‘जोधा अकबर’ में अकबर का चरित्र देखकर तो मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र भी फिका सा लगता है
by India Against Congress
सबसे पहले ऊपर दिये गये दोनों राजाओं का संक्षिप्त परिचय करतें हैं इब्राहीम लोदी कौन था? इब्राहीम लोदी एक मुस्लिम घुसपैठिया था जिसने मेवाड़ पर आक्रमण किया था और राणा सांगा के हाथों पराजित हुआ था। इब्राहीम लोदी के बाप यानी सिकन्दर लोदी ने कुरुक्षेत्र के पवित्र तालाब में हिन्दुओं के डुबकी लगाने पर रोक लगाई थी, और हिमाचल में ज्वालामुखी मन्दिर को ढहा दिया था, उसने बोधन पंडित की भी हत्या करवा दी थी, क्योंकि पंडित ने कहा था कि सभी धर्म समान हैं। इब्राहीम लोदी का दादा बहोल लोदी अफगानिस्तान से आया था और उसने दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। ऐसे महान(?) वंश के इब्राहीम लोदी की कब्र के रखरखाव और मरम्मत के लिये केन्द्र और हरियाणा सरकार ने गत वर्ष 25 लाख रुपये स्वीकृत किये हैं, जबकि रेवाड़ी स्थित हेमू के स्मारक पर एक मस्जिद का अतिक्रमण हो रहा है।
अब जानते हैं राजा हेमू (1501-1556) के बारे में “राजा हेमू” जिनका पूरा नाम हेमचन्द्र था, हरियाणा के रेवाड़ी से थे। इतिहासकार केके भारद्वाज के शब्दों में “हेमू मध्यकालीन भारत का ‘नेपोलियन’ कहा जा सकता है”, यहाँ तक कि विन्सेंट स्मिथ जिन्होंने समुद्रगुप्त को भी नेपोलियन कहा था, मानते थे कि हेमू को भी भारतीय नेपोलियन कहा जाना चाहिये। हुमायूं के पतन के बाद हेमचन्द्र ने बंगाल से युद्ध जीतना शुरु किया और बिहार, मध्यप्रदेश होते हुए आगरा तक पहुँच गया। हेमचन्द्र ने लगातार 22 युद्ध लड़े और सभी जीते। आगरा को जीतने के बाद हेमचन्द्र ने दिल्ली कूच किया और 6 अक्टूबर 1556 को दिल्ली भी जीत लिया था, तथा उन्हें दिल्ली के पुराने किले में “विक्रमादित्य” के खिताब से नवाजा गया। 5 नवम्बर 1556 को अकबर के सेनापति बैरम खान की विशाल सेना से पानीपत में उसका युद्ध हुआ। अकबर और बैरम खान युद्ध भूमि से आठ किमी दूर थे और एक समय जब हेमचन्द्र जीतने की कगार पर आ गया था, दुर्भाग्य से आँख में तीर लगने की वजह से वह हाथी से गिर गया और उसकी सेना में भगदड़ मच गई, जिससे उस युद्ध में वह पराजित हो गये। अचेतावस्था में शाह कुलीन खान उसे अकबर और बैरम खान के पास ले गया, अकबर जो कि पहले ही “गाजी” के खिताब हेतु लालायित था, उसने हेमू का सिर धड़ से अलग करवा दिया और कटा हुआ सिर काबुल भेज दिया, जबकि हेमू का धड़ दिल्ली के पुराने किले पर लटकवा दिया हेमू की मौत के बाद अकबर ने हिन्दुओं का कत्लेआम मचाया और मानव खोपड़ियों की मीनारें बनीं, जिसका उल्लेख पीटर मुंडी ने भी अपने सफरनामे में किया है (ये है “अकबर महान” की कुछ करतूतों में से एक)।
सेकुलर गद्दार हिन्दू "आशुतोष गोवारीकर" की फिल्म ‘जोधा अकबर’ में अकबर का चरित्र देखकर तो मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र भी फिका सा लगता है... फिल्म मे रितिक को अकबर के रूप मे बेहद शालिन और सुंदर दिखाया गया है जबकि अकबर एक कुरूप सा दिखने वाला 14 वर्ष की उम्र से बलात्कार करने वाला अत्यंत क्रूर और दुराचारी शासक था
प्रेम, निर्माण कार्य का इस्लाम से दूर दूर तक कोई नाता नहीं है ...
जिस अजमेर की दरगाह पर हिन्दू हरामखोरी का चोला पहनकर माथा टेकने जाते है उन्हे यह भी भान नहीं होगा की उसी मोइनूद्दीन चिस्ती ने अकबर को राणा प्रताप और हिन्दू शासको को किस तरह नेस्ट नाबूत करना है उसके गुर सिखाये थे और तो और इसी अजमेर की दरगाह के ऊपर उस छितौद किल्ले का दुर्ग दरवाजा पड़ा है जिस दुर्ग मे अकबर ने 28 हजार किसानो का कत्लेआम किया था दो ही दिन मे जो औरते मिली (अर्ध जली हालत मे से ) उन्हे भी अपने सैनिको की हवश पूर्ति के लिए हराम मे रक्खा क्या आपने जोधा अकबर मे हराम देखा है ? अकबर के हराम मे 4 हजार हिन्दू औरते थी ...
एक तरह से देखा जाये तो हेमचन्द्र को अन्तिम भारतीय राजा कह सकते हैं, जिसके बाद भारत में मुगल साम्राज्य और मजबूत हुआ। ऐसे भारतीय योद्धा राजा को उपेक्षित करके विदेश से आये मुस्लिम आक्रांता को महिमामण्डित करने का काम इतिहास की पुस्तकों में भी किया जाता है। भारत के हिन्दू राजाओं और योद्धाओं को न तो उचित स्थान मिला है न ही उचित सम्मान। मराठा पेशवा का साम्राज्य कर्नाटक से अटक (काबुल) तक जा पहुँचा था पानीपत की तीसरी लड़ाई में सदाशिवराव पेशवा, अहमदशाह अब्दाली के हाथों पराजित हुए थे। भारत में कितनी इमारतें या सड़कें सदाशिवराव पेशवा के नाम पर हैं? कितने स्टेडियम, नहरें और सड़कों का नाम हेमचन्द्र की याद में रखा गया है? जबकि बाबर, हुमायूँ के नाम पर सड़कें तथा औरंगजेब के नाम पर शहर भी मिल जायेंगे तथा इब्राहीम लोदी की कब्र के रखरखाव के लिये 25 लाख की स्वीकृति? धर्मनिरपेक्षता नहीं विशुद्ध “शर्मनिरपेक्षता” है ये।
धर्मनिरपेक्ष(?) सरकारों और वामपंथी इतिहासकारों का यह रवैया शर्मनाक तो है ही, देश के नौनिहालों का आत्म-सम्मान गिराने की एक साजिश भी है। जिन योद्धाओं ने विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ बहादुरी से युद्ध लड़े और देश के एक बड़े हिस्से में अपना राज्य स्थापित किया उनका सम्मानजनक उल्लेख न करना, उनके बारे में विस्तार से बच्चों को न पढ़ाना, उन पर गर्व न करना एक विकृत समाज के लक्षण हैं, और यह काम कांग्रेस और वामपंथियों ने बखूबी किया है।
इतिहास की दो महत्वपूर्ण घटनायें यदि न हुई होतीं तो शायद भारत का इतिहास कुछ और ही होता 1) यदि राजा पृथ्वीराज चैहान सदाशयता दिखाते हुए मुहम्मद गोरी को जिन्दा न छोड़ते (जिन्दा छोड़ने के अगले ही साल 1192 में वह फिर वापस दोगुनी शक्ति से आया और चैहान को हराया), 2) यदि हेमचन्द्र पानीपत का युद्ध न हारता तो अकबर को यहाँ से भागना पड़ता (सन् 1556) (इतिहास से सबक न सीखने की हिन्दू परम्परा को निभाते हुए हम भी कई आतंकवादियों को छोड़ चुके हैं और अफजल अभी भी को जिन्दा रखा है)। फिर भी बाहर से आये हुए आक्रांताओं के गुणगान करना और यहाँ के राजाओं को हास्यास्पद और विकृत रूप में पेश करना वामपंथी “बुद्धिजीवियों” का पसन्दीदा खेल है। किसी ने सही ही कहा है कि “इतिहास बनाये नहीं जाते बल्कि इतिहास ‘लिखे’ जाते हैं, और वह भी अपने मुताबिक”, ताकि आने वाली पीढ़ियों तक सच्चाई कभी न पहुँच सके इस काम में वामपंथी इतिहासकार माहिर हैं, जबकि कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण में इसीलिये अकबर और औरंगजेब का गुणगान करने वाले लोग भारत में अक्सर मिल ही जाते हैं तथा शिवाजी की बात करना “साम्प्रदायिकता” की श्रेणी में आता है
रवि शंकर यादव
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