राम पुरोहित
प्राचीनतम है भारत की संस्कृति
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आइये जाने वैदिक आधार जिसपर आज की आधुनिक वैज्ञानिक प्रगति की आधारशिला रखी है--------
■ जिस समय यूरोप में घुमक्कड़ जातियां बस्तियां बनाना सीख रही थी, उस समय भारत में कृषि, भवन निर्माण, धातु विज्ञान, वस्त्र निर्माण, परिवहन व्यवस्था आदि क्षेत्र उन्नति दशा में विकसित हो चुके थे।
मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल आदि स्थानों के पुरातात्विक उत्खनन इस बात के8 गवाही देते है कि ज्ञान विज्ञान की दृष्टि से सिंधु घाटी की सभ्यता अत्यंत विकसित थी। लोग सुनियोजित भवनों में रहते थे इनमे भवन, सड़कें, नालियां, स्नानागार, कोठार(अन्न रखने की जगह) पक्की ईंटों से बने मकान, जहाजों द्वारा यात्रा, माप तौल का ज्ञान, उन्नति कृषि, खनन विद्या, रत्नों का ज्ञान और काटने और संवारने की समझ, सोने चांदी के आभूषण, कांसे के हथियार, सूती ऊनी वस्त्र निर्माण की कला में निपुण थे।
■ ईशा से 200 वर्ष पूर्व से लेकर ईशा के 11वी सदी तक उन्नत शोध व् अविष्कार ने कई कीर्तिमान बनाये जैसे आर्यभट्ट, वराहमिहिर, बोधायन, चरक, सुश्रुत, नागार्जुन, कणाद जैसे सनातनी वैज्ञानिकों ने कई कीर्तिमान बनाये। खगोल विज्ञान का ज्ञान केवल हमारे पास था जिससे 27 नक्षत्रों के साथ वर्ष, महीने, दिन ‘काल’ की गणना सटीक आज भी विद्वमान है।
■ वैदिक ऋषियों का चिकित्सा विज्ञान का दृष्टिकोण पूर्णतयः वैज्ञानिक था। आज के दृष्टिकोण में देखा जाये तो उन्नति और काम मूल्य पर चिकित्सा भारत में ही उपलब्ध है। जब यूरोपियन चड्डी पहनना सीख रहे थे तब हमारे देश में स्नायुतंत्र और सुषुम्ना (रीढ़ की हड्डी) में सिद्धहस्त थे। उस समय शव विच्छेदन (postmortem) की प्रक्रिया भी जानते थे। प्रमाण मिलते है कि मिश्र, रोम, अरब देशों में भारतीय जड़ी बूटी का प्रयोग बहुतायत से होता था। यूनानी चिकित्सा 11वी सदी से शुरू हुआ था जब भारतीय चिकित्सा पूर्णतयः विकसित हो चुकी थी। नागार्जुन के साथ रसायन शास्त्री वृंद ने औषधि रसायन की खोज कर ली थी।
■ ईसा पूर्व चौथी शताब्दी से छटवीं शताब्दी वैज्ञानिक प्रगति का स्वर्णकाल था जिसमे धातुकर्म, भौतिकी, रसायन शास्त्र पूर्ण विकास हुआ। विशालकाय प्रस्तर स्तम्भो का जैसे महरौली का दिल्ली के पास 1700 वर्षो से जंकविहीन शान से खड़ा है। कणाद ऋषि केे छटवीं ईशा पूर्व ही परमाणुओं की रचना, प्रवत्ति, प्रकारों के 44 से अधिक ग्रन्थ आज भी उपलब्ध है।
■ खगोल विज्ञान के अधुनिक काल के वैज्ञानिक कॉपरनिकस से एक हज़ार साल पूर्व भारतीय वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने पृथ्वी गोल है और एक धुरी पर घूमती है पुष्टि कर चुके थे और सूर्य चंद्र ग्रहण का सही सिद्धान्त का प्रतिपालन किया था। ईशा से पूर्व ही ‘वेदांग ज्योतिषी’ के अनुसार यज्ञ ही नही ग्रहों की स्तिथि से कृषि की आने बाली स्तिथि का अंदाजा लगा लेते थे। महाभारत में भी तो चंद्र ग्रहण और् सूर्य ग्रहण की चर्चा है। खगोल विज्ञानी श्री वराहमिहिर ने गृत्वकर्षण के सिद्धांत की खोज कर ली थी। सूर्य और चंद्र से पृथ्वी की दुरी तो हमारे वेदों में भी मिल जाती है।
आगे कल…..
गणितीय पद्धति, चिकित्सा पद्धति आदि
अपनी जड़ों में लौटे...बच्चो को अपनी महान् और सुदृढ महानता से अवगत कराये।
अपने त्योहारों की महत्वता समझे..अपने त्योहारों को तन,मन और लगन से मनाए की अन्य लोग भी मनाने लगे। आने बाला है अपना Happy New Year भूल ना जाये। हवन करे, सुन्दरकाण्ड का पाठ करे, घर को सजाये, बन्दनवार और फूलों से घर को सजाये। यदि सनातन ध्वज नही लगा है तो उस दिन घर के सबसे ऊंची स्थान पर स्थान दे और लगा है तो नये ध्वज से बदले। नही है तो मुझसे ले जाये 100 या 200 का भार तो वहन कर ही सकता हूँ। रोज ॐ का प्रयोग करे लिखने में, पोस्ट में, whatsapp पर , फेसबुक पर या जँहा पसंद हो ॐ लिखे, कंहे, बोले...मेरा देश महान् था, है और रहेगा।
ॐ ॐ ॐ ॐ
डॉ विजय मिश्रा
जयपुर
अच्छा लगे तो अपना नाम लिखे और आगे बढ़ा दे। कॉपी राईट नही है। ॐ ॐ
शुक्रवार, फ़रवरी 17, 2017
प्राचीनतम है भारत की संस्कृति
सोमवार, फ़रवरी 06, 2017
भारत में कभी सति प्रथा थी ही नही,
भारत में सती प्रथा
भारत में कभी सति प्रथा थी ही नही, रामायण / महाभारत जैसे ग्रन्थ कौशल्या, कैकेई, सुमित्रा, मंदोदरी, तारा, सत्यवती, अम्बिका, अम्बालिका, कुंती, उत्तरा, आदि जैसी बिध्वाओं की गाथाओं से भरे हुए हैं। किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में सति-प्रथा का कोई उल्लेख नहीं है. यह प्रथा भारत में इस्लामी आतंक के बाद शुरू हुई थी। ये बात अलग है कि- बाद में कुछ लालचियों ने अपने भाइयों कि सम्पत्ति को हथियाने के लिए अपनी भाभियों की ह्त्या इसको प्रथा बनाकर की थी।
इस्लामी अत्याचारियों द्वारा पुरुषों को मारने के बाद उनकी स्त्रीयों से दुराचार किया जाता था, इसीलिये स्वाभिमानी हिन्दू स्त्रीयों ने अपने पति के हत्यारों के हाथो इज्जत गंवाने के बजाय अपनी जान देना बेहतर समझा था। भारत में जो लोग इस्लाम का झंडा बुलंद किये घूमते हैं, वो ज्यादातर उन वेवश महिलाओं के ही वंशज हैं जिनके पति की ह्त्या कर महिला को जबरन हरम में डाल दिया गया था। इनको तो खुद अपने पूर्वजों पर हुए अत्याचार का प्रतिकार करना चाहिए।
सेकुलर बुद्धिजीवी "सतीप्रथा" को हिन्दू समाज की कुरीति बताते हैं जबकि यह प्राचीन प्रथा है ही नहीं. रामायण में केवल मेघनाथ की पत्नी सुलोचना का और महाभारत में पांडू की दुसरी पत्नी माद्री के आत्मदाह का प्रसंग है। इन दोनो को भी किसी ने किसी प्रथा के तहत बाध्य नहीं किया था बल्कि पति के वियोंग में आत्मदाह किया था।
चित्तौड़गढ़ के राजा राणा रतन सेन की रानी "महारानी पद्मावती" का जौहर विश्व में भारतीय नारी के स्वाभिमान की सबसे प्रसिद्ध घटना है। ऐय्याश और जालिम राजा "अलाउद्दीन खिलजी" ने रानी पद्मावती को पाने के लिए, चित्तौड़ पर चढ़ाई कर दी थी , राजपूतों ने उसका बहादुरी से सामना किया। हार हो जाने पर रानी पद्मावती एवं सभी स्त्रीयों ने , अत्याचारियों के हाथो इज्ज़त गंवाने के बजाय सामूहिक आत्मदाह कर लिया था. जौहर /सती को सर्वाधिक सम्मान इसी घटना के कारण दिया जाता है।
चित्तौड़गढ़, जो जौहर (सति) के लिए सर्वाधिक विख्यात है उसकी महारानी कर्णावती ने भी अपने पति राणा सांगा की म्रत्यु के समय (1528) में जौहर नहीं किया था, बल्कि राज्य को सम्हाला था। महारानी कर्णावती ने सात साल बाद 1535 में बहादुर शाह के हाथो चित्तौड़ की हार होने पर, उससे अपनी इज्ज़त बचाने की खातिर आत्मदाह किया था। औरंगजेब से जाटों की लड़ाई के समय तो जाट स्त्रियों ने युद्ध में जाने से पहले, अपने खुद अपने पति से कहा था कि उनकी गर्दन काटकर जाएँ।
गोंडवाना की रानी दुर्गावती ने भी अपने पति की म्रत्यु के बाद 15 बर्षों तक शासन किया था। दुर्गावती को अपने हरम में डालने की खातिर जालिम मुग़ल शासक "अकबर" ने गोंडवाना पर चढ़ाई कर दी थी। रानी दुर्गावती ने उसका बहादुरी से सामना किया और एक बार मुग़ल सेना को भागने पर मजबूर कर दिया था। दुसरी लड़ाई में जब दुर्गावती की हार हुई तो उसने भी अकबर के हाथ पकडे जाने के बजाय खुद अपने सीने में खंजर मारकर आत्महत्या कर ली थी।
"सती" का मतलब होता है, अपने पति को पूर्ण समर्पित पतिव्रता स्त्री। सती अनुसूइया, सती सीता, सती सावित्री, इत्यादि दुनिया की सबसे "सुविख्यात सती" हैं और इनमें से किसी ने भी आत्मदाह नही किया था। जिनके घर की औरते रोज ही इधर-उधर मुह मारती फिरती हों, उन्हें कभी समझ नहीं आ सकता कि - अपने पति के हत्यारों से अपनी इज्ज़त बचाने के लिए, कोई स्वाभिमानी महिला आत्मदाह क्यों कर लेती थी।
हमें गर्व है भारत की उन महान सती स्त्रियों पर, जो हर तरह से असहाय हो जाने के बाद, अपने पति के हत्यारों से, अपनी इज्ज़त बचाने की खातिर अपनी जान दे दिया करती थीं। जो स्त्रियाँ अपनी जान देने का साहस नहीं कर सकी उनको मुघलों के हरम में रहना पडा। मुग़ल राजाओं से बिधिवत निकाह करने वाली औरतों के बच्चो को शहजादा और हरम की स्त्रियों से पैदा हुए बच्चो को हरामी कहा जाता था और उन सभी को इस्लाम को ही मानना पड़ता था।
जिस "सती" के नाम पर स्त्री के आत्मबलिदान को "सती" होना कहा जाता है उन्होंने भी पति की म्रत्यु पर नहीं बल्कि अपने मायके में अपने पति के अपमान पर आत्मदाह किया था। शिव पत्नी "सती" द्वारा अपने पति का अपमान बर्दास्त नहीं करना और इसके लिए अपने पिता के यग्य को विध्वंस करने के लिए आत्मदाह करना , पति के प्रति "सती" के समर्पण की पराकाष्ठ माना गया था। इसीलिये पतिव्रता स्त्री को सती कहा जाता है, जीवित स्त्रियाँ भी सती कहलाई जाती रही है।
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