शनिवार, नवंबर 23, 2019

गाजी मियां - पीर या कातिल ?

गाजी मियां - पीर या कातिल ?
प्रसन्नता की बात है कि सभी मुसलमान पीर फकीरों की पोल प्रामाणिक हवालों के साथ खुल गयी है । चाहे वो अजमेर का फकीर हो या निजामुद्दीन का औलिया सभी यहां विदेशी मुसलमान हमलावरों के साथ आये और हिंदुओं का कत्ल और धर्मांतरण कराने के जिम्मेदार थे । ऐसा ही एक हिंदुओं का कातिल गाजी मियां है जिसकी बहराइच में स्थित दरगाह में लाखों हिंदू जाते हैं। उनको यह भी नही पता कि इस्लाम में काफिरों के कातिल को गाजी नाम देकर सम्मानित किया जाता है । इस लेख में इसी कातिल की चर्चा की जायेगी ।
गाजी मियां की पहली लूट :
गाजी मियां का पूरा नाम सैयद सालार मसऊद गाजी था जो गजनी के कुख्यात बादशाह महमूद गजनवी का रिश्ते में भांजा लगता था। गजनवी ने अजमेर नगर गाजी मियां के बाप सैयद सालार साहू को दे दिया था जहां गाजी मियां का जन्म हूआ । एक बार गाजी मियां ने गजनी पहुंचकर अपने मामा को हिंदुस्तान पर हमला करने , हिंदुओं को लूटने और जबरदस्ती मुसलमान बनाने की पट्टी पढाई। फिर क्या था ! मामा भांजे ने अस्सी हजार तीन सौ तुर्कों की सेना लेकर धावा बोल दिया। गाजी मियां ने नगरकोट और मथुरा को लूटकर गुजरात में जबरदस्त ऊधम मचाया । अनेक मदिर , मठ लूटकर , हजारों हिंदुओं का कत्ल कर , हीरे जवाहरात लूटकर मामा के साथ वापस गजनी चला गया।
गाजी मियां की दूसरी लूट :
पहली लूट के कुछ दिनों बाद उसके मामा बादशाह महमूद गजनवी ने अपने वजीर के कहने पर कुछ वजहों के चलते अपने भांजे को देश निकाले की सजा दे दी। कहीं कोई ठिकाना ना देख यह भाग कर फिर हिंदुस्तान आ गया जिसे चढाई का नाम दे दिया गया।
हिंदुस्तान के धर्मांतरित मुसलमानों ने गाजी मियां का साथ दिया। अबकी बार इसने सिंध में अर्जुन और मुल्तान में सेठ अनंगपाल को लूटा। दिल्ली, मेरठ और कन्नौज में लूटमार मचाते, हिंदुओं का कत्ल और उन्हें तलवार के जोर से मुसलमान बनाते वह बाराबंकी पहुंचा। यहां के पवित्र हिंदू तीर्थ स्थल तथा नगर को लूटकर इसने यहां अपनी छावनी बनाई। यहां मुसलमानों की बड़ी सेना बनाकर इसने सैफुद्दीन को बहराइच, मीर हसन को महोबा, अजीजुद्दीन को गोपामऊ, अहमद मलिक को लखनऊ और मलिक फैज को बनारस जिहाद के तहत हिंदुओं का कत्ल , लूटमार, धर्मपरिवर्तन और उनकी औरतों का बलात्कार करने भेजा। यही कुरानिक जिहाद है। खानजादे , बंजारा,कुंजड़े, रंकी आदि जो पहले हिंदू थे मुसलमान हो गये पर आज भी हिंदुओं की तरह ही रहते हैं। समय की मांग है कि अब इन सबकी घर वापसी करवा लेनी चाहिये ।
राजा सुहेलदेव पासी व गाजी मियां का युध्द:
कड़ा मानिकपुर के वीर हिंदुओं ने गाजी मियां की सेना से कड़ा युध्द किया। कड़ा मानिकपुर का राजपरिवार अनेक हिंदुओं के साथ वीरगति को प्राप्त हुआ लेकिन बहराइच में लड़ाई होती रही। सैफुद्दीन की हार होते जानकर गाजी मियां बहराइच में आकर लड़ने लगा। लेकिन वीर हिंदुओं के सामने गाजी मियां की एक ना चली । उसकी हार पर हार होती रही और उसकी सेना के सिकंदर, बरहना, मातुल, रजब, हठीले, इब्राहीम आदि सभी सभी योध्दा मारे गये । गाजी मियां एक महुये के पेड़ के नीचे ठहर कर लड़ने लगा। तभी महाराज सुहेलदेव जी ने एक बाण ऐसा तानकर मारा कि गाजी मियां अपनी घोड़ी लल्ली से नीचे गिरकर कुटिला (टेढ़ी) नदी के किनारे महुये के पेड़ के नीचे गिरकर मर गया।
गाजी मियां की दरगाह :
गाजी मियां सन 1034 में मारा गया। इसके मारे जाने के 317 साल बाद सन 1351 में फिरोज तुगलक ने अपनी मां के कहने पर इसकी मजार बनवाई। मजे की बात यह है कि मारे जाने के बाद इसकी लाश का क्या हुआ किसी को आजतक कुछ नही पता । जहां तुगलक ने इसकी दरगाह बनवाई वहां हिंदुओं का पवित्र बालार्क तीर्थ था और एक पवित्र सूर्यकुंड भी जहां ज्येष्ठ मास में स्नान का प्रसिध्द मेला लगता था। जब तुगलक को खोज के बाद भी गाजी मियां की लाश या कब्र का कुछ पता न चला तो कुछ मुसलमानों के यह कहने पर कि इसकी लाश को सूर्यकुंड में फेंक दिया गया था उसने कुंड को पाटकर गाजी मियां की दरगाह बनवा दी जो आज भी वहां मौजूद है।
हिंदू कभी अपने पवित्र कुंड में, जहां वो श्रध्दा से स्नान करते हैं, अपने दुश्मन की लाश भी नहीं डाल सकते। लेकिन एक बहाना ढ़ूंढ लिया गया। इस कब्र में गाजी मियां की लाश है ही नही जो जांच में भी साबित हो जायेगी। कुंड में हिंदुओं का जो मेला लगता था उसे मुसलमानों ने गाजी मियां की पूजा के मेले का रंग दे दिया। बौध्दों के पुराने मंदिर का नाम बदलकर 'कदम रसूल' कर दिया, शंकर भगवान के त्रिशूल को मुसलमान गाजी मियां की 'सांग ' कहने लगे। हिंदुओं को इसपर गम्भीरता से विचार करना चाहिये कि हिंदू मेला और तीर्थस्थान को गाजी मियां की दरगाह और पूजा का रूप दे दिया गया है। अत: एक भी हिंदू वहाँ ना जाकर इसे वापस लेने का आंदोलन शुरू करे।
गाजी मियां से जुड़ी गप्पें :
1- जुहरा बीबी रुदौली, जिला बाराबंकी, के एक तेली की अंधी लड़की थी। इसके मां बाप ने अधी होने के कारण इसे गाजी मियां की कब्र पर चढ़ा दिया था। मरने के बाद जुहरा भी वहीं दरगाह में दफना दी गयी । कुछ दिनों बाद जुहरा के घर वाले हर साल मरी हुयी जुहरा का गाजी मियां से ब्याह करने लगे। अभी भी जुहरा की पलंग पीढ़ी (डोली) रुदौली से दरगाह आती है और दोनों मरे हुओं का ब्याह हर साल होता है।
2- भूत भगाने का धधा :
दरगाह के एक ओर बरहना पीर के डंडे तार में बांधे हुये हैं और इनसे भूत भगाये जाते हैं।भूत अधिकतर औरतों को ही लगते हैं जो यहां भारी तादाद में पहुंचती हैं। जबकि बीते हुये काल को भूत कहते हैं। भूत ना तो किसी को लगता है और नही कोई भगाता है। लेकिन हिंदू औरतें इस बहकावे में आ जाती हैं।
3- कोढ़ी अच्छा करने का नाबदान :
दरगाह संगमरमर की बनी है। गाजी मियां की कब्र बीचों बीच है और अगल बगल जुहरा और उसके भाइयों की कब्रें हैँ। मरी हुयी जुहरा और गाजी के ब्याह के दिन कब्र को स्नान कराया जाता है। मैला पानी मोरी (नाबदान) में जमा हो जाता है। मेले के दिनों अनेक कोढी इसी गंदे नाबदान में आकर पड़े रहते हैं। सूर्यकुंड में पहले एक गर्म पानी का स्त्रोत था जिसमें नियमित स्नान करने से कोढ़ आदि अनेक चर्म रोग ठीक हो जाया करते थे। यह नाबदान उसी गर्म पानी के स्त्रोत की नकल है। अब देखिये कैसे कोढ़ ठीक होता है ? इन्हीं कोढ़ियों के बीच में योजनाबध्द तरीके से अचानक कभी कभी स्वस्थ मुसलमान कोढी होने का नाटक कर कूद जाते हैं, जो काया पावा, काया पावा (कोढ़ अच्छा हो गया) कहकर उछलते,कूदते और चिल्लाते हैं। यह शोर मेले भर में फैलाया जाता है कि गाजी मियां ने कोढ़ी का कोढ़ अच्छा कर दिया। हिंदू फिर गाजी मियां को करामाती देवता समझने लगते हैं।
जबकि गाजी ना कोई देवता है और ना ही उसमें कोई करामात है। उसे मरे 900 साल से भी अधिक हो गये। उसकी कब्र का भी कुछ पता नहीं है। कहीं होगी तो एक भी हड्डी सलामत नहीं बची होगी। कब्र पर ऐसा नाटक मुजावर और डफाली ही करते हैं ताकि हिंदुओं से पैसा ऐंठा जाये और उन्हें मुसलमान भी बना लिया जाये। ऐसे ही गाजी मियां जैसे हिंदुओं के कातिल पीर , मदार आदि की पूजा के बहानें हर साल लाखों हिंदू मुसलमान बनाये जा रहे हैं।
4- मामा भांजे की लड़ाई :
डफाली मेले में कहते फिरते हैं कि यह मामा भांजे की लड़ाई, गाजी मियां लक्ष्मण के अवतार थे और गाय बचाने की लड़ाई में मारे गये थे। डफालियों की यह बात सरासर झूठी है। मामा भांजे की लड़ाई नहीं, महमूद गजनवी और गाजी मियां ही मामा भांजे लगते थे जिन्होंने हिंदुओं को मारा, सताया और कत्ल किया। गाजी मियां लक्ष्मण का अवतार नहीं बल्कि दरिंदा मुसलमान था। गाय बचाने की कौन कहे, उसने तो खूद गायों और हिंदुओं का कत्ल ए आम किया था। किसी भी हिंदू को डफाली, मुजाफर फकीर आदि के बहकावे में कभी नहीं आना चाहिये ।
डफालियों की करतूत :
डफाली बाल लगा हुआ एक झंडा लिये रहते हैं जिससे हिंदू लड़कों, औरतों और बीमारों को झाडते फूंकते और गाजी मियां की तारीफ के गाने गाते हैं। इस झंडे की हकीकत यह है कि जब गाजी मियां तलवार के जोर पर हिंदुओं को मुसलमान बनाता था तो उनकी चोटियां काटकर एक झंडा बना लेता था। डफाली गाजी मियां की यही नकल करते हैं और अपने झंडे के बालों को सुरा गाय की पूंछ बताते हैं। अब ये अपने झंडों को सुरा गाय की पूंछ ना कहें तो तो कहें क्या ? अगर हिंदुओं को मालूम हो जाये कि यह बाल उनके पुरखों की चोटियां या नकल है तो भला कौन हिंदू इन्हें अपने दरवाजे पर खड़ा होने देगा ?
डफाली हिंदुओं को समझाते फिरते हैं कि गाजी मियां औलाद देते हैं, उनको पूजने से लड़के नहीं मरते , बड़ी बरक्कत होती है। अब जब इस दरिंदे की पोल खूल ही चुकी है तो हर पढ़े लिखे हिंदू को चाहिये वह गांव देहात के हर गरीब भोले भाले हिंदु भाई बहनों को समझा दे कि यह सारी बातें झूठी हैं। गाजी उनके पुरखों का कातिल था और इसकी फर्जी दरगाह सूर्यकुंड पर बनी है। डफालियों से कोई पूछे अगर ऐसा है तो गाजी मियां और उसके साथी कैसे मर गये ? अभी भी रोज कितने ही मुसलमान बीमार होकर मरते हैं, डफाली इन मुसलमानों से पूजा क्यों नहीं करवाते ? क्या गाजी मियां की पूजा का असर हिंदुओं पर ही अधिक होता है जो सारे मुसलमान डफाली , फकीर, मुजावर सिर्फ हिंदुओं के पीछे ही लगे रहते हैं ? सच तो यह है कि गाजी मियां, शहीद मर्द, पीर मजार, मस्जिद की फूंक भीख मांगने आदि का बहाना कर ये धूर्त आजतक हिंदुओं को मुसलमान बनाये जा रहे
हिंदू जागने लगा है :
बहुत से हिंदुओं ने अब गाजी मियां , ताजिया, पीर, मजार आदि मुसलमानी कब्रों को पूजना छोड़ दी है। बाकी लोग भी धीमें धीमें समझ रहे हैं कि गाजी मियां हिंदुओं और गौ माता का हत्यारा था और उसकी पूजा उन्हें नहीं करनी चाहिये। यह देखकर डफालियों को परेशानी हो रही है और नित नये नये हथकंडों से हिंदुओं को बहका और डरा रहे हैं कि तुम्हारे पुरखे गाजी मियां को पूजते थे। अब अगर तुम उनको नहीं पूजोगे तो गाजी मियां नाखुश होकर तुम्हारे बाल बच्चों का बुरा हाल कर देंगे। समस्त हिंदुओं को समझ लेना चाहिये कि इन शातिर मुसलमान पीरों की कब्र में सड़ी गली हड्डियां किसी काम की नहीं हैं। ये खूद को सड़ने गलने से बचा नहीं पायीं तो हिंदुओं का क्या खाक करेंगी !
इसबात को समझाने के लिये बस एक उदाहरण काफी है। सुल्तानपुर के दलित हिन्दू सम्पती ने पिछले कई साल से गाजी मियां की पूजा बिल्कुल बंद कर दी है । अपने घर से गाजी मियां की चौकी भी खोदकर बाहर फेंक दी है। जब डफाली रवाना बजाते हुये उसके घर आये तो उसने फटकार कर कह दिया कि-
"जाओ, मैं नहीँ पूजता तुम्हारे गाजी मियां को। मुझे मालूम चल गया है कि गाजी मियां कौन था और उसने हिंदुओं के साथ क्या क्या अत्याचार किया है ।"
डफालियों ने सम्पती को बहुत डराया धमकाया और समझाया पर उसने एक ना सुनी। अब न वो गाजी मियां की पूजा करता है और ना ही किसी कब्र, ताजिया आदि पर चढ़ाई रेवड़ी, बताशा, शर्बत, मलीदा आदि ही खाता है। दस साल में उसके तीन लड़के हुये जो सब स्वस्थ और प्रसन्न हैं। गाजी मियां उसकी किसी भी संतान का एक बाल तक टेढ़ा नही कर पाया।
गाजी मियां की पूजा किसी भी हिंदू को भूलकर नहीं करनी चाहिये। परम पिता परमेश्वर को प्रेम से पूजो ओर धर्म कर्म से रहो तो फिर देखो , एक गाजी मियां की कौन कहे, बीस गाजी मियां और समस्त मुसलमान पीरों की कब्र में सड़ी गली हड्डियां मिलकर भी किसी हिंदू का एक बाल भी टेढ़ा नहीं कर सकतीं। ऐसा ही सारे हिंदुओं को समझा देना चाहिये। सदियों से गाजी मियां और वीर हिंदुओं के बीच हुये युध्द पर गावों में गाये जा रहे आल्हा का आनंद लेते हुये बोलिये :
' सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय !'
' गाजी मियां की पूजा और हिंदू '
- पंडित गंगाप्रसाद उपाध्याय

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