#ऊँ की आवृत्ति भी 432 Hz होती है.. और सारे वैदिक मंत्रो की भी.. आप चाहे तो गूगल पर सर्च कर सकते हैं
अब आप सोचिए कहाँ से कहाँ तक हमारे सनातन पूर्वजों को ज्ञान था जहाँ तक किसी का दिमाग़ आज तक इतने हज़ार साल बीत गये अभी तक नहीं पड़ा था...
अब जा कर पश्चिमी दुनिया ने इस बारे मे विचार आया......... और हमारे पूर्वजों ने लाखों वर्ष पहले इसी आधार पर सारे मंत्र रचे और गठित किए..संस्कृत के साधारण शब्द यही आवृत्ति देते हैं.. (परंतु कुछ संधिपूर्ण शब्द अलग आवृत्ति भी देते हैं..)
इस 432 Hz आवृत्ति का संगीत और ध्वनियाँ सुनते रहने से आपका दिमाग़ और शरीर एक तरह से सकारात्मक स्पंज (Positive Sponge) बन जाता है जो सारे वातावरण से सकारात्मकता ही ग्रहण करता और छोड़ता है...
लेकिन वही 440 Hz की आवृत्ति इसका बिल्कुल उल्टा करती है..... आपका दिमाग़ एसे संगीत सुनने से आस पास से नकारात्मकता को हम पहले हाथों हाथ लेते हैं.. (Like negative sponge) नकारात्मक चीज़ें हमारे मन पर आसानी से छाप छोड़ देती हैं.. और वही हमें अच्छी लगती हैं.. जबकि सकारात्मक चीज़ें हमारे पल्ले नहीं पड़ती..
यह बात जब रोशचेल्ड एक बहुत बड़ा बैंकर का परिवार है जो परोक्ष रूप से पूरी दुनियाँ के संपत्ति खनिज और संपदाओं पर कब्जा करना चाहता है... आज के लगभग सभी बैंक (वर्ल्ड बेंक भी)इसके ही बिठाए प्यादों से चल रहा है सारी सरकारो को परोक्ष रूप से ये नियंत्रित करता है..
इसको जब यह बात पता चली तो इसने तुरंत ही सारे संगीत का मानक 440 Hz करवा दिए... जिससे.. लोग मूरख रहें और आपस मे लड़ते रहें ..
इन लोगो के विश्व विजय में कभी रोड़ा ना अटकाएँ या सामने टिक सकें..
दुख की बात यह भी है की भारतीय मानक भी इसी 440 Hz के हिसाब से ही बनते हैं..
हमने अपने सनातन हिंदू पुरवजो के ज्ञान को नहीं पहचाना.. और 432 Hz नहीं प्रयोग करते .. जबकि यह आसानी से संगीत रिकार्डिग के समय किया जा सकता है...
या फिर ये बैंक ग्रुप एसा होने नही देगा... क्यूकी इस बात के साक्ष्य भी मौजूद हैं.. की जिसने भी इस आवृत्ति का संगीत बना ने की कोशिश की उसको गुप्त रूप से हत्या करा दी गयी
फिलहाल यहाँ बात हो रही थी की किस तरह हमारे पुरवजो ने संपूर्ण मानव जाती के कल्याण के लिए मंत्र बनाए थे..
और यह उन लोगो का भी मुँह बंद करने के लिए काफ़ी है जो कहते है मंत्रो से क्या हो सकता है???????? या क्या किया जा सकता है..??????
इसके अलावा कई एसी आवृत्तियाँ भी हमारे ऋषि मुनियों को पता थीं जो की विनाशकारी (destructive frequencies) भी होती थी.. यदि किसी के उपर इस तरह के मंत्र पढ़ दिए जाए तो वहाँ भयंकर विनाशलीला प्रारंभ हो जाती थी.. युध्धो मे एसे मंत्रो का आह्वाहन किया जाता था
ऊँ की आवृत्ति भी 432 Hz होती है.. और सारे वैदिक मंत्रो की भी.. आप चाहे तो गूगल पर सर्च कर सकते हैं...