Manish Pandey
हाल ही में तीन नए देशों का सृजन हुआ है। ईस्ट तिमोर, दक्षिणी सूडान और कोसोवो। क्या हम अधिकांश भारतीयों को यह पता है इन देशों का निर्माण किस आधार पर हुआ है? जिन्हें नहीं पता है उनके लिए जानकारी है कि इन देशों का निर्माण जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण हुआ है। ईस्ट तिमोर जो इंडोनेशिया का एक भाग था में पहले ईसाइयों की आबादी बहुत कम थी, मुसलमानों एवं अन्य मत के मानने वाले लोगों की आबादी 80% से अधिक थी केवल 50 वर्षों में ईसाई मिशनरियों के प्रयत्न से ईस्ट तिमोर में ईसाइयों की जनसंख्या 80% से अधिक हो गई, परिणाम स्वरुप संयुक्त राष्ट्र के दखल से जनमत संग्रह करा कर ईस्ट तिमोर नाम के देश का निर्माण कर दिया गया। कोई युद्ध नहीं हुआ। सूडान के दक्षिणी क्षेत्र में गरीबी थी, मिशनरियों के प्रभाव में कुछ आदिवासी लोगों को पहले ही ईसाई बनाया गया। धीरे धीरे इस मुस्लिम बहुल देश को दक्षिणी क्षेत्र में ईसाइयों से भर दिया गया। फिर गृह युद्ध करा दिया गया। शांति प्रयास संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में हुए और परिणिति दक्षिणी सूडान को काटकर ईसाई देश के रूप में नए देश की मान्यता दे दी गई। कोसोवो सर्बिया के भीतर एक ऐसा क्षेत्र था जिसमें खदानें बहुत अधिक थीं। इन खदानों में काम करने के लिए अल्बानियाई मूल के मुसलमानों को मजदूर के रूप में लाया गया था।कालांतर में इनकी संख्या बढ़ गई। यूगोस्लाविया के विघटन के बाद सर्बिया स्वतंत्र देश बना। लेकिन मुसलमानों ने सर्बों के अधीन रहना स्वीकार नहीं किया और कोसोवो को अलग देश बनाने की मांग किया। गृहयुद्ध जैसी स्थिति कई वर्षों तक रही। फिर नया देश बन गया।
भारत के कई क्षेत्रों में योजनाबद्ध तरीके से जनसांख्यकीय परिवर्तन किए जा रहे हैं। बहुसंख्यक आबादी इससे अनजान है। विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों मे ऐसा होने से गैरकानूनी एवं आतंकी गतिविधियां बढ़ रही हैं। यदि हम भारत की अखंडता बनाए रखना चाहते हैं तो स्थानीय प्रशासन से मिलकर हमें समस्या का समाधान खोजना चाहिए। आखिर हम भी तो भारत माता के बिना वर्दी वाले सैनिक हैं।
हाल ही में तीन नए देशों का सृजन हुआ है। ईस्ट तिमोर, दक्षिणी सूडान और कोसोवो। क्या हम अधिकांश भारतीयों को यह पता है इन देशों का निर्माण किस आधार पर हुआ है? जिन्हें नहीं पता है उनके लिए जानकारी है कि इन देशों का निर्माण जनसांख्यिकीय परिवर्तन के कारण हुआ है। ईस्ट तिमोर जो इंडोनेशिया का एक भाग था में पहले ईसाइयों की आबादी बहुत कम थी, मुसलमानों एवं अन्य मत के मानने वाले लोगों की आबादी 80% से अधिक थी केवल 50 वर्षों में ईसाई मिशनरियों के प्रयत्न से ईस्ट तिमोर में ईसाइयों की जनसंख्या 80% से अधिक हो गई, परिणाम स्वरुप संयुक्त राष्ट्र के दखल से जनमत संग्रह करा कर ईस्ट तिमोर नाम के देश का निर्माण कर दिया गया। कोई युद्ध नहीं हुआ। सूडान के दक्षिणी क्षेत्र में गरीबी थी, मिशनरियों के प्रभाव में कुछ आदिवासी लोगों को पहले ही ईसाई बनाया गया। धीरे धीरे इस मुस्लिम बहुल देश को दक्षिणी क्षेत्र में ईसाइयों से भर दिया गया। फिर गृह युद्ध करा दिया गया। शांति प्रयास संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में हुए और परिणिति दक्षिणी सूडान को काटकर ईसाई देश के रूप में नए देश की मान्यता दे दी गई। कोसोवो सर्बिया के भीतर एक ऐसा क्षेत्र था जिसमें खदानें बहुत अधिक थीं। इन खदानों में काम करने के लिए अल्बानियाई मूल के मुसलमानों को मजदूर के रूप में लाया गया था।कालांतर में इनकी संख्या बढ़ गई। यूगोस्लाविया के विघटन के बाद सर्बिया स्वतंत्र देश बना। लेकिन मुसलमानों ने सर्बों के अधीन रहना स्वीकार नहीं किया और कोसोवो को अलग देश बनाने की मांग किया। गृहयुद्ध जैसी स्थिति कई वर्षों तक रही। फिर नया देश बन गया।
भारत के कई क्षेत्रों में योजनाबद्ध तरीके से जनसांख्यकीय परिवर्तन किए जा रहे हैं। बहुसंख्यक आबादी इससे अनजान है। विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों मे ऐसा होने से गैरकानूनी एवं आतंकी गतिविधियां बढ़ रही हैं। यदि हम भारत की अखंडता बनाए रखना चाहते हैं तो स्थानीय प्रशासन से मिलकर हमें समस्या का समाधान खोजना चाहिए। आखिर हम भी तो भारत माता के बिना वर्दी वाले सैनिक हैं।
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