शरीर प्राण और चेतना...
मानव अस्तित्व की ये तीनो फैकल्टी एक दूसरे से भिन्न हैं !! भिन्न का अर्थ यहां व्यघाती नही है अपितु स्वरूप और कर्म में भिन्न होना है...शरीर और आत्मा 2 ही भेद मानने वालों ने ही आत्मा के अस्तित्व के होने या न होने का विवाद उत्पन्न किया है !!
शरीर का स्वरूप भौतिक है और कर्म है धारण करना यह प्राण और चेतना दोनों का आश्रय स्थल है शरीर का अर्थ यहां अकेला मनुष्य शरीर नही अपितु हर तरह की बॉडी है चाहे वो किसी जानवर, पशु या पक्षी या कार या कोई निर्जीव वस्तु एक प्रकार का शरीर है ।।
प्राण का स्वरूप ऊर्जा या गति होता है ।। प्राण एक प्रकार का फ्यूल या ऊर्जा प्रदान करने वाला तत्व है जिस से गति या कर्म सम्भव होता है ।। प्राण जब तक शरीर मे न आये शरीर मृतप्राय है मात्र एक ढेला है भौतिक रुप से बना हुआ ।। प्राण ही वो मूल शक्ति है जो गति या कर्म को किसी शरीर या बॉडी में संभव बनाता है ..
तीसरा जो तत्व है वो है चेतना जो कि आत्मा का स्वरूप गुण है चेतना होना ही आत्मा के होने का प्रमाण है ।। आत्मरूप में चेतन होने का अर्थ गतिज होना नही अपितु बौद्धिक और स्वतंत्र होना है ।। गति देना प्राण का कार्य है आत्मा स्वतंत्रता देती है करने की न करने की चुनाव की आपके विवेक के अनुसार आपको फ्री होने की !! इसे ऐसे समझ सकते है कि एक कार में शरीर भी है और जब उसमे फ्यूल डाला जाता है तो वो गति भी करती है परन्तु.... उसकी गति उसकी मर्जी से नही है बल्कि उसके चालक की मर्जी से है और वो चालक मानुष्य है और यही आत्मा के अस्तित्व का प्रमाण है ।। चुनाव और कर्म की स्वतन्त्रता ही आत्मा को सिद्ध करती है वरना ऊर्जा यानी शक्ति और शरीर तो कार के पास भी है ......
इस डिबेट से ये तो सिद्ध होता है कि आत्मा का अस्तित्व है पर आत्मा की उत्पत्ति और विनाश के विषय मे कुछ पता नही चलता ।।
भाववादियों की बात करें तो उनके अनुसार आत्मा ही मूल तत्व है जो स्वतंत्र है और शरीर को आश्रयस्थल मानकर अपना कार्यव्यापार करती है और मृत्यु के बाद फिर कोई शरीर धारण करती है या स्वर्ग नरक या कयामत का दिन आदि कई प्रकार की थ्योरी है इस विषय मे !!
लेकिन भौतिकवादियों या विज्ञानवादियों की बात करें तो घोर आश्चर्य का विषय है भौतिकवादी मानते हैं कि ऊर्जा या प्राण ही उच्च स्तर पर आत्मा यानी चेतना बन जाता है चेतना या आत्मा कहीं बाहर से शरीर मे नही आती है.. जो इस बात पर विश्वास किया जाए तो इसमें कोई शक नही कि कल को कम्प्यूटर भी चेतनावान हो जाएं और मनुष्य के साथ उनका संघर्ष हो जैसे कि साइंस संभावना दर्शाता है रजनीकांत की एक फ़िल्म में ये दिखाने का प्रयास भी हुआ है ....और ये भी सम्भव है कि
# मनुष्य और पृथ्वी के #प्राणी उसी तरह के कम्प्यूटर्स है जिन्हें किसी मकसद से बनाया गया था और जिनकी चेतना विकसित हो गयी है आज!! इस विषय ओर बहुत से लेखकों और वैज्ञानिको ने लिखा है कि हमें बनाने वाले कोई और नही बल्कि कारोडो वर्ष पहले किसी अन्य ग्रह के एलियंस ने हमे बनाया था और वही हमारे भगवान हैं ।। यूट्यूब पर इस विषय पर हजारों वीडियो पड़े है जो सबूत के साथ इस रहस्य से पर्दा उठाते हैं ...और निकट भविष्य में इसी और वैज्ञानिको के प्रयोग हो रहे हैं ।। मनुष्य को किसी के द्वारा कम्प्यूटर्स के रूप में बनाया गया या उपयोग किया गया पर चेतना के विकास होने पर उसे छोड़ दिया गया...या हो सकता है आत्मा हमारा सॉफ्टवेयर है..?? विज्ञान की पीरियाडिक टेबल में पृथ्वी पर कुल 84 तत्व बताए गए है हो सकता है चेतना 85 वां तत्व हो जो पृथ्वी पर नही मिलता ??
मानव अस्तित्व की ये तीनो फैकल्टी एक दूसरे से भिन्न हैं !! भिन्न का अर्थ यहां व्यघाती नही है अपितु स्वरूप और कर्म में भिन्न होना है...शरीर और आत्मा 2 ही भेद मानने वालों ने ही आत्मा के अस्तित्व के होने या न होने का विवाद उत्पन्न किया है !!
शरीर का स्वरूप भौतिक है और कर्म है धारण करना यह प्राण और चेतना दोनों का आश्रय स्थल है शरीर का अर्थ यहां अकेला मनुष्य शरीर नही अपितु हर तरह की बॉडी है चाहे वो किसी जानवर, पशु या पक्षी या कार या कोई निर्जीव वस्तु एक प्रकार का शरीर है ।।
प्राण का स्वरूप ऊर्जा या गति होता है ।। प्राण एक प्रकार का फ्यूल या ऊर्जा प्रदान करने वाला तत्व है जिस से गति या कर्म सम्भव होता है ।। प्राण जब तक शरीर मे न आये शरीर मृतप्राय है मात्र एक ढेला है भौतिक रुप से बना हुआ ।। प्राण ही वो मूल शक्ति है जो गति या कर्म को किसी शरीर या बॉडी में संभव बनाता है ..
तीसरा जो तत्व है वो है चेतना जो कि आत्मा का स्वरूप गुण है चेतना होना ही आत्मा के होने का प्रमाण है ।। आत्मरूप में चेतन होने का अर्थ गतिज होना नही अपितु बौद्धिक और स्वतंत्र होना है ।। गति देना प्राण का कार्य है आत्मा स्वतंत्रता देती है करने की न करने की चुनाव की आपके विवेक के अनुसार आपको फ्री होने की !! इसे ऐसे समझ सकते है कि एक कार में शरीर भी है और जब उसमे फ्यूल डाला जाता है तो वो गति भी करती है परन्तु.... उसकी गति उसकी मर्जी से नही है बल्कि उसके चालक की मर्जी से है और वो चालक मानुष्य है और यही आत्मा के अस्तित्व का प्रमाण है ।। चुनाव और कर्म की स्वतन्त्रता ही आत्मा को सिद्ध करती है वरना ऊर्जा यानी शक्ति और शरीर तो कार के पास भी है ......
इस डिबेट से ये तो सिद्ध होता है कि आत्मा का अस्तित्व है पर आत्मा की उत्पत्ति और विनाश के विषय मे कुछ पता नही चलता ।।
भाववादियों की बात करें तो उनके अनुसार आत्मा ही मूल तत्व है जो स्वतंत्र है और शरीर को आश्रयस्थल मानकर अपना कार्यव्यापार करती है और मृत्यु के बाद फिर कोई शरीर धारण करती है या स्वर्ग नरक या कयामत का दिन आदि कई प्रकार की थ्योरी है इस विषय मे !!
लेकिन भौतिकवादियों या विज्ञानवादियों की बात करें तो घोर आश्चर्य का विषय है भौतिकवादी मानते हैं कि ऊर्जा या प्राण ही उच्च स्तर पर आत्मा यानी चेतना बन जाता है चेतना या आत्मा कहीं बाहर से शरीर मे नही आती है.. जो इस बात पर विश्वास किया जाए तो इसमें कोई शक नही कि कल को कम्प्यूटर भी चेतनावान हो जाएं और मनुष्य के साथ उनका संघर्ष हो जैसे कि साइंस संभावना दर्शाता है रजनीकांत की एक फ़िल्म में ये दिखाने का प्रयास भी हुआ है ....और ये भी सम्भव है कि
# मनुष्य और पृथ्वी के #प्राणी उसी तरह के कम्प्यूटर्स है जिन्हें किसी मकसद से बनाया गया था और जिनकी चेतना विकसित हो गयी है आज!! इस विषय ओर बहुत से लेखकों और वैज्ञानिको ने लिखा है कि हमें बनाने वाले कोई और नही बल्कि कारोडो वर्ष पहले किसी अन्य ग्रह के एलियंस ने हमे बनाया था और वही हमारे भगवान हैं ।। यूट्यूब पर इस विषय पर हजारों वीडियो पड़े है जो सबूत के साथ इस रहस्य से पर्दा उठाते हैं ...और निकट भविष्य में इसी और वैज्ञानिको के प्रयोग हो रहे हैं ।। मनुष्य को किसी के द्वारा कम्प्यूटर्स के रूप में बनाया गया या उपयोग किया गया पर चेतना के विकास होने पर उसे छोड़ दिया गया...या हो सकता है आत्मा हमारा सॉफ्टवेयर है..?? विज्ञान की पीरियाडिक टेबल में पृथ्वी पर कुल 84 तत्व बताए गए है हो सकता है चेतना 85 वां तत्व हो जो पृथ्वी पर नही मिलता ??
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