गुरुवार, जुलाई 30, 2020

#सलीम_की_सौतेली_मां_थी_अनारकली !

#सलीम_की_सौतेली_मां_थी_अनारकली !
" तथ्य जो कभी बताया/ पढ़ाया ही नही गया "

अनारकली का नाम #मुग़लिया सल्तनत की सबसे रोमांचक प्रेम कहानी से जुड़ा हुआ है। सम्राट अकबर के बेटे #सलीम की प्रेमिका के तौर पर प्रसिद्द #अनारकली को ज्यादातर लोग एक काल्पनिक पात्र मानते हैं। प्रचलित कथाओं में अनारकली अकबर के दरबार की एक खूबसूरत नर्तकी थी जिसे शहजादा सलीम दिल दे बैठा था और जो शाही अहंकार और गद्दी की सियासत की भेंट चढ़कर दीवारों में चिनवा दी गई। वस्तुतः इस प्रेम कहानी की हकीकत कुछ और है। यह एक वर्जित और नाजायज़ रिश्ता था जिसे हमारे कुछ अदीबों और फिल्मकारों ने लैला-मजनू और शीरी-फरहाद की तर्ज़ पर ट्रैजिक प्रेमकथा में तब्दील करने की नीयत से न सिर्फ इतिहास बल्कि नैतिक और पारिवारिक मूल्यों के साथ भी खिलवाड़ किया।

अनारकली के ज़िक्र इतिहास में कम, विदेशी पर्यटकों की यात्रा विवरणों में ज्यादा आए है। एक वास्तविक व्यक्ति के रूप में उसकी चर्चा ब्रिटिश लेखक #सैमुअल_परचास द्वारा संपादित 1625 की एक किताब ‘परचास हिज पिलग्रिम्स’ में हुई है। इस किताब में 1611 में लाहौर की यात्रा करने वाले अंग्रेज व्यापारी #विलियम_फिंच ने बाबा शेख फरीद की मस्जिद के पास अकबर की एक प्रिय बीवी अनारकली की कब्र देखने की बात कही है। उसने अनारकली को अकबर के एक बेटे #दानियाल की मां बताया है जिसका शहजादे सलीम के साथ #नाजायज़ रिश्ता था। तब अनारकली #चवालीस साल की थी और सलीम #तीस साल का। इस रिश्ते से नाराज़ अकबर ने अनारकली को महल की एक दीवार में चिनवा दिया था। सलीम ने बादशाह बनने के बाद अनारकली की याद में एक आलीशान मकबरा तामीर करने का आदेश दिया था जो फिंच की यात्रा के समय अभी निर्माणाधीन था। फिंच के पांच साल बाद ब्रिटेन के एक पादरी #एडवर्ड_टैरी ने अपनी यात्रा रिपोर्ताज में लिखा है कि अकबर ने अपनी सबसे प्रिय पत्नी #नादिरा_बेगम उर्फ़ अनारकली के साथ नाज़ायज रिश्ते के कारण शहज़ादे सलीम को उत्तराधिकार से वंचित कर दिया था। वह अनारकली के बेटे दानियाल को उत्तराधिकार सौंपना चाहता था, लेकिन दानियाल की मौत के कारण मृत्युशैया पर उसने अपना आदेश वापस ले लिया था। 'द लास्ट स्प्रिंग : द लाइव्स एंड टाइम्स ऑफ द ग्रेट मुगलस' के लेखक #अब्राहम एराली ने भी अनारकली को अकबर की बीवी और उसके बेटे दानियाल की मां बताया है। इतिहासकार #अब्दुल_लतीफ ने 'तारीख-ए-लाहौर' में लिखा है कि सलीम से इश्क के चलते अकबर की एक बीवी अनारकली को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इतिहासकार हेरंब चतुर्वेदी ने भी इस रिश्ते को नाजायज़ बताया है। कुछ लोग अनारकली को सिर्फ इसीलिए खारिज़ करते हैं कि अबुल फ़ज़ल की किताब 'आईने अकबरी' में उसका ज़िक्र नहीं है। उन्हें समझना चाहिए कि अकबर के एक दरबारी इतिहासकार की किताब में ऐसे वर्जित संबंधों का ज़िक्र हो भी कैसे सकता था ?

अनारकली अकबर के दरबार की रक्कासा नहीं, अकबर की एक प्रिय पत्नी और सलीम की सौतेली मां थी। उसकी वास्तविकता का सबसे बड़ा सबूत लाहौर में मौज़ूद अनारकली का मक़बरा और कब्र है। जहांगीर द्वारा अपने शासनकाल में बनवाए इस मक़बरे को लोग दूसरा ताजमहल कहते हैं। इसी मकबरे के भीतर अनारकली की कब्र है जो उन्हीं दो दीवारों के बीच बनी बताई जाती है जिनमें अनारकली को चिनवा दिया गया था। कब्र पर जहांगीर ने दो मिसरे खुदवाए हैं जिनका अनुवाद देखिए - अगर मैं अपनी प्रिया का चेहरा एक बार फिर अपनी दोनों हथेलियों में थाम सकूं तो मैं क़यामत के दिन तक ख़ुदा का शुक्रगुज़ार रहूंगा !

( आदरणीय #Dhruv_Gupt जी द्वारा लिखित )
Iqbal Singh Patwari जी की वाल से

सोमवार, जुलाई 27, 2020

सिख इतिहास के साथ धोखा---मियां मीर द्वारा श्री हरिमन्दिर की नींव रखने का झूठ

सिख इतिहास के साथ धोखा---मियां मीर द्वारा श्री हरिमन्दिर की नींव रखने का झूठ

---राजिंदर सिंह

[सोशल मीडिया से ज्ञात हुआ कि अयोध्या में होने वाले राम मंदिर के शिलान्यास के कार्यक्रम में एक मुस्लिम मुहम्मद फैयाज खान द्वारा मंदिर की नींव में मिट्टी डालने की व्यवस्था मंदिर निर्माण कमेटी द्वारा की जा रही हैं। आज से 100 वर्ष बाद यह प्रचलित हो जायेगा कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण एक मुसलमान द्वारा किया गया था। हम मंदिर निर्माण कमेटी के सदस्यों से आग्रह करेंगे कि वे ऐसा आत्मघाती कदम न उठाये। ऐसा ही एक असत्य कथन अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के विषय में प्रचलित हैं। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के विषय में प्रचलित असत्य कथन का निराकरण स्वर्गीय राजेंदर जी ने अपने इस लेख 
में किया हैं। संयोग देखिये कि राजेंदर सिंह जी ने ही बाबरी मस्जिद विध्वंश मामले में अदालत के समक्ष सिख पंथ सम्बंधित ऐतिहासिक पुस्तकों के आधार पर साक्षी दी थी कि गुरु नानक अपने जीवन काल में अयोध्याय में राम मंदिर के दर्शन करने आये थे। उन्हीं का गवाही के आधार पर अदालत ने यह माना था की अयोध्या में बाबरी मस्जिद से पहले राम मंदिर था।]


यह उल्लेखनीय है कि सिक्ख इतिहास के मूल स्रोतों में यही बताया गया है कि श्री हरिमन्दिर की नींव स्वयं श्रीगुरु अर्जुनदेव (१६१०-१६६३ वि•=१५५३-१६०६ ई•) ने अपने कर-कमलों से रक्खी थी। बहुत बाद में यह बात उड़ा दी गई कि यह नींव श्री पंचम गुरु जी ने नहीं बल्कि मुसलमान पीर-फ़क़ीर या दरवेश शेख़ मुहम्मद=मियां मीर (१६०४-१६९२ वि•=१५४७-१६३५ ई•) ने रक्खी थी। वस्तुतः इस उत्तरवर्ती उड़ाई बात में कोई सार नहीं है। यहां यह विचारणीय है कि मियां मीर द्वारा श्री हरिमन्दिर की नींव रखने की इस निराधार और झूठी बात को किसने पहले-पहल तूल देकर उड़ाया।

यह बात ध्यान देने योग्य है कि उन्नीसवीं शती के उत्तरार्द्ध में पंजाब के तत्कालीन गवर्नर हेनरी डेविस के अधीन कार्यरत लेखक कन्हैयालाल हिन्दी ने अपनी फ़ारसी रचना तारीख़े पंजाब (१९३२ विक्रमी=१८७५ ईसवी में श्रीगुरु अर्जुनदेव और उनसे सम्बन्धित सारे प्रसंग का उल्लेख करते हुए मियां मीर का नाम तक नहीं लिया। इससे यह भली-भांति स्पष्ट हो जाता है कि मियां मीर द्वारा हरिमन्दिर की नींव रखने या रखवाए जाने की लिखित-कल्पना १९३२ वि•=१८७५ ई• के बाद किसी समय प्रकाश में आई होगी।

ज्ञानी ज्ञान सिंह कृत श्री गुरु पन्थ प्रकाश के पहले पत्थरछापा संस्करण (दर मतबा मुर्तज़वी, दिल्ली, १९३६ विक्रमी=१८७९ ई•) में भी मियां मीर वाली कल्पना को कोई स्थान प्राप्त नहीं है। किन्तु इसी ग्रन्थ श्री गुरु पन्थ प्रकाश के दूसरे पत्थरछापा संस्करण (दीवान बूटा सिंह द्वारा मुद्रित, लाहौर, २० चैत्र १९४६ वि• = मार्च १८८९ ई•) पूर्वार्द्ध पृष्ठ २१२-२१३ पर पहली बार हरिमन्दिर की नींव रखने के सन्दर्भ में मियां मीर का उल्लेख मिलता है। उसके बाद उन्हीं की प्रसिद्ध रचना तवारीख़ गुरू ख़ालसा (भाग-१, गुरु गोविन्द सिंह प्रेस, सियालकोट, १९४८ विक्रमी=१८९१ ईसवी) के पृष्ठ १९७ पर इसी बात को दोहराया गया है।

इस पर भी ज्ञानी ज्ञान सिंह मियां मीर वाली बात को तूल देने वाले सबसे पहले व्यक्ति नहीं है। वस्तुतः इस बात को सबसे पहली बार तूल देने वाला एक अंग्रेज़ अधिकारी था।
ई• निकौल ने मियां मीर की बात उड़ाई
हरिमन्दिर की नींव रखने का श्रेय मियां मीर को देने की बात अमृतसर की म्यूनिसिपल कमेटी के सेक्रेटरी ई• निकौल (E. Nicholl) ने उड़ाई थी। दि पंजाब नोट्स एण्ड क्वैरीज़ (१८४९-१८८४), जिल्द-१, टाइप्ड कापी, एकाऊंट नं• १२१४ (सिक्ख रेफ़रेंस लाइब्रेरी, अमृतसर) के पृष्ठ १४१ पर ई• निकौल ने यह नोट दर्ज किया है :

"The foundation stone of the Hari-mandir was laid by Mian Mir •• between whom and Guru Ram Das there existed a strong frendship."

[ हरिमन्दिर की नींव का पत्थर मियां मीर ने स्थापित किया था •• जिसमें और गुरु राम दास में बड़ी गहरी मित्रता थी ]।

बस ! इतना ही नोट लिखा मिलता है। ई• निकौल ने इसका स्रोत नहीं बताया है। इस प्रकार बिना आधार बताए इस अंग्रेज़ अधिकारी ने श्री हरिमन्दिर की नींव रखने का सारा श्रेय मियां मीर को दे डाला।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि क़ादिरी सूफ़ी सिलसिले के लाहौरवासी सूफ़ी पीर शेख़ मुहम्मद=मियां मीर (९३८-१०४५ हि•=१६०४-१६९२ वि•=१५४७-१६३५ ई•) और गुरु अर्जुनदेव (१६१०-१६६३ वि•=१५५३-
१६०६ ई•) दोनों समकालीन थे। इतना होने पर भी ई• निकौल के उपरोक्त निराधार और नितान्त काल्पनिक नोट से पहले के जितने भी सिक्ख स्रोत मिलते हैं, उनमें से किसी में भी श्रीगुरु रामदास या श्रीगुरु अर्जुन देव के साथ हरिमन्दिर की नींव रखने के सन्दर्भ में मियां मीर का उल्लेख नहीं मिलता।

अंग्रेज़ी प्रभाव से सिंघ-सभाओं का गठन

ई• निकौल की उपरोक्त निराधार टिप्पणी के काल से थोड़ा पहले ही पंजाब में अलगाववाद के अंग्रेज़ी बीज बोए गए थे। सन् १८७३ में उस बीज का अंकुर श्री गुरु सिंघ सभा, अमृतसर के रूप में फूट निकला था। इस अंकुरित सिंघ सभा से प्रेरणा लेकर २ नवम्बर १८७९ ई• को सिंघ सभा, लाहौर अस्तित्व में आई। विशुद्ध पृथक्ता-वादी विचारों की स्थापना करने वाली इस नवजात सभा के प्रधान बूटा सिंह थे।

ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि दीवान बूटा सिंह के मुद्रणालय=छापेख़ाने में ही ज्ञानी ज्ञान सिंह कृत श्री गुरु पन्थ प्रकाश का दूसरा पत्थरछापा संस्करण (लाहौर, २० चैत्र १९४६ विक्रमी=मार्च १८८९ ई•) तैयार हुआ था। दीवान बूटा सिंह और उनके द्वारा स्थापित सिंघ सभा, लाहौर की अंग्रेज़-भक्ति जगत् प्रसिद्ध है।

सिंघ साहिब ज्ञानी कृपाल सिंह (श्री अकाल तख़्त साहिब के भूतपूर्व जत्थेदार और श्री हरिमन्दिर के भूतपूर्व प्रमुख ग्रन्थी) द्वारा सम्पादित "श्री गुरु पन्थ प्रकाश" में लाहौर और अमृतसर दोनों के पत्थरछापा संस्करणों (क्रमशः २० चैत्र १९४६ वि• और ज्येष्ठ शुक्ला ४, १९४६ वि• को प्रकाशित) का उपयोग हुआ है। अजीत नगर, अमृतसर से २०३४ वि•=१९७७ ई• में प्रकाशित इस टाइप्ड-संस्करण की कुल २५० पृष्ठों में छपी प्रस्तावना के पृष्ठ ९०-९४ पर ज्ञानी कृपाल सिंह सप्रमाण बताते हैं कि दीवान बूटा सिंह द्वारा मुद्रित श्री गुरु पन्थ प्रकाश (पत्थरछापा संस्करण, लाहौर, २० चैत्र १९४६ वि•=मार्च १८८९ ई•) के अनेक स्थलों पर प्रक्षेप हुआ है।

ज्ञानी ज्ञान सिंह की लाहौर से प्रकाशित इस प्रक्षिप्त रचना श्री गुरु पन्थ प्रकाश में पहली बार मियां मीर का उल्लेख इस प्रकार किया गया है :

बिस्नदेव जहि कार कराई। हरि पौड़ी गुरु रची तहांई।
संमत सोलां सै इकताली। मैं, मंदर यहि रचा बिसाली।
मींआ मीर तै नीउ रखाई। कारीगरे पलटि कर लाई।
यहि पिख पुन गुर यों बच कहे। धरी तुरक की नीउ न रहे।
इक बार जर तै उड जैहै। पुन सिखन कर तै दिढ ह्वै ह्वै।
कह्यो जैस गुर भयो तैस है

[ विष्णुदेव ने जहां कारसेवा कराई थी, गुरु अर्जुनदेव ने वहीं हरि की पौड़ियां बनाई थीं। सम्वत् १६४१ विक्रमी में यह विशाल हरिमन्दिर रचा था। गुरु जी ने मियां मीर से इसकी नींव रखवाई थी, किन्तु कारीगर ने नींव की ईंट पलट कर लगा दी। यह देख कर गुरु जी ने पुनः यह वचन कहे : तुरक=मुसलमान द्वारा धरी गई नींव स्थिर न रहेगी, एक बार यह जड़ से उखड़ जाएगी, फिर यह सिक्खों द्वारा दृढ़ होगी। गुरु जी ने जैसा कहा था, आगे चलकर वैसा ही हुआ है ]।

इस प्रकार एक अंग्रेज़-भक्त दीवान के मुद्रणालय में छपी उक्त प्रक्षिप्त रचना में वस्तुतः मियां मीर सम्बन्धी प्रसंग की नींव रक्खी गई। यह सब अंग्रेज़ विचारकों की कल्पना का पिष्ठ-पेषण मात्र था जो आगे चलकर अपनी मुख्यधारा से धीरे-धीरे कटते जा रहे अलगाव-वादी सिक्ख इतिहासकारों के बार-बार झूठे प्रचार से एक ऐतिहासिक तथ्य के रूप में प्रसिद्ध होता चला गया। सच तो यही है कि इसमें कोई सार नहीं।

वस्तुतः श्री गुरु पन्थ प्रकाश के उपरोक्त दूसरे पत्थर छापा संस्करण के इस प्रसंग की अविश्वसनीयता इस बात से और अधिक पुष्ट हो जाती है कि इसके तीसरे पत्थर-छापा संस्करण (भाई काका सिंह की आज्ञा से मतबा चश्मे नूर, श्री अमृतसर द्वारा लाला नृसिंहदास के ऐहतमाम में ज्येष्ठ शुक्ला ४, रविवार १९४६ विक्रमी को प्रकाशित) में मियां मीर द्वारा श्री हरिमन्दिर की नींव रखने का कोई उल्लेख नहीं किया गया है।

ज्ञानी ज्ञान सिंह पर सिंघ सभा का प्रभाव

ज्ञानी ज्ञान सिंह अपनी एक और रचना श्री रिपुदमन प्रकाश (भूपेन्द्र स्टेट, पटियाला, १९७६ वि•=१९१९ ई•) में बताते हैं :

उन्नी सौ बत्ती बिखै, बैठ सुधासर माहि।
तवारीख़ गुरू ख़ालसा, रची सहित उतसाहि।

इस काव्यांश से ज्ञात होता है कि ज्ञानी ज्ञान सिंह १९३२ विक्रमी=१८७५ ईसवी तक सुधासर=अमृतसर आ बसे थे जहां उन्होंने बड़े उत्साह से तवारीख़ गुरू ख़ालसा लिखना प्रारम्भ कर दिया था। इस समय तक यहां पर "सिंघ सभा" का गठन हो चुका था। तवारीख़ गुरू ख़ालसा के प्रकाशित हो चुके पहले तीन भागों के मुख पृष्ठों पर इनका प्रकाशन-वर्ष इस प्रकार दिया है :

१• गुरू ख़ालसा १९४८ वि• = १८९१ ई•
२• शमशेर ख़ालसा १९४९ वि• = १८९२ ई•
३• राज ख़ालसा १९४९ वि• = १८९३ ई•

इन पुस्तकों के प्रकाशित होने तक सिंघ सभाओं का प्रभाव बहुत बढ़ चुका था। लाहौर में अंग्रेज़-भक्त प्रो• गुरमुख सिंह और दीवान बूटा सिंह के प्रयत्नों से सिंघ सभा, लाहौर का गठन २ नवम्बर १८७९ ई• को हो गया था। इसे ११ अप्रैल १८८० ई• में सिंघ सभा, अमृतसर में मिला दिया गया और तब दोनों का संयुक्त नाम "श्री गुरू सिंघ सभा जनरल" रक्ख दिया गया।

फिर प्रो• गुरमुख सिंह के प्रयत्नों से स्थान-स्थान पर घूम-फिर कर अनेकानेक सिंघ सभाओं का बनाया जाना प्रारम्भ हुआ। इसी समय एक केन्द्रीय जत्थेबन्दी की आवश्यकता समझी गई। इसकी पूर्ति हेतु १८८३ ई• में "ख़ालसा दीवान" की स्थापना की गई जो बहुत-सी सिंघ सभाओं के गठजोड़ का परिणाम था।

इसके बाद तो सिंघ सभाओं की संख्या के साथ ही "ख़ालसा दीवान" का घेरा भी बढ़ता चला गया। वैशाखी और दीवाली जैसे त्यौहारों पर इस दीवान द्वारा ऐसे मेले आयोजित किए जाने लगे जिनमें हिन्दुओं जैसी सिक्ख रीतियों, ठाकुरों=देवमूर्तियों और विशेषकर श्री हरिमन्दिर के प्रमुख पूजास्थल और परिक्रमा मार्ग में प्रतिष्ठित देवमूर्तियों की पूजा इत्यादि विषयों की निषेधपरक आलोचना की जाती थी।

इस प्रकार की आलोचना द्वारा सिक्ख पन्थ को एक ऐसी दिशा की ओर ले जाने का प्रयास किया जा रहा था जो भारतवर्ष की मुख्य सांस्कृतिक धारा से किसी-न-किसी अंश से दूर ले जाने वाला था। वस्तुतः अंग्रेज़ विचारकों के सम्पर्क और प्रभाव में आए सिक्ख- विद्वानों के मानस से इसी समय से अलगाववाद की वह धारा फूट निकली जिसके फलस्वरूप सन् १९८० के दशक में इसने सारे पंजाब में बड़ा ही उग्र रूप धारण कर लिया था।

सन् १८७३-१८९० के जिस काल में अंग्रेजों की भारत को जातियों-उपजातियों में बांटकर रखने वाली राष्ट्र-घाती मानसिकता से प्रभावित प्रो• गुरमुख सिंह और दीवान बूटा सिंह जैसे सिक्ख-नेता और विचारक सिंघ सभाओं और ख़ालसा दीवान के माध्यम से सिक्ख-समाज को मनचाही दिशा प्रदान कर रहे थे, उसी अन्तराल में ज्ञानी ज्ञान सिंह अपनी रचना तवारीख़ गुरू ख़ालसा के लेखन-कार्य को अमृतसर में रहते हुए ही अन्तिम रूप दे रहे थे। उधर श्री गुरू सिंघ सभा जनरल और ख़ालसा दीवान का प्रमुख कार्यालय भी अमृतसर ही में था। अतः यह बात मानने योग्य नहीं हो सकती कि ज्ञानी ज्ञान सिंह इन दोनों संस्थाओं के कार्यकलापों और अंग्रेज़ी मानसिकता से परिचित न रहे हों और उन पर इनका कोई प्रभाव न पड़ा हो।

तवारीख़ गुरू ख़ालसा पर अंग्रेज़ी प्रभाव

तवारीख़ गुरू ख़ालसा के भाग-१ (गुरू ख़ालसा, १९४८ वि•=१८९१ ई•) का अवलोकन करने पर यह ज्ञात होता है कि ज्ञानी ज्ञान सिंह के लेखन-कार्य पर अमृतसर की म्युनिसिपल कमेटी के तत्कालीन सेक्रेटरी ई• निकौल द्वारा मियां मीर के हाथों हरिमन्दिर की नींव रक्खे जाने सम्बन्धी फैलाए गए शिगूफ़े का प्रभाव अवश्य पड़ गया था। इस शिगूफ़े से प्रभावित होकर वह अपनी इस रचना के पृष्ठ १९७ पर लिखते हैं :

"यद्यपि श्री अमृतसर तालाब (सरोवर) सम्वत् १६३३ वि• में गुरु रामदास ने भी पटवाया था परन्तु पांचवें गुरु ने अधिक खुदवाकर पक्का करवाया और पुल बंधवाया है। इस तीर्थ के बीच में १ माघ सम्वत् १६४५ वि• और साल ११९ गुरु (नानकशाही) में गुरु वार को हरिमन्दिर की नींव रक्खी थी।

उस वक़्त मियां मीर साहिब, मशहूर पीर जो गुरु साहिब के साथ बहुत प्रेम रखता था, अचानक आ गया। गुरु जी ने उसका मान रखने के वास्ते उसके हाथों पहली ईंट रखवाई परन्तु बिना जाने उसने उलटी रक्ख दी, राज (मिस्त्री) ने उठाकर फिर सीधी करके रक्खी। गुरु जी ने कहा : यह मन्दिर गिर कर फिर बनेगा। यही बात सच हुई।

सम्वत् १८१८ विक्रमी में अहमदशाह दुरानी बारूद के साथ इस मन्दिर को उखाड़ गया। फिर ११ वैशाख सम्वत् १८२१ में गुरुवार को बुड्ढा दल ख़ालसा ने सर-दार जस्सा सिंह आहलुवालिया के हाथों नींव रखवाई और यह टहल (सेवा) दीवान देसराज सिरसा वाले खत्री के सुपुर्द की गई।"

इस स्थल पर ज्ञानी ज्ञान सिंह ने मियां मीर के अचा-नक पहुंचने और हरिमन्दिर की नींव की पहली ईंट रक्खे जाने के सम्बन्ध में जो कुछ भी लिखा है उसके मूल स्रोत का कहीं कोई उल्लेख नहीं किया है। इससे यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है कि ज्ञानी ज्ञान सिंह सदृश विद्वान् भी उन दिनों अंग्रेज़ अधिकारी द्वारा छोड़े गए पूर्व चर्चित शिगूफ़े से प्रभावित हो गए थे। वस्तुतः इस शिगूफ़े और उस पर आधारित लेखन-कार्य में कोई सार नहीं।

प्राचीन परम्परा के पक्षधर विद्वान्

श्रीगुरु अर्जुनदेव के मामा और शिष्य भाई गुरदास (१६०२-१६९४ वि•) से लेकर १९३२ वि•=१८७९ ई• तक के जितने भी प्राचीन स्रोत हैं उन सब में श्री हरि-मन्दिर की नींव रखने के सन्दर्भ में मियां मीर का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। जैसा कि प्रमाण सहित सिद्ध किया जा चुका है कि प्राचीन सिक्ख परम्परा के अनु-सार श्री हरिमन्दिर जी की नींव स्वयं श्रीगुरु अर्जुनदेव ने ही रक्खी थी। इस प्रचीन परम्परा के पक्षधर विद्वानों में से कुछ एक के विचार इस प्रकार प्रस्तुत हैं :

१• मैक्स आर्थर मैकालिफ़ (१८३७-१९२३ ई•) से प्रेरित होकर अलगाववादी रचना "हम हिन्दू नहीं" (१८९८ ई•) लिखने वाले भाई काहन सिंह नाभा (१८६१-१९३८ ई•) अपनी एक अन्य रचना महान कोश में बताते हैं :
"श्रीगुरु अर्जुनदेव ने •• सम्वत् १६४३ में सरोवर को पक्का करना आरम्भ किया और नाम अमृतसर रक्खा (सरोवर की लम्बाई ५०० फ़ुट, चौड़ाई ४९० फ़ुट और गहराई १७ फ़ुट है), जिससे शनै-शनै नगर का नाम भी यही हो गया। १ माघ सम्वत् १६४५ को पांचवें सत्गुरु ने ताल के मध्य हरिमन्दिर की नींव रक्खी और उसकी इमारत पूरी करके सम्वत् १६६१ में श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी स्थापित किए" (महान कोश, भाषा विभाग पंजाब, पटियाला, छठा संस्करण, १९९९ ई•, पृष्ठ ७६)।

यह बात ध्यान देने योग्य है कि अलगाववाद के मूल प्रेरकों में से एक होते हुए भी भाई काहन सिंह नाभा ने महान कोश में, जिसका पहला संस्करण सन् १९३० में प्रकाशित हुआ था, श्री हरिमन्दिर की नींव रखने का श्रेय श्रीगुरु
अर्जुनदेव को ही दिया है।

इसी महान कोश के पृष्ठ ९७२ पर भाई काहन सिंह नाभा ने मियां मीर का परिचय देते हुए कहीं पर भी उसके द्वारा श्री हरिमन्दिर की नींव रखने का कोई उल्लेख नहीं किया है।

२• इतिहासकार तेजासिंह-गण्डासिंह अपनी रचना सिक्ख इतिहास (पंजाबी यूनीवर्सिटी, पटियाला १९८५ ई•) के पृष्ठ ३२ पर स्पष्ट लिखते हैं :

"सन् १५८९ (१६४६ विक्रमी) में गुरु अर्जुन जी ने केन्द्रीय मन्दिर की, जिसको अब गोल्डन टेम्पल या हरिमन्दिर साहिब कहा जाता है, अमृतसर के सरोवर के मध्य में नींव रक्खी। इसके दरवाज़े सब ओर को खुलते थे जिसका भाव यह है कि सिक्ख पूजा स्थान सबके लिए एक समान खुला है।"
३• इसी प्रकार इतिहासकार डा• मनजीत कौर भी अपनी रचना दि गोल्डन टेम्पल : पास्ट एण्ड प्रैज़ेण्ट (गुरु नानकदेव यूनीवर्सिटी प्रेस, अमृतसर, १९८३ ई•) में प्राचीन परम्परा का समर्थन करते हुए यही बताती हैं कि श्री
हरिमन्दिर की नींव श्रीगुरु अर्जुनदेव ने ही रक्खी थी।

मियां मीर और अंग्रेज़ों के पक्षधर विचारक

ई• निकौल की निराधार कल्पना से प्रभावित सिक्ख विचारकों ने कालान्तर में यह मिथ्या प्रचार करना प्रारम्भ कर दिया कि श्री हरिमन्दिर की नींव मियां मीर ने रक्खी थी। उधार ली हुई बुद्धि वाले इन सिक्ख विचारकों ने सिक्ख समाज को वैष्णव भक्ति से तोड़ कर इस्लामी-ईसाई विचारधारा से जोड़ने में कोई क़सर नहीं छोड़ी।
ऐसे अंग्रेज़ी शिगूफ़े और दुष्प्रचार के समर्थक प्रो• साहिब सिंह डी लिट् अपनी पंजाबी कृति जीवन ब्रितान्त श्री गुरू अरजन देव जी (सिंह ब्रदर्ज़, अमृत-सर, तीसरा संस्करण, १९७५ ई•) के पृष्ठ १५ पर बिना प्रमाण दिए यह लिखते हैं :
"सिक्ख इतिहास लिखता है कि हरिमन्दिर साहिब की नींव सत्गुरु जी ने लाहौर के वली मियां मीर के हाथों रखवाई थी।"

यह बात ध्यान देने योग्य है कि ई• निकौल की पूर्व चर्चित मनगढ़न्त बात की पुष्टि न तो प्राचीन सिक्ख इतिहास से होती है और न ही मुस्लिम पीर-फ़क़ीर मियां मीर की समकालीन मुस्लिम जीवन-गाथाओं से।

यहां पर यह भी उल्लेखनीय है कि अमृतसर से सन् १९३० में प्रकाशित "Report Sri Darbar Sahib" में भी श्री हरिमन्दिर की नींव मियां मीर द्वारा रक्खे जाने का ही समर्थन किया गया है। यह भी उल्लेखनीय है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के अन्तर्गत कार्यरत रागी कीर्त्तन-कथा करते समय उपस्थित हिन्दू-सिक्ख-संगत को यही बताया करते हैं कि हरिमन्दिर की नींव मियां मीर ने रक्खी थी। इस प्रकार सच्ची गुरुवाणी के शबदों = पदों को गाते समय वे मियां मीर सम्बन्धी नितान्त झूठी बात का प्रचार करते हुए पाप को भी अर्जित कर रहे हैं। इस सारे कृत्य को अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जा सकता है कि किस प्रकार झूठ को बार-बार परोसा जा रहा है !!!
उपरोक्त सारे प्रसंग का ध्यानपूर्वक अवलोकन करने से यही सिद्ध होता है कि वस्तुतः श्री हरिमन्दिर जी की नींव श्रीगुरु अर्जुनदेव ने ही रक्खी थी जैसा कि प्राचीन सिक्ख स्रोतों में लिखा है।

श्रीगुरु अर्जुनदेव की दृष्टि में श्री हरिमन्दिर की अपार महिमा

समय पाकर श्री हरिमन्दिर के निर्माण का कार्य निर्विघ्न सम्पूर्ण हुआ। कवि सोहन कृत गुर बिलास पातशाही छह (१७७५ विक्रमी, भाषा विभाग पंजाब, पटियाला, १९७२ ई•) ५/४-५ के अनुसार श्रीगुरु अर्जुनदेव जी ने श्री हरिमन्दिर की अपार

महिमा बताते हुए बाबा बुड्ढा जी से कहा था :
साहिब बुड्ढा जी सुनो, महिमां अपर अपार।
परतक्ख रूप रामदास को, सोभत स्री दरबार।४।
हरि मंदर हरि रूप है, लछमी चरन बसाइ।
जोऊ शरनि इह की पड़ै, दारद रहै न काइ।५।

[ बाबा बुड्ढा जी ! श्री हरिमन्दिर की अपार महिमा सुनें। श्रीगुरु रामदास जी के शुभ संकल्प का साकार रूप श्री हरिमन्दिर शोभायमान है। यह हरिमन्दिर उन श्रीहरि का रूप है जो अपने चरणों में लक्ष्मी जी को बसाए हुए हैं। जो श्री हरि रूप इस मन्दिर की शरण में आ जाता है उसे कोई दुःख-दारिद्र्य नहीं रहता ]। ०

शनिवार, जुलाई 18, 2020

गिलोय एक ही ऐसी बेल है, जिसे आप सौ मर्ज की एक दवा कह सकते हैं

गिलोय एक ही ऐसी बेल है, जिसे आप सौ मर्ज की एक दवा कह सकते हैं। इसलिए इसे संस्कृत में अमृता नाम दिया गया है। कहते हैं कि देवताओं और दानवों के बीच समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत निकला और इस अमृत की बूंदें जहां-जहां छलकीं, वहां-वहां गिलोय की उत्पत्ति हुई।*

*इसका वानस्पिक नाम( Botanical name) टीनोस्पोरा कॉर्डीफोलिया (tinospora cordifolia है।* इसके पत्ते पान के पत्ते जैसे दिखाई देते हैं और जिस पौधे पर यह चढ़ जाती है, उसे मरने नहीं देती। इसके बहुत सारे लाभ आयुर्वेद में बताए गए हैं, जो न केवल आपको सेहतमंद रखते हैं, बल्कि आपकी सुंदरता को भी निखारते हैं। आइए जानते हैं गिलोय के फायदे…

*गिलोय बढ़ाती है रोग प्रतिरोधक क्षमता*

गिलोय एक ऐसी बेल है, जो व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर उसे बीमारियों से दूर रखती है। इसमें भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर में से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने का काम करते हैं। यह खून को साफ करती है, बैक्टीरिया से लड़ती है। लिवर और किडनी की अच्छी देखभाल भी गिलोय के बहुत सारे कामों में से एक है। ये दोनों ही अंग खून को साफ करने का काम करते हैं।

*ठीक करती है बुखार*

अगर किसी को बार-बार बुखार आता है तो उसे गिलोय का सेवन करना चाहिए। गिलोय हर तरह के बुखार से लडऩे में मदद करती है। इसलिए डेंगू के मरीजों को भी गिलोय के सेवन की सलाह दी जाती है। डेंगू के अलावा मलेरिया, स्वाइन फ्लू में आने वाले बुखार से भी गिलोय छुटकारा दिलाती है।

*गिलोय के फायदे – डायबिटीज के रोगियों के लिए*

गिलोय एक हाइपोग्लाइसेमिक एजेंट है यानी यह खून में शर्करा की मात्रा को कम करती है। इसलिए इसके सेवन से खून में शर्करा की मात्रा कम हो जाती है, जिसका फायदा टाइप टू डायबिटीज के मरीजों को होता है।

*पाचन शक्ति बढ़ाती है*

यह बेल पाचन तंत्र के सारे कामों को भली-भांति संचालित करती है और भोजन के पचने की प्रक्रिया में मदद कती है। इससे व्यक्ति कब्ज और पेट की दूसरी गड़बडिय़ों से बचा रहता है।

*कम करती है स्ट्रेस*

गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में तनाव या स्ट्रेस एक बड़ी समस्या बन चुका है। गिलोय एडप्टोजन की तरह काम करती है और मानसिक तनाव और चिंता (एंजायटी) के स्तर को कम करती है। इसकी मदद से न केवल याददाश्त बेहतर होती है बल्कि मस्तिष्क की कार्यप्रणाली भी दुरूस्त रहती है और एकाग्रता बढ़ती है।

*बढ़ाती है आंखों की रोशनी*

गिलोय को पलकों के ऊपर लगाने पर आंखों की रोशनी बढ़ती है। इसके लिए आपको गिलोय पाउडर को पानी में गर्म करना होगा। जब पानी अच्छी तरह से ठंडा हो जाए तो इसे पलकों के ऊपर लगाएं।

*अस्थमा में भी फायदेमंद*

मौसम के परिवर्तन पर खासकर सर्दियों में अस्थमा को मरीजों को काफी परेशानी होती है। ऐसे में अस्थमा के मरीजों को नियमित रूप से गिलोय की मोटी डंडी चबानी चाहिए या उसका जूस पीना चाहिए। इससे उन्हें काफी आराम मिलेगा।

*गठिया में मिलेगा आराम*

गठिया यानी आर्थराइटिस में न केवल जोड़ों में दर्द होता है, बल्कि चलने-फिरने में भी परेशानी होती है। गिलोय में एंटी आर्थराइटिक गुण होते हैं, जिसकी वजह से यह जोड़ों के दर्द सहित इसके कई लक्षणों में फायदा पहुंचाती है।

*अगर हो गया हो एनीमिया, तो करिए गिलोय का सेवन*

भारतीय महिलाएं अक्सर एनीमिया यानी खून की कमी से पीडि़त रहती हैं। इससे उन्हें हर वक्त थकान और कमजोरी महसूस होती है। गिलोय के सेवन से शरीर में लाल रक्त कणिकाओं की संख्या बढ़ जाती है और एनीमिया से छुटकारा मिलता है।

*बाहर निकलेगा कान का मैल*

कान का जिद्दी मैल बाहर नहीं आ रहा है तो थोड़ी सी गिलोय को पानी में पीस कर उबाल लें। ठंडा करके छान के कुछ बूंदें कान में डालें। एक-दो दिन में सारा मैल अपने आप बाहर जाएगा।

*कम होगी पेट की चर्बी*

गिलोय शरीर के उपापचय (मेटाबॉलिजम) को ठीक करती है, सूजन कम करती है और पाचन शक्ति बढ़ाती है। ऐसा होने से पेट के आस-पास चर्बी जमा नहीं हो पाती और आपका वजन कम होता है।

*यौनेच्छा बढ़ाती है गिलोय*

आप बगैर किसी दवा के यौनेच्छा बढ़ाना चाहते हैं तो गिलोय का सेवन कर सकते हैं। गिलोय में यौनेच्छा बढ़ाने वाले गुण पाए जाते हैं, जिससे यौन संबंध बेहतर होते हैं।

*खूबसूरती बढ़ाती है गिलोय*

गिलोय न केवल सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है, बल्कि यह त्वचा और बालों पर भी चमत्कारी रूप से असर करती है….

*जवां रखती है गिलोय*

गिलोय में एंटी एजिंग गुण होते हैं, जिसकी मदद से चेहरे से काले धब्बे, मुंहासे, बारीक लकीरें और झुर्रियां दूर की जा सकती हैं। इसके सेवन से आप ऐसी निखरी और दमकती त्वचा पा सकते हैं, जिसकी कामना हर किसी को होती है। अगर आप इसे त्वचा पर लगाते हैं तो घाव बहुत जल्दी भरते हैं। त्वचा पर लगाने के लिए गिलोय की पत्तियों को पीस कर पेस्ट बनाएं। अब एक बरतन में थोड़ा सा नीम या अरंडी का तेल उबालें। गर्म तेल में पत्तियों का पेस्ट मिलाएं। ठंडा करके घाव पर लगाएं। इस पेस्ट को लगाने से त्वचा में कसावट भी आती है।

*बालों की समस्या भी होगी दूर*

अगर आप बालों में ड्रेंडफ, बाल झडऩे या सिर की त्वचा की अन्य समस्याओं से जूझ रहे हैं तो गिलोय के सेवन से आपकी ये समस्याएं भी दूर हो जाएंगी।

*गिलोय का प्रयोग ऐसे करें:*

अब आपने गिलोय के फायदे जान लिए हैं, तो यह भी जानिए कि गिलोय को इस्तेमाल कैसे करना है…

गिलोय जूस

गिलोय की डंडियों को छील लें और इसमें पानी मिलाकर मिक्सी में अच्छी तरह पीस लें। छान कर सुबह-सुबह खाली पेट पीएं। अलग-अलग ब्रांड का गिलोय जूस भी बाजार में उपलब्ध है।

काढ़ा

चार इंच लंबी गिलोय की डंडी को छोटा-छोटा काट लें। इन्हें कूट कर एक कप पानी में उबाल लें। पानी आधा होने पर इसे छान कर पीएं। अधिक फायदे के लिए आप इसमें लौंग, अदरक, तुलसी भी डाल सकते हैं।

पाउडर

यूं तो गिलोय पाउडर बाजार में उपलब्ध है। आप इसे घर पर भी बना सकते हैं। इसके लिए गिलोय की डंडियों को धूप में अच्छी तरह से सुखा लें। सूख जाने पर मिक्सी में पीस कर पाउडर बनाकर रख लें।

गिलोय वटी

बाजार में गिलोय की गोलियां यानी टेबलेट्स भी आती हैं। अगर आपके घर पर या आस-पास ताजा गिलोय उपलब्ध नहीं है तो आप इनका सेवन करें।

साथ में अलग-अलग बीमारियों में आएगी काम

अरंडी यानी कैस्टर के तेल के साथ गिलोय मिलाकर लगाने से गाउट(जोड़ों का गठिया) की समस्या में आराम मिलता है।इसे अदरक के साथ मिला कर लेने से रूमेटाइड आर्थराइटिस की समस्या से लड़ा जा सकता है।चीनी के साथ इसे लेने से त्वचा और लिवर संबंधी बीमारियां दूर होती हैं।आर्थराइटिस से आराम के लिए इसे घी के साथ इस्तेमाल करें।कब्ज होने पर गिलोय में गुड़ मिलाकर खाएं।

*साइड इफेक्ट्स का रखें ध्यान*

वैसे तो गिलोय को नियमित रूप से इस्तेमाल करने के कोई गंभीर दुष्परिणाम अभी तक सामने नहीं आए हैं लेकिन चूंकि यह खून में शर्करा की मात्रा कम करती है। इसलिए इस बात पर नजर रखें कि ब्लड शुगर जरूरत से ज्यादा कम न हो जाए। *गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को गिलोय के सेवन से बचना चाहिए।पांच साल से छोटे बच्चों को गिलोय न दे* 🙏
*_एक निवेदन :---अभी वर्षाऋतु का काल है अपने घर में बड़े गमले या आंगन में जंहा भी उचित स्थान हो गिलोय की बेल अवश्य लगायें यह बहु उपयोगी वनस्पति ही नही बल्कि आयुर्वेद का अमृत और ईश्वरीय अवदान है ।

क्योंकि अब आपकी आगे कोई पीढ़ी ही नहीं होगी ! यह है विश्व सत्ता का नया स्वरूप !

विश्व सत्ता को स्वीकारिये या फिर संसार से विदा लीजिये : Yogesh Mishra

जब भारत में लोकतंत्र की बुनियाद रखी जा रही थी ! तब लोग यह मानने को तैयार नहीं थे कि भारत के अंदर राजसत्ता का कोई विकल्प कभी स्थापित हो पायेगा ! लोगों के दिमाग में यह भ्रम था कि सदियों से चले आ रहे राजे रजवाड़े जिनमें कई अपने को भगवान का वंशज भी बतलाते थे ! उनका ही शासन बना रहेगा ! जो कभी भी समाप्त नहीं हो सकता है !

लेकिन अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने एक सोची-समझी हुई राणनीति के तहत मात्र 90 साल के अंदर ही भारत के रजवाड़ों को जड़ से खत्म कर दिया और लोकतंत्र के नाम पर भारत में एक नई शासन व्यवस्था स्थापित कर दी और भगवान का वंशज देखते रह गये !

ठीक इसी तरह मात्र अगले 30 वर्ष के अंदर पूरे विश्व में आज जिन-जिन देशों में लोकतंत्र जैसी पैशाची शासन व्यवस्था है ! उन सभी देशों में विश्व सत्ता प्रथम चरण में काबिज हो जायेगी ! इसके बाद जिन देशों में लोकतंत्र नहीं है ! उन्हें अर्थ युद्ध, छद्म युद्ध, तकनीकी युद्ध या स्पष्ट युद्ध के द्वारा खत्म कर दिया जायेगा !

जिसमें हथियारों से अधिक अंतरराष्ट्रीय कानून और जैविक हथियारों का प्रयोग किया जायेगा ! जो देश विश्व सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करेंगे ! वह देश और संस्कृति इतिहास का अध्याय हो जायेगी !

भारत भी उसी श्रंखला का एक देश है ! विश्व सत्ता की जो पैनी निगाह भारत पर है ! वह निश्चित रूप से आज नहीं तो कल भारत के संपूर्ण अस्तित्व को ही निकल जायेगी और सदियों से चली आ रही भारतीय संस्कृति जिस पर हमें नाज है वह बहुत जल्दी ही अब विलुप्त होकर इतिहास के पन्नों में स्थान ले लेगी !

यह सब कुछ होने में बहुत समय नहीं लगेगा ! हो सकता है कि हमारे आपके जीवित रहते ही यह सब कुछ हो जाये ! किंतु राजे रजवाड़ों की तरह आज हमें भी यह विश्वास नहीं हो रहा है कि कैसे हमारे देखते-देखते भारत का संविधान खत्म हो जायेगा और जिस लोकतंत्र की दुहाई भारत में सैकड़ों राजनैतिक दल दे रहे हैं ! वह सभी नष्ट हो जाएंगे ! भारत का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अब हम नहीं चुन सकेंगे बल्कि इन्हें विश्व सत्ता द्वारा नियुक्त किया जायेगा !

भारत की कुल आबादी 130 करोड़ से घटकर मात्र 5 करोड़ रह जायेगी ! विश्व सत्ता की इच्छा के अनुसार जो भी व्यक्ति नहीं चलेगा ! उसे इस पृथ्वी से विदा होना पड़ेगा ! हमारे पूर्वजों के द्वारा मेहनत से बनाई गई संपत्ति बहुत जल्दी ही विश्व सत्ता की होगी !

हमारे हाथों में एक रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटी फिसशन (R.F.I.D) चिप लगी होगी और हमारे मस्तिष्क में एक कृतिम मस्तिष्क आरोपित कर दिया जायेगा ! जो हमें विश्व सत्ता के अनुसार कार्य करने के लिये दिशा निर्देश देगा ! जो व्यक्ति इस दिशा निर्देश का पालन नहीं करेगा ! उसके मस्तिष्क को रेडियेशन द्वारा हैंग आउट कर दिया जायेगा या फिर उस व्यक्ति को ही खत्म कर दिया जायेगा !

आपकी हर हरकत पर उस विश्व सत्ता की निगाह होगी ! आप क्या खा रहे हैं ! कहां जा रहे हैं ! किससे क्या बात कर रहे हैं ! कहीं आप संगठन तो नहीं बना रहे हैं ! आपके आर्थिक श्रोत क्या हैं ! आपके पास कुल कितने पैसा हैं और कहीं आप गुप्त रूप से अपनी संपत्ति का निर्माण तो नहीं कर रहे हैं ! यह सारी चीजें विश्व सत्ता आधुनिक तकनीक के माध्यम से नियंत्रित करें !

अब पारिवारिक और दांपत्य जीवन जैसी कोई चीज नहीं होगी ! पुरुष पुरुष के साथ और स्त्री स्त्री के साथ समलैंगिक संबंध रख सकेंगे ! कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यक्ति की पत्नी के साथ और कोई भी पत्नी किसी भी अन्य पुरुष के साथ शाररिक संबंध बना सकेगी ! लेकिन संतान पैदा करने के लिये विश्व सत्ता की आज्ञा लेना आवश्यक होगा ! अधिकांश स्त्री पुरुष को वैक्सीनेशन द्वारा नपुंसक बना दिया जायेगा और आप विरोध भी नहीं कर सकेंगे !

आपके भोजन की वैरायटी विश्व सत्ता द्वारा नियंत्रित होगी ! आपके भोजन में अधिकांश डिब्बाबंद जंक फूड होगा ! जो आपको उतनी ही ऊर्जा देगा जितनी कि आपके जिन्दा रहने के लिये जरुरी है ! अपने शरीर की आवश्यकता के अनुरूप आपको मल्टीविटामिन, मिनिरल्स, प्रोटीन, डिप्रेशन, डायबिटीज, थायारायड आदि की औषधियां निरंतर लेनी होंगी ! प्राकृतिक रूप से उत्पन्न आयुर्वेदिक या प्राकृतिक चिकित्सा अवैध घोषित कर दी जायेगी !

आपके पास कोई भी कैश पैसा नहीं होगा ! कैश लैस इकोनॉमी के तहत हर वस्तु आपके शरीर में लगी हुई चिप के माध्यम से आपको प्राप्त होगी ! यदि आपने अपने शरीर में चिप नहीं लगा रखा है तो आप को भोजन, पानी, दवा, शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार आदि कुछ भी प्राप्त नहीं होगा ! क्योंकि यह सब कुछ अब उस चिप के द्वारा ही नियंत्रित होगा !


यातायात प्रतिबंधित होना आप एक निश्चित क्षेत्र से बाहर नहीं जा सकेंगे ! आप अपने परिवार के लोगों से नहीं मिल सकेंगे और न ही विश्व में कहीं भ्रमण कर सकेंगे !

आज जो आपका मोबाइल जोन है ! वही कल आपका संसार होगा ! आप अपने मोबाइल जोन के बाहर यदि जाते हैं तो आपको दंडित किया जायेगा ! आपकी स्थिती एक यांत्रिक रोबोट से अधिक कुछ नहीं होगी !

आपका कोई भविष्य नहीं होगा और किसी भी तरह के चिंतन करने का आपको कोई अधिकार नहीं होगा ! न ही आप कोइ समूह बना सकेंगे ! न ही आप कोई मीटिंग, जनसभा आदि कर सकेंगे ! जो भी कुछ करना होगा ! वह सब कुछ ऑनलाइन होगा ! जिस पर विश्व सत्ता की पैनी निगाह होगी ! प्रतिबंधित शब्दों के प्रयोग पर दण्ड की व्यवस्था होगी !

इसलिये तैयार हो जाइये अपने ही घर में रहकर आगे की जिंदगी जीने के लिये और अपने आने वाली पीढ़ियों की चिंता बिल्कुल मत कीजिये ! क्योंकि अब आपकी आगे कोई पीढ़ी ही नहीं होगी ! यह है विश्व सत्ता का नया स्वरूप ! जो बहुत जल्द लागू होने वाला है ! आपके पास एक ही विकल्प है कि विश्व सत्ता को स्वीकारिये या फिर संसार से विदा लीजिये ! अन्य कोई विकल्प नहीं है !!

योगेश कुमार मिश्र 
संस्थापक 
सनातन ज्ञान पीठ 
ज्योतिष एवं आध्यात्मिक शोध संस्थान 
कुण्डली परामर्श हेतु सम्पर्क कीजिये 
मोबाईल : 9453092553

और अधिक जानकारी के लिये पढ़िये 
www.sanatangyanpeeth.in

शुक्रवार, जुलाई 17, 2020

दुबई में हिंदू लड़कियों के हालात पर अशोक भारती जी की रिपोर्ट

👇👇

मैने दुबई भ्रमण के दौरान होटलों रेस्तरां नाचघरों में लड़कियां को काम करते हुए देखा, जब भी मैंने उनसे बात करने के प्रयास किया, वह सहम जाती थी रात को बाहर जाते समय उनके साथ 1-2 नीग्रो होते थे मैने कई बार प्रयास किया ,फिर मैंने एक पठान टैक्सी ड्राईवर की मदद से नीग्रो को कुछ पैसे देकर बात करने पर राजी किया और हमारी भेट १ भारतीय रेस्टोरेंट सागर रत्न में हुई। सभी लड़कियां भारत के अलग अलग भागों से अच्छे परिवारों से है और कुछ एक ने तो अपने परिवार से विद्रोह करके अपने ही घर से चोरी करके गहने-कैश लेकर अपने मुस्लिम प्रेमी के साथ भाग कर विवाह किया था और कुछ महीने प्रेमी के साथ बिताने के बाद दुबई घूमने आयी थी, और मुस्लिम लड़को ने उनके साथ ऐश करने के बाद उन्हें बेच दिया था। कुछ ने बताया कि उनका मुस्लिम पति दुबई में ही जॉब करता है और साथ रखने के लिए आई थी पर यहाँ बेच दिया गया
उनमें से ३ लड़कियां तो ऐसी थी जिन्हे १ ही मुस्लिम लड़के अलग अलग स्थानों पर विवाह कर के यहाँ बेचा था,उन लड़कियों ने बताया कि हमारे अलावा भी बहुत सी लड़कियां है जो अलग अलग होटलों नाच घरों में नरक भोग रही है। अधिकतर लड़कियां ने बताया कि उन्होंने बड़ा अपराध किया। और उसकी सजा के रूप में नरक भोग रही है।
मैने उन्हें वापिस भारत अपने घर लौटने के लिए कहा तो सब ने मना कर दिया ,अब उनके लिए भारत में कुछ नहीं है ,हम न तो परिवार और समाज को अपना मुँह दिखाने लायक रही और न हमारे पास कोई दूसरा सोर्स जिससे अपने रहने खाने की व्यवस्था कर सके ,अब तो इसी नरक रहना है और फिर भगवान् जाने क्या होगा जब आयु ढल जाएगी।
लगभग सभी लड़कियां ने अपने पढाई पूरी नहीं की थी , स्कूल- कॉलेज की पढाई के दौरान ही प्यार हुआ और विवाह किया था , वैसे तो पूरे भारत से लड़कियां इस इस्लामिक जिहादियों के जाल में फसंती है पर सबसे अधिक उत्तराखंड से आई हुई थी। १ लड़की तो दिल्ली के पंजाबी सरकारी अफसर की बेटी थी ,और सब लड़कियां हिन्दू स्वर्ण समाज से ही थी ,वैसे नाम के लिए तो ये सभी लड़कियां होटल-रैस्टोरेंट बार में काम करती थी, पर वहाँ आने वाले ग्राहकों को खुश रखने के लिए देह व्यापर करने पर भी बाध्य थी।
मेरे बहुत अधिक आग्रह करने पर दिल्ली की २ लड़की अपने परिवार का पता और फोन नंबर देने पर राजी हुई। मेने उन्हें समझाया था कि मैं अपनी और से प्रयास करूँगा कि आपका परिवार आपको स्वीकार करें और आप इस नर्क से निकल कर वापिस भारत अपने परिवारों के साथ रहें। मेने दिल्ली में उनके परिवारों से मिलने के लिए गया। और उनकी बेटी की स्थति अवगत कराया पर दोनों के परिवार नहीं चाहते कि लड़कियां वापिस आएं। वे अब उनके लिए मर गई है। आत्मा तो मर ही गई है। पर देह जीवित है। 
मेरा अपने हिन्दू-सिक्ख भाई बहनों से निवेदन है कि ऐसे जिहादी अपने घरों या बच्चों के आसपास मंडराने हुए देंखे तो खुद भी सचेत हो जायें और बच्चों को भी जागरूक करें ,ताकि हमारी बेटियां इन जिहादियों के जाल में न फंसे

पोस्ट को शेयर जरूर करें क्या पता आपकी एक पोस्ट से किसी की जिंदगी बच जाए और शांतिदूतो के नकली प्रेम जाल में फंसने वाली हिंदू लड़कियों की आंखें खुल जाए ।।
साभार : अशोक भारती जी