जानिए कैसे मुग़ल करते थे हिंदूओ की महिलाओ पर अत्याचार, खून खौल जायेगा पूरा सच जानकर!
आतंकी संगठन आईएसआईएसआई के बारे में जब हम पढ़ते हैं कि वह अल्पसंख्यक यजीदी महिलाओं को यौन गुलाम बना रहा है तो हमें आश्चर्य होता है, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों व मुगल बादशाहों ने भी बहुसंख्यक हिंदू महिलाओं को बड़े पैमाने पर यौन दास यानी सेक्स सेल्व्स बनाया था।
इसमें मुगल बादशाह शाहजहां का हरम सबसे अधिक बदनाम रहा, जिसके कारण दिल्ली का रेड लाइट एरिया जी.बी.रोड बसा। इतिहासकार वी. स्मिथ ने लिखा है, “शाहजहाँ के हरम में 8000 रखैलें थीं जो उसे उसके पिता जहाँगीर से विरासत में मिली थी। उसने बाप की सम्पत्ति को और बढ़ाया। उसने हरम की महिलाओं की व्यापक छाँट की तथा बुढ़ियाओं को भगा कर और अन्य हिन्दू परिवारों से बलात लाकर हरम को बढ़ाता ही रहा।”
-(अकबर दी ग्रेट मुगल : वी स्मिथ, पृष्ठ 359)
कहते हैं कि उन्हीं भगायी गयी महिलाओं से दिल्ली का रेडलाइट एरिया जी.बी. रोड गुलजार हुआ था और वहाँ इस धंधे की शुरूआत हुई थी। जबरन अगवा की हुई हिन्दू महिलाओं की यौन-गुलामी और यौन व्यापार को शाहजहाँ प्रश्रय देता था, और अक्सर अपने मंत्रियों और सम्बन्धियों को पुरस्कार स्वरूप अनेकों हिन्दू महिलाओं को उपहार में दिया करता था। यह नर पशु, यौनाचार के प्रति इतना आकर्षित और उत्साही था|
कि हिन्दू महिलाओं का मीना बाजार लगाया करता था, यहाँ तक कि अपने महल में भी। सुप्रसिद्ध यूरोपीय यात्री फ्रांकोइस बर्नियर ने इस विषय में टिप्पणी की थी कि, “महल में बार-बार लगने वाले मीना बाजार, जहाँ अगवा कर लाई हुई सैकड़ों हिन्दू महिलाओं का, क्रय-विक्रय हुआ करता था, राज्य द्वारा बड़ी संख्या में नाचने वाली लड़कियों की व्यवस्था, और नपुसंक बनाये गये सैकड़ों लड़कों की हरमों में उपस्थिती, शाहजहाँ की अनंत वासना के समाधान के लिए ही थी।”
-(ट्रेविल्स इन दी मुगल ऐम्पायर- फ्रान्कोइस बर्नियर :पुनः लिखित वी. स्मिथ, ऑक्सफोर्ड, 1934)
शाहजहाँ को प्रेम की मिसाल के रूप पेश किया जाता रहा है और किया भी क्यों न जाए , आठ हजार औरतों को अपने हरम में रखने वाला अगर किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए तो वो उसका प्यार ही कहा जाएगा। आप यह जानकर हैरान हो जायेंगे कि मुमताज का नाम मुमताज महल था ही नहीं बल्कि उसका असली नाम “अर्जुमंद-बानो-बेगम“ था और तो और जिस शाहजहाँ और मुमताज के प्यार की इतनी डींगे हांकी जाती है वो शाहजहाँ की ना तो पहली पत्नी थी ना ही आखिरी ।
मुमताज शाहजहाँ की सात बीबियों में चौथी थी । इसका मतलब है कि शाहजहाँ ने मुमताज से पहले 3 शादियाँ कर रखी थी और, मुमताज से शादी करने के बाद भी उसका मन नहीं भरा तथा उसके बाद भी उस ने 3 शादियाँ और की यहाँ तक कि मुमताज के मरने के एक हफ्ते के अन्दर ही उसकी बहन फरजाना से शादी कर ली थी। जिसे उसने रखैल बना कर रखा था जिससे शादी करने से पहले ही शाहजहाँ को एक बेटा भी था। अगर शाहजहाँ को मुमताज से इतना ही प्यार था तो मुमताज से शादी के बाद भी शाहजहाँ ने 3 और शादियाँ क्यों की?
शाहजहाँ की सातों बीबियों में सबसे सुन्दर मुमताज नहीं बल्कि इशरत बानो थी जो कि उसकी पहली पत्नी थी । शाहजहाँ से शादी करते समय मुमताज कोई कुंवारी लड़की नहीं थी बल्कि वो भी शादीशुदा थी और उसका पति शाहजहाँ की सेना में सूबेदार था जिसका नाम “शेर अफगान खान“ था। शाहजहाँ ने शेर अफगान खान की हत्या कर मुमताज से शादी की थी।
गौर करने लायक बात यह भी है कि 38 वर्षीय मुमताज की मौत कोई बीमारी या एक्सीडेंट से नहीं बल्कि चौदहवें बच्चे को जन्म देने के दौरान अत्यधिक कमजोरी के कारण हुई थी। यानी शाहजहाँ ने उसे बच्चे पैदा करने की मशीन ही नहीं बल्कि फैक्ट्री बनाकर मार डाला था। शाहजहाँ कामुकता के लिए इतना कुख्यात था, की कई इतिहासकारों ने उसे उसकी अपनी सगी बेटी जहाँआरा के साथ सम्भोग करने का दोषी तक कहा है।
शाहजहाँ और मुमताज महल की बड़ी बेटी जहाँआरा बिल्कुल अपनी माँ की तरह लगती थी इसीलिए मुमताज की मृत्यु के बाद उसकी याद में शाहजहाँ ने अपनी ही बेटी जहाँआरा को भोगना शुरू कर दिया था। जहाँआरा को शाहजहाँ इतना प्यार करता था कि उसने उसका निकाह तक होने न दिया। बाप-बेटी के इस प्यार को देखकर जब महल में चर्चा शुरू हुई, तो मुल्ला-मौलवियों की एक बैठक बुलाई गयी और उन्होंने इस पाप को जायज ठहराने के लिए एक हदीस का उद्धरण दिया और कहा कि – “माली को अपने द्वारा लगाये पेड़ का फल खाने का हक़ है|”
इतना ही नहीं जहाँआरा के किसी भी आशिक को वह उसके पास फटकने नहीं देता था। कहा जाता है की एकबार जहाँआरा जब अपने एक आशिक के साथ इश्क लड़ा रही थी तो शाहजहाँ आ गया जिससे डरकर वह हरम के तंदूर में छिप गया, शाहजहाँ ने तंदूर में आग लगवा दी और उसे जिन्दा जला दिया।
दरअसल अकबर ने यह नियम बना दिया था कि मुगलिया खानदान की बेटियों की शादी नहीं होगी। इतिहासकार इसके लिए कई कारण बताते हैं। इसका परिणाम यह होता था कि मुग़ल खानदान की लड़कियां अपने जिस्मानी भूख मिटाने के लिए अवैध तरीके से दरबारी, नौकर के साथ साथ, रिश्तेदार यहाँ तक की सगे सम्बन्धियों का भी सहारा लेती थी।कहा जाता है कि जहाँआरा अपने बाप के लिए लड़कियाँ भी फंसाकर लाती थी।
जहाँआरा की मदद से शाहजहाँ ने मुमताज के भाई शाइस्ता खान की बीबी से कई बार बलात्कार किया था। शाहजहाँ के राज ज्योतिष की 13 वर्षीय ब्राह्मण लडकी को जहाँआरा ने अपने महल में बुलाकर धोखे से नशा देकर बाप के हवाले कर दिया था, जिससे शाहजहाँ ने अपनी उम्र के 58 वें वर्ष में उस 13 बर्ष की ब्राह्मण कन्या से निकाह किया था। बाद में इसी ब्राहम्ण कन्या ने शाहजहाँ के कैद होने के बाद औरंगजेब से बचने और एक बार फिर से हवस की सामग्री बनने से खुद को बचाने के लिए अपने ही हाथों अपने चेहरे पर तेजाब डाल लिया था।
शाहजहाँ शेखी मारा करता था कि वह तिमूर (तैमूरलंग) का वंशज है जो भारत में तलवार और अग्नि लाया था। उस उजबेकिस्तान के जंगली जानवर तिमूर से और उसकी हिन्दुओं के रक्तपात की उपलब्धि से वह इतना प्रभावित था कि उसने अपना नाम तिमूर द्वितीय रख लिया था।
(दी लीगेसी ऑफ मुस्लिम रूल इन इण्डिया- डॉ. के.एस. लाल, 1992 पृष्ठ- 132)
बहुत प्रारम्भिक अवस्था से ही शाहजहाँ ने काफिरों (हिन्दुओं) के प्रति युद्ध के लिए साहस व रुचि दिखाई थी। अलग-अलग इतिहासकारों ने लिखा था कि, “शहजादे के रूप में ही शाहजहाँ ने फतेहपुर सीकरी पर अधिकार कर लिया था और आगरा शहर में हिन्दुओं का भीषण नरसंहार किया था।” भारत यात्रा पर आये देला वैले (इटली के एक धनी व्यक्ति) के अुनसार शाहजहाँ की सेना ने भयानक बर्बरता का परिचय दिया। हिन्दू नागरिकों को घोर यातनाओं द्वारा अपने संचित धन को दे देने के लिए विवश किया गया, और अनेकों उच्च कुल की कुलीन हिन्दू महिलाओं का शील भंग किया गया।
बुक फौर विजिटर्स टू आगरा एण्ड इट्स नेबरहुड, पृष्ठ 25)
हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने शाहजहाँ को एक महान निर्माता के रूप में चित्रित किया है। किन्तु इस मुजाहिद ने अनेकों कला के प्रतीक सुन्दर हिन्दू मन्दिरों और अनेकों हिन्दू भवन निर्माण कला के केन्द्रों का बड़ी लगन और जोश से विध्वंस किया था। अब्दुल हमीद ने, ’बादशाहनामा’ में लिखा था- ’’महामहिम शहंशाह महोदय की सूचना में लाया गया कि हिन्दुओं के एक प्रमुख केन्द्र, बनारस में उनके अब्बा हुजूर के शासनकाल में अनेकों मन्दिरों के पुनः निर्माण का काम प्रारम्भ हुआ था और काफिर हिन्दू अब उन्हें पूर्ण कर देने के निकट आ पहुँचे हैं। इस्लाम पंथ के रक्षक, शहंशाह ने आदेश दिया कि बनारस में और उनके सारे राज्य में अन्यत्र सभी स्थानों पर जिन मन्दिरों का निर्माण कार्य आरम्भ है,उन सभी का विध्वंस कर दिया जाए। इलाहाबाद प्रदेश से सूचना प्राप्त हो गई कि जिला बनारस के छिहत्तर मन्दिरों का ध्वंस कर दिया गया था।’’-(बादशाहनामा : अब्दुल हमीद लाहौरी, अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड VII, पृष्ठ 36)हिन्दू मंदिरों को अपवित्र करने और उन्हें ध्वस्त करने की प्रथा ने शाहजहाँ के काल में एक व्यवस्थित विकराल रूप धारण कर लिया था।
-(मध्यकालीन भारत – हरीश्चंद्र वर्मा – पेज-141)
कश्मीर से लौटते समय 1632 में शाहजहाँ को बताया गया कि अनेकों मुस्लिम बनायी गयी महिलायें फिर से हिन्दू हो गईं हैं और उन्होंने हिन्दू परिवारों में शादी कर ली है। शहंशाह के आदेश पर इन सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लिया गया। उन सभी पर इतना आर्थिक दण्ड थोपा गया कि उनमें से कोई भुगतान नहीं कर सका। तब इस्लाम स्वीकार कर लेने और मृत्यु में से एक को चुन लेने का विकल्प दिया गया। जिन्होनें धर्मान्तरण स्वीकार नहीं किया, उन सभी पुरूषों का सर काट दिया गया। लगभग चार हजार पाँच सौं महिलाओं को बलात मुसलमान बना लिया गया और उन्हें सिपहसालारों, अफसरों और शहंशाह के नजदीकी लोगों और रिश्तेदारों के हरम में भेज दिया गया।-(हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ दी इण्डियन पीपुल : आर.सी. मजूमदार, भारतीय विद्या भवन, पृष्ठ 312)
1657 में शाहजहाँ बीमार पड़ा और उसी के बेटे औरंगजेब ने उसे उसकी बेटी जहाँआरा के साथ आगरा के किले में बंद कर दिया । परन्तु औरंगजेब ने अपने बाप की अय्याशी का पूरा इंतजाम रखा। अपने बाप की कामुकता को समझते हुए उसे अपने साथ 40 रखैलें (शाही वेश्याएँ) रखने की इजाजत दे दी और दिल्ली आकर उसने बाप के हजारों रखैलों में से कुछ गिनी चुनी औरतों को अपने हरम में डालकर बाकी सभी को किले से बाहर निकाल दिया। उन हजारों महिलाओं को भी दिल्ली के उसी हिस्से में पनाह मिली जिसे आज दिल्ली का रेड लाईट एरिया जीबी रोड कहा जाता है। जो उसके अब्बा शाहजहाँ की मेहरबानी से ही बसा और गुलजार हुआ था ।शाहजहाँ की मृत्यु आगरे के किले में ही 22 जनवरी 1666 ईस्वी में 74 साल में हुई। ’द हिस्ट्री चैनल’ के अनुसार अत्यधिक कामोत्तेजक दवाएँ खा लेने का कारण उसकी मौत हुई थी। यानी जिन्दगी के आखिरी वक्त तक वो अय्याशी ही करता रहा था। अब आप खुद ही सोचें कि क्यों ऐसे बदचलन और दुश्चरित्र इंसान को प्यार की निशानी समझा कर महान बताया जाता है?
क्या ऐसा बदचलन इंसान कभी किसी से प्यार कर सकता है? क्या ऐसे वहशी और क्रूर व्यक्ति की अय्याशी की कसमें खाकर लोग अपने प्यार को बे-इज्जत नही करते हैं?दरअसल ताजमहल और प्यार की कहानी इसीलिए गढ़ी गयी है कि लोगों को गुमराह किया जा सके और लोगों खास कर हिन्दुओं से छुपायी जा सके कि ताजमहल कोई प्यार की निशानी नहीं बल्कि महाराज जय सिंह द्वारा बनवाया गया भगवान् शिव का मंदिर तेजो महालय है! इतिहासकार पी.एन.ओक ने पुरातात्विक साक्ष्घ्यों के जरिए बकायदा इसे साबित किया है और इस पर पुस्तकें भी लिखी हैं।असलियत में मुगल इस देश में धर्मान्तरण, लूट-खसोट और अय्याशी ही करते रहे परन्तु नेहरू के आदेश पर हमारे इतिहासकारों नें इन्हें जबरदस्ती महान बनाया और ये सब हुआ झूठी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर।
आतंकी संगठन आईएसआईएसआई के बारे में जब हम पढ़ते हैं कि वह अल्पसंख्यक यजीदी महिलाओं को यौन गुलाम बना रहा है तो हमें आश्चर्य होता है, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों व मुगल बादशाहों ने भी बहुसंख्यक हिंदू महिलाओं को बड़े पैमाने पर यौन दास यानी सेक्स सेल्व्स बनाया था।
इसमें मुगल बादशाह शाहजहां का हरम सबसे अधिक बदनाम रहा, जिसके कारण दिल्ली का रेड लाइट एरिया जी.बी.रोड बसा। इतिहासकार वी. स्मिथ ने लिखा है, “शाहजहाँ के हरम में 8000 रखैलें थीं जो उसे उसके पिता जहाँगीर से विरासत में मिली थी। उसने बाप की सम्पत्ति को और बढ़ाया। उसने हरम की महिलाओं की व्यापक छाँट की तथा बुढ़ियाओं को भगा कर और अन्य हिन्दू परिवारों से बलात लाकर हरम को बढ़ाता ही रहा।”
-(अकबर दी ग्रेट मुगल : वी स्मिथ, पृष्ठ 359)
कहते हैं कि उन्हीं भगायी गयी महिलाओं से दिल्ली का रेडलाइट एरिया जी.बी. रोड गुलजार हुआ था और वहाँ इस धंधे की शुरूआत हुई थी। जबरन अगवा की हुई हिन्दू महिलाओं की यौन-गुलामी और यौन व्यापार को शाहजहाँ प्रश्रय देता था, और अक्सर अपने मंत्रियों और सम्बन्धियों को पुरस्कार स्वरूप अनेकों हिन्दू महिलाओं को उपहार में दिया करता था। यह नर पशु, यौनाचार के प्रति इतना आकर्षित और उत्साही था|
कि हिन्दू महिलाओं का मीना बाजार लगाया करता था, यहाँ तक कि अपने महल में भी। सुप्रसिद्ध यूरोपीय यात्री फ्रांकोइस बर्नियर ने इस विषय में टिप्पणी की थी कि, “महल में बार-बार लगने वाले मीना बाजार, जहाँ अगवा कर लाई हुई सैकड़ों हिन्दू महिलाओं का, क्रय-विक्रय हुआ करता था, राज्य द्वारा बड़ी संख्या में नाचने वाली लड़कियों की व्यवस्था, और नपुसंक बनाये गये सैकड़ों लड़कों की हरमों में उपस्थिती, शाहजहाँ की अनंत वासना के समाधान के लिए ही थी।”
-(ट्रेविल्स इन दी मुगल ऐम्पायर- फ्रान्कोइस बर्नियर :पुनः लिखित वी. स्मिथ, ऑक्सफोर्ड, 1934)
शाहजहाँ को प्रेम की मिसाल के रूप पेश किया जाता रहा है और किया भी क्यों न जाए , आठ हजार औरतों को अपने हरम में रखने वाला अगर किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए तो वो उसका प्यार ही कहा जाएगा। आप यह जानकर हैरान हो जायेंगे कि मुमताज का नाम मुमताज महल था ही नहीं बल्कि उसका असली नाम “अर्जुमंद-बानो-बेगम“ था और तो और जिस शाहजहाँ और मुमताज के प्यार की इतनी डींगे हांकी जाती है वो शाहजहाँ की ना तो पहली पत्नी थी ना ही आखिरी ।
मुमताज शाहजहाँ की सात बीबियों में चौथी थी । इसका मतलब है कि शाहजहाँ ने मुमताज से पहले 3 शादियाँ कर रखी थी और, मुमताज से शादी करने के बाद भी उसका मन नहीं भरा तथा उसके बाद भी उस ने 3 शादियाँ और की यहाँ तक कि मुमताज के मरने के एक हफ्ते के अन्दर ही उसकी बहन फरजाना से शादी कर ली थी। जिसे उसने रखैल बना कर रखा था जिससे शादी करने से पहले ही शाहजहाँ को एक बेटा भी था। अगर शाहजहाँ को मुमताज से इतना ही प्यार था तो मुमताज से शादी के बाद भी शाहजहाँ ने 3 और शादियाँ क्यों की?
शाहजहाँ की सातों बीबियों में सबसे सुन्दर मुमताज नहीं बल्कि इशरत बानो थी जो कि उसकी पहली पत्नी थी । शाहजहाँ से शादी करते समय मुमताज कोई कुंवारी लड़की नहीं थी बल्कि वो भी शादीशुदा थी और उसका पति शाहजहाँ की सेना में सूबेदार था जिसका नाम “शेर अफगान खान“ था। शाहजहाँ ने शेर अफगान खान की हत्या कर मुमताज से शादी की थी।
गौर करने लायक बात यह भी है कि 38 वर्षीय मुमताज की मौत कोई बीमारी या एक्सीडेंट से नहीं बल्कि चौदहवें बच्चे को जन्म देने के दौरान अत्यधिक कमजोरी के कारण हुई थी। यानी शाहजहाँ ने उसे बच्चे पैदा करने की मशीन ही नहीं बल्कि फैक्ट्री बनाकर मार डाला था। शाहजहाँ कामुकता के लिए इतना कुख्यात था, की कई इतिहासकारों ने उसे उसकी अपनी सगी बेटी जहाँआरा के साथ सम्भोग करने का दोषी तक कहा है।
शाहजहाँ और मुमताज महल की बड़ी बेटी जहाँआरा बिल्कुल अपनी माँ की तरह लगती थी इसीलिए मुमताज की मृत्यु के बाद उसकी याद में शाहजहाँ ने अपनी ही बेटी जहाँआरा को भोगना शुरू कर दिया था। जहाँआरा को शाहजहाँ इतना प्यार करता था कि उसने उसका निकाह तक होने न दिया। बाप-बेटी के इस प्यार को देखकर जब महल में चर्चा शुरू हुई, तो मुल्ला-मौलवियों की एक बैठक बुलाई गयी और उन्होंने इस पाप को जायज ठहराने के लिए एक हदीस का उद्धरण दिया और कहा कि – “माली को अपने द्वारा लगाये पेड़ का फल खाने का हक़ है|”
इतना ही नहीं जहाँआरा के किसी भी आशिक को वह उसके पास फटकने नहीं देता था। कहा जाता है की एकबार जहाँआरा जब अपने एक आशिक के साथ इश्क लड़ा रही थी तो शाहजहाँ आ गया जिससे डरकर वह हरम के तंदूर में छिप गया, शाहजहाँ ने तंदूर में आग लगवा दी और उसे जिन्दा जला दिया।
दरअसल अकबर ने यह नियम बना दिया था कि मुगलिया खानदान की बेटियों की शादी नहीं होगी। इतिहासकार इसके लिए कई कारण बताते हैं। इसका परिणाम यह होता था कि मुग़ल खानदान की लड़कियां अपने जिस्मानी भूख मिटाने के लिए अवैध तरीके से दरबारी, नौकर के साथ साथ, रिश्तेदार यहाँ तक की सगे सम्बन्धियों का भी सहारा लेती थी।कहा जाता है कि जहाँआरा अपने बाप के लिए लड़कियाँ भी फंसाकर लाती थी।
जहाँआरा की मदद से शाहजहाँ ने मुमताज के भाई शाइस्ता खान की बीबी से कई बार बलात्कार किया था। शाहजहाँ के राज ज्योतिष की 13 वर्षीय ब्राह्मण लडकी को जहाँआरा ने अपने महल में बुलाकर धोखे से नशा देकर बाप के हवाले कर दिया था, जिससे शाहजहाँ ने अपनी उम्र के 58 वें वर्ष में उस 13 बर्ष की ब्राह्मण कन्या से निकाह किया था। बाद में इसी ब्राहम्ण कन्या ने शाहजहाँ के कैद होने के बाद औरंगजेब से बचने और एक बार फिर से हवस की सामग्री बनने से खुद को बचाने के लिए अपने ही हाथों अपने चेहरे पर तेजाब डाल लिया था।
शाहजहाँ शेखी मारा करता था कि वह तिमूर (तैमूरलंग) का वंशज है जो भारत में तलवार और अग्नि लाया था। उस उजबेकिस्तान के जंगली जानवर तिमूर से और उसकी हिन्दुओं के रक्तपात की उपलब्धि से वह इतना प्रभावित था कि उसने अपना नाम तिमूर द्वितीय रख लिया था।
(दी लीगेसी ऑफ मुस्लिम रूल इन इण्डिया- डॉ. के.एस. लाल, 1992 पृष्ठ- 132)
बहुत प्रारम्भिक अवस्था से ही शाहजहाँ ने काफिरों (हिन्दुओं) के प्रति युद्ध के लिए साहस व रुचि दिखाई थी। अलग-अलग इतिहासकारों ने लिखा था कि, “शहजादे के रूप में ही शाहजहाँ ने फतेहपुर सीकरी पर अधिकार कर लिया था और आगरा शहर में हिन्दुओं का भीषण नरसंहार किया था।” भारत यात्रा पर आये देला वैले (इटली के एक धनी व्यक्ति) के अुनसार शाहजहाँ की सेना ने भयानक बर्बरता का परिचय दिया। हिन्दू नागरिकों को घोर यातनाओं द्वारा अपने संचित धन को दे देने के लिए विवश किया गया, और अनेकों उच्च कुल की कुलीन हिन्दू महिलाओं का शील भंग किया गया।
बुक फौर विजिटर्स टू आगरा एण्ड इट्स नेबरहुड, पृष्ठ 25)
हमारे वामपंथी इतिहासकारों ने शाहजहाँ को एक महान निर्माता के रूप में चित्रित किया है। किन्तु इस मुजाहिद ने अनेकों कला के प्रतीक सुन्दर हिन्दू मन्दिरों और अनेकों हिन्दू भवन निर्माण कला के केन्द्रों का बड़ी लगन और जोश से विध्वंस किया था। अब्दुल हमीद ने, ’बादशाहनामा’ में लिखा था- ’’महामहिम शहंशाह महोदय की सूचना में लाया गया कि हिन्दुओं के एक प्रमुख केन्द्र, बनारस में उनके अब्बा हुजूर के शासनकाल में अनेकों मन्दिरों के पुनः निर्माण का काम प्रारम्भ हुआ था और काफिर हिन्दू अब उन्हें पूर्ण कर देने के निकट आ पहुँचे हैं। इस्लाम पंथ के रक्षक, शहंशाह ने आदेश दिया कि बनारस में और उनके सारे राज्य में अन्यत्र सभी स्थानों पर जिन मन्दिरों का निर्माण कार्य आरम्भ है,उन सभी का विध्वंस कर दिया जाए। इलाहाबाद प्रदेश से सूचना प्राप्त हो गई कि जिला बनारस के छिहत्तर मन्दिरों का ध्वंस कर दिया गया था।’’-(बादशाहनामा : अब्दुल हमीद लाहौरी, अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड VII, पृष्ठ 36)हिन्दू मंदिरों को अपवित्र करने और उन्हें ध्वस्त करने की प्रथा ने शाहजहाँ के काल में एक व्यवस्थित विकराल रूप धारण कर लिया था।
-(मध्यकालीन भारत – हरीश्चंद्र वर्मा – पेज-141)
कश्मीर से लौटते समय 1632 में शाहजहाँ को बताया गया कि अनेकों मुस्लिम बनायी गयी महिलायें फिर से हिन्दू हो गईं हैं और उन्होंने हिन्दू परिवारों में शादी कर ली है। शहंशाह के आदेश पर इन सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लिया गया। उन सभी पर इतना आर्थिक दण्ड थोपा गया कि उनमें से कोई भुगतान नहीं कर सका। तब इस्लाम स्वीकार कर लेने और मृत्यु में से एक को चुन लेने का विकल्प दिया गया। जिन्होनें धर्मान्तरण स्वीकार नहीं किया, उन सभी पुरूषों का सर काट दिया गया। लगभग चार हजार पाँच सौं महिलाओं को बलात मुसलमान बना लिया गया और उन्हें सिपहसालारों, अफसरों और शहंशाह के नजदीकी लोगों और रिश्तेदारों के हरम में भेज दिया गया।-(हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ दी इण्डियन पीपुल : आर.सी. मजूमदार, भारतीय विद्या भवन, पृष्ठ 312)
1657 में शाहजहाँ बीमार पड़ा और उसी के बेटे औरंगजेब ने उसे उसकी बेटी जहाँआरा के साथ आगरा के किले में बंद कर दिया । परन्तु औरंगजेब ने अपने बाप की अय्याशी का पूरा इंतजाम रखा। अपने बाप की कामुकता को समझते हुए उसे अपने साथ 40 रखैलें (शाही वेश्याएँ) रखने की इजाजत दे दी और दिल्ली आकर उसने बाप के हजारों रखैलों में से कुछ गिनी चुनी औरतों को अपने हरम में डालकर बाकी सभी को किले से बाहर निकाल दिया। उन हजारों महिलाओं को भी दिल्ली के उसी हिस्से में पनाह मिली जिसे आज दिल्ली का रेड लाईट एरिया जीबी रोड कहा जाता है। जो उसके अब्बा शाहजहाँ की मेहरबानी से ही बसा और गुलजार हुआ था ।शाहजहाँ की मृत्यु आगरे के किले में ही 22 जनवरी 1666 ईस्वी में 74 साल में हुई। ’द हिस्ट्री चैनल’ के अनुसार अत्यधिक कामोत्तेजक दवाएँ खा लेने का कारण उसकी मौत हुई थी। यानी जिन्दगी के आखिरी वक्त तक वो अय्याशी ही करता रहा था। अब आप खुद ही सोचें कि क्यों ऐसे बदचलन और दुश्चरित्र इंसान को प्यार की निशानी समझा कर महान बताया जाता है?
क्या ऐसा बदचलन इंसान कभी किसी से प्यार कर सकता है? क्या ऐसे वहशी और क्रूर व्यक्ति की अय्याशी की कसमें खाकर लोग अपने प्यार को बे-इज्जत नही करते हैं?दरअसल ताजमहल और प्यार की कहानी इसीलिए गढ़ी गयी है कि लोगों को गुमराह किया जा सके और लोगों खास कर हिन्दुओं से छुपायी जा सके कि ताजमहल कोई प्यार की निशानी नहीं बल्कि महाराज जय सिंह द्वारा बनवाया गया भगवान् शिव का मंदिर तेजो महालय है! इतिहासकार पी.एन.ओक ने पुरातात्विक साक्ष्घ्यों के जरिए बकायदा इसे साबित किया है और इस पर पुस्तकें भी लिखी हैं।असलियत में मुगल इस देश में धर्मान्तरण, लूट-खसोट और अय्याशी ही करते रहे परन्तु नेहरू के आदेश पर हमारे इतिहासकारों नें इन्हें जबरदस्ती महान बनाया और ये सब हुआ झूठी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर।
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