गुरुवार, सितंबर 08, 2011

अंग्रेजों के षड्यंत्र और भारतीय कुरूतियों का भ्रमजाल -1

अंग्रेजों के षड्यंत्र और भारतीय कुरूतियों का भ्रमजाल -1

Lovy Bhardwaj द्वारा
अंग्रेजो ने हमारी विद्या, संस्कृति और सभ्यता को इतना नुकसान पहुचाया है की अब हमें सही बात भी गलत या आश्चर्यजनक लगती है. और ऐसा करने में उन्हें केवल 140 साल लगे. हमारी सनातन सभ्यता में महिला शीर्ष स्थान पर थी. महिला लगभग 100% साक्षर हुआ करती थी.तब परिवार और समाज में पुरुष का दर्जा आजकल के गवर्नर जैसा तथा महिला का प्रधान मंत्री जैसा था. (आप आज भी कोई टीवी प्रोग्राम देखो जहा बच्चो से उनके माँ-पिता के बारे में quiz किया जाता है.बच्चे स्वाभाविक रूप से पिता में गलतियाँ  देख लेते है और माँ की उपलब्धियों पर ज्यादा गौरान्वित होते है. ऐसा शायद इसलिए है की सनातन सभ्यता- संस्कृति कितनी भी तोड़ फोड़ दी जाये पर उसके हजारो साल पुराने प्रभाव हमारे jeans में आ कर स्थायी रूप से बस गए है.)


वैसे भी जिस शिक्षा में संस्कृति और सभ्यता का अभाव हो वो विकास का नहीं पतन का कारण बनती है l
शिक्षा में संस्कृति और सभ्यता के अभाव के चलते ही आज धर्म, सत्य और नैतिकता नाम के शब्द ही विलुप्त हो गए हैं .... यदि आप धर्म की बात करोगे तो आपको सबसे पहले सांप्रदायिक कह कर सम्बोधित किया जायेगा l आजकल हम धर्म में जो विसंगतिया देख रहे है वो विद्या की कमी के कारण है. शिक्षा तो खूब है पर विद्या नहीं क्योकि विद्यार्जन का सही तरीका तक्षशिला-नालंदा के पुस्तकालय के समान विलुप्त हो गया है.

इसको पुनर्जीवित करने के लिए कोई प्रयास नहीं हुआ. शरीर, ह्रदय,मन तथा आत्मा को एक साथ जोड़ना/syncronise करना ही विद्या थी. पर कैसे? यह आजकल एक रहस्य बना हुआ है. मोर्डन साइंस रिसर्च कर रही है पर किसी नियत सिद्धांत से कोसो दूर है. hypothesis छोडिये अभी तक स्पष्ट speculation भी नहीं दे पाए है.
इसकी कुंजी महिला में और उसको दिए जाने वाले सम्मान-आदर-सत्कार में या ऐसी ही किसी व्यवस्था में छुपी है. सनातन धर्म भी आदि शक्ति और उसके क्रियान्वन के लिए महिला (देवी) को ही स्थान देता है.

जो लोग मिशनरी मिशन मे लगे रहते है वे अक्सर लोगो को बरगलाने / सामाजिक रूप से हीन बनाने के लिए "मेकोले पाठ्यक्रम" का ही उपयोग करते है जैसे भारतीय समाज जाहिल-गंवार था, अंग्रेज़ो ने इसमे बहुत सी कुप्रथाओं को दूर किया, भारतीय स्त्रियाँ पर्दे मे रहती थी, पति के साथ जबरन जलायी जाती थी, स्त्रियाँ अनपढ़ होती थी वगेरह घिनौने आरोप भारतीय समाज को तोड़नेवाले षडयंत्रकारियों ने जाती, पंथ, भाषा वर्ग, शहरी- ग्रामीण के साथ – साथ स्त्री – पुरुष के नाम पर भी समाज को तोड़ा, इतिहास का विकृतिकरण किया, ताकि हम आपस मे बंट जाये, जाति, भाषा, क्षेत्रवाद के नाम पर (यहाँ देखें: http://www.shreshthbharat.in/literature/sanatan-bharat-india/perversion-of-indian-hinstory/)

भारतीय समाज पर आरोप लगाया की यह समाज पुरुष प्रधान समाज है यहाँ स्त्रियाँ दूसरे दर्जे की है हमारे शास्त्रो पर भी आरोप लगे की उन्होने स्त्री को या तो पुजा की देवी बना दिया या नर्क का द्वार कह दिया उसे मनुष्य का दर्जा नहीं दिया ।
आज के टीवी बहस मे तथाकथित बुद्धिजीवी औरते भारत की संस्कृति पर यह आरोप लगती है की यह समाज पुरुष प्रधान समाज है । अगर पुरुष प्रधान समाज होता तो कोई भूमि को भारत माता नहीं कहता, क्या किसी देश मे ऐसा उदाहरण दिखता है ?

आजकल लोग स्त्री की नग्नता को नारी स्वातंत्र्य का नाम दे रहे है इसी को आधार बनाते हुए वे भारतीय संस्कृति पर आरोप लगते फिरते है। अन्य समाज की तरह भारतीय समाज ना तो पुरुष प्रधान रहा और ना स्त्री प्रधान रहा, भारतीय समाज हमेशा ऋषि प्रधान रहा । ऋषि अर्थात जिसने ऋत (परम सत्य) का दर्शन किया ।

यहाँ जो जितना कामनाओं से मुक्त रहा, उसे उतना ही ऊंचा स्थान दिया गया । पुरुष प्रायः तीन कामनाओ के अधीन होते है लोकेषणा, वित्तेषणा और पुत्रेषणा । समान्यतः ऋषि इन सांसारिक कामनाओं से मुक्त होते है जबकि स्त्रियॉं में पुरुषों से आंठ गुना कामनाए होती है (नीचे देखें) ।

“यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता:” जहां नारी की पुजा होती है वहाँ देवता समान करते हैं और ये प्रसिद्ध कथन किसी शेक्सपियर के नाटक या किसी बाइबल मे नहीं लिखा है ..... सती प्रथा: सतीत्व भारतीय परिवारों का आधार था ।
इसलिए मेकोले के सांस्कृतिक सिपाहियो को इस शब्द को विकृत करना ही था ।

सती शब्द का अर्थ पति के साथ जलने वाली कर दिया ।
सीता, दमयंती, अरुंधति, अनुसूया, कुंती, गांधारी आदि महान देवियाँ अपने पति के साथ जली नहीं थी, लेकिन इन्हें सती कहा जाता हैं ।
लाख मे एकाध स्त्री के पति संग जल जाना प्रथा नहीं हो सकती ।
हर परंपरा और विश्वास, इतिहास को अंग्रेज़ो - मेकोले चस्मे से देखने वाले काले “इंडियन” को ये बाते शायद ही समझ आए । प्रथा तो तब होती जब 2-4% स्त्रियाँ ऐसा करती ।

अंग्रेज़ो ने खुद ही सती प्रथा का मिथक रचा औरखुद ही उस पर प्रतिबंध लगाने का नाटक किया ताकि वे स्वयं को ज्ञानी एवं स्वयं के संप्रदाय को देश का तारणहार घोषित कर सके कामना से ग्रस्त व्यक्ति हो या समाज सभी अस्वस्थ होते हैं इसलिए हमारे ऋषियों का प्रयास हमेशा उन्हें कामना से मुक्त करने का रहा ।

जब अंग्रेजो के समय में मंदिर को दान देने से मना कर दिया गया, तब धन के अभाव में धर्म कमजोर हो गया और सनातन संस्कृति अपना स्वरुप बदलने लगी. इस समय सती प्रथा अपने मूल स्वरुप में रहते हुए भी धर्म दोषित हो गयी. सती अग्नि में जलती नहीं थी. अपने प...ति की शव-अग्नि की परिक्रमा कर के अपनी देखभाल का वचन समाज, रिश्तेदार, पंडित, राजा, सेठ आदि से मांगती थी. एक परिक्रमा पर कोई वचन नहीं देता था तो दूसरी परिक्रमा करती थी. सात परिक्रमा तक कोई वचन नहीं देता था तो वो सब त्याग कर गाँव की परिधि पर बने मंदिर में चली जाती थी और वह प्रभु की सेवा अपनी स्वाभाविक मृत्यु तक करती थी.
तब मंदिर सनातन संस्कृति की अर्थव्यवस्था के केंद्र में थे और ऐसी किसी भी सती को आश्रय-प्रश्रय दे सकते थे. जब अंग्रेजो ने दान पर रोक लगा कर और दान देने वालो को दण्डित करके मंदिर की सम्रद्धि को कमजोर कर दिया. तब सती के पास सातवी परिकृमा करके मंदिर जाने का रास्ता बंद हो गया और वो वही अपने पति के शव के साथ जल जाती थी. जिससे इसे एक कुप्रथा का नाम दे दिया गया. जिसे राजा राम मोहन ने अंग्रेजो के साथ मिल कर दूर किया, पर समस्या का मूल कि मंदिर दुबारा संस्कृति का केंद्र बने ( उन्हें दुबारा दान मिलना शुरू हो और दान देने वालो को कोई दंड न दिया जाये) के लिए उन्होंने भी कुछ नहीं किया.

अंग्रेजो ने हमारी विद्या, संस्कृति और सभ्यता को इतना नुकसान पहुचाया है की अब हमें सही बात भी गलत या आश्चर्यजनक लगती है. और ऐसा करने में उन्हें केवल 140 साल लगे. हमारी सनातन सभ्यता में महिला शीर्ष स्थान पर थी. महिला लगभग 100% साक्षर हुआ करती थी.तब परिवार और समाज में पुरुष का दर्जा आजकल के गवर्नर जैसा तथा महिला का प्रधान मंत्री जैसा था. (आप आज भी कोई टीवी प्रोग्राम देखो जहा बच्चो से उनके माँ-पिता के बारे में quiz किया जाता है.बच्चे स्वाभाविक रूप से पिता में गलतियां  देख लेते है और माँ की उपलब्धियों पर ज्यादा गौरान्वित होते है.
ऐसा शायद इसलिए है की सनातन सभ्यता- संस्कृति कितनी भी तोड़ फोड़ दी जाये पर उसके हजारो साल पुराने प्रभाव हमारे jeans में आ कर स्थायी रूप से बस गए है.)

अज कल हम धर्म में जो विसंगतिया देख रहे है वो विद्या की कमी के कारण है. शिक्षा तो खूब है पर विद्या नहीं क्योकि विद्यार्जन का सही तरीका तक्षशिला-नालंदा के पुस्तकालय के समान विलुप्त हो गया है.

इसको पुनर्जीवित करने के लिए कोई प्रयास नहीं हुआ. शरीर, ह्रदय,मन तथा आत्मा को एक साथ जोड़ना/syncronise करना ही विद्या थी. पर कैसे? यह आजकल एक रहस्य बना हुआ है. मोर्डन साइंस रिसर्च कर रही है पर किसी नियत सिद्धांत से कोसो दूर है. hypothesis छोडिये अभी तक स्पष्ट speculation भी नहीं दे पाए है.
इसकी कुंजी महिला में और उसको दिए जाने वाले सम्मान-आदर-सत्कार में या ऐसी ही किसी व्यवस्था में छुपी है. सनातन धर्म भी आदि शक्ति और उसके क्रियान्वन के लिए महिला (देवी) को ही स्थान देता है.


पूरा लेख पढे (http://www.swadeshi.shreshthbharat.in/society/woman-ancient-india/) --- मेकोले ने ब्रिटिश संसद को क्या संबोधित किया : http://goo.gl/Mut1O

अंग्रेजों ने भारतीय शिक्षा पद्धति के भी आंकड़े एकत्रित किये थे, अंग्रेजों ने जब किसी भी विषय पर आंकड़े एकत्रित किये तो वो किये तो एक दम उचित रूप से, परन्तु उनको दिखाया विकृत करके, जैसे की शिक्षा प्रणाली में उस समय 50 % के आसपास दलित जाती के भारतीय थे, बाकी 50 % में ब्राह्मण, वेश्य और क्षत्रीय थे... परन्तु इसको उन्होंने दिखाया इसका एक दम उलट कर के .. की दलित वर्ग 20 % से भी कमतर है l
जिसके कारण अनेकोनेक भ्रांतियां फैलीं l
प्रसिद्ध गाँधी वादी श्री धर्मपाल जी ने अपने जीवन काल में अंग्रेजों के ऐसे कई षड्यंत्रों को उजागर किया l धर्मपाल जी ने जो पुस्तकें लिखीं उनमे उन्होंने सब विस्तार से वर्णन किया है l

http://www.samanvaya.com/dharampal/

आज अधिकाँश भारतीओं का यह पूर्वाग्रह है की गुरुकुलों में बच्चों की शिक्षा होगी तो वो केवल पांडित्य ही करने लायक बनेंगे, जबकि ऐसा नहीं है ... एक और उल्लेखनीय बात यह है की अंग्रेजों का जो विस्तार हुआ वो मुख्यतः 1800 के बाद से ही हुआ, उससे पहले वो किसी किसी प्रदेश में पैर जमा पाए थे l
1749 में केवल मद्रास में ही संस्कृत आधारित इंजीनियरिंग के 119 महाविद्यालय थे ....

कलेंडर पर दो श्लोक पढ़ लेने से... गीता ज्ञान पूरा नहीं हो सकता l

आत्मा अजर है, अमर है l
कर्म कर फल की चाइना मत कर l
इति गीता .... 18 अध्याय सिद्धम ...

जरा सोचिये.. हम कहाँ थे, कहाँ ले जाये गए... और कहाँ जा रहे हैं ....

जय श्री राम
जय श्री परशुराम
जय भारत जय हो

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