महेश कुमार रैगर
सबसे ज्यादा काट छाट मनुस्मृति में की गयी, जब 1857 का गदर हुआ था तब अंग्रेजों को पता चल गया था की भारतवासियों की सबसे बड़ी ताकत है उनका धर्म, उसे खत्म करना होगा, उन्होंने मनुस्मृति देखा और वो दंग रह गए, इससे बेहतर न्यायव्यवस्था की किताब उन्होंने आज तक नही देखी, तो उन्होंने सोचा अगर इसे ही बदल दिया जाए तो भारवासियों को आपस में लड़वाकर गुलाम बनाना आसान हो जायेगा, उस समय एक अंग्रेज अधिकारी हुआ करता था 'मैक्स म्युलर" उसे संस्कृत बहुत अच्छी तरह से आती थी, उसे मनुस्मृति में बदलाव करने का कार्यभार सौंपा गया, और उसने मनुस्मृति में ऐसे ऐसे बदलाव किये जिसका कोई हद हिसाब नहीं, जिसे पढ़कर भारतवासी मनुस्मृति से नफरत करने लग जाएँ, और फिर जब उसने बदलाव कर दिया तो उसने इसे ब्रिटेन के हाउस ऑफ़ कॉमन्स में बिल के तौर पर पेश करवाया, फिर उसकी किताबें छपवायी और भारत में भेज दी, नतीजा आज भी आपके सामने है, उदाहरण के तौर पर, आजकल आप सुनते होंगे बहुत से बहुत से लोग कहते फिरते हैं की हिन्दू गोमांस खाते थे, ये बात उनके वेदों में लिखा हुआ है, अगर सच में हिन्दू गाय का मांस खाते तो 1857 का गदर नही हुआ होता, जिसमे मंगल पाण्डेय नें गोमांस से बने कारतूस को मुँह से हटाने से मना कर दिया था, मुझे लगता है, बाबा साहेब अम्बेडकर नें जो मनुस्मृति दहन शुरू किया था, वो सायद अच्छा ही किया, क्योंकि जितनी भी मनुस्मृतियां जलाई गयी कोई भी उसकी मूल स्मृति नही थी, उसमें बस अंग्रेजों द्वारा फैलाई गयी गंदगी है । मनुस्मृति की मूल स्मृति आजकल बहुत मुश्किल से ही मिलती है । Please, ये बात जितना ज्यादा हो सके share कर दीजिये, ताकी जो दलित भाई राजा मनु और उनकी मनुस्मृति से नफरत करते हैं उन्हें सच्चाई समझ आ जाये और जो ब्राह्मण दलितों से मनुस्मृति को आधार मान कर नफरत और भेदभाव करते हैं उनकी आँखें भी खुल जाए । 🙏🏼 धन्यवाद 🙏🏼नो जय श्री राम
सबसे ज्यादा काट छाट मनुस्मृति में की गयी, जब 1857 का गदर हुआ था तब अंग्रेजों को पता चल गया था की भारतवासियों की सबसे बड़ी ताकत है उनका धर्म, उसे खत्म करना होगा, उन्होंने मनुस्मृति देखा और वो दंग रह गए, इससे बेहतर न्यायव्यवस्था की किताब उन्होंने आज तक नही देखी, तो उन्होंने सोचा अगर इसे ही बदल दिया जाए तो भारवासियों को आपस में लड़वाकर गुलाम बनाना आसान हो जायेगा, उस समय एक अंग्रेज अधिकारी हुआ करता था 'मैक्स म्युलर" उसे संस्कृत बहुत अच्छी तरह से आती थी, उसे मनुस्मृति में बदलाव करने का कार्यभार सौंपा गया, और उसने मनुस्मृति में ऐसे ऐसे बदलाव किये जिसका कोई हद हिसाब नहीं, जिसे पढ़कर भारतवासी मनुस्मृति से नफरत करने लग जाएँ, और फिर जब उसने बदलाव कर दिया तो उसने इसे ब्रिटेन के हाउस ऑफ़ कॉमन्स में बिल के तौर पर पेश करवाया, फिर उसकी किताबें छपवायी और भारत में भेज दी, नतीजा आज भी आपके सामने है, उदाहरण के तौर पर, आजकल आप सुनते होंगे बहुत से बहुत से लोग कहते फिरते हैं की हिन्दू गोमांस खाते थे, ये बात उनके वेदों में लिखा हुआ है, अगर सच में हिन्दू गाय का मांस खाते तो 1857 का गदर नही हुआ होता, जिसमे मंगल पाण्डेय नें गोमांस से बने कारतूस को मुँह से हटाने से मना कर दिया था, मुझे लगता है, बाबा साहेब अम्बेडकर नें जो मनुस्मृति दहन शुरू किया था, वो सायद अच्छा ही किया, क्योंकि जितनी भी मनुस्मृतियां जलाई गयी कोई भी उसकी मूल स्मृति नही थी, उसमें बस अंग्रेजों द्वारा फैलाई गयी गंदगी है । मनुस्मृति की मूल स्मृति आजकल बहुत मुश्किल से ही मिलती है । Please, ये बात जितना ज्यादा हो सके share कर दीजिये, ताकी जो दलित भाई राजा मनु और उनकी मनुस्मृति से नफरत करते हैं उन्हें सच्चाई समझ आ जाये और जो ब्राह्मण दलितों से मनुस्मृति को आधार मान कर नफरत और भेदभाव करते हैं उनकी आँखें भी खुल जाए । 🙏🏼 धन्यवाद 🙏🏼नो जय श्री राम
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