रविवार, अप्रैल 28, 2013

रसूल लीला :इस्लामी कामसूत्र !!

Zuber Ali
रसूल लीला :इस्लामी कामसूत्र !!
यद्यपि मुहम्मद ने सेक्स के बारे में कोई अलग से किताब नहीं लिखी है ,परन्तु उसने जो भी आय्याशियाँ कि हैं ,वे सब हदीसों में मौजूद हैं .उन से छांट कर यह इस्लामी कामसूत्र الكِتاب الجِنس الاسلاميه प्रस्तुत किया जा रहा है .इसमे प्रारम्भ से अंत तक इस्लामी सेक्स की जानकारी है .यह ज्ञान मुस्लिम महिलाओं के लिए अवश्य उपयोगी होगा . ” فقط للنساء المسلمات “केवल मुस्लिम महिलाओं के लिए ! 1 -सेक्स की तय्यारी कैसे करें “औरतें अपने जिहादी पतियों के घर में आने से पहिले अपने निचे के बाल(Pubic Hair )साफ़ करके रखें “.बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 173 “मुस्लिम औरतें अपनी योनी और बगल के बाल साफ करके तय्यार रहें “बुखारी -जिल्द 7 किताब 72 हदीस 177 2 -सेक्स के लिए सदा तय्यार रहें “यदि कोई औरत घर के काम में व्यस्त हो ,और उसका जिहादी पति उसे सेक्स के लिए बुलाये तो ,
औरत को चाहिए कि सब काम छोड़कर तुरंत ही वहीँ पर सम्भोग करवा ले “मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3240 “सम्भोग करना जरुरी है ,चाहे तुम्हारी पत्नी राजी हो या नहीं .”मुस्लिम -किताब 3 हदीस 677 और 680 3 -छातियाँ मसलवाना(Breastpresing )
“अबू मूसा बिन अशरी ने कहा कि मैं अपनी पत्नी की छातियाँ दबाकर उसका दूध पीता हूँ .मुझे लगा कि यह हराम है .फिर अब्दुल्लाह बिन मसूद ने रसूल से पूछा तो रसूल ने कहा कि यह काम जायज है “मुवत्ता-किताब 30 हदीस 214 “याहया बिन मालिक ने कहा कि मैं अपनी पत्नी के स्तनों से दूध पीता हूँ ,क्या यह हराम है .तब अबू मूसने कहा कि इसे रसूल ने जायज कहा है .और मैं दो सालों से यही कर रहा हूँ “मलिक मुवत्ता -किताब 30 हदीस 215 4 -कुंवारी लड़कियाँ सेक्स के लिए उत्तम हैं “अल्लाह की नजर में कुंवारी और अक्षत योनी लड़कियाँ उत्तम होती है “बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 16 “कुँवारी लड़कियाँ सेक्स के लिए श्रेष्ठ होती हैं “बुखारी -जिल्द 38 हदीस 504 . “रसूल ने कहा कि ,कुंवारी कन्या के साथ सम्भोग करने में अधिक आनंद आता है “मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3459 . 5 -औरत की माहवारी में सम्भोग की विधि “आयशा नेकहा कि,
रसूल उस समय भी सम्भोग करते थे जब मैं माहवारी में होती थी “बुखारी -जिल्द 3 किताब 33 हदीस 247 “रसूल ने कहा कि ,तुम औरतों से मास्क के समय भी सम्भोग कर सकते हो “अबू दाऊद-किताब 1 हदीस 270 “मासिक के समय किसी भी औरत के साथ सम्भोग करना हलाल है “अबूदाऊद -किताब 1 हदीस 212 “अगर कोई गलती से पत्नी के आलावा किसी ऐसी स्त्री से सम्भोग करे ,जो मासिक से हो ,तो उसे प्रायश्चित के लिए आधा दीनार खैरात कर देना चाहिए” “अबू दाऊद -किताब 11 हदीस 2164 “और अगर अपनी पत्नी से उसकी मासिक के समय सम्भोग करे तो ,सदके के तौर पर एक दीनार दे देना चाहिए ” .अबू दाऊद -किताब 1 हदीस 264 और 302
“यदि स्त्री की योनी से मासिक स्राव अधिक बह रहा हो तो ,पहिले योनी से स्राव को साफ कर लें ,फिर तेल लगा कर सम्भोग करें .यही तरिका रसूल ने बताया है. “सही मुस्लिम -किताब 3 हदीस 647 . “आयशा ने कहा कि,जब भी मैं मासिक में होती थी रसूल मेरी योनी से स्राव साफ करके सम्भोग किया करते थे ” मुस्लिम -किताब 3 हदीस 658 6 -सम्भोग के बाद गुस्ल जरूरी नहीं “आयशा ने कहा कि रसूल सम्भोग के बाद बिना गुस्ल किये ही मेरे साथ उसी हालत में सो जाते थे” .
अबू दाऊद-किताब 1 हदीस 42 “आयशा ने बताया कि ,जब रसूल और मैं सम्भोग के बाद गंदे हो जाते थे ,तो रासुल्बिना पानी छुए ही मेरे पास सो जाते थे ..और उठकर नमाज के लिए चले जाते थे “.अबू दाऊद -किताब 1 हदीस 42 “आयशा ने कहा कि ,जब सम्भोग के बाद एअसुल गंदे हो जाते थे ,तो उसी हालत में सो जाते थे ,फिर बाद में उठ जाने पर बाजार या नमाज के लिए चले जाते थे .उनके पापड़ों पर वीर्य के दाग साफ दिखाई देते थे ,”अबू दाऊद -किताब 1 हदीस 228 “आयशा ने कहा कि ,जब सम्भोग के बाद रसूल के कपड़ों पर वीर्य सुख जाता था .और दाग पड़ जाता था तो मैं अपने नाखूनों से वीर्य के दागों को खुरच देती थी .रसूल वही कपडे पहिन कर नमाज के लिए चले जाते थे “अबू दाऊद -किताब 11 हदीस 2161 7 -वीर्य का स्वाद और रंग “अनस बिन मलिक कहा कि रसूल ने उम्म सलेम को बताया कि पुषों के वीर्य का रंग सफ़ेद होता है और गाढ़ा होता है .और बेस्वाद होता है .लेकिन स्त्री का वीर्य पतला ,पीला और तल्ख़ होता है “अबू दाऊद -किताब 3 हदीस 608 “उम्म सलेम ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि स्त्रियों कि योनी से हमेशा एक स्राव निकलता रहता है .जिसका रंग पीला होता है .रसूल ने फिर कहा कि मुझे यह बात कहने कोई शर्म नहीं है कि , योनी के स्राव का स्वाद तल्ख़ और तीखा होता है “अबू दाऊद -किताब 3 हदीस 610 . 8 -माँ बेटी से एक साथ सम्भोग “याह्या बिन मलिक की रवायत है कि उबैदुल्ला इब्न उतवा इब्न मसूद ने कहा कि उमर बिन खत्ताब ने जिहाद में एक माँ और बेटी को पकड़ लिया .और रसूल से पूछा क्या हम इन से एक एक करके सम्भोग करें या अलग अलग ,रसूल ने कहा की तुम दौनों से एक ही समय सम्भोग कर सकते हो .इसकी अनुमति है .लेकिन मैं इसे नापसंद करता हूँ “मलिक मुवत्ता-किताब 28 हदीस 1433 9 -वेश्या गमन “रसूल ने कहा कि जिहाद के समय मुसलमान एक रात केलिए भी शादी कर सकते हैं “मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3253 10 -कुतिया आसन(Doggy style ) “
जाबिर बिन अब्दुल्लाह ने रसूल से कहा कि एक यहूदी अपनी पत्नी की योनी में पीछे से लिंग प्रवेश करता है .क्या बुरी बात है .रसूल ने कहा की इसमे कोई हर्ज नहीं है .”मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3364 “अबू जुहरी ने कहा की रसूल ने कहा कि,तुम चाहे औरतों से आगे से सम्भोग करो चाहे पीछे से ,परन्तु लिंग योनी के अन्दर ही प्रवेश होना चाहिए .नहीं तो संतान भेंगी होती है “मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3365 11 -जंघा मैथुन (Thighing ) “आयशा ने कहा कि ,जिस समय मैं माहवारी में होती थी तबी रसूल आ गए और मुझ से अपनी जांघें खोलने को कहा ,फिर नबी ने अपने गाल मेरी जांघों पर रखे .मैंने उनके सर को जांघों में कास लिया .इस से रसूल को गर्मी मिली और वह उसी हालत में सोते रहे .शायद रसूल को सर्दी लग गयी थी “अबू दाऊद-किताब 1 हदीस 270 12 -औरतें केवल भोग की वस्तु हैं “औरतें केवल भोगने और मौजमस्ती और आमोद प्रमोद के लिए ही बनी हैं “अबू दाऊद -किताब 11 हदीस 2078 “यदि औरत की सम्भोग की इच्छा भी नहीं हो तब भी पति उस से जबरदस्ती सभोग करने का हकदार है .रसूल ने कहा कि अल्लाह ने औरतों पर मर्दों को फजीलत दे रखी है “अबू दाऊद – किताब 11 हदीस 2044 . “यदि स्त्री सम्भोग से इंकार करे तो पति उसे पीट कर जबरन सम्भोग कर सकता है “मिश्कात -किताब 6 हदीस 671 “अगर पत्नी गर्भवती भी हो ,तो पति उस से उस हालत में सम्भोग कर सकता है ,चाहे उसकी पत्नी सम्भोग करवाने के लिए कितना भी विरोध करे .पति उस से सम्भोग जरुर करे “अबू दाऊद -किताब 11 हदीस 2153 और 2166 . 13 -मुख मैथुन (Oral Sex ) “आयशा ने कहा कि,रसूल जब रोजे कि हालत में होते थे ,तब भी वह अपना मुंह मेरे मुंह से लगा कर मेरी जीभ को अपने मुंह में लेकर चूसते थे .और मेरा सारा थूक उनके मुंह में चला जाता था “अबू दाऊद-किताब 13 हदीस 2380 “आयशा ने कहा कि रसूल कहते थे कि ,हरेक हालत में आनंद लेना चाहिए .चाहे रोजे के दिन हों “अबू दाऊद किताब 12 हदीस 302 . “आयशा ने कहा कि रसूल कहते थे कि पुरुष और स्त्री के अंगों में एक प्रकार की शहद होती है ,जब तक स्त्री पुरुष का ,शहद नहीं चखती है ,वह हलाल नहीं मानी जा सकती है .और यही बात पुरुषों पर लागू होती है “सही मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3354 . यह इस्लामी कामसूत्र पढनेके बाद आप अच्छी तरह से समझ गए होंगे कि मुस्लिम ब्लोगर बात बात पर हरेक मुद्दे को सेक्स की ओर क्यों मोड़ देते हैं .और अश्लील शब्दों का क्यों प्रयोग करते हैं .इसमे इनका उतना कसूर नहीं है ,जितना इस कामसूत्र के रचयिता मुहम्मद का हैं .जैसा मुसलमानों के दिमागों में भरा हुआ है ,वैसा ही यह लोग बोलते हैं . इसमे दी गयी कई मूल हदीसें काफी बड़ी और कहानियों की तरह थीं .जगह की कमी के कारण उन्हें सारांश के रूप में दिया गया है .पूरी हदीसें दी गई साइटों में उपलब्ध है . ذالك الكتاب الجِنس هديً لِلمُسلمين यह “किताबुल जिन्स” रसूल के वचन हैं ,और मुसलमानों को राह दिखाते हैं ……
मुसलमान कुरान को अल्लाह की किताब बताते है .जो अरबी भाषा में है .और अरबी भाषा में जननांग (Genitalia)के लिए कई शब्द मौजूद होंगे , मगर अल्लाह ने अपनी कुरान में उन्ही शब्दों का प्रयोग किया है , जो मुहम्मद साहब के समय अनपढ़ , गंवार ,और उज्जड बद्दू लोग गाली के लिए प्रयोग करते थे.कुरान में ऐसा ही एक शब्द ” फर्ज فرج ” है जो इन तीन अक्षरों ( फे ف रे ر जीम ج) से बना है और इसका बहुवचन ( Plural )” फुरूज فروج” होता है जिसका असली अर्थ छुपाने के लिए कुरान के अनुवादक तरह तरह के शब्दों का प्रयोग करते हैं .चालक मुल्ले फुर्ज शब्द का अर्थ ” गर्भाशय Uterus “बताकर लोगों को गुमराह करते रहते हैं जबकि गर्भाशय के लिए अरबी में ” रहम رحم ” शब्द प्रयुक्त होता है
2-कुरान में फुर्ज का उल्लेख
पूरी कुरान में अधिकतर ” फुर्ज ” का बहुवचन शब्द ” फुरुज “प्रयुक्त किया गया है ,और मुल्लों उनके जो अर्थ दिए है ,अरबी के साथ हिंदी और अंग्रेजी में दिए जा रहे हैं .बात स्पष्ट हो सके .देखिये ,
1.” जिसने अपने सतीत्व की रक्षा की “” الَّتِي أَحْصَنَتْ فَرْجَهَا ”
“अल्लती खसलत फुरूजुहा ”
who guarded her chastity,Sura-at Tahrim 66:12

शनिवार, अप्रैल 27, 2013

सेक्स से खिलवाड़

अगर सरकार या सरकार का थिंक टैंक ये समझती है कि सेक्स एजुकेशन देकर यौन अपराधो पर लगाम लगा लेगी तो ये सिर्फ इस बात को प्रदर्शित करती है कि सरकार, जनता को सिर्फ बहकाने की कोशिश कर रही है। या फिर सरकार को ये समझ मे नही आ रहा है कि वो इस परिस्थिति से कैसे निबटे, तो ये नुस्खा आजमा कर देखना चाहती है। अगर जनता को कोई लाभ नही हुआ तो कम से कम नेता राजनीतिक लाभ तो उठा ही सकते है। और वैसे भी सरकार जनता की समस्याओं पर गम्भीर कब हुई है?


जस्टिस जे.एस. वर्मा की समिति स्कूली पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा को शामिल करके बच्चों को सही-गलत जैसे व्यवहार और आपसी संबंधों के विषय में बताना चाहती है। केन्द्रीय मानव संसाधन और विकास मंत्री एम.एल. पल्लम राजू भी वर्मा समिति से सहमत होकर इसे लागू करने की सोच रही है….

मै इन समिति और मंत्रियों से ये पूछना चाहता हूँ कि क्या उन्हे बच्चो के मौजूदा पाठ्यक्रम के बारे मे अवगत नही है..? ये सही-गलत और आपसी सम्बन्ध के विषय मे पहले से ही “शारीरिक व नैतिक शिक्षा” के रूप मे शामिल है.. जिसे बच्चे रट-रट्कर परीक्षा पास कर लेते है। लेकिन क्या बच्चों द्वारा नैतिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल शिक्षाओं का अनुसरण किया जाता है? फिर क्या जरूरी है कि सेक्स के बारे मे बताई गई सैद्धांतिक बातों से बच्चों मे इसकी व्यवहारिक बातो को जानने के उत्सुकता नही बढेगी?

जहाँ तक सवाल है यौन अपराधो का, तो सेक्स एजुकेशन का इससे कोई सम्बन्ध नही दिखता। और जिन अपराधो के लिए बच्चो को शिक्षाएँ दी जा रही है और यहाँ तक कि कठोर कानून भी है, क्या किसी को उन अपराधों में कमी दिखाई देती है ? दिन-ब-दिन अपराध और भ्रष्टाचार की घटनाएँ बढ़्ती ही जा रही है..। एक-दो घटना (जैसे दिल्ली गैंगरेप मामला) जो मीडिया की नजर मे आ जाती है उसे सारी दुनिया देखती है, लेकिन इस तरह की घटनाएँ अब आम होने लगी है. जरा आप अपने आस-पास झाँक कर देखे तो पता चलेगा …. ।

इन अपराधो को सरकार की कोई भी व्यवस्था या कानून नही रोक सकती। जब तक सरकार बच्चो को समझाने के बजाए बड़ो को यानि खुद और अपने मंत्रियो को समझाना शुरू नही कर देती। देश के अपराध, भ्रष्टाचार या घर की गन्दगियाँ ऊँचें स्थान से साफ होना शुरू हो तो साफ हो सकता है. और बच्चे तो वही करने की कोशिश करते है जो वो बड़ो को करते हुए देखते है. ।

अब मै अपराध के कुछ ऐसे उदाहरण और उस पर प्रश्न चिन्ह लगाउँगा जो कम-से-कम महिला पाठक् को तो पसन्द नही आयेगी… ।

पता नहीं सरकार हर क्षेत्र मे महिलाओ को आरक्षण देकर आगे क्यों लाना चाहती है ? और एक महिला, आई0 एस0, आई0 पी0 एस0 बनकर मंत्रियो के साथ रंगरलियाँ मनाना चाहती है(ऐसा भी खबर आया है) ? नेताएँ अपने घर की छोटी-बड़ी पार्टी मे भी अर्धनग्न व कम उम्र की लड़्कियों को नचाकर आनन्द लेते है क्या इससे यौन अपराध को हवा न मिलेगी? एक महिला,… पुलिस बनकर क्या दिखाना चाहती है? क्या पुलिस बनने के लिए पुरूष कम पड गये है… । एक बड़ी कम्पनियाँ अपना प्रोडक्ट बेचने के लिये अपने प्रोडक्ट के साथ अर्धनग्न स्त्रियों को खड़ा कर देती है… और ताज्जुब की बात ये है कि ये लड़्कियाँ और स्त्रियाँ नये जेनरेशन का हवाला देकर हंसते हुए अपने कपड़े उतार देती है। आज टेलीविजन पर दिखने वाले शत-प्रतिशत विज्ञापन महिलाओ द्वारा आकर्षक और कम कपड़े पहना कर कराये जाते है। विज्ञापन में प्रोडक्ट पर कम लड़्कियों के शरीर पर टेलीविजन के कैमरा का फोकस ज्यादा रहता है। कंपनियाँ अपने रिसेप्शन पर एक आकर्षक, मनलुभावन और कम उम्र की लड़्कियो को बिठाती है क्योंकि इससे उसकी कम्पनी मे ज्यादा से ज्यादा लोग आये और आते भी है, कम से कम उस लड़्की को देखने और उससे बैठकर बकवास करने का उचित तरीका तो लोगों को मिलता ही है और इसमे कम उम्र के लड़्के ही नहीं अधेड़ और बूढ़े लोग भी शामिल होते है । अगर किसी टेलीकॉम कम्पनी के कस्टमर केयर पे कोई लड़्की मिल जाये फिर देखिये क्या-क्या बातें और कितनी देर तक होती है। इन सब का परिणाम अब ये भी देखा गया है कि एक मध्यम वर्गीय आदमी अगर एक दुकान भी खोलता है तो दुकान अच्छा चले इसके लिये एक सुन्दर लड़्की को काउंटर पर बिठाता है । एक शादी में जब मै गया तो देखा कि लड़्कियो ने ऐसे कपड़े पहन रखे थे जिससे उसका आधा शरीर तो साफ-साफ दिखाई पड़्ता था, जबकि मौसम सर्दियों का था हमलोगों ने जैकेट पहन रखा था। क्या इससे अपराध न बढ़ेगा ?

इसमें बहुत हद तक लड़्कियाँ व उनके माता-पिता खुद जिम्मेदार है. लड़्कियाँ अपने घर का काम भूलकर… लक्ष्मीबाई, कल्पना चावला, और पी0टी0 उषा आदि का हवाला देकर घर से बाहर निकलना शुरू कर दिया है. सभी को ऐसा नही करना चाहिए था. और इसमे सरकार भी बहुत जिम्मेदार है.

सेक्स एक नेचुरल क्रिया है जिसके साथ जितना भी आप छेड़्छाड़ करने की कोशिश करेंगे उतना ही ये घातक सिद्ध होगा। और इसके प्रति आप किसी की मानसिकता एजुकेशन से नही बदल सकते……… आपने चारो तरफ अर्धनग्न लड़्कियो का मेला लगा रखा है और उसमे भी आपके नेता और बड़े लोग गन्दी हरकत करने से बाज नही आते, ऐसे मे आप बच्चो को सेक्स ऐजुकेशन देकर उससे क्या अपेक्षा रखते है ?

ऐसे में तो सेक्स ऐजुकेशन से अच्छा तो मेडीटेशन अच्छा रहेगा जिससे बच्चे अपने इच्छाओ को काबू में करना सीख लेंगे। फिर हो सकता है कि आने वाले जेनरेशन मे कुछ कम अपराध हो… लेकिन अभी क्या होगा कहना कठिन है…
http://bhagwanbabu.jagranjunction.com/2013/02/22/%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%96%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A1%E0%A4%BC-%E2%80%93-jagran-junction-forum/

सेक्स के पाठ, सोसियल एन्जिनियरिन्ग

मेरे महान भारत के लोग क्या इतने आगे बढ गये हैं की कुदरत ने दी हुई, प्राणीसहज भय को भांपने की ताकात ही गंवा दी है ? अपने आप को महा मानव बना लिया की प्राणी की तरह कान खडे नही हो जाते भय का आगमन या आक्रमण होते समय भी । क्या हम इतने मुर्ख हो गये हैं की समज नही सकते सरकार बिन मांगे जो देती है उसे परख लेना चाहिए ? सब कुछ छीन लेने वाली सरकार बिना मांगे दे दे तो अचरज नही होता ?
खैर, सरकार का दोष भी नही वो तो मजबूर है । पहले ईस लेख को पढ लें “सेक्स से खिलवाड़ – Jagran Junction Forum” फिर असली बात ।

आज भारत में ही नही सारे विश्व में बच्चा तो क्या आदमी बुढे होने तक एक शैतान की गोदमें बैठ कर ही पढाई करता है । शैतान ही उसका गुरु है । इन गुरुओं में स्कुल-कोलेज, मिडिया, मनोरंजन, सहित्य और सोस्यल साईट्स भी शामिल है । ईन सबके द्वारा हजारों विषय पर पढाया जाता है, सिखाने के मकसद से नही, समाज जीवन के फायदे को देख कर नही बल्की एक सोस्यल एन्जिनियरिन्ग की तरह, जीस से समाज जीवन बदला जा सके । बदलने का मतलब समाज की उन्नत्ति नही पर अधोगति है ।
इस शैतान के कपाल पे ६६६ का आंकडा है वो कैदखाने का ताला है । इसाईयों को तो मालुम है दुसरों को बता देता हुं । ये कैदखाने का ताला है जहां गोडने उसे कैद किया है । ईस ताले की चावी दुनिया के धर्मों के विनाश में है, आदमी के चारित्र के पतन में है, गुलामों की घोर मेहनत के पसीने में हैं । सेकस एज्युकेशन चावी बनाने के औजारों मे से एक है ।
सेक्स के पाठ की जरूरत आदमी को क्यों पडी ? २०००० हजार साल की मानव सभ्यता में आज ही क्यों ? एक मुर्खामी भरा जवाब मिला “ एइड्ज इत्यादी यौन रोगों के प्रति बच्चों को जागरुक करना जरूरी है ” । ऐसी शिक्षा तो बच्चे के बाप को देनी चाहिए बच्चों को क्यों ? कीसी के पास जबाब नही ।
भारत में इस पढाई को लाने के पिछे भारत में बलात्कार को कारण बताया गया । क्या बुढे बलात्कार नही करते ? उसने पूरी जिन्दगी सिखा ही नही सेक्स क्या होता है ? बुढों को भी सिखाओगे नाईट स्कूलमें ?
ये शैतान जहां सफल हो गया ऐसे देश अमरिका के लोगों की कुछ बात रखता हुं ।
अमरिकामें सेक्स एज्युकेशन के बाद सामाजिक ढांचे में बडा अंतर आ गया है । बच्चे स्कूल की उमर में ही सेक्स में रत हो गये हैं, यहां तक की स्कूल बॅग मे निरोध के पेकेट रखने लगे हैं ।
शादी की उमर होते होते सेक्स को लेकर जो भी अनुभव हुए उस के कारण शादी का जो सबसे बडा आकर्षण सेक्स होता है वो खतम हो गया है । लोग शादी करना टालने लगे हैं । सामाजिक सुरक्षा के कारण शादी करते हैं लेकिन देरसे करते हैं । पति पत्नि के बीच की वफादारी पूरानी बात हो गई है । कुटुंब प्रथा तुट गई है । कब पत्नी छोड के भाग जाये या कब पति पत्नि को छोड दे कोइ गेरंटी नही । १९६० में अमरिकन एडल्ट ७२% शादीशुदा होते थे आज ५१% रह गये हैं । बाकी के ४९% बिना शादी के, तलाक शुदा और विधवा-विधुर । जन्म-दर का लेवल भी इतिहास में सब से नीचे । हरेक १००० के पिछे २३ का आंकडा था, आज १३.८ पर आ गया ।
ये उद्गार है एक राष्ट्रवादी अमरिकीका “Obviously something is fundamentally wrong. Our society has been subverted by a satanic cult, the Illuminati ( i.e. Freemasonry.) Our government, corporations and media are owned or controlled by the Illuminati central banking cartel. The institutions of marriage and family are being undermined in order to destabilize society, making it vulnerable to the Illuminati Communist NWO. The destruction of marriage and family has been a plank in the Communist Manifesto since 1848.”
अर्थात
“ये तो स्पष्ट है, मूल में ही कुछ गलत है । हमारे समाज को सैतानिक संप्रदाय, इल्ल्युमिनिटी, हमारी सरकार, इल्ल्युमिटी के कंट्रोल में रही केद्रिय बेन्कों की कार्टेल की मालिकी या उस के कंट्रोल में रही कंपनिया और मिडिया द्वारा बरबाद किया जा रहा है । इल्लुमिनिटी की साम्यवादी “न्यु वर्ल्ड ओर्डेर” की आसान शिकार बनाने के लिए हमारी सोसाईटी को अस्थिर बनाने के लिए शादी और कुटुम्ब प्रथा की घोर खोदी जा रही है । शादी और घर तोडने का साम्यवादी मेनिफेस्टो १८४८ से चला आ रहा है ।“
भारत में इस शैतान के गुलाम या उपासक कौन है बताने की जरूरत नही । ये शैतान ऐसा क्यों चाहता है मेरे अन्य लेखों से पता चल जायेगा ।
http://bharodiya.jagranjunction.com/2013/02/23/%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B8-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A0-%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%B2-%E0%A4%8F%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%BF/

रविवार, अप्रैल 21, 2013

संस्कृत के होरा शब्द से ही, अंग्रेजी का आवर (Hour) शब्द बना है : शंखनादी सुनील


संस्कृत के होरा शब्द से ही, अंग्रेजी का आवर (Hour) शब्द बना है

इस सृष्टि की सर्वाधिक उत्कृष्ठ काल गणना का श्री गणेश भारतीय ऋषियों ने अति प्राचीन काल से ही कर दिया था। तद्नुसार हमारे सौरमण्डल की आयु चार अरब 32 करोड वर्ष हैं। आधुनिक विज्ञान भी, कार्बन डेटिंग और हॉफ लाइफ पीरियड की सहायता से इसे चार अरब वर्ष पुराना मान रहा है। यही नहीं हमारी इस पृथ्वी की आयु भी, कल 15 मार्च को, एक अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार एक सौ 10 वर्ष पूरी हो गयी। इतना ही नहीं, श्री मद्भागवद पुराण, श्री मारकडेय पुराण और ब्रह्यम पुराण के अनुसार अभिशेत् बाराह कल्प चल रहा है और एक कल्प में एक हजार चतुरयुग होते है। इस खगोल शास्त्रीय गणना के अनुसार हमारी पृथ्वी 14 मनवन्तरो में से सातवें वैवस्वत मनवन्तर की 28 वें चतुरयुगी के अन्तिम चरण कलयुग भी। आज 51 सौ 11 वर्ष में प्रवेश कर लिया।
जिस दिन सृष्टि का प्रारम्भ हुआ वो आज ही का पवित्र दिन है। इसी कारण मदुराई के परम पावन शक्तिपीठ मीनाक्षी देवी के मन्दिर में चैत्रा पर्व की परम्परा बन गयी।

भारतीय महीनों के नाम जिस महीने की पूर्णिया जिस नक्षत्र में पड़ती है उसी के नाम पर पड़ा। जैसे इस महीने की पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में हैं इस लिए इसे चैत्र महीनें का नाम हुआ। श्री मद्भागवत के द्वादश स्कन्ध के द्वितीय अध्याय के अनुसार जिस समय सप्तर्षि मघा नक्षत्र पर ये उसी समय से कलियुग का प्रारम्भ हुआ, महाभारत और भागवत के इस खगोलिय गणना को आधार मान कर विश्वविख्यात डॉ. वेली ने यह निष्कर्ष दिया है कि कलयुग का प्रारम्भ 3102 बी.सी. की रात दो बजकर 20 मिनट 30 सेकण्ड पर हुआ था। डॉ. बेली महोदय, स्वयं आश्चर्य चकित है कि अत्यंत प्रागैतिहासिक काल में भी भारतीय ऋणियों ने इतनी सूक्ष्तम् और सटिक गणना कैसे कर ली। क्रान्ती वृन्त पर 12 हो महीने की सीमायें तय करने के लिए आकाश में 30-30 अंश के 12 भाग किये गये और नाम भी तारा मण्डलों के आकृतियों के आधार पर रखे गये। जो मेष, वृष, मिथून इत्यादित 12 राशियां बनी।
चूंकि सूर्य क्रान्ति मण्डल के ठी केन्द्र में नहीं हैं, अत: कोणों के निकट धरती सूर्य की प्रदक्षिणा 28 दिन में कर लेती है और जब अधिक भाग वाले पक्ष में 32 दिन लगता है। प्रति तीन वर्ष में एक मास अधिक मास कहलाता है संयोग से यह अधिक मास अगले महीने ही प्रारम्भ हो रहा है।

भारतीय काल गणना इतनी वैज्ञानिक व्यवस्था है कि सदियों-सदियों तक एक पल का भी अन्तर नहीं पड़ता जब कि पश्चिमी काल गणना में वर्ष के 365.2422 दिन को 30 और 31 के हिसाब से 12 महीनों में विभक्त करते है। इस प्रकार प्रतयेक चार वर्ष में फरवरी महीनें को लीपइयर घोषित कर देते है फिर भी। नौ मिनट 11 सेकण्ड का समय बच जाता है तो प्रत्येक चार सौ वर्षो में भी एक दिन बढ़ाना पड़ता है तब भी पूर्णाकन नहीं हो पाता है। अभी 10 साल पहले ही पेरिस के अन्तरराष्ट्रीय परमाणु घड़ी को एक सेकण्ड स्लो कर दिया गया फिर भी 22 सेकण्ड का समय अधिक चल रहा है। यह पेरिस की वही प्रयोगशाला है जहां की सी जी एस सिस्टम से संसार भर के सारे मानक तय किये जाते हैं। रोमन कैलेण्डर में तो पहले 10 ही महीने होते थे। किंगनुमापाजुलियस ने 355 दिनों का ही वर्ष माना था। जिसे में जुलियस सीजर ने 365 दिन घोषित कर दिया और उसी के नाम पर एक महीना जुलाई बनाया गया उसके 1 ) सौ साल बाद किंग अगस्ट्स के नाम पर एक और महीना अगस्ट भी बढ़ाया गया चूंकि ये दोनो राजा थे इस लिए इनके नाम वाले महीनों के दिन 31 ही रखे गये। आज के इस वैज्ञानिक युग में भी यह कितनी हास्यास्पद बात है कि लगातार दो महीने के दिन समान है जबकि अन्य महीनों में ऐसा नहीं है। यदि नहीं जिसे हम अंग्रेजी कैलेण्डर का नौवा महीना सितम्बर कहते है, दसवा महीना अक्टूबर कहते है, इग्यारहवा महीना नवम्बर और बारहवा महीना दिसम्बर कहते है। इनके शब्दों के अर्थ भी लैटिन भाषा में 7,8,9 और 10 होते है। भाषा विज्ञानियों के अनुसार भारतीय काल गणना पूरे विश्व में व्याप्त थी और सचमूच सितम्बर का अर्थ सप्ताम्बर था, आकाश का सातवा भाग, उसी प्रकार अक्टूबर अष्टाम्बर, नवम्बर तो नवमअम्बर और दिसम्बर दशाम्बर है।

सन् 1608 में एक संवैधानिक परिवर्तन द्वारा एक जनवरी को नव वर्ष घोषित किया गया। जेनदअवेस्ता के अनुसार धरती की आयु 12 हजार वर्ष है। जबकि बाइविल केवल 2) हजार वर्ष पुराना मानता है। चीनी कैलेण्डर 1 ) करोड़ वर्ष पुराना मानता है। जबकि खताईमत के अनुसार इस धरती की आयु 8 करोड़ 88 लाख 40 हजार तीन सौ 11 वर्षो की है। चालडियन कैलेण्डर धरती को दो करोड़ 15 लाख वर्ष पुराना मानता है। फीनीसयन इसे मात्र 30 हजार वर्ष की बताते है। सीसरो के अनुसार यह 4 लाख 80 हजार वर्ष पुरानी है। सूर्य सिध्दान्त और सिध्दान्त शिरोमाणि आदि ग्रन्थों में चैत्रशुक्ल प्रतिपदा रविवार का दिन ही सृष्टि का प्रथम दिन माना गया है।
संस्कृत के होरा शब्द से ही, अंग्रेजी का आवर (Hour) शब्द बना है। इस प्रकार यह सिद्ध हो रहा है कि वर्ष प्रतिपदा ही नव वर्ष का प्रथम दिन है। एक जनवरी को नव वर्ष मनाने वाले दोहरी भूल के शिकार होते है क्योंकि भारत में जब 31 दिसम्बर की रात को 12 बजता है तो ब्रीटेन में सायं काल होता है, जो कि नव वर्ष की पहली सुबह हो ही नहीं सकता। और जब उनका एक जनवरी का सूर्योदय होता है, तो यहां के Happy New Year वालों का नशा उतर चुका रहता है। सन सनाती हुई ठण्डी हवायें कितना भी सूरा डालने पर शरीर को गरम नहीं कर पाती है। ऐसे में सवेरे सवेरे नहा धोकर भगवान सूर्य की पूजा करना तो अत्यन्त दुस्कर रहता है। वही पर भारतीय नव वर्ष में वातावरण अत्यन्त मनोहारी रहता है। केवल मनुष्य ही नहीं अपितु जड़ चेतना नर-नाग यक्ष रक्ष किन्नर-गन्धर्व, पशु-पक्षी लता, पादप, नदी नद, देवी देव व्‍यष्टि से समष्टि तक सब प्रसन्न हो कर उस परम् शक्ति के स्वागत में सन्नध रहते है।

शुक्रवार, अप्रैल 19, 2013

New 'class' of slow poisons ...fluorine,chlorine, bromine, iodine..



halogens .. new 'class' of slow poisons ...fluorine,chlorine, bromine, iodine..
1) fluorine ::- targets the agna chakra and causes dementia amnesia schizophrenia and other neurological disorders ,damages brain and pineal gland.used as a mass mind control drug .. mode of entry : it is administered through drinking water and toothpaste...PTFE(teflon) non stick coating.green tea etc

2) chlorine ::- targets the 'heart' or the anahat chakra damages the circulatory system , atherosclerosis or stiffening of the arteries and veins causing heart attack ..prolong intake alters the human DNA and proteins causing CANCERS , mutagenic birth defects .mode of entry ::- mixed with drinking water as bleaching powder. bleaching of ediable oils

3) bromine.. :: targets the manipur chakra ...caution !! its an androgen destroyer and makes u infertile and impotent it decreases the 'libido' and makes u autistic zombies ,impervious to human feelings relationships etc brominated vegetable oil (BVO) causes infertility and cancers..mode of administration or entry :: widely given through tea, coffee(laced with bromine to 'increase' flavour) biscuits, cookies (dough conditioner),cool drinks such as pepsi coke mountain dew use it in the form of BVO ..its an anti-maleness and 'DEPOPULATION' drug ..
3) iodine :: targets the mooladhar chakra if taken in excess it reduces your lifespan to around 50-60 years !!... iodine is required in very small quantities for the proper functioning of thyroid gland situated in the neck ..iodine is easy supplemented in our normal diet by the regular milk fruits and vegetables...ie we do not require it to be added externally ..BUT THE GOVERNMENT ADDS EXTRA IODINE IN THE FORM OF IODIZED SALT WHICH IS DANGEROUS !! causes premature ageing, oligozoospermia (decrease in sperm count) infertility increased BMR , excess iodine causes thyroid-toxicity, hyper-hyperthyroidism,thyroid cancers etc.

Know hinduism : A way of life


Abdul Hameed
Your health:
Unlike others Hinduism is not a religion but a way of
life. Hinduism grants you a healthy life style. The Hindu
practices like bath in the morning, do
Yoga etc. promotes Health and
hygiene.



Promote peace universally: Hinduism doesn't say that only Hindus go to
heaven, nor proclaims that only Hindu gods are the true
one. Hinduism is the only religion which
says that all paths lead to that ultimate one. An
important Hindu prayer is "Loka Samastha Sukhino
Bhavantu" which means let the whole world be
happy!

Respect living beings: Hindus
believe that there is divinity in every one. The Hindu
salutation 'Namaskar', 'Namaste' or
'Vannakum' means that I bow to that divinity in you.

No hard and fast dogma: Hinduism
is flexible and there are really no hard and fast rules
you need to follow. It is entirely dependant
on you to choose what you want to do. There are no
particular day in the week where you must
visit a temple.

No conversion, no pressure: You
really don't need to convert to Hinduism and still
be a Hindu. If you want to get away there is no
hard and fast rules either. The process if you want to
adopt Hinduism/ convert is simple too.


Care for the environment: You
will see that the temples have gardens and promote
growing of trees and vegetation. Even snakes are given
a place and fed in some places. Animals are
given protection and shelter.

Promotes art and art forms: The
Hindu temples themselves are masterpieces of art
and sculpture. Dance and music forms an integral
part of the religion and the classical dance and music
are closely tied to Hinduism and a must
for many Hindu festivals and occasions.

Hindu festivals: The
fun activities associated with Hindu
festivals cannot be seen in any other religion. For
Deepavali or Diwali, you have fireworks, you
play with crackers. For Holi, you play with colors and
the list is endless. For Hindus, life is a
celebration.

Worship the feminine form: Hinduism
has high standards for women and Hindus worship
feminine goddesses. Hindu woman have a high place
in the Hindu society.


Hindus and our scriptures: The
Hindu scriptures are pearls of wisdom. They have good
morals and will help you in every walk of your
life.

गुजरात की सच्चाई बताई और साथ ही साथ मोदी की जान को भी खतरा : मधु किश्वर

आज तक पर मधु किश्वर बताती है की उन्होंने बहुत सारे दंगों का अध्यन किया है और जबतक मै हालातो के बारे में खुद से अध्यन न कर लू मै नहीं लिखती। मेरा ध्यान गुजरात दंगो के बारे में तब आया जब तीस्ता जैसे लोगो ने एक अंतरास्त्रीय मुहीम चलाई की नरेन्द्र मोदी को किसी भी देश का वीसा न मिले। मुझे आश्चर्य यह देख कर हुआ की जॉर्ज बुश का ह्यूमन राईट का रिकॉर्ड मोदी के तुलना में बहुत ही ख़राब है दूसरी तरफ मोदी के के बारे में किसी भी महावाधिकार के हनन का रिकॉर्ड कही नहीं है. फिर भी जॉर्ज बुश को सभी देशो में जाने की अनुमति है और मोदी के खिलाफ किसी भी कोर्ट में कोई भी केस नहीं होने के बाद भी यह लोग उन्हें किसी देश में जाने न दिया जाये उसके लिए मुहीम चल रहे थे। यह बात मुझे बहुत गलत लगी। देश की बात आप अमेरिका में जाकर उनकी झोली में आप डालते हो मुझे बिलकुल सही नहीं लगा।

आप बताओ देश में कितने दंगे हुए है कश्मीर, आसाम, मुंबई, हैदराबाद, जमशेदपुर, मेरट न जाने कितने बड़े बड़े दंगे हुए है देश में लेकिन उस समय वह का मुख्या मंत्री कौन तह कोई नहीं जानता। लेकिन गजरत के दंगो के समय मुक्यमंत्री कौन था सभी जानते है। अभी आसाम में दंगा हुआ वह ४ लाख हिन्दुओ विश्थापित हुए क्या किसी को याद भी है उसके बारे में? 1984 में दंगा हुआ उसमे राजीव गाँधी की भूमिका जगजाहिर है उन्होंने आर्मी को नहीं काम करने दिया था। लेकिन उनका कोई विरोध नहीं करता है।

आजतक तीस्ता ने पाकिस्तान या सऊदी अरब के तानाशाह के खिलाफ कोई मुहीम नहीं चलाया। लेकिन यह तीस्ता आये दिन मोदी के पीछे पड़े रहे। फिर अरे गुजरात में ११ साल से दंगे नहीं हुए अरे कुछ तो श्रेय दे दो। अगर कोई कह दे की गुजरात में 24 घंटे बिजली मिलती है तो लोग कहते है की तुम तानाशाह मोदी की समर्थक हो। इतना कहने की भी इजाजत नहीं है। इन लोगो ने इतना इंटेलेक्चुअल टेरर बना दिया की मुझे घुटन होने लगी। फिर मैंने तय किया की अब मै जाकर खुद गुजरात का अध्यन करुँगी। जब मैंने गुजरात का अध्यन किया तो मैंने बिलकुल उलटी बात पाई। यह बताती थी की गुजरात में मुस्लिम घुटे घुटे से रहते है, कुचले कुचले रहते है लेकिन आप वह पर किसी भी मुसलमान से पुछ लोग तो वो कहेंगे की आज़ाद भारत में ११ साल दंगामुक्त साशन उनको मिला है, नौकरी उनकी सुरक्छित है, सही ने कहा की हमारा बहुत विकास हुआ। मुसलमानों को मैंने कहते देखा की हम आरक्छन नहीं चाहते।

फिर जैसे ही मैंने यह बात बताना सुरु किया की गुजरात में तो हालत बिलकुल अलग है। तो सभी लोग मुझ पर टूट पड़े। उसके बाद SIT की रिपोर्ट आई, उस रिपोर्ट में यह कहा गया है की मोदी की भूमिका नेगेटिव होने के बजाये मोदी ने वो सब कुछ किया जो आज तक किसी भी मुक्य मंत्री ने दंगे के समय नहीं किया था। पहले ही दिन २७ से वो शांति के लिए लोगो को जोरते रहे, 20 घंटे के अन्दर आर्मी आ गई, रक्छा मंत्री खुद देखते है आर्मी की तैनाती को। फिर नरेन्द्र मोदी ने महारास्त्र, मध्य प्रदेश जैसे कई राज्यों को चिट्ठिया लिखी की हमें अतिरिक्त सुरक्छा बल दिया जाये और यह सारे कांग्रेसी राज्यों ने पुलिस बल देने से इनकार कर दिया।

मै आज तक नरेन्द्र मोदी से मिली भी नहीं हु, मै उनके काम को जनता के दृष्टी से देखना चाहती हु। मै खुद देखती हु की वो अपने भाषणों में कुछ और कहते है और मीडिया किस तरह से उसे विकृत करके पेश करती है। तीस्ता सैताल्वाद किस तरह से कोर्ट के प्रक्रिया को खीचे जा रही रही है, किसी भी मुद्दे को ख़त्म नहीं होने देती है, एक ही आरोप को बार बार लाती है। SIT पर जो तीस्ता ने जो आरोप लगाये उसकी जांच होने चाहिए। देश की मीडिया और न्यायपालिका के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ है और भगवन के लिए SIT के रिपोर्ट को पढ़े। लेकिन इन लोगो ने इंटेलेक्चुअल दहसत इस तरह की बना दी है की किसी की हिम्मत नहीं है इनके खिलाफ कुछ बोलने की।

आज तक पर मधु किश्वर बताती है की उन्होंने बहुत सारे दंगों का अध्यन किया है और जबतक मै हालातो के बारे में खुद से अध्यन न कर लू मै नहीं लिखती। मेरा ध्यान गुजरात दंगो के बारे में तब आया जब तीस्ता जैसे लोगो ने एक अंतरास्त्रीय मुहीम चलाई की नरेन्द्र मोदी को किसी भी देश का वीसा न मिले। मुझे आश्चर्य यह देख कर हुआ की जॉर्ज बुश का ह्यूमन राईट का रिकॉर्ड मोदी के तुलना में बहुत ही ख़राब है दूसरी तरफ मोदी के के बारे में किसी भी महावाधिकार के हनन का रिकॉर्ड कही नहीं है. फिर भी जॉर्ज बुश को सभी देशो में जाने की अनुमति है और मोदी के खिलाफ किसी भी कोर्ट में कोई भी केस नहीं होने के बाद भी यह लोग उन्हें किसी देश में जाने न दिया जाये उसके लिए मुहीम चल रहे थे। यह बात मुझे बहुत गलत लगी। देश की बात आप अमेरिका में जाकर उनकी झोली में आप डालते हो मुझे बिलकुल सही नहीं लगा।

आप बताओ देश में कितने दंगे हुए है कश्मीर, आसाम, मुंबई, हैदराबाद, जमशेदपुर, मेरट न जाने कितने बड़े बड़े दंगे हुए है देश में लेकिन उस समय वह का मुख्या मंत्री कौन तह कोई नहीं जानता। लेकिन गजरत के दंगो के समय मुक्यमंत्री कौन था सभी जानते है। अभी आसाम में दंगा हुआ वह ४ लाख हिन्दुओ विश्थापित हुए क्या किसी को याद भी है उसके बारे में? 1984 में दंगा हुआ उसमे राजीव गाँधी की भूमिका जगजाहिर है उन्होंने आर्मी को नहीं काम करने दिया था। लेकिन उनका कोई विरोध नहीं करता है।

आजतक तीस्ता ने पाकिस्तान या सऊदी अरब के तानाशाह के खिलाफ कोई मुहीम नहीं चलाया। लेकिन यह तीस्ता आये दिन मोदी के पीछे पड़े रहे। फिर अरे गुजरात में ११ साल से दंगे नहीं हुए अरे कुछ तो श्रेय दे दो। अगर कोई कह दे की गुजरात में 24 घंटे बिजली मिलती है तो लोग कहते है की तुम तानाशाह मोदी की समर्थक हो। इतना कहने की भी इजाजत नहीं है। इन लोगो ने इतना इंटेलेक्चुअल टेरर बना दिया की मुझे घुटन होने लगी। फिर मैंने तय किया की अब मै जाकर खुद गुजरात का अध्यन करुँगी। जब मैंने गुजरात का अध्यन किया तो मैंने बिलकुल उलटी बात पाई। यह बताती थी की गुजरात में मुस्लिम घुटे घुटे से रहते है, कुचले कुचले रहते है लेकिन आप वह पर किसी भी मुसलमान से पुछ लोग तो वो कहेंगे की आज़ाद भारत में ११ साल दंगामुक्त साशन उनको मिला है, नौकरी उनकी सुरक्छित है, सही ने कहा की हमारा बहुत विकास हुआ। मुसलमानों को मैंने कहते देखा की हम आरक्छन नहीं चाहते।

फिर जैसे ही मैंने यह बात बताना सुरु किया की गुजरात में तो हालत बिलकुल अलग है। तो सभी लोग मुझ पर टूट पड़े। उसके बाद SIT की रिपोर्ट आई, उस रिपोर्ट में यह कहा गया है की मोदी की भूमिका नेगेटिव होने के बजाये मोदी ने वो सब कुछ किया जो आज तक किसी भी मुक्य मंत्री ने दंगे के समय नहीं किया था। पहले ही दिन २७ से वो शांति के लिए लोगो को जोरते रहे, 20 घंटे के अन्दर आर्मी आ गई, रक्छा मंत्री खुद देखते है आर्मी की तैनाती को। फिर नरेन्द्र मोदी ने महारास्त्र, मध्य प्रदेश जैसे कई राज्यों को चिट्ठिया लिखी की हमें अतिरिक्त सुरक्छा बल दिया जाये और यह सारे कांग्रेसी राज्यों ने पुलिस बल देने से इनकार कर दिया।

मै आज तक नरेन्द्र मोदी से मिली भी नहीं हु, मै उनके काम को जनता के दृष्टी से देखना चाहती हु। मै खुद देखती हु की वो अपने भाषणों में कुछ और कहते है और मीडिया किस तरह से उसे विकृत करके पेश करती है। तीस्ता सैताल्वाद किस तरह से कोर्ट के प्रक्रिया को खीचे जा रही रही है, किसी भी मुद्दे को ख़त्म नहीं होने देती है, एक ही आरोप को बार बार लाती है। SIT पर जो तीस्ता ने जो आरोप लगाये उसकी जांच होने चाहिए। देश की मीडिया और न्यायपालिका के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ है और भगवन के लिए SIT के रिपोर्ट को पढ़े। लेकिन इन लोगो ने इंटेलेक्चुअल दहसत इस तरह की बना दी है की किसी की हिम्मत नहीं है इनके खिलाफ कुछ बोलने की।


आज तक पर मधु किश्वर बताती है की उन्होंने बहुत सारे दंगों का अध्यन किया है और जबतक मै हालातो के बारे में खुद से अध्यन न कर लू मै नहीं लिखती। मेरा ध्यान गुजरात दंगो के बारे में तब आया जब तीस्ता जैसे लोगो ने एक अंतरास्त्रीय मुहीम चलाई की नरेन्द्र मोदी को किसी भी देश का वीसा न मिले। मुझे आश्चर्य यह देख कर हुआ की जॉर्ज बुश का ह्यूमन राईट का रिकॉर्ड मोदी के तुलना में बहुत ही ख़राब है दूसरी तरफ मोदी के के बारे में किसी भी महावाधिकार के हनन का रिकॉर्ड कही नहीं है. फिर भी जॉर्ज बुश को सभी देशो में जाने की अनुमति है और मोदी के खिलाफ किसी भी कोर्ट में कोई भी केस नहीं होने के बाद भी यह लोग उन्हें किसी देश में जाने न दिया जाये उसके लिए मुहीम चल रहे थे। यह बात मुझे बहुत गलत लगी। देश की बात आप अमेरिका में जाकर उनकी झोली में आप डालते हो मुझे बिलकुल सही नहीं लगा।

आप बताओ देश में कितने दंगे हुए है कश्मीर, आसाम, मुंबई, हैदराबाद, जमशेदपुर, मेरट न जाने कितने बड़े बड़े दंगे हुए है देश में लेकिन उस समय वह का मुख्या मंत्री कौन तह कोई नहीं जानता। लेकिन गजरत के दंगो के समय मुक्यमंत्री कौन था सभी जानते है। अभी आसाम में दंगा हुआ वह ४ लाख हिन्दुओ विश्थापित हुए क्या किसी को याद भी है उसके बारे में? 1984 में दंगा हुआ उसमे राजीव गाँधी की भूमिका जगजाहिर है उन्होंने आर्मी को नहीं काम करने दिया था। लेकिन उनका कोई विरोध नहीं करता है।

आजतक तीस्ता ने पाकिस्तान या सऊदी अरब के तानाशाह के खिलाफ कोई मुहीम नहीं चलाया। लेकिन यह तीस्ता आये दिन मोदी के पीछे पड़े रहे। फिर अरे गुजरात में ११ साल से दंगे नहीं हुए अरे कुछ तो श्रेय दे दो। अगर कोई कह दे की गुजरात में 24 घंटे बिजली मिलती है तो लोग कहते है की तुम तानाशाह मोदी की समर्थक हो। इतना कहने की भी इजाजत नहीं है। इन लोगो ने इतना इंटेलेक्चुअल टेरर बना दिया की मुझे घुटन होने लगी। फिर मैंने तय किया की अब मै जाकर खुद गुजरात का अध्यन करुँगी। जब मैंने गुजरात का अध्यन किया तो मैंने बिलकुल उलटी बात पाई। यह बताती थी की गुजरात में मुस्लिम घुटे घुटे से रहते है, कुचले कुचले रहते है लेकिन आप वह पर किसी भी मुसलमान से पुछ लोग तो वो कहेंगे की आज़ाद भारत में ११ साल दंगामुक्त साशन उनको मिला है, नौकरी उनकी सुरक्छित है, सही ने कहा की हमारा बहुत विकास हुआ। मुसलमानों को मैंने कहते देखा की हम आरक्छन नहीं चाहते।

फिर जैसे ही मैंने यह बात बताना सुरु किया की गुजरात में तो हालत बिलकुल अलग है। तो सभी लोग मुझ पर टूट पड़े। उसके बाद SIT की रिपोर्ट आई, उस रिपोर्ट में यह कहा गया है की मोदी की भूमिका नेगेटिव होने के बजाये मोदी ने वो सब कुछ किया जो आज तक किसी भी मुक्य मंत्री ने दंगे के समय नहीं किया था। पहले ही दिन २७ से वो शांति के लिए लोगो को जोरते रहे, 20 घंटे के अन्दर आर्मी आ गई, रक्छा मंत्री खुद देखते है आर्मी की तैनाती को। फिर नरेन्द्र मोदी ने महारास्त्र, मध्य प्रदेश जैसे कई राज्यों को चिट्ठिया लिखी की हमें अतिरिक्त सुरक्छा बल दिया जाये और यह सारे कांग्रेसी राज्यों ने पुलिस बल देने से इनकार कर दिया।

मै आज तक नरेन्द्र मोदी से मिली भी नहीं हु, मै उनके काम को जनता के दृष्टी से देखना चाहती हु। मै खुद देखती हु की वो अपने भाषणों में कुछ और कहते है और मीडिया किस तरह से उसे विकृत करके पेश करती है। तीस्ता सैताल्वाद किस तरह से कोर्ट के प्रक्रिया को खीचे जा रही रही है, किसी भी मुद्दे को ख़त्म नहीं होने देती है, एक ही आरोप को बार बार लाती है। SIT पर जो तीस्ता ने जो आरोप लगाये उसकी जांच होने चाहिए। देश की मीडिया और न्यायपालिका के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ है और भगवन के लिए SIT के रिपोर्ट को पढ़े। लेकिन इन लोगो ने इंटेलेक्चुअल दहसत इस तरह की बना दी है की किसी की हिम्मत नहीं है इनके खिलाफ कुछ बोलने की।

गुरुवार, अप्रैल 18, 2013

जरा ठंढे दिमाग से सोचिये !! ऐसा क्यूँ ????????

ऐसा क्यूँ ????????जरा ठंढे दिमाग से सोचिये !!

ईसाई धर्म में=एक मसीह....एक बाइबल..... और एक ही धर्म है .लेकिन मजे कि बात ये कि...ये रोमन कैथेलिक और प्रोटेस्टेंट मे बंटे हुए है ..आयरलैंड और बेलफास्ट मे अब तक सिर्फ पचास साल मे ही बीस हज़ार ईसाई आपसी दंगो मे मरे ..ये कहते है कि युशु इंसान मे कोई फर्क नहीं करता ..लेकिन गोरे ईसाइयों ने काले ईसाइयों पर भयानक पैशाचिक जुल्म ढाए और आज भी अमेरिका का सबसे खतरनाक आतंकी संगठन कोई मुस्लिम संगठन नहीं बल्कि "द व्हाइट सुपर " है जो गोरो का ग्रुप है और कालो और नीग्रो का दुश्मन है .. किसी गोरे लोगो के चर्च मे कोई काला ईसाई नहीं जा सकता .लैटिन कैथोलिक, सीरियाई कैथोलिक चर्च में प्रवेश नहीं करेगा.ये दोनों, मर्थोमा चर्च में प्रवेश नहीं करेगा.ये तीनों, Pentecost के चर्च में प्रवेश नहीं करेगा.और, ये चारों... साल्वेशन आर्मी चर्च में प्रवेश नहीं करेगा.इतना ही नहीं, ये पांचों, सातवें दिन Adventist चर्च में प्रवेश नहीं करेगा.ये छह के छह, रूढ़िवादी चर्च में प्रवेश नहीं करेगा.अब ये सातों जैकोबाइट चर्च में प्रवेश नहीं करेगा.और, इसी तरह से........ ईसाई धर्म की 146 जातियां सिर्फ केरल में ही मौजूद हैं,इतना शर्मनाक होने पर भी ये .... चिल्लाते रहेंगे कि.. एक मसीह, एक बाइबिल, एक धर्म(??)

अब देखिए मुस्लिमों कोअल्लाह एक , एक कुरान, एक नबी ! और महान एकता बतलाते हैं ?लेकिन मजे कि बात ये कि...जबकि, मुसलमानों के बीच, शिया और सुन्नी सभी मुस्लिम देशों में एक दूसरे को मार रहे हैं .और, अधिकांश मुस्लिम देशों में.... इन दो संप्रदायों के बीच हमेशा धार्मिक दंगा होता रहता है..!इतना ही नहीं... शिया को.., सुन्नी मस्जिद में जाना मना है .इन दोनों को.. अहमदिया मस्जिद में नहीं जाना है.और, ये तीनों...... सूफी मस्जिद में कभी नहीं जाएँगे.फिर, इन चारों का मुजाहिद्दीन मस्जिद में प्रवेश वर्जित है..!किसी बोहरा मस्जिद मे कोई दूसरा मुस्लिम नहीं जा सकता .कोई बोहरा का किसी दूसरे के मस्जिद मे जाना वर्जित है ..आगा खानी या चेलिया मुस्लिम का अपना अलग मस्जिद होता है .सबसे ज्यादा मुस्लिम किसी दूसरे देश मे नही बल्कि मुस्लिम देशो मे ही मारे गए है ..आज भी सीरिया मे करीब हर रोज एक हज़ार मुस्लिम हर रोज मारे जा रहे है .अपने आपको इस्लाम जगत का हीरों बताने वाला सद्दाम हुसैन ने करीब एक लाख कुर्द मुसलमानों को रासायनिक बम से मार डाला था ...पाकिस्तान मे हर महीने शिया और सुन्नी के बीच दंगे भड़कते है .और इसी प्रकार से मुस्लिमों में भी 13 तरह के मुस्लिम हैं., जो एक दुसरे के खून के प्यासे रहते हैं और आपस में बमबारी और मार-काट वगैरह... मचाते रहते हैं.

*अब आइये ... जरा हम अपने हिन्दू/सनातन धर्म को भी देखते हैं.हमारी 1280 धार्मिक पुस्तकें हैं, जिसकी 10,000 से भी ज्यादा टिप्पणियां और १,00.000 से भी अधिक उप-टिप्पणियों मौजूद हैं..! एक भगवान के अनगिनत प्रस्तुतियों की विविधता, अनेकों आचार्य तथा हजारों ऋषि-मुनि हैं जिन्होंने अनेक भाषाओँ में उपदेश दिया है..फिर भी, हम सभी मंदिरों में जाते हैं, इतना ही नहीं.. हम इतने शांतिपूर्ण और सहिष्णु लोग हैं कि सब लोग एक साथ मिलकर सभी मंदिरों और सभी भगवानो की पूजा करते हैं .और तो और.... पिछले दस हजार साल में धर्म के नाम पर हिंदुओं में "कभी झगड़ा नहीं" हुआ .इसलिए इन लोगों की नौटंकी और बहकावे पर मत जाओ... और.... "गर्व से कहो हम हिन्दू हैं"

बुधवार, अप्रैल 10, 2013

मानव जीवन के मुख्य संस्कार


मानव जीवन के मुख्य संस्कार

सर्वेश्वर द्वारा निर्धारित संस्कार व्यक्ति को बुराइयों को त्यागने तथा अच्छाईयों को अपनाने व उजागर करने के लिए होते हैं। व्यक्ति बहुधा प्रभु द्वारा फैलाये गय माया जाल में फँसकर अपने विवेक को भूल जाता है। फलत: वह कर्मेन्द्रियों और उनके द्वारा पैदा की गई इच्छाओं का गुलाम बन जाता है। फिर मनुष्य ज्ञानेन्द्रियों पर निंयंंत्रण नहीं रख सकता है। इस हालत में मनुष्य मन को परिष्कृत और सबल करने के लिए प्रभु ने ४० संस्कारों को चलाया है, जिनकी मदद से व्यक्ति में मौजूद खूबियाँ प्रकाश में आ जाती हैं। इससे मनुष्य माया जाल से बाहर निकल सकता है।

ये संस्कार जीवात्मा को परमात्मा के स्वर तक ऊपर उठाने और मोक्ष प्रदान करने के लिए डाले गए हैं। इन संस्कारों का निर्धारण वेदों पर आधारित स्मृतियों में किया गया है। इन पर चलने से मन की मलिनता दूर हो जाती है। फलत: उसमें जो पावनता आ जाती है, उससे भली भावनाओं व विचारों का उदय होने लगता है। उनको अपने कर्मों का आधार बनाने से व्यक्ति देह के स्तर से ऊपर उठकर आत्मा के प्रकाश में आ जाता है। इससे वह मोक्ष-ल्मार्ग पर बढ चलता है।

उस निराकार परब्रह्म के संकल्प से सृष्टि का उदय हुआ। दैवी संकल्प पर ही सृष्टि की स्थिति, पालन और अंतत: विलय आधारित होते हैं। यह इस पुस्तक "मार्ग दर्शनम" के प्रारंभ में ही बताया जा चुका है। गहन विचार करने पर एक शंका का उदय होता है- अंडा और मुर्गी में से पहले कौन अस्तित्व में आया? क्योंकि अंडा मुर्गी से निकलता है और मुर्गी खुद ही अंडे से निकलती है। दोनों एक दूसरे के बिना अस्तित्व में नहीं आ सकते हैं।

उत्तर सरल है- अण्डे को पेट में आने के लिए मुर्गी का गर्भ आवश्यक हो जाता है। द्वितीयत: सभी अंडों से चूजे नहीं निकलते हैं। इसलिए अण्डे के मुर्गी के पहले होने का सवाल ही पैदा नहीं होता है। मुर्गी को निराकार परब्रह्म, अंडे को उनका दैवी संकल्प और चूजे को सृष्टि कहा जा सकता है। यहाँ पर मुर्गे और अंडे का जिक्र किया गया है, क्योंकि उस निराकार परब्रह्म द्वारा निर्धारित संस्कार निम्नादुसार हैं:-

१. गर्भ-धारण :- साधारण तौर पर यह दो शरीरों का शारीरिक सुख पाने की कामना के साथ परस्पर एक दूसरे के समीप आना है। निराकार सर्वेश्वर के मामले में यह गर्भधान विचार का प्रगतीकरण है।

२. पुंसावन : यह प्रभु से विनती है कि गर्भ में पल रहा शिशु गर्भपात का शिकार न हो जाये। यह विनती गर्भाधान के तीसरे महीने में की जाती है। इसको ’गर्भरक्षणम" भी कहते हैं। निराकार के संदर्भ में यह प्रकट विचार को स्थाई बनाने की कोशिश है।

३. सीमांतनम : यह सामाजिक त्यौहार है। इसको गर्भपात के छठे या आठवे महीने में मनाया जाता है, जिससे प्रसवावस्था में नारी प्रसन्न रहा करे। निराकार तो वैसे ही सत, चित आनंद हैं। इसलिए उनके लिए किसी अलग त्यौहार-उत्सव की जरूरत नहीं।

४. जात कर्मम : यह शिशु के जन्म के तुरंत बाद मनाया जाने वाला उत्सव है, जिसके अंतर्गत मिठाइयाँ वितरण कर खुशी मनाई जाती है। निराकार के स्तर पर यह संकल्प के फलस्वरूप सृष्टि है।

५. नामकरणम : नवजात शिशु के जन्म के बाद ग्यारहवें रोज उसका नाम रख दिया जाता है। निराकार के लिए उसकी सृष्टि को ’ब्रह्माण्डीय विश्व’ नाम से जाना जाता है।

अभी तक निराकार के प्रकट विचार और ’ब्रह्माडीय विश्व’ के मध्य अंतर को स्पष्ट रखा जा रहा है। इसके बाद निराकार द्वारा निर्धारित संस्कारों के विवरण में इस अंतर को कम किया जा रहा है।

६. अन्न प्रासनम : छठे मास में शिशु को प्रथम बार अन्न चखाया जाता है। ब्रह्माण्डीय विश्व के जीव ब्रह्माण्डीय प्रकृति के माध्यम से भोजन ग्रहण करते हैं।

७. चौलम : विद्याध्ययन प्रारंभ करने के पूर्व जीव का मंत्रों के साथ चूडा कर्म संस्कार किया जाता है।

८. उपनयनम : बालक के समुचित विकास के लिए उपनयन संस्कार किया जाता है। इस संस्कार के जरिये प्रकृति को संस्कृति में विकसित करने का प्रयास तथा विकृति की ओर जाने से बचाने का प्रयत्न किया जाता है। इस संस्कार के जरिये बालक बौद्धिक और आध्यात्मिक पथ पर बढने लगता है। इसके बाद पुरूष सभी वैदिक कर्मकाण्डों में भाग ले सकता है।

’उपनयन’ शब्द ’उप’ + ’नयन’ के मेल से बना है। ’उप’ का अर्थ समीप अर्थात ज्ञान या ब्रह्म होता है। लेकिन जिज्ञासा पैदा होती है कि यहाँ ’नयन’ (आँख) क्यों आया? यह साधारण आँख न होकर तीसरी आँख है जो ज्ञान प्राप्त करने के लिए होती है। इसका तात्पर्य सामान्य शिक्षा प्राप्त करने की शुरुआत भी होता है। उपनयन संस्कार ८, १२ या १६ साल पूरे करने के पहले सम्पन्न हो जाना चाहिये। सोलह साल के बाद व्यक्ति में काम वासना जागृत होने लगती है। उसके पूर्व ही उपनयन संस्कार हो जाना चाहिए। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य तीन जाइयों के लोग उपनयन संस्कार करते हैं। ब्राह्मण सभी जातियों के लोगों का गुरू होता है, जब कि अग्निदेव ब्राह्मण के गुरु होते हैं।

ब्रह्मचारी के लिए उपनयन शुरुआती संस्कार है। गुरु उसको आशीष देते हैं। गुरु के निर्देशों के अनुसार शिष्य स्फतिक शिला पर खडे होकर कहता है, "अस्म आरोहणम" (कृपया मुझे सुन्दर स्वास्थ्य की आशीष से अनुगृहित करें) तब गुरु उसको आशीष देते हुए कहते हैं, चट्टान की भाँति दृढ-संकल्प वाले बनो।" ब्रह्मचारी को अपने मन-मस्तिष्क में किसी प्रकार की कमजोरी को प्रवेश करने नहीं देना चाहिए।

उपनयन के बाद ब्रह्मचारी को कुछ नियमों का पालन करना चाहिए - उसको दिन में नहीं सोना है; सौन्दर्य प्रसाधनों का उपयोग नहीं करना है; महिलाओं की संगति में नहीं रहना है; नकारात्मक भावनाओं को भडकने वाली चीजें न तो देखनी है और न ही जुबान पर लानी हैं; फिजूल की गप्पेबाजी में रुचि महीं रखनी है और सांसारिकता से दूर रहना है। सदैव सकारात्मक दृष्टिकोण रखने के लिए उसको शांत चित होना चाहिए, आलस्य से परहेज रखना चाहिए तथा मन में सदैव भली भावनाँए व विचार ही होने चाहिँए।

उपनयन संस्कार संपन्न होने के बाद बालक वेदों का अध्ययन कर सकता है। इस संस्कार के दौरान गुरु मंत्र द्वारा ब्रह्मचारी को दीक्षा देता है। मंत्र तथा उसका अर्थ निम्नवत है:-

’ऊँ’ - आदिनाद जो ब्रह्मा का प्रतीक है।

’भूर’ - भौतिक संसार, जिसमें आध्यात्मिक ऊर्जा या प्राण
मौजूद होते हैं।

’भुव:’ - मानसिक जगत जो सारे कष्टों का निवारक है।

’सुव:’ - देव एवम आध्यात्मिक लोक जो
सुख-सुविधाओं से प्रिपूर्ण है।

’ तत्त’ - निराकार-निर्गुण प्रभु।

’सवितुर’ - विश्व का सृजनकर्ता एवम पालनकर्ता सूरज।

’वरेण्यम" - अति सुन्दर।

’भर्गो’ - सर्व पापनाशक।

’देवस्य’ - सर्वोच्च।

’धीमहि’ - अपने अंदर स्थित कर ध्यान लगाते हैं।

’धियो’ - बुद्धि।

’यो’ - प्रकाश।

’न:’ - हमारा।

’प्रचोदयात’ - उत्साहित करना।

हम विश्व के रचयिता की महिमा पर ध्यान लगाते हैं।

वे पूजनीय हैं, ज्ञान-पुंज एवम प्रकाश के पुंज हैं और सभी पापों व अज्ञान को दूर करने वाले हैं। ऎसे प्रभु हमारी बुद्धि को उज्जवल बनाएँ।

मंत्र का सार इस प्रकार है - ’हे प्रभु! आप जीवनदाता हो, दुख व कष्टों को हरने वाले हो और सुख की वर्षा करने वाले हो। हे विश्व के सृजनकर्ता! हम आपकी पाप-विनाशक प्रकाश -किरणें प्राप्त कर सकें और आप हमारी बुद्धि को सदैव सही मार्ग पर निर्देशित करते रहें।’

गायंत्री मंत्र को तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है:-

(१) प्रशंसा (२) ध्यान (३) प्रार्थना ।

मंत्र का उच्चारण करते हुए हम सर्वप्रथम भगवान अथवा दैवी ब्रह्माण्डीय उर्जा की प्रशंसा करते हैं और पूर्ण आदर भाव के साथ उस पर ध्यान केन्द्रित करते हैं और अंतत: प्रभु से विनती करते हैं कि वे हमारी अथवा किसी अन्य व्यक्ति की बौद्धिक शक्ति को उदबोधित कर उसको सशक्त करें।

यह मंत्र सभी देवी देवताओं के लिए है। इसका किसी धर्म जाति, काल या क्षेत्र से कोई संबंध नहीं है। मंत्र में ’ऊँ, भूर, भुव: सुव:;, तत, सवितुर, वरेण्यम, भर्गो, और देवस्य’ नौ शब्द नौ रगों या भगवान की प्रशंसा हैं तो धीमहि का संबंध ध्यान से और धियो, यो, न: और प्रचोदयात मंत्र का प्रार्थना भाग है।

’गायत्री’ को वेद माता माना जाता है। उनके सावित्री और सरस्वती दो और स्वरूप हैं। ये तीनों हर व्यक्ति में मौजूद माने जाते हैं। इनमें गायत्री व्यक्ति की ज्ञानेन्द्रियों को, सावित्री जीवन-शक्ति प्राण को तथा सरस्वती वाणी और कर्म कॊ पावनता का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस मंत्र के उच्चारण से व्यक्ति की बौद्धिक एवम सृजनात्मक शक्तियों को बढावा मिलता है।

गायत्री को पंच्मुखी माना जाता है, जिनमें हर मुख एक ज्ञानेन्द्रिय पर नियंत्रण रखता है। उसी तरह सावित्री पंच-प्राणॊं की रक्षक मानी जाती है। देवी सावित्री का महत्व सावित्री-सत्यवान की कथा से भी संबंधित माना जाता है। सत्यवान कि जीवन अवधि की समाप्ति पर यमराज उनके प्राणों को ले जाने लगते हैं तो सावित्री उनके पीछे-पीछे चलने लगती हैं; क्योंकि पति के प्राणान्त का परिणाम उनका वैधव्य होता। सतीत्व के लिए सावित्री को यह सहनीय नहीं था। यमराज और सावित्री के बीच सत्यवान के प्राणों के लिए चलने वाली इस खींचतान में सतीत्व विजयी होता है और सत्यवान पुन: जी उठते हैं। इस प्रकार अपने सतीत्व के बल पर सावित्री ने मौत के देवता तक को मात दे दी।

इस गायत्री मंत्र को ही सावित्री मंत्र भी कहा जाता है। यह मंत्र सर्वप्रथम महर्षि विश्वामित्र को प्रकट हुआ। उन्हें गायत्री नामक वैदिक छंद में यह मंत्र प्रकट हुआ था। इस मंत्र को सिखाये जाने के प्रारम्भ में शिष्य को तीन तार वाला तिसूती जनेऊ पहनाया हाता है। जनेऊ पर एक गाँठ होती है जो प्रणव का ड्योतक होती है। जनेऊ के तीन तार तीन स्वरूपों के प्रतीक माने जाते हैं -आत्मा (देह सहित), अंतरात्मा (चैतन्य) तथा परमात्मा(ब्रह्माण्डीय ऊर्जा, प्राण वायु या सर्वेश्वर)।

उपनयन संस्कार के समापन पर गुरु शिष्य को वेद शास्त्रों के गहन अध्ययन के लिए गुरुकुल ले जाते हैं। वहाँ पर नीचे दिए गए संस्कार ९ से १२ तक सम्पन्न किए जाते हैं :-

९. प्रजापत्याम ।

१०. सौम्यम ।

११. आग्नेयम ।

१२. विश्वदेवम ।

वास्तव में ये चारों यजुर्वेद के काण्ड हैं। हर काण्ड का नाम उस ऋषि का है, जिसको वह वेद-मंत्र प्रकट हुआ था। इन ऋषियों को ’काण्ड ऋषि’ कहते हैं। ब्रह्मचारी को इन ऋषियों के प्रति सादर नमन करना है। उन्ही के माध्यम से उसको इन मंत्रों का ज्ञान प्राप्त होता है। उसके आभार स्वरूप ब्रह्मचारी उनको प्रणाम करता है। इस प्रणाम को ’उपकर्म’ कहते हैं, जिसका अर्थ वेदों के अध्ययन का शुभारम्भ है।

यजुर्वेद श्रावण (अगस्त - सितम्बर) मास की पूर्णिमा के दिन इस उपकर्म का आयोजन करते हैं। इस पूर्णिमा दिवस को अत्यंत पावन माना जाता है, क्योंकि इस रोज भगवान नारायण ने भगवान हयग्रीव रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के हवाले किया। ब्रह्मा को ज्ञान का स्वरूप माना जाता है।

प्रतिवर्ष यजुर्वेद अध्ययन के लिए उपक्र्म समय जनवरी मध्य से अगस्त मध्य तक नियत होता था। साल के शेष महीनों, अर्थात अगस्त मध्य से जनवरी मध्य तक का समय अन्य शास्त्रों के अध्ययन के लिए होता था। एक वेद से सम्पूर्ण अध्ययन में १२ साल लगते थे। शनै: शनै: वैदिक अध्ययन सरे वर्ष भर जारी रखा जने लगा। प्रतिबन्धित महीनों में भी वेदों का अध्ययन जारी रखना कसूर माना जाता था। इस कसूर के निवारण के लिए शिष्य को प्रायश्चित करना पडता था। उपकर्म संस्कार के पूर्व प्रायश्चित करना होता था। साथ ही वेदों के अध्ययन हेतु नियत काल में ऎसा न कर पाना भी अपराध समझा जाता था। इस गलती के निवारण के लिए शिष्य को उत्सर्जन (भूल-चूक) कर्म करना पडता था। एतदर्थ ’कामो कार्षित’ मंत्र का १००८ बार पाठ करना पडता था। कामो कार्शित का अर्थ विषय-वासना और क्रोध से किया गया कार्य होता है।

यह कामो कार्षित मन्यूरा कार्षित जप अपराध बोध और उसकी क्षमा के लिए किया जाता है। सर्वेश्वर के अलावा पवित्र शास्त्रों के अध्ययन में की गई गलती को क्षमा कौन कर सकता है? इसलिए दयालु प्रभु से विनती की जाती है कि वे शिष्य के अन्दर शास्त्रों की ज्योति प्रज्ज्वलित करें, जिससे उसको अंतत: मोक्ष की प्राप्ति हो सके। इस जप के बाद खण्ड ऋषि तर्पणम उपकर्म किया जाता है। यह दोपहर (मध्याह्रिकम) भगवद आराधना के बाद किया जाता है।

१३. समावर्तनम (स्नानम) - गुरुकुल में निवास करते हुय ब्रह्मचर्यपूर्ण करने के उपलक्ष्य में यह संस्कार मनाया जाता है। तदुपरान्त व्यक्ति शादी कर अपने माता पिता की सेवा करते हुय गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने का पात्र माना हाता है।

१४. विवाह - विवाह के साथ ही व्यक्ति गृह्स्थाश्रम में प्रवेश करता है, जिसकी समाप्ति उसके प्राणान्त से ही होती है। इस आश्रम के दायित्व पूरे करते हुय गृहस्थ कई कर्मकाण्डों के जरिये देवताओं, ब्रह्मा, पितरों, भूत और नर की प्रसन्नता के लिए काम करता है। इस संदर्भ में वह कुछ यज्ञ-याग भी करता है।

धार्मिक संस्कार व कर्मकाण्डों में यज्ञ का बडा महत्व है। वैदिक काल से ही यज्ञ प्रचलित हैं। यज्ञ-कुण्ड के अग्निदेव यज्ञकर्ता द्वारा जाने वाली आहुतियों के स्वरूप में उसके बलिदान के साक्षी रहते हैं। यज्ञ करने वाले मानते हैं कि अग्निदेव के माध्यम से उनकी विनती देवी-देवताओं तक पहुँच जायेगी, जिससे उनकी मनोकामनाओं की पूर्ति हो जायेगी।

यज्ञ का विशद एवम गहन महत्व है। यह प्रमुखतया तीन लक्ष्यों से किया जाता है - (१) देवी-देवताओं कॊ पूजा, (२) संगठित करना (एकता स्थापित करना) और (३) दान। यज्ञ समाज में मेल-मिलाप के साथ रहने तथा उच्च मानवीय मूल्यों पर चलने की शिक्षा देते हैं। यज्ञ आदर्श मानव-संस्कृति के आधार हैं।

वेदों में ४०० यज्ञ दिय गय हैं, जिनमें से २० को नित्य कर्म कहते हैं। उन्हें जीवन में अवश्य किया जाना है। अन्य यज्ञ इच्छानुसार किए जा सकते हैं, क्योंकि वे विभिन्न कामनाओं की पूर्ति से संबंधित होते हैं। नित्य कर्म यज्ञों को, अग्निहोत्रम यज्ञ के अपवाद को छोडकर, हर होज करना आवश्यक नहीं है। बेश्क अग्निहोत्रम यज्ञ दिन में दो बार सूर्योदय एवम सूर्यास्त के समल्य किया जाना आवश्यक है।

पंच महायज्ञ को छोडकर पाक यज्ञ, हविर यज्ञा और सोम यज्ञ में से प्रत्येक में सात-सात यज्ञ होतें हैं।

पंच महायज्ञ :

’तैत्तिरीय आरण्यक’ में दिये गये पंच महायज्ञ निम्नवत हैं :-

१५. देव यज्ञ - इसमें देवी-देवताओं को आहुतियाँ दी जाती हैं।

१६. पितृ यज्ञ - दिवंगत माता-पिता तथा पितरों को आहुतियाँ दी जाती हैं।

१७. नर यज्ञ - अतिथियों के प्रति आहुतियाँ दी जाती हैं।

१८. भूत यज्ञ - जानवरों, पक्षीयों और पेड-पौधों सहित सभी वर्तमान एवम वेगत जीवधारियों को आहुतियाँ दी जाती हैं।

१९. ब्रह्मा यज्ञ - चारोम वेदों में मौजूद विशेष श्लोकों का नियमित तौर पर गायन।

पाक यज्ञ :

ये यज्ञ निम्नवत सात किस्म के होते हैं :-

२०. अष्टकई - यह पितृ कर्म यज्ञ है जो साल में एक बार पितरों के देह-त्याग की तिथि पर आयोजित किया जाता है।

२१. स्थालीपकम - स्थली वह बर्तन है, जिसमें चावल पकाये जाते हैं। इसको उपासना अग्नि पर रखा जाता है, जिसमें चरु नामक चावलों को पका देते है। इस भात को अग्नि को ही होम कर दिया जाता है। इस यज्ञ को शुक्ल पक्ष के पहले रोज किया जाता है।

२२. पारवणम - यह भी पितृ यज्ञ है, जिसका आयोजन हर मास में एक बार किया जाता है।

२३. श्रावणी - इसको साल में एक बार सिर्फ श्रावण मास में करते हैं। इसको ’सर्प बलि’ भी कहते हैं।

२४. अग्रहायणी - इसको भी साल में एक बार मध्य दिसम्बर में आयोजित किया जाता है।

२५. चैत्री - यज्ञ भी साल में केवल एक बार चैत्र मास में करते हैं। इसको ’ईशान बलि’ भी कहते हैं।

२६. आश्वायुजी : इसको साल में सिर्फ एक बार अश्विनी मास (असूज) में मनाया जाता है।

हविर यज्ञ :

यह यज्ञ हर प्रथमा दिवस को आयोजित किया जाता है। इस दिन को ’दर्श-पूर्ण-इस्ती भी कहते हैं (दर्श = शुक्ल पक्ष का चाँद + पूर्ण = पूनम) दोनों को मिलाकर ’इस्ती’ भी कहते हैं। दर्शपूर्णमास इस्ती हविर यज्ञ के लिए उचित समय है। प्रथम चार यज्ञ अग्निहोम, दर्शपूर्ण्मास और आग्रयाणम घर पर ही आयोजित किये जाते हैं; जबकि शेष तीन यज्ञ यज्ञमाला में दिये जाते हलिं।

२७. अग्निदान - यह यज्ञ साल या जीवन में एक ही बार किया जाता है। शादी के बाद अग्नि को दो में विभाजित किया जाता है। शादी के बाद अग्नि को दो में विभाजित किया जाता है - ’गृहयाग्नि’ उपासना के लिए तथा ’श्रोताग्नि’ अग्निहोम और अन्य यज्ञों को करने के लिए।

२८. अग्निहोम - दुध के साथ यह यज्ञ प्रतिदिन किया जाता है। इसमें अक्ष्तों या घी का उपयोग भी किय्ला जा सकता है।

२९. दर्शपूर्णमास- यह यज्ञ महीने के हर पखवाडे के प्रथम दिवस को किया जाता है।

३०. आग्रयाणम - इस यज्ञ को पूर्णिमा के रोज साल या जीवन में एक बार आयोजित करते हैं।

३१. चातुर्मासम - यह यज्ञ साल या जीवन में एक बार बरसात में किया जाता है।

३२. निरुद्ध पशुबंधनम - इसको साल या जीवन में एक बार करते हैं। इस यज्ञ से गोदान की शुरुआत होती है।

३३. सौद्रामणि- साल या जीवन में केवल एक बार आयोजित किया जाता है। ’क्षुद देवताओं’ की प्रसन्नता हेतु किये जाने वाले इस यज्ञ में सुरा का इस्तेमाल भी होता है।

सोम यज्ञ :

इस यज्ञ का नाम सोम नाम के पौधे पर पडा है। कहा हाता है कि इस पौधे का रस देवताओं को अति प्रिय था। अब इस यज्ञ के अंतर्गत देवताओं को प्रसन्न कर अपनी मनौती मनवाने के लिए सोमरस का आहुति में उपयोग किया जाता है। इसके अंतर्गत किए जाने बाले सात यज्ञों में अग्निश्तोम प्रथम यज्ञ है। यह यज्ञ जिस विधि से किया जाता है, शेष छ: यज्ञ भी उसी प्रकार मनाये जाते है।

इन यज्ञों में वाजपेय यज्ञ विशेष माना जाता है। इसका यजमान बलिदान देने के बाद विधिवत स्नान कर जब आता है तो राजा स्वयम छाता ताने उसके पीछे पीछे चलते हैं। वाज का शाब्दिक अर्थ भात और पेय का मतलब पेय पदार्थ होता है। इसको विजय का पेय मानते हैं। बलिदान में सोमरस सहित २२ पशु और अन्न दान के तौर पर दिये जाते हैं। इन सातों यज्ञों को साल में एक बार अथवा जीवन में एक बार किया जाता है। ये यज्ञ इस प्रकार हैं:-

३४. अग्निश्तोम।

३५. अत्यग्निश्तोम।

३६. उक्त्यम।

३७. शोतषि।

३८. वाजपेय।

३९. अदिरायम।

४०. आप्तोयामम।


संस्कारों के उद्देश्य
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संस्कारों के दो उद्देश्य थे। एक उद्देश्य तो प्रकृति में विरोधी शक्तियों के प्रभाव को दूर करना और हितकारी शक्तियों को अपनी ओर आकर्षित करना था, क्योंकि प्राचीन हिंदूओं का भी अन्य प्राचीन जातियों की भांति यह विश्वास था कि मनुष्य कुछ अधिमानव प्रभावों से घिरा हुआ है। इस प्रकार वह बुरे प्रभाव को दूर करके और अच्छे प्रभाव को आकर्षित करके देवताओं और इन अधिमानव शक्तियों की सहायता से समृद्ध और सुखी रहेगा। संस्कारों के द्वारा वे पशु, संतान, दीर्घायु, संपत्ति और समृद्धि की आशा करते थे। संस्कारों के द्वारा मनुष्य अपने हर्षोल्लास को भी व्यक्त करता था।

दूसरा मुख्य उद्देश्य सांस्कृतिक था। मनु के अनुसार मनुष्य संस्कारों के द्वारा इस संसार के और परलोक के जीवन को पवित्र करता है। इसी प्रकार के विचार याज्ञवल्क्य ने व्यक्त किये हैं। प्राचीन भारतीयों का विश्वास था कि प्रत्येक मनुष्य शूद्र उत्पन्न होता है और उसे आर्य बनने से पूर्व शुद्धि या संस्कार की आवश्यकता होती है। इसी उद्देश्य से उपनयन संस्कार किया जाता था। संस्कारों का उद्देश्य मनुष्य का नैतिक उत्थान और उसके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करके जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष तक पहुँचने के योग्य बनाना था। संस्कारों का संबंध मनुष्य के संपूर्ण जीवन से था। वे जीवन भर इस संसार में और आत्मा के द्वारा परलोक में भी उस पर प्रभाव डालते थे।

जीवन भर मनुष्य संयम का जीवन बिताता था और उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अनुशासन में रहता था। इस प्रकार समाज में समान संस्कृति के और अधिक चरित्रवान व्यक्तियों का प्रादुर्भाव होता था। प्राचीन भारतीयों की धारणा थी कि संस्कारों के द्वारा मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। इन के द्वारा मनुष्य को यह अनुभूति होती है कि संपूर्ण जीवन ही आध्यात्मिक साधना है।

इस प्रकार संस्कारों के द्वारा सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन में सुंदर समन्वय स्थापित किया गया था। शरीर और उसके कार्य अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक माने जाते थे न कि बाधक।

संस्कारों का उद्देश्य मनुष्य की पाशविकता को परिष्कृत- मानवता में परिवर्तित करना था। प्राचीन काल में मनुष्य के जीवन में धर्म का विशेष महत्व था। संस्कारों का उद्देश्य मनुष्य के व्यक्तित्व को इस प्रकार विकसित करना था कि वह विश्व में मानव और अतिमानव शक्तियों के साथ समन्वय स्थापित कर सके। इनका उद्देश्य मनुष्य को बौद्धिक ओर आध्यात्मिक रुप से सुसंस्कृत बनाना था।

गर्भाधान से जन्म तक के संस्कारों का उद्देश्य सुजनन विज्ञान की शिक्षा और विद्यारंभ से समावर्तन तक के संस्कारों का शैक्षिक महत्व था। विवाह संस्कार का सामाजिक महत्व था। इस संस्कार के द्वारा मनुष्य का पारिवारिक जीवन सुखी बनता था और समाज में सुव्यवस्था रहती थी। अंत्येष्टि संस्कार का उद्देश्य पारिवारिक और सामाजिक स्वास्थ्य परिवार के जीवित व्यक्तियों को सांत्वना प्रदान करना था।

ये संस्कार वर्ण- धर्म और आश्रम- धर्म दोनों का अभिन्न भाग थे। वर्ण- धर्म का उद्देश्य व्यक्ति के कार्यों को समाज के हित को ध्यान में रख कर नियंत्रित करना था। आश्रम धर्म का भी यही उद्देश्य है, किंतु इसमें प्रमुख रुप से व्यक्ति के हित को ध्यान में रखा जाता था। इन दोनों दृष्टिकोणों को मिलाने वाली कड़ी संस्कार है। संस्कारों के द्वारा व्यक्ति पहले से अधिक संगठित और अनुशासित होकर एक चरण से दूसरे चरण में प्रवेश करता था। इस प्रकार प्रशिक्षण देकर व्यक्ति को समाज के लिए पूर्णतया उपयोगी बनाया जाता था। गृहस्थाश्रम में योग्य संतान उत्पन्न करके पति- पत्नी समाज के प्रति अपना कर्तव्य पूरा करते थे, किंतु साथ ही वे अपनी निजी उन्नति भी करते थे। गृहस्थाश्रम भी वानप्रस्थ की और इसी प्रकार वानप्रस्थ संन्यास की पृष्ठभूमि हैं। सभी आश्रम व्यक्ति को उस के लक्ष्य मोक्ष की ओर ले जाते हैं।

संस्कार के समय जो धार्मिक क्रियाएँ की जाती हैं, वे व्यक्ति को इस बात की अनुभूति करती है कि उसके जीवन में इस संस्कार के बाद कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन होने जा रहा है। उदाहरण के लिए उपनयन संस्कार उसे इस बात की अनुभूति कराता है कि वह इस संस्कार के बाद उस समुदाय की सांस्कृतिक परंपरा का अध्ययन करेगा, जिस समुदाय विशेष का वह सदस्य है। इसी प्रकार विवाह संस्कार के बाद संतानोत्पत्ति करके अपने समुदाय की शक्ति बढ़ाने का निश्चय करता है। गृहस्थाश्रम में प्रविष्ट होकर वह समाज के प्रति अपना कर्तव्य पूरा करके धर्म- संचय करता है, जिससे उसकी आध्यात्मिक उन्नति होती है, जो उसे उसके जीवन के लक्ष्य अर्थात् मोक्ष की ओर अग्रसर करती है।

संस्कारों के समय की जाने वाली धार्मिक क्रियाएँ व्यक्ति को इस बात की अनुभूति कराती थी कि अब उसके ऊपर कुछ नई जिम्मेदारियाँ आ रहीं हैं, जिन्हें पूरा करके ही वह समाज की और अपनी दोनों का उन्नति कर सकता है। इस प्रकार संस्कार पूर्वजन्म के दोषों को दूर करके और गुणों का विकास करने में सहायक होकर व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करके व्यक्ति और समाज दोनों की उन्नति में सहायक होते थे, इसलिए प्राचीन भारत में संस्कारों का इतना महत्व था।

कालांतर में जन साधारण संस्कारों के सामाजिक और धार्मिक महत्व को भूल गए। संस्कार एक परम्परा मात्र रह गए। उनमें गतिशीलता न रही। समाज की बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार उनमें परिवर्तन नहीं किए गए। उनमें मानव को सुसंस्कृत बनाने की शक्ति न रही। वे नित्य चर्या से संबंधित धार्मिक- कृत्य मात्र रह गए। उनका जीवन पर प्रभाव लेशमात्र भी न रहा। अब वैज्ञानिक प्रगति के कारण जीवन की संकल्पना ही बदल गयी है। अब मानव उन अतिमानव शक्तियों में विश्वास नहीं करता, जिनके अशुभ प्रभाव को दूर करने और अच्छे प्रभाव को आकर्षित करने के लिए संस्कार किए जाते थे, किंतु मानव जीवन का स्रोत अब भी एक रहस्य है। अतः मनुष्य अब भी संस्कारों के द्वारा अपने जीवन को पवित्र करना चाहता है। मनुष्य अब भी यह भली- भांति जानता है कि जीवन एक कला है। उसको सफल बनाने के लिए जीवन का परिष्कार करने की आवश्यकता है। व्यक्ति के सुसंस्कृत होने पर ही समाज सुसंस्कृत हो सकता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वर्तमान काल में भी संस्कारों का अपना अलग महत्व है। संस्कारों का रुप बदल सकता है, किंतु जीवन को सफल बनाने की दिशा में उनका महत्व कम नहीं हो सकता।

महाजनपद

महाजनपद

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हमारे सनातन धर्म के अनुसार महाजनपद मे वज्जि, मगध,कोशल, कुरु, पांचाल, गांधार और अवन्ति जैसे नाम अक्सर मिलते हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि ये महाजनपद महत्त्वपूर्ण महाजनपदों के रूप में जाने जाते होंगे। अधिकांशतः महाजनपदों पर राजा का ही शासन रहता था परन्तु गण और संघ नाम से प्रसिद्ध राज्यों में लोगों का समूह शासन करता था, इस समूह का हर व्यक्ति राजा कहलाता था। हर एक महाजनपद की एक राजधानी थी जिसे क़िले सेघेरा दिया जाता था। भारत के सोलह महाजनपदों का उल्लेख ईसा पूर्व छठी शताब्दी से भी पहले का है। ये महाजनपद थे:



1. अवन्ति: आधुनिक मालवा का प्रदेश जिसकी राजधानी उज्जयिनी और महिष्मति थी। उज्जयिनी (उज्जैन) मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है। महाभारत में सहदेव द्वारा अवंती को विजित करने का वर्णन है। जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में इसी जनपद को मालव कहा गया है। इस जनपद में स्थूल रूप से वर्तमानमालवा, निमाड़ और मध्य प्रदेश का बीच का भाग सम्मिलित था। पुराणों के अनुसार अवंतीकी स्थापना यदुवंशी क्षत्रियों द्वारा की गई थी। चतुर्थ शती ई. पू. में अवन्ती का जनपद मौर्य-साम्राज्य में सम्मिलित था और उज्जयिनी मगध-साम्राज्य के पश्चिम प्रांत की राजधानी थी। गुप्त काल में चंद्रगुप्तविक्रमादित्य ने अवंती को पुन: विजय किया और वहाँ से विदेशी सत्ता को उखाड़फैंका। मध्यकाल में इस नगरी को मुख्यत:उज्जैन ही कहा जाता था और इसका मालवा के सूबे के एक मुख्य स्थान के रूप में वर्णन मिलता है। जैन ग्रन्थ विविधतीर्थ कल्प में मालवा प्रदेश का ही नाम अवंति या अवंती है। महाकाल की शिव के द्वादश ज्योतिर्लिगों में गणनाकी जाती है। इसी कारण इस नगरी को शिवपुरी भी कहा गया है। प्राचीन अवंती वर्तमान उज्जैन के स्थान पर ही बसी थी, यह तथ्य इस बात से सिद्ध होता है कि क्षिप्रा नदी जो आजकल भी उज्जैन के निकट बहती है, प्राचीन साहित्य में भी अवंती के निकट ही वर्णित है।


2. अश्मक: नर्मदा और गोदावरी नदियों के बीच अवस्थित इस प्रदेश की राजधानी पाटन थी। आधुनिक काल में इस प्रदेश को महाराष्ट्र कहते हैं। बौद्ध साहित्य में इस प्रदेश का, जो गोदावरी तट पर स्थित था, कई स्थानों पर उल्लेख मिलता है। सुत्तनिपात में अस्सक को गोदावरी-तट पर बताया गया है। इसकी राजधानी पोतन, पौदन्य या पैठान (प्रतिष्ठानपुर)में थी। पाणिनि ने अष्टाध्यायी में भी अश्मकों का उल्लेख किया है। सोननंदजातक में अस्सक को अवंती से सम्बंधित कहा गया है। अश्मक नामक राजा का उल्लेख वायु पुराण और महाभारत में है। सम्भवत: इसी राजा के नाम से यह जनपदअश्मक कहलाया। ग्रीक लेखकों ने अस्सकेनोई लोगों का उत्तर-पश्चिमी भारत में उल्लेख किया है। इनका दक्षिणी अश्वकों से ऐतिहासिक सम्बन्ध रहा होगा या यह अश्वकों का रूपान्तर होसकता है।


3. अंग: वर्तमान बिहार के मुंगेर और भागलपुर ज़िले इसमें आते थे। महाजनपद युग में अंग महाजनपद की राजधानी चंपा थी। महाभारत ग्रन्थ में प्रसंग है कि हस्तिनापुर में कौरव राजकुमारों के युद्ध कौशल के प्रदर्शन हेतु आचार्य द्रोण ने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया। अर्जुन इस प्रतियोगिता में सर्वोच्च प्रतिभाशाली धनुर्धर के रूप में उभरा। कर्ण ने इस प्रतियोगिता में अर्जुन को द्वन्द युद्घ के लिए चुनौती दी। किन्तु कृपाचार्य ने यह कहकर ठुकरा दिया कि कर्ण कोई राजकुमार नहीं है। इसलिए इस प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकता। इसलिए दुर्योधन ने कर्ण को अंग देश का राजा घोषित कर दिया था। पहले अंग मगध के अंतर्गत आता था लेकिन बाद में भीष्म द्वारा अंग को जीतने के पश्चात् ये हस्तिनापुर के अधीन आ गया.


4. कम्बोज: प्राचीन संस्कृत साहित्य में कंबोज देश या यहाँ के निवासी कांबोजों के विषय में अनेक उल्लेख हैं जिनसे जानपड़ता है कि कंबोज देश का विस्तार स्थूल रूप से कश्मीर से हिन्दूकुश तक था। वाल्मीकि-रामायण में कंबोज, वाल्हीक और वनायु देशों के श्रेष्ठ घोड़ों का अयोध्या में होना वर्णित है.महाभारत के अनुसार अर्जुन ने अपनी उत्तर दिशा की दिग्विजय-यात्रा के प्रसंग में दर्दरों या दर्दिस्तान के निवासियों के साथ ही कांबोजों को भी परास्त किया था. महाभारत में कहा गया है कि कर्ण ने राजपुर पहुंचकर कांबोजों को जीता, जिससे राजपुर कंबोज का एक नगर सिद्ध होता है। वैदिक काल में कंबोज आर्य-संस्कृति का केंद्र था जैसा कि वंश-ब्राह्मण के उल्लेख से सूचित होता है, किंतु कालांतर में जब आर्यसभ्यता पूर्व की ओर बढ़ती गई तो कंबोज आर्य-संस्कृति से बाहर समझा जाने लगां। युवानच्वांग ने भी कांबोजों को असंस्कृत तथा हिंसात्मक प्रवृत्तियों वाला बताया है। कंबोज केराजपुर, नंदिनगर और राइसडेवीज के अनुसार द्वारका नामक नगरों का उल्लेख साहित्य में मिलता है। महाभारत में कंबोज के कई राजाओं का वर्णन है जिनमेंसुदर्शन और चंद्रवर्मन मुख्य हैं। मौर्यकाल में चंद्रगुप्त के साम्राज्य में यह गणराज्य विलीन हो गया होगा।



5. काशी: वाराणसी का दूसरा नाम ‘काशी’ प्राचीन काल में एक जनपद के रूप में प्रख्यात था और वाराणसी उसकी राजधानी थी। इसकी पुष्टि पाँचवीं शताब्दी में भारत आने वाले चीनी यात्री फ़ाह्यान के यात्रा विवरण से भी होती है। हरिवंशपुराण में उल्लेख आया है कि ‘काशी’ को बसाने वाले पुरुरवा के वंशज राजा ‘काश’ थे। अत: उनके वंशज ‘काशि’ कहलाए। संभव है इसके आधार पर ही इस जनपद का नाम ‘काशी’ पड़ा हो। काशी नामकरण से संबद्ध एक पौराणिक मिथक भी उपलब्ध है। उल्लेख है कि विष्णु ने पार्वती के मुक्तामय कुंडल गिर जाने से इस क्षेत्र को मुक्त क्षेत्र की संज्ञा दी और इसकी अकथनीय परम ज्योति के कारण तीर्थ का नामकरण काशी किया। कहा जाता है की कशी भगवान शंकर के त्रिशूल पर स्तिथ है इसी कारण इसे पृथ्वी से बहार का क्षेत्र माना जाता है.


6.वृजि: उत्तर बिहार का बौद्ध कालीन गणराज्य जिसे बौद्ध साहित्य में वृज्जि कहा गया है। वास्तव में यह गणराज्य एक राज्य-संघ का अंग था जिसके आठ अन्य सदस्य (अट्ठकुल) थे जिनमें विदेह, लिच्छवी तथा ज्ञातृकगणप्रसिद्ध थे। बुद्ध के जीवनकाल में मगध सम्राट अजातशत्रु और वृज्जि गणराज्य में बहुत दिनों तक संघर्ष चलता रहा। महावग्ग के अनुसार अजातशत्रु के दो मन्त्रियों सुनिध औरवर्षकार (वस्सकार) ने पाटलिग्राम (पाटलिपुत्र) में एक क़िला वृज्जियोंके आक्रमणों को रोकने के लिए बनवाया था। महापरिनिब्बान सुत्तन्त में भी अजातशत्रु और वृज्जियों के विरोध का वर्णन है। वज्जि शायद वृजि का ही रूपांतर है। बुल्हर के मत में वज्रि का नामोल्लेख अशोक के शिलालेख सं. 13 में है। जैन तीर्थंकर महावीर वृज्जि गणराज्य के ही राजकुमार थे।

7. वत्स: आधुनिक उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद तथा मिर्ज़ापुर ज़िले इसके अर्न्तगत आते थे। इस जनपद की राजधानी कौशांबी (ज़िला इलाहाबाद उत्तर प्रदेश) थी। वत्स देश का नामोल्ल्लेखवाल्मीकि रामायण में भी है कि लोकपालों के समान प्रभाव वाले राम चन्द्र वन जाते समय महानदी गंगा को पार करके शीघ्र ही धनधान्य से समृद्ध और प्रसन्न वत्स देश में पहुँचे। इस उद्धरण से सिद्ध होता है कि रामायण-काल में गंगा नदी वत्स और कोसल जनपदोंकी सीमा पर बहती थी। गौतम बुद्ध के समय वत्स देश का राजा उदयन था जिसने अवंती-नरेश चंडप्रद्योत की पुत्री वासवदत्ता से विवाह किया था। इस समय कौशांबी की गणना उत्तरी भारत के महान नगरों में की जाती थी। महाभारत के अनुसार भीम सेन ने पूर्व दिशा की दिग्विजय के प्रसंग में वत्स भूमि पर विजय प्राप्त की थी.

8. पांचाल: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बरेली, बदायूँ और फर्रूख़ाबाद ज़िलोंसे परिवृत प्रदेश का प्राचीन नाम है। यह कानपुर से वाराणसी के बीच के गंगा के मैदान में फैला हुआ था। इसकी भी दो शाखाएँ थीं- पहली शाखा उत्तर पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र थी तथा दूसरी शाखा दक्षिण पांचाल की राजधानी कांपिल्य थी। पांडवों की पत्नी, द्रौपदी को पंचाल की राजकुमारी होने के कारण पांचाली भी कहा गया।शतपथ ब्राह्मण में पंचाल की परिवका या परिचका नामक नगरी का उल्लेख है जो वेबर के अनुसार महाभारत की एकचका है। पंचाल पाँच प्राचीन कुलों का सामूहिकनाम था। वे थे किवि, केशी, सृंजय, तुर्वसस तथा सोमक। पंचालों और कुरु जनपदों में परस्पर लड़ाई-झगड़े चलते रहते थे। महाभारत के आदिपर्व से ज्ञात होता है कि पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन की सहायता से पंचालराज द्रुपद को हराकर उसके पास केवल दक्षिण पंचाल (जिसकी राजधानी कांपिल्य थी) रहने दिया और उत्तर पंचाल को हस्तगत कर लिया था। इस प्रकार महाभारत-काल में पंचाल, गंगा के उत्तरी और दक्षिण दोनों तटों पर बसा हुआ था। द्रुपद पहले अहिच्छत्र या छत्रवती नगरी में रहते थे। महाभारत आदिपर्व में वर्णित द्रौपदी का स्वयंवर कांपिल्य में हुआ था। पंचाल निवासियों को भीमसेन ने अपनी पूर्व देश की दिग्विजय-यात्रा में अनेक प्रकार से समझा-बुझा कर वश में कर लिया था।

9. मगध: बौद्ध काल तथा परवर्तीकाल में उत्तरी भारत का सबसे अधिक शक्तिशाली जनपद था। इसकी स्थिति स्थूल रूप से दक्षिण बिहार के प्रदेश में थी। आधुनिक पटना तथा गया ज़िला इसमें शामिल थे। इसकी राजधानी गिरिव्रज थी । भगवान बुद्ध के पूर्व बृहद्रथ तथा जरासंध यहाँ के प्रतिष्ठित राजा थे। यह दक्षिणी बिहार में स्थित था जो कालान्तर में उत्तर भारत का सर्वाधिकशक्‍तिशाली महाजनपद बन गया। मगध महाजनपद की सीमा उत्तर में गंगा से दक्षिण में विन्ध्य पर्वत तक, पूर्व में चम्पा से पश्‍चिम में सोन नदी तक विस्तृत थीं। मगध की प्राचीन राजधानीराजगृह थी। कालान्तर में मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में स्थापित हुई। मगध राज्य में तत्कालीन शक्‍तिशाली राज्य कौशल, वत्स व अवन्ति को अपने जनपद में मिला लिया। इस प्रकार मगध का विस्तार अखण्ड भारत के रूप में हो गया और प्राचीन मगध का इतिहास ही भारत का इतिहास बना। पटना और गया ज़िला का क्षेत्र प्राचीनकाल में मगध के नाम से जाना जाता था। गौतम बुद्ध के समय में मगध मेंबिंबिसार और तत्पश्चात उसके पुत्र अजातशत्रु का राज था। इस समय मगध की कोसल जनपद से बड़ी अनबन थी यद्यपि कोसल-नरेश प्रसेनजित की कन्या का विवाह बिंबिसार से हुआ था। इस विवाह के फलस्वरूप काशी का जनपद मगधराज को दहेज के रूप में मिला था। इनके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य तथा अशोक के राज्यकाल में मगध के प्रभावशाली राज्य की शक्ति अपने उच्चतम गौरव के शिखर पर पहुंची हुई थी और मगध की राजधानी पाटलिपुत्र भारत भर की राजनीतिक सत्ता का केंद्र बिंदु थी। मगध का महत्त्व इसके पश्चात भी कई शतियों तक बना रहा और गुप्त काल के प्रारंभ में काफ़ी समय तक गुप्त साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र ही में रही। बिम्बिसार को मगध साम्राज्यका वास्तविक संस्थापक माना जाता है। बिम्बिसार ने गिरिव्रज (राजगीर) को अपनी राजधानी बनायी। इसके वैवाहिक सम्बन्धों (कौशल, वैशाली एवं पंजाब) की नीति अपनाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया।

प्रस्तुति :- Pankajd Dwivedi

पाताल में मिला विलुप्तो सरस्वती नदी का पता. पढ़ें


पाताल में मिला विलुप्तो सरस्वती नदी का पता. पढ़ें ये लेख...http://bit.ly/13PRbw4

ओल्डहैम , माइकेल डेनिनो , भगवान सिंह और Shivaji Singh से आइआइटी तक

तो वह नदी कहां लुप्त हो गई? आज से 120 साल पहले 1893 में यही सवाल एक अंग्रेज इंजीनियर सी.एफ. ओल्डहैम के जेहन में उभरा था, जब वे इस नदी की सूखी घाटी से अपने घोड़े पर सवार होकर गुजरे. तब ओल्डहैम ने पहली परिकल्पना दी कि हो न हो, यह प्राचीन विशाल नदी सरस्वती की घाटी है, जिसमें सतलुज नदी का पानी मिलता था. और जिसे ऋषि-मुनियों ने ऋग्वेद (ऋचा 2.41.16) में ''अम्बी तमे, नदी तमे, देवी तमे सरस्वती” अर्थात् सबसे बड़ी मां, सबसे बड़ी नदी, सबसे बड़ी देवी कहकर पुकारा है. ऋग्वेद में इस भूभाग के वर्णन में पश्चिम में सिंधु और पूर्व में सरस्वती नदी के बीच पांच नदियों झेलम, चिनाब, सतलुज, रावी और व्यास की उपस्थिति का जिक्र है.

ऋग्वेद (ऋचा 7.36.6) में सरस्वती को सिंधु और अन्य नदियों की मां बताया गया है. इस नदी के लुप्त होने को लेकर ओल्डहैम ने विचार दिया कि कुदरत ने करवट बदली और सतलुज के पानी ने सिंधु नदी का रुख कर लिया. बेचारी सरस्वती सूख गई. एक सदी से ज्यादा के वक्त में विज्ञान और तकनीक ने रफ्तार पकड़ी और सरस्वती के स्वरूप को लेकर एक-दूसरे को काटती हुई कई परिकल्पनाएं सामने आईं. इस बारे में अंतिम अध्याय लिखा जाना अभी बाकी है. 1990 के दशक में मिले सैटेलाइट चित्रों से पहली बार उस नदी का मोटा खाका दुनिया के सामने आया. इन नक्शों में करीब 20 किमी चौड़ाई में हिमालय से अरब सागर तक जमीन के अंदर नदी घाटी जैसी आकृति दिखाई देती है.

अब जिज्ञासा यह थी कि कोई नदी इतनी चौड़ाई में तो नहीं बह सकती, तो आखिर उस नदी कासटीक रास्ता और आकार क्या था? और उसके विलुप्त होने की सच्ची कहानी क्या है? इन सवालों के जवाब ढूंढऩे के लिए 2011 के अंत में आइआइटी कानपुर के साथ काशी हिंदू विश्वविद्यालय (वाराणसी) और लंदन के इंपीरियल कॉलेज के विशेषज्ञों ने शोध शुरू किया. ''इस परियोजना में हमने इलेक्ट्रिकल रेसिस्टिविटी साउंडिंग तकनीक का प्रयोग किया.

इस तकनीक से जमीन के भीतर पानी की परतों की सटीक मोटाई का आकलन किया जाता है. हमें यह सुनिश्चित करना था कि पश्चिम गंगा बेसिन में यमुना और सतलुज नदियों के बीच एक बड़ी नदी बहा करती थी. यह नदी कांस्य युग और हड़प्पा कालीन पुरातत्व स्थलों के पास से बहती थी. कोई साढ़े तीन हजार साल पहले यह सभ्यता नदी के पानी के धार बदल लेने से लुप्त हो गई. हालांकि सभ्यता के लुप्त होने की दूसरी वजहें भी हो सकती हैं.”

परियोजना के प्रभारी और आइआइटी कानपुर में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर रंजीत सिन्हा ने नई खोज की यह भूमिका रखी. इससे कुछ समय पहले ही अमेरिका में मिसीसिपी नदी घाटी के भूजल तंत्र का अध्ययन करने के लिए इस तकनीक का सफलता से प्रयोग किया जा चुका है. इसके अलावा मिस्र के समानुद इलाके में नील डेल्टा के पास नील नदी की लुप्त हो चुकी धाराओं का नक्शा खींचने में भी इस तकनीक को कामयाबी हासिल हुई है. नील नदी की लुप्त धाराओं के बारे में बने इस नए नक्शे ने कई ऐतिहासिक मान्यताओं को चुनौती भी दी है. साउंड रेसिस्टिविटी तकनीक से सरस्वती नदी के भूमिगत नेटवर्क के इन्हीं साक्ष्यों का पता लगाने के लिए टीम ने पहले चरण में पंजाब में पटियाला और लुधियाना के बीच पडऩे वाले पुरातत्व स्थल कुनाल के पास मुनक गांव, लुधियाना और चंडीगढ़ के बीच के सरहिंद गांव और राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में हड़प्पाकालीन पुरातत्व स्थल कालीबंगा का चयन किया.

2012 के अंत और सदी के पहले महाकुंभ से पहले प्रो. सिन्हा और उनकी टीम का 'इंटरनेशनल यूनियन ऑफ क्वाटरनरी रिसर्च’ के जर्नल क्वाटरनरी जर्नल में एक शोधपत्र छपा. इसका शीर्षक था: जिओ इलेक्ट्रिक रेसिस्टिविटी एविडेंस फॉर सबसरफेस पेलिओचैनल सिस्टम्स एडजासेंट टु हड़प्पन साइट्स इन नॉर्थवेस्ट इंडिया. इसमें दावा किया गया: ''यह अध्ययन पहली बार घग्घर-हाकरा नदियों के भूमिगत जलतंत्र का भू-भौतिकीय (जिओफिजिकल) साक्ष्य प्रस्तुत करता है.” यह शोधपत्र योजना के पहले चरण के पूरा होने के बाद सामने आया और साक्ष्यों की तलाश में अभी यह लुप्त सरस्वती की घाटी में पश्चिम की ओर बढ़ता जाएगा.

ऊंचे हिमालय से उद्गम

पहले साक्ष्य ने तो उस परिकल्पना पर मुहर लगा दी कि सरस्वती नदी घग्घर की तरह हिमालय की तलहटी की जगह सिंधु और सतलुज जैसी नदियों के उद्गम स्थल यानी ऊंचे हिमालय से निकलती थी. अध्ययन की शुरुआत घग्घर नदी की वर्तमान धारा से कहीं दूर सरहिंद गांव से हुई और पहले नतीजे ही चौंकाने वाले आए. सिन्हा बताते हैं, ''दरअसल 1980 के यशपाल के शोधपत्र में इस जगह पर घघ्घर-हाकरा नदियों की लुप्त हो चुकी संभावित सहायक नदी की मौजूदगी की बात कही गई थी. हम इसी सहायक नदी की मौजूदगी की पुष्टि के लिए साक्ष्य जुटा रहे थे.” लेकिन जो नतीजा सामने आया, उससे सरहिंद में जमीन के काफी नीचे साफ पानी से भरी रेत की 40 से 50 मीटर मोटी परत सामने आई. यह घाटी जमीन के भीतर 20 किमी में फैली है.

इसके बीच में पानी की मात्रा किनारों की तुलना में कहीं अधिक है. खास बात यह है कि सरहिंद में सतह पर ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता जिससे अंदाजा लग सके कि जमीन के नीचे इतनी बड़ी नदी घाटी मौजूद है. बल्कि यहां तो जमीन के ठीक नीचे बहुत सख्त सतह है. पानी की इतनी बड़ी मात्रा सहायक नदी में नहीं बल्कि मुख्य नदी में हो सकती है. सिन्हा ने बताया,''भूमिगत नदी घाटी में मिले कंकड़ों की फिंगर प्रिंटिंग बताती है कि यह नदी ऊंचे हिमालय से निकलती थी. कोई 1,000 किमी. की यात्रा कर अरब सागर में गिरती थी. इसके बहाव की तुलना वर्तमान में गंगा नदी से की जा सकती है.”

सरहिंद के इस साक्ष्य ने सरस्वती की घग्घर से इतर स्वतंत्र मौजूदगी पर मुहर लगा दी. इस शोध में तैयार नक्शे के मुताबिक, सरस्वती की सीमा सतलुज को छूती है. यानी सतलुज और सरस्वती के रिश्ते की जो बात ओल्डहैम ने 120 साल पहले सोची थी, भू-भौतिकीय साक्ष्य उस पर पहली बार मुहर लगा रहे थे.

आखिर कैसे सूखी सरस्वती?
तो फिर ये नदियां अलग कैसे हो गईं? विलुप्त सरस्वती नदी की घाटी का पिछले 20 साल से अध्ययन कर रहे पुरातत्व शास्त्री और इलाहाबाद पुरातत्व संग्रहालय के निदेशक राजेश पुरोहित बताते हैं, ''समय के साथ सरस्वती नदी को पानी देने वाले ग्लेशियर सूख गए. इन हालात में या तो नदी का बहाव खत्म हो गया या फिर सिंधु, सतलुज और यमुना जैसी बाद की नदियों ने इस नदी के बहाव क्षेत्र पर कब्जा कर लिया. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान सरस्वती नदी का पानी पूर्व दिशा की ओर और सतलुज नदी का पानी पश्चिम दिशा की ओर खिसकता चला गया. बाद की सभ्यताएं गंगा और उसकी सहायक नदी यमुना (पूर्ववर्ती चंबल) के तटों पर विकसित हुईं. पहले यमुना नदी नहीं थी और चंबल नदी ही बहा करती थी. लेकिन उठापटक के दौर में हिमाचल प्रदेश में पोंटा साहिब के पास नई नदी यमुना ने सरस्वती के जल स्रोत पर कब्जा कर लिया और आगे जाकर इसमें चंबल भी मिल गई.”

यानी सरस्वती की सहायक नदी सतलुज उसका साथ छोड़कर पश्चिम में खिसककर सिंधु में मिल गर्ई और पूर्व में सरस्वती और चंबल की घाटी में यमुना का उदय हो गया. ऐसे में इस बात को बल मिलता है कि भले ही प्रयाग में गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम का कोई भूभौतिकीय साक्ष्य न मिलता हो लेकिन यमुना के सरस्वती के जलमार्ग पर कब्जे का प्रमाण इन नदियों के अलग तरह के रिश्ते की ओर इशारा करता है. उधर, जिन मूल रास्तों से होकर सरस्वती बहा करती थी, उसके बीच में थार का मरुस्थल आ गया. लेकिन इस नदी के पुराने रूप का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है. ऋग्वेद के श्लोक (7.36.6) में कहा गया है, ''हे सातवीं नदी सरस्वती, जो सिंधु और अन्य नदियों की माता है और भूमि को उपजाऊ बनाती है, हमें एक साथ प्रचुर अन्न दो और अपने पानी से सिंचित करो.”

आइआइटी कानपुर के अध्ययन में भी नदी का कुछ ऐसा ही पुराना रूप निखर कर सामने आता है. साउंड रेसिस्टिविटी पर आधारित आंकड़े बताते हैं कि कालीबंगा और मुनक गांव के पास जमीन के नीचे साफ पानी से भरी नदी घाटी की जटिल संरचना मौजूद है. इन दोनों जगहों पर किए गए अध्ययन में पता चला कि जमीन के भीतर 12 किमी से अधिक चौड़ी और 30 मीटर मोटी मीठे पानी से भरी रेत की तह है. जबकि मौजूदा घग्घर नदी की चौड़ाई महज 500 मीटर और गहराई पांच मीटर ही है. जमीन के भीतर मौजूद मीठे पानी से भरी रेत एक जटिल संरचना दिखाती है, जिसमें बहुत-सी अलग-अलग धाराएं एक बड़ी नदी में मिलती दिखती हैं.

सिन्हा के शब्दों में, ''यह जटिल संरचना ऐसी नदी को दिखाती है जो आज से कहीं अधिक बारिश और पानी की मौजूदगी वाले कालखंड में अस्तित्व में थी या फिर नदियों के पानी का विभाजन होने के कारण अब कहीं और बहती है.” अध्ययन आगे बताता है कि इस मीठे पानी से भरी रेत से ऊपर कीचड़ से भरी रेत की परत है. इस परत की मोटाई करीब 10 मीटर है. गाद से भरी यह परत उस दौर की ओर इशारा करती है, जब नदी का पानी सूख गया और उसके ऊपर कीचड़ की परत जमती चली गई. ये दो परतें इस बात का प्रमाण हैं कि प्राचीन नदी बड़े आकार में बहती थी और बाद में सूख गई. और इन दोनों घटनाओं के कहीं बहुत बाद घग्घर जैसी बरसाती नदी वजूद में आई.

सरस्वती से गंगा के तट पर पहुंची सभ्यता
वैज्ञानिक साक्ष्यों की श्रृंखला यहीं नहीं रुकती. इसी शोध टीम के सदस्य और दिल्ली विश्वविद्यालय में जियोलॉजी के सहायक प्रोफेसर डॉ. शशांक शेखर बताते हैं, ''कालीबंगा में घग्घर नदी के दोनों ओर जिस तरह के मिट्टी के ढूह मिलते हैं, उस तरह के ढूह किसी बड़ी नदी की घाटी के आसपास ही बन सकते हैं.” और जिस तरह से कालीबंगा के ढूहों के नीचे से हड़प्पा काल के अवशेष मिलते हैं, उससे इस बात को बल मिलता है कि सरस्वती नदी और हड़प्पा संस्कृति के बीच कोई सीधा रिश्ता था.

कालीबंगा अकेला पुरातत्व स्थल नहीं है बल्कि राजस्थान के हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर जिलों में ऐसे 12 बड़े ढूह चिन्हित किए गए हैं. हड़प्पा सभ्यता के अवशेष पश्चिम में गुजरात तक और पूर्व में मेरठ तक मिले हैं. वहीं इलाहाबाद के पास कौशांबी में हड़प्पा सभ्यता का नया चरण शुरू होने के पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं. इन पुरातात्विक तथ्यों का विश्लेषण करते हुए मेरठ पुरातत्व संग्रहालय के निदेशक डॉ. मनोज गौतम कहते हैं, ''घग्घर-हाकरा या वैदिक सरस्वती के तट पर सिर्फ पूर्व हड़प्पा काल के अवशेष मिलते हैं. जबकि कौशांबी के पास पूर्व हड़प्पा और नव हड़प्पा काल के अवशेष एक साथ मिले हैं. यह संदर्भ सरस्वती नदी के लुप्त होने और गंगा-यमुना के तट पर नई सभ्यता के विकसित होने के तौर पर देखे जा सकते हैं.”

4,000 साल पुराना पानी

आइआइटी ने अभी भले ही पंजाब, हरियाणा और उत्तरी राजस्थान में साउंड रेसिस्टिविटी से सरस्वती का नक्शा तैयार किया हो लेकिन अभी राजस्थान के बाकी हिस्से और गुजरात अपनी बारी की प्रतीक्षा में खड़े हैं. सैटेलाइट इमेज दिखाती है कि सरस्वती की घाटी हरियाणा में कुरुक्षेत्र, कैथल, फतेहाबाद, सिरसा, अनूपगढ़, राजस्थान में श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, थार का मरुस्थल और फिर गुजरात में खंभात की खाड़ी तक जाती थी. अध्ययन के आगे बढऩे पर नदी की बाकी दफन हो चुकी घाटी के मिलने की प्रबल संभावनाएं हैं. राजस्थान के जैसलमेर जिले में बहुत से ऐसे बोरवेल हैं, जिनसे कई साल से अपने आप पानी निकल रहा है. ये बोरवेल 1998 में मिशन सरस्वती योजना के तहत भूमिगत नदी का पता लगाने के लिए खोदे गए थे. इस दौरान केंद्रीय भूजल बोर्ड ने किशनगढ़ से लेकर घोटारू तक 80 किमी के क्षेत्र में 9 नलकूप और राजस्थान भूजल विभाग ने 8 नलकूप खुदवाए. जिले के जालूवाला गांव में गोमती देवी के नलकूप से पिछले दो साल से अपने आप पानी बह रहा है. रेगिस्तान में निकलता पानी लोगों के लिए आश्चर्य से कम नहीं है. इसी तरह अरशद के ट्यूबवेल से भी अविरल जलधारा बह रही है. इस बारे में राजस्थान भूजल विभाग के वैज्ञानिक डॉ. एन.डी. इणखिया कहते हैं कि यह सरस्वती का पानी है या नहीं, यह तो जांच के बाद ही कहा जा सकता है. लेकिन नलकूपों से निकले पानी को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर ने 3,000 से 4,000 साल पुराना माना था. वैसे आइआइटी की कालगणना अभी बाकी है. यानी आने वाले दिनों में कुछ और रोमांचक जानकारियां मिल सकती हैं.

बचा लो विरासत

वैज्ञानिक साक्ष्य और उनके इर्द-गिर्द घूमते ऐतिहासिक, पुरातात्विक और भौगोलिक तथ्य पाताल में लुप्त सरस्वती की गवाही दे रहे हैं. हालांकि विज्ञान आस्था से एक बात में सहमत नहीं है और इस असहमति के बहुत गंभीर मायने भी हैं. मान्यता है कि सरस्वती लुप्त होकर जमीन के अंदर बह रही है, जबकि आइआइटी का शोध कहता है कि नदी बह नहीं रही है, बल्कि उसकी भूमिगत घाटी में जल का बड़ा भंडार है.

प्रो. सिन्हा आगाह करते हैं कि ऐसे में अगर लुप्त नदी घाटी से लगातार बड़े पैमाने पर बोरवेल के जरिए पानी निकाला जाता रहा तो पाताल में पैठी नदी हमेशा के लिए सूख जाएगी, क्योंकि उसमें नए पानी की आपूर्ति नहीं हो रही है. वे सरस्वती की सही-सही पैमाइश इसीलिए कर रहे हैं, ताकि यह बताया जा सके कि कौन-सा पानी सामान्य भूजल है और कौन सा सरस्वती का संरक्षित जल. वैज्ञानिक तो यही चाहते हैं कि पाताल में जमी नदी के पानी का बेहिसाब इस्तेमाल न किया जाए क्योंकि अगर ऐसा किया जाता रहा तो जो सरस्वती कोई 4,000 साल पहले सतह से गायब हुई थी, वह अब पाताल से भी गायब हो जाएगी. नदी को बचाने की जिम्मेदारी अब उन्हीं लोगों की होगी, जिनके पुरखों को हजारों साल पहले इस नदी ने अपनी घाटी में बसाया था.


"अनाज भण्डारण स्थल (7380 ई.पू.) भिर्राना चंडीगढ़"


हड़प्पा सभ्यता का मूल उद्भव सिंधु नहीं बल्कि सरस्वती नदी घाटी में हुआ है। इसका प्रमाण भिर्राना, राखीगढ़ी, फरमाना, गिरवाड आदि पुरास्थलों से प्राप्त अवशेषों से मिलता है। बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण नई दिल्ली के पूर्व संयुक्त महानिदेशक डा. केएन दीक्षित ने ये बातें कही।
बलूचिस्तान, सिंधु क्षेत्र और चोलिस्तान (हकरा नदी क्षेत्र) से प्राप्त मृदभांड को हकरा प्रकार के मृदभांड की संज्ञा दी, जिसके ऊपर मिट्टी का लेप मिलता है। उन्होंने रहमान ढेरी को एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय केंद्र के रूप में प्रस्तुत किया, जहां से लघु पाषाणिक उपकरण, तेज चाक पर निर्मित मृदभांड के अतिरिक्त हस्तनिर्मित मृदभांड भी प्राप्त हुए हैं। उन्हाने घग्घर, सरस्वती, चौतांग नदियों का उद्गम क्षेत्र शिवालिक माना है।