रविवार, अप्रैल 26, 2020

जब इंदिरा गांधी को बताया गया कि उनका प्रिय बेटा कैंब्रिज में एक रेस्टोरेंट कम बार में वेटर का काम कर रही एंटोनियो माइनो के प्यार के कुचक्कर में है

जब इंदिरा गांधी को बताया गया कि उनका प्रिय बेटा कैंब्रिज में एक रेस्टोरेंट कम बार में वेटर का काम कर रही एंटोनियो माइनो के प्यार के चक्कर में है
तब इंदिरा गांधी ने कई लोगों को राजीव गांधी को समझाने के काम में लगाया
उसमें उस वक्त कैंब्रिज में प्रोफेसर सुब्रमण्यम स्वामी भी थे और उस वक्त कैंब्रिज में पढ़ रही बेनजीर भुट्टो भी थी
बेनजीर भुट्टो और इंदिरा गांधी में एक मां और पुत्री जैसा रिश्ता था क्योंकि इंदिरा गांधी की जीवनी पर लिखी किताब जो उनकी सहेली पुपुल जयकर ने लिखा है उसमें उन्होंने लिखा है कि इंदिरा गांधी बेनजीर भुट्टो को बहुत मानती थी
सबने राजीव गांधी को ऊंच-नीच प्रतिष्ठा इत्यादि समझाया
फिर जब इंदिरा गांधी को यह भी पता चला इस एंटोनियो माइनो का बाप इटली का एक अपराधी है जो कभी मुसोलिनी की फासीवादी संगठन में रह चुका है और एक दो बार नहीं बल्कि 26 बार जेल जा चुका है और यह लड़की अपने घर बार-बार आ रहे पुलिस से तंग आकर ही एक शरणार्थी के रूप में कैंब्रिज में आई है और एक रेस्टोरेंट कम बार में वेटर की नौकरी करके अपना गुजारा कर रही है तब इंदिरा गांधी और भी ज्यादा परेशान हो गई और उस लड़की की शिक्षा मात्र नाइंथ क्लास ही थी
राजीव गांधी नहीं माने और कहते हैं कि बच्चों की जिद के आगे बड़े बड़े लोग हार जाते हैं
उसके बाद एंटोनियो माइनो को भारत बुलाया गया और इंदिरा गांधी ने कुछ दिनों तक हिंदी और भारतीय तौर तरीके सीखने के लिए उसे अमिताभ बच्चन के घर ठहराया
जहां अमिताभ बच्चन की मां स्वर्गीय तेजी बच्चन और अमिताभ बच्चन के पिता तथा अजीताभ बच्चन अमिताभ बच्चन दोनों भाई सब लोग जो भारतीय संस्कृति के तौर तरीके सिखाने लगे
फिर राजीव गांधी और एंटोनियो माइनो उर्फ सोनिया गांधी की सगाई वही अमिताभ बच्चन के बंगले में हुई थी जिसमें सोनिया गांधी के मां का पूरा रस्म अमिताभ बच्चन की मां श्रीमती तेजी बच्चन ने निभाया था
खैर ये तो पहला पार्ट है अब दूसरा पार्ट जानिए जो बेहद ज्यादा खतरनाक है
अमिताभ बच्चन परिवार दशकों तक कांग्रेस का वफादार रहा राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन अच्छे दोस्त थे
राजीव गांधी के कहने पर अपने फिल्मी कैरियर के पीक के दौरान अमिताभ बच्चन ने फिल्मी दुनिया छोड़कर राजनीति में कदम रखा इलाहाबाद से चुनाव लड़े और तब के बहुत बड़े नेता हेमवती नंदन बहुगुणा की जमानत जप्त करवा दी
लेकिन राजनीति काली कोठरी में अमिताभ बच्चन अपने आप को बचा नहीं पाए और बोफोर्स में दलाली का दाग उनके ऊपर भी लगा और उन्होंने राजनीति से सन्यास लेकर वापस फिल्मी दुनिया में चले गए
फिर अमिताभ बच्चन कर्ज के जाल में उलझ गए और तब समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह सहारा ग्रुप के सुब्रत राय सहारा जैसे लोगों ने उन्हें मदद करके कर्जे के जाल से मुक्ति दिलाई
अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन समाजवादी पार्टी में शामिल हो गई
फिर अमिताभ बच्चन और फर्जी गांधी परिवार के बीच में तल्खी और दूरियां बढ़ गई
उसी दरम्यान अमिताभ बच्चन की मां श्रीमती तेजी बच्चन का निधन हुआ और आगे जो मैं बात बताने जा रहा हूं यह बात खुद अमिताभ बच्चन जी ने एक टीवी चैनल पर कहा था
अमिताभ बच्चन ने यह बताया कि मुझे पूरा यकीन ही नहीं बल्कि विश्वास था कि मेरे मां के अंतिम संस्कार में गांधी परिवार जरूर आएगा क्योंकि मेरी मां ने सोनिया गांधी के मां की भूमिका निभाई थी मेरी मां की गोद में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी खेले हैं कूदे हैं और मैंने अंतिम संस्कार में 4 घंटे तक विलंब किया क्योंकि मैं गांधी परिवार के लोगों का इंतजार कर रहा था फिर अंत में तेजी बच्चन जी का अंतिम संस्कार कर दिया गया और गांधी परिवार से कोई भी व्यक्ति श्रीमती तेजी बच्चन के अंतिम संस्कार में नहीं गया
और अमिताभ बच्चन ने एक यह भी लाइन जोड़ा था वह राजा है हम रंक हैं भला एक राजा रंक के अंतिम संस्कार में क्यों आएगा ? आखिर एक राजा एक रंक से रिश्ता क्यों रखेगा??
अमिताभ बच्चन की यह लाइन फर्जी गांधीओं के गाल पर सबसे बड़ा तमाचा है
सोचिए आज जो यह कांग्रेसी चमचे जगह-जगह एंटोनियो माइनो उर्फ सोनिया गांधी को मां बता रहे हैं भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत बता रहे हैं इन कांग्रेसी चमचों को पता होना चाहिए की सनातन संस्कृति में जन्म देने वाली मां से भी बड़ा दर्जा कन्यादान देने वाली मां का होता है और सोनिया गांधी सिर्फ और सिर्फ घमंड अहंकार से ही अपनी कन्यादान करने वाली मां तेजी बच्चन के अंतिम संस्कार में नहीं गई
और ऐसी नीच हरकत एक विदेशी संस्कृति में पली-बढ़ी और विदेशी संस्कृति को मानने वाली महिला ही कर सकती है कभी कोई भारतीय संस्कृति वाली महिला नहीं कर सकती
◆ Jitendra pratap singh ◆

कुमारिल का आत्मदाह

कुमारिल का आत्मदाह
...
कुमारिल भट्ट ने आत्मदाह क्यों किया था? यह मध्यकालीन भारत का एक यक्षप्रश्न है। उन्हें किसी ने बाध्य नहीं किया था, उन्होंने स्वयं ही इसका चयन किया। वैसा करने के अनुल्लंघ्य कारण भी न थे। उन्हें कौन-सी ग्लानि और व्यथा थी, भांति-भांति से इसकी व्याख्या की जाती है। किंतु इसका सबसे बड़ा कारण सनातन धर्म और बौद्धों के बीच उस काल में चल रहे संघर्ष में निहित था। जिस ताप ने कुमारिल को भस्म कर दिया, उसके मूल में वैदिक धर्म के पराभव से उपजा शोक था। वास्तव में कुमारिल सनातन परम्परा के महान हुतात्मा हैं!
कुमारिल मीमांसक थे। मीमांसा दर्शन के भाट्टमत के प्रतिपादक थे! उनके ग्रंथ "श्लोकवार्तिक" की बड़ी प्रतिष्ठा थी। मण्डन मिश्र उन्हीं के शिष्य थे। फिर उन्होंने आत्मनाश क्यों कर लिया? वास्तव में, उस कालखण्ड यानी आठवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत में बौद्धों का वर्चस्व था। वेदों को अप्रामाणिक सिद्ध करने में बौद्धों ने पूरी शक्ति लगा दी थी और उन्हें राज्याश्रय प्राप्त था। बौद्ध-नैयायिकोंकी तब तूती बोलती थी। उनके तर्क अकाट्य मान लिए गए थे। नागार्जुन, वसुबंधु, धर्मकीर्ति और दिंगनाग जैसे बौद्ध दार्शनिकों की बातों का कोई तोड़ तब वैदिक धर्मावलम्बियों के पास नहीं था।
कुमारिल इससे बड़े विक्षुब्ध रहते थे। उन्होंने सोचा कि बौद्धों की तर्क-प्रणाली को जानने के बाद ही उन्हें परास्त किया जा सकता है। यह निश्चय करके वे नालंदा गए, बौद्ध मत स्वीकार किया और बौद्ध दर्शन के प्रकांड विद्वान धर्मपाल के सान्निध्य में अध्ययन करने लगे। एक दिन की बात है! आचार्य धर्मपाल वैदिक धर्म में निहित दोषों का निर्ममता से उद्घाटन कर रहे थे। उनमें कटाक्ष की वृत्ति बहुत सघन थी, अतएव वे नाना प्रकार से वैदिक धर्म पर कटाक्ष भी करते जा रहे थे। कुमारिल यह सहन नहीं कर पाए। उनकी आंखों से आंसू फूट पड़े।
इधर कुमारिल की आंखों से अश्रुधारा बही, उधर उनका रहस्य खुला। वे आचार्य से बोल पड़े : "आप क्या जानें वेद-विद्या की श्रेष्ठता!" अहिंसा का उपदेश देने वाले आचार्य को इस पर क्रोध आ गया। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा : "इस मूढ़ को विहार के शिखर से नीचे धकेल दो, देखते हैं कौन-सा वेद इसकी रक्षा करता है!" कुमारिल को शिखर पर ले जाया गया। नीचे धकेले जाने से पूर्व कुमारिल ने कहा : "यदि वेद प्रमाण हैं तो मेरे प्राण बचे रहें!" कुमारिल बच गए, किंतु अपने वाक्य में "यदि" लगा देने के कारण उनकी एक आंख फूट गई!
कुमारिल को किस बात की ग्लानि थी? शायद इसकी कि उन्होंने मीमांसक के रूप में ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न किया। या इसकी कि बौद्धों की तर्क-प्रणाली जानने के लिए उन्होंने बौद्ध मत स्वीकार किया। या इसकी कि उन्होंने वेदों पर संशय करके अपनी एक आंख गंवा दी। किंतु शायद ग्लानि से बढ़कर उन्हें इस बात का शोक था कि वे अपनी समस्त क्षमताओं के बावजूद वैदिक धर्म की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं।
प्रयाग में संगम पर उन्होंने आत्मदाह का निर्णय लिया। भूसे की ढेरी को सुलगाकर उसमें जा बैठे। उनके शरीर का निचला हिस्सा प्राय: जल गया और वक्ष और शीशस्थल शेष रह गया, तब शंकर उनके दर्शन को पहुंचे। शंकर ने ब्रह्मसूत्र पर भाष्य लिखा था किंतु वह बहुत दुर्बोध था। वे कुमारिल की कीर्ति से परिचित थे। वे चाहते थे कि कुमारिल उस भाष्य पर वार्तिक लिखें। यही मनोरथ बांधकर वे प्रयाग आए किंतु यहां धू-धू जलते आचार्य को देखकर वे स्तब्ध रह गए।
कुमारिल का आत्मदाह करना और ऐन उसी अवसर पर शंकर का उनके पास पहुंचना- यह मध्यकालीन भारत के इतिहास में केंद्रीय महत्व की घटना है। शंकर ने कुमारिल को ब्रह्मसूत्र का अपना भाष्य दिखलाया तो उनकी आंखों में चमक आ गई। जो काम वो पूरा नहीं कर सके थे, उसे शंकर पूरा करेंगे, यह उन्हें विश्वास हो गया। मृत्यु से क्षोभ चला गया, उसमें आत्मबलिदान की दीप्ति आ गई। उन्होंने शंकर को आशीष देते हुए कहा कि मण्डन से शास्त्रार्थ करो और विजयी होओ। मण्डन तो उन्हीं के शिष्य थे, फिर उन्होंने शंकर को विजय का आशीष क्यों दिया? इसलिए, क्योंकि वे जान गए थे कि अब अद्वैत-वेदान्त ही सनातन धर्म की रक्षा कर सकता है और इसके लिए मीमांसकों को पीछे हटना होगा। शंकर ने यही कर दिखाया। अकेले अपने बूते वे भारत में सनातन धर्म की पुन:प्रतिष्ठा करने में सफल रहे। बौद्धों का तब जो पराभव हुआ तो आज तक वे भारत में अपनी धरती नहीं पा सके।
सनातन धर्म पर इससे बड़ा संकट इससे पहले कभी नहीं आया था। ना ही उसके बाद कभी आया। यों तो कालान्तर में सनातन धर्म पर यवनों, म्लेच्छों, विधर्मियों, विदेशियों ने अनेक प्रहार किए, किंतु वे सभी बाहरी आक्रमण थे, उसकी मूल दार्शनिक-मान्यताओं को तो बौद्धों ने ही सबसे प्रमुख चुनौती दी थी। बीसवीं सदी के बीच में नवबौद्धों ने अवश्य एक कथित धर्म-आंदोलन चलाया था। बौद्ध धर्म उनके लिए राजनीतिक पूंजी की तरह था। भीमराव की नीति अतीत के प्रेतों को जगाकर हिंदू धर्म पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की थी। किंतु उनके सामाजिक न्याय का चाहे जो हुआ हो, उनके नवबौद्धों का कोई नामलेवा आज नहीं है। आधुनिक काल में वामधारा के द्वारा सनातन के मानमर्दन के यत्किंचित प्रयत्न किए जाते हैं, किंतु वे इतने उपहास्य हैं कि उनकी बात करना भी उन्हें महत्व देना है।
मध्यकाल के वज्रयानियों से लेकर आधुनिक काल के नवबौद्धों और वामपंथियों तक- ये सभी भारत से सनातन के उन्मूलन में सफल क्यों नहीं हो पाए हैं? इसका संकेत शंकर-मण्डन संवाद में मिलता है। मण्डन ने शंकर से कहा था- वेद का अभिप्राय है विधि का प्रतिपादन करना और उपनिषद स्वरूप का प्रतिपादन करते हैं। मैं तो विधि की ही बात करूंगा। इसके प्रत्युत्तर में शंकर ने जीव-ब्रह्मैक्य का सिद्धांत प्रतिपादित किया और यह तर्क देकर मण्डन को निरुत्तर कर दिया कि जिसे प्रमाण से सिद्ध किया जा सकता हो, वह पूर्णब्रह्म नहीं हो सकता। मण्डन को हार मानना पड़ी। कुमारिल यह जानते थे, इसलिए उन्होंने शंकर को विजय का आशीष दिया था। वे अपनी मृत्युशैया पर अद्वैत-वेदान्त के सामर्थ्य को पहचान गए थे।
शंकर न तो वेदविरुद्ध थे, न ही विधि-विरुद्ध, किंतु उन्होंने औपनिषदिक प्रविधि इसलिए अपनाई, क्योंकि वे जानते थे कि विधि को चुनौती दी जा सकती है, किंतु स्वरूप का खण्डन नहीं किया जा सकता। यह वही स्वरूप है, जिससे बुद्ध के अनित्य को भी प्राणधारा मिलती थी। मण्डूक्योपनिषद में बौद्ध और वेदान्त के सूत्र एकमेक हो जाते थे। स्वरूप को साध लिया तो फिर धर्म की भी रक्षा हो सकेगी, यह शंकर के उद्यम के मूल में था।
आज जो भी सनातन-धर्म की विधियों पर प्रहार करते हैं, उन्हें जान लेना चाहिए कि उसके स्वरूप को नष्ट किए बिना भारत से सनातन-धर्म का उन्मूलन नहीं किया जा सकता, और भारत के गुणसूत्र इस स्वरूप से इतने अविच्छिन्न हो गए हैं कि इसे नष्ट करना सम्भव नहीं। प्रयाग में त्रिवेणी-संगम पर तुषानल के दाह में कुमारिल को जिस तत्व का बोध हो गया था, जिसकी धर्मध्वजा शंकर ने चतुर्दिक फहराई, उसकी मानहानि करना कम से कम वामाचारी विदूषकों के बस का रोग नहीं है। इति।
#सुशोभित

शुक्रवार, अप्रैल 17, 2020

भारत में विज्ञान पर इतना शोध किस प्रकार होता था जाने गुरुकुल को

"भारत में ७ लाख ३२ हज़ार गुरुकुल एवं विज्ञान की २० से अधिक शाखाए थी।"
भारत में विज्ञान पर इतना शोध किस प्रकार होता था, तो इसके मूल में है भारतीयों की जिज्ञासा एवं तार्किक क्षमता, जो अतिप्राचीन उत्कृष्ट शिक्षा तंत्र एवं अध्यात्मिक मूल्यों की देन है। "गुरुकुल"के बारे में बहुत से लोगों को यह भ्रम है की वहाँ केवल संस्कृत की शिक्षा दी जाती थी जो की गलत है। भारत में विज्ञान की २० से अधिक शाखाएं रही है जो की बहुत पुष्पित पल्लवित रही है जिसमें प्रमुख
१. खगोल शास्त्र
२. नक्षत्र शास्त्र
३. बर्फ़ बनाने का विज्ञान
४. धातु शास्त्र
५. रसायन शास्त्र
६. स्थापत्य शास्त्र
७. वनस्पति विज्ञान
८. नौका शास्त्र
९. यंत्र विज्ञान आदि इसके अतिरिक्त शौर्य (युद्ध) शिक्षा आदि कलाएँ भी प्रचुरता में रही है। संस्कृत भाषा मुख्यतः माध्यम के रूप में, उपनिषद एवं वेद छात्रों में उच्चचरित्र एवं संस्कार निर्माण हेतु पढ़ाए जाते थे।
थोमस मुनरो सन १८१३ के आसपास मद्रास प्रांत के राज्यपाल थे, उन्होंने अपने कार्य विवरण में लिखा है मद्रास प्रांत (अर्थात आज का पूर्ण आंद्रप्रदेश, पूर्ण तमिलनाडु, पूर्ण केरल एवं कर्णाटक का कुछ भाग ) में ४०० लोगो पर न्यूनतम एक गुरुकुल है। उत्तर भारत (अर्थात आज का पूर्ण पाकिस्तान, पूर्ण पंजाब, पूर्ण हरियाणा, पूर्ण जम्मू कश्मीर, पूर्ण हिमाचल प्रदेश, पूर्ण उत्तर प्रदेश, पूर्ण उत्तराखंड) के सर्वेक्षण के आधार पर जी.डब्लू.लिटनेरने सन १८२२ में लिखा है, उत्तर भारत में २०० लोगो पर न्यूनतम एक गुरुकुल है। माना जाता है की मैक्स मूलर ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर सबसे अधिक शोध किया है, वे लिखते है "भारत के बंगाल प्रांत (अर्थात आज का पूर्ण बिहार, आधा उड़ीसा, पूर्ण पश्चिम बंगाल, आसाम एवं उसके ऊपर के सात प्रदेश) में ८० सहस्त्र (हज़ार) से अधिक गुरुकुल है जो की कई सहस्त्र वर्षों से निर्बाधित रूप से चल रहे है"।
उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत के आकडों के कुल पर औसत निकलने से यह ज्ञात होता है की भारत में १८ वी शताब्दी तक ३०० व्यक्तियों पर न्यूनतम एक गुरुकुल था। एक और चौकानें वाला तथ्य यह है की १८ शताब्दी में भारत की जनसंख्या लगभग २० करोड़ थी, ३०० व्यक्तियों पर न्यूनतम एक गुरुकुल के अनुसार भारत में ७ लाख ३२ सहस्त्र गुरुकुल होने चाहिए। अब रोचक बात यह भी है की अंग्रेज प्रत्येक दस वर्ष में भारत में भारत का सर्वेक्षण करवाते थे उसे के अनुसार १८२२ के लगभग भारत में कुल गांवों की संख्या भी लगभग ७ लाख ३२ सहस्त्र थी, अर्थात प्रत्येक गाँव में एक गुरुकुल। १६ से १७ वर्ष भारत में प्रवास करने वाले शिक्षाशास्त्री लुडलो ने भी १८ वी शताब्दी में यहीं लिखा की "भारत में एक भी गाँव ऐसा नहीं जिसमें गुरुकुल नहीं एवं एक भी बालक ऐसा नहीं जो गुरुकुल जाता नहीं"।
राजा की सहायता के अपितु, समाज से पोषित इन्ही गुरुकुलों के कारण १८ शताब्दी तक भारत में साक्षरता ९७% थी, बालक के ५ वर्ष, ५ माह, ५ दिवस के होते ही उसका गुरुकुल में प्रवेश हो जाता था। प्रतिदिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक विद्यार्जन का क्रम १४ वर्ष तक चलता था। जब बालक सभी वर्गों के बालको के साथ निशुल्कः २० से अधिक विषयों का अध्यन कर गुरुकुल से निकलता था। तब आत्मनिर्भर, देश एवं समाज सेवा हेतु सक्षम हो जाता था।
इसके उपरांत विशेषज्ञता (पांडित्य) प्राप्त करने हेतु भारत में विभिन्न विषयों वाले जैसे शल्य चिकित्सा, आयुर्वेद, धातु कर्म आदि के विश्वविद्यालय थे, नालंदा एवं तक्षशिला तो २००० वर्ष पूर्व के है परंतु मात्र १५०-१७० वर्ष पूर्व भी भारत में ५००-५२५ के लगभग विश्वविद्यालय थे। थोमस बेबिगटन मैकोले (टी.बी.मैकोले) जिन्हें पहले हमने विराम दिया था जब सन १८३४ आये तो कई वर्षों भारत में यात्राएँ एवं सर्वेक्षण करने के उपरांत समझ गए की अंग्रेजो पहले के आक्रांताओ अर्थात यवनों, मुगलों आदि भारत के राजाओं, संपदाओं एवं धर्म का नाश करने की जो भूल की है, उससे पुण्यभूमि भारत कदापि पददलित नहीं किया जा सकेगा, अपितु संस्कृति, शिक्षा एवं सभ्यता का नाश करे तो इन्हें पराधीन करने का हेतु सिद्ध हो सकता है। इसी कारण "इंडियन एज्यूकेशन एक्ट"बना कर समस्त गुरुकुल बंद करवाए गए। हमारे शासन एवं शिक्षा तंत्र को इसी लक्ष्य से निर्मित किया गया ताकि नकारात्मक विचार, हीनता की भावना, जो विदेशी है वह अच्छा, बिना तर्क किये रटने के बीज आदि बचपन से ही बाल मन में घर कर ले और अंग्रेजो को प्रतिव्यक्ति संस्कृति, शिक्षा एवं सभ्यता का नाश का परिश्रम न करना पड़े।
उस पर से अंग्रेजी कदाचित शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी नहीं होती तो इस कुचक्र के पहले अंकुर माता पिता ही पल्लवित होने से रोक लेते परंतु ऐसा हो न सका। हमारे निर्यात कारखाने एवं उत्पाद की कमर तोड़ने हेतु भारत में स्वदेशी वस्तुओं पर अधिकतम कर देना पड़ता था एवं अंग्रेजी वस्तुओं को कर मुक्त कर दिया गया था। कृषकों पर तो ९०% कर लगा कर फसल भी लूट लेते थे एवं "लैंड एक्विजिशन एक्ट"के माध्यम से सहस्त्रो एकड़ भूमि भी उनसे छीन ली जाती थी, अंग्रेजो ने कृषकों के कार्यों में सहायक गौ माता एवं भैसों आदि को काटने हेतु पहली बार कलकत्ता में कसाईघर चालू कर दिया, लाज की बात है वह अभी भी चल रहा है। सत्ता हस्तांतरण के दिवस (१५-८-१९४७ ) के उपरांत तो इस कुचक्र की गोरे अंग्रेजो पर निर्भरता भी समाप्त हो गई, अब तो इसे निर्बाधित रूप से चलने देने के लिए बिना रीढ़ के काले अंग्रेज भी पर्याप्त थे, जिनमें साहस ही नहीं है भारत को उसके पूर्व स्थान पर पहुँचाने का |
"दुर्भाग्य है की भारत में हम अपने श्रेष्ठतम सृजनात्मक पुरुषों को भूल चुके है। इसका कारण विदेशियत का प्रभाव और अपने बारे में हीनता बोध की मानसिक ग्रंथि से देश के बुद्धिमान लोग ग्रस्त है"
डॉ.कलाम, "भारत २०२० : सहस्त्राब्दी"
आप सोच रहे होंगे उस समय अमेरिका यूरोप की क्या स्थिति थी, तो सामान्य बच्चों के लिए सार्वजानिक विद्यालयों की शुरुआत सबसे पहले इंग्लैण्ड में सन १८६८ में हुई थी, उसके बाद बाकी यूरोप अमेरिका में अर्थात जब भारत में प्रत्येक गाँव में एक गुरुकुल था, ९७ % साक्षरता थी तब इंग्लैंड के बच्चों को पढ़ने का अवसर मिला। तो क्या पहले वहाँ विद्यालय नहीं होते थे? होते थे परंतु महलों के भीतर, वहाँ ऐसी मान्यता थी की शिक्षा केवल राजकीय व्यक्तियों को ही देनी चाहिए बाकी सब को तो सेवा करनी है।
#साभार

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राजपूतों_ने_इस्लाम_के_विस्तार_को_रोक_दिया

  1. #राजपूतों_ने_इस्लाम_के_विस्तार_को_रोक_दिया__

दलितों के साथ बहुत भेदभाव हुआ। उनसे खेतों में काम कराया गया, हरवाही कराई गई, गोबर उठवाया गया। उन्हें शिक्षा से वंचित रखा गया। बहुत जुल्म हुआ दलितों पे ..! यह बात बहुत जोरों से सोशल मीडिया,मास मीडिया के माध्मय से लोगो को बताई जा रही है।
मगर 1400 साल पहले जब मक्का से इंसानी खून की प्यासी इस्लाम की तलवार लपलपाते हुए निकली तो एक झटके में ही ईरान, इराक, सीरिया, मिश्र, दमिश्, अफगानिस्तान, कतर, बलूचिस्तान से ले के मंगोलिया और रूस तक ध्वस्त होते चले गए, स्थानीय धर्मों परम्पराओं का तलवार के बल पर लोप कर दिया गया और सर्वत्र इस्लाम ही इस्लाम हो गया।
शान से इस्लाम का झंडा आसमान चूमता हुआ अफगानिस्तान होते हुए सिंध के रास्ते हिंदुस्तान पहुंचा, पर यहां पहुंचते ही इस्लाम की लगाम आगे बढ़ के क्षत्रियों ने थाम ली जिसके कारण भीषण रक्तपात हुआ। आठ सौ साल तक क्षत्रिय राजवंशों से ले के आम क्षत्रियों ने इस्लाम की नकेल को जकड़ कर रखा,
एक समय ऐसा आया जब 18 साल से ऊपर के लड़के ही न रहे क्षत्रियों में, विधवाओं का अंबार लग गया, इसी वजह से सती प्रथा जौहर जैसी व्यवस्थाओं ने आकार लिया, राजपूतानिया खुद आगे बढ़कर अपने पति,बेटो को युद्ध मे तिलक लगाकर भेजती थी और खुद जोहर करती थी, ताकि कोई मुसलमान उनके शरीर को हाथ भी ना लगा सके।
परिणामतः UP जैसे बड़े राज्य में ये राजपूत घट के 1 % से भी नीचे आ गए, जो अब लगभग 8% तक पहुंचे हैं। किसी-किसी राज्य में तो इनकी जड़ ही गायब हो गई। जिसका नतीजा यह हुआ के इस्लाम यहीं फंस के रह गया और आगे नही बढ़ पाया, और चाइना, कोरिया,जापान, नेपाल जैसे भारत के पूर्वी राज्य इस्लाम के हमले से बच गए।
इतना सब कुछ झेलने के बाद भी कहीं किसी इतिहास में ये नही मिलेगा, की इस्लाम के खिलाफ लड़ाई में क्षत्रियों ने खुद न जा के किसी और जाति को मरने के लिए आगे कर दिया। बांकी जातियों में जो लड़े वो आत्म रक्षार्थ ही लड़े।
राजपूत अपने नाबालिग बेटे कुर्बान करते रहे पर कभी अपने कर्म से विमुख न हुए। सामाजिक जातीय वर्ण व्यवस्था का पूरा ख्याल रखा। जिसके वजह से आज की हिन्दू पीढ़ी मुसलमान होने से बची रह गई।
राजपूतो में आपसी मतभेद होने के वजह से मुसलमानों का भारत पे अधिकार तो हो गया लेकिन 1000 सालों में भी भारत को इस्लामिक देश नही बना पाया।
हर जगह राजपूतों को अत्याचारी बताया गया। हर फिल्मों में इन्हें अत्याचारी ठाकुर दिखा दिखा के लोगो के दिमाग मे इनकी गलत छवि पेश की गई, लेकिन ये नही दिखाया कि जब मुस्लिम तलवारे रक्त मांगती थी तब पहला सिर इन राजपूतों ने ही दिया है।
जिनके दादा परदादा राजपूती तलवार के छत्रछाया में ना केवल जिंदा रहें वीवी बच्चे सब मौज और शांति से बच गए आज उनकी औलादें अपने मालिकों को अत्याचारी बता कर अपने गद्दारी का प्रमाण दे रहे हैं,
सब्र रखो असत्य, अन्याय, अधर्म पर मौज ज्यादा समय तक नहीं टिकताप

गुरुवार, अप्रैल 16, 2020

अगर मुल्ले कुतर्क करे

अगर मुल्ले तर्क करे ..
तुम तर्क करो..
*कुतर्क करे
तो कुतर्क करो..*
संघी कहे ..
*तो जिहादी कहो...*
चड्डीधारी कहे तो
*लुंगी धारी, टोपी धारी कहो..*
अगर वो अंधभक्त या भक्त कहे...
*तो उसे
चमचा कहो गुलाम कहो
मदरसा छाप कहो*
गोमूत्र पीने वाला कहे
*तो ऊँट का पेशाब पीने वाला कहो*
सही बात ना माने *
तो समझ जाओ
हल्ला ताला ने उनके भेजे में ताला लगा रखा है*
*इंशाअल्ला बोले
तो समझ जाओ हिंसा-हल्ला मचाना चाह रहा है*
यदि बोले गणेश जी का मुंह हाथी का कैसे
*तो बता दो जैसे तुम्हारे मोहम्मद की गधी
अल-बुराक का मुंह औरत का हो सकता है*
स्वर्ग में अप्सराओं की बात करे
*तो उन्हें अल्ला और 72 हुर की याद दिलाओ*
*800 साल तक राज करने की बात बोले
तो बताओ उनके पूर्वज कभी
हिन्दू हुआ करते थे
जो डर से मुल्ले बन गए*
गाय को माता लेकिन बैल को बाप ना बोलने की वजह पूछे
*तो बताओ जैसे तुम आयशा को
उम उल मोमिनीन (मां) कहते हो
लेकिन मोहम्मद को बाप क्यों नही*
बाबा की बात करे
*तो मोलवियों के बारे में बताओ*
*पूछे उन्हें
अल्ला उन्हें डायरेक्ट मुसलमान क्यों नही बनाता है
क्यों उन्हें मुसलमानी (खतना) करवाना पड़ता है*
अगर कहे
तुम्हे हिन्दू नाम हमने दिया
तो *पूछो इस्लाम की स्थापना करने से पहले
मोहम्मद किस मजहब का था
और इससे भी ज्यादा की
अल्लाह किस धर्म से ताल्लुक रखता है*
*ताजमहल ,कुतुबमीनार,लाल किला का उदाहरण दे
तो पूछो 58 इस्लामिक देश में
एक भी प्रसिद्ध इमारत क्यों नही बनवा पाए*
*पूछो उन्हें
क्यों मुर्गे से पहले बांग ,
बकरे से लम्बी दाढ़ी
और सुअर से ज्यादा बच्चे पैदा करते हो*
*अगर कहे कि
कुछ मुसलमान जो भटक गए है अनपढ़ है
वो ही आतंकी बनते है
तो बताओ कि
अफजल - MBBS,
रियाज भटकल-इंजीनियर,
याकूब मेमन:- चार्टर्ड अकॉउंटेन्ट,
अल बगदादी:- पी. एच.डी,
ओसामा बिन लादेन:- सिविल इंजीनियर,
हाफिज सईद :- प्रोफेसर है ।*
पाखण्ड की बात करे
तो *कुरान की चपटी धरती,
चांद के दो टुकड़े
,जैसे हवाहवाई याद दिलाओ*
बालविवाह बोले
तो *56 का मोहम्मद
और 6 साल की आयशा की शादी याद दिलाओ*
घूंघट प्रथा बताये तो
*बुरखा याद दिलाओ*
सती कहे देवदासी कहे (जो बन्द हो चुकी है)
तो *हलाला*गुदाला कहो मुताह कहो...*
अगर वह दलित ब्राम्हण करे ..
*तो उन्हें
सुन्नी (जो शियाओं का खून बहा रहे हैं
वह याद दिलाओ)...*
जाती प्रथा की बात उठाये
तो *72 फिरको
(शिया,सुन्नी,अहमदिया,देवबन्दी, बरेलवी,बोहरा,वहाबी आदि) के बारे में बताओ*
तुम्हारे भगवान पर उंगली उठाये ..
*तो बात पैगंबर तक ले जाओ..*
*पत्थर को पूजने को अंधविश्वास कहे
तो पत्थर का हिज़्र अस्वद की याद दिलाओ
उसे चूमने की बात बताओ
पत्थर के शैतान को पत्थर मारने की बात बताओ*
*
संघ को देश को तोड़ने वाला कहे ..
*तो याद दिलाओ
धर्म के नाम पर बनने वाला पहला संगठन
"All india muslim league" था..*
*जिसने देश को बांट कर पाकिस्तान बनाया..*
गोडसे पर जाये ...
*तो
गजनी से लेकर याकुब तक पूरी लिस्ट पेश कर दो..*
*भाजपा को सपोर्ट करने पर तुम्हे भक्त कहे ...*
*तो
60 साल कांग्रेस की गुलामी करनेवालों को चमचे कहो..*
*तुम्हें अपना भाई कहे तो तुम भी भाई कहो..*
*दोस्त कहे दोस्त कहो...*✔️
याद रहे,
*"कृष्ण की पुकार है,*
*यह भागवत का सार है,*
*कि युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है,*
*कौरवों की भीड़ हो*
*या पांडवो का नीड़ हो,*
*जो लड़ सका है वो ही तो महान है।"*
धर्म है तो हम हैं 🚩🚩धर्मो रक्षति रक्षितः🙏🏻

बुधवार, अप्रैल 15, 2020

A Hindu Rashtra: The Time is Now : Khalid Umar

It is alleged that Narendra Modi / BJP want to make India a Hindu State. If that is so, I question, what is wrong about India being a Hindu Rashtra? My rationale follows below.
Bharatvarsh, a civilization as old as 5000 years, needs no introduction of it being the original homeland sheltering 95% of all the Hindus in the world and birth place of Sanatan Hinduism. India should not be shy of recognising her identity as a Hindu Nation. Hinduism is the 3rd largest religion in the world after Christianity and Islam. But it is not demographically as widely spread on the world’s map as the first two. 97% percent of all Hindus live in the world's three Hindu-majority countries (India, Mauritius and Nepal). It is the most geographically concentrated of all the major religious. 95% of the Hindu population live in India whereas only 1.6% of Muslims live in Arabia, the birthplace of Islam.
The left-liberal have no problems with the 53 Muslim dominated countries (Islam is the official religion in 27) in the world; 100+ Christian dominated countries. In 15 nations, Christianity is the official religion. These Christian nations include England, Greece, and Iceland, Norway, Hungary, Denmark. and 6 Buddhist countries. Israel is a Jewish state. But, when it comes to India, their rationale fails to make me understand as to why Hinduism can’t be state religion of India?
There is no evidence that threatens the secular ethos of the country, if India is declared a Hindu State. All faiths have flourished in India, including Parsis, Jains, Sikhs, Muslims, Zoroastrians because Hindus are not intolerant towards other religion. One can go to a religious place associated to any religion and find Hindus there. There is no concept of conversion in Hinduism. There are Christian and Muslim nations in the world who raise voice on the Human Rights abuses and religious persecution of Muslims and Christians the world over. The world remembers Myanmar, Palestine, Yemen etc. but not the Hindus & Sikhs of Pakistan or Afghanistan or that of other Islamic nations! Does anyone remember what happened with the Hindus in Bangladesh during the 1971 genocide by Pakistan Army or the Pundits in Kashmir or the 1998 Wandhama massacre of J&K, systemic elimination of Hindus in Pakistan, the elimination of historic temples and Hinduism in the Arab world, e.g. in Muscat?
The policies of the Indian state have been anti-secular. There has been blatant religious reverse-discrimination against Hindus, its majority community. There are many examples. Have you heard about the Hajj Subsidy? Since 2000, over 1.5 million Muslims used the subsidy. It was only that the Supreme Court passed an order that directed the government to phase out this subsidy within 10 years. Which secular country will subsidise religious tourism for one faith group? The average airfare subsidy was (US$1,000) per Muslim pilgrim in 2008.
While the Indian Government was supporting their citizens religious tourism, Saudi Arabia, a country where Hindu icons are condemned as idol worship, was spreading Wahabi extremism worldwide. Hindus are not permitted to build temples and Indian tax payer money was being used to facilitate the Saudi economy by pilgrimage subsidies.
In a truly secular country, all citizens irrespective of religion would be covered by a single set of laws. In India, however, people of different religion beliefs are covered by different personal laws. Government control temples but mosques and churches are autonomous. There were subsidies for Hajj but not for Amarnath Yatra or Kumbh Mela. A truly secular country would not subsidise any pilgrimage! PERIOD!
Hindus have always welcomed and protected minorities. Let's have a look at its history of tolerance. The Hindu Community of India welcomed Parsis when they were persecuted the world over. They have flourished here for over a thousand years. The Jewish tribes found refuge in Bharat nearly 2000 years ago and same goes for Syrian Christians 1800 years ago. The Jains, Buddhists being religions derivatives of the Hinduism have co-existed for 2500 years and Sikhs for 400 years.
It’s time to look back at the facts to feel proud to be a Hindu, shy not anymore!
Even today, India is secular, not due to a Constitutional amendment of 1976 and lawyers and law makers, but because the majority of the people of India are Hindus. It is the very nature of this religion that ensures secularism, not a piece of paper that came into account after thousands of years of tolerant practice. India should openly declare itself as a “Hindu” (Hindu/Sikh/Jain) nation. India should interfere to protect the interests of all of the aforementioned people because no other country is doing it.
Declaring Hindu nation will open new door of safeguarding the majority against forced conversion and minority appeasement. India will remain a progressive country only till it remain a secular country. And it will remain a secular country only if Hindu domination persist in its demographics. Secularism and Hinduism are two sides of one coin. You toss it, in either ways you win!
If India becomes a Hindu Rashtra, that would be the best thing to happen. There would become a Uniform Civil Code with no allowances for anyone (including Hindus). Rule of Law has always been one of the main reasons for Growth in any country- Germany, Japan, USA are all based on rule of law. Conversions (to and against) will be banned, proselytising which is the root cause of religious friction will stop; No Tablighis any more. Once conversions are stopped, each person can follow whatever religion he chooses or choose to be atheist (there is a sect called- Nir Ishwara Vad in Hinduism itself). Show me another religion that recognises non-practitioners of the faith with such regards!
Secularism and religious tolerance is the ethos of the inhabitants of this region much before the Muslim invaders ransacked this land. Muslim invasions into the Indian subcontinent started around 1000 AD and they lasted for several centuries till 1739. Destruction of about 100 million Hindus is perhaps the biggest holocaust in the whole world history. Hindus did not take any revenge of from the off springs of these invaders. It is not Hinduism but the implementation of Pseudo-Secularism which is causing interfaith friction between the Hindu majority and the Muslims. In a Hindu Rashtra, the religious freedom of the Non-Hindus will not be clipped .
Hindus must take pride in the history of the land they belong to. They must resort to facts to sort out frictions. They shying away from reality will result into disaster of a land that has its sheer ethos and rich culture of tolerance deeply etched in its soil. India has been foolish enough to give away precious slices to fulfill the demands of Muslim Nations. India has been tolerant enough to practice appeasement in the name of secularism. It time now Hindus must UNITE proclaiming the peace they inherit in them. A Hindu Rashtra, that values secularism through its very nature of practice, devoid of any preamble, will be a citing example for the world.
The time is NOW.

मंगलवार, अप्रैल 14, 2020

कुरान के राक्षसी रिवाज :शैतानी शरीयत !!

Mudassar Nazir 
कुरान के राक्षसी रिवाज :शैतानी शरीयत !!
मुसलमान भारत को दारुल हरब यानी काफिरों का देश कहते हैं .इसीलिए उन्होंने देश का विभाजन करवा कर पाकिस्तान बनवा लिया था .आज पकिस्तान उनके लिए आदर्श इस्लामी देश है .क्योंकि वहां पर शरीयत का कानून चलता है ,जो कुरआन और हदीसों के अनुसार बताया जाता है .
लेकिन कुरआन और हदीसों में परस्पर विरोधी ,तर्कहीन ,और महिला विरोधी आदेशों की भरमार है .मुसलमान इतने मक्कार हैं की उन आदेशों में जो उनके लिए लाभकारी होता है ,उसे स्वीकार कर लेते हैं .और जो महिलाओं के पक्ष में होता है उसे गलत कहते हैं .पकिस्तान में सन 1979 में शरीयत का कानून लागू कर दिया गया था जिसे हुदूद मसौदा “Hudud Ordinence “कहा जाता है .
लेकिन पाकिस्तान के कई प्रान्तों जैसे सिंध ,बलूचिस्तान ,पजाब के कुछ भागों और सूबाए सरहद के आलावा अन्य क्षेत्रों में कबाइली कानून और रिवाज चलते हैं .इनमे सारे फैसले वहां की “जिरगा “या पंचायत ही कराती है .यह जिरगा मौत की सजा भी दे सकती है .और अक्सर जिरगा के फैसले बेतुके ,अमानवीय और महिला विरोधी होते हैं .लेकिन हदीसों के हवाले देकर इन फैसलों का कोई विरोध नहीं होता .इसके इन्हीं जंगली हदीसों के कारण वहां पर कई राक्षसी रिवाज भी प्रचलित हो गए है जिन्हें बलपूर्वक मनवाया जाता है .और कहा जाता है कि यह रसूल कि सुन्नत है .यानि रसूल भी यही करते थे ,अथवा यह रिवाज हदीसों और कुरान के अनुसार सही है .
यहाँ कुछ रिवाजों के नाम ,और और कुरान और हदीसों से उनका आधार बताया जा रहा है ,कि इन रिवाजों के पीछे कौन सी आयत या हदीस है .पता चला है कि देखादेखी यह राक्षसी रिवाज भारत के मुसलामानों में फ़ैल रहे हैं .और लोग इन्हें शरियत मान रहे है .
1 -सट्टा वट्टा. سٹّہ وٹّہ Satta Watta
इसका मतलब है “पत्नी विनिमय “या Barter Marriage “अक्सर मुसलमान आपस में ही लड़ते रहते हैं .और कई बार मामला गंभीर होजाने से जिरगा या पंचायत के पास चला जाता है .जब झगड़ा किसीभी तरह से नहीं सुलझाता है तो ,जिरगा ऐसे दौनों पक्षों के परिवार जिनके लडके और लड़कियां हों ,आपस में शादियाँ करा देता है .यानी किसी एक परिवार के लडके की दूसरे परिवार की लड़की से शादी करा दी जाती है .और विवाद का निपटारा हो जाता है .जादातर लोग यह फैसला मान लेते हैं .लेकिन यदि कोई परिवार नहीं मानता है तो ,जिरगा बच्चों की जबरदस्ती शादी करा देता है .यह रिवाज सिंध ,बलूचिस्तान ,पंजाब और सीमांत प्रान्त में प्रचलित है .इसका आधार यह हदीस है -
“अबू हुरैरा ने कहा कि,इब्ने नुमैर ने एक बार रसूल से पूछा कि ,मैं ने अपने पडौसी से कहा कि ,यदि वह अपनी लड़की का हाथ मेरे हाथों में दे देगा तो ,मैं अपनी बहिन की शादी उसके साथ कर दूँगा .क्या ऐसा करना उचित होगा .रसूल ने कहा इसमे कोई बुराई नहीं है ,बल्कि इस से एक मुसलमान दूसरे मुसलमान से जुड़ जाता है .और मनमुटाव ख़त्म होता है.सहीह मुस्लिम -किताब 8 हदीस 3299 .
2 -कारोकारी . کاروکاریKaroKari
इज्जत के लिए ह्त्या Honour Killing .चूँकि इस्लाम में औरतों को परदे रखने का हुक्म है ,और यदि लड़कियाँ किसी लडके से बात भी करती हैं ,तो इसे बेशर्मी और गुनाह माना जाता है .और औरतों को घर में ही कैद रखा जाता है .इसका आधार यह हदीसें है .-
“अबू हुरैरा ने कहा कि रसूल ने कहा कि औरतें ,गधा ,और कुत्ते लोगों का ईमान बिगड़ देते हैं ,इसलिए इनको एक जगह बांध कर रखना जरूरी है .यह बाहर जाकर ख़राब हो जाते हैं “.सही मुस्लिम -किताब 4 हदीस 1034
“अब्दुला इब्ने अब्बास ने कहा कि ,रसूल ने कहा है कुत्ता ,गधा ,यहूदी ,पारसी (मजूसी )और लड़कियां इमानबिगड़ देते हैं ,इनको बाहर नहीं रहने देना चाहिए “.अबू दाऊद-किताब 2 हदीस 704
“सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने कहा है औरतें ,ऊंट और गुलाम सब एक जैसे हैं .इनको आजादी नहीं देना चाहिए .यह आजादी देने से काबू में नहीं आ सकते हैं “अबू दाऊद -किताब 4 हदीस 2155
अब यदि कोई लड़का या लड़की आपस में प्रेम करने लगते हैं ,या शादी करना चाहते हैं ,तो इसे बदचलनी और इस्लाम के विरुद्ध माना जाता है .और लोग उस परिवार का अपमान करते है .या समाज से निकाल देते है .दोनो परिवार अपनी बदनामी से बचने के लिए उस प्रेमी जोड़े कीहत्या कर देते है .दुःख की बात यह है कि यह हत्याएं उन बच्चों के बाप ,बड़े भाई ,या सम्बन्धी ही करते है .और इस बात को छुपा देते हैं .भारत में भी यह कुरीति आ गयी है .यहाँ सगोत्र ,या अन्य जाती में शादी करने पर हत्या कर दी जाती है .लेकिन मुसलमानों में गोत्र का या जाती का सवाल ही नहीं है .वहां केवल इन हदीसों के कारण ही हत्या करते हैं .सन 2004 में सिंध में 2700 और पंजाब में 2005 में 1300 लड़कों और 3451 लड़कियों की हत्या कर दी गई थी .इस का सारा पाप मुहमद पर पड़ेगा .
यहाँ भी इस कुरीति का विरोध होना चाहिए .यह महा पाप है .
3 -पेटलिखी .پیٹ لکهی Pait Likkhi .
इसका अर्थ है कि बच्चों के जन्म से पूर्व ही उनकी शादी तय कर देना .Arrangin Marriages in the Womb .अक्सर कई मुस्लिम परिवार एक साथ रहते हैं .और एक ही मकान में रहते है .मुसलमानों में चचेरे ,ममेरे भाइयों और बहिनों में शादी हो जाती है .जब किन्हीं भाइयों की औरतें एक ही समय गर्भवती हो जाती है ,तो घर के बुजुर्ग बच्चों के पेट में होते ही आपस में तय कर लेते है की ,अगर अमुक के घर लड़का होगा ,और अमुक के घर लड़की होगी तो ,उनकी आपस में शादियाँ करा देंगे .यह बात काजी के सामने लिखी जाती है .और दौनों तरफ के लोगों के सही कराये जाते है .बाद में यदि कोई इस बात से मुतारता है ,तो उस पर जिरगा जुरमाना लगा देती है .चूंकि यह अनुबंध पेट के बच्चों के लिए होता है ,उस पर बाल विवाह का कानून नहीं लगता ..इसका अधार यह आयतें और हदीसें है -
“अल्लाह माता के पेट में ही जोड़े बना देता है “सूरा-अज जुमुर 39 :4 -6
“हमने हरेक के शकुन अपशकुन को गले में बांध दिया है “सूरा -बनी इस्राएल 17 :13
“गर्भ में क्या है अल्लाह यह जानता है ,”सूरा -हूद 11 :5 .
4 -अड्डोवद्ड़ो. اڈّووڈّو Addo Vaddo
जिन परिवारों में किसी न किसी बात पर विवाद या झगड़े चलते रहते हैं ,वे आपसी झगडा निपटने के लिए एक दुसरे के बच्चों की शादी करा देते हैं .यह एक प्रकार का Child Marriage है .यह रिवाज सिंध पंजाब और बलूचिस्तान में प्रचलित है.इसका आधार यह हदीस है -
“आयशा ने कहा कि जब मैं 6 साल कि थी ,मेरे माँ बाप में मेरी शादी रसूल के साथ कर दी थी और जब मैं 9 साल की हुई तो रसूल ने मेरे साथ सम्भोग किया था “बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 64
इसी हदीस की आड़ लेकर 21 मई 2010 को एक 25 साल के युवक ने एक 6 साल की बच्ची से शादी की थी .और शरई कानून ने उसे जायज बताया था .आज भी पाकिस्तान में छोटी छोटी बच्चियों की शादियाँ होती है ,जिस से कई बच्चियां मर जाती है ,
5 -विन्नी . وِنّی Vinni
यह पश्तो शब्द है . वैसे तो इसका अर्थ है क्षतिपूर्ति या बदला है ,लेकिन किसी की शारीरिक हनी ,या हत्या के बदले में अपराधी से औरतें ली जाती है “Women as Compesation “यह प्रथा सीमांत प्रान्त ,बलूचिस्तान ,और स्वात में अधिक है .इसे उर्दू में दिय्यत دِیَّت Diyyat कहा जाता है .इसके बारे में कुरानऔर हदीसों में यह लिखा है-
“यदि कोई ईमान वाला भूल से या जानबूझकर किसी ईमान वाले ला वध कर दे ,तो मारे गए व्यक्ति के परिवार को एक आदमी सौंपना होगा .और खून के बदले धन भी देना होगा “सूरा -अन निसा 4 :92
“एक पुरुष के बराबर दो स्त्रियाँ होंगीं “सूरा-निसा -4 :11
“यदि मारा गया व्यक्ति पागल हो तो उसकी दिय्यत आधी होगी .और मारी गयी औरत की दिय्यत मर्दों की कीमत से आधी होगी .यानि एक मर्द की हत्या के बदले दो औरतें देना होंगी .और औरत की आयु अगर सात साल से कम हो तो दो छोटी बच्चियों से काम चलाओ .”
बुखारी -जिल्द ५ किताब 59 हदीस 709 .और बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 64
(नोट -इस के मुताबिक एक मर्द के हया के बदले दो औरतें ,या 7 साल से कमकी चार बच्चियां देना होंगी )
फिर जो औरतें या बच्चियांबदले में ली जाती हैं ,उनसे मृतक के परिवार के लोग गुलामी करते हैं .और सब मिल कर बलात्कार भी करते हैं .कई जगह जमीदारों ने अपने निजी जेल भी बना रखे है
.6 -सवरा. سوَرا Swara
इसका अर्थ है शारीरिक क्षति की भरपाई BloodFeud .यदि कोई किसी व्यक्ति के शरीर स्थायी को नुकसान करता है तो ,उसले बदले जो लिया जाता है उसे सवरा कहा जाता है .यह रिवाज भी कई स्थानों में है .कुरान में लिखा है-
“हे ईमान वालो ,बदला लेने में बराबरी होना जरूरी ठहरा दिया गया है ,आजाद का बदला आजाद ,गुलाम का बदला गुलाम ,स्त्री का बदला स्त्री .फिर यदि स्त्री के भाई की तरफ से कोई दिया जाये तो उसे उत्तम रीति से निपटा देना चाहिए .बदला लेना ही बुद्धिमानों का जीवन है “
सूरा -बकरा 2 :178 और 179
“हमने तुम्हें हुक्म दिया है कि जान के बदले जान ,आँख के बदले आंख ,कण के बदले कान ,नाक के बदले नाक ,दांत के बदले दांत और हरेक घाव के बदले घाव है “
सूरा -मायादा 5 :45 .
इन आयातों के अनुसार यदि कोई बदले में बहुत अधिक धन नहीं दे पाताहै तो ,लोग दिय्यत में उसकी लड़की या बहिन को लेने के हकदार होते हैं ,या जिरगा जबरदस्ती शादी करा देती है .आज भी पाकितान की अदालतों में ऐसे हजारों मामले पड़े हैं .क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी ऐसे मामले उठती रहती है .लेकिन शरियत के आगे कुछ नहीं कर पाती है.
7 -वुलवार.وُلوار Vulvar
महिला खतना Female Genital Mutilation ,इसके बारे में पिछले लेखों में विस्तार से दिया गया है .इसमे चार से पांच साल की बच्चियों की योनी की भगनासा (Clitoris )और उसके आसपास के भगोष्ठ को छील दिया जाता है .कई बार इस से बच्चियों की मौत भी हो जाती है .
सब जानते हैं कि मुसलमान हफ़्तों तक नहीं नहाते .वह इसे रसूल कि सुन्नत मानते हैं .मुसलमान नहाने से बचने के लिए बच्चियों कि खतना करा देते हैं .हदीस में कहा है कि
“यदि कोई खतना वाले पुरुष का अंग (लिंग )किसी बिना खतना वाली स्त्री के अंग (योनी )में प्रवेश करता है ,तो उस पुरुष को गुस्ल(स्नान )करना जरुरी है “सही मुस्लिम -किताब 3 हदीस 684 .
इसलिए मुसलमान बार बार नहाने से बचने के लिए लड़कियों कि खतना करा देते है .फिर मुहम्मद ने भी कहा था कि -
“उम्मे आत्तिय्या अन्सारिया ने कहा कि ,मदीना में एक औरत एक बच्ची की खतना कर रही थी .रसूल वहां गए और उस औरत से कहा कि इस बच्ची कि योनी को इतनी गहरायी से मत छीलना जिस से योनी कुरूप हो जाये ,और इस बच्ची के पति को पसंद न आये “
सहीह मुस्लिम -किताब 41 हदीस 3251
8 -औरतोंकी गवाही
अल्लाह और मुहमद औरतों को आधा प्राणी (Half Human )मानते थे .मुहम्मद की कई कई औरतें थी .और अल्लाह कुंवारा है .इसलिए यह औरतोंकी कद्र नहीं करते .इस्लामी कानून में औरतों की आधी कीमत है -
“औरतों की दिय्या(मौत की कीमत )मर्दों से आधी होगी” .सूरा -निसा 4 :92
“एक मर्द गवाह के विरुद्ध प्रमाण देने के लिए दो औरतों की गवाही लाना पड़ेगा .यदि दस मर्द हों तो उनके विरुद्ध साक्ष्य देने के लिए 21 औरतों की गवाही जरूरी है “बुखारी -जिल्द 1 किताब 6 हदीस 301
“दो औरतों की गवाही एक मर्द के बराबर मानी जायेगी “सूरा -बकरा 2 :282
यही कारण है कि अरब ,ईरान या पाकिस्तान में यदि किसी औरत पर बलात्कार होता है ,तो वह पूरे गवाह पेश नहीं कर पाती है .फिर शरई अदालतें उन पर व्यभिचार का आरोप लगा कर पत्थर मार कर मौत की सजा दे देती हैं ऐसे कई मामले अक्सर आते रहते हैं .
तात्पर्य यह है इस्लाम कुरान ,और मुहम्मद केवल गैर मुस्लिमों के लिए अभिशाप नहीं है ,बल्कि खुद मुस्लिम औरतो के लिए लानत है .इस्लामी कानून मुस्लिम औरतो की आजादी लिए बाधक है .और कुरआन और हदीसें सारी कुरीतियों की जननी हैं .
छोड़ दो ऐसा जंगली इस्लाम ,और फेक दो बेतुकी कुरआन और हदीसें !
Image may contain: 6 people, including मंथन आर्यन, beard and text

बुधवार, अप्रैल 08, 2020

उल्टा पुल्टा तबलीगी मूसलिमि जमात का इतिहास

तब्लीग़ी जमात के बारे में टी.वी. पर धुँआधार बहसें होते, काँय काँय मचते एक सप्ताह हो गया मगर यह मूल विषय कि "सरकार के आदेशों की लॉक डाउन और कर्फ़्यू के बाद भी बड़े समूह ने अवहेलना क्यों की" छोड़ कर सारी दुनिया की बातें हो लीं। दिल्ली के निजामुद्दीन में स्थित मरकज़ में जाने कहाँ कहाँ से हज़ारों इस्लामी इकट्ठे हुए और देश के विभिन्न हिस्सों में क फैल गए। यह भारत में ही नहीं हुआ बल्कि पाकिस्तान, बंग्लादेश, मलेशिया आदि अनेक देशों में हुआ, हो रहा है। आइये इसके कारण की छान फटक करते हैं।
तब्लीग़ी जमात का जन्म आर्य समाज की शुद्धियों को रोकने के लिये हुआ था। आर्य समाज ने हज़ारों ऐसे मुसलमानों को शुद्ध कर वैदिक आर्य बनाया जो किसी काल में भ्रष्ट हो कर इस्लामी हो गए थे। इनमें बहुतेरे ऐसे थे जिनके रीत-व्यवहार हिन्दुओं के से थे। आर्य समाज के प्रताप को देख कर इस्लामी शुद्धता के केंद्र देवबंद के इलाक़े के ही एक मुल्ला मुहम्मद इलियास कांधलवी ने तब्लीग़ी जमात को शुरू किया। तब्लीग़ी जमात से हिसाब से मुसलमान ठीक रस्ते पर नहीं चल रहे और उन्हें अस्ली इस्लाम को अपनाना चाहिए अतः अब जानना ज़रूरी है कि अस्ली इस्लाम क्या है ?
इस्लाम के दो आधार क़ुरआन और हदीस हैं और दोनों का केंद्र मुहम्मद है। इस्लाम के अनुसार क़ुरआन में वही या अल्लाह की भेजी हुई आयतें हैं और हदीस में अल्लाह के पैग़ंबर का कहा हुआ, जिया हुआ जीवन है। हदीस को वही ग़ैर मतलू यानी बिना पढ़ी गयी वही और हदीस को क़ुरआन मुतवातिर कहा जाता है। ग़ैर मुस्लिम हदीसों से बहुत परिचित नहीं हैं मगर मुसलमानों के जीवन व्यवहार हदीस से ही निर्देशित होते हैं। हदीसों में मुसलमानों के खाने-पीने, मल-मूत्र त्यागने, स्नान करने, सैक्स करने, औरतों-गुलामों-लौंडियों के साथ व्यवहार, कपड़े पहनने-उतारने, जिहाद, जिहाद में ग़ैर-मुस्लिमों से लूटे गए माल {औरतों, बच्चों सहित } के बँटवारे, शिकार, श्रृंगार, शायरों, कुत्तों, छिपकलियों, गिरगिटों, चीटियों, क़यामत अर्थात दुनिया जहान के बारे में मुहम्मद के फ़ैसले, घोषणायें हैं। यह सारे फ़ैसले प्रत्येक मुसलमान को अपने जीवन में उतारने अनिवार्य हैं। इसी का नाम इस्लाम है।
प्रत्येक मुसलमान से अपेक्षा होती है कि वो इन घोषणाओं, फैसलों पर कोई सवाल उठाये बिना इन्हें अपने जीवन में उतारे यानी मुहम्मद का शब्दशः अनुसरण करे। इस्लाम में बुद्धि, जिज्ञासा, शंका का कोई स्थान नहीं है या कहें कि वो तीसरे स्थान पर आती है। बुद्धि, जिज्ञासा, शंका सदैव क़ुरआन और हदीस के संदर्भ में ही कार्य कर सकती हैं। मुहम्मद का जीवन प्रत्येक दृष्टि से इतना पाक और अनुकरणीय बताया जाता है कि उस पर सवाल उठाना किसी इस्लामी देश में क्या भारत, फ़्रांस, ब्रिटेन में भी मृत्यु को आमंत्रण देना हो सकता है। स्वयं क़ुरआन में सूरा अल अहज़ाब में 36वीं आयत घोषणा करती है "और न किसी ईमान वाले पुरुष को और न किसी ईमान वाली स्त्री को यह हक़ है कि जब अल्लाह और उसका रसूल किसी बात का फ़ैसला कर दें तो उन्हें अपने मामले में कोई अधिकार रहे और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करे तो वह खुला गुमराही में पड़ गया"
इस्लामियों के लिये मुहम्मद का जीवन अल्लाह के वचनों की साक्षात् अभिव्यक्ति है। इस्लाम में दीन और दौला अंतर्गुम्फित हैं। यह राजनैतिक और सामरिक व्यवहार है। शासन तंत्र से इसका गहन संबंध है। हदीसों का संकलन मुहम्मद इस्माईल अल बुख़ारी, मुस्लिम इब्नुल हज्जाज़, अबू ईसा मुहम्मद अत तिरमिज़ी, अबू दाऊद अस-सज़िस्तानी आदि ने किया। इनमें बुख़ारी और मुस्लिम सर्वाधिक प्रतिष्ठित और मान्य हैं। हदीस और क़ुरआन के प्रकाश में ही इस्लामियों के फ़ैसले लिये जाते हैं या लिये जाने चाहिये।
आपको इमराना कांड स्मरण होगा। छह जून 2005 को हुई यह घटना में मुज़फ़्फ़रनगर की इमराना ने आरोप लगाया था कि उसके ससुर ने उस के साथ बलात्कार किया है। न्याय की दृष्टि से अक़्ल को बिल्कुल ताक़ पर रखते हुए मौलवियों ने फ़तवा दिया था कि बलात्कार के बाद इमराना को अपने पति को अपना बेटा मानना होगा क्योंकि उसका निकाह ख़ारिज हो चुका है। सारे हाहाकार के बाद भी यह बात चर्चा में नहीं आयी कि इस फ़तवे का आधार क़ुरआन और हदीस ही थीं। अल्लाह के पैग़ंबर ने स्वयं अपने गोद लिये बेटे ज़ैद की बीबी ज़ैनब से निकाह किया था। इसकी छूट स्वयं अल्लाह ने अपने पैग़ंबर को क़ुरआनी आयत भेज कर दी। इस प्रकार किसी इस्लामी ससुर के लिये अपने बेटे की बीबी यानी अपनी बहू से निकाह जायज़ है।
एयर इंडिया हैदराबाद की घटना भी यही है। इममें एक 60-62 साल का शेख़ एक 9 साल की बच्ची के साथ प्लेन में बैठा था। बच्ची रो रही थी। एयर होस्टेस ने लड़की से बात करनी चाही तो शेख़ ने हस्तक्षेप किया और बताया कि ये मेरी बीबी है। एयर होस्टेस ने पुलिस बुला ली और शेख़ को पकड़वा दिया। 30-35 साल पुरानी इस घटना पर बहुत हंगामा मचा मगर यह बात छुपा ली गयी थी कि कुछ दिन बाद वो शेख़ अपनी बच्ची-बेगम को ले कर अरब चला गया। यह भी इसी लिये सम्भव हुआ कि हदीसों के अनुसार स्वयं अल्लाह के पैग़ंबर ने 51 बरस की आयु में 6 बरस की आयशा से निकाह किया था और 3 वर्ष बाद जब आयशा 9 बरस की हुईं और स्वयं 54 बरस के हुए तो शारीरिक संबंध स्थापित किये।
Narrated Hisham's father:
Khadija died three years before the Prophet departed to Medina. He stayed there for two years or so and then he married 'Aisha when she was a girl of six years of age, and he consummated that marriage when she was nine years old. (Sahih Al-Bukhari, Volume 5, Book 58, Number 236)
Narrated 'Aisha:
that the Prophet married her when she was six years old and he consummated his marriage when she was nine years old, and then she remained with him for nine years (i.e., till his death). (Sahih Al-Bukhari, Volume 7, Book 62, Number 64; see also Numbers 65 and 88)
Aisha said: The Apostle of Allah (may peace be upon him) married me when I was seven years old. The narrator Sulaiman said: Or six years. He had intercourse with me when I was nine years old. (Sunan Abu Dawud, Number 2116)
शंकाओं, प्रश्नों को रोकने के लिये तलवार का भय दिखाया जाता है। आतंक फैलाया जाता है। 1981 में एक तक़रीर में इमाम ख़ुमैनी ने कहा था "मेहराब {मस्जिद} का मतलब है जंग की जगह। मेहराबों से जंग आगे बढ़नी चाहिये। जैसा कि इस्लाम की सभी जंगों की कार्यवाही मेहराबों से शुरू हुई। रसूल के पास दुश्मनों को मरने के लिये तलवार थी.हमारे पवित्र इमाम लड़ाका रहे हैं। वे सब फ़ौजी थे। वो लोगों की हत्याएं करते थे। हमें एक ख़लीफ़ा की ज़रूरत जो हाथों को काट सके, सिर धड़ से उड़ा सके और पत्थर मार मार कर लोगों की हत्या का हुक्म दे सके"
चौदह सौ वर्ष पुराने दीन इस्लाम की कल्पना इस रूप में हुई थी कि संसार को मसलमान बना लिया जायेगा। वो अब तक नहीं बना मगर अरब में तेल की खोज के बाद यह मिशन पुनर्जीवित हो उठा है। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, इंडोनेशिया आदि सभी जगहों के मुसलमानों को कट्टर मुसलमान बनाने, बचे हुए काफ़िरों को मुसलमान बनाने अर्थात ईमान की दावत देने का कार्य ज़ोर शोर से चला रहा है। तब्लीग़ी जमात यही कर रही है।
इस्लाम स्वभाव से ही कठमुल्लावादी बल्कि उद्धत, आक्रामक कठमुल्लावादी प्रकृति का है। अल्लाह के पैग़ंबर मुहम्मद का अंतिम ख़ुत्बा है कि " आज से तुम्हारा दीन मुकम्मल हो गया" यानी मनुष्य के आचार-विचार सदैव के लिये क़ुरआन और हदीस की दृष्टि से तय कर दिए गए। उसमें कोई परिवर्तन अब नहीं हो सकता। तब्लीग़ी जमात, देवबंदी मदरसे ही हैं जो भारत, बांग्लादेश, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, फ़्रांस, इंग्लैण्ड, जर्मनी, बेल्जियम आदि विभिन्न देशों में जनसांख्यकीय परिवर्तन कर रहे हैं, जिन्होंने ग़ैर मुस्लिम देशों के नेतृत्व को इस्लामी दबाव में लिया है, जो दारुल हरब को दारुल इस्लाम बनाने के एजेंडे पर रात-दिन लगे हुए हैं।
इस्लाम किसी भी ग़ैरइस्लामी व्यवस्था, विश्वास, सत्ता को काफ़िर मानता है अतः ग़ैरइस्लामी व्यवस्था की आज्ञा का पालन करना, उसकी बात मानना कुफ़्र समझता है। फिर हाथ मिलाना, फूंकना, थूक आँखों पर लगाना, मुँह पर मलना, ज़बान चूसना तो अल्लाह के पैग़ंबर की परम्परा, व्यवहार है। इस्लाम की तब्लीग़ करने वाले अपने लोगों को मानसिक रूप से कुंद करते हैं और इसका सदियों का आज़माया हुआ तरीक़ा लगातार आदेशों का पालन कराना है। मुसलमानों से कुछ सामान्य व्यवहार की बातें देखिये।
फर्श पर बैठना खाना फ़र्श पर बैठ कर खाना, दायें हाथ से ही खाना, खाते समय चुप नहीं रहना, तीन उँगलियों से खाना खाने के बाद उँगलियाँ ज़रूर चाटना, दायें हाथ से पानी पीना, बायें हाथ से शैतान पानी पीता है, बैठ कर पानी पीना, हर घूँट को तीन साँस में पीना फिर बर्तन मुँह से हटाना, दाहिनी करवट सोना, दाहिनी हथेली दायें गाल के नीचे रख कर सोना, सोने से पहले सूरा इख़्लास सूरा फ़लक सूरा नास पढ़ना, इसके बाद तीन बाद बदन झटकना, कपड़ा पहनते समय दायें हिस्से से पहनना और उतारते समय बाएं हिस्से से उतारना, जूता पहनते समय पहले दाएं पैर का फिर बाएं पैर का जूता पहनना, शौचालय में जाते समय सर ढंका रखना, शौचालय में घुसते समय दुआ पढ़ना, शौचालय में पहले बाँया पैर रखना, शौचालय से बाहर आते समय पहले दाँया पैर निकालना, मस्जिद में जाते समय पहले दायाँ पैर निकालना और बाहर आते समय बाँया पैर रखना, नमाज़ से पहले पानी से तीन बार कुल्ला, चेहरे को तीन बार धोना, नाक के दोनों छेदों में तीन बार पानी डाल कर साफ़ करना, दाहिने हाथ की तीन बार कोहनी तक फिर बायें हाथ को तीन बार कोहनी तक साफ़ करना, भीगे हाथ से गले के चारों ओर साफ़ करना, भीगी हुई पहली ऊँगली से कान के भीतर और अंगूठे से बाहरी भाग की सफाई आदि आदि।
यह सूची बहुत लम्बी है। इन सब के पालन करने का दबाव इस्लामियों को हर समय आशंकित, चिंतित बनता है और वो हमेशा इस आशंका से ग्रसित रहते हैं कि कुछ ग़लती न हो जाये। यही कुंठाएं उनको सहज नहीं बनने देतीं। उन्हें हर समय जहन्नुम की आग का भी रहता है और वो इसकी भरपाई इस्लामियों की संख्या बढ़ाने पर जन्नत मिलने के आश्वासन, क़ुरआन कंठस्थ करने से जन्नत जाने का पुरस्कार से करते हैं। ऐसा नहीं है कि मुसलमान मदरसों के बालक प्रेमी वातावरण को नहीं जानते मगर तीन पीढ़ियों के लोगों के जन्नत जाने का मानसिक दबाव उन्हें अपने बच्चों को होम करने पर बाध्य करता है।
मानसिक रूप से इतने दास समूह से तभी कोई बुद्धिगम्य बात मनवाई जा सकती है जब इन कुढ़ब बातों को, कालबाह्य मानसिकता को तार्किक चुनौती दी जाये। यह कार्य आज से सौ वर्ष पहले इसी धरती पर हुआ था और ऋषि दयानंद सरस्वती जी द्वारा सत्यार्थ प्रकाश लिखी गयी थी। इस पुस्तक में ईसाईयत और इस्लाम का प्रखर खंडन है। इसका प्रचार साथ ही इस बात की महती आवश्यकता है कि इस अराष्ट्रीय समाज का नेतृत्व बदला जाये। जब तक यह नहीं होगा यह समूह राष्ट्र के पेट में बिना पचे पत्थर की तरह पड़ा रहेगा और रह रह कर पीड़ा देगा।
यह केवल पुलिस, प्रशासन की समस्या नहीं है बल्कि राष्ट्र को अराष्ट्रीय चिंतन द्वारा चुनौती है। इससे पूरी कठोरता से निबटना ही उपाय है
तुफ़ैल चतुर्वेदी