मंगलवार, जनवरी 03, 2012

इस्लाम की तरफ़ “वन-वे- ट्रैफ़िक”

Vikram Vk
हिन्दू-मुस्लिम के बीच प्यार-मुहब्बत के इस “खेल” में
अक्सर मामला या तो इस्लाम की तरफ़ “वन-वे-
ट्रैफ़िक” जैसा होता है, अथवा कोई “लम्पट” हिन्दू व्यक्ति अपनी यौन-
पिपासा शान्त करने अथवा किसी लड़की को कैसे भी हो,
पाने के लिये इस्लाम का सहारा लेते हैं। वन-वे
ट्रैफ़िक का मतलब, यदि लड़का मुस्लिम है
और लड़की हिन्दू है तो लड़की इस्लाम स्वीकार करेगी (चाहे नवाब
पटौदी और शर्मिला टैगोर उर्फ़ आयेशा सुल्ताना हों अथवा फ़िरोज़
घांदी और इन्दिरा उर्फ़ मैमूना बेगम हों),
लेकिन यदि लड़की मुस्लिम है और लड़का हिन्दू है, तो लड़के
को ही इस्लाम स्वीकार करना पड़ेगा (चाहे वह
कम्युनिस्ट इन्द्रजीत गुप्त हों या गायक सुमन
चट्टोपाध्याय)… ऊपर मैंने कुछ प्रसिद्ध
लोगों के नाम लिये हैं जिनका समाज में उच्च
स्थान “माना जाता है”, और ऐसे सेलेब्रिटी लोगों से
ही युवा प्रेरणा लेते हैं, आईये देखें “लव जेहाद” के कुछ अन्य
पुराने प्रकरण

(आपके दुर्भाग्य से यह मेरी कल्पना पर आधारित नहीं हैं…
सच्ची घटनाएं हैं)-
(1) जेमिमा मार्सेल गोल्डस्मिथ और इमरान खान –
ब्रिटेन के अरबपति सर जेम्स गोल्डस्मिथ की पुत्री (21),
पाकिस्तानी क्रिकेटर इमरान खान (42) के प्रेमजाल में फ़ँसी,
उससे 1995 में शादी की, इस्लाम
अपनाया (नाम हाइका खान), उर्दू
सीखी, पाकिस्तान गई, वहाँ की तहज़ीब के
अनुसार ढलने की कोशिश की, दो बच्चे (सुलेमान और कासिम) पैदा किये…
नतीजा क्या रहा… तलाक-तलाक- तलाक। अब अपने दो बच्चों के साथ वापस ब्रिटेन।
फ़िर वही सवाल – क्या इमरान खान कम पढ़े-लिखे थे? या आधुनिक(?)
नहीं थे? जब जेमिमा ने इतना “एडजस्ट” करने की कोशिश की तो क्या इमरान खान
थोड़ा “एडजस्ट” नहीं कर सकते थे?
(लेकिन “एडजस्ट” करने के लिये
संस्कारों की भी आवश्यकता होती है)
सुरैया तो हिन्दू नहीं बनीं, उलटे धर्म को सतत कोसने
वाले एक कम्युनिस्ट इन्द्रजीत गुप्त “इफ़्तियार
गनी” जरूर बन गये। इसी प्रकार अच्छे
खासे पढ़े-लिखे अहमद खान (एडवोकेट) ने
अपने निकाह के 50 साल बाद
अपनी पत्नी “शाहबानो” को 62 वर्ष की उम्र में तलाक दिया, जो 5
बच्चों की माँ थी… यहाँ भी वजह थी उनसे आयु में काफ़ी छोटी 20 वर्षीय
लड़की (शायद कम आयु की लड़कियाँ भी एक
कमजोरी हैं?)। इस केस ने समूचे भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ पर अच्छी-
खासी बहस छेड़ी थी।
शाहबानो को गुज़ारा भत्ता देने के लिये सुप्रीम कोर्ट की शरण
लेनी पड़ी, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को राजीव गाँधी ने अपने असाधारण बहुमत के
जरिये “वोटबैंक राजनीति” के चलते पलट दिया,
मुल्लाओं को वरीयता तथा आरिफ़ मोहम्मद
खान जैसे उदारवादी मुस्लिम को दरकिनार किया गया… तात्पर्य
यही कि शिक्षा-दीक्षा या अधिक पढ़े-
लिखे होने से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता,
शरीयत और कुर-आन इनके लिये सर्वोपरि है,
देश-समाज आदि सब बाद में…। (यदि इतना ही प्यार है तो “हिन्दू”
क्यों नहीं बन गये? मैं यह बात इसलिये दोहरा रहा हूं, कि आखिर मुस्लिम
बनाने की जिद क्यों? इसके जवाब में तर्क दिया जा सकता है कि हिन्दू कई
समाजों- जातियों-उपजातियों में बँटा हुआ है, यदि कोई मुस्लिम हिन्दू बनता है
तो उसे किस वर्ण में रखेंगे?
हालांकि यह एक बहाना है क्योंकि इस्लाम के कथित
विद्वान ज़ाकिर नाइक खुद फ़रमा चुके हैं कि इस्लाम “वन-वे ट्रेफ़िक” है, कोई
इसमें आ तो सकता है, लेकिन इसमें से जा नहीं सकता
24 परगना (पश्चिम बंगाल) के निवासी नागेश्वर दास
की पुत्री सरस्वती (21) ने 1997 में अपने से उम्र में काफ़ी बड़े मोहम्मद
मेराजुद्दीन से निकाह किया, इस्लाम अपनाया (नाम साबरा बेगम)। सिर्फ़ 6 साल
का वैवाहिक जीवन और चार बच्चों के बाद
मेराजुद्दीन ने उसे मौखिक तलाक दे दिया और अगले
ही दिन कोलकाता हाइकोर्ट के तलाकनामे (No. 786/475/2003
दिनांक 2।12.03) को तलाक भी हो गया।
अब पाठक खुद ही अन्दाज़ा लगा सकते हैं
कि चार बच्चों के साथ घर से निकाली गई
सरस्वती उर्फ़ साबरा बेगम का क्या हुआ
होगा, न तो वह अपने पिता के घर जा सकती थी, न ही आत्महत्या कर
सकती थी…अक्सर हिन्दुओं और बाकी विश्व
को मूर्ख बनाने के लिये मुस्लिम और
सेकुलर विद्वान(?) यह प्रचार करते हैं कि कम पढ़े-
लिखे तबके में ही इस प्रकार की तलाक
की घटनाएं होती हैं, जबकि हकीकत
कुछ और ही है। क्या इमरान खान या नवाब पटौदी कम पढ़े-लिखे हैं? तो फ़िर
नवाब पटौदी, रविन्द्रनाथ टैगोर के
परिवार से रिश्ता रखने वाली शर्मिला से
शादी करने के लिये इस्लाम छोड़कर,
बंगाली क्यों नहीं बन गये?
यदि उनके “सुपुत्र”(?) सैफ़ अली खान
को अमृता सिंह से इतना ही प्यार
था तो सैफ़, पंजाबी क्यों नहीं बन गया? अब इस उम्र में
अमृता सिंह को बच्चों सहित बेसहारा छोड़कर करीना कपूर से इश्क
की पींगें बढ़ा रहा है, और उसे भी इस्लाम
अपनाने पर मजबूर करेगा, लेकिन खुद पंजाबी नहीं बनेगा (यही है
असली मानसिकता…)। शेख अब्दुल्ला और
उनके बेटे फ़ारुख अब्दुल्ला दोनों ने अंग्रेज
लड़कियों से शादी की, ज़ाहिर है कि उन्हें
इस्लाम में परिवर्तित करने के बाद,
यदि वाकई ये लोग सेकुलर होते
तो खुद ईसाई धर्म अपना लेते और
अंग्रेज बन जाते…? और तो और आधुनिक जमाने में
पैदा हुए इनके पोते यानी कि जम्मू-
कश्मीर के वर्तमान मुख्यमंत्री उमर
अब्दुल्ला ने भी एक हिन्दू लड़की “पायल” से शादी की,
लेकिन खुद हिन्दू नहीं बने, उसे मुसलमान बनाया, तात्पर्य यह
कि “सेकुलरिज़्म” और “इस्लाम” का दूर-दूर तक आपस में कोई
सम्बन्ध नहीं है और जो हमें दिखाया जाता है वह सिर्फ़ ढोंग-
ढकोसला है। जैसे
कि गाँधीजी की पुत्री का विवाह
एक मुस्लिम से हुआ, सुब्रह्मण्यम
स्वामी की पुत्री का निकाह विदेश
सचिव सलमान हैदर के पुत्र से हुआ है,
प्रख्यात बंगाली कवि नज़रुल इस्लाम, हुमायूं
कबीर (पूर्व केन्द्रीय मंत्री) ने भी हिन्दू
लड़कियों से शादी की, क्या इनमें से कोई भी हिन्दू बना? विक्रम VK

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