1920 में अमेरिका में उपभोक्तावाद आने से पहले राष्ट्रीय बचत खाते में 80% बचत निजी थी और 20% बचत कारपोरेट सेक्टर की थी,,,,
उपभोक्तावाद और प्लास्टिक मनी यानी क्रेडिट कार्ड ने आर्थिक बचत का पासा पलट दिया,,,
कंपनियों ने लोगों को चार्वाक दर्शन सिखा दिया यानी
यावत जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् ।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ।।
यानी जब तक जियो सुख से जियो कर्जा लेकर घी पियो ..यह शरीर नश्वर है आग में जल जाना है फिर क्या पता दोबारा इस धरती पर आगमन हो कि ना हो
अब कारपोरेट बचत 107% है, और उपभोक्ता अपनी 80% बचत गवां कर 27% का कर्जदार बन कर्ज चुकाने को मजबूर है,,,,
ठीक यही हाल भारत का भी हो रहा है भारत में भी राष्ट्रीय बचत बहुत तेजी से घट रही है लोग ईएमआई पर खरीदारी के जाल में फंसते जा रहे हैं
एक कर्ज को चुकाने के लिए दूसरा कर्ज फिर दूसरे कर्ज को चुकाने के लिए तीसरा कर्ज और इस तरह उपभोक्तावाद ने हमें कर्ज के जंजाल में जकड़ लिया है रही सही कसर क्रेडिट कार्ड ने पूरी कर दी
कृपया अनावश्यक ऑनलाइन खरीदारी करके कोरपोरेट के जाल में मत फंसिए
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