राम पुरोहित
भारत में नया इस्लामिक अटैक --- नए अंदाज में
( यह लेख आपके लिए पढ़ना जरुरी है )
अधिकतर आपने सुना होगा , मुल्ले कहते है की इंसान को एक दूसरे से सच्चा रहना चाहिए , लेकिन सच यह है , की यह ऐसा सिर्फ बोलते है , उन लोगो के अनेक झूठ और कपट ऐसे होते है , जिनका हम परिस्थियों से अनुमान लगा सकते है। झूठ बोलने का इनका उदेश्य सिर्फ एक होता है --- झूठ के माध्यम से भी पवित्र इस्लाम को फैलाना , इससे यह भी साफ़ हो जाता है , की इस्लाम एक धर्म ना होकर एक राजनीतिक संगठन मात्र है , इस राजनितिक संगठन का पहला और आखिरी तानाशाह बादशाह सुल्तान मुहम्मद ही है , और जब तक इस्लाम जड़ से खत्म नहीं हो जाता , वही रहेगा भी।
मुहम्मद साहब ने ही कुरआन को पृथ्वी पर अवतरित करने का स्वांग रचा , अपने लुटेरे साथियो को कुरआन के माध्यम से झूठ फैलाने का आदेश दिया है। इस्लाम ऐसा राजनीतिक संगठन है , जो अरब के झंडे के नीचे , पुरे विश्व पर कब्ज़ा करना चाहता है , और उसने शिक्षा से लेकर संस्कृति, और सेना हिन्दू नागरिक सभी को खत्म करने का सपना ६२२ में ही संजो चुके है जो आज तक इनके लिए स्वपन ही बना रहा है।
पढ़िए कुरआन की कुछ स्पेसल आयतें
कुरआन सूरः नस्ल ( १६ नंबर चेप्टर ) आयत नम्बर १०३ - जो लोग अल्लाह की आयतो पर ईमान नहीं लाते , उनको अल्लाह ताला कभी राह पर ना लाएंगे , और उनके लिए बड़ी दर्दनाक सजा होगी ( यह हुआ डर , धमकी , और तानासाही )
कुरआन सूरः ३ ( आली इमरान ) आयत नंबर २८ - आप फरमा दीजिये अगर आप छुपकर रखोगे अपनी दिल की बात यह जाहिर करोगे ( इस लाइन को गोर से पढ़िए ) अल्लाह ताला उसे हर हाल में जानते है , जो चीज़ जमीन पर है ( यह है झूठ बोलने वाली आयत मान लीजिये किसी का नाम हिन्दू है , और उसकी मान्यता मुसलमान , दिखावा हिन्दू का , और आचरण मुस्लमान, नाम हिन्दू का, और चेहरा इस्लाम , किन्तु अल्लाह धरती पर रह रहे सभी लोगो को जानता है , इसीलिए कलाकार हो या राजनीतिज्ञ मुस्लमान, सबकी आखिरी कसौटी तलवार पर अरबी लिखित हरा झंडा ही है। )
कुरआन सूरा ९ ( सुर तोबा ) ------
आयत नंबर २ - अगर तुम कुफ्र से तोबा कर लो तुम्हारे लिए बेहतर है , अगर तुमने इस्लाम से मुँह मोड़ा तो यह समझ के रखो खुदा ताला को आजिज नहीं रख सकोगे , उन काफिरो को दर्दनाक सजा की खबर सूना दीजिये --
इसी अध्याय में आयत नंबर ३ हाँ मगर वे मूर्तिपूजक जिसने तुमको अहद लिया और जिसने तुम्हारे साथ जरा भी कमी नहीं की , और ना तुम्हारे मुकाबले में किसी की मदद की , तो उसके मुहायदे को अंत तक पूरा करो , अल्लाह ऐसे एहतियात करने वाले को पसंद करते है।
( इस आयत का उदहारण _ पृथ्वीराज चौहान का बेटा मुसलमानो को महंगे उपहार तोहफे में देता रहता था , उनकी गुलामी करता था , इसीलिए उसे अजमेर का राजा बने रहने दिया , क्यू की अल्लाह एतिहात करने वाले को पसंद करता है )
इसी अध्याय में आयत नंबर -४ - जब हुरमत के महीने बीत जाए , तो मूर्तिपूजको काफिरो को जहाँ चाहो वहां मारो ( इसीलिए इस्लाम हमेशा नागरिको पर हमले करता है, क्यू की हर एक गैर- मुसलमान उनका शत्रु है, पहले हमले तलवारो से होते थे, आजकल तलवारो के साथ साथ बम और बंदूको से भी होने लगे है ) उनको पकड़ो और बांधो , और दाव घात के मोके पर उनकी ताक़ में बेठो , अगर वे कुफ्र ( मूल धर्म ) से तोबा कर ले ( उसका त्याग कर दे ) , नमाज़ पढ़ने लगे और जकात देने लगे , तो उसका रास्ता छोड़ दो
अब सोचने वाली बात यह है, की यह जो हिन्दू धर्म पर लगातार अटेक करने वाले , ब्राह्मणों को दुस्ट दिखाने वाले , रोंग नंबर वाले ह-रामजादों की यहाँ नानी क्यू मर जाती है , इन दुस्टो कपटियों को क्या यह बुराई नहीं लगती , अंधविश्वाशी आमिर खान क्यू हज जाता है ??/ क्या इन हरामजादो ने कुरआन नहीं पढ़ी??? अगर पढ़ी, तो क्यू नहीं इस समश्या पर गौर किया, क्यू सच को लाकर सामने नहीं रखा ?/
यह जो अल-तकिया है वह यही है इन पिगम्बरवादियो का , वामपंथ और इस्लाम एक ही है , दोनों को ही ऊपर वाले का डर नहीं, यह दोनों ही दैत्य गुरु शुक्र की रक्त पिपासा शांत करने में लगे हुए है ,
जैसे सुर आली की आयत में मेने इनके झूठ बोलने की स्कीम को आपको बताया , उसका एक हिस्सा महेश भट्ट है , सुनने में आता है की मुहम्मद की पुत्री फातिमा और मुहम्मद के बीच भी अनैतिक संबंध थे , इसका सच क्या है यह तो किसी दिन किसी फतवे के साथ ही पता चलेगा , उसी तरह महेश भट्ट का नाम भी अपनी ही पुत्री के साथ अनैतिक संबंधों के साथ जुड़ा, और कई बार इसने स्वीकार किया, की में मुसलमान हूँ। यह तो बात हुई, बोलीवड में इस्लाम के प्रभाव की।
अब सोचिये यह एक तिहाई मुसलमान आचरण वाले ही इतने कपटी है तो जो गर्व से कहते है , में मुस्लमान हूँ, वो कितने कपटी होंगे ?????
जैसे सलमान , शाहरुख़, आमिर , सैफ, और कई मल्लेछ
दीपिका पादूकून दाऊद से मिल चुकी है, एक हॉलीवुड मूवी में फाइनेंस करने लिए कहने को, और पैसो की इतनी भूख के बाद यह हिन्दू है भी, कहना मुश्किल है, इस्लाम द्धारा हिन्दुओ के बीच छोड़ी गयी विषकन्याएं है यह।
क्रमशः ----- शुरुवात सलमान के इस्लामिक जिहाद की एक चर्चा अगला भाग जल्द
सोमवार, जनवरी 30, 2017
भारत में नया इस्लामिक अटैक --- नए अंदाज में
शुभ्रक घोड़े का बलिदान
Jitendra Pratap Singh
*कुतुबुद्दीन ऐबक की मौत और स्वामीभक्त घोड़े 'शुभ्रक' का बलिदान*
किसी भी देश पर शासन करना है तो उस देश के लोगों का ऐसा ब्रेनवाश कर दो कि वो अपने देश, अपनी संस्कृति और अपने पूर्वजों पर गर्व करना छोड़ दें। इस्लामी हमलावरों और उनके बाद अंग्रेजों ने भी भारत में यही किया। हम अपने पूर्वजों पर गर्व करना भूलकर उन अत्याचारियों को महान समझने लगे जिन्होंने भारत पर बे-हिसाब जुल्म किये थे।
*कुतुबुद्दीन* कुल चार साल (1206 से 1210 तक) दिल्ली का शासक रहा। इन चार साल में वो अपने राज्य का विस्तार, इस्लाम के प्रचार और बुतपरस्ती का खात्मा करने में लगा रहा। हाँसी, कन्नौज, बदायूँ, मेरठ, अलीगढ़, कालिंजर, महोबा, आदि को उसने जीता। अजमेर के विद्रोह को दबाने के साथ राजस्थान के भी कई इलाकों में उसने काफी आतंक मचाया।
जिसे क़ुतुबमीनार कहते हैं वो महाराजा वीर विक्रमादित्य की वेधशाला थी जहाँ बैठकर खगोलशास्त्री *वराहमिहिर* ने ग्रहों, नक्षत्रों, तारों का अध्ययन कर, भारतीय कैलेण्डर *'विक्रम संवत'* का आविष्कार किया था। यहाँ पर 27 छोटे-छोटे भवन (मंदिर) थे जो 27 नक्षत्रों के प्रतीक थे और मध्य में *'विष्णुस्तम्भ'* था, जिसको *'ध्रुवस्तम्भ'* भी कहा जाता था।
दिल्ली पर कब्जा करने के बाद उसने उन 27 मंदिरों को तोड़ दिया। विशाल विष्णुस्तम्भ को तोड़ने का तरीका समझ न आने पर उसने उसको तोड़ने के बजाय अपना नाम दे दिया। तबसे उसे *क़ुतुबमीनार* कहा जाने लगा। कालान्तर में यह यह झूठ प्रचारित किया गया कि क़ुतुब मीनार को कुतुबुद्दीन ने बनवाया था, जबकि वो एक विध्वंसक था न कि कोई निर्माता।
*अब बात करते हैं कुतुबुद्दीन की मौत की।* इतिहास की किताबो में लिखा है कि उसकी मौत पोलो खेलते समय घोड़े से गिरने पर से हुई। ये अफगान / तुर्क लोग 'पोलो' नहीं खेलते थे, अफगान / तुर्क लोग *बुजकशी* खेलते हैं जिसमें एक बकरे को मारकर उसे लेकर घोड़े पर भागते हैं, जो उसे लेकर मंजिल तक पहुँचता है, वो जीतता है।
कुतबुद्दीन ने अजमेर के विद्रोह को कुचलने के बाद राजस्थान के अनेकों इलाकों में कहर बरपाया था। उसका सबसे कड़ा विरोध उदयपुर (वर्तमान उदयपुर से भिन्न) के राजा ने किया, परन्तु कुतुबद्दीन उसको हराने में कामयाब रहा। उसने धोखे से राजकुँवर को बंदी बना लिया और उनको और उनके घोड़े शुभ्रक को पकड़कर लाहौर ले आया।
एक दिन राजकुँवर ने कैद से भागने की कोशिश की, लेकिन पकड़ा गया। इस पर क्रोधित होकर कुतुबुद्दीन ने उसका सिर काटने का हुकुम दिया। दरिंदगी दिखाने के लिए उसने कहा - बुजकशी खेला जाएगा लेकिन इसमें बकरे की जगह राजकुँवर का कटा हुआ सर इस्तेमाल होगा।
कुतुबुद्दीन ने इस काम के लिए, अपने लिए घोड़ा भी राजकुँवर का *'शुभ्रक'* चुना।
कुतुबुद्दीन शुभ्रक पर सवार होकर अपनी टोली के साथ जन्नत बाग में पहुँचा। राजकुँवर को भी ज़ंज़ीरों में बाँधकर वहाँ लाया गया। राजकुँवर का सर काटने के लिए जैसे ही उनकी जंज़ीरों को खोला गया, *शुभ्रक ने उछलकर कुतुबुद्दीन को अपनी पीठ से नीचे गिरा दिया और अपने पैरों से उसकी छाती पर कई वार किये जिससे कुतुबुद्दीन वहीं पर मर गया*।
इससे पहले कि सिपाही कुछ समझ पाते राजकुँवर शुभ्रक पर सवार होकर वहाँ से निकल गए। कुतुबुदीन के सैनिको ने उनका पीछा किया मगर वो उनको पकड़ न सके।
शुभ्रक कई दिन और कई रात दौड़ता रहा और अपने स्वामी को लेकर उदयपुर के महल के सामने आकर रुका। वहाँ पहुँचकर जब राजकुँवर ने उतरकर पुचकारा तो वह मूर्ति की तरह शांत खड़ा रहा।
वह मर चुका था, सिर पर हाथ फेरते ही उसका निष्प्राण शरीर लुढ़क गया।
कुतुबुद्दीन की मौत और शुभ्रक की स्वामिभक्ति की इस घटना के बारे में हमारे स्कूलों में नहीं पढ़ाया जाता है लेकिन इस घटना के बारे में फारसी के प्राचीन लेखकों ने काफी लिखा है।
धन्य है भारत की भूमि जहाँ इंसान तो क्या जानवर भी अपनी स्वामीभक्ति के लिए प्राण दाँव पर लगा देते हैं।
सोमवार, जनवरी 02, 2017
क्या आप को
पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा पूर्ण करने में 365 दिन, 5 घण्टे, 48 मिनीट और 46 सेकेण्ड लगते है। इस अंतर को समाप्त करने के लिए ईसाइयों के वर्तमान calendar में 4 वर्षों के अंतराल में लीप वर्ष मनाकर उसमें 1 दिन बढ़ाया जाता है। लेकिन इसप्रकार 4 वर्षों में 44 मिनीट अतिरिक्त पकड़े जाते है, जिसका ध्यान इस calendar के निर्माताओं ने नहीं रखा है। इस कारण से यह क्रम इसीप्रकार चलता रहा तो 1000 वर्षों के बाद लगभग 8 दिन अतिरिक्त पकड़े होंगे। और लगभग 10,000 वर्षों के बाद लगभग 78 दिन अतिरिक्त पकड़ लिए गए होंगे। इसका सीधा-सीधा अर्थ यह है की दस हज़ार वर्षों के बाद 1st Jan. शीत ऋतु की जगह वसंत ऋतु में होली के आसपास आएगी। यह सीधा-सादा गणित है। परंतु लाखों वर्षों से चली आ रही हमारी राम नवमी आज भी वसंत ऋतु में ही आती है, दशहरा व दिवाली शरद ऋतु में ही आते है। क्योंकि हमारे पुरखे खगोल और गणित में भी बहुत ही निपुण थे। अत: उन्होंने इस गणित व खगोल विज्ञान के आधार पर ही हज़ारों वर्षों में आनेवाले ग्रहणों का स्थान, दिन तथा समय भी exact लिख रखा है। इसलिए आग्रह है की कई बार बदली ईसाइयों की दक़ियानूसी वाली कालगणना छोड़िए तथा स्वाभिमान के साथ अपने पुरखों की वैज्ञानिक कालगणना अपनाइए जो अक्षरश: अचूक व बेजोड़ है।