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लेकिन तभी अंग्रेजो को यह मालूम चला की दुश्मन के पास बंदूके और मशीन गन है जबकि जोधपुर रियासत की सेना घोड़ो पर तलवार और भालो से लड़ने वाली थी। इसी वजह से अंग्रेजो ने जोधपुर रियासत की सेना वापस लौटने को बोला लेकिन जोधपुर रियासत के सेनापति दलपत सिंह शेखावत ने कहा की #हमारे_यहाँ_वापस_लौटने_का_कोई_रिवाज_नहीं_है। हम रणबाँकुरे जो रण भूमि में उतरने के बाद या तो जीत हासिल करते है या फिर #वीरगति को प्राप्त हो जाते है। दूसरी ओर यह सेना को दुश्मन पर विजय प्राप्त करने के लिए बंदूके, तोपों और मशीन गन के सामने अपने छाती अड़ाकर अपनी परम्परागत युद्ध शैली से बड़ी बहादुरी के लड़ रही थी। इस लड़ाई में जोधपुर की सेना के करीब नो सौ सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए।
युद्ध का परिणाम ने एक अमर इतिहास लिख डाला। जो आज तक पुरे विश्व में कही नहीं देखने को मिला था। क्युकी यह युद्ध दुनिया के मात्र ऐसा युद्ध था जो की तलवारो और बंदूकों के बीच हुआ। लेकिन अंतत : विजयश्री राजपुतों को मिली और उन्होंने हाइफा पर कब्जा कर लिया और चार सौ साल पुराने ओटोमैन साम्राज्य का अंत हो गया। रणबाँका राठौड़ो की इस बहादुरी के प्रभावित होकर भारत में ब्रिटिश सेना के कमांडर-इन-चीफ़ ने फ़्लैग-स्टाफ़ हाउस के नाम से अपने लिए एक रिहायसी भवन का निर्माण करवाया। भवन एक चौराहे से लगा हुआ बना है, इस चौराहे के मध्य में गोल चक्कर के बीचों बीच एक स्तंभ के किनारे तीन दिशाओं में मुंह किये हुए तीन सैनिकों की मूर्तियाँ लगी हुई हैं। जो की रणबाँका राठौड़ो की बहादुरी को यादगार बनाने के लिए बनाई गई। #जागो_क्षत्रियों_जागो ।। जय क्षात्र धर्म ।। ।। कुँवर अमित सिंह ।।✍
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