धर्म को जीना ही धर्म का वास्तविक प्रचार है।
हम अपना पतन स्वयं कर रहे हैं ?
हम क्यों नही शिखा धारण करते ?
क्या आज भी हमारे आसपास औरंगजेब घूम रहा है ?
शिखा धर्म का स्तम्भ है ... इसे धारण कीजिये 🙏
स्पष्ट रूप से कहूं तो मुझे इतिहास में ऐसा कोई प्रमाण नही प्राप्त होता जिससे यह सिद्ध होता हो कि 1947 के बाद की किसी भी सरकार ने "शिखा" रखने पर प्रतिबन्ध लगाया हो l
चोटी न रखने या चोटी काटने के लिए किसी ने प्रचार भी नहीं किया, किसी ने आपसे कहा भी नही, आपको आज्ञा भी नहीं दी, फिर भी आपने चोटी काट ली ! क्यों ?
परन्तु नेहरूवादी हिंदुत्व के इतिहासकारों और लेखकों ने सलीमशाही जूतियाँ चाट चाट कर जो कुछ लिखा है उसके बहुत ही नकारात्मक प्रभाव हिन्दू समाज पर पड़े हैं l
फिर भी हम शिखा क्यों नही धारण करते...?
जबकि आज विदेशी जो सनातन वैदिक धर्म को स्वीकार कर रहे हैं... वे सब शिखा धारण कर रहे हैं, एक ऐसा भी दिन आयेगा कि वो विदेशी आपको सनातन वैदिक हिन्दू धर्म का अनुयायी मानने से मना कर देगा ... और आपके पास कोई उत्तर नही रहेगा l
युवा और वृद्ध कोई नहीं बचा इस मायाजाल से ... आखिर ये कट्टरता होती क्या है ?
पहले ठुकता-पिटता है, फिर बदनाम होता है... और तिलक के स्थान पर माथे पे लिखवा लेता है हिन्दू ... साम्प्रदायिक l
क्यूंकि इस राजनैतिक षड्यंत्र का Counter करना तो दूर की बात है ... आम हिन्दू Reply तक नहीं कर सकता, अच्छे तरीके से l
शिखा (चोटी) रखना,
तिलक लगाना,
जनेऊ पहनना,
भगवा रंग का गमछा-अंगोछा लपेटना,
कलावा या अन्य रक्षा-सूत्र बांधना,
आदि उपरोक्त प्रतीकों को धारण करके जब कोई सरकारी कार्यालयों या विभागों में काम करने जाता था या काम करवाने जाता था, उन्हें यह जुमले मारे जाते थे... कि आप तो बहुत कट्टर दीखते हो ?
इतनी कट्टरता ठीक नही ...
धीरे धीरे हिन्दू समाज ने शिखा धारण करना ही छोड़ दिया...
जिन शिखाओं के लिए इसी हिन्दू समाज के पूर्वजों ने अपनी गर्दने करवाई थीं ...
न जाने आज कितने कट्टर औरंगजेब इन -"अ-कट्टर" हिन्दुओं के आसपास घूम रहे हैं ...
और कट्टर भी केवल हिन्दू ...
कट्टर मुसलमान नही...
कट्टर ईसाई नही...
कट्टर यहूदी नही,
कट्टर जैन नहीं,
कट्टर बोद्ध नही,
कट्टर सिक्ख नही,
... कट्टर SECULAR भी नही...
... कट्टर देशद्रोही भी नही...
कट्टर भ्रष्टाचारी भी नही...
कट्टर स्मैकिया भी नही.. .
कट्टर नशेड़ी भी नही ...
केवल हिन्दू ही कट्टर है पूरे विश्व में...
आइये जानने का प्रयास करते हैं कि आखिर ये कट्टर होता क्या है ...
कट्टर अर्थात... किसी भी काम में, रूप, रंग, आदि में "अति" या अतिवाद को कट्टरता कहा जाता है l
दार्शनिक शब्दों में कहा जाए तो कट्टरता तमस का ही एक पर्याय है...
जड़ और जड़ता... जो जहां है, वहीं रुक जाए l
ठहरे, जमे और रुके हुए पानी में भी कीड़े पड़ जाते हैं l
इसी कारण से... सनातन धर्म में ज्ञान का बहुत महत्व बताया गया है l
ज्ञान ... बढ़ता जाए, बढाते रहो, बहते रहो, जो कि सत्त्व का पर्याय माना जाता है l
इसीलिए हमारे यहाँ शब्द प्रयोग होता है "धर्म-परायणता".
चीन में भारत की अलग परिभाषा दी जाती है ...
भा+रत
भा अर्थात ज्ञान
रत अर्थात लीन रहना... ज्ञान में लीन रहना l
आप क्या बनना चाहते हैं... ?
कट्टर हिन्दू या धर्म-परायण हिन्दू...
वैसे... अतिवाद और अति की इस लहर से कोई नहीं बचा l
चाहे कट्टर डाक्टर हो... जहां जाओ बस डाक्टरी ही दिखाओ l
चाहे कट्टर इंजीनियर हो... जहां जाओ बस इंजिनीयरि ही दिखाओ l
चाहे कट्टर वैज्ञानिक हो... जहां जाओ बस विज्ञान ही विज्ञान ... बाकी सब पागल l
चाहे कट्टर दुकानदार हो... दुनिया पलट जाए... परन्तु दुकानदारी नहीं छोड़ेंगे l
चाहे कट्टर अफसर ... अफसरी के आगे बाकी सब नौकर l
चाहे कट्टर अध्यापक... जहां भी हो बस... शुरू हो जाओ l
कट्टर कांग्रेसी... यदि कांग्रेस किसी कुत्ते को खड़ा कर दे तो उसे भी वोट देंगे l
लुट गया देश, बर्बाद हो गया देश, भाड़ में गया देश ... गांधी-नेहरु परिवार ही महान है l
कट्टर सपाई... दूध का व्यापार चाहे मुल्ला मुलायम मुसलमानों को सौंप दें परन्तु वोट मुल्ल्ला को हो जायेगा l
कट्टर बसपाई... माया धन और बल से कबकी मनुवादी हो गई, परन्तु वोट माया को ही देंगे l
कट्टर वामपंथी... न घर चले, न दूकान, वामपंथ सदा महान, सारी जिन्दगी धर्म को अफीम कहते रहे, पर अंतिम संस्कार वैदिक मन्त्रों से ही, देह के साथ ही मर गई अफीम कहने वाली जुबान भी l
कट्टर अम्बेडकरवादी ... जब आँख खोली तो अम्बेडकर की कहानी ही सुनीं, वो जो अम्बेडकर ने न लिखी न कही, और लगे हिन्दुओं को गाली देने l पर अम्बेडकर ने क्या कहा, क्या लिखा... ये न कभी जाना, न ही जानने का प्रयास मात्र ही किया l
कट्टर पाकिस्तानी ... अपने देश का पता नही, पर भारत को नेस्तनाबूद करने के सपने रोज देखना l
कट्टर अरबी ... खजूर और तेल पूरी दुनिया में बिकता रहे, इस्लाम का प्रचार होता रहे, मुसलमान गया भाड़ में l
कट्टर और धर्म परायणता के इस खेल को ... हिन्दू ही कभी समझ न पाया जिसकी धार्मिक एवं सांस्कृतिक मूल शिक्षाओं में भी सत्त्व का विशेष महत्व है l
धर्म परायण बनो...
और इन कट्टर कांग्रेसियों, कट्टर सपाई, कट्टर बसपाई, कट्टर वामपंथियों आदि के चंगुल से बाहर निकलो...
और सोने की चिड़िया कैसे बनाया जाए, इस पर विचार मंथन करके अडिग होकर कार्य करो l
सात्विक, राजसिक और तामसिक ... इन तीन प्राकृतिक गुणों की विवेचना अधिक करूँगा तो समय बहुत लग जायेगा, और पढ़े बिना ही सब छोड़ देंगे,
काम की बात संभव है कि आप सबको समझ आ ही गई होगी l
कुछ लोग शिखा और चोटी को लेकर अत्यधिक कुतर्क करते हैं, गीता प्रेस गोरखपुर की हजारों पुस्तकों में सद्विचार लिखने वाले युगसंत स्वामी रामसुख दास जी महाराज ने कुछ इस प्रकार उन कुतर्कों का उत्तर दिया है ...
कुतर्क - चोटी रखने से क्या लाभ होगा ?
उत्तर - जो लाभ को देखता है, वह पारमार्थिक उन्नति कर ही नहीं सकता l
लाभ देखकर ही कोई कार्य करोगे तो फिर शास्त्र-वचन का, संत वचन का क्या आदर हुआ ?
उनकी क्या सम्मान हुआ ?
अपने लाभ के लिए, अपना मतलब सिद्ध करने के लिए तो पशु-पक्षी भी कार्य करते हैं l
यह मनुष्य-पना नही है l चोटी रखने में आपकी भलाई है - इसमें मेरे को रत्तीमात्र भी संदेह नही है l
वास्तव में हमे लाभ-हानि को न देखकर धर्म को देखना है l धर्मशास्त्र में आया है कि बिना शिखा के जो भी दान, यज्ञ, ताप, व्रत आदि शुभकर्म किये जाते हैं वे सब निष्फल हो जाते हैं l
सदोपवीतिना भाव्यं सदा बद्धशिखेन च l
विशिखो व्युपवीतश्च यत्करोति न तत्कृतम ll
शिखा अर्थात चोटी हिन्दुओं का प्रधान चिन्ह है l
हिन्दुओं में चोटी रखने की परम्परा प्राचीनकाल से चली आ रही है l
परन्तु अब अपने इसका त्याग कर दिया है - यह बड़े भारी नुकसान की बात है l
विचार करें, चोटी न रखने या चोटी काटने के लिए किसी ने प्रचार भी नहीं किया, किसी ने आपसे कहा भी नही, आपको आज्ञा भी नहीं दी, फिर भी आपने चोटी काट ली तो आप मानो कलियुग के अनुयायी बन गये ! यह कलियुग का प्रभाव है, क्योंकि उसे सबको नरकों में ले जाना है l
चोटी कट जाने से नरकों में जाना सुगम हो जायेगा l
इसलिए आपसे प्रार्थना है कि चोटी को साधारण समझकर इसकी उपेक्षा न करें, चोटी रखना मामूली दिखता है परन्तु वास्तव में यह तनिक भी मामूली कार्य नही है l
लेख के आरम्भ की पंक्तियाँ फिर लिख रहा हूँ... इन्हें सदैव स्मरण रखें l
हम अपना पतन स्वयं कर रहे हैं l
हम क्यों नही शिखा धारण करते ?
क्या आज भी हमारे आसपास औरंगजेब घूम रहा है ?
शिखा धर्म का स्तम्भ है ... इसे धारण कीजिये l
स्पष्ट रूप से कहूं तो मुझे इतिहास में ऐसा कोई प्रमाण नही प्राप्त होता जिससे यह सिद्ध होता हो कि 1947 के बाद की किसी भी सरकार ने "शिखा" रखने पर प्रतिबन्ध लगाया हो l
चोटी न रखने या चोटी काटने के लिए किसी ने प्रचार भी नहीं किया, किसी ने आपसे कहा भी नही, न ही आपसे आग्रह किया और न ही आपको आदेश ही दिया... फिर भी आपने चोटी काट ली ! क्यों ?
जय हिन्दू राष्ट्र!
जय श्री राम कृष्ण परशुराम जी
लेख - लवी भाई जी की फेसबुक वाल से सभार आप सभी के लिए प्रेरणादायी लेख, बहुत मार्मिक विश्लेषण किया है लवी भाई जी ने अभिनंदन 🙏