रविवार, जनवरी 18, 2015

कवि 'नजीर अकबराबादी'


भारत पर कभी भारत के मुस्लिमों ने शासन नहीं किया, जो भी मुस्लिम यहाँ के शासक थे वे सब विदेशी थे, चाहे वो मुगल हो या गुलाम वंश, लेकिन यहाँ के मुस्लिमों ने शायद ही कभी उनका विरोध किया हो उल्टा जितना आदर उन विदेशी लुटेरों के लिये मुस्लिमों के दिल मे होता है उतना अपने देश में पैदा हुए महापुरूषो राम, कृष्ण, शिवाजी आदि के प्रति नहीं होता है और यही अलगाववाद हैं|

परन्तु कवि 'नजीर अकबराबादी' ऐसी नीच सोच रखने वालों के मुंह पर एक तमाचा हैं| कवि नजीर अकबराबादी का जन्म 1735 ई. मे दिल्ली में हुआ था, उस समय वहाँ का शासक मुहम्मदशाह 'रगींला' था| नादिरशाह के हमले के कारण दरबार
की दशा दयनीय थी| दिल्ली में निर्वाह न होने के कारण 'नजीर' के माता-पिता उन्हे आगरा(अकबराबाद) ले आयें, उस समय 'नजीर' 4 साल के थे| जहाँगीर ने अपने पिता के नाम पर आगरा का नाम अकबराबाद रखा था जिसे अपने साथ जोड़ कर 'नजीर' अकबराबादी हो गये|

कवि 'नजीर' का समय हिन्दी इतिहास मे रीतकाल की परिधि मे आता है, जहाँ रितिकालीन कवि राजदरबारो मे नायिकाओं के नख-शिख के वर्णन को राधा कन्हाई सुमिरन के साथ श्रृंगार रस मे गोते लगा रहें थे, वहाँ हम पाते है कि कवि नजीर को कामुकता छुकर भी नहीं गयी हैं| वह श्रीकृष्ण को सर्वत्र दुःखहरन कृपाकरन मानते हैं, कृष्ण उनके लिये पैगम्बर जैसे हैं| कविता देंखें:

तू सबका खुदा सब तुझ पै फिदा, अल्ला हो गनी अल्ला हो गनी|
सूरत मे नबी सीरत मे खुदा, ऐ सल्ला अल्लाह अल्ला हो गनी|
तालिब है तेरी रहमत का बंदाये नाचीज 'नजीर' तेरा,
तू बहारे करम है नंदलला अल्ला हो गनी अल्ला हो गनी|

श्रीकृष्ण का वर्णन करने मे उन्होने अमित भक्ति दिखायी हैं:-

तारीफ करूँ अब मै क्या उस मुरली अधर बजैया की,
नित सेवा कुंजपिरैया की और वन वन गऊ चरैया की|
गोपाल बिहारी बनवारी दःख हरना मेहर करैया की,
गिरधारी सुन्दर श्याम बरन और हलधर जूं के भैया की|
यह लीला है उस नन्दललन मनमोहन जसुमति छैया की
रस ध्यान सुनौ दंडौत करौ जै बोलो किशन कन्हैया की|

मित्रो हम भी चाहते हैं कि मुस्लिम भाई कवि '
नजीर' के साथ श्रीकृष्ण की जय बोले और उनकी आवाज हमसे ऊँची हो| ऐसा करके वो संसार को सन्देश दे कि हमारे पेशवा या मजहबी नेता भले ही मोहम्मद साहब हो पर हमारे पूर्वज आज भी राम और कृष्ण हैं| मै समझता हूँ यही सच्ची भारतीयता होगी|

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