बुधवार, जुलाई 25, 2012

असम में हिंदुओं के नरसंहार,इन हालातो के जिम्मेदार कौन ?


मेरा निवेदन है कि इस लेख को थोड़ा समय देकर पढे ।
आजादी के बाद कांग्रेस सरकार के प्रंधानमंत्री नेहरु की कश्मीर नीति की विफलता और मुस्लिम तुष्टीकरण के कारण देश को कश्मीर समस्या का एक जख्म मिला , जो आज नासूर बन गया है , कश्मीर मे पाकिस्तानी झंडा फहराया जाता है , कहने को तो कश्मीर भारत का हिस्सा है लेकिन श्रीनगर के लाल चौक पर भारत सरकार की इतनी हिम्मत नही है कि वंहा तिंरगा फहरा सके । हजारो कश्मीर पडितो का कत्लेआम हुआ , स्थानीय निवासी अपने ही राज्य में आज भी शरणार्थी बने हुये है । पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगते है लेकिन बहरी जम्मू कश्मीर और केन्द्र की काग्रेस सरकार को ये सुनाई नही देते ।
लेकिन उससे सबक ना लेते हुये कांग्रेस सरकार ने इस देश के लिये एक और ' कश्मीर तैयार कर दिया है , असम मे हालात खराब है , बाग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियो मे संगठित होकर स्थानीय निवासियो को कत्ले आम शुरु कर दिया है , अब तक मरने वालों की संख्या बढ़कर 32 (सरकारी आकड़े) हकिकत हजारो मे है ।
। हिंसा राज्य के 11 जिलों के करीब 500 गांवों में पहुंच गई है। वहीं, प्रदेश में अब तक 2लाख लोग घर छोड़कर भाग चुके हैं। 50 हजार से ज्यादा लोग राहत शिविरों की शरण ले चुके हैं,
बोडो लोगों की रिहायश वाले राज्य के आठ जिलों में तनाव का माहौल है। हालात से निपटने के लिए राज्य सरकार ने केंद्र से अर्द्धसैनिक बलों की 50 और कंपनियां मांगी हैं।
आठ जिलो मे कर्फ़्यू लगा है देखते ही गो्ली मारने के आदेश जारी कर दिये है ।
पूरे हिंदुस्तान का संपर्क इस समय वहाँ से टूटा हुआ है.
कल रात राजधानी एक्सप्रेस पर हमला हुआ । करीब 37ट्रेन रद्द है और 30हजार यात्री असम मे भूखे प्यासे फंसे हुये है

इन हालातो के जिम्मेदार कौन ?
=================
जिम्मेदार है बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिये जिन्हे काग्रेस सरकार ने मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर चलते हुये राजनैतिक संरक्षण दिया ।

वर्षो से अवैध बांग्लादेशियों को इस देश मे शरण दी जाती रही है और एक अध्ययन और BBC की रिपोर्ट के अनुसार ,
अब तक 3करोड़ बाग्लादेशी अवैध रुप से भारत मे रहते है .
इन्हे कभी देश से नही निकाला गया क्योकि ये काग्रेसी वोटर है , खुद काग्रेसियो ने इनके फर्जी वोटर कार्ड बनवाये
इस विडियो को देखे की कैसे पकड़े गये बाग्लादेशियों ने फर्जी नागरिकता दस्तावेज बनवाये।
ये महिला कबूल कर रही है कि ये काग्रेसी वोटर है और बाग्लादेशी है
http://www.youtube.com/watch?v=yprBKTOgnkI

असम के सोनारिपारा मे पाकिस्तानी झंडा फहरा दिया दिया है
देखे विडियो
http://www.youtube.com/watch?v=0oI-PjQkXx4

कहां है इस देश का मीडिया ? सरकार ? वो सब राष्ट्रपति की ताजपोशी मे लगे है ।
इस का आम आदमी ऐसे ही मरता रहा है और आगे भी मरता रहेगा । आज असम मे कत्ले आम हो रहा है कल हमारी बारी है , आप सोते रहो… कर भी क्या सकते हो , इंसानी लाशो का तमाशा देखने के सिवा ।

जब रोम जल रहा तब नीरो बंसी बजा रहा था ..ये बात तो हुई पुरानी .. आज का आधुनिक नीरो भारत में है .नाम है मनमोहन सिंह ..पद प्रधानमंत्री भारत सरकार ... काबिलियत .. संसद के पिछले दरबाजे ( राज्यसभा ) से निर्वाचित जिसको भारत की जनता ने नहीं चुना ,,, उनको आसाम की एक राज्य सभा सीट के जरिये भारत पर खडाऊ शासन के लिये नियुक्ति मिली है ... फिलहाल मुद्दा ये है की प्रधानमंत्री जिस आसाम के पते से निवाचित हुए है और बही आसाम पिछले एक महीने से भीषण बाढ़ की चपेट में है ..आसाम के कई हिस्सो का संपर्क भारत से कट चुका है ,,,इसी वीच कोढ़ में खाज जैसी स्थिति तब पैदा हुई जब कांग्रेस के स्थायी वोट बैक ie बंगलादेश से आये मुस्लिम घुसपैठियों ने बड़ी संख्या में स्थानीय निबासियो का कत्लेआम करना शुरू कर दिया .. ये बही आसाम है जहा पर अक्सर सीमा पर भारतीय सुरक्षाबलों की मुस्लिम घुसपैठियों द्वारा घेर कर हत्याए की जा चूकी है .............सूचना मिली थी की राष्ट्रपति चुनाव की गतिविधियों में से कुछ घंटो का समय निकाल कर भारत के दोनों प्रधानमंत्रियों ने ( घोषित + अघोषित ) आसाम का हवाई सर्वेक्षण करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है ,,, आसाम के हालत इस समय इतने खराब है की उस पर विदेशी मीडिया भी चिंता प्रकट कर रहा है ,,लेकिन भारत के नीरो मनमोहन एंड कम्पनी की बात तो छोडिये खुद को लोकतंत्र का चौथा खंभा कहने का दम भरने बाला मीडिया भी सन्नाटा मारे है .........!!!
http://www.bbc.co.uk/news/world-asia-india-18964870
-
मित्रो आसाम मे बांग्लादेशियो का हौसला इतना कैसे बढ गया कि वहाँ उन्होने नापाकिस्तान का झण्डा फहरा दिया???मैं बताता हुँ-कुछ साल पहले महज वोटो के लिये यूपीए -१ के एक मँत्री रामविलास पासवान का ये बयान आया-"बांग्लादेशीयो को भारत का नागरिक बनादिया जाये,उन्हे मत का अधिकार दिया जाये और उनकी सुरक्षा का इंतजाम किया जाये।अल्पसंख्यको के हितो का संरक्षण किया जाये।"जब भडुवे मँत्रीयो के ये बयान होंगे तो भारत मे इसी तरह कश्मीर पे कश्मीर बनते जायेंगे!!
इसीलिये जागो और देश बचाओ


आसाम में एक कमी रह गयी थी वो भी अब पूरी हो गयी हे ..................

बहुत बहुत बधाई हो इस देश के सेकुलर और धर्मनिरपेक्ष लोगो को , जो अब भी भाई- भाई का नारा देते है ,

जिहादी मुल्लो ने जिन बोडो हिन्दू आदिवासी इलाक को आतंक और मार काट से खाली करवाया था अब वंहा पाकिस्तानी झंडा लहरा दिया हे !!

सरे आम तथाकथित धर्म निरपेक्ष सविंधान और कानून व्यवस्था का बलात्कार किया जा रहा हे !!



http://www.youtube.com/watch?v=1B60_gPf0Ro
आसाम मे कई जगह मुसलमानों ने पाकिस्तान का झंडा फहरा दिया है | ये देखिये टाइम्स नाऊ की रिपोर्ट |

अब कहाँ छुपा है भोदू युवराज ? भठ्ठा परसौल मे नौटकी करता था , अब कोकराझार मे जाकर कब नौटंकी करेगा ?

मित्रों, सिर्फ दो टके के वोट के लिए नीच कांग्रेस ने इस देश को आज बर्बाद कर दिया है ..

पहले कश्मीर, फिर केरल और अब आसाम ...

जागो हिन्दुओ जागो .. अब जाति पाती से उपर उठकर सम्पूर्ण हिन्दुत्व के बारे मे सोचो |

गुजरात के पटेल मित्रो, किसी भी बापा के बहकावे मे आने से पहले एक बार आसाम के बारे मे जरूर सोच लेना |

एक जमाने मे असाम मे हिंदू कई जाति और जनजातियो मे बटी थी , जैसे गारो, खासी, जयंतिया, बोडो, मारवाड़ी, बिहारी प्रवासी, आदि ..

लेकिन आज सब एक होकर बंगलादेशी मुसलमानों का मुकाबला कर रहे है


खबर आसाम से है असम में बंगलादेशी घुसपैठियों ने बोडो जाती के हिन्दुओं को मार कर भगा दिया है और असम में लगा दिया है पाकिस्तान झंडा l
कांग्रेस ने वोटों के लालच में इन बंगला देसी मुल्लो को शरण दी और कांग्रेस का साथ और समर्थन पा कर ही आज ये अपनी औकात भुला बैठे है l

कांग्रेसियों की इस हरकत को देश कर मुझे एक बहुत पुराणी कहानी याद आ रही है l बहुत पहले एक रजा हुआ करते थे जैचंद उन्होंने प्रथ्विराज चौहान को हराने के लिए मुल्लों का साथ दिया उम्मीद थी की हम इसी तरह राज़ करते रहेंगे हुआ उल्टा ही मुल्लो से हाँथ मिलाया मुल्लो ने पीठ पर वार किया न सत्ता बची न जान l

कुछ ऐसा होता आज भी नज़र आ रहा है सत्ता के लिए मनमोहन सरकार इनका साथ तो दे रही है पर कहीं न कहीं अपने पतन की और बढ़ रही है l

पर याद रहे दोस्तों जैचंद की उस एक गलती ने हमे सालों तक गुलामी की जंजीरों में लपेट दिया था अब हम ऐसा नहीं होने देने और उसके लिए जरुरत है खड़े होकर आवाज उठाने की l किसी के भरोसे मत रहो कोइ
कुछ नहीं करगा जो करना आपको खुद ही करना होगा कश्मीर में
जब हिन्दू मर रहा था तो कोइ नहीं गया ना आज आसाम में कोइ जा रहा है l

दोस्तों कोइ भगवा पहन कर सर पर काली टोपी लगाने वाला संत कभी संत नहीं हो सकता कोइ मुल्लों के आगे हाँथ फ़ैलाने वाला किसी हिन्दू के लिए लड़ने नहीं आएगा l

मित्रों हिन्दुत्व की कीमत पर हमे कोइ नीला पीला और काला धन नहीं चाहिए l नहीं चाहिए कोइ लोकपाल और जोक्पाल हिन्दुत्व की कीमत पर l

अगर अपना घर अपना परिवार बचाना है तो उठ खड़े हो जाओ और अपने अन्दर के हिन्दुत्व को जगाओ या फिर सेकुलर बन अपनी बारी का इंतजार करो हो सकता है आप बच भी जाओ पर आपकी आगली पीढ़ी कभी नहीं बच पायेगी l
जय महाकाल
अगर असम में हिंदुओं के नरसंहार को आप टीवी चैनलों पर नहीं देख पा रहें हैं तो उसके पीछे कुछ खास वजहें हैं। राजदीप सरदेसाई के अनुसार जब तक 1000 हिंदू नहीं मरते, तब तक वो कोई खबर ही नहीं है। बेचारे को गुजरात के दंगों से बड़ा सदमा पंहुचा हुआ लगता है या फिर मुँह में इतने पैसे ठूंस दिए गए हैं कि सच नहीं निकाल पा रहा है।

अगर लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ऐसा होता है तो मैं थूकता हूँ ऐसी मीडिया के दलालों पर....जीने लिए दंगे तो केवल 'गुजरात' में होते हैं और दंगा पीड़ित केवल मुसलमान होते हैं। आ......क थू
सोचिए जरा !

रविवार, जुलाई 22, 2012

जो मृत्यु से डरता है, वो धर्मयुद्ध नहीं कर सकता

जिहाद से भारत का सम्बंध हजार वर्ष पुराना है। भारत में वर्षों शासन करने वाले बादशाह भी जिहाद की बात करते थे। 13वीं 14वीं शताब्दी के दौरान मुसलमानों के अंदर ही एक अन्य समानांतर धारा विकसित हुई। यह थी सूफी धारा। हालांकि सूफी धारा के अगुआ भी इस्लाम का प्रचार करते थे किन्तु वे प्रेम और सद्भाव से इस्लाम की बात करते थे। किन्तु बादशाहों पर सूफियों से कहीं अधिक प्रभाव कट्टरपंथियों का था। इस्लाम के साथ-साथ जिहाद शब्द और जिहादी मनोवृत्ति को भारत पिछले हजार वर्षों से झेल रहा है।

भारत में जो बात हिन्दुओं के साथ हुई, वही बात यूरोप में ईसाइयों के साथ हुई। एक समय ऐसा भी आया था जब स्पेन तक इस्लामी राज्य स्थापित हो गया था। 11वीं शताब्दी में ईसाइयों ने मुसलमानों के विरुद्ध संघर्ष छेड़ा। फिलीस्तीन का सारा क्षेत्र यहूदी और ईसाई दोनों के लिए पवित्र था। अत: दोनों उस क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए संघर्ष करते रहे। ईसाइयों ने यहूदियों के साथ इस संघर्ष के लिए जिहाद की टक्कर में एक नया शब्द इस्तेमाल किया - क्रूसेड। क्रूसेड का अर्थ भी लगभग जिहाद की तरह है। इसका अर्थ है विधर्मियों से अपने पवित्र स्थल को मुक्त कराना। जिहाद के विरुद्ध क्रूसेड किया गया। लगभग सारा यूरोप संगठित होकर क्रूसेड के तले जिहाद का सामना कर रहा था। 14वीं शताब्दी में क्रूसेड अत्यंत प्रभावशाली रहा। विशेषत: स्पेन से और पूरे यूरोप से इस्लाम को लगभग समाप्त कर दिया गया। इस्लाम अब तुर्की तक सिमट कर रह गया था।

किन्तु यूरोप में ईसाई जिस प्रकार संगठित होकर जिहाद के विरुद्ध लड़े, उस तरह हम भारतीय नहीं लड़ सके। इसके पीछे कई कारण थे। उस समय इस्लाम के पास जिहाद शब्द था, ईसाइयों के पास क्रूसेड शब्द था लेकिन दुर्भाग्य से हम भारतीयों के पास ऐसा कोई सामयिक या प्रतीकात्मक शब्द नहीं था जो हमें एक संगठित मंच या नेतृत्व देता। हालांकि भारत में उस समय शक्तिशाली और प्रभावशाली राजाओं की कमी नहीं थी। अनेकों ने विदेशी आक्रांताओं का अत्यंत वीरतापूर्वक सामना भी किया। लेकिन उनके सामने कोई एक स्पष्ट लक्ष्य नहीं था। वे ज्यादातर अपनी-अपनी राज्य सीमाओं का बचाव करके चुप हो जाते थे। इसलिए कभी भी संगठित होकर भारत में आक्रांताओं द्वारा लाए गए जिहाद का पूरी शक्ति से विरोध नहीं हुआ।

हालांकि बीच-बीच में प्रयास हुए। सोमनाथ की रक्षा के लिए वहां के राजा ने अपनी सेना को संगठित किया। लेकिन समीपवर्ती राजस्थान के राजा ने उसका साथ नहीं दिया। भारत में लम्बे समय तक कभी तुर्कों, पठानों और फिर मुगलों के साथ-साथ जिहाद भी पनपता रहा।

जिहाद या इस्लामी आक्रांताओं के विरुद्ध छिटपुट युद्ध तो हुए किन्तु संगठित प्रयास नहीं हो सका। जिहाद के विरुद्ध हिन्दू राजाओं के प्रयास की बात करें तो सबसे पहले हमें दक्षिण में छत्रपति शिवाजी दिखते हैं। उन्होंने मुगलों के विरुद्ध न केवल एक संगठित विद्रोह खड़ा किया बल्कि अपने प्रयास को एक लक्ष्य भी दिया। छत्रपति शिवाजी ने उस लक्ष्य को हिन्दवी साम्राज्य स्थापित करने का नाम दिया। संभवत: वह प्रथम हिन्दू राजा थे जिन्होंने इस्लाम और जिहाद के विरुद्ध हिन्दवी साम्राज्य का संकल्प दिया।

जिहाद के विरुद्ध जिस प्रयोजनशील शब्द की आवश्यकता थी वह गुरु गोविन्द सिंह ने दिया। गुरु गोविन्द सिंह ने अपनी परम्परा से ही एक शब्द दिया - धर्मयुद्ध। धर्मयुद्ध जिहाद की टक्कर का शब्द था। ऐसा प्रयोजनमूलक और मंतव्य देने वाला शब्द इससे पहले कभी प्रयोग नहीं किया गया था। धर्मयुद्ध शब्द के साथ उन्होंने पूरा युद्ध दर्शन विकसित किया। पुरानी मानसिकता बदलकर शस्त्रधारण करने की बात कही। मुगलों के साम्राज्य में, विशेषत: उत्तरी भारत में लोगों को (राजपूतों को छोड़कर) न शस्त्र धारण करने की, न माथे पर तिलक लगाने की, और यहां तक कि जूते तक पहनने की भी आज्ञा नहीं थी। किन्तु गुरु गोविन्द सिंह ने लोगों को संगठित कर शस्त्र धारण करवाए, जूते पहनने को कहा तथा उनके नाम के साथ सिंह लगाया ताकि उनमें वीर भाव जाग्रत हो, एक उदासीनता और लचरता, जो मुगलों की लम्बी अधीनता में लोगों के अंदर थी, वह टूटे। उन्होंने एक बहुत बड़े ग्रंथ "कृष्णावतार" की रचना की जो "भागवतपुराण" के दशमस्कंध पर आधारित है। उसमें उन्होंने एक स्थान पर लिखा है-

दशमकथा भागवत की, रचना करी बनाई,

अवर (और) वासना नाहीं प्रभु, धर्मयुद्ध को चाई।

अर्थात् भागवत जो संस्कृत में है और मैंने इसे ब्रजभाषा या जनभाषा में लिखा है, मेरे मन में सिर्फ धर्मयुद्ध का चाव है।

धर्मयुद्ध में गुरु गोविन्द सिंह जी ने सभी जातियों को शामिल किया था। यह अजीब बात थी कि जहां एक ओर जिहाद में सभी मुस्लिम और क्रूसेड में सभी ईसाई शामिल थे, वहीं भारत में कुल जनसंख्या का 10 प्रतिशत से भी कम युद्ध में भाग लेता था। 90 प्रतिशत जनता तो खड़ी देखती रहती थी। यही कारण था कि धर्मयुद्ध में गुरु गोविन्द सिंह जी ने जनभागीदारी को सीमित नहीं किया। धर्मयुद्ध के लिए सबसे आगे रहने वाले पंचप्यारों में भी केवल एक क्षत्रिय था, बाकी चार में जाट, धोबी, कहार तथा नाई थे। उन्हें योद्धा बनाया गया। और आगे चलकर वे ऐसे कुशल योद्धा बने कि दुर्दान्त पठान जो खैबर दर्रों से आते थे, उनका मुंह मोड़ा। जिन दुर्दान्त लड़ाकों का सामना आज अमरीका भी नहीं कर पा रहा है, उन्हीं योद्धाओं को भगाकर महाराजा रणजीत सिंह के समय में सिख सेनाओं ने जमरूद तक अपना अधिकार जमा लिया था। उस समय कश्मीर और लाहौर को भी अफगानों से छीनकर रणजीत सिंह ने अपना कब्जा जमा लिया था।

गुरु गोविन्द सिंह के समय से शुरु हुआ धर्मयुद्ध वास्तविक अर्थों में एक प्रयोजनबद्ध लक्ष्य था। बिना लक्ष्य के सामान्य युद्ध लड़े जा सकते हैं, जिहाद या क्रूसेड नहीं। मुझे लगता है कि अगर गुरु गोविन्द सिंह ने धर्मयुद्ध का लक्ष्य न दिया होता तो आज विभाजन सीमा वाघा नहीं, संभवत: दिल्ली या इससे भी आगे होती। यह अत्यंत महत्वपूर्ण अध्याय था जिहाद के विरुद्ध भारत और भारतीयों के प्रतिरोध के इतिहास का। भारतीय अब यह सोचने लगे थे कि दुर्दान्त आक्रान्ताओं का सामना कर उन्हें उनके घर तक खदेड़कर विजय प्राप्त की जा सकती है।

लेकिन फिर भी धर्मयुद्ध को हम एक मंत्र की तरह सारे भारत में प्रसारित नहीं कर सके। धर्मयुद्ध एक सीमित क्षेत्र तक ही प्रभावित हुआ था।

जहां तक धर्मयुद्ध के महत्व की बात है, इस युद्ध ने भारत के बहुत से क्षेत्रों को स्वतंत्र किया। दिल्ली से पेशावर तक जो क्षेत्र पिछले 800 वर्षों से लगातार मुगलों, पठानों और तुर्कों द्वारा शासित रहे, उन्हें महाराजा रणजीत सिंह ने स्वतंत्र किया। कांगड़ा से पेशावर तक शासन करने वाला अंतिम हिन्दू राजा था जयपाल सिंह, जिसका पुत्र आनंदपाल 1026 ई. में विदेशी आक्रांताओं से पराजित हुआ। 1026 ई. के बाद सन् 1799 में कहीं जाकर रणजीत सिंह ने पहले लाहौर पर कब्जा किया और सन् 1802 में महाराजा के रूप में उनका तिलक हुआ। इस दौरान पूरे 800 वर्षों तक उक्त प्रदेश विदेशी आक्रान्ताओं की गुलामी में रहे। 800 वर्षों बाद मिली यह सफलता अत्यंत महत्वपूर्ण थी। यह धर्मयुद्ध के मंत्र का प्रभाव था। वरना मुझे लगता है कि अब तक तो हिन्दुस्थान न जाने कितने टुकड़ों में बंट गया होता। इसी संदर्भ में छत्रपति शिवाजी महाराज का हिन्दवी साम्राज्य अभियान जो एक समय "अटक से कटक तक" स्थापित हो गया था, महत्वपूर्ण व प्रभावपूर्ण रहा था।

जिहाद के विरुद्ध संगठित न होने के पीछे भारतीय समाज की वर्ण व्यवस्था की काफी हद तक जिम्मेदार थी। अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण के समय ब्राह्मण सदाशिवराव ने सूरजमल जाट का सहयोग नहीं लिया। यदि ऐसा होता तो संभवत: उनकी संगठित शक्ति के आगे अब्दाली टिक नहीं पाता। किन्तु छुआछूत और वर्णभेद की भावना हिन्दुओं के असंगठित रहने का एक कारण बनी।

यह ठीक है कि जिहाद के विरुद्ध या जबरन इस्लाम मत न कबूलने के विरोध सम्बंधी अनेक वैयक्तिक उदाहरण हैं। किन्तु व्यक्तिगत उदाहरण कुछ समय के लिए समाज का आदर्श बन सकते थे, एक सुगठित व सामूहिक मंच नहीं दे सकते थे। ऐसे अनेक उदाहरण धर्म और स्वाभिमान की रक्षा के उदाहरण थे, पर जिहाद का प्रत्युत्तर नहीं थे। जिहाद एक सामूहिक कर्म है और सामूहिकता ही इसका उत्तर है।

गुरु गोविन्द सिंह द्वारा लगाए गए धर्मयुद्ध के बीज को महाराजा रणजीत सिंह के समय तक पहुंचने और एक फलदार वृक्ष बनने तक लगभग 60-70 वर्ष का समय लगा। इस बीच में सिखों पर मुगल बादशाहों द्वारा बेहिसाब अत्याचार किए गए। इसका एक उदाहरण था लाहौर का सूबेदार मीर मन्नु। उसने एक काजी को स्थानीय गुड़मण्डी नामक स्थान पर बिठाया तथा सामान्यजन को लुभाते हुए कहा था कि जो एक सिख पकड़कर काजी के हवाले करेगा उसे 80 रुपए दिए जाएंगे। वहां लोग सिखों के शीश लाते और काजी उन्हें रुपए देता। वह स्थान शीशों से पट जाता था। यही नहीं, मांओं के सामने ही उनके बच्चों के टुकड़े कर उसकी माला उनके गले में पहना दी जाती थी। गुरु गोविन्द सिंह के बाद धर्मयुद्ध को आगे बढ़ाने वाला बंदा बहादुर अपने 700 लड़ाकों के साथ पकड़ा गया था। सात दिनों में 700 सिखों को कत्ल किया गया और बंदा बहादुर को भी अमानवीय यातनाएं देकर मारा गया। लेकिन यह धर्मयुद्ध की भावना का ही कमाल था कि सिख झुके नहीं। उस समय मीर मन्नू के अत्याचारों के लिए सिखों में एक कहावत प्रचलित हो गई थी-

मन्नू साडी दातरी, असी मन्नु दे सोए

ज्यों-ज्यों सानु वडता, असी दून सवाए होए।

अर्थात् मन्नू हमारी दरांती (फसल काटने का औजार) है और हम उसकी फसल। वह हमें जैसे-जैसे काटता जाता है, हम सवाए-दुगुने होते जाते हैं।

इसी प्रकार एक शब्द है- "घल्लूघारा" जो कालांतर में धर्मयुद्ध का ही एक प्रतीक शब्द बन गया, जिसका अर्थ है पठानों, अफगानों, मुगलों से हुआ संघर्ष। एक अनुमान के अनुसार, एक छोटे घल्लूघारा में 6,000 लोग मारे गए थे तथा एक अन्य में करीब 20,000 व्यक्ति मारे गए थे।

इसी तरह की एक अन्य घटना है अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर दो बार आक्रमण कर उसे तोप से उड़ाया गया। अमृत सरोवर में मिट्टी भरवा दी गई। किन्तु सिखों ने मौका मिलते ही सरोवर व मंदिर का दुबारा-दुबारा निर्माण किया और हर नए निर्माण को पहले से अधिक भव्य बनाया और अंतत: महाराणा रणजीत सिंह ने उसे सोने से भी मढ़वाया। एक अंग्रेज ने लिखा भी था, वे हर बार स्वर्ण मंदिर की सीढ़ियों को पठानों के खून से धोते थे।

कोई भी धर्मयुद्ध एक कीमत मांगता है। जो मृत्यु से डरता है, वो धर्मयुद्ध नहीं कर सकता। सिख गुरुओं ने लोगों के संगठित कर एक निश्चित लक्ष्य के लिए मरना सिखा दिया था। उस समय प्राणों के मोह से बड़ी स्वतंत्रता थी। wikipedia

शनिवार, जुलाई 21, 2012

जितने भी लोग महाभारत को काल्पनिक बताते हैं.... उनके मुंह पर पर एक जोरदार तमाचा है आज का यह पोस्ट...!


जितने भी लोग महाभारत को काल्पनिक बताते हैं.... उनके मुंह पर पर एक जोरदार तमाचा है आज का यह पोस्ट...!

महाभारत के बाद से आधुनिक काल तक के सभी राजाओं का विवरण क्रमवार तरीके से नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है...!

आपको यह जानकर एक बहुत ही आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी होगी कि महाभारत युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठिर की 30 पीढ़ियों ने 1770 वर्ष 11 माह 10 दिन तक राज्य किया था..... जिसका पूरा विवरण इस प्रकार है :
क्र................... शासक का नाम.......... वर्ष....माह.. दिन

1. राजा युधिष्ठिर (Raja Yudhisthir)..... 36.... 08.... 25
2 राजा परीक्षित (Raja Parikshit)........ 60.... 00..... 00
3 राजा जनमेजय (Raja Janmejay).... 84.... 07...... 23
4 अश्वमेध (Ashwamedh )................. 82.....08..... 22
5 द्वैतीयरम (Dwateeyram )............... 88.... 02......08
6 क्षत्रमाल (Kshatramal)................... 81.... 11..... 27
7 चित्ररथ (Chitrarath)...................... 75......03.....18
8 दुष्टशैल्य (Dushtashailya)............... 75.....10.......24
9 राजा उग्रसेन (Raja Ugrasain)......... 78.....07.......21
10 राजा शूरसेन (Raja Shoorsain).......78....07........21
11 भुवनपति (Bhuwanpati)................69....05.......05
12 रणजीत (Ranjeet).........................65....10......04
13 श्रक्षक (Shrakshak).......................64.....07......04
14 सुखदेव (Sukhdev)........................62....00.......24
15 नरहरिदेव (Narharidev).................51.....10.......02
16 शुचिरथ (Suchirath).....................42......11.......02
17 शूरसेन द्वितीय (Shoorsain II)........58.....10.......08
18 पर्वतसेन (Parvatsain )..................55.....08.......10
19 मेधावी (Medhawi)........................52.....10......10
20 सोनचीर (Soncheer).....................50.....08.......21
21 भीमदेव (Bheemdev)....................47......09.......20
22 नरहिरदेव द्वितीय (Nraharidev II)...45.....11.......23
23 पूरनमाल (Pooranmal)..................44.....08.......07
24 कर्दवी (Kardavi)...........................44.....10........08
25 अलामामिक (Alamamik)...............50....11........08
26 उदयपाल (Udaipal).......................38....09........00
27 दुवानमल (Duwanmal)..................40....10.......26
28 दामात (Damaat)..........................32....00.......00
29 भीमपाल (Bheempal)...................58....05........08
30 क्षेमक (Kshemak)........................48....11........21

इसके बाद ....क्षेमक के प्रधानमन्त्री विश्व ने क्षेमक का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 14 पीढ़ियों ने 500 वर्ष 3 माह 17 दिन तक राज्य किया जिसका विरवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 विश्व (Vishwa)......................... 17 3 29
2 पुरसेनी (Purseni)..................... 42 8 21
3 वीरसेनी (Veerseni).................. 52 10 07
4 अंगशायी (Anangshayi)........... 47 08 23
5 हरिजित (Harijit).................... 35 09 17
6 परमसेनी (Paramseni)............. 44 02 23
7 सुखपाताल (Sukhpatal)......... 30 02 21
8 काद्रुत (Kadrut)................... 42 09 24
9 सज्ज (Sajj)........................ 32 02 14
10 आम्रचूड़ (Amarchud)......... 27 03 16
11 अमिपाल (Amipal) .............22 11 25
12 दशरथ (Dashrath)............... 25 04 12
13 वीरसाल (Veersaal)...............31 08 11
14 वीरसालसेन (Veersaalsen).......47 0 14

इसके उपरांत...राजा वीरसालसेन के प्रधानमन्त्री वीरमाह ने वीरसालसेन का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 16 पीढ़ियों ने 445 वर्ष 5 माह 3 दिन तक राज्य किया जिसका विरवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 राजा वीरमाह (Raja Veermaha)......... 35 10 8
2 अजितसिंह (Ajitsingh)...................... 27 7 19
3 सर्वदत्त (Sarvadatta)..........................28 3 10
4 भुवनपति (Bhuwanpati)...................15 4 10
5 वीरसेन (Veersen)............................21 2 13
6 महिपाल (Mahipal)............................40 8 7
7 शत्रुशाल (Shatrushaal).....................26 4 3
8 संघराज (Sanghraj)........................17 2 10
9 तेजपाल (Tejpal).........................28 11 10
10 मानिकचंद (Manikchand)............37 7 21
11 कामसेनी (Kamseni)..................42 5 10
12 शत्रुमर्दन (Shatrumardan)..........8 11 13
13 जीवनलोक (Jeevanlok).............28 9 17
14 हरिराव (Harirao)......................26 10 29
15 वीरसेन द्वितीय (Veersen II)........35 2 20
16 आदित्यकेतु (Adityaketu)..........23 11 13

ततपश्चात् प्रयाग के राजा धनधर ने आदित्यकेतु का वध करके उसके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 9 पीढ़ी ने 374 वर्ष 11 माह 26 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण इस प्रकार है ..

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 राजा धनधर (Raja Dhandhar)...........23 11 13
2 महर्षि (Maharshi)...............................41 2 29
3 संरछि (Sanrachhi)............................50 10 19
4 महायुध (Mahayudha).........................30 3 8
5 दुर्नाथ (Durnath)...............................28 5 25
6 जीवनराज (Jeevanraj).......................45 2 5
7 रुद्रसेन (Rudrasen)..........................47 4 28
8 आरिलक (Aarilak)..........................52 10 8
9 राजपाल (Rajpal)..............................36 0 0

उसके बाद ...सामन्त महानपाल ने राजपाल का वध करके 14 वर्ष तक राज्य किया। अवन्तिका (वर्तमान उज्जैन) के विक्रमादित्य ने महानपाल का वध करके 93 वर्ष तक राज्य किया। विक्रमादित्य का वध समुद्रपाल ने किया और उसकी 16 पीढ़ियों ने 372 वर्ष 4 माह 27 दिन तक राज्य किया !
जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 समुद्रपाल (Samudrapal).............54 2 20
2 चन्द्रपाल (Chandrapal)................36 5 4
3 सहपाल (Sahaypal)...................11 4 11
4 देवपाल (Devpal).....................27 1 28
5 नरसिंहपाल (Narsighpal).........18 0 20
6 सामपाल (Sampal)...............27 1 17
7 रघुपाल (Raghupal)...........22 3 25
8 गोविन्दपाल (Govindpal)........27 1 17
9 अमृतपाल (Amratpal).........36 10 13
10 बालिपाल (Balipal).........12 5 27
11 महिपाल (Mahipal)...........13 8 4
12 हरिपाल (Haripal)..........14 8 4
13 सीसपाल (Seespal).......11 10 13
14 मदनपाल (Madanpal)......17 10 19
15 कर्मपाल (Karmpal)........16 2 2
16 विक्रमपाल (Vikrampal).....24 11 13

टिप : कुछ ग्रंथों में सीसपाल के स्थान पर भीमपाल का उल्लेख मिलता है, सम्भव है कि उसके दो नाम रहे हों।

इसके उपरांत .....विक्रमपाल ने पश्चिम में स्थित राजा मालकचन्द बोहरा के राज्य पर आक्रमण कर दिया जिसमे मालकचन्द बोहरा की विजय हुई और विक्रमपाल मारा गया। मालकचन्द बोहरा की 10 पीढ़ियों ने 191 वर्ष 1 माह 16 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 मालकचन्द (Malukhchand) 54 2 10
2 विक्रमचन्द (Vikramchand) 12 7 12
3 मानकचन्द (Manakchand) 10 0 5
4 रामचन्द (Ramchand) 13 11 8
5 हरिचंद (Harichand) 14 9 24
6 कल्याणचन्द (Kalyanchand) 10 5 4
7 भीमचन्द (Bhimchand) 16 2 9
8 लोवचन्द (Lovchand) 26 3 22
9 गोविन्दचन्द (Govindchand) 31 7 12
10 रानी पद्मावती (Rani Padmavati) 1 0 0

रानी पद्मावती गोविन्दचन्द की पत्नी थीं। कोई सन्तान न होने के कारण पद्मावती ने हरिप्रेम वैरागी को सिंहासनारूढ़ किया जिसकी पीढ़ियों ने 50 वर्ष 0 माह 12 दिन तक राज्य किया !
जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 हरिप्रेम (Hariprem) 7 5 16
2 गोविन्दप्रेम (Govindprem) 20 2 8
3 गोपालप्रेम (Gopalprem) 15 7 28
4 महाबाहु (Mahabahu) 6 8 29

इसके बाद.......राजा महाबाहु ने सन्यास ले लिया । इस पर बंगाल के अधिसेन ने उसके राज्य पर आक्रमण कर अधिकार जमा लिया। अधिसेन की 12 पीढ़ियों ने 152 वर्ष 11 माह 2 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 अधिसेन (Adhisen) 18 5 21
2 विल्वसेन (Vilavalsen) 12 4 2
3 केशवसेन (Keshavsen) 15 7 12
4 माधवसेन (Madhavsen) 12 4 2
5 मयूरसेन (Mayursen) 20 11 27
6 भीमसेन (Bhimsen) 5 10 9
7 कल्याणसेन (Kalyansen) 4 8 21
8 हरिसेन (Harisen) 12 0 25
9 क्षेमसेन (Kshemsen) 8 11 15
10 नारायणसेन (Narayansen) 2 2 29
11 लक्ष्मीसेन (Lakshmisen) 26 10 0
12 दामोदरसेन (Damodarsen) 11 5 19

लेकिन जब ....दामोदरसेन ने उमराव दीपसिंह को प्रताड़ित किया तो दीपसिंह ने सेना की सहायता से दामोदरसेन का वध करके राज्य पर अधिकार कर लिया तथा उसकी 6 पीढ़ियों ने 107 वर्ष 6 माह 22 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 दीपसिंह (Deepsingh) 17 1 26
2 राजसिंह (Rajsingh) 14 5 0
3 रणसिंह (Ransingh) 9 8 11
4 नरसिंह (Narsingh) 45 0 15
5 हरिसिंह (Harisingh) 13 2 29
6 जीवनसिंह (Jeevansingh) 8 0 1

पृथ्वीराज चौहान ने जीवनसिंह पर आक्रमण करके तथा उसका वध करके राज्य पर अधिकार प्राप्त कर लिया। पृथ्वीराज चौहान की 5 पीढ़ियों ने 86 वर्ष 0 माह 20 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।
क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 पृथ्वीराज (Prathviraj) 12 2 19
2 अभयपाल (Abhayapal) 14 5 17
3 दुर्जनपाल (Durjanpal) 11 4 14
4 उदयपाल (Udayapal) 11 7 3
5 यशपाल (Yashpal) 36 4 27

विक्रम संवत 1249 (1193 AD) में मोहम्मद गोरी ने यशपाल पर आक्रमण कर उसे प्रयाग के कारागार में डाल दिया और उसके राज्य को अधिकार में ले लिया।

उपरोक्त जानकारी http://www.hindunet.org/ से साभार ली गई है जहाँ पर इस जानकारी का स्रोत स्वामी दयानन्द सरस्वती के सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ, चित्तौड़गढ़ राजस्थान से प्रकाशित पत्रिका हरिशचन्द्रिका और मोहनचन्द्रिका के विक्रम संवत1939 के अंक और कुछ अन्य संस्कृत ग्रंथों को बताया गया है।
साभार ....जी.के. अवधिया |

जय महाकाल....!!!

नोट : इस पोस्ट को मैंने नहीं लिखा है और मैंने इसे अपने एक मित्र की पोस्ट से कॉपी किया है क्योंकि मुझे ये अमूल्य जानकारी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने की इच्छा हुई...!

शुक्रवार, जुलाई 20, 2012

सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये:रविन्द्र नाथ टेगोर

मित्रो या तो इस link http://www.youtube.com/watch?v=D
सच जाने या इस पोस्ट को पूरा पढे !
____________________________________________________
__________________________________________________-
‘’वन्देमातरम’’ बंकिमचंद्र चटर्जी ने लिखा था ! उन्होने इस गीत को लिखा !लिखने
के बाद 7 साल लगे जब यह गीत लोगो के सामने आया ! क्यूँ की उन्होने जब इस गीत
लो लिखा उसके बाद उन्होने एक उपन्यास लिखा जिसका नाम था ‘’आनद मठ’’ उसमे इस
गीत को डाला !वो उपन्यास छपने मे 7 साल लगे !

1882 आनद मठ उपनास का हिस्सा बना वन्देमातरम और उसके बाद जब लोगो ने इसको पढ़ा
तो इसका अर्थ पता चला की वन्देमातरम क्या है ! आनद मठ उपन्यास बंकिम चंद्र
चटर्जी ने लिखा था अँग्रेजी सरकार के विरोध मे और उन राजा महाराजाओ के विरोध
मे जो किसी भी संप्रदाय के हो लेकिन अँग्रेजी सरकार को सहयोग करते थे ! फिर
उसमे उन्होने बगावत की भूमिका लिखी कि अब बगावत होनी चाहिए !विरोध होना चाहिए
ताकि इस अँग्रेजी सत्ता को हम पलट सके ! और इस तरह वन्देमातरम को सार्वजनिक
गान बनना चाहिए ये उन्होने घोषित किया !

उनकी एक बेटी हुआ करती थी जिसका अपने पिता बंकिमचंद्र चटर्जी जी से इस बात पर
बहुत मत भेद था ! उनकी बेटी कहती थी आपने यह वन्देमातरम लिखा है उसके ये श्बद
बहुत कलिष्ट हैं ! कि बोलने और सुनने वाले कि ही समझ में नहीं आएंगे ! इसलिए
गीत को आप इतना सरल बनाइये कि बोलने और सुनने वाले कि समझ मे आ सके !

तब बंकिम चंद्र चटर्जी ने कहा देखो आज तुमको यह कलिष्ट लग रहा हो लेकिन मेरी
बात याद रखना एक दिन ये गीत हर नोजवान के होंटो पर होगा और हर क्रांतिवीर कि
प्रेरणा बनेगा ! और हम सब जानते है इस घोषणा के 12 साल बाद बंकिम चंद्र चटर जी
का स्वर्गवास हो गया ! बाद मे उनके बेटी और परिवार ने आनद मठ पुस्तक जिसमे ये
गीत था उसका बड़े पेमाने पर प्रचार किया !

वो पुस्तक पहले बंगला मे बनी बाद मे उसका कन्नड ,मराठी तेलगु ,हिन्दी आदि बहुत
भाषा मे छपी ! उस पुस्तक ने क्रांतिकारियों मे बहुत जोश भरने का काम किया ! उस
पुस्तक मे क्या था कि इस पूरी अँग्रेजी व्यवस्था का विरोध करे क्यू कि यह
विदेशी है ! उसमे ऐसे बहुत सी जानकारिया थी जिसको पढ़ कर लोग बहुत उबलते थे
!और वो लोगो मे जोश भरने का काम करती थी ! अँग्रेजी सरकार ने इस पुस्तक पर
पाबंदी लगाई कई बार इसको जलाया गया ! लेकिन इस कोई न कोई एक मूल प्रति बच ही
जाती ! और आगे बढ़ती रहती !

1905 मे अंग्रेज़ो की सरकार ने बंगाल का बंटवारा कर दिया एक अंग्रेज़ अधिकारी
था उसका नाम था कर्ज़न ! उसने बंगाल को दो हिस्सो मे बाँट दिया !एक पूर्वी
बंगाल एक पश्चमी बंगाल ! पूर्वी बंगाल था मुसलमानो के लिए पश्चमी बगाल था
हिन्दुओ के लिए !! हिन्दू और मूसलमान के आधार पर यह पहला बंटवारा था !

तो भारत के कई लोग जो जानते थे कि आगे क्या हो सकता है उन्होने इस बँटवारे का
विरोध किया ! और भंग भंग के विरोध मे एक आंदोलन शुरू हुआ ! और इस आंदोलन के
प्रमुख नेता थे (लाला लाजपतराय) जो उत्तर भारत मे थे !(विपिन चंद्र पाल) जो
बंगाल और पूर्व भारत का नेतत्व करते थे ! और लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक जो
पश्चिम भारत के बड़े नेता थे ! इस तीनों नेताओ ने अंग्रेज़ो के बंगाल विभाजन
का विरोध शुरू किया ! इस आंदोलन का एक हिस्सा था (अंग्रेज़ो भारत छोड़ो)
(अँग्रेजी सरकार का असहयोग) करो ! (अँग्रेजी कपड़े मत पहनो) (अँग्रेजी वस्तुओ
का बहिष्कार करो) ! और दूसरा हिस्सा था पोजटिव ! कि भारत मे स्वदेशी का
निर्माण करो ! स्वदेशी पथ पर आगे बढ़ो !

लोकमान्य तिलक ने अपने शब्दो मे इसको स्वदेशी आंदोलन कहा ! अँग्रेजी सरकार
इसको भंग भंग विरोधे आंदोलन कहती रही !लोकमान्य तिलक कहते थे यह हमारा स्वदेशी
आंदोलन है ! और उस आंदोलन के ताकत इतनी बड़ी थी !कि यह तीनों नेता अंग्रेज़ो
के खिलाफ जो बोल देते उसे पूरे भारत के लोग अपना लेते ! जैसे उन्होने आरके
इलान किया अँग्रेजी कपड़े पहनना बंद करो !करोड़ो भारत वासियो ने अँग्रेजी
कपड़े पहनना बंद कर दिया ! उयर उसी समय भले हिंदुतसनी कपड़ा मिले मोटा मिले
पतला मिले वही पहनना है ! फिर उन्होने कहाँ अँग्रेजी बलेड का ईस्टमाल करना
ब्नद करो ! तो भारत के हजारो नाईयो ने अँग्रेजी बलेड से दाड़ी बनाना बंद कर
दिया ! और इस तरह उस्तरा भारत मे वापिस आया ! फिर लोक मान्य तिलक ने कहा
अँग्रेजी चीनी खाना बंद करो ! क्यू कि चीनी उस वक्त इंग्लैंड से बन कर आती थी
भारत मे गुड बनाता था ! तो हजारो लाखो हलवाइयों ने गुड दाल कर मिठाई बनाना
शुरू कर दिया ! फिर उन्होने अपील लिया अँग्रेजी कपड़े और अँग्रेजी साबुन से
अपने घरो को मुकत करो ! तो हजारो लाखो धोबियो ने अँग्रेजी साबुन से कपड़े धोना
मुकत कर दिया !फिर उन्होने ने पंडितो से कहा तुम शादी करवाओ अगर तो उन लोगो कि
मत करवाओ जो अँग्रेजी वस्त्र पहनते हो ! तो पंडितो ने सूट पैंट पहने टाई पहनने
वालों का बहिष्कार कर दिया !

इतने व्यापक स्तर पर ये आंदोलन फैला !कि 5-6 साल मे अँग्रेजी सरकार घबरागी
क्यूंकि उनका माल बिकना बंद हो गया ! ईस्ट इंडिया कंपनी का धंधा चोपट हो गया !
तो ईस्ट इंडिया कंपनी ने अंग्रेज़ सरकार पर दबाव डाला ! कि हमारा तो धंधा ही
चोपट हो गया भारत मे ! हमारे पास कोई उपाय नहीं है आप इन भारतवासियो के मांग
को मंजूर करो मांग क्या थी कि यह जो बंटवारा किया है बंगाल का हिन्दू मुस्लिम
से आधार पर इसको वापिस लो हमे बंगाल के विभाजन संप्रदाय के आधार पर नहीं चाहिए
! और आप जानते अँग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा ! और 1911 मे divison of bangal
act वापिस लिया गया ! इतनी बड़ी होती है बहिष्कार कि ताकत !

तो लोक मान्य तिलक को समझ आ गया ! अगर अंग्रेज़ो को झुकाना है ! तो बहिष्कार
ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है ! यह 6 साल जो आंदोलन चला इस आंदोलन का मूल मंत्र
था वन्देमातरम ! जीतने क्रांतिकारी थे लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक,लाला लाजपत
राय ,विपिन चंद्र पाल के साथ उनकी संख्या !1 करोड़ 20 लाख से ज्यादा थी ! वो
हर कार्यक्रम मे वन्देमातरम गाते थे ! कार्यक्रम कि शुरवात मे वन्देमातरम !
कार्यक्रम कि समाप्ति पर वन्देमातरम !!


उसके बाद क्या हुआ अंग्रेज़ अपने आप को बंगाल से असुरक्षित महसूस करने लगे
!क्यूंकि बंगाल इस आंदोलन का मुख्य केंद्र था ! सन 1911 तक भारत की राजधानी
बंगाल हुआ करता था। सन 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ
बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने
आपको बचाने के लिए …के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में
दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया। पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे
हुए थे तो …अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि
लोग शांत हो जाये। इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया।
रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत
में लिखना ही होगा। उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता
था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे,
उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता
डिविजन के निदेशक (Director) रहे। उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी
में लगा हुआ था। और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों के
लिए।

रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है “जन गण मन
अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता”। इस गीत के सारे के सारे शब्दों में
अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि ये
तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था। इस राष्ट्रगान का अर्थ
कुछ इस तरह से होता है “भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का
भाग्य विधाता समझती है और मानती है। हे अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत के
भाग्य विधाता हो। तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी
प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण
भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये
सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है और
तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है। तुम्हारी ही हम गाथा गाते है। हे भारत के
भाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो। ” में ये गीत गाया गया।

जब वो इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया।
जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो
मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की। वह बहुत खुश हुआ। उसने आदेश
दिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड
बुलाया जाये। रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए। जोर्ज पंचम उस समय नोबल
पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था। उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार
से सम्मानित करने का फैसला किया। तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कार
को लेने से मना कर दिया। क्यों कि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथ
टेगोर को उनके इस गीत के लिए खूब डांटा था। टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल
पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर
मुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे
जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है।
जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना
के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया।

रविन्द्र नाथ टैगोर की ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला कांड
हुआ और गाँधी जी ने लगभग गाली की भाषा में उनको पत्र लिखा और कहा क़ि अभी भी
तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब उतरेगा, तुम
अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए फिर
गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और बहुत जोर से डाटा कि अभी तक
तुम अंग्रेजो की अंध भक्ति में डूबे हुए हो तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद
खुली। इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को
लौटा दिया।

सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार
के पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे
थे। रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और
ICS ऑफिसर थे। अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के बाद की
घटना है) । इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत ‘जन गण मन’ अंग्रेजो के द्वारा
मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है। इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है। इस
गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है।लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इस
चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता
हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे।

7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र
नाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन
गीत न गाया जाये। 1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी। लेकिन वह दो
खेमो में बट गई। जिसमे एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे
में मोती लाल नेहरु थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। मोती लाल नेहरु चाहते
थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition
Government) बने। जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार
बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। इस मतभेद के कारण लोकमान्य तिलक
कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया। कोंग्रेस के दो हिस्से हो गए।
एक नरम दल और एक गरम दल। गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे क्रन्तिकारी।
वे हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे। और नरम दल के नेता थे मोती लाल नेहरु
(यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से
इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के लिए
आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे)। लेकिन नरम दल वाले
ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे।

नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था तो
अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों को
वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती (मूर्ति पूजा) है। और
आप जानते है कि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी है। उस समय मुस्लिम लीग
भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे। उन्होंने भी इसका विरोध करना
शुरू कर दिया क्योंकि जिन्ना भी देखने भर को (उस समय तक) भारतीय थे मन,कर्म और
वचन से अंग्रेज ही थे उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये कहना शुरू किया और
मुसलमानों को वन्दे मातरम गाने से मना कर दिया। जब भारत सन


1947 में स्वतंत्र हो गया तो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें राजनीति कर डाली।
संविधान सभा की बहस चली। संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थे
जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर
सहमति जताई। बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। और उस एक सांसद का नाम
था पंडित जवाहर लाल नेहरु। उनका तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों के
दिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए (दरअसल इस गीत से मुसलमानों
को नहीं अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी)। अब इस झगडे का फैसला कौन करे,
तो वे पहुचे गाँधी जी के पास। गाँधी जी ने कहा कि जन गन मन के पक्ष में तो मैं
भी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत
तैयार किया जाये। तो महात्मा गाँधी ने तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया
“विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा”। लेकिन नेहरु जी उस पर भी
तैयार नहीं हुए। नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता
और जन गन मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है।

उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले
रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु जी ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिया
और जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछ
और ही कहानी प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को
राष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गया नहीं गया। नेहरु जी कोई ऐसा काम नहीं
करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे,


मुसलमानों के वो इतने हिमायती कैसे हो सकते थे जिस आदमी ने पाकिस्तान बनवा
दिया जब कि इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नहीं चाहते थे, जन गण मन को इस लिए
तरजीह दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और
वन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था।
बीबीसी ने एक सर्वे किया था। उसने पूरे संसार में जितने भी भारत के लोग रहते
थे, उनसे पुछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत ज्यादा पसंद है तो 99 % लोगों
ने कहा वन्देमातरम। बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ हुई कि दुनिया के
सबसे लोकप्रिय गीतों में दुसरे नंबर पर वन्देमातरम है। कई देश है जिनके लोगों
को इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि इसमें जो लय है उससे एक
जज्बा पैदा होता है। तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का। अब ये आप
को तय करना है कि आपको क्या गाना है
रविन्द्र नाथ टैगोर द्वारा लिखित उनका हस्ताक्षरित …. इंग्लिश में अनुवादित
पत्र

हिन्दू धर्म एक बहती हुई नदी के समान है

हिन्दू धर्म एक बहती हुई नदी के समान है, जिसमें कई प्रकार की धाराएं आकर मिलती हैं और उसी में एकरूप होती हैं… इस बहती हुई नदी की गहराई में विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तु पनपते हैं जो आपसी साहचर्य से रहते हैं…

अन्य धर्म एक ठहरे हुए पानी समान हैं, जिनमें "बदलाव" या "समयानुसार परिवर्तन" नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे धर्म (पंथ कहना अधिक सटीक होगा) एक निश्चित सीमा और नियमों में बँधे हुए तालाब समान हैं…

=================
इतिहास गवाह है कि बहता हुआ पानी हमेशा स्वच्छ और निर्मल होता है, जबकि ठहरा हुआ पानी थोड़ी देर से ही सही, सड़ता जरूर है…

आमिर खान कभी मुसलमानों के समाज की कुरीतियों को समाप्त क्यों नहीं करता है


"क्यों भाई ये आमिर खान कभी मुसलमानों के समाज की कुरीतियों को समाप्त क्यों नहीं करता है इसको केबल हिन्दुओ की बुराई ही नजर आती है कही ऐसा तो नहीं ये फतबो से डरता है" ..

यह अकाट्य सत्य है कि मुसलमानों के आने से पहले घर में शौच करने और मैला ढोने की परम्परा सनातन हिंदू समाज में थी ही नहीं. जब हिंदू शौच के लिए घर से निकल कर किसी दूर स्थान पर ही दिशा मैदान के लिए जाया करते थे, तो विष्टा उठाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. जब विष्टा ढोने का आधार ही समाप्त हो जाता है, तो हिंदू समाज में अछूत कहाँ से आ गया

छुआ छुट (मैला उठाना ) मुसलमानों ने भारत में फैलाया था उस पोस्ट पर कई मुल्ले आ कर कमेन्ट करते थे की इस्लाम में ऐसा नहीं होता है और इस्लाम ऐसा नहीं करता है और न ही किसी मुस्लिम राजा ने ऐसा किया है आप झूठ बोल रहे है इस्लाम में छुआ छूट नहीं होती है आज मै एक और पोस्ट कर रहा हू इस्लाम की हकीकत को बताने के लिए काफी है ..... की इस्लाम दो मुह साँप है .... युद्ध में हारे हुए लोगो को गुलाम बनाने का काम और उनसे अपने गंदे काम कर बाना उनकी ओरतो को अपनी रखेल बनाना ....

भारत में युद्ध में हारे हिंदू :-

"जिनको थी आन प्यारी वो बलिदान हो गए,

जिनको थी जान प्यारी, मुसलमान हो गए "

लेकिन जो बचे बो वाल्मीकि हो गए


वाल्मिकी-हेला समुदाय के सामाजिक बहिष्कार एवं भेदभाव पर अध्ययन

Author: दयाशंकर मिश्र , Source: मीडिया फॉर राइट्स

हेला समाज के बारे में ऐसी लोकमान्यता है कि प्राचीन समय में किसी राजा ने अपने आदेश की अवहेलना पर एक बिरादरी को मैला ढोने की सजा सुनाई थी। इस बिरादरी के मुखिया का नाम इब्राहिम हेला था। ऐसा कहा जाता है कि तभी से इनके वंशजों को हेला कहा गया। इनके नाम पर संसार का सबसे घृणित काम लिख दिया गया। वैसे इस समुदाय के म.प्र. में होने का इतिहास नहीं है और कहा जाता है कि यह लोग उ.प्र. से पलायन करके यहां पहुंचे। जिसके बाद यह कथित आदेश एक अघोषित नियम बन गया।

मस्जिदों में हेलाओं के लिए अलग कतार होती है। ईद पर उनके साथ खुशियां नहीं बाटीं जाती। इसी से तंग आकर उज्जैन की हैलावाड़ी में हेलाओं ने एक अलग मस्जिद ही बना ली है। यह मस्जिद भेदभाव की समस्या का हल तो नहीं है, क्योंकि यह समुदाय को जोड़ने की जगह उसे स्वत: ही बहिष्कृत कर देता है।

हमारा संविधान, इस देश का कानून कागजों पर भले ही कुछ कहते दिखे, लेकिन इसके बाद भी हमारे देश में आज भी करोड़ों ऐसे लोग हैं, जो अपने मौलिक अधिकारों से वंचित, सामान्य जीवन जीने का अधिकार नहीं रखते हैं। मैला ढोने जैसी घृणित कुप्रथाएं आज भी जिंदा हैं। जंगों के जमाने में हारे हुए लोग गुलाम बनाए जाते थे, जिनकी जिंदगी तय करने का हक विजेता राजा को होता था। वक्त बदल गया लेकिन उन हारे हुए लोगों की कौम आज भी वैसी ही जिंदगी के लिए विवश है। अंतर इतना ही है कि लोकतंत्र में ऐसी भूमिका में वह बहुसंख्यक वर्ग होता है, जिसकी सरकार हो, जिसके पास वोट हों। जिसके पास वोट नहीं होते, उसकी स्थिति लोकतंत्र में किसी पराजित सैनिक से कम नहीं होती। सदियों पहले इस देश में एक सेना किसी जंग में हार गई थी और ऐसा माना जाता है कि विजित सेना ने उन्हें सजा सुनाई कि वे जीते हुए मनुष्यों का मैला साफ करें। इसके बाद से मैला ढोने की प्रथा का आरंभ हुआ। सदियां बीत गईं लेकिन यह प्रथा म.प्र. समेत देश के 13 से अधिक राज्यों में बदस्तूर जारी है। इस पर कार्रवाई के लिए अब तक अनेक समितियों का गठन हुआ और अनेक रिपोर्ट्स भी फाइल की गईं, लेकिन ग्रासरूट पर कुछ हुआ नहीं।

यह महज संख्याओं का मामला नहीं है। चूंकि हम एक लोकतांत्रिक गणराज्य में निवास करते हैं, इसलिए हम संख्याओं और आंकड़ों से खेलने के आदि हो चुके हैं। इस फैलोशिप पर अध्ययन के दौरान मैं बड़ी संख्या में लोगों से मिला, उनसे विचार-विमर्श किया। लेकिन इस दौरान ज्यादातर लोगों की सोच यही थी कि अब बहुत थोड़े से लोग इस काम को कर रहे हैं, अतः मामला बहुत गंभीर नहीं है। यही है आंकड़ों की बाजीगरी। हमारा समाज हर चीज को आंकड़ों से क्यों तौलता रहता है। यदि मप्र में मुट्ठीभर लोग भी यह काम करते हैं तो इस बात से अंतर पड़ता है, लोगों के दिलो-दिमाग पर अंतर पड़ना ही चाहिए। मप्र के उज्जैन की हैलावाड़ी, तराना का इलाका, देवास, नीमच और मंदसौर, शाजापुर मप्र के वे प्रमुख स्थान हैं, जहां पर मैला ढोने की कुप्रथा अब तक के तमाम प्रयासों के बाद भी समाप्त नहीं की जा सकी है। फैलोशिप पर अध्ययन के दौरान मैंने वाल्मिकियों, हेला समुदाय के लोगों के साथ निरंतर संवाद के माध्यम से यह जानने का प्रयास किया कि आखिर उनके बहिष्कृत होने के पीछे क्या कारण हैं। एक ओर हम एक गणतंत्र के रूप में मजबूत हो रहे हैं, तो दूसरी ओर हमारे सामाजिक ढांचे में सहिष्णुता की जगह कट्टरता का विस्तार होता जा रहा है। इस अध्ययन के माध्यम से मैंने वाल्मिकी और हेला दोनों समुदायों के सामाजिक, आर्थिक अध्ययन के साथ ही खुद उनकी विचार प्रक्रिया और दूसरे समाजों के साथ अंर्तसंबंधों को समझने का प्रयास किया है।

मैं फैलोशिप के दौरान मिले प्रत्येक सहयोग के लिए सदैव प्रस्तुत रहने वाले मो. आसिफ का विशेष आभारी रहूंगा। जो हमेशा मेरी मदद के लिए तत्पर रहे। इसके साथ ही महू की शबनम से भी मुझे समय-समय पर सहयोग मिला। आप दोनों ने ही हेला और वाल्मिकी समुदायों की समस्याओं को समझने में मेरी भरपूर मदद की। शबनम ने शोध कार्य के लिए आवश्यक संदर्भ सामग्री जुटाने में बहुत अधिक मदद की, जिसके लिए मैं सदैव उनका आभारी रहूंगा। मानवीय सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध सचिन जैन ने इस संपूर्ण अध्ययन के दौरान एक गाइड की भूमिका निभाई, उनके आत्मीय सहयोग के लिए भी साधुवाद।

मैला ढोना एक अमानवीय पीड़ा

विकास संवाद फैलोशिप के दौरान सामाजिक भेदभाव और बहिष्कार पर काम करने के दौरान मेरे अनुभव और शोध के मुख्य निष्कर्ष इस प्रकार से हैं, जो हमारे सामाजिक ताने-बाने की न केवल पोल खोलते हैं, बल्कि सामाजिक हकीकत और विभिन्न धर्मों में व्याप्त आपराधिक, अमानवीयता को भी बखूबी बयां करते हैं:

1. जब रिसर्च के लिए मैं दलित बस्तियों में जाता था तो वहां के लोग कहते कि आपके स्पर्श से हमें ही उल्टा पाप लगता है, जबकि सवर्णों का विरोध इस बात को लेकर था कि क्यों भंगियों के बीच अपने ब्राहमणत्व की धज्जियां उड़ा रहे हो भाई। सबसे अधिक आश्चर्य इस बात का है कि ऐसे लोग जो कथित तौर पर मानवतावादी रिपोर्टिंग और पत्रकारिता की बात करते हैं, उनको इस तरह की कुप्रथाओं पर अचरज नहीं होता। वे इसे हमारे सामाजिक प्रथाओं की आवश्यक बुराई करार देते हैं।

2. मुझे एक से अधिक अवसरों पर ऐसी बातें सुनने को मिलीं कि इस इस तरह के अध्ययन वास्तव में दलितों को झांसा देने के लिए किए जाते हैं, सवर्ण जाति का हूं। मैं कथित तौर अस्पृश्य जातियों के बीच हूं इस बात का विरोध मुझे दलितों के साथ ही सर्वणों के बीच भी झेलना पड़ा।

3. केवल दो वक्त की रोटियों के लिए भरी बरसात में मैले की टोकरी का सारा मैला सर पर उठाना यह एक ऐसी विवशता है, जो किसी भी संवेदनशील मनुष्य को परेशान कर सकती है। लेकिन कैसा हमारा शिक्षित, सहिष्णु समाज और कैसे कथित तौर पर पढ़े लिखे लोग और नकारा सरकारी तंत्र और विशेषकर कलेक्टरों की जमात है, जिनकी आंखों को कुछ नहीं दिखाई देता।

4. एक कलेक्टर ने कहा कि हम बरसात में पीतल की मटकी इनको उपलब्ध करवाएंगे, ताकि मैला ढोने में परेशानी नहीं हो।

5. इसी तरह से एक पूर्व मुख्यमंत्री जो दलितों की मसीहा हैं, खुद भी पिछले वर्ग से हैं, कहा है कि मैला ढोने के लिए नई गाड़ियों की व्यवस्था करेंगे। इन मासूमों को नहीं मालूम था कि मैला ढोने की प्रथा कानूनी तौर पर प्रतिबंधित है। ऐसे समाज में और कब तक मैला ढोने का काम बंद होगा कहना मुश्किल है और हो भी गया तो उनको मुख्यधारा में आने में कम से कम एक से अधिक सदी का वक्त लगेगा।

6. जाति हमारे देश की सबसे बड़ी सच्चाई है। यह एक ऐसा बोध है, जिससे देश का आदमी कभी भी उबर नहीं पाता। हाल ही में मुंबई में मेरी मुलाकात फ्रांस से आए एक इंजीनियर से हुई और उसे यह समझाने में कि जाति क्या होती है, लंबा वक्त लगा। लेकिन अंतत: उसे बात समझ आ गई। अपने देश में करोड़ों पढ़े लिखे सवर्ण-दलित दोनों हैं, लेकिन इस पूरी रिसर्च के दौरान मुझे म.प्र. में एक सरकारी अफसर, नेता और इस संदर्भ में पढ़ा-लिखा कहा जा सकने वाला व्यक्ति नहीं मिला जो जातिगत धारणाओं से इतर मानवीय सरोकारों की पैरवी करे।

7. इन समुदायों के भीतर खुद भी एक ऐसी हीनग्रंथि है, जो उनको आगे बढ़ने से रोकती है। यह संभवत: सदियों से दलितों के दमन का सामाजिक परिणाम है कि उनके भीतर सवर्णों से बेहतर हो सकने का भाव कहीं खो गया है। इसका सवर्ण भरपूर दोहन कर रहे हैं।

8. पुरुषों और महिलाओं के बीच एक ही तरह का यूनिवर्सल रिश्ता है। पुरुष स्त्रियों को किसी भी तरह से अपने समान दर्जा देने को तैयार नहीं हैं और वह उसे अपने अधिकार क्षेत्र के सीमाओं से बाहर निकलने, शिक्षा जैसे सहज मानवीय अधिकार से महज इसलिए वंचित रखना चाहता है ताकि कहीं उसे अपने अधिकारों के बारे में पता नहीं लग जाए। मैला ढोने का काम करने को विवश समाजों में भी स्त्री चेतना, उसकी अभिव्यक्ति पर पुरुषों का ही बोलबाला है। दूसरों का मैला ढोए औरत और मर्द दूसरी औरत के चक्कर में फिरे, दिनभर चिलम फूंकता रहे। उसके लिए अधिक पत्नी का मतलब है अधिक काम और आय का साधन। इसकी पुष्टि हेला समाज में बहुपत्नी प्रथा के रूप में मिलती है, चूंकि इस्लाम में एक से अधिक पत्नियों को मान्यता दी गई है, इसलिए इसके विरोध में कहीं से कोई स्वर नहीं उभरता है।

9. गांवों विशेषकर कस्बों में छूआछूत में इतना ही अंतर आया है कि जो व्यक्ति किसी न किसी तरह से मुख्यधारा में शामिल हो गया है, उसे कुछ हद तक चाय की दुकान में चाय पीने का हक है और अपनी बात रखने का हक है। इसके अलावा वह जो गरीबी के मकड़जाल से मुक्त नहीं हो सके हैं, उनकी स्थिति अभी भी सामंतवादी दिनों जैसी ही है।

10. मैला ढोने वाले वाल्मिकियों और हेला समाज दोनों की स्थिति अपने ही समुदाय यानि दलितों और पिछड़ों के बीच बहिष्कार की है। इस्लाम में अस्पृश्यता की स्थिति को देखना दुखद अनुभव है, क्योंकि मनुष्यों के बीच आपसी समानता पर सबसे अधिक बल देने वाले धर्मों में से एक यह धर्म है।

11. मस्जिदों में हेलाओं के लिए अलग कतार होती है। ईद पर उनके साथ खुशियां नहीं बाटीं जाती। इसी से तंग आकर उज्जैन की हैलावाड़ी में हेलाओं ने एक अलग मस्जिद ही बना ली है। यह मस्जिद भेदभाव की समस्या का हल तो नहीं है, क्योंकि यह समुदाय को जोड़ने की जगह उसे स्वत: ही बहिष्कृत कर देता है।

12. मायावती और कांशीराम के सत्ता में आने से दलित चेतना में खासी सुधार हुआ है। इस बात में कोई दो संशय नहीं होना चाहिए कि दलितों, पिछड़ों के आत्मबल में जो कुछ सुधार गत दो दशकों में दर्ज किया गया है वह मुख्यत: बहुजन समाज पार्टी और उसके जैसे अन्य नेताओं के सत्ता में रहने से हुआ है। म.प्र. में बसपा का असर भले ही अभी भी कम हो लेकिन अंदर ही अंदर एक तरह की कसमसाहट तो है ही। माया एंड कंपनी को श्रेय देने के दो कारण हैं।

13. पहला तो यह कि दलितों का एक वोट बैंक बना। जिसने उनको एक किस्म की सामुदायिक एकता प्रदान की। दलितों के भीतर की सामाजिक चेतना के विस्तार से सबसे बड़ा लाभ यही हुआ कि उनको यह विश्वास हुआ कि उनके भीतर की एक दलित लड़की देश के सबसे बड़े राज्यों में से एक की मुखिया बन सकती है। मायावती के एक नहीं अनेक बार सीएम बनने से दलितों में उनके एकदिन आगे हो जाने की संभावना को बल मिला।

14. दूसरा बड़ा काम जो माया के बार-बार सत्ता में आने से हुआ वह यह कि ब्राह्मण अब दलितों के साथ सामुदायिक और सार्वजनिक स्थानों पर अब बेहतर तरीके से पेश आने लगे दिखते हैं।

15. मेरे लिए यह पहला अवसर था जब मैं मेला ढोने वालों के इतने जीवंत रूप में देख रहा था। मेरे भीतर कोई जातिगत हिचक तो नहीं थी, जो मुझे उन समुदायों के साथ इस बैठने, भोजन करने से रोकती, लेकिन जिस गंदगी, बजबजाहट भरे वातावरण वे रहने को विवश हैं, वहां पर उनके साथ भोजन और चाय-पान के प्रस्तावों को स्वीकारते हुए अंदर से मैं कांप जाता था। हालांकि मैंने इन प्रस्तावों को किसी भी कीमत पर अस्वीकार नहीं करने का पक्का इरादा कर लिया था, क्योंकि इससे मेरी समानता और जातिगत बुराइयों पर कही गई बातों का उल्टा असर होने का खतरा था। इन समुदायों के लोग ऐसा होने पर किसी भी तरह से संवाद के दौरान सरल नहीं हो पाते।

16. देश बदल रहा है, वक्त बदल रहा है। लेकिन जातियों को लेकर आने वाला बदलाव बेहद धीमी गति से आ रहा है। जातियों के नाम पर समाज इस तरह से बंटा हुआ है कि गरीबी की मार खाते किसानों की बमुश्किल बची जमा पूंजी मुकदमों के लिए तहसील जाने-आने में ही खर्च हो रही है।

17. रोटी-बेटी के व्यवहार की बात तो दूर की कौड़ी है। अभी भी आते जाते स्पर्श हो जाने पर सवर्णों की गालियां, अपनी औकात भूलने के ताने दिए जाते हैं। इस हाल में इन वर्गों के बच्चों की शिक्षा किस तरह से प्रभावित हो रही है, यह समझ पाना कतई मुश्किल नहीं है।

18. वाल्मिकियों और हेलाओं समेत दूसरी अछूत माने जाने वाली जातियों की लड़कियों के लिए स्कूल से आगे का सफर बेहद मुश्किल होता है, क्योंकि उन्हें न केवल सवर्ण जातियों की गंदी गालियों का सामना करना पड़ता है, बल्कि केवल इसी वजह से उनको गांवों में अनेक प्रकार के अघोषित बहिष्कारों का भी सामना करना पड़ सकता है।

सोमवार, जुलाई 16, 2012

मो.गाँधी: जानिये कुछ तथ्य जो कान्ग्रेस ने अभी तक प्रकाशित ही नही होने दिया|

मो.गाँधी: जानिये कुछ तथ्य जो कान्ग्रेस ने अभी तक प्रकाशित ही नही होने दिया|

आखिर क्या कारण थे कि गोडसे जी ने तथाकित राष्ट्रपिता को मारा, जोकि कोर्ट ने तो सुना लेकिन यह व्क्तवय कभी भी सार्वजनिक न हो पाया|
आइये जानिये और योगदान दे गोदसे के विचारो को फैलाने मे.......

गाँधी-वध के मुकद्दमें के दौरान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर सुनाने की अनुमति माँगी थी और उसे यह अनुमति मिली थी। नाथूराम गोडसे का यह न्यायालयीन वक्तव्य भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित कर दिया गया था। इस प्रतिबन्ध के विरुद्ध नाथूराम गोडसे के भाई तथा गाँधी-वध के सह-अभियुक्त गोपाल गोडसे ने ६० वर्षों तक वैधानिक लडाई लड़ी और उसके फलस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रतिबन्ध को हटा लिया तथा उस वक्तव्य के प्रकाशन की अनुमति दी। नाथूराम गोडसे ने न्यायालय के समक्ष गाँधी-वध के जो १५० कारण बताये थे उनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं: -

1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (१९१९) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के नायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाये। गाँधी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से स्पष्ठ मना कर दिया।

2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गाँधी की ओर देख रहा था, कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचायें, किन्तु गाँधी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया।

3. ६ मई १९४६ को समाजवादी कार्यकर्ताओं को दिये गये अपने सम्बोधन में गाँधी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

4. मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए १९२१ में गाँधी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग १५०० हिन्दू मारे गये व २००० से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गाँधी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।

5. १९२६ में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द की अब्दुल रशीद नामक मुस्लिम युवक ने हत्या कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गाँधी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिये अहितकारी घोषित किया।

6. गाँधी ने अनेक अवसरों पर शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोबिन्द सिंह को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

7. गाँधी ने जहाँ एक ओर कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह को कश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दू बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।

8. यह गाँधी ही थे जिन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

9. कांग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिये बनी समिति (१९३१) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी की जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।

10. कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गाँधी पट्टाभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण प�� त्याग दिया।

11. लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गाँधी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

12. १४-१५ १९४७ जून को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गाँधी ने वहाँ पहुँच कर प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

13. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गाँधी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे; ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और १३ जनवरी १९४८ को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

14. पाकिस्तान से आये विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गाँधी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।

15. २२ अक्तूबर १९४७ को पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउण्टबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को ५५ करोड़ रुपये की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गाँधी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन शुरू कर दिया जिसके परिणामस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।

16. जिन्ना की मांग थी कि पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान जाने में बहुत समय लगता है और हवाई जहाज से जाने की सभी की औकात नहीं| तो हमको बिलकुल बीच भारत से एक कोरिडोर बना कर दिया जाए.... जो लाहौर से ढाका जाता हो, दिल्ली के पास से जाता हो..... जिसकी चौड़ाई कम से कम १६ किलोमीटर हो....४. १० मील के दोनों और सिर्फ मुस्लिम बस्तियां ही बने

--
आपने स्वयं और अपने परिवार के लिए सब कुछ किया, देश के लिए भी कुछ करिये,
क्या यह देश सिर्फ उन्ही लोगो का है जो सीमाओं पर मर जाते हैं??? सोचिये......

हिन्‍दू मानवाधिकार हनन पर डॉ. राय ने लिखा राष्‍ट्रपति को पत्र

कभी आधी रात को सोते हुये बाबा रामदेव के भक्‍तों, समर्थकों को पुलिस द्वारा लाठियों से पीटा जाना, उन पर आंसू गैस के गोले छोड़ना तो कभी साध्‍वी प्रज्ञा के साथ बेहद अमानवीय अत्‍याचार करना हमारे सुरक्षा एजेंसियों एटीएस, सीबीआई, एनआईए का वास्‍तविक चरित्र बन गया है। जबकि दूसरी ओर सैकड़ों बेगुनाहों के साथ खून की होली खेलने वाले कसाब को सोनिया और राहुल के ईशारे पर बिरियानी खिला-खिला कर हमारी सुरक्षा एजेंसियां उसे खूब मोटा कर रहे हैं। संसद हमले के दोषी अफजल की फाइल गृहमंत्रालय की ही खाक छान रही है। और अब असीमानंद के साथ भारत की सुरक्षा एजेंशियां जो अत्‍यंत घिनौनी हरकत कर रही हैं उससे किसी भी देशभक्‍त का मस्‍तक लज्‍जा से अवश्‍य नीचे हो जायेगा। हिन्‍दुओं व हिन्‍दू संतों के उपर आये इस संकट से चिंतित हिन्‍दू महासभा के हिंदूवादी नेता डॉ. संतोष राय ने राष्‍ट्रपति को पत्र लिख संत असीमानंद के साथ न्‍याय की गुहार की है। उनके द्वारा 1 दिसंबर, 2011 को राष्‍ट्रपति को लिखे गये पत्र का संक्षिप्‍त अंश इस प्रकार है:
डॉ. संतोष राय ने राष्‍ट्रपति को लिखे पत्र में कहा है कि महोदया जैसा कि विभिन्‍न समाचार पत्रों से ज्ञात हुआ कि स्‍वामी असीमानंद को ब्लैक बोर्ड पर सीबीआई, एटीएस और नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) के अधिकारी अपनी कहानी लिखते थे और उन्‍हें उस कहानी को याद कर कोर्ट में यही सब बोलने के लिए कहा जाता था। इसके साथ ही उन्‍हें धमकी दी जाती थी कि अगर ऐसा नहीं किया, तो जान से मार देंगे। उनके परिवार को भी मारने की बात कही जाती थी। इतना ही नहीं, उन्‍हें यह भी कहा गया कि अगर बयान - सीबीआई, एटीएस और नेशनल इंवेस्‍टीगेशन एजेंसी(एनआईए) मुताबिक नहीं दिए, तो उनके मां के सामने ही कपड़े उतारे जाएंगे। क्‍या हिन्‍दू होने के नाते हमारी सुरक्षा एजेंसियां मानवता की सारी सीमायें लांघ गई हैं।
आखिरकार असीमानंद ने यह राज बता ही दिया कि सुरक्षा एजेंसियों की इस प्रताड़ना की वजह से ही उन्‍होंने बयान दिए। यह सब बातें समझौता व अन्य ब्लॉस्ट में आरोपी स्वामी असीमानंद ने अपने पत्र में लिखी हैं और यह पत्र भारत की राष्ट्रपति, गृह मंत्री, ह्यूमन राइट्स, केबिनेट सेक्रेटरी, सुप्रीम कोर्ट, पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट, जयपुर हाई कोर्ट, हैदराबाद हाईकोर्ट, मुंबई हाई कोर्ट, दिल्ली हाईकोर्ट व मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को भेजा है। यदि उनके साथ यह अमानवीय अत्‍याचार नही होता तो उन्‍हें पत्र लिखने की आवश्‍यकता नही थी।
असीमानंद ने पत्र में लगाते हुये आगे लिखा है कि अधिकारियों की इन हरकतों की वजह से उन्‍हें अपने हिन्दू होने पर शर्म आ रही है। उन्‍हें जमानत नहीं दी गई, जबकि मालेगांव ब्लॉस्ट के सात आरोपियों को जमानत दे दी गई। क्योंकि वे मुस्लिम हैं और स्‍वयं असीमानंद हिन्दू और उनका कोई मानवाधिकार नहीं हैं। स्वामी असीमानंद ने यह पत्र उस बात से बहुत परेशान होकर लिखा है कि मालेगांव ब्लॉस्ट के सात आरोपियों को जमानत दे दी गई, उनके साथ हिन्‍दू होने के कारण अमानवीय व्‍यवहार किया जा रहा है। अब चूंकि अब स्‍पष्‍टत: इस देश को यह ज्ञात हो गया है कि देश के शीर्ष सत्‍ता प्रतिष्‍ठान पर बैठे लोग मक्‍का और वेटिकन के ईशारे पर इस देश को या तो दारूल इस्‍लाम बना देना चाहते हैं या फिर जेहावा का ईसाई स्‍थल बना देना चाहते हैं।

जब बम विस्‍फोट में लश्कर ए तैयबा का हाथ था तो असीमानंद को क्यों फंसाया गया
डॉ. राय ने आगे राष्‍ट्रपति को भेजे पत्र में लिखा है कि स्वामी असीमानंद ने अपने पत्र में लिखा है कि समझौता ब्लॉस्ट की जिम्मेदारी सर्वप्रथम लश्कर ए तैयबा ने ली थी। जिसके तीन आतंकवादी पकड़े भी गए थे और उन्होंने कबूल किया था कि समझौता ब्लॉस्ट उन्हीं की देन है और पैसा दाउद इब्राहिम ने दिया था। इन तीनों आरोपियों का नारको परीक्षण भी हो चुका है। जब वे ये बात स्‍वीकार चुके थे, तो असीमानंद को क्यों इस मामले में बलपूर्वक क्‍यों फंसाया गया।
असीमानंद का मानवाधिकार क्‍यों नहीं
असीमानंद को जमानत नहीं दी गई, जबकि मालेगांव ब्लॉस्ट के सात आरोपियों को जमानत दे दी गई। क्योंकि वे मुस्लिम हैं और असीमानंद हिन्दू हैं और इसलिये असीमानंद का कोई मानवाधिकार नहीं हैं। स्‍वामी असीमानंद को एनआईए जानबूझकर फंसाना चाहती है।
जैसा कि स्वामी असीमानंद ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि एनआईए जानबूझ कर नमूनों के मिलान के बहाने उन्‍हें फंसाना चाहती है। अदालत ने मामले पर एक दिसंबर के लिए सुनवाई तय की है। समझौता एक्सप्रेस में धमाका 18 सितंबर की देर रात व 19 सितंबर 2007 की सुबह किया गया था।इसमें 68 लोग मरे थे जबकि 12 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। एनएआई ने विस्फोटकों की सील खोल इनकी जांच करने की मांग की थी जिसे पंचकूला की स्पेशल कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। कोर्ट के फैसले के खिलाफ स्वामी ने हाईकोर्ट से प्रार्थना देकर इसे खारिज करने की मांग की। कहा गया कि जांच का आदेश दिया गया तो उनके खिलाफ झूठे मामले दर्ज कर उन्हें प्रताड़ित किया जाएगा। जैसा कि अभी तक ऐसा ही होता आया है।महामहिम आपसे नम्र निवेदन है कि निष्‍पक्ष जांच हेतु उच्‍चतम न्‍यायालय एव उच्‍च न्‍यायालय के निवृत्‍त न्‍यायधीशों के द्वारा एक समिति गठित कर त्‍वरित न्‍याय हेतु निर्देशित करें।

संपर्क
डॉ. संतोष राय
अध्‍यक्ष- स्‍वागत समिति
अखिल भारत हिन्‍दू महासभा
एफ-67, द्वितीय तल,
भगत सिंह मार्केट,
नई दिल्‍ली- 110001

मोबाईल. +91 - 9999 500 398
दूर ध्‍वनि. +91 - 11 - 32928342
फैक्‍स. +91 - 11 - 47340165

त्‍वरित डॉक - info@hindumahasabha.net, hindumahasabha@ymail.com, abhindumahasabha@gmail.com, webhindumahasabha@gmail.com
http://www.hindimedia.in/2/index.php/patrika/1042-dr-roy-wrote-a-letter-to-the-president-on-hindu-human-rights-abuses.html

नरेन्द्र मोदी को कॉंग्रेस द्वारा खत्म करने की साजिश की सुपारी दी गई है? राजनैतिक रूपसे

नरेन्द्र मोदी को कॉंग्रेस द्वारा खत्म करने की साजिश की सुपारी दी गई है? राजनैतिक रूपसे
█║▌│█│║▌║││█║▌│║▌║█║│-
~►•"Operation No Namo“ – संडे गार्डियन ने किया चौकानेवाला खुलासा- 2014 तक अब करेंगे निजी हमले ~~~~~~~~~~~
~►•सोनिया का गुप्त राजनीती आतंकवादी ऑपरेशन दो कोंग्रेसीयों द्वारा लीक
~►•तहलका-अन्य मिडीया – एक डिफेंस ओफ़ीसर – साउथ की दो अभिनेत्रियों को भाड़े पे लेकर सीडी बनवाकर मोदी जी को बदनाम करने की साजिश का पर्दाफाश
►►►►►उतर आयी कॉंग्रेस अपने पारिवारिक गंदे खून की राजनीति पर: मोदी को बदनाम करने की साजिशके लिए टीम ►►►►►►►►►
►►►कॉंग्रेस ने आने-वाले चुनावो मे अपनी ऐतिहासिक सफाई होनेवाली है यह भाँप कर अभी से, नरेंद्र मोदी के पीएम पद की और बढ़ते कदमो और देशभर मे उन्हे मिल रहे अभूतपूर्व समर्थन से घबरा कर, कॉंग्रेस फिरसे अपनी वही पुरानी वैश्यावृत्ति वाली नीच और हलकट राजनीती पे उतर आई है ।
►►►संप्टेंबर 2011 से इसी साजिश के शुरुआती दौर मे जुड़े हुए 2 कोंग्रेसीयों के हवाले से यह तथ्य सामने आया है । इस टास्क फोर्स का उद्देश्य मोदी जी को गुजरात तक ही सिमीत रखके अपने लिए 2014 के चुनावो मे से मजबूत दावेदार को रास्ते से हटाना है । और इसलिए कई गंभीर जूठे आरोपो से मोदी जी की राष्ट्रीय छबी को कलंकित करने की तैयारिया करके बैठे है । जिसके लिए कॉंग्रेस ने तहलका और अन्य मीडिया को बाकायदा कोन्ट्राक्ट दे चुकी है ।
►►►इस मीडिया-सुपारी का मुख्य उद्देश्य मोदी जी को बदनाम करके , गुजरात मे बीजेपी की सीटे घटाना (3 आंकड़ो से नीचे करीब 90 सीट) है और इस तरह से बीजेपी द्वारा देश की राजनीति मे मोदी जी के प्रवेश को प्रतिबंधित करना है । इसी ऑपरेशन-नो-नमो के तहत कॉंग्रेस उत्तराखंड और कर्णाटक वाली कार्यशैली से काम करेगी, बीजेपी के ही नेताओ से संपर्क बनाके। इसी लिए गुजरात के ही गद्दार एंटी-मोदी केशु वाली मंडली को हर तरह से मदद देने पर आमादा है, कॉंग्रेस का मानना है की केशुभाई की वजह से कमसे कम गूज़-बीजेपी को 17 सीटो का नुकशान होगा ।
►►►►►►सबसे ज्यादा शर्मनाक यह है की कॉंग्रेस की इस ऊपरी दिखावे की राजनीति से अलग गलत तरीको से वह नरेंद्र मोदी की छबी खराब करने मे कोई कसर नहीं छोड़ेंगे । क्यूंकी वह मोदी जी को किसी भी तरह भ्रष्टाचार के मामले मे और गोधरा के मामले मे फँसाने मे असमर्थ रही है । तो कॉंग्रेस की एक सीक्रेट टास्क-फोर्स मोदी के खिलाफ सबूत बनाने मे लगी हुई है जिसमे अत्याधुनिक टेक्नोलोजी से सीडी बनाने मे जुटी हुई है ।
►►►►►►उसके लिए कॉंग्रेस ने एक एनडीए –नेशनल दीफेंस अकेडमी पंजाब के एक अफसर और तमिलनाडु की दो अभिनेत्रीयों को पैसे दिये गए है, मोदी जी के खिलाफ एफीडेवीट दायर करने हेतु । उस पंजाबी अफसर को चंडीगढ़ मे बड़ी जमीन और दोनों अभिनेत्रियों को दो फिल्मों मे काम तक दे दिया है । जो सीडी बनेगी उसमे डिजिटाइजेशन तकनीक का इस्तेमाल करेंगे ।
►►►►►►►►► तो आज और अभी बोलो क्या करना है इस देश के अंदर के आतंकवादियो का? एक एक को घर मे घुस के मारेंगे, जो सालो से भारत मे राजनैतिक आतंकवाद और आतंकवादियो की दामादगीरी चला रहे है.........! ANSWER RIGHT NOW…. ►►►►►►
││█║▌│║▌║█║││█║▌│║▌║█║││█║▌│║▌║█║DO & Only Then DIE..!
एकबार देश को फिर से आजादी चाहिए –
भारत माँ के वीरों तैयार हो जाओ- कुर्बानी और बलिदान के लिए
││█║▌│║▌║█║││█║▌│║▌║█║││█║▌│║▌║█║
PLEASE DOWNLOAD THIS POST - I CAN BE BLOCKED or REMOVED from FACEBOOK..
To Aage Ki Jimmedaari aap par hai - isko har ghar - har gali -har chauraahe pe felaana hai !
नरेन्द्र मोदी को कॉंग्रेस द्वारा खत्म करने की साजिश की सुपारी दी गई है? राजनैतिक रूपसे
█║▌│█│║▌║││█║▌│║▌║█║│-

Congress plans sleaze campaign against Modi

Operation No Namo plans to “blacken the personal image of Modi”, reduce the BJP to less than 90 seats and restrict the CM to his state in the 2014 general elections.

 
MADHAV NALAPAT  New Delhi | 15th Jul
Narendra Modi waves at the crowd during the 135th Lord Jagannath Rath Yatra in Ahmedabad last month. PTI
arendra Modi is the target of a disinformation campaign run by a task force set up for the purpose in September 2011. This has been revealed by two of the Congress strategists involved in the initial phase of "Operation No Namo", which is designed to ensure that the Gujarat Chief Minister remains confined to his home state up to and during the 2014 parliamentary elections.
"Operation No Namo" is designed to reduce the BJP's seat tally in Gujarat to lower than three figures, ideally less than 90. "Any tally below that would be seen as the defeat of Modi," the source claimed, adding that "such a result would ensure that he remain confined to Gujarat". Should the BJP tally fall to around 90, Congress strategists calculate that the push within the BJP to bring Modi to the Centre will lose momentum. "The Congress leadership wants to avoid Modi becoming the BJP's Prime Minister alternative in the next Lok Sabha elections, hence the effort at seeing that the Gujarat CM remain confined to his state", a source claimed. Op No Namo's political strategy follows the "Uttarakhand and Karnataka models, of developing contacts within the BJP so as to incentivise dissidents into acts of sabotage against their party's chances", on the principle that the most effective foes are those within a party.
Congress leaders in Gujarat are giving "logistical and other help to anti-Modi elements, including within the state BJP". Keshubhai Patel is seen as the best bet. "Should Keshubhai damage the BJP, at least 17 Assembly seats will be lost to the BJP. This will enable us to succeed in keeping his tally to about 90 seats," a Congress source claimed. A bare majority in the coming elections would make it much more difficult for Modi to spend more time outside Gujarat. Strategists point out that the BJP got only half the total votes polled in the 2007 Assembly elections, and that in 109 seats, the Congress came second to the winning BJP candidate. "Our operations over the past nine months have had a huge effect on Modi's image, which after all is the trump card of the BJP."
More controversially, Operation No Namo has also a component designed to "blacken the personal image of the CM". Congress strategists, despite considerable effort, have failed to come across corruption by Narendra Modi or his close relatives, all of whom live in modest circumstances. They are, therefore, turning to the personal. A key strategist claimed that "a secret task force is engaged in using modern technology to create CDs" that purport to show the Gujarat CM in a bad light. According to a source, "An NDA office-bearer from Punjab and a starlet from Tamil Nadu have been incentivised to supply affidavits about their contact with Narendra Modi." The source claims that "both the women have been given flats in Mumbai, while the NDA office-bearer has also been given property in Chandigarh and the starlet roles in two Tamil movies", to induce them to agree to digitally-created CDs being released. Those familiar with modern technology say that it is "relatively easy", given sophisticated equipment, "to create whatever digital images or voices as are needed". Similarly, computers can be hacked into so as to create records of surfing pornography on the net, or lewd messages can be sent from a designated computer (belonging to the target individual).
Clearly, the Congress in Gujarat is taking its cue from Dirty Picture while working on strategies to reduce the BJP tally to 90 seats or less.
SOURCE : http://www.sunday-guardian.com/investigation/congress-plans-sleaze-campaign-against-modi  
 

गुरुवार, जुलाई 12, 2012

वेदों का इतिहास जानें


वेदों का इतिहास जानें 
यही है सनातन धर्म के धर्मग्रंथ

।।ॐ।। वेद 'विद' शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है ज्ञान या जानना, ज्ञाता या जानने वाला; मानना नहीं और न ही मानने वाला। सिर्फ जानने वाला, जानकर जाना-परखा ज्ञान। अनुभूत सत्य। जाँचा-परखा मार्ग। इसी में संकलित है 'ब्रह्म वाक्य'।

वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं। वेदों की 28 हजार पांडुलिपियाँ भारत में पुणे के 'भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट' में रखी हुई हैं। इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। उल्लेखनीय है कि यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है।

वेद को 'श्रुति' भी कहा जाता है। 'श्रु' धातु से 'श्रुति' शब्द बना है। 'श्रु' यानी सुनना। कहते हैं कि इसके मन्त्रों को ईश्वर (ब्रह्म) ने प्राचीन तपस्वियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था जब वे गहरी तपस्या में लीन थे। सर्वप्रथम ईश्वर ने चार ऋषियों को इसका ज्ञान दिया:- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य।

वेद वैदिककाल की वाचिक परम्परा की अनुपम कृति हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी पिछले छह-सात हजार ईस्वी पूर्व से चली आ रही है। विद्वानों ने संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद इन चारों के संयोग को समग्र वेद कहा है। ये चार भाग सम्मिलित रूप से श्रुति कहे जाते हैं। बाकी ग्रन्थ स्मृति के अंतर्गत आते हैं।

संहिता : मन्त्र भाग। वेद के मन्त्रों में सुंदरता भरी पड़ी है। वैदिक ऋषि जब स्वर के साथ वेद मंत्रों का पाठ करते हैं, तो चित्त प्रसन्न हो उठता है। जो भी सस्वर वेदपाठ सुनता है, मुग्ध हो उठता है।

ब्राह्मण : ब्राह्मण ग्रंथों में मुख्य रूप से यज्ञों की चर्चा है। वेदों के मंत्रों की व्याख्या है। यज्ञों के विधान और विज्ञान का विस्तार से वर्णन है। मुख्य ब्राह्मण 3 हैं : (1) ऐतरेय, ( 2) तैत्तिरीय और (3) शतपथ।

आरण्यक : वन को संस्कृत में कहते हैं 'अरण्य'। अरण्य में उत्पन्न हुए ग्रंथों का नाम पड़ गया 'आरण्यक'। मुख्य आरण्यक पाँच हैं : (1) ऐतरेय, (2) शांखायन, (3) बृहदारण्यक, (4) तैत्तिरीय और (5) तवलकार।

उपनिषद : उपनिषद को वेद का शीर्ष भाग कहा गया है और यही वेदों का अंतिम सर्वश्रेष्ठ भाग होने के कारण वेदांत कहलाए। इनमें ईश्वर, सृष्टि और आत्मा के संबंध में गहन दार्शनिक और वैज्ञानिक वर्णन मिलता है। उपनिषदों की संख्या 1180 मानी गई है, लेकिन वर्तमान में 108 उपनिषद ही उपलब्ध हैं। मुख्य उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, मांडूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य, बृहदारण्यक और श्वेताश्वर। असंख्य वेद-शाखाएँ, ब्राह्मण-ग्रन्थ, आरण्यक और उपनिषद विलुप्त हो चुके हैं। वर्तमान में ऋग्वेद के दस, कृष्ण यजुर्वेद के बत्तीस, सामवेद के सोलह, अथर्ववेद के इकतीस उपनिषद उपलब्ध माने गए हैं।

वैदिक काल :
प्रोफेसर विंटरनिट्ज मानते हैं कि वैदिक साहित्य का रचनाकाल 2000-2500 ईसा पूर्व हुआ था। दरअसल वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई। अर्थात यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: माना यह जाता है कि पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया- ऋग्‍वेद, यजुर्वेद व सामवेद जि‍से वेदत्रयी कहा जाता था। मान्यता अनुसार वेद का वि‍भाजन राम के जन्‍म के पूर्व पुरुरवा ऋषि के समय में हुआ था। बाद में अथर्ववेद का संकलन ऋषि‍ अथर्वा द्वारा कि‍या गया।

दूसरी ओर कुछ लोगों का यह मानना है कि कृष्ण के समय द्वापरयुग की समाप्ति के बाद महर्षि वेद व्यास ने वेद को चार प्रभागों संपादित करके व्यवस्थित किया। इन चारों प्रभागों की शिक्षा चार शिष्यों पैल, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमन्तु को दी। उस क्रम में ऋग्वेद- पैल को, यजुर्वेद- वैशम्पायन को, सामवेद- जैमिनि को तथा अथर्ववेद- सुमन्तु को सौंपा गया। इस मान से लिखित रूप में आज से 6508 वर्ष पूर्व पुराने हैं वेद। यह भी तथ्‍य नहीं नकारा जा सकता कि कृष्ण के आज से 5112 वर्ष पूर्व होने के तथ्‍य ढूँढ लिए गए हैं।

वेद के विभाग चार हैं: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋग-स्थिति, यजु-रूपांतरण, साम-गति‍शील और अथर्व-जड़। ऋक को धर्म, यजुः को मोक्ष, साम को काम, अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है। इन्ही के आधार पर धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई।

ऋग्वेद : ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान। इसमें 10 मंडल हैं और 1,028 ऋचाएँ। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियाँ और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है। इसमें 5 शाखाएँ हैं - शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन।

यजुर्वेद : यजुर्वेद का अर्थ : यत् + जु = यजु। यत् का अर्थ होता है गतिशील तथा जु का अर्थ होता है आकाश। इसके अलावा कर्म। श्रेष्ठतम कर्म की प्रेरणा। यजुर्वेद में 1975 मन्त्र और 40 अध्याय हैं। इस वेद में अधिकतर यज्ञ के मन्त्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। यजुर्वेद की दो शाखाएँ हैं कृष्ण और शुक्ल।

सामवेद : साम अर्थात रूपांतरण और संगीत। सौम्यता और उपासना। इसमें 1875 (1824) मन्त्र हैं। ऋग्वेद की ही अधिकतर ऋचाएँ हैं। इस संहिता के सभी मन्त्र संगीतमय हैं, गेय हैं। इसमें मुख्य 3 शाखाएँ हैं, 75 ऋचाएँ हैं और विशेषकर संगीतशास्त्र का समावेश किया गया है।

अथर्ववेद : थर्व का अर्थ है कंपन और अथर्व का अर्थ अकंपन। ज्ञान से श्रेष्ठ कम करते हुए जो परमात्मा की उपासना में लीन रहता है वही अकंप बुद्धि को प्राप्त होकर मोक्ष धारण करता है। अथर्ववेद में 5987 मन्त्र और 20 कांड हैं। इसमें भी ऋग्वेद की बहुत-सी ऋचाएँ हैं। इसमें रहस्यमय विद्या का वर्णन है।

उक्त सभी में परमात्मा, प्रकृति और आत्मा का विषद वर्णन और स्तुति गान किया गया है। इसके अलावा वेदों में अपने काल के महापुरुषों की महिमा का गुणगान व उक्त काल की सामाजिक, राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थिति का वर्णन भी मिलता है।

छह वेदांग : (वेदों के छह अंग)- (1) शिक्षा, (2) छन्द, (3) व्याकरण, (4) निरुक्त, (5) ज्योतिष और (6) कल्प।

छह उपांग : (1) प्रतिपदसूत्र, (2) अनुपद, (3) छन्दोभाषा (प्रातिशाख्य), (4) धर्मशास्त्र, (5) न्याय तथा (6) वैशेषिक। ये 6 उपांग ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इसे ही षड्दर्शन कहते हैं, जो इस तरह है:- सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत।

वेदों के उपवेद : ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्ववेद और अथर्ववेद का स्थापत्यवेद ये क्रमशः चारों वेदों के उपवेद बतलाए गए हैं।

आधुनिक विभाजन : आधुनिक विचारधारा के अनुसार चारों वेदों का विभाजन कुछ इस प्रकार किया गया- (1) याज्ञिक, (2) प्रायोगिक और (3) साहित्यिक।

वेदों का सार है उपनिषदें और उपनिषदों का सार 'गीता' को माना है। इस क्रम से वेद, उपनिषद और गीता ही धर्मग्रंथ हैं, दूसरा अन्य कोई नहीं। स्मृतियों में वेद वाक्यों को विस्तृत समझाया गया है। वाल्मिकी रामायण और महाभारत को इतिहास तथा पुराणों को पुरातन इतिहास का ग्रंथ माना है। विद्वानों ने वेद, उपनिषद और गीता के पाठ को ही उचित बताया है।

ऋषि और मुनियों को दृष्टा कहा गया है और वेदों को ईश्वर वाक्य। वेद ऋषियों के मन या विचार की उपज नहीं है। ऋषियों ने वह लिखा या कहा जैसा कि उन्होंने पूर्णजाग्रत अवस्था में देखा, सुना और परखा।

मनुस्मृति में श्लोक (II.6) के माध्यम से कहा गया है कि वेद ही सर्वोच्च और प्रथम प्राधिकृत है। वेद किसी भी प्रकार के ऊँच-नीच, जात-पात, महिला-पुरुष आदि के भेद को नहीं मानते। ऋग्वेद की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं जिनमें से लगभग 30 नाम महिला ऋषियों के हैं। जन्म के आधार पर जाति का विरोध ऋग्वेद के पुरुष-सुक्त (X.90.12), व श्रीमद्‍भगवत गीता के श्लोक (IV.13), (XVIII.41) में मिलता है।

श्लोक : श्रुतिस्मृतिपुराणानां विरोधो यत्र दृश्यते।
तत्र श्रौतं प्रमाणन्तु तयोद्वैधे स्मृति‌र्त्वरा॥
भावार्थ : अर्थात जहाँ कहीं भी वेदों और दूसरे ग्रंथों में विरोध दिखता हो, वहाँ वेद की बात की मान्य होगी।-वेद व्यास

प्रकाश से अधिक गतिशील तत्व अभी खोजा नहीं गया है और न ही मन की गति को मापा गया है। ऋषि-मुनियों ने मन से भी अधिक गतिमान किंतु अविचल का साक्षात्कार किया और उसे 'वेद वाक्य' या 'ब्रह्म वाक्य' बना दिया। ।। ॐ ।।


बुधवार, जुलाई 11, 2012

ऐसे सिमट गया अखंड भारत…


ऐसे सिमट गया अखंड भारत…
====================================
प्राचीन भारत की सीमाएं विश्व में दूर-दूर तक फैली हुई थीं। भारत ने राजनैतिक आक्रमण तो कहीं नहीं किए परंतु सांस्कृतिक दिग्विजय अभियान के लिए भारतीय मनीषी विश्वभर में गए। शायद इसीलिए भारतीय संस्कृति और सभ्यता के चिन्ह विश्व के लगभग सभी देशों में मिलते हैं।
.....................................
यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि सांस्कृतिक और राजनैतिक रूप से भारत का विस्तार ईरान से लेकर बर्मा तक रहा था। भारत ने संभवत विश्व में सबसे अधिक सांस्कृतिक और राजनैतिक आक्रमणों का सामना किया है। इन आक्रमणों के बावजूद भारतीय संस्कृति आज भी मौजूद है। लेकिन इन आक्रमणों के कारण भारत की सीमाएं सिकुड़ती गईं। सीमाओं के इस संकुचन का संक्षिप्त इतिहास यहां प्रस्तुत है।
....................................................................
ईरान – ईरान में आर्य संस्कृति का उद्भव 2000 ई. पू. उस वक्त हुआ जब ब्लूचिस्तान के मार्ग से आर्य ईरान पहुंचे और अपनी सभ्यता व संस्कृति का प्रचार वहां किया। उन्हीं के नाम पर इस देश का नाम आर्याना पड़ा। 644 ई. में अरबों ने ईरान पर आक्रमण कर उसे जीत लिया।
================
कम्बोडिया – प्रथम शताब्दी में कौंडिन्य नामक एक ब्राह्मण ने हिन्दचीन में हिन्दू राज्य की स्थापना की।
====================
वियतनाम – वियतनाम का पुराना नाम चम्पा था। दूसरी शताब्दी में स्थापित चम्पा भारतीय संस्कृति का प्रमुख केंद्र था। यहां के चम लोगों ने भारतीय धर्म, भाषा, सभ्यता ग्रहण की थी। 1825 में चम्पा के महान हिन्दू राज्य का अन्त हुआ।
=====================
मलेशिया – प्रथम शताब्दी में साहसी भारतीयों ने मलेशिया पहुंचकर वहां के निवासियों को भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति से परिचित करवाया। कालान्तर में मलेशिया में शैव, वैष्णव तथा बौद्ध धर्म का प्रचलन हो गया। 1948 में अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हो यह सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य बना।
===================
इण्डोनेशिया – इण्डोनिशिया किसी समय में भारत का एक सम्पन्न राज्य था। आज इण्डोनेशिया में बाली द्वीप को छोड़कर शेष सभी द्वीपों पर मुसलमान बहुसंख्यक हैं। फिर भी हिन्दू देवी-देवताओं से यहां का जनमानस आज भी परंपराओं के माधयम से जुड़ा है।
==================
फिलीपींस – फिलीपींस में किसी समय भारतीय संस्कृति का पूर्ण प्रभाव था पर 15वीं शताब्दी में मुसलमानों ने आक्रमण कर वहां आधिपत्य जमा लिया। आज भी फिलीपींस में कुछ हिन्दू रीति-रिवाज प्रचलित हैं।
==================
अफगानिस्तान – अफगानिस्तान 350 इ.पू. तक भारत का एक अंग था। सातवीं शताब्दी में इस्लाम के आगमन के बाद अफगानिस्तान धीरे-धीरे राजनीतिक और बाद में सांस्कृतिक रूप से भारत से अलग हो गया।
=================
नेपाल – विश्व का एक मात्र हिन्दू राज्य है, जिसका एकीकरण गोरखा राजा ने 1769 ई. में किया था। पूर्व में यह प्राय: भारतीय राज्यों का ही अंग रहा।
==================
भूटान – प्राचीन काल में भूटान भद्र देश के नाम से जाना जाता था। 8 अगस्त 1949 में भारत-भूटान संधि हुई जिससे स्वतंत्र प्रभुता सम्पन्न भूटान की पहचान बनी।
================
तिब्बत – तिब्बत का उल्लेख हमारे ग्रन्थों में त्रिविष्टप के नाम से आता है। यहां बौद्ध धर्म का प्रचार चौथी शताब्दी में शुरू हुआ। तिब्बत प्राचीन भारत के सांस्कृतिक प्रभाव क्षेत्र में था। भारतीय शासकों की अदूरदर्शिता के कारण चीन ने 1957 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया।
====================
श्रीलंका – श्रीलंका का प्राचीन नाम ताम्रपर्णी था। श्रीलंका भारत का प्रमुख अंग था। 1505 में पुर्तगाली, 1606 में डच और 1795 में अंग्रेजों ने लंका पर अधिकार किया। 1935 ई. में अंग्रेजों ने लंका को भारत से अलग कर दिया।
=================
म्यांमार (बर्मा) – अराकान की अनुश्रुतियों के अनुसार यहां का प्रथम राजा वाराणसी का एक राजकुमार था। 1852 में अंग्रेजों का बर्मा पर अधिकार हो गया। 1937 में भारत से इसे अलग कर दिया गया।
===================
पाकिस्तान - 15 अगस्त, 1947 के पहले पाकिस्तान भारत का एक अंग था।
===================
बांग्लादेश – बांग्लादेश भी 15 अगस्त 1947 के पहले भारत का अंग था। देश विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान के रूप में यह भारत से अलग हो गया। 1971 में यह पाकिस्तान से भी अलग हो गया।
.........................................................
................................................................जय महाकाल !!!
 

मंगलवार, जुलाई 10, 2012

मुहम्मद के द्वारा किये गए हरेक काम को मुसलमानों के लिए आदर्श उदाहरण by Arya Jasdev

कुरान में मुहम्मद के द्वारा किये गए हरेक काम को मुसलमानों के लिए आदर्श उदाहरण (Good Example )बताया गया है .और इसी को सुन्नत कहा गया है .इसका अर्थ है कि मुसलमानों को वही काम करना चाहिए ,जो मुहम्मद करता था ,या जो भी काम उसने किये थे उसका अनुकरण करना जरूरी है .कुरआन में यही लिखा है -

1 -यहूदी द्वेषी )Antismetic )"अबू हुरेरा ने कहा कि रसूल ने कहा कि जब तक हम ईसाइयों और यहूदियों का जमीन से सफाया नहीं करेंगे ,फैसले का अंतिम दिन नहीं आयेगा .इस लिए यहूदियों और ईसाइयों को क़त्ल करो .अगर वह किसी पत्थर या पेड़ के अन्दर भी छुप जायेंगे तो पेड़ बोल लार उनका पता दे देगा .लेकिन "गरकाद"का पेड़ चुप रहेगा .क्योंकि वह खुद यहूदी है .मुस्लिम-किताब 41 हदीस 6985 ,बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 791

2 -जादू ग्रस्त (Bewictched )"आयशा ने कहा कि ,बनू जुरैक के कबीले के एक यहूदी लाबिद बिन अल असाम ने रसूल रसूल पर जादू कर दिया था .जिस से वह दीवाने हो गए थे .उनके मुंह से गलत आयते निकलती थीं .ऎसी हालत कई महीनों तक रही .जब हमने टोटका किया तो वे ठीक हुए .".मुस्लिम -किताब 26 हदीस 5428

3 -रिश्वतबाज (Briber )"कुरेश के लोगों ने रसूल से शिकायत की ,कि आप लूट के मॉल से "नज्द "के सरदार को रिश्वत देते है ,लेकिन हमें कुछ नहीं देते .रसूल ने कहा कि मैं ऐसा इस लिए करता हूँ ,ताकि वह लोगों को इस्लाम के प्रति आकर्षित करे.बुखारी -जिल्द 4 किताब 55 हदीस 558

4 -बाल उत्पीड़क (Child Abuser )"अस सुब्र ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,जैसे ही तुम्हारे बच्चे 6 साल के हो जाएँ ,तो उनसे नमाज पढाओ ,और रसूल पर दरूद पढ़ने को कहो.अगर वह ऐसा न करें तो उनकी बेंतों से धुनाई करो .अबू दाऊद-किताब 2 हदीस 294 और 295

5 -बाल हत्यारा (Child Killer )"अल अतिया अल कारजी ने कहा कि ,जब रसूल ने बनू कुरेजा के कबीले पर हमला किया था ,तो हरेक बच्चे के कपडे उतार कर जाँच की ,जिन बच्चों के नीचे के बाल (Pubic hair ) निकल रहे थे ,उन सब बच्चों को क़त्ल करा दिया गया .उस वक्त मेरे बाल नहीं उगे थे ,इसलए मैं बच गया था .मुस्लिम -किताब 38 हदीस 4390"अस सबा बिन जसमा ने कहा कि ,रसूल ने "अल अबबा"की जगह पर काफिरों के साथ उनके बच्चों को भी क़त्ल कर दिया था .और औरतों को कैद करके लोगों में बाँट दिया था .बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 256

6 -स्त्री वेशधारी (Cross Dresser )"अब्दुला बिन अब्दुल वहाब ने कहा कि ,एक बार मैं रसूल के घर गया ,मैं उनको तोहफा देने गया था .रसूल ने उमे सलमा सेकहा कि ,मुझे परेशां नहीं करो इस वक्त मैं आयशा के कपडे पहिने हुए हूँ ,जैसा हमेशा करता हूँ .मुस्लिम -किताब 2 हदीस 3941

7 -तिरस्कृत (Dispraised )"अबू हुरैरा ने कहा कि ,कुरैश के लोग मुहम्मद को रसूल नहीं बल्कि पाखंडी मानते थे .और उसे धिक्कारते थे .वे मुहम्मद को "मुहम्मम "कह कर मजाक उड़ाते थे .बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 733

8 -अहंकारी (Egoist )"अबू सईद बिन मुल्ला नेकहा कि ,एक बार मैं नमाज पढ़ रहा था .तभी रसूल ने मुझे पुकारा .मैनेनाहीं सुना ,जब रसूल ने चार पांच बार पुकारा तो मैं उनके पास गया .रसूल ने कहा कि नमाज से जादा रसूल की बात सुनना जरूरी है ,उसी समय रसूल ने यह आयत बना दी थी .जिसमे कहा गया है "अपने रसूल की बात पाहिले सुनो .कुरआन -सूरा अल अन आम 8 :24 "बुखारी -जिल्द 6 किताब 60 हदीस 226बुखारी -जिल्द 6 किताब 60 हदीस 1 .और बुखारी -जिल्द 6 किताब 60 हदीस 170

9 -द्वेष प्रचारक (Hate Preacher )"अबू जर ने कहा कि रसूल ने कहा कि ,अल्लाह ने मुझे दुनिया में नफ़रत फैलाने का काम सौंपा कर लिए भेजा है.और अल्लाह के नाम पर लोगों के बीच नफ़रत फैलाना उत्तम काम है.इसा से ईमान पुख्ता होता है .नफ़रत ईमान का हिस्सा है.अबू दाऊद-किताब 40 हदीस 4582 -4583 .

10 - खुशामद पसंद(Magalomaniac )"अबू हुरैरा ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि,जब तक तुम अपने बाप और बच्चों से अधिक मुझे अपना अजीज नहीं मानते ,मुसलमान नहीं बन सकते.तुम सारी दुनिया और अपने बाप और बच्चों से मुझे अपना हितैषी मानो.बुखारी -जिल्द 1 किताब 2 हदीस 12 और 13

11 -मोटा और स्थूल (ओबेसे )"अबू बाजरा ने कहा कि एक बार रसूल को मोटापे के कारण एक पड़ी पर चढ़ने में तकलीफ हो रही थी ,ताल्हा बिन अबू उबैदुल्ला ने मुस्लिम नामके एक आदमी से कुछ लोगों बुलवाया ,और कहा देखो यह रसूल तुम्हारा बोझा हैं ,जो काफी भारी है .इसे ध्यान से ऊपर उठाना .फिर उन लोगों ने रसूल को ऊपर चढ़ाया.अबू दाऊद-कताब 40 हदीस 4731

12 -लुटेरा (Plundarer )"जबीर बिन अब्दुल्ला ने कहा कि रसूल ने कहा कि ,अल्लाह ने मेरे लिए लूट का माल हलाल कर दिया है.बुखारी -जिल्द 4 किताब 53 हदीस 351(नोट -इसके बारे में पूरा विवरण "लुटेरा रसूल "शीर्षक से अलग से दिया जाएगा )

13 -चरित्रहीन(Characterless )"आयशा ने कहा कि रसूल के कई औरतों से गलत सम्बन्ध थे.फिर भी वह दूसरी औरतों को बुला लेते थे.और अपनी औरतों के लिए समय और दिन तय कर देते थे.पूछने पर कहते थे ,तुम चिंता नहीं करो ,तुम्हारी बारी तुम्हीं को मिलेगी .अगर मैं अल्लाह इच्छा पूरी करता हूँ ,तो तुम्हें जलन नहीं होना चाहिए .बुखारी -जिल्द 6 किताब 60 हदीस 311(नोट -इसी बात पर कुरान की सुरा -अहजाब 33 :51 naajil

14 -नस्लवादी (Racist )"अनस बिन मालिक ने कहा कि रसूल ने कहा कि ,हारेग गुलाम को अपने मालिक के हरेक आदेश पा पालन करना चाहिए .और हरेक काले लोग (Negro )हबशी दास होने के योग्य हैं.क्योंकि उनका रंग काले सूखे अंगूर की तरह (Raisin )की तरह है .बुखारी - जिल्द 9 किताब 89 हदीस 256 .और बुखारी -जिल्द 1 किताब 11 हदीस 662 और 664

15 -कामरोगी(Sex Addict )"अनस बिन मालिक ने कहा कि ,रसूल बारी बारी से लगातार अपनी पत्नियों और दसियों से सम्भोग करते थे ,फिर भी उनकी वासना बनी रहती थी .बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 142 ."अनस बिन मालिक ने कहा कि ,रसूल बारी बारी से हरेक औरत के साथ सम्भोग कर्राते थे .लेकिन उनकी वासना शांत नहीं होती थी .और जब भी युद्ध में औरतें पकड़ी जाती थीं ,रसूल उनके साथ सम्भोग जरुर करते थे.बुखारी -जिल्द 1 किताब 5 हद्दीस 268

16 -गुलामों का शौकीन (Slaver (मुहम्मद को गुलाम रखने का शौक था .वह गुलाम बनाता भी था और उनका व्यापार भी करता था .मुहमद के पास मर्द और औरत गुलाम थे .कूछ के नाम इस प्रकार हैं -मर्द गुलाम -साकन,अबू सरह ,अफ़लाह,उबैद ,जकवान ,तहमान,मिरवान,हुनैन ,सनद ,फदला,यामनीन,अन्जशा अल हादी ,मिदआम ,करकरा ,अबू रफी ,सौवान,अब कवशा,सलीह ,रवाह ,यारा ,नुवैन ,फजीला ,वकीद ,माबुर,अबू बकीद,कासम ,जैदइब्ने हरीस ,और महरान .स्त्री गुलाम -सलमा उम्मे रफी ,मैमूना बिन्त असीब ,मैमूना बिन्त साद ,खदरा ,रिजवा ,रजीना,उम्मे दबीरा ,रेहाना ,और अन्य जो भेंट में मिली थीं

17 -हताश (Hopeless )"अबू हुरैरा ने कहा कि ,जब मुहम्मद के उस्ताद "वर्का बिन नौफिल "मर गए तो ,कुरआन की आयतें आना बंधो गयीं थीं .और रसूल इतने हताश हो गए कि ,वे आत्महत्या के लिए एक पहाड़ी पर चढ़ गए थे.क्योंकि कई महीनों से कोई नई आयत नहीं बनी थी .बाद में रसूल ने अपना इरादा बदल लिया था .और कोई दूसरा उपाय खोज लिया था ..बुखारी -जिल्द 9 किताब 87 हदीस 111

18 -आतंकवादी (Terrorist )"अबू हुरैरा ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,मुझे अल्लाह ने आदेश दिया है कि मैं लोगों के दिलों में दहशत पैदा कर दूँ ,ताकि लोग भयभीत होकर अपने खजाने और सत्ता मेरे हाथों में सौंप दें .बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 220

19 -अत्याचारी (Torturer )"अबू हुरैरा ने कहा कि,एक ग्रामीण ने रसूल को "अबे मुहम्मद "कहकर पुकारा ,रसूल ने उसकी जीभ काटने का हुक्म देदिया था .और लोगों ने उसे पकड़ कर उसकी जीभ काट दी .इब्ने इशाक -हदीस 595"अबू हुरैरा ने कहा कि ,एक मुआज्जिन ने ईशा कि नमाज में अजान देने में देर कर दी ,रसूल ने उसको उसके घर सहित जिन्दा जलवा दिया .और वह माफ़ी मांगता रहा .बुखारी -जिल्द 1 किताब 11 हदीस 626

20 -गन्दा (Unclean )"अनस बिन मालिक ने कहा कि ,रसूल के सिर में जुएँ (Lice )भरी रहती थी ,वे नहीनों नही नहाते थे .और "उम्मे हरम "रसूल के सिर से जुएँ निकालती थी .उम्मे हरम "उदबा बिन अस साबित "की पत्नी थी .उसका काम रसूल के जुएँ निकालना था .बुखारी -जिल्द 4 किताब 52 हदीस 47

21 -अशिष्ट (Mannerless )"आयशा ने कहा कि ,एक बार "अल अवाली "गाँव केलोग रसूल का दर्शन करने के लिए आये .वे काफी दूर से पैदल आये थे ,और थके हुए थे .और आराम करना चाहते थे .रसूल ने उनको गाली देकर भगा दिया .बुखारी -जिल्द 2 किताब 13 हदीस 25

22 -पत्नी पीडक (Wife Beater )"मुहम्मद बिन किस ने कहा कि ,आयशा ने बताया कि एक बार रसूल रत को चुपचाप "अल बाक़ी "के कब्रिस्तान में चले गए.मैंने उनका पीछा किया .रसूल अजीब सी हरकतें कर रहे थे ,और हाथ हिला कर किसी से बातें कर रहे थे ,मैं चुपचाप जल्दी से घर आ गयी ,जब मैंने रसूल से इसके बारे में पूछा तो ,वह नाराज हो गए ,और मुझे नीचे पटक कर गिरा दिया .फिर मेरे दानों स्तनों पर घूंसे मारने लगे .जिस से मुझे कई दिनों तक दर्द होता रहा .सही मुस्लिम -किताब 4 हदीस 2127

23 -धनलोभी(Greedy )"अल मसूद अल अंसार ने कहा कि ,हम रसूल के आदेश से बाजारों में जाते थे ,और जकात के बहाने दुकान में जोभी होताथा उठा लेते थे .यदि धन नहीं मिलाता तो अनाज या कपडे उठा लेते थे .रसूल कहते थे एक ऐसा समय था ,जब मैं गरीब था .लेकिन आज मेरे पास हजारों दीनार हैं .तो कल मेरे पास सौ हजार दीनारें होंगीं .बुखारी -जिल्द 2 किताब 24 हदीस 497