मंगलवार, अगस्त 07, 2018

अमेरिका हो या पाकिस्तान, मॉरिशस हो या सुरीनाम, भोजपुरी की है अपनी एक अलग पहचान

भोजपुरी भाषा का इतिहास 7वीं सदी से शुरू होता है - 1000 से अधिक साल पुरानी! गुरु गोरख नाथ 1100 वर्ष में गोरख बानी लिखा था। संत कबीर दास (1297) का जन्मदिवस भोजपुरी दिवस के रूप में भारत में स्वीकार किया गया है 
 "हल्लो! आदाब! नमस्कार! रउआ पढ़त बानी ग़ज़बपोस्ट, पेस बा देस अउर दुनिया के तमाम खबर." क्या आपको ये लाइन समझ में आई? 'तू लगावे लू जब लिपिस्टिक, हिलेला आरा डिस्टिक' अब ये समझ में आया? अब आप कहेंगे- अरे ये तो भोजपुरी है. जी हां! ये भोजपुरी ही है. कई विद्वानों का मानना है कि भोजपुरी दुनिया की सबसे मीठी बोली है. दुनिया की एकमात्र बोली, जिसे कई देशों में बोला जाता है. भोजपुरी की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसे नहीं समझने वाले भी इसकी मिठास से दूर नहीं रह पाते हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, हिन्दुस्तान की 5 करोड़ और विश्व की कुल 7 करोड़ आबादी भोजपुरी बोलती है. इसका मतलब ये हुआ कि विश्व की कुल 12 करोड़ आबादी भोजपुरी बोलती है. संख्या के हिसाब से भोजपुरी विश्व की 10वीं सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है. ये सुनने में थोड़ा रोचक लग सकता है. लेकिन इसके पीछे कई कहानियां भी छिपी हैं. हम आपके लिए भोजपुरी के बारे में कुछ ऐसे ही तथ्य लेकर आए हैं, जिनके बारे में जान कर आप भी हिन्दुस्तानी होने पर गर्व करेंगे.
भोजपुरी बोली से कैसे बनी?

दरअसल, बिहार के आरा जिले से भोजपुरी भाषा का विकास हुआ. मध्य काल में मध्य प्रदेश के उज्जैन से भोजवंशी परमार राजा आकर आरा में बस गए. उन्होंने अपनी इस राजधानी को अपने पूर्वज राजा भोज के नाम पर रखा था. इसी वजह से यहां बोले जाने वाली भाषा का नाम "भोजपुरी" पड़ गया.
Source: Newsgram
हिन्दुस्तान में भोजपुरी




पिछले दिनों एक संस्था ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा कि भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में न शामिल किया जाये. दूसरी तरफ बनारस में कुछ भोजपुरी भाषाप्रेमियों ने ‘भोजपुरी माई’ की प्रतिमा स्थापित की. किसी भी भाषा के संवर्द्धन के लिए दूसरी भाषा को कमतर करके आंंकने से ज्यादा जरूरी है कि उस भाषा में अपने समय का बेहतरीन रचनाएं रची जाएं. इतना ही जरूरी है कि भाषा को धार्मिक पहचान से न जोड़ा जाये. पढ़िए एक जरूरी टिप्पणी.
पिछले कुछ दिनों से भाषा की दुनिया में ‘कुछ-कुछ’ चल रहा है. विशेषकर हिंदी और हिंदीभाषी इलाके की सर्वाधिक लोकप्रिय भाषा भोजपुरी के इलाके में. पिछले दिनों ‘हिंदी बचाओ मंच’ नामक एक संस्था के 110 विद्वानों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर आग्रह किया कि भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं कीजिए. यह भाषा शामिल करने योग्य नहीं है, कसौटी पर फिट नहीं है. भोजपुरी के खिलाफ उनके तथ्य और तर्क की बात छोड़ भी दें तो मजेदार कहें या कि दुखदायी, वह यह रहा कि ‘हिंदी बचाओ मंच’ जैसी कोई संस्था चलती है, यह भी हिंदी के लोगों ने पहली बार जाना. खैर! इस मंच ने जो किया वह तो अलग प्रसंग रहा. इन दिनों भोजपुरी में नये किस्म के शुभचिंतक दिखे हैं. वह भी भोजपुरी के राजधानी शहर बनारस में. उन्होंने आनन-फानन में भोजपुरी माई की प्रतिमा स्थापित कर दी और विधिवत फूल-रोड़ी-अक्षत आदि से पूजा-अर्चना शुरू कर दी.

 सुनने में आ रहा है कि भोजपुरी माई की विशाल प्रतिमा स्थापित करने की योजना है. प्रतिमा के जरिये कीर्तिमान स्थापित करने की तैयारी है. ये कौन लोग हैं भोजपुरी के और कैसे ​शुभेच्छु हैं भोजपुरी के, खुदा जाने. जिन्हें इतना भी ज्ञान नहीं कि भाषा माई होती है, मातृभाषा कहते हैं, माईभाषा कहते हैं तो वह देवी-देवता वाली मां से तुलना नहीं करते, सगी मां, जनम देनेवाली मां का भाव छुपा होता है उसमें. ये कौन लोग हैं, जो भोजपुरी का मूल मर्म तक नहीं जानते. इन्हें यही नहीं मालूम कि कि कोई भी भाषा धर्म से बहुत आगे की चीज होती है.

 भाषा कभी धर्म पर निर्भर नहीं रहती, वह अपना विस्तार धर्म, जाति, संप्रदाय का बंधन तोड़ समुदाय मात्र से रिश्ता जोड़ कर करती है. पता नहीं कैसे शुभेच्छु हैं, जिन्हें भोजपुरी के बारे में ककहरा तक की जानकारी नहीं, नहीं तो ऐसी बचकाना हरकत तो कभी नहीं करते.

इन्हें नहीं मालूम कि आज अगर भोजपुरी देश के 24 जिले, अनेकानेक शहरों, दुनिया के सात देशों के दायरे को तोड़ अपना अपार विस्तार करते हुए उत्तर और पूर्वी भारत की एक प्रमुख भाषा बन गयी है तो अपने स्वभाव के कारण ही.

भोजपुरी एक ऐसी भाषा है, जिसके नायकों पर गौर करेंगे तो पायेंगे कि आरंभ से ही भोजपुरी भाषी समाज ने धर्म, जाति, संप्रदाय की परिधि में भाषा को नहीं बंधने दिया है. गुरु गोरखनाथ को पुरखा माना तो कबीर को आदिकवि. भिखारी ठाकुर जाति के नाई थे. सामाजिक-राजनीतिक गलियारे में भले ही जाति को लेकर बहस चलती रही, लेकिन भोजपुरी समाज ने अपने इस नायक को दुनिया भर में फैलाया, स्थापित करवाया. यह सब किसी सरकारी प्रयास या मठ-सठ की वजह से नहीं हुआ, भोजपुरिया जमात के साझा प्रयास से हुआ. हीरा डोम ने 103 साल पहले कविता लिखी थी भोजपुरी में- अछूत की शिकायत. जाति से डोम थे. भोजपुरी समाज ने उन्हें नायक माना. रसूल मियां का नाम नहीं जानते होंगे ये लोग, जिन्होंने भोजपुरी को मार्इ बनाने की कोशिश की है.

रसूल मियां ने भोजपुरी भाषा को औजार और ह​थियार बना कर जनता को गोलबंद किया था, आजादी के परवाने थे महान सर्जक रसूल मियां. तेग अली तेग की रचनाओं से नहीं गुजरे होंगे ये लोग, जिन्होंने भोजपुरी को देवी माई बनाने की कोशिश की है. जिस बनारस में इस प्रतिमा को स्थापित कर रहे हैं, उस बनारस के संत-फकीर बिस्मिल्लाह खान को नहीं जानते होंगे ये लोग! जिंदगी भर ठेठ बनारसी और भोजपुरिया बने रहनेवाले बिस्मिल्ला खान के व्यक्तित्व-कृतित्व की दुनिया तो जानते कम से कम, तब भाषा को देवी माई नहीं बनाते. नामालूम मोहम्मद खलील का नाम सुना भी है या नहीं इनलोगों ने. मोहम्मद खलील अपने जमाने के मशहूर गायक हुए.

नजीर हुसैन का भी नाम तो सुने ही होंगे, पहली भोजपुरी फिल्म ' हे गंगा मइया तोहे पीयरी चढ़ईबो' बनवाने के सूत्रधार. इन्हें तो यह भी नहीं मालूम होगा कि तैयब हुसैन पीड़ित हैं कोई, जिन्होंने भिखारी ठाकुर पर पहला शोध शुरू किया और उसके बाद निरंतर भोजपुरी की सेवा की. इन्हें जौहर शफियाबादी के बारे में भी शायद ही मालूम होगा, जो संत-पीर-फकीर हैं और आज भोजपुरी के बड़े सेवी, बड़े विद्वान, जिन्होंने महेंदर मिसिर के जीवनी पर भोजपुरी में किताब लिखी- ‘पुरबी के धाह’ और ‘रंगमहल’ नाम से भोजपुरी गजलों का संग्रह लाया. युवा रचनाकारों में मोतिहारी में रहनेवाले गुलरेज शहजाद का नाम भी नहीं सुने होंगे. गुलरेज चंपारण के इलाके में ही नहीं, भोजपुरी इलाके में भोजपुरी संस्कृति के एक बड़े जागरूक कर्मी हैं रचनाकार भी.

जिन्होंने बनारस में भोजपुरी माई की प्रतिमा स्थापित कर अब विशाल प्रतिमा के नाम पर प्रचार अभियान शुरू किया है, वे दरअसल भोजपुरी जैसी उदार, सहज और जाति-संप्रदाय-धर्म मुक्त भाषा के दुश्मन हैं. उन्हें तुरंत अपना नाम चाहिए. अखबार में फोटो चाहिए. सस्ती लोकप्रियता चाहिए, इसलिए बनारस, जो सभी देवी-देवताओं का वास स्थल है, जहां हर गली में मंदिर है, हर घर में मंदिर है, वहां एक और हिंदू स्वरूप में देवी को स्थापित कर देना चाहते हैं.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)


वैसे तो हिन्दुस्तान में भोजपुरी बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में प्रमुखता से बोली जाती है. श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के सभी हिस्सों में भोजपुरी बोलने वाले मिल जाएंगे.
Source: Youtube
भोजपुरी और हिन्दुस्तान

हिन्दुस्तान में भोजपुरी महज एक बोली नहीं, बल्कि एक इंडस्ट्री है. व्यवसाय, मनोरंजन और साहित्य में भोजपुरी ने पूरे हिन्दुस्तान में अपनी एक अमिट छाप छोड़ी है. आज भोजपुरी सिनेमा करीब 20,000 करोड़ रुपये की हो गई है. टीवी के 52 चैनल सिर्फ़ भोजपुरी के ही हैं. इस आधार पर हम कह सकते हैं कि भोजपुरी के बिना हिन्दुस्तानी बोली की कल्पना ही नहीं की जा सकती है.
Source: torna
अंतर्राष्ट्रीय होती भोजपुरी

विश्व में करीब 8 देश ऐसे हैं, जहां भोजपुरी धड़ल्ले से बोली जाती है और सुनी भी जाती है. ये सुनने में भले थोड़ा अजीब लगे, लेकिन ये बिल्कुल सच है. परिस्थितियों के कारण बिहार के लोगों को अन्य देशों में जाना पड़ा. ऐसे में वे वहीं के हो गए, मगर अपनी बोली को अपने साथ सदैव बनाए रखा.

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