Sudershan
Kumar ग्रेगेरियन कलेण्डर की काल गणना मात्र दो हजार वर्षों के अति अल्प
समय को दर्शाती है। जबकि यूनान की काल गणना 3580 वर्ष, रोम की 2757 वर्ष
यहूदी 5768 वर्ष, मिस्त्र की 28671 वर्ष, पारसी 198875 वर्ष तथा चीन की
96002305 वर्ष पुरानी है। इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो
हमारे ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु 1 अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 112
वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों
में एक-एक पल की गणना की गयी है।
जिस प्रकार ईस्वी सम्वत् का सम्बन्ध ईसा जगत से है उसी प्रकार हिजरी सम्वत् का सम्बन्ध मुस्लिम जगत और हजरत मुहम्मद साहब से है।
किन्तु विक्रमी सम्वत् का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की
प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए
भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की
गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है। इतना ही नहीं, ब्रह्माण्ड के सबसे
पुरातन ग्रंथ वेदों में भी इसका वर्णन है। नव संवत् यानि संवत्सरों का
वर्णन यजुर्वेद के 27वें व 30वें अध्याय के मंत्र क्रमांक क्रमशः 45 व 15
में विस्तार से दिया गया है। विश्व में सौर मण्डल के ग्रहों व नक्षत्रों की
चाल व निरन्तर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके
सूक्ष्मतम भाग आधारित होते हैं।
इसी वैज्ञानिक आधार के कारण ही
पाश्चात्य देशों के अंधानुकरण के बावजूद, चाहे बच्चे के गर्भाधान की बात
हो, जन्म की बात हो, नामकरण की बात हो, गृह प्रवेश या व्यापार प्रारम्भ
करने की बात हो, सभी में हम एक कुशल पंडित के पास जाकर शुभ लग्न व मुहूर्त
पूछते हैं। और तो और, देश के बडे से बडे़ राजनेता भी सत्तासीन होने के लिए
सबसे पहले एक अच्छे मुहूर्त का इंतजार करते हैं जो कि विशुद्ध रूप से
विक्रमी संवत् के पंचांग पर आधारित होता है। भारतीय मान्यतानुसार कोई भी
काम यदि शुभ मुहूर्त में प्रारम्भ किया जाये तो उसकी सफलता में चार चांद लग
जाते हैं। वैसे भी भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है। जो प्रसंग समाज
में हर्ष व उल्लास जगाते हुए एक सही दिशा प्रदान करते हैं उन सभी को हम
उत्सव के रूप में मनाते हैं।
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