शुक्रवार, फ़रवरी 17, 2017

प्राचीनतम है भारत की संस्कृति

राम पुरोहित
प्राचीनतम है भारत की संस्कृति
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आइये जाने वैदिक आधार जिसपर आज की आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति की आधारशिला रखी है--------
■ जिस समय यूरोप में घुमक्कड़ जातियां बस्तियां बनाना सीख रही थी, उस समय भारत में कृषि, भवन निर्माण, धातु विज्ञान, वस्त्र निर्माण, परिवहन व्यवस्था आदि क्षेत्र उन्नति दशा में विकसित हो चुके थे।
मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल आदि स्थानों के पुरातात्विक उत्खनन इस बात के8 गवाही देते है कि ज्ञान विज्ञान की दृष्टि से सिंधु घाटी की सभ्यता अत्यंत विकसित थी। लोग सुनियोजित भवनों में रहते थे इनमे भवन, सड़कें, नालियां, स्नानागार, कोठार(अन्न रखने की जगह) पक्की ईंटों से बने मकान, जहाजों द्वारा यात्रा, माप तौल का ज्ञान, उन्नति कृषि, खनन विद्या, रत्नों का ज्ञान और काटने और संवारने की समझ, सोने चांदी के आभूषण, कांसे के हथियार, सूती ऊनी वस्त्र निर्माण की कला में निपुण थे।
■ ईशा से 200 वर्ष पूर्व से लेकर ईशा के 11वी सदी तक उन्नत शोध व् अविष्कार ने कई कीर्तिमान बनाये जैसे आर्यभट्ट, वराहमिहिर, बोधायन, चरक, सुश्रुत, नागार्जुन, कणाद जैसे सनातनी वैज्ञानिकों ने कई कीर्तिमान बनाये। खगोल विज्ञान का ज्ञान केवल हमारे पास था जिससे 27 नक्षत्रों के साथ वर्ष, महीने, दिन ‘काल’ की गणना सटीक आज भी विद्वमान है।
■ वैदिक ऋषियों का चिकित्सा विज्ञान का दृष्टिकोण पूर्णतयः वैज्ञानिक था। आज के दृष्टिकोण में देखा जाये तो उन्नति और काम मूल्य पर चिकित्सा भारत में ही उपलब्ध है। जब यूरोपियन चड्डी पहनना सीख रहे थे तब हमारे देश में स्नायुतंत्र और सुषुम्ना (रीढ़ की हड्डी) में सिद्धहस्त थे। उस समय शव विच्छेदन (postmortem) की प्रक्रिया भी जानते थे। प्रमाण मिलते है कि मिश्र, रोम, अरब देशों में भारतीय जड़ी बूटी का प्रयोग बहुतायत से होता था। यूनानी चिकित्सा 11वी सदी से शुरू हुआ था जब भारतीय चिकित्सा पूर्णतयः विकसित हो चुकी थी। नागार्जुन के साथ रसायन शास्त्री वृंद ने औषधि रसायन की खोज कर ली थी।
■ ईसा पूर्व चौथी शताब्दी से छटवीं शताब्दी वैज्ञानिक प्रगति का स्वर्णकाल था जिसमे धातुकर्म, भौतिकी, रसायन शास्त्र पूर्ण विकास हुआ। विशालकाय प्रस्तर स्तम्भो का जैसे महरौली का दिल्ली के पास 1700 वर्षो से जंकविहीन शान से खड़ा है। कणाद ऋषि केे छटवीं ईशा पूर्व ही परमाणुओं की रचना, प्रवत्ति, प्रकारों के 44 से अधिक ग्रन्थ आज भी उपलब्ध है।
■ खगोल विज्ञान के अधुनिक काल के वैज्ञानिक कॉपरनिकस से एक हज़ार साल पूर्व भारतीय वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने पृथ्वी गोल है और एक धुरी पर घूमती है पुष्टि कर चुके थे और सूर्य चंद्र ग्रहण का सही सिद्धान्त का प्रतिपालन किया था। ईशा से पूर्व ही ‘वेदांग ज्योतिषी’ के अनुसार यज्ञ ही नही ग्रहों की स्तिथि से कृषि की आने बाली स्तिथि का अंदाजा लगा लेते थे। महाभारत में भी तो चंद्र ग्रहण और् सूर्य ग्रहण की चर्चा है। खगोल विज्ञानी श्री वराहमिहिर ने गृत्वकर्षण के सिद्धांत की खोज कर ली थी। सूर्य और चंद्र से पृथ्वी की दुरी तो हमारे वेदों में भी मिल जाती है।
आगे कल…..
गणितीय पद्धति, चिकित्सा पद्धति आदि
अपनी जड़ों में लौटे...बच्चो को अपनी महान् और सुदृढ महानता से अवगत कराये।
अपने त्योहारों की महत्वता समझे..अपने त्योहारों को तन,मन और लगन से मनाए की अन्य लोग भी मनाने लगे। आने बाला है अपना Happy New Year भूल ना जाये। हवन करे, सुन्दरकाण्ड का पाठ करे, घर को सजाये, बन्दनवार और फूलों से घर को सजाये। यदि सनातन ध्वज नही लगा है तो उस दिन घर के सबसे ऊंची स्थान पर स्थान दे और लगा है तो नये ध्वज से बदले। नही है तो मुझसे ले जाये 100 या 200 का भार तो वहन कर ही सकता हूँ। रोज ॐ का प्रयोग करे लिखने में, पोस्ट में, whatsapp पर , फेसबुक पर या जँहा पसंद हो ॐ लिखे, कंहे, बोले...मेरा देश महान् था, है और रहेगा।
ॐ ॐ ॐ ॐ
डॉ विजय मिश्रा
जयपुर
अच्छा लगे तो अपना नाम लिखे और आगे बढ़ा दे। कॉपी राईट नही है। ॐ ॐ

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