भोर में आवाज़ देने पर आवाज़ दूर तक जाती है"
माननीय भीमराव अंबेडकर जी उफ्फ नही नहीं आपका नाम तो भीमराव राम जी सकपाल था...
पहले तो मैं आपको जन्म दिवस की और आपके अनुयायियों को आपकी जयंती की शुभकामनाएं देना चाहता हूँ ..
वैसे तो बाकी के दिनों में मैं आपकी प्रशंसा करता था लेकिन आज आलोचना कर रहा हूँ ताकि आप ध्यान से सुन सकें ...
सुन रहें हैं ना ..!
तो सुनिए...
आप एक कुंठित व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति हैं जिसने अपनी कुंठा को सही साबित करने के लिए देश की बड़ी आबादी को भी कुंठा का शिकार बना दिया..
आपने अपनी 22 प्रतिज्ञाओं में बुद्ध की शिक्षा अपनाने की जगह सिर्फ हिन्दू धर्म का विरोध किया है ।
बुद्धत्व की प्राप्ति कुंठा से नही हो सकती है...
आपने बौद्ध धर्म अपनाते समय जो 22 प्रतिज्ञाएं ली थी उनमें से प्रतिज्ञा संख्या आठ जिसमे लिखा गया है कि "मैं ब्राम्हणों द्वारा निष्पादित किसी भी कार्य को नही करूँगा"
तो यह बताईये आपने एक ब्राम्हण द्वारा दिया "सरनेम" क्यों चेंज नही किया ..?
क्यों अम्बेडकर को ढोते रहे आप , चिल्लाकर बोलते की मैं सकपाल हूँ अम्बेडकर नही."
दूसरा एक ब्राम्हण गुरु आपको वजीफा दिलवाने के लिए क्षत्रिय राजा से मदद मांगता है तो आपने क्यों नही उसे ठुकरा दिया.."
क्योंकि यह कार्य तो एक ब्राम्हण के सहयोग से ही निष्पादित हुआ था...
अब आते हैं प्रतिज्ञा संख्या आठ पर जिसमे आप कहते हो कि "मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँ "
तो आपने आरक्षण जैसी विधा को क्यों सपोर्ट किया ..?
हालांकि आरक्षण आपके दिमाग की उपज नही थी इसे तो आपने लपक लिया, यह तो संविधान सभा मे पहले कोई ब्राम्हण नेता ही उठाया था...
खैर आप समानता की बात करते हैं लेकिन वहीं असमानता की पहल क्यों करते हैं ..?
आप कह सकते हो कि जो दबे कुचले थे उन्हें उठाने के बाद ही समानता की बात की जा सकती है ..
लेकिन यह बताईये उस समय राजाओं और जमींदारों के अतिरिक्त किसके घर पुदीना की खेती हो रही थी ..!
देश की अधिकतर जनता गरीब ही तो थी ये जमीन जो आज सबके पास दिख रही है यह तो भूमि सुधार अधिनियम के बाद सबके पास आई....
हाँ अब आप बोल सकते हो कि गरीबी और सामाजिक पिछड़ापन में अंतर है ..!
तो सामाजिक पिछड़ापन अर्थात छुआछूत न ..!!
तो क्या छुआछूत , विभेद केवल अंग्रेजो की बनाई संस्था दलितों के लिए ही था...?
उस समय तो ऐसा था कि दो ब्राम्हण अगर भोजन करने बैठे हैं तो बीच मे एक रुमाल रख लेते थे..
महापात्र ब्राम्हणो को घृणित नज़र से देखा जाता था सिवाय दाहसंस्कार के समय ..
इससे बड़े बड़े छुआछूत भरे पड़े थे जैसे उच्च निम्न गोत्र को देखना विवाह के लिए आदि ...
फिर आप कह सकते हो कि यह छुआछूत नही है बल्कि छुआछूत तो यह है कि सार्वजनिक स्थल पर प्रवेश का निषिद्ध होना, बिल्कुल ऐसा कुछ जगहों पर कुछ विशेष स्तरों पर था लेकिन इसके लिए केवल आप नही लड़ रहे थे बल्कि इन सब चीजों के लिए गांधी, वीर सावरकर जैसे न जाने कितने लोग लड़ रहे थे.....
आपने सार्वभौम समस्या को ठुकरा दिया और केवल व्यक्तिगत को सार्वभौमिक बना दिया...
दरअसल हुआ क्या है न आपने अंग्रेजों की बनाई संस्था दलित को एक नया शोषक और शोषित वर्ग बना दिया है ....
आपने बौद्ध धर्म को भी अपनाया तो कुंठित होकर
अशुध्द अशांत मन से जिसमे आप सिर्फ हिन्दू धर्म के प्रति कुंठा दिखा रहें हैं....
अगर आपको लगता है कि आपके बनाये नव बौद्ध उन्नति कर लेंगे तो आपकी भूल है ,
क्योंकि कुंठित व्यक्ति का विकास उसके सम्पूर्ण नाश के लिए होता है ...
आप दलितों के और समानता के मसीहा बने हैं तो दूसरे सामाजिक योद्धाओं का हक़ छीन कर ..
जैसे मुलायम और लालू ने बीपी सिंह द्वारा दिए गए आरक्षण का पूरा श्रेय लेकर खुद को पिछडों का मसीहा साबित कर दिया....
कितनी अजीब बात है
B. N Rao द्वारा बनाये गये प्रारूप पर सबने बहस किया लेकिन संविधान निर्माता की पदवी आप डकार गए ...
और बैठे बैठे मुस्कुराते रहे...
ये भी नही बोल सके कि एक बहसकर्ता से ज्यादा आपका कोई विशेष योगदान नही है ...
आपकी शादी भी एक ब्राम्हण स्त्री से होती है लेकिन फिर भी आप कुंठित ही रहे, चुनाव हारने के कारण आपने अलगाव का रास्ता चुना जबकि उस समय दलित जनता भी आपको नकार चुकी थी...
आपने नव बौद्ध नामका एक ऐसा वायरस पैदा किया है जो दूसरों को भी हानि पहुंचाएगा ही लेकिन स्वयं का तो सत्यानाश कर बैठेगा.....
फिर आती है बात आपके पांचवे नंबर की प्रतिज्ञा की जिसमे आप कहते हो कि...
" मैं बुद्ध को विष्णु का अवतार नही मानूंगा , इसे केवल पागलपन और झूठा प्रचार मानता हूँ..."
आज बौद्ध धर्म के अधिकतर जितने देश हैं वहां बुद्ध चक्रपाणि के अवतार माने जा रहे हैं और जहां नही माने जा रहे थे वहां भी चक्रपाणि को अब अपनाया जा रहा है ...
बौद्ध धर्म में सनातन मान्यताऐं , क्रियाकलाप घुस रहा है
जिसका प्रमाण म्यामांर और श्रीलंका जैसे कई देश दे रहें हैं....
अगर आप सिर्फ इतना कह देते कि मैं बुद्ध के दिखाए मार्ग पर चलूंगा तो आप तभी बौद्ध हो जाते लेकिन बुद्ध के पांच आर्य सत्यों को पढ़कर भी आप अनार्य ही रहे..
मान्यता बनी कि दलितों को कुएं में पानी नही पीने दिया जा रहा था तो आप आये और दलित को कुएं में ही उठाकर फेंक दिए...
अब दलित इतना पेट भर पानी पी लिया है कि उसके पास डूबने के अतिरिक्त कोई चारा नही है ...
"टीना डाबी इसका प्रमाण है .."
कितनी अजीब बात है कि आपके पहले दलित बिना पानी पिये हज़ारों साल तक जीता रहा ..
क्या स्टेमिना था ...
और दलित तो कुवां खोद ही नही सकता था , हैं न .!!!
आप चाहते तो सनातन को सुधारने के लिए लड़ सकते थे
बिल्कुल उस तरह से जैसे ईसाईयों ने ईसाई धर्म को दो भागों में बांटकर कर किया...
उन ईसाईयों ने सीधा कहा कि मेरा धर्म मेरा भगवान इतना गिरा हुआ नही हो सकता तुम झूठ बोल रहे हो और फिर उनके अपने चर्च हुए जिससे यूरोप उन्नति के मार्ग पर दौड़ चला...
मगर आपने बौद्ध धर्म नही अपनाया आपने बुद्ध का अपमान किया है।
भला अशांत मन से कौन बौद्ध हो सकता है .......!!!!
आपने जिन नव बौद्धों को जन्म दिया है वो देश विरोधी ताकतों के सहयोगी बन बैठे हैं...
अब कभी धरती पर आना तो कुंठा त्यागकर आना तब आप स्वयं से महापुरुष बनोगे अभी तो राजनीतिज्ञों ने अपने स्वार्थ के लिए आपको अपनाया है ...
महापुरुषों के भाग्य में सुख नही होता , हर समय सम्मान नही होता .. इतना होने के बाद भी महापुरुष कुंठित नही होते पर आप कुंठा की प्रतिमूर्ति बन बैठे....
मूल से कटा हुआ वृक्ष अगर अपनी लहलहावट को विकास समझता है तो यह उसकी मूर्खता है क्योंकि अगले ही कुछ क्षण बाद वह सूखने लगता है .....
धन्यवाद बुरा तो नही लगा " भीमराव रामजी सकपाल " जी ..
वैसे लगना भी नही चाहिए क्योंकि इतने दिनों से प्रशंसा करता आ रहा हूँ तो आज अपने व्यक्तित्व का यह भाग भी सुन लीजिए....
Happy bday❤️
मधुलिका यादव शची
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