है कि सप्ताम्बर = सप्त+अम्बर का अर्थ संदर्भ भी, आकाश का सातवां भाग इस(एक राशि) अर्थ की व्युत्पत्ति से जुडा हो।
इंग्लैंड का इतिहास: इंग्लैंड में सन १७५२ तक २५ मार्च को नवीन वर्ष दिन मनाया जाता था। सन १७५२ में पार्लियामेंट के प्रस्ताव द्वारा कानून पारित कर, नवीन वर्ष का प्रारंभ १ ली जनवरी को बदला गया था।
मार्च २५ को नये वर्षका प्रारंभ मानने के पीछे, क्या ऐतिहासिक कारण हो सकता है? यह भी कहीं इतिहास के अनजाने अज्ञात रहस्यो में खो गया है। आज कुछ अनुमान ही किया जा सकता है। कारण हो सकता है, कि इंग्लैंड का वैदिक गुरुकुल शिक्षा पद्धति और वैदिक पंचांग से जिस वर्ष संबंध टूटा होगा, उस वर्ष वैदिक गणित के अनुसार २५वी मार्च को प्रारंभ होनेवाला, भारतीय नव वर्ष रहा होगा।
संभवतः, जिस प्रकार घडी को उलटी दिशा में घुमाते घुमाते हर बीते हुए दिन का समय और वार हमें प्राप्त हो सकता है, उसी प्रकार कॅलेंडर को भी उलटी दिशा में गिनते गिनते हम २५ वी मार्च से प्रारंभ होने वाला शक संवत खोज सकते हैं।
मध्य रात्रि में सु प्रभातम्? और एक रहस्यमय प्रथा के प्रति प्रश्न खडा होना स्वाभाविक है, वह है, इंग्लैंड में मध्य रात्रिके समय दिनका आरंभ माना जाना। मध्य रात्रिमें, रात के १२ बजे, Good Morning कहते हुए नया दिन आरंभ कर देते हैं। मैंने रात के १२ बज कर १ मिनट पर, मध्य रात्रि के घोर अंधेरे में, रेडियो संचालक को गुड मॉर्निंग कहते हुए सुना है। यह मुझे तो कुछ अटपटा प्रतीत होता है। मध्य रात्रि के समय सुप्रभातम्? तो, अचरज तो यह है, कि नया दिन रात को प्रारंभ होता हुआ मान लिया जाए। क्या, रातके १२ बजे जागकर कॅलेंडर की तारीख बदलनी पडेगी?
दूसरा प्रश्न इसी प्रथा से जुडा, यह भी है, कि, फिर मध्य रात्रि के बाद की बची हुई, दूसरे दिन की प्रातः तक की अंधेरे-युक्त रात्रि का क्या हुआ? मध्य रात्रि हुयी, और तुरंत एक क्षणमें, सारी शेष रात्रि को छल्लांग लगा कर सु प्रभातम्,। क्या कोई तर्क है, इसके पीछे? इसे कॅल्क्युलस की पारिभाषिक शब्दावलि में (Discontinuity) विच्छिन्नता, सातत्य भंग, तार्किक असंगति, या त्रूटकता इत्यादि कहते हैं। यह निश्चित ही तर्कहीन ही लगता है। इस प्रश्न का कुछ तर्क संगत उत्तर भी निम्न परिच्छेद में देने का प्रयास किया है।
वास्तवमें, इंग्लैंडके रातके बारह बजे, भारतमें प्रातः है। वैदिक संस्कृति के अनुसार भारतमें, प्रातः ५:३० बजे सूर्योदय के साथ साथ तिथि बदली जाती थी। उज्जैन (भारत) और गीनीच (इंग्लैंड) के अक्षांश में ८२.५ अंशोका (डिग्रीका) अंतर है। उज्जैन या प्रयाग के अक्षांश ८२.५ है, जब ग्रीनीच के (०)-शून्य हैं। इस लिए, भारत में जब प्रातः के, ५:३० बजते हैं, तब ग्रीनीच, इंग्लैंड में पिछली रात के, १२ बजे होते हैं, होती तो मध्य रात्रि है, किंतु भारत की प्रातः से ताल मिलाने के लिए मध्य रात्रि के तुरंत बाद, शेष रात्रिकी ओर दुर्लक्ष्य करते हुए, गुड मॉर्निंग (सु प्रभातम्) हो जाती है। यह तर्क शुद्ध प्रतीत होता है। इस तथ्य की एक पुष्टि यह भी है, कि भारत को पूरब का देश भी माना जाता है, और ऐसे ही स्वीकारा जाता है। पाठकों को ’पूरब और पच्छिम” नाम का चलचित्र (मूवी)भी स्मरण होगा, जिसमें भारत को पूरब माना गया था, और ऐतिहासिक दृष्टिसे सदा स्वीकारा भी गया है।
इसी संदर्भ में कुछ और भी विधान किया जा सकता है। वास्तव में, उत्तर और दक्षिण दिशाएं, पृथ्वी के, दो ध्रुवों के कारण तर्क शुद्ध हैं। पृथ्वी गोल घुमती है, और, उत्तर ध्रुव और दक्षिण ध्रुव दो स्थिर बिंदू हैं। परंतु, पूर्व दिशा का ऐसा नहीं है। एक मंडल में, या वृत्त में, किस बिंदु को संदर्भ बिंदू (Reference Point) माना जाए, इसका कोई तर्क नहीं दिया जा सकता। इस लिए संदर्भ बिंदू प्रयाग, या उज्जैन (जो, आज कल माना जाता है) हो सकता है।
कॅलेंडर भी (हमारा कालांतर) संयोग से एक पुर्तगाली क्लायंट के साथ बातचीत करते समय सुना, कि पुर्तगाली भाषा में, अंग्रेज़ी कॅलेंडर के लिए ”कलांदर” शब्द प्रयुक्त होता है, जो शुद्ध संस्कृत ”कालांतर” से अधिक मिलता जुलता प्रतीत होता है। अब जानकारों को यह कालांतर, शुद्ध संस्कृत युगांतर, मन्वंतर, कल्पांतर इत्यादि शब्दों जैसा ही, शुद्ध संस्कृत प्रतीत हो, तो कोई विशेष अचरज नहीं।
Day, Night, Hour इत्यादि अब कुछ Day, Night, Hour इत्यादि शब्दों का विचार करते हैं। जो वास्तव में काल गणना विषय से ही जुडे हुए हैं। Day को दिवस शब्दके मूल धातु ”दिव” के साथ मेल है। इस दिव् का अर्थ दिव्यता अर्थात प्रकाश के साथ जुडा हुआ है। अपने शब्द दिवस, दिन, दिव्यता, देव (प्रकाश युक्त हस्ति) दैव (देवों पर आधारित) दिवंगत (प्रकाशमें लीन हो चुका हुआ) ऐसे शब्दों का मूल भी यह दिव धातु ही है। अंग्रेज़ी में यही दिव धातु के मूल से उदभूत Divine (प्रकाशमान आकृति), Day (दिवस), Deity (दैवी आकृति), Divination ( दैवी सहायता से ढूंढना), इत्यादि शब्दोंका तर्कशुद्ध संधान किया जा सकता है। यह सारे शब्द दिव् धातुसे उद्भूत प्रतीत होते हैं।
Night उसी प्रकारसे Night को संस्कृत ”नक्त” (अर्थात रात्रि) के साथ निकटता प्रतीत होती है। संस्कृतमें ”नक्तचर” रात्रि को विचरण करने वाले प्राणियों के लिए प्रयोजा जाता है। नक्त का अर्थ रात्रि, और चर का अर्थ विचरण करने वाला यह होता है। अंग्रेज़ी में भी Nocturnal Animal सुना होगा। इस Nocturanal का ”Noct” वाला हिस्सा ”नक्त” के साथ मिलता प्रतीत होता है। उच्चारण की दृष्टि से जैसे अष्ट से अख्ट,-अठ्ठ (प ्राकृत और पंजाबी ),–आठ (गुजराती/मराठी/हिंदी) और अंगेज़ी Eight ( उच्चारानुसारी अख्ट) इसे Night (उच्चारानुसारी नख्ट) से तुलना करने पर कुछ अधिक प्रकाश पडता है।
Hour का भी मूल ”होरा” इस संस्कृत शब्द से, जिस का अर्थ एक राशि में व्यतीत किया गया समय के अर्थ से लगाया जा सकता है। ज्योतिष को ”होरा” शास्त्र भी कहा जाता है।
यह व्युत्पत्तियां अंग्रेजी डिक्शनरियां क्यों दिखाती नहीं है? मुझे यह प्रश्न कई बार पूछा जाता है। मेरी दृष्टि में अनुमानित उत्तर शायद यह है, कि जब यह डिक्सनरियाँ रची गई, तब हम पर-तंत्र थे, और भारत में मॅकॉले प्रणीत शिक्षा प्रणाली लागु की गई थी; जो भारतियों को भारत की महानता के प्रति उदासीन रखना चाहती थी। सोचिए कि जिस भारत नें विश्व में गणित की आत्मा समझी जाने वाले अंकों का योगदान किया, उन अंकों का उल्लेख भी अरबी अंक इस नाते से किया जाता था। बहुत से लोग आज भी उन्हे अरबी अंक ही मानते हैं; तब यह बात सरलता से समझ में आती है। पर हमें इस मति भ्रमित अवस्था से बाहर आना होगा, और गौरव अनुभव करते हुए, उपर उठना होगा।
संदर्भ:(१) एन्सायक्लोपेडिया ब्रिटानीका (२) विश्व इतिहास के कुछ विलुप्त पृष्ठ– पु. ना. ओक,(३) लेखक का ही, गुजराती त्रैमासिक, ”गुर्जरी” में प्रकाशित लेख,(४) लेखक की टिप्पणियां।
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