रविवार, जुलाई 21, 2013

नासा ने माना, अंतरिक्ष में केवल संस्कृत की ही चलती है

नासा ने माना, अंतरिक्ष में केवल संस्कृत की ही चलती है

नई दिल्ली। आजकल हर तरफ अंग्रेजी का बोलबाला है। विज्ञान से लेकर कार्यालयी भाषा के रूप में अपनी जगह बना चुकी अंग्रेजी अब वक्त की जरूरत बन चुकी है। लेकिन अगर हम कहें कि इस जरूरत की भी अपनी कुछ कमजोरियां हैं। जिनका निदान केवल संस्कृत के पास है, तो निश्चित तौर पर आप पूछेंगे कैसे? वह ऐसे कि देवताओं की भाषा संस्कृत अंतरिक्ष में कोई भी मैसेज भेजने के लिए सबसे उपयोगी भाषा के रूप में सामने आई है।space
नासा के वैज्ञानिकों की मानें तो जब वह स्पेस ट्रैवलर्स को मैसेज भेजते थे तो उनके वाक्य उलटे हो जाते थे। इस वजह से मेसेज का अर्थ ही बदल जाता था। उन्होंने दुनिया के कई भाषा में प्रयोग किया लेकिन हर बार यही समस्या आई। आखिर में उन्होंने संस्कृत में मेसेज भेजा क्योंकि संस्कृत के वाक्य उलटे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते हैं। यह रोचक जानकारी हाल ही में एक समारोह में दिल्ली सरकार के प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के निदेशक डॉ. जीतराम भट्ट ने दी।
दिल्ली सरकार की संस्कृत अकादमी ने दिल्ली के करोलबाग, मयूर विहार और गौतम नगर में लोगों को संस्कृत सिखाने के उद्देश्य से तीन शिक्षालयों के उद्धाटन के अवसर पर यह समारोह आयोजित किया। समारोह की अध्यक्षता करते हुए स्वामी प्रणवानन्द महाराज ने कहा कि संस्कृत में सभी प्रकार के उपयोगी विषय हैं, जरूरत उनके प्रसार की है। समारोह में अनेक डॉक्टर, इंजीनियर, अधिकारी और व्यवसायी भी उपस्थित थे।
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नया अविष्कार

वेद ज्ञान को आधार मान कर न्यूलैंड के एक वैज्ञानिक स्टेन क्रो ने एक डिवाइस विकसित कर लिया। ध्वनि पर आधारित इस डिवाइस से मोबाइल की बैटरी चार्ज हो जाती है। इस बिजली की आवश्यकता नहीं होती है।
भारत के वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक ओमप्रकाश पांडे ने वेदों में निहित ज्ञान पर प्रकाश डालते हुए दैनिक भास्कर प्रतिनिधि से बातचीत में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस डिवाइस का नाम भी ओम डिवाइस रखा गया है।

उन्होंने कहा कि संस्कृत को अपौरुष भाषा इसलिए कहा जाता है कि इसकी रचना ब्रह्मांड की ध्वनियों से हुई है।
उन्होंने बताया कि गति सर्वत्र है। चाहे वस्तु स्थिर हो या गतिमान। गति होगी तो ध्वनि निकलेगी। ध्वनि होगी तो शब्द निकलेगा। सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से नौ रश्मियां निकलती हैं और ये चारों और से अलग-अलग निकलती है। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गई। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने। इस तरह सूर्य की जब नौ रश्मियां पृथ्वी पर आती है तो उनका पृथ्वी के आठ बसुओं से टक्कर होती है। सूर्य की नौ रश्मियां और पृथ्वी के आठ बसुओं की आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुई वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गई। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियां पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित है।

उन्होंने बताया कि ब्रह्मांड की ध्वनियों के रहस्य के बारे में वेदों से ही जानकारी मिलती है। इन ध्वनियों को नासा ने भी माना है। इसलिए यह बात साबित होती है कि वैदिक काल में ब्रह्मांड में होने वाली ध्वनियों का ज्ञान ऋषियों को था।

सनातन परमो धर्मा 

 

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