Saurabh Bhaarat
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू जी ने आज लखनऊ में ज्ञान दिया कि यूपी में कानून व्यवस्था में और सुधार करने के लिए सभी लाइसेंसी हथियार वापस ले लेने चाहिए। बिना जमीनी सच्चाई जाने ज्ञान का ओवरफ्लो ऐसे ही होता है। कानून व्यवस्था के लिए समस्या अपराधी प्रवृत्ति के लोग उत्पन्न करते हैं और अपराधियों को सरकारी लाइसेंस की जरूरत नहीं होती। देश में आज भी अगर मजहबी उन्मादी भीड़ ठान ले तो आपको घेरकर मार सकती है और कोई कानून-पुलिस उस समय आपको नहीं बचा सकता। दिल्ली में डॉ नारंग की बर्बर हत्या को भूले नहीं होंगे आप। राष्ट्रवादी सरकार के पुलिसिया इलाके में दिन दहाड़े डॉ नारंग अपने बच्चे के सामने ही मार डाले गए। उनके पास अगर बन्दूक होती तो निश्चय ही ऐसा न होता। 5 लाख कश्मीरी पण्डितों में 50 ने भी बन्दूकें चलाई होतीं तो सैकड़ों आतंकियों की लाशें बिछ जातीं। पुलिस ने तो वैसे भी मदद नहीं करना था। कोई पुलिस गोधरा कांड नहीं रोक पाई। वह तो गुजरात में हिंदुओं ने खुद ही प्रतिक्रिया कर जब जिहादी दंगाईयों को जवाब देना शुरू किया तब पुलिस सक्रिय हुई और ढाई सौ हिन्दू ही एनकाउंटर में उड़ा दिये गए। हिंदुओं को यह घुट्टी पिला दी गयी है और हिंदुओं ने पी भी ली है कि हमारी जान माल की सुरक्षा पुलिस कर लेगी, हमें खुद उसके लिए कुछ करने की जरूरत नहीं। जबकि शास्त्र के साथ शस्त्र भी रखना हमारे धर्म-संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। हमारे विद्रोह को रोकने के लिए ही अंग्रेजों ने शस्त्रों को नियंत्रित करना जरूरी समझा और आर्म्स एक्ट का कानून बनाया। अब अंग्रेज नहीं है लेकिन सेकुलर स्टेट की अपनी सीमाएं हैं। चाहे किसी की सरकार रही हो न्यायोचित आक्रमण और आत्मरक्षा के प्रति उदासीन हिन्दू प्रताड़ित हुए हैं। आत्मरक्षा को लेकर जागरूकता लाई जानी चाहिए। अगर राज्य ये गारन्टी दे कि एक भी अवैध हथियार किसी के हाथ में नहीं होगा तब तो शस्त्रविहीन समाज को आदर्श बताने का भाषण सुना जा सकता है लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता तब तक शस्त्र छीनने के बजाय लाइसेंस प्रक्रिया और आसान बनाई जानी चाहिए ताकि हिन्दू मध्यम वर्ग भी अपनी आत्मरक्षा की एक वैध व्यवस्था कर पाए।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू जी ने आज लखनऊ में ज्ञान दिया कि यूपी में कानून व्यवस्था में और सुधार करने के लिए सभी लाइसेंसी हथियार वापस ले लेने चाहिए। बिना जमीनी सच्चाई जाने ज्ञान का ओवरफ्लो ऐसे ही होता है। कानून व्यवस्था के लिए समस्या अपराधी प्रवृत्ति के लोग उत्पन्न करते हैं और अपराधियों को सरकारी लाइसेंस की जरूरत नहीं होती। देश में आज भी अगर मजहबी उन्मादी भीड़ ठान ले तो आपको घेरकर मार सकती है और कोई कानून-पुलिस उस समय आपको नहीं बचा सकता। दिल्ली में डॉ नारंग की बर्बर हत्या को भूले नहीं होंगे आप। राष्ट्रवादी सरकार के पुलिसिया इलाके में दिन दहाड़े डॉ नारंग अपने बच्चे के सामने ही मार डाले गए। उनके पास अगर बन्दूक होती तो निश्चय ही ऐसा न होता। 5 लाख कश्मीरी पण्डितों में 50 ने भी बन्दूकें चलाई होतीं तो सैकड़ों आतंकियों की लाशें बिछ जातीं। पुलिस ने तो वैसे भी मदद नहीं करना था। कोई पुलिस गोधरा कांड नहीं रोक पाई। वह तो गुजरात में हिंदुओं ने खुद ही प्रतिक्रिया कर जब जिहादी दंगाईयों को जवाब देना शुरू किया तब पुलिस सक्रिय हुई और ढाई सौ हिन्दू ही एनकाउंटर में उड़ा दिये गए। हिंदुओं को यह घुट्टी पिला दी गयी है और हिंदुओं ने पी भी ली है कि हमारी जान माल की सुरक्षा पुलिस कर लेगी, हमें खुद उसके लिए कुछ करने की जरूरत नहीं। जबकि शास्त्र के साथ शस्त्र भी रखना हमारे धर्म-संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। हमारे विद्रोह को रोकने के लिए ही अंग्रेजों ने शस्त्रों को नियंत्रित करना जरूरी समझा और आर्म्स एक्ट का कानून बनाया। अब अंग्रेज नहीं है लेकिन सेकुलर स्टेट की अपनी सीमाएं हैं। चाहे किसी की सरकार रही हो न्यायोचित आक्रमण और आत्मरक्षा के प्रति उदासीन हिन्दू प्रताड़ित हुए हैं। आत्मरक्षा को लेकर जागरूकता लाई जानी चाहिए। अगर राज्य ये गारन्टी दे कि एक भी अवैध हथियार किसी के हाथ में नहीं होगा तब तो शस्त्रविहीन समाज को आदर्श बताने का भाषण सुना जा सकता है लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता तब तक शस्त्र छीनने के बजाय लाइसेंस प्रक्रिया और आसान बनाई जानी चाहिए ताकि हिन्दू मध्यम वर्ग भी अपनी आत्मरक्षा की एक वैध व्यवस्था कर पाए।
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