बुधवार, जून 23, 2021

आयुर्वेद पर मेरा जल्द का अनुभव

 आयुर्वेद पर मेरा जल्द का अनुभव

नवम्बर 2020 में दांतों में सनसनाहट अर्थात सेंसिविटी होना चालू हुई जिससे पहले कुछ खट्टा खाने में फिर धीरे धीरे कुछ भी खाने में दर्द होने लगा और 20-25 दिन के पश्चात साधारण पानी पीना भी मुश्किल हो गया ।

ये सेंसिविटी मेरे दहिने जबड़े के निचले मसूड़ो में थी इस दरम्यान पहले अपने पारिवारिक डॉ की सलाह पर दवाइयां ली लेकिन कोई आराम नही हुआ ततपश्चात सभी के सलाह पर पहली बार मैंने डेंटिस्ट जो हमारे मुहल्ले में ही हैं और प्रसिद्ध और अच्छे माने जाते हैं उन का रुख किया।

जहाँ उन्होंने मेरे दांतो का चेक अप किया पर उन्हें कुछ भी समझ नही आया , साथ उन्होंने मेरे दाँतो की तारीफ भी की आपके दाँतो में कीड़ा या कोई समस्या जैसा नजर नही आ रहा और ये काफी मजबूत बनावट है।

तब उनकी जिज्ञासा मेरे दाँतो के मजबूती जानने की हुई तो मैंने उन्हें बताया ये सिर्फ बचपन से नीम की दातुन करने बाकी वजह से मजबूत है।
फिलहाल आजकल व्यस्तता और अनुपलब्धता की वजह से दातुन का इस्तेमाल कभी कभी ही हो पाता है।
ये कहकर हमने दर्द से छुटकारा का इलाज करने को कहा तो डॉक्टर साहब ने एक हफ्ते (आराम न मिलने पर दुबारा)की दवा लिखकर अपनी फीस ले हमे विदा कर दिया।
कुल खर्च एक हफ्ते की दवा का मिलाकर करीब 900₹ आया , इस दवा से दर्द में आराम मिला परन्तु दवा समाप्त दर्द फिर चालू और खाना पीना दुश्वार।

ये दवाइयां करीब 35 दिन खाने के बाद हालात जस के तस, फिर 5 जनवरी 2021 को मै अपने ऑफिशियल कार्य हेतु हल्द्वानी से अल्मोड़ा के निकला और काकड़ी घाट पर #पहाड़ी_नून की दुकान देखकर कौतूहल बस रुक गया , दुकान का संचालन दीपाजी नाम की महिला कर रही थी उनसे बातचीत और उनके प्रोडक्ट की जानकारी लेने लगा और सहर्ष वो अपने पहाड़ी समानो और उनकी खासियत हमे बताती रही , इसी दरम्यान हमने उनसे यूं ही किसी पूंछा की कोई जड़ी बूटी क्या हमें दांत दर्द से निजात दिला सकती है ।
मैन उन्हें ये भी बताया की मैं कई दिनों से सेंसिविटी की वजह से कुछ ढंग से खा भी नही पा रहा हूँ।

तो उन्होंने ने हमे अपने पास एक छोटी सी पाली पैक से कालीमिर्च सी दिखने वाली बूटी के चार दाने दिये और दाँत के नीचे जहाँ दर्द हो रहा था वहाँ दबाने को कहा और बताया की आप इसको ऐसे ही रखिये और 45 मिनिट कुछ भी न खाइये न पीजिये।
हमे चूंकि अल्मोड़ा जाना था और वापसी भी करनी थी तो उनसे वापसी में कुछ खरीदारी का बोल कर मैं अल्मोड़ा चला गया , परन्तु उस औषधि ने कमाल किया दाँतो में रखने पर अजीब सा कसैला पन था और झनझनाहट महसूस होती रही लेकिन एक घंटे के पश्चात मैंने कई दिनों बाद अल्मोड़ा में कुछ खाया जिसमें सेंसिविटी कम महसूस हुई।

तो लौटते वक्त मैंने कई चीजों के साथ मैंने #दीपाजी से वो जड़ी बूटी भी माँगी जिसका नाम उन्होंने #तिमूर_की_बूटी बताया वो भी ले लिया जिसकी कीमत 50 ₹ की 50 ग्राम थी, परन्तु इसके सात आठ दिन के प्रयोग के बाद आजतक मुझे दुबारा सेंसिविटी नही हुई ।

फिर ये #तिमूर और भी कई लोगों को दी और सभी ने इसके फायदे बताये।

ये मेरा व्यक्तिगत और ताज़ा अनुभव है कवावखंदा पहाड़ी धनिया  

तुमड़ी के बीज या कहिये कि फल हैं ये,,, आमतौर पर आयुर्वेदिक जड़ी बूटी बेचने वाली दुकान (जिसे अत्तार भी कहते हैं)पर आराम से मिल जाते हैं,,,, अधिकतर आयुर्वेदिक दंत मंजनों में इनका इस्तेमाल किया जाता है,,, पहाडों पर सड़को के किनारे ही काँटेदार झाड़ीनुमा पौधे होते हैं इसके ,,,,

अपने आस पास की किसी किराने की दुकान पर जाइये और उनसे 'तेजबल' मांगिये वही है ये....गर्म मसाले में भी यूज़ होता है ये


#मिसिर_जी_का_अनुभव 



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