उद्योगपति कुछ भी नहीं बनाते हैं। वह सिर्फ जोखिम उठाना जानता है। उद्योगपति सिर्फ गाली खाने के लिए बना जाता है। इसकी ही वजह से आज जयपुर और राजस्थान के व्यापारी अपने बच्चों को पढा लिखा कर नौकरी के लिए भेज देता है। हो सकता है देश के अन्य हिस्सों में भी यह बदलाव धीमे धीमे आ रहा हो। जैसे जैसे वामपंथ और समाजवाद की दादागिरी बढ़ रही है व्यापार धंधे चौपट हो रहे है।
उद्योगपति सिर्फ पूँजी लगाते है, सरकार की सारी शर्तें पूरी करते है और बैंक से अपनी जिम्मेदारी पर लोन लेते हैं । किस लिए??
जोमाटो हो या paytm या कोई भी अन्य स्टार्टअप ,उनमें से 98% स्टार्टअप , जो कि तथाकथित उद्योगपतियों द्वारा चलाये जाते है घाटे में चले जाते है और 2–3 साल में बंद हो जाते है। मजदूर या कर्मचारी उसके बाद अपनी सैलरी इत्यादि लेकर दूसरी जगह चला जाता है काम करने। रह जाता है सिर्फ एक उद्योगपति। पिछले 25 सालों में कई उद्योगपतियों को घाटा खाने के बाद फिर से नौकरी शुरू करते देखा है।
घाटे के बाद घर, बार फैक्ट्री बिकने का , फैक्टरी में वामपंथी समाजवादी मजदूर नेताओ के द्वारा बेमतलब हड़ताल होने का, फैक्ट्री जलाए जाने का सारा जोखिम उद्योगपति अपने सर लेते हैं। फैक्ट्री में किसी भी दुर्घटना के कारण होने वाले जान माल के नुकसान का जोखिम उद्योगपति का होता है।
मजदूर सुबह 9 बजे फैक्ट्री आता है एक टिफिन बॉक्स लेकर और शाम को 5 बजते ही चला जाता है। उसको कोई लेना देना नही है कि कच्चे माल की कीमत बढ़ रही है या घट रही हैं। टैक्स बढ़ रहा है या घट रहा है। BS4 आया है या BS6 उसको किसी से मतलब नहीं है। कौन सा नया कानून आया कौन सा बदला उससे मतलब नही है।
गुड़गाव में मारुति के प्लांट में दंगा होता है और उद्योगपति के प्रतिनिधि ह्यूमन रिसोर्स अवनीश कुमार देव को मारने पीटने के बाद जिंदा जला दिया जाता है, मज़दूरों के द्वारा।
बंगाल में एक जमाने के उद्योग धंधों का गढ़ हुआ करता था, जूट की फैक्टरियां और बहुत सारे अन्य उद्योग धंधे थे। फिर वामपंथ का भूत चढ़ा सब पर और बंगाल में उद्योग धंधों के नाम पर चील कव्वे उड़ने लगे।
वँहा का मजदूर बंगाल से निकल कर जंहा जंहा उद्योगधन्धे है वँहा जा कर काम कर रहा है। पूरे देश मे बंगाली मजदूर क्यों है क्योंकि बंगाल में पिछले 100 साल में वामपंथ और समाजवाद का भूत लोगो के सर पर चढ़ कर बहुत जोर से नाचा।
धन्यवाद ज्ञापित करें बंगाल के सारे वामपंथी नेताओं को जिन्होंने उद्योगपतियों के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दिया और बंगाल से उद्योग धंधों को खत्म करने में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया।
यदि मजदूर उद्योगधन्धे चलाता तो आज बंगाल के वामपंथी मजदूरों के गढ़ में सबसे ज्यादा उद्योग धंधे होते , लेकिन धरातल की हक़ीक़त ममता बनर्जी और अन्य वामदलों को पता हैं। सरकार आज अपने उद्योग धंधे बेच रही है तो वो सिर्फ इसीलिए क्योंकि मजदूर काम नहीं करना चाह रहा है। चाहे BSNL हो या अन्य सरकारी कंपनियां या सरकारी स्कूल।
नक्सल वामपंथी विचारधारा के ही मानस पुत्र है। जो आदिवासी इनको नजदीक से जानते है वो बताते है कि नक्सली अपने क्षेत्र में वसूली की अर्थव्यवस्था चलाते है। हज़ारो करोड़ो की उगाही है इनकी छतीसगढ झारखंड बिहार के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में।
तालिबान के नृशंस हत्याकांड भी शर्मा जाए ऐसे कांड होते है वामपंथी नक्सलियों के । बंगाल की घटना शायद कुछ लोगों को याद हो जिसमें दो भाइयों को काटा गया और उनके खून से सना चावल उनकी माँ को खिलाया गया। यह सिर्फ एक घटना है , हज़ारों ऐसी घटनाएं हुई है नक्सल प्रभावित जगहों पर जंहा ISIS और तालिबान वालो की भी रूह कांप जाए।
जब वामपंथ इतना खतरनाक है मजदूरों के लिए तो क्यों भारत मे वामपंथ इतना प्रसिध्द है?? पूरे भारत मे छोड़िये पूरे विश्व में वामपंथ का कोई भी सकारात्मक योगदान नही है फिर भी कॉलेज यूनिवर्सिटी में पढ़े लड़के , पत्रकार , अभिनेता व बुद्दिजीवी क्यों पागल है इसके पीछे?
जो धर्म में विश्वास करता है वो अपने धर्म के उत्थान के लिए काम करके आत्म संतुष्टि प्राप्त करता है।
जो जाति , उपजाति में विश्वास रखता है वह अपनी जाति उपजाति के लिए काम करके आत्म संतुष्टि प्राप्त करता है।
जिसको पैसा अच्छा लगता है वो मेहनत करके दिमाग लगाकर पैसे कमाने में आत्मसंतुष्टि हासिल करता है।
फिर आते है राष्ट्र की रक्षा करने वाले जो राष्ट्र के लिए कुछ करने में आत्मसंतुष्टि प्राप्त करते हैं।
कुछ गाय के लिए तो कुछ कुत्तों के लिए अपना जीवन समर्पित करते हैं और आत्मसंतुष्टि हासिल करते हैं।
एक विशेष तबका जब स्कूल कॉलेज में आधा अधूरा विज्ञान पढ़कर धर्म से अलग हो जाता है , दया से अलग हो जाता है और उसके हाँथ कार्ल मार्क्स की विचारधारा लगती है तो उसको लगता है यह बढ़िया है। हम सब वामपंथ की विचारधारा को अपना धर्म बना लेते हैं। शराब भी पी सकते है, कोई धर्म नही करना, हर तरीके का नशा और व्यभिचार भी वामपंथ और उदारवाद की आड़ में स्वतंत्रता के नाम पर किया जा सकता है।
बढ़िया गरीबो के लिए धरना देंगे ,नारे लगाएंगे, हड़ताल करेंगे, देश की सीमाओं के परे लोगों से दोस्ती करेंगे पूरा विश्व बंधुत्व कायम करेंगे। खुद ही सोचिये एक क्रांतिकारी की नज़रों से कितना बढ़िया है यह सब जो कार्ल मार्क्स ने किया था वो सब करने को मिलेगा। अंडरग्राउंड होकर चुपके चुपके सरकार विरोधी कार्य किसी को पता भी नही पड़ेगा।
कला , थियेटर ,नृत्य संगीत अभिनय के नाम पर स्कूल के बच्चों को CAA और NRC जैसे विषयों पर सरकार के प्रति नफरत भरने का सुख।
किताबी ज्ञान शब्द मुझे लगता है कि शायद इन्ही वामपंथी और उदारवादी विचारधाराओं के अनुगामियों के लिए ही खोजा गया होगा बुर्जुआ लोगों द्वारा।
वामपंथी विचारधारा आदर्शवादी और कल्पनाओं की दुनिया मे रहने में ही आंनद मानती है और व्यवहारिक ज्ञान के नाम पर शून्य होती है। वो भी वामपंथी और उदारवादी विचारधारों के अनुयायियों पर फिट बैठती है।
यह कोई संयोग नहीं है कि शराब और नशे की दुनिया मे रहने वाले पंजाबी युवा आजकल वामपंथ की और ज्यादा झुक रहे हैं।
जो वामपंथी देश की सीमाओं को नही मानते हैं वो घर मे मोटे मोटे ताले लगा कर घूमते हैं, उद्योगपतियों के खिलाफ नारे लगवाने वाले वामपंथी नेता पत्रकार कंपनियों के करोड़ो के शेयर लेकर बैठे होते हैं। परम सत्यवादी हरिश्चंद्र लोकतंत्र रक्षक वामपंथी उदारवादी समाजवादी श्री श्री श्री रवीश कुमार जी की सालाना तनख्वाह 3 करोड़ और कुल सम्प्पति लगभग 145 करोड़ है।
देखा जाए तो दोनों वामपंथी पत्रकार कई उद्योगपतियों से कई गुना ज्यादा सम्पत्ति रखे हुए हैं और भारत के 0.1% शीर्ष धनवानों में आते हैं।
गाली देना उद्योगपतियों को तो वैसा ही है जैसे कहानी की मांग पर अभिनेत्रियों की जिस्म की नुमाइश। फिर जैसे ही पैकअप होता है चार बॉउंसरो के बीच में सीधे अपनी कार में बैठ कर निकल जाती हैं अभिनेत्रियां।
Pradeep Tarar
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