मुहम्मद गजनवी नेँ भारत पर कई हमले किये थे। और गुजरात के सोमनाथ मन्दिर
पर उसके हमले काफी कुख्यात है। परन्तु शहर 'गजनी' एक हिन्दू राजा "गज
सिँह" का बसाया हुआ है। तवारीख-ए-जैसलमेर के पृष्ठ संख्या 9,10 का
एक दोहा बड़ा प्रसिद्ध है-
तीन सत्त अतसक धरम, वैशाखे सित तीन।
रवि रोहिणि गजबाहु नै गजनी रची नवीन।।
एक दोहा बड़ा प्रसिद्ध है-
तीन सत्त अतसक धरम, वैशाखे सित तीन।
रवि रोहिणि गजबाहु नै गजनी रची नवीन।।
यानि गजबाहु नेँ युधिष्ठिर संवत् 308 मेँ गजनी शहर को बसाया था।
प्रसिद्ध अरबी इतिहासकार याकूबी के अनुसार नवीँ शती मेँ भारत की सीमायेँ ईरान तक थी। 712-13 ई॰ मेँ सिँध पर मुसलमानो का अधिकार हो गया पर हिन्दुओँ ने उन्हे चैन से बैठने दिया और ये अधिकार अधूरा ही रहा। लेकिन सिँध की विजय से उत्साहित होकर बुखारा बगदाद के खलीफा बलदीन नेँ अपने गुलाम सेनापति यदीद खाँ को मेवाड़ राजस्थान पर बड़ी विजय के लिए भेजा। उस समय चित्तौड़गढ़ का शासक वीरमान सिँह था और उनके सेनानायक थे 'बप्पा रावल' जो खुद उनके भांजे थे। उन्होनेँ आगे बढ़कर यदीद खाँ की सेना का सामना किया, चित्तौड़गढ़ की सहायता मेँ अजमेर, गुजरात, सौराष्ट्र की राजपूत सेनायेँ भी आ गयी।
बड़ा भयानक युद्ध हुआ, हाथी धोड़ो की लाशो के ढेर लग गये, राजपूतोँ की तलवारेँ उन विधर्मियोँ को ऐसे काट रही थी जैसे किसान अपनी फसल बचाने को खर-पतवार काटता है। एक तरफ यदि इस्लामी जेहादी जुनून था तो दूसरी तरफ राष्ट्रधर्म रक्षा की भावना, एक तरफ हवस और लूटपाट थी तो दूसरी तरफ मातृभूमि का रक्षा का संकल्प। अतः युद्ध बप्पा को विजय मिली। बप्पा रावल केवल एक अजेय योद्धा ही नही दूरदर्शी राजनैतिज्ञ भी था। उसने भाग रहे दुश्मनोँ का पीछा किया और उन्हेँ गजनी मेँ जा घेरा। गजनी को वो अपने पूर्वजो की विरासत मानता था। उस समय गजनी का शासक शाह सलीम था, उसने बड़ी सेना के बप्पा से मुकाबला किया लेकिन बप्पा के सामने टिक न सका। जान बचाने के वास्ते अपनी बेटी की शादी बप्पा से करदी। गजनी के सिँहासन पर बैठकर बप्पा ने ईराक, ईरान तक भगवा फहराया, जिसकी पुष्टि अबुल फजल ने भी की है। प्रसिद्ध अग्रेँज इतिहासकार कर्नल.टाड के अनुसार बप्पा ने कई अरबी युवतियोँ से विवाह करके 32 सन्तानेँ पैदा जो आज अरब मेँ नौशेरा पठान के नाम से जाने जाते हैँ।
अफसोस की बात है दोस्तो कि आजादी के बाद सेक्युलरिज्म के नाम हमारे
सच्चे इतिहास को दबा दिया गया।
प्रसिद्ध अरबी इतिहासकार याकूबी के अनुसार नवीँ शती मेँ भारत की सीमायेँ ईरान तक थी। 712-13 ई॰ मेँ सिँध पर मुसलमानो का अधिकार हो गया पर हिन्दुओँ ने उन्हे चैन से बैठने दिया और ये अधिकार अधूरा ही रहा। लेकिन सिँध की विजय से उत्साहित होकर बुखारा बगदाद के खलीफा बलदीन नेँ अपने गुलाम सेनापति यदीद खाँ को मेवाड़ राजस्थान पर बड़ी विजय के लिए भेजा। उस समय चित्तौड़गढ़ का शासक वीरमान सिँह था और उनके सेनानायक थे 'बप्पा रावल' जो खुद उनके भांजे थे। उन्होनेँ आगे बढ़कर यदीद खाँ की सेना का सामना किया, चित्तौड़गढ़ की सहायता मेँ अजमेर, गुजरात, सौराष्ट्र की राजपूत सेनायेँ भी आ गयी।
बड़ा भयानक युद्ध हुआ, हाथी धोड़ो की लाशो के ढेर लग गये, राजपूतोँ की तलवारेँ उन विधर्मियोँ को ऐसे काट रही थी जैसे किसान अपनी फसल बचाने को खर-पतवार काटता है। एक तरफ यदि इस्लामी जेहादी जुनून था तो दूसरी तरफ राष्ट्रधर्म रक्षा की भावना, एक तरफ हवस और लूटपाट थी तो दूसरी तरफ मातृभूमि का रक्षा का संकल्प। अतः युद्ध बप्पा को विजय मिली। बप्पा रावल केवल एक अजेय योद्धा ही नही दूरदर्शी राजनैतिज्ञ भी था। उसने भाग रहे दुश्मनोँ का पीछा किया और उन्हेँ गजनी मेँ जा घेरा। गजनी को वो अपने पूर्वजो की विरासत मानता था। उस समय गजनी का शासक शाह सलीम था, उसने बड़ी सेना के बप्पा से मुकाबला किया लेकिन बप्पा के सामने टिक न सका। जान बचाने के वास्ते अपनी बेटी की शादी बप्पा से करदी। गजनी के सिँहासन पर बैठकर बप्पा ने ईराक, ईरान तक भगवा फहराया, जिसकी पुष्टि अबुल फजल ने भी की है। प्रसिद्ध अग्रेँज इतिहासकार कर्नल.टाड के अनुसार बप्पा ने कई अरबी युवतियोँ से विवाह करके 32 सन्तानेँ पैदा जो आज अरब मेँ नौशेरा पठान के नाम से जाने जाते हैँ।
अफसोस की बात है दोस्तो कि आजादी के बाद सेक्युलरिज्म के नाम हमारे
सच्चे इतिहास को दबा दिया गया।
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