सोमवार, सितंबर 16, 2019

हमारा अंतरिक्ष विज्ञान हजारों साल पुराना है

पुरी दुनिया का अंतरिक्ष विज्ञान तो 300-400 साल पुराना है
जबकि हमारा अंतरिक्ष विज्ञान हजारों साल पुराना है :
चांद पर लैंडर उतारने में हम नाकामयाब क्या हुएं दुनिया के कुछ अखबारों ने बहुत ही चतुराई भरे शब्दों में हम पर व्यंग्य किया है।लोगों को यह पता होना ही चाहिए कि रुस ,अमेरिका,ब्रिटेन, जर्मनी फ्रांस और चीन यह सब जितने देश हैं उनका अंतरिक्ष विज्ञाण मात्र 300-400 साल पुराना है जबकि हमारा अंतरिक्ष ज्ञाण हजारों-हजार साल पुराना है।
...अमेरिका के जब आप इतिहास पढेंगें तो मालुम होगा कि 15 वीं शताब्दी के मध्य तक चंद्रग्रहण के संबध में अमेरिकी जनता को कुछ भी मालुम नही था।वें इसे कौतुहल मानते थें।कोलम्बस ने तो 14 वीं शताब्दी में चंद्रग्रहण के लाल चांद का डर दिखाकर इनसे अमेरिकी जनता से बहुत धन ठग लिया था।
...वहीं हमारा देश चंद्रग्रहण के वैज्ञानिक सिद्धांत से पुरी तरह परिचित था।ब्रह्मपुराण का एक श्लोक कहता है। --- " भूमिच्छाया गतश्चक्र चक्रगो अर्क कदाचन्।--- यानी चंद्रमा पर पृथ्वी की काली छाया पड़ने से यह खगोलीय घटना होती है।हजारों साल पहले पैदा हुए भारत के महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने तो जो वैज्ञानिक सिद्धांत लिख रखा है वहीं सिद्धांत आज पुरी दुनिया विज्ञान के पाठ्यपुस्तकों में पढ़ा रहा है।
....सूर्य के सात रंगों की खोज ऐसे तो न्यूटन को जाता है लेकिन न्यूटन से सहस्रो साल पहले वेदों और पुराणों में हमनें धार्मिक दृष्टिकोण से दुनिया को बता रखा है कि सूर्य सात घोडे़ वालें रथ पर विराजमान दिखाया है,तो ब्रह्माण्ड पुराण में सप्त रश्मि का उल्लेख है।जहां तक सूर्य की किरणें की गति का सवाल है तो 16 वीं शताब्दी में पुरी दुनिया ने आधा-अधुरा ज्ञान जाना बाद में 19 शताब्दी के शुरुआत में दुनिया ने सटीक तरीका से सूर्य के किरण की गति इतनी है जबकि हमारा महाभारत उससे हजारों साल पहले उसके किरण के गति का सिद्धांत दे रखा है।
...महाभारत के शांतिपर्व में उल्लेख है --" योजनानां सहस्रे द्वे द्वेशते द्वे च योजने।एकेन निमिषाद्वैन क्रममाण नमोsस्तुते। --अर्थ देखीए --सूर्य की किरणें एक निमिष में 2202 योजन जाती है।....जब थोड़ा निमिष को आप सेकेण्ड में बदल दिजीए तो निमिष एक सेकेंड का 16/75 वां भाग होता है।अब कैल्युकेलेट कर दिजीए योजन को मिल में बदल दिजीए और निमिष को सेकेंड में बदल दिजीए तो हुआ न लगभग 2 लाख 96 हजार किलोमीटर प्रति सेकेंड।आज का वैज्ञानिक सिद्धांत भी यही है।
...कहते हैं आकाशगंगा की खोज गैलेलियो ने की थी इसलिए पुरी दुनिया ने इसका नाम ही Galaxy दे दिया।किंतु आकाशगंगा पर एक टिपप्णी पुराणों मे देखीए।---"भ्रमानि कथमेनानी जोनिषि दिव मण्डलम्।व्हुहेन च सर्वाणि तथैवांस करेणवा।...अर्थात -- ये प्रकाशमान नक्षत्र और तारागण आकाश में किस प्रकार स्थिर है और एक-दूसरे से टकराते नही हैं।इसका कारण कुछ निश्चित गति है,जिसमें वें आकाश में संचरण करते हैं।
...दुरबीन जिसके खोज दुनिया के अनुसार हालैंड के हैंश लिपर्शे ने 1608 में किया था किंतु हमारे सबसे प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद के एक मंत्र का उदाहरण देखीए।--" यत्क सूर्य स्वर्भानुतमसा। विध्यतासुरः अक्षेत्र मुग्धा भुवनान्य दीर्घयु । गूढं तमसावतेन तूरियेण ब्रह्मा विन्ददसि।...अर्थ --: हे सूर्य, तुम चंद्र के अंधकार से आवृत हो।जो लोग ज्यमिति तथा ज्योतिष नही जानते हैं वे इसे देखकर सतम्भित है किंतु जो ज्ञानवान हैं वें तुम्हे तुरीय यंत्र के सहायता से देखते हैं।....ऋग्वेद का यह मंत्र हमें दो विषय की जानकारी दे रहा है एक सूर्यग्रहण की दुसरा दुरबीन के प्रयोग की।इतना ही दुरबीन कैसे बनाया जाता था इसका उल्लेख भी हमारे ग्रंथो मे है जो कमेंट में बताएगें क्योंकी अब पोस्ट अपडेट का समय हो चुका है।

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