आओ विकास करें
(सिर्फ लोगो के विचार शेयर करने के कारण आज ये ब्लॉग बहुत रिपोर्ट हो चुका है जबकि हर पोस्ट करता का नाम लिंक मिलेगा अगर वो पोस्ट किसी की मूल है तो )
पत्तळ बनाम टिस्यू पेपर
साथियो एक कहानी सुनाना चाहता हूँ, अपने बारे में कुछ बताना चाहता हूँ। मैं आज कितना विकास कर गया ये सरल भाषा में समझना व समझाना चाहता हूँ।
कमाल कर गया हूँ मैं, अरे भाई इतना मॉडर्न हो गया कि पूछो मत, खाना खा कर टिस्यू पेपर से हाथ व मुहं पोछता हूँ तथा कभी किसी पांच सितारा होटल या विदेश में जाता हूँ तो वो भी मजबूरी में पोंछ लेता हूँ, हां भई वही सही सोच रहे हैं आप लोग। पहले तो मैं गांव में रहता था, ग्वांर था, गांव जंगल के में था तो मैं जंगली भी था। अरे गाय भैंस चराता था, गोबर बिटोलता था, गोबर से सारा घर आंगन लीपता था, तालाब में नहाता था, बैलगाड़ी पर बैठ कर खेत में भी जाता था।
छीं छीं मिट्टी के मकान में रहता था और मुलतानी से नहाता था, घर की सरसों का तेल चोपड़ लेता था। मेरा खाना भी बिलकुल निम्न स्तर का था, अरे वो प्रदूषण फैलाने वाले हारे में और थेपड़ी से चुल्हे में मिट्टी की हांडी में खाना बनता था मेरा। खाना भी क्या बस दलिया खिचड़ी, मलाई शक्कर रोटी, चटनी, दाल, साग, गुलगुले, पूड़े, सिवाली, सिम्मी, हलवा, खीर, गुड़भत्ता, गोजी गास, चूरमा, शीरा, गुड़, शक्कर, लापसी और कभी गाय या भैंस ब्या जाती थी तो खीश आदि।
कहने का मतलब है कि मैं आदिवासी था। प्रदूषण नहीं फैलाता था बिलकुल। जल खराब नहीं करता था। पैट्रोल डीजल नहीं फूंकता था। बिजली घर में थी ही नहीं बस सरसों के तेल का दीवा होता था।
बारात आ जाती या कोई सामुहिक भोज होता तो टाट बिछा कर आलथी पालथी मार कर धरती पर बैठ कर खाना खाता था। एक टोली होती थी जो बार बार पूछती रहती थी कि क्या खाओगे, बड़ा परेशान करते थे, पेट भरने के बाद भी एक आध लड्डू पत्तल पर टेक ही जाते थे। सच में असभ्य थे वो लोग!!!
खैर रोहतक विकसित होने (पढ़ने) आ गया और विकास करने लगा। 100 में से 100 नंबर लेणे की होड़ में लग गया। रोहतक में मेडिकल मोड़ पर मामा मिंया नाम का होटल नया नया खुला था, गर्मी के दिन थे, पहली बार उस में दोस्तों के साथ खाना खाने गया। खाना खाने के बाद वेटर ने एक कटोरी में गर्म पानी, कटा हुआ नींबू व एक टिस्यू पेपर रख गया। सब दोस्त हैरान किसी को नहीं पता था कि इस गर्म पानी, नींबू व टिस्यू पेपर का क्या करें। हम अपना अपना दिमाग लगाने लगे हंसने लगे, मेरे मन में जो ख्याल आया वो ये था की जरुर ये नींबू इस पानी में निचोड़ कर पीना है ताकि खाया पीया जल्दी हजम हो, पर कुछ देर बाद साथ वाली मेज पर भी नींबू पानी आ गया। जब उन्होंने पहले नींबू को हाथो पर रगड़ कर गर्म पानी में हाथ धोए व टिस्यू पेपर से हाथ पोंछे तक पता चला की ये तो हाजमे के लिए नहीं हाथ धोने के लिए है। उस दिन मैं ओर विकसित हो गया।
अब मुख्य मुद्दे पर आता हूँ क्या है टिस्यू पेपर व क्या है पत्तल?? टिस्यू पेपर रोजाना करीब 28000 हरे भरे पेड़ों का कचूमर निकाल कर, कई हजार किलो वॉट बिजली फूंक कर, क्लोरीन व अन्य जहरीले रसायनों द्वारा साफ कर, थोड़ा बहुत कुछ छाप कर आप की खाने की प्लेट तक पहुंचता है जिसमें थोड़े बहुत जहरीले तत्व रह सकते हैं, जो आपको बीमार कर सकते हैं, जबकी पत्तल का विज्ञान अद्भुत है।
जब हम विकसित नहीं थे तब करीब दो हजार वृक्षों के पत्तों पर खाना खाया करते थे। असभ्य लोगों को पता था कि कौन सी बीमारी किस पेड़ के पत्ते पर खाना खाने से ठीक होगी जैसे कि मंद बुद्धि बच्चे अगर पीपल के पत्ते पर खाना खाएंगे तो कुशाग्र बुद्धि हो जाएंगे। जोड़ो के दर्द का मरीज अगर करंज के पत्तों पर खाना खाएगा, लकवाग्रस्त अगर अमलतास के पत्तों, बवासीर का मरीज अगर सफेद फूलों वाले पलाश (ढाक) व पाचनतंत्र में गड़बड़ व अशुद्ध रक्त वाले मरीज अगर लाल फूल वाले पलाश के पत्तों पर खाना खाएंगे तो स्वस्थ हो जाएंगे। केले के पत्ते पर खाना खाने वाले को बीमार पड़ने की संभावना ना के बराबर है।
अब मैं दोबारा अविकसित व असभ्य बन रहा हूँ। मात्र दो ₹ प्रति दिन खर्च कर दोबारा रोजाना पत्तल पर ही खाना खाणा शुरु कर रहा हूँ जिससे मुझे तो स्वास्थ्य लाभ मिलेगा ही मेरी धरती मां का स्वास्थय भी ठीक रहेगा। 60/- ₹ महीने में बर्तन मांजने का झंझट खत्म, साबुन के पैसे बचेगें व तकरीबन तीस चालीस लीटर साफ मीठा पानी रोजाना बचेगा। खाना खा कर पत्तल को खेत में या अपनी बगीची में डाल दूंगा, बगीचे में खाद नहीं डालनी पड़ेगी। सबसे बड़ी बात मेरे इस कदम से किसी गरीब का रोजगार मिलेगा, किन्हीं हाथों को काम मिलेगा। एक बैल भी ले आया हूँ और कोशिश में लगा हूँ कि hp ( होर्सपावर) की जगह बलराम बैल की पावर का सदुपयोग कर सकूँ।
आप कब असभ्य व अविकसित होना शुरु हो रहें हैं??? या आपको अभी और पेड़ काट के और विकास कर के बीमार होना है???
आप के जवाब के इन्तजार में गोबर से वैदिक प्लास्टर इस लिए बणाता ताकी तुम्हारा घर दफ्तर ठंडा रहे।
अणपढ़ जाटः- डॉ. शिव दर्शन मलिक
वैदिक भवन रोहतक (हरियाणा)
9812054982
(सिर्फ लोगो के विचार शेयर करने के कारण आज ये ब्लॉग बहुत रिपोर्ट हो चुका है जबकि हर पोस्ट करता का नाम लिंक मिलेगा अगर वो पोस्ट किसी की मूल है तो )
पत्तळ बनाम टिस्यू पेपर
साथियो एक कहानी सुनाना चाहता हूँ, अपने बारे में कुछ बताना चाहता हूँ। मैं आज कितना विकास कर गया ये सरल भाषा में समझना व समझाना चाहता हूँ।
कमाल कर गया हूँ मैं, अरे भाई इतना मॉडर्न हो गया कि पूछो मत, खाना खा कर टिस्यू पेपर से हाथ व मुहं पोछता हूँ तथा कभी किसी पांच सितारा होटल या विदेश में जाता हूँ तो वो भी मजबूरी में पोंछ लेता हूँ, हां भई वही सही सोच रहे हैं आप लोग। पहले तो मैं गांव में रहता था, ग्वांर था, गांव जंगल के में था तो मैं जंगली भी था। अरे गाय भैंस चराता था, गोबर बिटोलता था, गोबर से सारा घर आंगन लीपता था, तालाब में नहाता था, बैलगाड़ी पर बैठ कर खेत में भी जाता था।
छीं छीं मिट्टी के मकान में रहता था और मुलतानी से नहाता था, घर की सरसों का तेल चोपड़ लेता था। मेरा खाना भी बिलकुल निम्न स्तर का था, अरे वो प्रदूषण फैलाने वाले हारे में और थेपड़ी से चुल्हे में मिट्टी की हांडी में खाना बनता था मेरा। खाना भी क्या बस दलिया खिचड़ी, मलाई शक्कर रोटी, चटनी, दाल, साग, गुलगुले, पूड़े, सिवाली, सिम्मी, हलवा, खीर, गुड़भत्ता, गोजी गास, चूरमा, शीरा, गुड़, शक्कर, लापसी और कभी गाय या भैंस ब्या जाती थी तो खीश आदि।
कहने का मतलब है कि मैं आदिवासी था। प्रदूषण नहीं फैलाता था बिलकुल। जल खराब नहीं करता था। पैट्रोल डीजल नहीं फूंकता था। बिजली घर में थी ही नहीं बस सरसों के तेल का दीवा होता था।
बारात आ जाती या कोई सामुहिक भोज होता तो टाट बिछा कर आलथी पालथी मार कर धरती पर बैठ कर खाना खाता था। एक टोली होती थी जो बार बार पूछती रहती थी कि क्या खाओगे, बड़ा परेशान करते थे, पेट भरने के बाद भी एक आध लड्डू पत्तल पर टेक ही जाते थे। सच में असभ्य थे वो लोग!!!
खैर रोहतक विकसित होने (पढ़ने) आ गया और विकास करने लगा। 100 में से 100 नंबर लेणे की होड़ में लग गया। रोहतक में मेडिकल मोड़ पर मामा मिंया नाम का होटल नया नया खुला था, गर्मी के दिन थे, पहली बार उस में दोस्तों के साथ खाना खाने गया। खाना खाने के बाद वेटर ने एक कटोरी में गर्म पानी, कटा हुआ नींबू व एक टिस्यू पेपर रख गया। सब दोस्त हैरान किसी को नहीं पता था कि इस गर्म पानी, नींबू व टिस्यू पेपर का क्या करें। हम अपना अपना दिमाग लगाने लगे हंसने लगे, मेरे मन में जो ख्याल आया वो ये था की जरुर ये नींबू इस पानी में निचोड़ कर पीना है ताकि खाया पीया जल्दी हजम हो, पर कुछ देर बाद साथ वाली मेज पर भी नींबू पानी आ गया। जब उन्होंने पहले नींबू को हाथो पर रगड़ कर गर्म पानी में हाथ धोए व टिस्यू पेपर से हाथ पोंछे तक पता चला की ये तो हाजमे के लिए नहीं हाथ धोने के लिए है। उस दिन मैं ओर विकसित हो गया।
अब मुख्य मुद्दे पर आता हूँ क्या है टिस्यू पेपर व क्या है पत्तल?? टिस्यू पेपर रोजाना करीब 28000 हरे भरे पेड़ों का कचूमर निकाल कर, कई हजार किलो वॉट बिजली फूंक कर, क्लोरीन व अन्य जहरीले रसायनों द्वारा साफ कर, थोड़ा बहुत कुछ छाप कर आप की खाने की प्लेट तक पहुंचता है जिसमें थोड़े बहुत जहरीले तत्व रह सकते हैं, जो आपको बीमार कर सकते हैं, जबकी पत्तल का विज्ञान अद्भुत है।
जब हम विकसित नहीं थे तब करीब दो हजार वृक्षों के पत्तों पर खाना खाया करते थे। असभ्य लोगों को पता था कि कौन सी बीमारी किस पेड़ के पत्ते पर खाना खाने से ठीक होगी जैसे कि मंद बुद्धि बच्चे अगर पीपल के पत्ते पर खाना खाएंगे तो कुशाग्र बुद्धि हो जाएंगे। जोड़ो के दर्द का मरीज अगर करंज के पत्तों पर खाना खाएगा, लकवाग्रस्त अगर अमलतास के पत्तों, बवासीर का मरीज अगर सफेद फूलों वाले पलाश (ढाक) व पाचनतंत्र में गड़बड़ व अशुद्ध रक्त वाले मरीज अगर लाल फूल वाले पलाश के पत्तों पर खाना खाएंगे तो स्वस्थ हो जाएंगे। केले के पत्ते पर खाना खाने वाले को बीमार पड़ने की संभावना ना के बराबर है।
अब मैं दोबारा अविकसित व असभ्य बन रहा हूँ। मात्र दो ₹ प्रति दिन खर्च कर दोबारा रोजाना पत्तल पर ही खाना खाणा शुरु कर रहा हूँ जिससे मुझे तो स्वास्थ्य लाभ मिलेगा ही मेरी धरती मां का स्वास्थय भी ठीक रहेगा। 60/- ₹ महीने में बर्तन मांजने का झंझट खत्म, साबुन के पैसे बचेगें व तकरीबन तीस चालीस लीटर साफ मीठा पानी रोजाना बचेगा। खाना खा कर पत्तल को खेत में या अपनी बगीची में डाल दूंगा, बगीचे में खाद नहीं डालनी पड़ेगी। सबसे बड़ी बात मेरे इस कदम से किसी गरीब का रोजगार मिलेगा, किन्हीं हाथों को काम मिलेगा। एक बैल भी ले आया हूँ और कोशिश में लगा हूँ कि hp ( होर्सपावर) की जगह बलराम बैल की पावर का सदुपयोग कर सकूँ।
आप कब असभ्य व अविकसित होना शुरु हो रहें हैं??? या आपको अभी और पेड़ काट के और विकास कर के बीमार होना है???
आप के जवाब के इन्तजार में गोबर से वैदिक प्लास्टर इस लिए बणाता ताकी तुम्हारा घर दफ्तर ठंडा रहे।
अणपढ़ जाटः- डॉ. शिव दर्शन मलिक
वैदिक भवन रोहतक (हरियाणा)
9812054982