रविवार, फ़रवरी 26, 2012

नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत् २०६९, युगाब्द ५११४,शक संवत् १९९४ तदनुसार २३ मार्च

शंखनादी सुनील २३ मार्च को शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत की बरसी है.....इसी दिन इन तीनों महानायकों को फांसी दी गई थी और आज भी इस बलिदान की ना तो कोई उपमेयता है और ना ही इसे कोई विस्मृत कर पाया है

नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत् २०६९, युगाब्द ५११४,शक संवत् १९९४ तदनुसार २३ मार्च २०१२ , इस धरा की १९५५८८५११२वीं वर्षगांठ तथा इसी दिन सृष्टि का शुभारंभ हुआ...

नववर्ष की उषा काल की प्रतीक्षा

भारतवर्ष वह पावन भूमि है जिसने सम्पूर्ण भ्रह्माण्ड को अपने ज्ञान से आलोकित किया है, इसने जो ज्ञान का निदर्शन प्रस्तुत किया है, वह केवल भारतवर्ष में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण का ...पोषक है. यहाँ संस्कृति का प्रत्येक पहलू प्रकृति और विज्ञान का ऐसा विलक्षण उदाहरण है जो कहीं और नहीं मिलता. नए वर्ष का आरम्भ अर्थात भारतीय परंपरा के अनुसार 'वर्ष प्रतिपदा' भी एक ऐसा ही विलक्षण उदाहरण है...

भारतीय कालगणना के अनुसार इस पृथ्वी के सम्पूर्ण इतिहास की कुंजी मन्वंतर विज्ञान में है. इस ग्रह के सम्पूर्ण इतिहास को 14 भागों अर्थात मन्वन्तरों में बांटा गया है. एक मन्वंतर की आयु 30 करोड 67 लाख और 20 हजार वर्ष होती है. इस पृथ्वी का सम्पूर्ण इतिहास 4 अरब 32 करोंड वर्ष का है. इसके 6 मन्वंतर बीत चुके हैं. और 7 वां वैवश्वत मन्वंतर चल रहा है. हमारी वर्त्तमान नवीन सृष्टि 12 करोण 5 लाख 33 हजार 1 सौ चार वर्ष की है. ऐसा युगों की कालगणना बताती है. पृथ्वी पर जैव विकास का सम्पूर्ण काल 4 ,32 ,00 ,00 .00 वर्ष है. इसमे बीते 1 अरब 97 करोड 29 लाख 49 हजार 1 सौ 11 वर्ष के दीर्घ काल में 6 मन्वंतर प्रलय, 447 महायुगी खंड प्रलय तथा 1341 लघु युग प्रलय हो चुके हैं...

पृथ्वी और सूर्य की आयु की अगर हम भारतीय कालगणना देखें तो पृथ्वी की शेष आयु 4 अरब 50 करोड 70 लाख 50 हजार 9 सौ वर्ष है तथा पृथ्वी की सम्पूर्ण आयु 8 अरब 64 करोण वर्ष है. सूर्य की शेष आयु 6 अरब 66 करोण 70 लाख 50 हजार 9 सौ वर्ष तथा इसकी सम्पूर्ण आयु 12 अरब 96 करोड वर्ष है...

नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत् २०६९, युगाब्द ५११४,शक संवत् १९९४ तदनुसार २३ मार्च २०१२ , इस धरा की १९५५८८५११२वीं वर्षगांठ तथा इसी दिन सृष्टि का शुभारंभ हुआ...

१. भगवान राम का राज्याभिषेक, २. युधिष्ठिर संवत की शुरुवात, ३. विक्रमादित्य का दिग्विजय, ४. वासंतिक नवरात्र प्रारंभ, ५. शिवाजी की राज्य स्थापना, ६. डॉ. केशव हेडगेवार का जन्मदिन

चैत्रा ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित व पुष्पित होती हैं। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चन्द्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन के मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चन्द्रमा ही प्रदान करता है। इसीलिए इस दिन को नए साल का आरम्भ माना जाता है।

नववर्ष का प्रारंभ चैत्रा शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रामास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की। यह भारतीयों की मान्यता है, इसीलिए हम चैत्रा शुक्ल प्रतिपदा सेनए साल का आरम्भ मानते हैं।

ब्रह्मा द्वार सृष्टि का सृजन, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक, मां दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारंभ, युगाब्द या युधिष्ठिर संवत्द्ध का आरम्भ, उज्जयिनी सम्राट-विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत का प्रारंभ, शालिवाहन शक संवत् (भारत सरकार का राष्ट्रीय पंचांगद्ध) महषि दयानन्द द्वारा आर्य समाज की स्थापना, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगवार का जन्म दिन।

चैत्रा मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या नववर्ष या उगादि (युगादिद्ध कहा जाता हैं, इस दिन हिन्दू नववर्ष का आरम्भ होता है। `गुड़ी´ का अर्थ `विजय पताका´ होती है। कहा जाता है कि शालिवाहन नामक एक कुम्हार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस पर पानी छिड़कर उनमें प्राण फूंक दिए और इस सेना की मदद से शक्तिशाली शत्रुओं को पराजित किया। इसी विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ हुआ। `युग´ और `आदि´ शब्दों की सन्धि से बना है `युगादि´। आन्धरप्रदेश और कर्नाटक में `उगादि´ और महाराष्ट्र में यह पर्व `गुड़ी पड़वा´ के रूप में मनाया जाता है। कश्मीरी हिन्दुओं के लिए नववर्ष यानी नवरेह एक महत्वपूर्ण उत्सव है। बंगाल में नव वर्ष, पंजाब में बैसाखी आदि त्योहार भी इसी के आस-पास मनाये जाते हैं।कई मान्यताएं हैं इस दिन की कहा जाता है कि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निमार्ण किया था। इसमें मुख्यतया ब्रह्माजी और उनके द्वारा निर्मित सृष्टि के प्रमुख देवी-देवताओ, यक्ष-राक्षस, गंध्वारें, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियां और कीट पतंगो का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है। आन्धरप्रदेश प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट में सारे घरों को आम के पेड़ की पत्तियों के बन्दनवार से सजाया जाता है। सुखद जीवन की अभिलाषा के साथ-साथ यह बन्दनवार समृधि व अच्छी फसल के भी परिचायक हैं। `उगादि´ के दिन ही पंचांग तैयार होता है। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए पंचांग की रचना की। चैत्रा मास की शुक्ल प्रतिपदा को महाराष्ट में गुड़ीपडवा कहा जाता है। वर्ष के साढे तीन मुहूर्तों में गुड़ीपड़वा की गिनती होती है। शालिवाहन शक का प्रारंभ इसी दिन से होता है।कई लोगों की मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई। बाली के त्राास से मुक्त हुई प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज फहराए जाते है। आज भी घर के आंगन में गुड़ी खड़ी करने की प्रथा महाराष्ट्र में प्रचलित है। इसीलिए इस दिन को `गुड़ीपड़वा´ नाम दिया गया।रोगोपचार का भी दिनइस अवसर पर आन्धरप्रदेश प्रदेश में घरों में पच्चड़ी/प्रसादम तीर्थ के रूप में बांटा जाता है। कहा जाता है कि इसका निराहार सेवन करने से मानव निरोगी बना रहता है। चर्म रोग भी दूर होता है। इस पेय में मिली वस्तुएं स्वादिष्ट होने के साथ-साथ आरोग्यप्रद होती हैं। महाराष्ट्र में पूरन पाली या मीठी रोटी बनाई जाती है। इसमें जो चीजें मिलाई जाती हैं वे हैं- गुड़, नमक, नीम के पफूल, इमली और कच्च आम। गुड़ मिठास के लिए, नीम के पफूल कड़वाहट मिटाने के लिए और इमली व आम जीवन के खट्टे-मीठे स्वाद चखने का प्रतीक होती हैं। यूं तो आजकल आम बाजार में मौसम से पहले ही आ जाता है। किन्तु आन्धरप्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में इसी दिन से खाया जाता है। नौ दिन तक मनाया जाने वाला यह त्योहार दुर्गा पूजा के साथ-साथ, रामनवमी को भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव भी मनाया जाता हैं।दो ऋतुओं का सन्धिकालआज भी हमारे देश में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्रा शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं। यह समय दो ऋतुओं का सन्धिकाल है। इसमें रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। प्रकृति नया रूप ले लेती है। प्रतीत होता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए उफर्जस्वित होती है। मानव, पशु-पक्षी, यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है। बसन्तोत्सव का भी यही आधर है। इसी समय बपर्फ पिघलने लगती है। आमों पर बौर आने लगता है। प्रकृति की हरीतिमा नवजीवन का प्रतीक बनकर हमारे जीवन से जुड़ जाती है। काल गणना के प्रारंभ एवं ऐतिहासिक यादों का दिनइसी प्रतिपदा के दिन आज से 2067 वर्ष पूर्व उज्जयिनी नरेश महाराज विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रान्त शकों से भारत-भू का रक्षण किया और इसी दिन से काल गणना प्रारंभ की। उपकृत राष्ट्र ने भी उन्हीं महाराज के नाम से विक्रमी संवत कह कर पुकारा। महाराज विक्रमादित्य ने आज से 2067 वर्ष पूर्व राष्ट्र को सुसंगठित कर शकों की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की। साथ ही यवन, हूण, तुषार, पारसिक तथा कंबोज देशों पर अपनी विजय ध्वजा पफहराई। उसी के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई जाती थी और यह क्रम पृथ्वीराज चौहान के समय तक चला। महाराजा विक्रमादित्य ने भारत की ही नहीं, अपितु समस्त विश्व की सृष्टि की। सबसे प्राचीन कालगणना के आधर पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रमी संवत के रूप में अभिषिक्त किया। इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचन्द्र के राज्याभिषेक अथवा रोहण के रूप में मनाया गया। यह दिन ही वास्तव में असत्य पर सत्य की विजय दिलाने वाला है। इसी दिन महाराज युधिष्ठिर का भी राज्याभिषेक हुआ और महाराजा विक्रमादित्य ने भी शकों पर विजय के उत्सव के रूप में मनाया। आज यह दिन हमारे सामाजिक और धर्मिक कार्यों के अनुष्ठान की ध्ुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है। यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक ध्रोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है। हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं, फिर अश्विन मास की नवरात्रि में शेष छह मास के लिए शक्ति संचय करते हैं।हिन्दू कैलेण्डर निर्धारण का दिनक्या हमने कभी सोचा है कि बैसाखी हर साल 13 अप्रैल को ही क्यों मनायी जाती है। जबकि बाकी सब पर्व होली, दीपावली बदलते रहते हैं। दरअसल, हिन्दू कैलेण्डर लूनर और सोलर आधरित होता है। लूनर कैलेण्डर कुछ इस प्रकार से चलता है चन्द्रमा के पृथ्वी के चारों ओर एक चक्कर लगाने को एक माह माना जाता है, जबकि यह 29 दिन का होता है। हर मास को दो भागों में बांटा जाता है- कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष। कृष्णपक्ष, जिस में चान्द घटता है और शुक्लपक्ष जिस में चान्द बढ़ता है। दोनों पक्ष प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी आदि ऐसे ही चलते हैं लगभग पन्द्रह दिन तक। कृष्णपक्ष के अन्तिम दिन चन्द्रमा बिल्कुल नहीं दिखता यानी अमावस्या, जबकि शुक्लपक्ष के अन्तिम दिन पूरा चान्द होता यानी पूणिमा। आध चान्द अष्टमी को होता है। प्राय: पर्व अष्टमी, पूर्णिमा और अमावस्या को होते हैं, उदाहरणत: जन्माष्टमी, होली, दीपावली आदि। साल के बारह महीनों मे कोई दस दिन कम पड़ जाते हैं जो हर तीसरे साल एक पूरा महीना जोड़कर पूरा कर लिए जाते हैं। इस तरह से पर्व दस-बीस दिन आगे पीछे होते रहते हैं। इसके अतिरिक्त सोलर कैलेण्डर भी प्रयुक्त होता है, जिसमें हर मास के दिनों की संख्या निर्धारित होती है। हर मास के पहले दिन को `संक्रान्ति´ कहा जाता है। वैसाख का पहला दिन बैसाखी या नव वर्ष होता है। लूनर कैलेण्डर के चैत्रा शुक्लपक्ष शुदीद्ध का पहला दिन प्रतिपदाद्ध उगादी, वर्ष-प्रतिपदा, नवरेह आदि रूप में मनाया जाता है।

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