ईसा से भी साढ़े पांच सौ साल पहले बुद्ध आये.. मगर बाइबिल समेत ईसाईयों की किसी भी किताब में बुद्ध का कोई ज़िक्र नहीं मिलता है.. ये बताता है कि जिस सभ्यता में ईसा आये वहां बुद्ध की शिक्षा नहीं पहुंची थी.. ईसाईयत की प्रतिस्पर्धा सिर्फ़ यहूदियत से थी इसलिये बाइबिल यहूदियों की किताब "तौरेत" का ही हिस्सा बन के रह गयी.. ईसाईयत और यहूदी की श्रृंखला में इस्लाम आया.. इस्लाम मे भी बुद्ध का कहीं कोई ज़िक्र नहीं है.. कितनी हदीसें, कितनी इस्लामिक इतिहास की किताबें हैं मगर उनमें कहीं भी एक बार भी बुद्ध या उन से संबंधित किसी घटना का कोई ज़िक्र नहीं मिलता है.. जबकि अरब के लगभग हर देवी और देवता का कहीं न कहीं किसी न किसी किताब में ज़िक्र आता ही है.. क़ुरआन में भी अरब की देवियों के नाम आये हैं
ये घटना ये बताती है कि समूचे अफगानिस्तान समेत बहुत बड़े क्षेत्र में फैला बौद्ध धर्म, अरब के लोगों तक नहीं पहुंच पाया था.. अगर पहुंचा होता तो अरब के लोग बुद्ध की भी पूजा कर रहे होते.. और तब शायद ईसाईयत और यहूदियत के "पैग़म्बरी" वाले कांसेप्ट से बाहर निकल चुके होते.. मुहम्मद साहब के समकालीन ही कम से कम बीस और लोग थे जो "पैग़म्बर" होने का दावा करते थे.. वहां बुद्ध का दर्शन पहुंचा ही नहीं था.. लोग पैग़म्बरी की होड़ में फंसे थे क्यूंकि यहूदियों और ईसाईयों के पास अपने पैग़म्बर थे मगर अरबों के पास नहीं थे.. और ये उनके लिए बड़े शर्म और दुःख की बात थी
बुद्ध ने ईसा से भी बहुत पहले देवदूत, पैग़म्बर, अवतार बनने का सारा दर्शन जड़ समूल नष्ट कर दिया था.. बुद्ध ने अपने आसपास के लोगों को इस से बाहर निकाल लिया था और उनके सामने हर तरह की पूजा और इबादत से आगे निकलकर ख़ुद के भीतर सब कुछ खोजने का मार्ग दिखाया था
ये एक नए युग का सूर्य था जो बुद्ध के साथ उदय हुआ.. मगर अरब और उसके आसपास ये प्रकाश नहीं पहुंचा और वहां अज्ञान का अंधेरा जस का तस बना रहा ।
~सिद्धार्थ ताबिश
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