बुधवार, जून 27, 2018

वीर सावरकर जीवन अंश

Arya Veer Sawarkar देश की आजादी के लिए असंख्य वीरों ने असीम त्याग एवं बलिदान किए। उन्होंने अंग्रेजी सरकार के जुल्म एवं अत्याचार सहे। भूखे-प्यासे रहकर स्वतंत्रता के लिए निरन्तर अथक संघर्ष किया। देश की आजादी का दृढ़ संकल्प लेने वाले देशभक्तों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। ऐसे ही महान देशभक्तों में से एक सशस्त्र क्रांति के अग्रदूत वीर सावरकर थे, जिनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था। इनका जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले में भगूर नामक गाँव में दामोदर पंत के घर राधाबाई की कोख से हुआ था। उनका मन बचपन से ही पढ़ाई मंे रम गया था। उन्हंे त्यांत्या राव के उपनाम से भी पुकारा जाता था। वीर सावरकर ने वर्ष 1901 में शिवाजी हाईस्कूल नासिक से मैट्रिक की परीक्षा पास की। फर्गयूसन कॉलेज मंे पढ़ते हुए वे राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत भाषण देते थे। वीर सावरकर ने बचपन में ही प्रतिज्ञा कर ली थी कि अपने देश को पुनः स्वतंत्रता दिलवाने के लिए सशस्त्र क्रांति की पताका फहराएंगे। सावरकर छोटी उम्र से ही देशभक्ति से भरे लेख एवं कविताएं लिखते थे। 6 जून, 1906 को सावरकर कानून में बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए वे लन्दन के लिए रवाना हुए। यहां पर आते ही उन्होंने हिन्दुस्तानी छात्रों से सम्पर्क साधना शुरू कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने जर्मनी के तानाशाह मैजिनी की आत्मकथा का मराठी में अनुवाद करना शुरू कर दिया। लन्दन में रहते हुए वे लाला हरदयाल और मदन लाल ढ़ींगरा के अलावा वी.वी.एस. अय्यर, डब्लू.बी.फड़के, सुखसागर दत्त, पाण्डुरंग बापट, निरंजन पाल, आशिफ अली, एम.पी.टी. आचार्य, नहुक चतुर्भुज, सिकन्दर हयात, ज्ञानचन्द वर्मा, विरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय, हेमचन्द दास आदि युवा हिन्दुस्तानियों के सम्पर्क में आए। इन युवा हिन्दुस्तानियों को अपने जोशिले भाषणों के जरिए क्रांतिकारी पथ पर अग्रसर करने के प्रयास में सावरकर कामयाब रहे। उन्होनंे मैजिनी की आत्मकथा के मराठी अनुवाद के निष्कर्ष रूप में एक प्रस्तावना तैयार की, जिसका मूलभाव था, ‘‘…राष्ट्र कभी नहीं मरता। परमात्मा ने मानव को स्वतंत्र रहने के लिए ही पैदा किया है, गुलाम बनकर रहने के लिए नहीं। ये तथ्य सुनिश्चित है कि जब दृढ़ संकल्प लोगे तभी तुम्हारा देश स्वतंत्र हो जाएगा।’’ इस प्रेरणादायक प्रस्तावना को पुस्तक रूप में प्रकाशित करवाकर देश के क्रांतिकारियों के बीच बांटा गया। भारी संख्या में युवाओं ने इसे कंठस्थ कर लिया। अंग्रेज सरकार को जब इस घटना की भनक लगी तो आनन-फानन में उसने इस पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगा दिया इसी बीच सावरकर ने अपने एक साथी बापट को रूसी क्रांतिकारी साथी से बम बनाने की विधि सीखने के लिए प्रेरित किया। काफी प्रयासों के बाद बापट अपने जानकार रूसी क्रांतिकारी से बम बनाने का मैनुअल हासिल करने में कामयाब हो गए। सावरकर ने इस मैनुअल को पुस्तक रूप में प्रकाशित करवाकर भारत के क्रांतिकारियों तक पहुंचावाई, ताकि देशभर में एक साथ बम विस्फोट करके अंग्रेजी शासन का तख्ता पलट किया जा सके। इसी बीच सावरकर ने जर्मनी के स्टुअर्ट में दुनिया के सोशलिस्टों की एक बड़ी कांफ्रेंस हुई, जिसमें सभी देशों के झण्डे फहराए गए। भारत की तरफ से मैडम कामा ने सावरकर द्वारा तैयार भारतीय झण्डा फहराया। इस झण्डे में सभी आठ प्रान्तों के प्रतीक कमल पुष्प, सूर्य, चांद और बीच में ‘वन्देमातरम’ अंकित था। इसी दौरान उन्होंने सन् 1857 की क्रांति पर आधारित पुस्तक ‘1857 का सम्पूर्ण सत्य’ लिखी। जब अंग्रेजों को इसकी भनक लगी तो उन्होंने इस पुस्तक को प्रकाशित होने से पूर्व ही प्रतिबन्धित कर दिया। जब सावरकर लन्दन में थे तो भारत में उनके परिवार पर जुल्मों का दौर जारी हो चुका था। उनके पुत्र प्रभाकर की मौत हो गई थी। देशभक्ति की कविताएं प्रकाशित करवाने और अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध जन-विद्रोह भड़काने के आरोप में उनके भाई को गिरफ्तार करके अण्डेमान जेल में भेज दिया गया था। नासिक जैक्सन हत्या केस में सावरकर के साथियों को पकड़ लिया गया था और उन्हें फांसी पर लटकाने के लिए तैयारी की जा रही थी। सावरकर की भाभी व पत्नी को अंग्रेजी सरकार ने बेघर कर दिया था। अंग्रेजी सरकार ने लन्दन और हिन्दुस्तान में दोनों जगह सावरकर की गिरफ्तारी के वारन्ट भी जारी कर दिए। इसके बावजूद सावरकर ने स्वदेश लौटने का संकल्प लिया। इसी बीच 1 जुलाई, 1909 को युवा क्रांतिकारी मदन लाल धींगड़ा ने आजादी के रास्ते में कर्जन वाइली को रोड़ा समझा और उन्हें रास्ते से हटाने के लिए गोली मारकर मौत की नींद सुला दिया। अंग्रेजी सरकार बौखला उठी। आनन फानन में मदन लाल को गिरफ्तार करके फांसी की सजा सुना दी। उधर कुछ भारतीय नेताओं ने एक बैठक कैकस्टन हॉल में बैठक बुलाकर धींगड़ा के खिलाफ सर्वसम्मति से निन्दा प्रस्ताव पास करने की घोषणा की गई। इस बैठक में पहुंचकर वीर सावरकर ने धींगड़ा के पक्ष की जबरदस्त पैरवी की और उनके खिलाफ निन्दा प्रस्ताव पास नहीं होने दिया। जब वीर सावरकर 13 मई, 1910 की रात्रि को पैरिस से लन्दन पहुंचे तो रेलवे स्टेशन उतरते ही पुलिस ने उन्हें तुरन्त गिरफ्तार कर लिया। अदालत ने उनके मुकदमे को भारत में शिफ्ट कर दिया। जब सावरकर को 8 जुलाई, 1910 को एस.एस. मोरिया नामक समुद्री जहाज से भारत लाया जा रहा था तो वे रास्ते में जहाज के सीवर के रास्ते से समुद्र में कूद पड़े और तैरते हुए फ्रांस के दक्षिणी तट तक जा पहुंचे। लेकिन, बाद में अंग्रेज पुलिस ने उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया और उन्हें बम्बई लाया गया। यहां पर तीन जजों की विशेष अदालत गठित की गई। इसमें अपराधी की पक्ष जानने का कोई प्रावधान नहीं था। इस अदालत मंे सावरकर को ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध शस्त्र बनाने की विधि की पुस्तक प्रकाशित करवाने का दोषी ठहराकर 24 दिसम्बर, सन् 1910 को 25 साल कठोर काले पानी की सजा सुनाई। इसके साथ ही दूसरे मुकदमें में नासिक के कलक्टर मिस्टर जैक्शन की हत्या के लिए साथियों को भड़काने का आरोपी ठहराकर अलग से 25 साल के काला पानी की सजा सुनाई गई। इस तरह सावरकर को दो अलग-अलग मुकदमों में दोषी ठहराकर दो-दो आजन्मों के कारावासों की सजा के रूप में कुल 50 साल काले पानी की सजा सुनाई गई। ऐसा अनूठा मामला विश्व के इतिहास में पहली बार हुआ, जब किसी को इस तरह की सजा दी गई। 7 अपै्रल, 1911 को उन्हें काले पानी भेज दिया गया। वीर सावरकर ने 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक अंडमान की सेल्युलर जेल में बिताए। इस दौरान उन्होंने जेलर डेविड के कहर का सामना करना पड़ा। कैदियांे को दुषित पानी, सड़ा-गला खाना और भयंकर अमानवीय यातनाएं दी जाती थीं। इन सबके विरूद्ध कैदियों के साथ मिलकर सावरकर ने भूख हड़ताल की और सावरकर ने किसी तरह पत्र के जरिए कमिश्नर को अण्डेमान जेल में कैदियों पर हो रहे अत्याचार से अवगत करवाया। परिणामस्वरूप कार्यवाही हुई और जेलर डेविड को वहां से हटा दिया गया। इसके साथ ही कैदियांे की सभी शर्तों को भी मान लिया गया। अण्डेमान जेल में रहते हुए सावरकर कोयले से जेल की दीवारों पर देशभक्ति से परिपूर्ण कविताएं लिखते रहते थे। देशभर में सावरकर की रिहाई के लिए भारी आन्दोलन चला और उनकी रिहाई के मांग पत्र पर 75000 लोगों ने हस्ताक्षर किए। वर्ष 1921 में देशभर में भारी जन-आक्रोश के चलते उन्हें अंडेमान से वापिस भारत भेजा गया और उन्हें रत्नागिरी सैन्ट्रल जेल में रखा गया। इस जेल में वे तीन वर्ष तक रहे। जेल में रहते हुए उन्होंने ‘हिन्दुत्व’ पर शोध ग्रन्थ तैयार किया। इसी दौरान 7 जनवरी 1925 को उनके घर पुत्री प्रभात और 17 मार्च, 1928 को पुत्र प्रभात का जन्म हुआ। देशभर में सावरकर की रिहाई को लेकर चले आन्दोलनांे के बाद अंग्रेजी सरकार ने उन्हें इन शर्तों के साथ सावरकर को रिहा कर दिया कि वे न तो रत्नागिरी से बाहर जाएंगे और न ही किसी तरह की राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेंगे। जेल से रिहा होने के बाद देश के बड़े-बड़े नेता और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तक उनसे मिलने आए। मार्च, 1925 में उनके मिलने के लिए संघ के मुखिया डा. हैडगवार और 22 जून, 1941 को नेताजी सुभाषचन्द्र बोस उनसे मिलन के लिए आए। मुहम्मद अली जिन्हा सरीखे मुस्लिम नेता सावरकर को कट्टर हिन्दु नेता समझते थे और सावरकर इस पर गर्व करते थे। 10 मई, 1937 को अंग्रेजी सरकार ने सावरकर पर लगे सभी तरह के प्रतिबन्धों को हटा लिया। अब सावरकर को रत्नागिरी से बाहर जाने और हर तरह की राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने की पूर्ण आजादी थी। सावरकर ने एक बार फिर देश की आजादी के लिए सशस्त्र संघर्ष के लिए युवा क्रांतिकारियों को तैयार करना शुरू कर दिया। इसके साथ ही द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उन्होंने भारतीय नौजवानांे को अंग्रेजी सेना में अधिक से अधिक भर्ती होने के लिए प्रेरित किया ताकि समय आने पर विद्रोह करके अंग्रेजी सरकार का तख्ता पलटा जा सके। वीर सावरकर ने पूना में वर्ष 1940 में ‘अभिनव भारत’ नाम के क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की। इस संगठन का उद्देश्य समय पड़ने पर सशस्त्र क्रांति के जरिए स्वतंत्रता हासिल करना था। इसी के साथ उन्होंने ‘मित्र मेला’ नाम की एक गुप्त संस्था भी बनाई। फरवरी, 1931 में वीर सावरकर के प्रयासों से बम्बई में पतित पावन मन्दिर की स्थापना हुई। यह मन्दिर हर जाति, धर्म व वर्ग के लोगों के लिए खुला रहता था। सावरकर ने देश से जातिपाति, धर्म-मजहब के भेदभाव मिटाने के लिए राष्ट्रव्यापी जागरूकता आन्दोलन चलाए। देशभक्तों के अटूट स्वतंत्रता संघर्ष की बदौलत 15 अगस्त, 1947 को देश को आजादी नसीब हुई। लेकिन, देश का विभाजन हो गया। सावरकर इस विभाजन के बिल्कुल विरूद्ध थे। वे लाख प्रयास करने के बावजूद इस विभाजन की त्रासदी को रोक नहीं पाए। वीर सावरकर कई मामलों में अन्य क्रांतिकारियों से अलग मिसाल बने। वे पहले ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने ब्रिटिश राज्य के केन्द्र लंदन में उसके विरूद्ध आंदोलन किया। उन्होंने ही सर्वप्रथम वर्ष 1906 में बंगाल विभाजन के विरूद्ध ‘स्वदेशी’ का नारा लगाया और विदेशी कपड़ों की होली जलाई। वे पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिनके विचारों से खफा होकर अंग्रेजी सरकार ने उनकीं बैरिस्टर की डिग्री छीन ली थी। वे पूर्ण स्वराज्य की मांग करने वाले पहले भारतीय क्रांतिकारी नेता बने। वे ऐसे पहले लेखक बने जिन्होंने 1857 की क्रांति को ‘स्वाधीनता संग्राम’ सिद्ध करते हुए एक हजार पृष्ठों की पुस्तक लिखी और जिसे अंग्रेजी साम्राज्य ने उस पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। सावरकर दुनिया के पहले ऐसे राजनीतिक कैदी बने, जिस पर हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में केस चलाया गया। उन्होंने ही सर्वप्रथम वर्ष 1907 में भारतीय झण्डा तैयार करवाया, जिसे अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम कामा ने फहराया था। वे दुनिया के ऐसे पहले कलमकार भी बने जिनकी पुस्तक को प्रकाशित होने से पूर्व ही प्रतिबंधित कर दिया गया। वे ऐसे पहले क्रांतिकारी भी बने जिन्हें एक ही समय मंे दो अलग-अलग मामलों में 25-25 वर्ष की कठोर काले पानी की सजा सुनाई गई। इस तरह की अनेक विशिष्ट मिसालें वीर सावरकर के नाम दर्ज हुईं। वीर सावरकर एक महान क्रांतिकारी के साथ-साथ प्रखर वक्ता, दूरदृष्टा, भाषाविद, कवि, लेखक, कूटनीतिक, राजनेता, इतिहासकार और समाज सुधारक भी थे। वीर सावरकर ने अपने जीवनकाल में ‘भारतीय स्वातांत्रय युद्ध’, ‘मेरा आजीवन कारावास’, ‘अण्डमान की प्रतिध्वनियां’, ‘हिन्दुत्व’, ‘द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेस-1857’ जैसी कालजयी पुस्तकों की रचनाएं कीं। वीर सावरकर हिन्दू संगठनों के कई महत्वपूर्ण पदांे पर रहे और कई राष्ट्रीय कार्यक्रमों में मुख्य वक्ता भी बने। 8 अक्तूबर, 1959 को उन्हें पुणे विश्वविद्यालय ने डी.लिट. की उपाधि से नवाजा। 8 नवम्बर, 1963 को इनकीं पत्नी यमुनाबाईं चल बसीं। सितम्बर, 1966 में वे स्वयं भी भयंकर ज्वर का शिकार हो गए। इसके बाद दिनोंदिन उनके स्वास्थ्य में तेजी से गिरावट आती चली गई। 1 फरवरी, 1966 को सशस्त्र क्रांति के इस अग्रदूत ने मृत्युपर्यन्त उपवास करने का निर्णय ले लिया। अंत में यह हुतात्मा 26 फरवरी, 1966 के दिन मुम्बई में प्रातः दस बजे इस नश्वर संसार को हमेशा के लिए अलविदा हो गई। उन पर कई हिन्दी व मलयालम भाषा में फिल्में व वृतचित्र बनाए गए। उन्हीं की स्मृति में पोर्ट ब्लेयर विमान क्षेत्र का नाम वीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया। कुल मिलाकर वीर सावरकर ने जीवन भर देश की आजादी और उसके उत्थान के लिए अटूट संघर्ष किया और अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। देश के इस वीर अमर क्रांतिकारी का देश हमेशा ऋणी रहेगा। इस महान आत्मा को दिल की गहराईयों से कोटि-कोटि नमन। 

सोमवार, जून 25, 2018

इस हद तक पतन हो चुका है भिम सेवको का

एक ब्राह्मण-विरोधी बुजुर्ग अपने पड़ोसी # रशीद_खान को साथ बैठा के शराब पिलाता है... अपनी मासूम नतनी को चखना लाने का कहता है जब नतनी चखना ले के आती है तब रशीद खान की नजर उस मासूम कन्या पर पड़ती है... वो मासूम इस बात से अनजान बेखबर कि नाना जी के साथ बैठा अंकल आदमी नही मलेक्ष है जो कुछ देर बाद अपनी हवस बुझा के उसको मौत के घाट उतार देगा... मध्यरात्रि को जब मासूम के नाना को नींद आती है तब हवशी दरिंदा घर मे घुसकर उस मासूम को मुंह दबा कर उठा के ले जाता है और दुष्कर्म करने का प्रयास करता है, मासूम के चिल्लाने पर उसे गला घोंट कर मार देता है और फिर बलात्कार करता है... सोचने वाली बात है आज इस घटनाक्रम का पता पूरे राज्य पूरे देश को पता चल गया है, समाचार पत्र के मुख्यपृष्ठ पर बड़ी सी खबर छपी हुई है जिसके साथ दुष्कर्म हुआ वो # दलित कन्या थी जो चार दिन पहले ननिहाल आई थी..! ----ये था खबर का वो पहलु जो अखबारों ने छापा । असल कहानी ये थी ------ लड़की के भीमवादी नाना को हराम का खाने-पीने की आदत थी । उस दिन भी वो शराब रशीद खान ले कर आया था । क़र्ज़ काफी बढ़ चूका था , रशीद खान ने क़र्ज़ के पैसे मांगे । तो नाना ने नवासी की तरफ तिरछी नज़र से इशारा किया और टुन्न होने की एक्टिंग करते हुए , उससे नज़र फेर के लुढक गया । ये सिग्नल था रशीद खान के लिए , वो बच्ची को नोच रहा था और नाना हर चीख के साथ ये हिसाब लगा रहा था की कितना क़र्ज़ चुकता हुआ ? दलित-मुस्लिम सभी रेपकांडो में यही होता है ।
और भीम सेवक इतना होते हुए भी समझौता कर लेते हैं।
एक बुजुर्ग अपने पड़ोसी #रशीद_खान को साथ बैठा के शराब पिलाता है... अपनी मासूम नतनी को चखना लाने का कहता है जब नतनी चखना ले के आती है तब रशीद खान की नजर उस मासूम कन्या पर पड़ती है... वो मासूम इस बात से अनजान बेखबर कि नाना जी के साथ बैठा अंकल आदमी नही मलेक्ष है जो कुछ देर बाद अपनी हवस बुझा के उसको मौत के घाट उतार देगा... मध्यरात्रि को जब मासूम के नाना को नींद आती है तब हवशी दरिंदा घर मे घुसकर उस मासूम को मुंह दबा कर उठा के ले जाता है और दुष्कर्म करने का प्रयास करता है, मासूम के चिल्लाने पर उसे गला घोंट कर मार देता है और फिर बलात्कार करता है... सोचने वाली बात है आज इस घटनाक्रम का पता पूरे राज्य पूरे देश को पता चल गया है, समाचार पत्र के मुख्यपृष्ठ पर बड़ी सी खबर छपी हुई है जिसके साथ दुष्कर्म हुआ वो #दलित कन्या थी जो चार दिन पहले ननिहाल आई थी..! आसिफा को जस्टिस दिलाने की बात करने वाले, उसके फोटो की Dp लगाने, वाले जय भीम के साथ जय मीम का नारा बुलंद करने वाले सनातन धर्म प्रतीकों का अपमान करने वाले... अनाप शनाप गालियां बकने वाले दलित ठेकेदार अब कहां है?? अब क्यों वो इस मासूम कन्या के लिए उसके परिवार के न्याय के लिए आगे नहीं आ रहे?? जयभीम जय मीम के ठेकेदार बताए की दलित मासूम के साथ दरिंदगी कर के हत्या करने वाला दरिंदा कौन था..?? #डेल्टा_हत्याकांड_के_समय राहुल गांधी तक बाड़मेर आए थे वो भी एक दलित कन्या थी लेकिन इस मासूम के लिए राहुल गाँधी को तो छोड़िए क्षेत्रीय नेता तक के मुह से संवेदना भरे शब्द सुनने को नही मिल रहे... #धन्य हो तुम लोग जिनको सिर्फ सवर्णों और Obc में दुश्मन दिखता है लेकिन ऐसी घटनाओं पर जब मुस्लिम मुजरिम होता है तो हलक से एक शब्द तक नहीं निकलता... याद रखिए पेड़ की मजबूती उनकी जड़ों से होती है जो पेड़ जड़ों से कट गया उनको शाखाएं कभी नहीं बचा सकती..! #एक रहिए नेक रहिए मासूम के लिए न्याय मांगिए जय भीम जय मीम वाले फर्जी लोगों से बचिए...! #अगर आपको लगता है कि आसिफा और इस मासूम की जान की कीमत अलग अलग थी तो सो जाइए ठंढा पानी पीकर कल को कोई और दरिंदा किसी कन्या को शिकार बना देगा तब रोते रहना न्याय की भीख मांगते रहना...!! जय राम जी की............ #JusticeForMenka

सोमवार, जून 18, 2018

धर्म रक्षण सेवा राशि

*धर्म रक्षण सेवा राशि*
बिसाहड़ा-दादरी के अख़लाक़ के वध में अखिलेश यादव, आज़म ख़ाँ की सरकार के फँसाये हुए 18 निरपराध तरुण, मुज़फ़्फ़रनगर के इस्लामी दंगों के मुक़दमों में फँसाये गए सैकड़ों धर्मबंधु, बल्लभगढ़ के नरेश इत्यादि, रामगढ़-राँची के गौहत्यारों को रोकने के प्रयास में आजीवन कारावास से दंडित 12 वीर, मैहर में गौहत्या रोकने के समय आरोप में गिरफ़्तार 4 अत्यंत निर्धन गोंड वनवासी ..... गिनते जाइये मगर यह अनंत कथा चलती रहेगी।
धर्म के अनुरूप हम सब अपनी क्षमता से जीते हैं और धर्म का अपमान कोई करता है तो कभी-कभी समाज का पौरुष क्रोध बन कर अभिव्यक्त हो जाता है। ऐसे लगभग प्रत्येक अवसर पर यह देखने में आता है कि पौरुष व्यक्त करने वाले वीर राज्य, प्रशासन की प्रताणना झेलने के लिये अकेले पड़ जाते हैं। बरसों थाना, कचहरी के चक्कर लगाते हैं, जेल में एड़ियां रगड़ते हैं और इनका परिवार इनके पराक्रम की चपेट में बुरी तरह पिसता है। धर्म तथा राष्ट्र के लिये पौरुष व्यक्त करने वाला वीर बच्चे की फ़ीस, बीबी की रोटी, मकान का किराये के लिये जेल में रहते हुए असहाय सिसकता है।
सोशल मीडिया के कारण एक बड़ा परिवर्तन आया है कि समाज में राष्ट्र और धर्म के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। आप लिखते, बोलते, शेयर करते हैं। आपके कहे, लिखे, शेयर किये लेखों को लोग गंभीरता से लेते हैं। कृपया सोचिये कि क्या इतना पर्याप्त है ? सामान्य राष्ट्रवादी, समाज के लोग सोचते हैं कि राष्ट्र-धर्म की समस्याओं राज्य, राजनैतिक सत्ता करे। देश के पास थल सेना, नौ सेना, वायु सेना, पुलिस, BSF, CRPF, ITBP इत्यादि सभी बल मिला कर कुल सँख्या 20 लाख भी नहीं है और अराष्ट्रीय देशविरोधियों की संख्या 20 करोड़ से अधिक है। राज्य के बूते यह संघर्ष संभव ही नहीं है। यह गली-मुहल्लों का संघर्ष है और इससे समाज को, राष्ट्रवादियों को ही जूझना है। अब एक प्रश्न स्वयं से पूछिए। जब तक समाज अपने वीरों के साथ खड़ा नहीं होगा, क्या वीरता का प्रसार हो पायेगा ? बिना वीरता के राष्ट्र और धर्म की समस्याओं का समाधान हो सकता है ?
क्या हमारा कर्तव्य नहीं है कि पौरुष व्यक्त करने वाले वीरों को निराश न होने दें ? इनके परिवारों की न्यूनतम चिंता करें ? मेरा प्रस्ताव है कि समाज इन्हें प्रति वीर 1 लाख रुपया तुरन्तता से दे। ऐसे हर वीर के पीड़ित परिवार तक हम पहुँचेंगे मगर यह तब ही संभव है जब आप सब साथ आयें। इन पीड़ित वीरों की सेवा में हाथ बंटाइए। सहयोग के साथ कृपया ऐसी किसी भी घटना के समय विवरण से सूचित भी करें शर्त यही है कि वीरता अभिव्यक्त हुई हो। तनिक भी मन में मत लाइयेगा कि इस कार्य में सफलता नहीं मिल सकती। दो वर्ष पहले बिसाहड़ा-दादरी के निर्दोष तरुणों के लिये आप सब ही ने लगभग एक माह में उन्नीस लाख चौंसठ हज़ार रुपये संकलित करके दिये थे। इस समय की तात्कालिक आवश्यकता तो 17 लाख से कम की ही है जिसमें अभी तक अट्ठानवे हज़ार और पांच रुपये नक़द आ चुके हैं। जिसमें खाता खोलने के समय जमा कराये गए 5,000 घटाने पर तिरानवे हज़ार और पाँच रुपये मेरे पास हैं।
स्वभाविक है कि आप सब इस पोस्ट को शेयर करेंगे। निवेदन है कि ऐसा कृपया अपने योगदान संकल्प करने के बाद ही करें। इस हेतु अपनी वार्षिक आय का 1% या किसी भी माह की आय का केवल 10% देना पर्याप्त होगा। यह राष्ट्र के लिये ज़कात का राष्ट्रवादी रूप रहेगा। आश्वस्त रहें इसमें दिये गये योगदान का एक-एक पैसा राष्ट्र, धर्म के कार्य में पूरी ईमानदारी से लगेगा। इसका कोई चैक कभी भी सैल्फ़ का नहीं कटेगा। सारा पेमेंट पारदर्शी होगा। सारा हिसाब प्रामाणिक होगा और कई गम्भीर व्यक्तियों की दृष्टि में होगा फिर भी आप या कोई भी धर्म बंधु भी कभी भी हिसाब देखने-जाँचने के लिये पधार सकते हैं। अभी हम लोग आर्थिक सेवा करने के प्रयास में हैं अगर राष्ट्र ने पर्याप्त यशस्वी किया तो पूरी न्यायिक व्यवस्था खड़ी करने का संकल्प है।
बिसाहड़ा के 18 पीड़ित तरुणों की सेवा के संकलन के समय कई मित्रों ने नाम का उल्लेख करने से विरोध किया था अतः उनका आग्रह सिर-माथे रखते हैं। नक़द प्राप्त राशि, नगर और दिनाँक पोस्ट करेंगे। इससे कोई भी अपनी दी हुई राशि की स्थिति चैक कर पाएंगे। यह आग्रह है कि इस बार राशि अधिकतम बैंक में पहुंचे। 10 हज़ार या उससे अधिक धर्म रक्षण सेवा करने वाले बंधु कृपया अपना पैन नंबर उपलब्ध कराइयेगा। अपने मित्रों, सम्बन्धियों को भी प्रेरित कीजिये। आइये राष्ट्र, धर्म के प्रति अपने दायित्व का पालन किया जाए।
तुफ़ैल चतुर्वेदी
न्याय मंच का अकाउंट विवरण इस प्रकार है।
खाते का नाम:- न्याय मंच { NYAY MUNCH }
खाता नंबर:- 4660000100035832
IFSC CODE:- PUNB0466000 { PUNB के बाद ज़ीरो है }
पंजाब नेशनल बैंक, सैक्टर-12, नॉएडा

मेरा नाम नदीम है और ये रहा मेरा मोबाईल नंबर और पता. खुल कर बोलता हूँ कि गोली मरूंगा मोदी को

"मेरा नाम नदीम है और ये रहा मेरा मोबाईल नंबर और पता. खुल कर बोलता हूँ कि गोली मरूंगा मोदी को,
जिस में दम हो वो रोक ले".. चुनौती से सनसनी
हामिद अंसारी ने कुछ दिन पहले कहा था की भारत के मुसलमान डरे और सहमे हुए हैं और उसी के साथ एक बार फिर से हल्ला मचा था असहिष्णुता का ..
लेकिन ये जो घटना हुई है उसने हिला कर रख दिया है राष्ट्र को .
मामला गाजियाबाद का है और ये वही गाजियाबाद है जहाँ कुछ दिन पहले विक्रम एंक्लेव सब स्टेशन पर बिजली विभाग में संविदा पर कार्य करने वाले नाम के चरमपंथी विचारधारा के तौफीक द्वारा साहिबाबाद थानेके एक सब इंस्पेक्टर भरत सिंह परिहार पर हमला कर के उनकी वर्दी को फाड़ किया जाता है और उन्हें ही जान सेमार देने की धमकी दी जाती है ..
एक बार फिर से उसी गाजियाबाद में हुआ है एक ऐसा दुस्ससाहस जिसने हिला कर रख दिया देश के सहिष्णु समाज को और सतर्क कर दियाहै देश की सभी एजेंसियों को ...
ज्ञात हो की ये दुस्शाहस हुआ है भारत की राजधानी नई दिल्ली से सटे और एनसीआर कहे जाने वाले जिला गाजियाबाद में जहां के रहने वाले नदीम नाम के एक चरमपंथी ने सोशल मीडिया के फेसबुक प्लेटफार्म पर भरत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को सार्वजानिक रूप से गोली मारने की धमकी दी है.
इस मामले को भारतीय जनता पार्टी के लोनी के विधायक श्री नंदकिशोर गुर्जर की शिकायत पर आरोपी के खिलाफ FIR दर्ज कर ली गई है और उसकी तलाश शुरू कर दी गयी है .. अब तक मिली जानकारी के अनुसार नदीम ने भाजपा के विधायक नंदकिशोर गुर्जर के एक फेसबुक पोस्ट पर की गई टिप्पणी में यह दुस्साहसिक धमकी दी है....
नदीम खान नाम के किसी शख्स ने बीजेपी नेता के फेसबुक पोस्ट पर प्रधानमंत्री को जान से मारने की धमकी दी है.
इतना ही नहीं आरोपी नदीम खान ने अपनी अगली टिप्पणी में 'पाकिस्तान जिंदाबाद' भी लिखा है....
उसने एक और टिप्पणी की है, जिसमें अपना मोबाइल नंबर शेयर किया है और लिखा है कि वह किसी से नहीं डरता. नंदकिशोर गुर्जर ने बीते गुरुवार को अपने फेसबुक पेज पर सुबह 9:10 बजे साइकिल चलाते हुए अपनी दो तस्वीरें और दो वीडियो पोस्ट किए हैं. ...
उन्हें इन तस्वीरों के साथ सिर्फ 'गुड मॉर्निंग' भर लिखा है.
इसी पोस्ट पर आरोपी नदीम खान ने धमकी भरी टिप्पणी करते हुए प्रधानमंत्री को गोली मारने की बात लिखी है.
नदीम खान लिखता है, 'पाकिस्तान जिंदाबाद. जब चाहे मिल लेना,
डरता नहीं हूं किसी से.
किसी से पूछ भी लेना चाहे. अशोक विहार में रहता हूं.'
पूरे चार वर्ष हमारे परम आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी सिर्फ मुल्लों की अगुवाई किए और इस अगुवाई का नतीजा सैकड़ो उपचुनाव की हार रही है ।
अब भी हमारे भाजपा के नेतागण इन मुल्ले की अगुवाई का त्याग नही कर रहे है ।
तभी हमारे सैनिक , हम जनता और अब स्वयम मोदी जी को खुल्लमखुल्ला जान से मारने की धमकी दे डाली गई ?
भाजपा के सभी गणमान्य सदस्यगण वो पदाधिकारी अब भी वही बात बोले आप सब की ये नदिम नादन वो भटके हुए नोजवान है ?
जब हमारे सैनिकों को पत्थर बाजो द्वारा घायल किया जाता है तो ऐसे ही शब्दों जा प्रयोग आप सभी सेक्युलर नेतागण करते हैं ?
देख लीजिये आप सब कांग्रेस से भी ज्यादा गिर चुके है तभी तो आपके इतने जबरदस्त प्रयास के बाद भी इन मुल्लों ने आपको अपनाया तक नही ?
ऐसे समय मे हिंदू कही आपका और आपकी पार्टी का त्याग ना कर दे
लोटिये हिंदुत्व पर , हम हिन्दू ही आपके अपने है , एक कलाम का जाप कब तक करेंगे ?
पूरा इश्लाम धर्म ही आतंक है ?
आपको 2019 में हिंदू वोट ही जिताएगी
जागो हिंदू जागो
मुल्लों का बहिष्कार करो कोई भी कट्टर हिन्दू मुल्लों की मित्रता स्वीकार ना करे मैं करबध निवेदन करता हूं ।।

रविवार, जून 17, 2018

बाज़ारू इंडस्ट्री और न्यू वर्ल्ड आर्डर

# पोर्न_industry
ये victorians ने शुरू किया था.... हां वो ही राजपरिवार वाले... बाद में पूरी दुनिया को brothels + strip club दे दिये. - - - भारत में अंग्रेजो ने ही sonagachi - Bengal (Asia's second largest red light) बसाया था.
... दुनिया का 85% Internet porn Chatsworth, callifornia से आता है... ये Illuminati के weaponless war के मुख्य हथियारों में से है....
... समाज को Free porn उपलब्ध करा कर एक तीर से कई शिकार हो रहे हैं. आखिर ये Free कयो है? और attractive कैसे बनाया गया है? दरअसल, system को यौन-चकाचौंध से भरा गया है.. ये Industry जितनी मजेदार लगती है उतनी है नही. दूर के ढोल सुहावने होते हैं. यकीन करने के लिए pink cross foundation की chief " Shelly lubben" से पूछ लें....
... किसी भी देश को तोडने के लिये उसको बस नग्नता दे दो. फिर वहां का youth अपने बाप की भी नही सुनेगा...
... बाकी का काम मैकाले ब्रांड सिस्टम ने कर ही दिया है... अब गांजा + Marijuana + alcohol से youth बोर हो गया तो धंधा बैठ जायेगा. फिर क्या, drugs + free porn = non curable addiction वाला principle अपनाया...
... Hollywood के बाद bollywood सबसे बडा अड्डा है porn industry का. सबसे ज्यादा "drug-usage" porn industry मे होती है. सब interconnected हैं. Drug dealing = human trafficking या ये कहें कि कि दोनो एक दूसरे के पूरक. बिना नशे के porn movie बनती नही. American companies के condom को बिकवाने में बॉलिवुड का बहुत बड़ा योगदान है...
... दरअसल, Bollywood में Theory of relativity of time लग गया. मतलब कि जिस bollywood को 50-60s में घर घर जाकर भी कोई अभिनेत्री नही मिलती थी और 70-80s में kiss scene पर बवाल मच गया था, क्योंकि तब अभिनेत्रियों को बाजारू बोला जाता था, वो ही bollywood आज संभोग के scene बिना रोकटोक दिखाता है... मुंबई में Line लगी है मैकाले ब्रांड लडकियों की. Casting couch धडाधड होते हैं. जो जितना "compromise" करेगी उतनी बढिया movie-serial मिलेगा. लग गयी ना time-relativity Theory? समय समय की बात है.
... ईलू बाबा के Main principles में ये hypnotism type atmosphere भी है. जिससे -
1- भारत में नग्नता + rape % बढेगा. (जैसा ईलू ने
misconception फैलाया था अफ्रीका में कि sex
with virgins = aids curable.
2- drugs जो दिल्ली-मुंबई के अमीरजादे नोट जलाकर
सूंघते हैं, वो हर नुक्कड़ पर बिकेगा.
3- भयंकर सामाजिक पतन होगा.
4- ईलू का बनाया हुआ HIV-AIDS का graph बहुत
ऊपर जायेगा.
5- Aids की सालों से बन रही महंगी दवाइयों का यहां
use होगा और viagra तो normal बिकेगी kit Kat
की तरह.
6- जैसा कि पहले मैने बहुत बार कहा है war
(weapons) + virus (medicine) =
illuminati's economy.
8- मलेच्छों के झुंड में honey Singh और Sunny
Leon का नाम बहुत ऊपर है.
9- बालीवुडिया वेश्याओं की लौटरी लग गयी है ईलू बाबा
की किरपा से.
10- सस्ते मोबाइल + Free porn = conspiracy है
बहुत बडी.
मोदी ने झाडू तो उठा लिया लेकिन कुछ प्रतिशत ही साफ किए. साफ करना है तो देश से porn industry+ slaughter house को साफ करो, वह भी पूरी तरह से..
ये सडकें साफ करने से क्या देश चलेगा?.. लेकिन ये सफाई इनके "आका" नही होने देंगे....
दो साल पहले हमारे देश की चूतिया पब्लिक sex education के support में थी. जिसमें "आका" का शासन नही है जैसे North Korea में, वहां punishment "मौत" है porn देखने का, बनाना तो दूर की बात है. यहां भी कुछ चूतियो को Democracy चाहिये.
याद रखना,
Maclauy educational system + illuminati porn industry = biggest threat है भारत के भविष्य के लिए.
वंदेमातरम

बुधवार, जून 13, 2018

हिन्दू व्यवसाय की दुर्गति

मदन मोहन तिवारी
खान्ग्रेसियों और उसके पैसों से पैदा किए हुए नमाजवादियों दलितवादियों नेताओं ने हिन्दू नाई से कहा
ब्राह्मण जनसंख्या में इतने कम हैं
पर सबसे अधिक सत्ता के मजे
यही ले रहे हैं
तुमको सदियों सदियों तक नाई बनाकर रखना चाहते हैं
मत करो ये काम
बच्चों को तो पढ़ाओ लिखाओ
सरकारी नौकरी दिलवाओ
और सुनो
जाति प्रमाण पत्र बनवा लो
खान्ग्रेस तुमको OBC में जोड़ देगी
आरक्षण दे देगी
मौज करो
इन ब्राह्मणों पंडितों के चक्कर में मत फंसो
हिन्दू नाई ने
आरक्षण मिलेगा
सरकारी नौकरी मिलेगी
इसलिए दुकान बंद कर दी
शहर चला गया
अपना बड़ा सा घर छोड़ा
किराए पर एक कमरे में गुजारा किया
बच्चों को गली के अंग्रेजी स्कूल में डाला
जब बच्चे जॉनी जॉनी यस पापा गाते थे
हिन्दू नाई सोचता था
बच्चे कम से कम IAS तो कर ही जाएँगे
उसने एक फैक्ट्री में 7000 में गार्ड की नौकरी कर ली
जब जब खान्ग्रेसियों और नमाज़वादी नेताओं ने बुलाया
धरने प्रदर्शन आंदोलन में गया भी
सरकारी नौकरी कितने नाईयों लुहारों बढ़इयों धोबियों को मिल सकेगी
बेटे बेरोजगार घूमने लगे तो घर में झगड़ा बढ़ने लगा
जो भी हो
20 साल बीत गए
बच्चे अब भी बेरोजगार थे
हिन्दू नाई से रात को सेक्यूरिटी गार्ड की नौकरी होती नहीं थी
नींद लग जाती थी
नौकरी छूट गयी
हिन्दू नाई वापस गाँव लौट आया
उसने फिर से अपनी बाल काटने की दुकान खोलनी चाही
पास के कस्बे में जाकर देखा
20 साल पहले 2 सैलून थे
वो भी हिन्दू नाईयों के
अब उसी कस्बे में 50 सैलून खुल चुके थे
और सारे के सारे सैलून मियों के थे
हिन्दू नाई ने रोजगार छोड़ा
मियों ने कब्ज़ा कर लिया
हिन्दू बढ़ई ने अपना काम छोड़ा
मिएँ बढ़ई ने बाजार पर कब्जा कर लिया
हिन्दू लुहार ने अपना काम छोड़ा
मियों ने वेल्डिंग की दुकानें खोल कर पूरा बाजार कब्ज़ा लिया
हिन्दू धोबी ने सरकारी नौकरी के चक्कर में कपड़े धोने छोड़े
गाँव के घर घर से परिचय टूटा
नाते टूटे
मिएँ धोबी ड्राई क्लीन और जीन्स की रंगाई में छा गए
हिन्दू SC ने जूते बनाने छोड़ दिए
आज अरबों रुपए का चमड़े मांस चर्बी हड्डी और सारा का सारा जूता बाजार मियों के कब्जे में है
मिएँ OBC और SC/ST के पेट पर लात मार रहे हैं
पंडितों का काम पूजा पाठ है
पुरोहिताई है
ये काम मिएँ कभी नहीं करेंगे
लिख लो
आरक्षण और सरकारी नौकरी के लालच में कितने लोगों को रोजगार मिला
करोड़ों युवा मैकाले सिस्टम में फंसकर एक डिग्री लेकर सड़क पर घूम रहे हैं
हम हिन्दुओं के पारंपरिक रोजगार इतने बुरे थे क्या
सोचिए जरा..!!

हाई प्रोफाइल सन्त भय्यूजी महाराज की आत्महत्या का डरावना सच

Sudhanshu Tak
हाई प्रोफाइल सन्त की आत्महत्या का डरावना सच :-
दुनिया को आध्यात्म का ज्ञान देने वाले हाई प्रोफाइल आध्यात्मिक गुरु , अरबपति और बेहद रसूखदार भय्यू महाराज ने जिंदगी से हार मानते हुए कल मौत की चादर ओढ़ ली । भय्यू महाराज ने इंदौर के सिल्वर स्प्रिंग स्थित अपने निवास पर दाईं कनपटी पर गोली मार आत्महत्या कर ली । जी सही सुना आपने "आत्महत्या" । और इसके पीछे का डरावना सच जानेंगे तो आश्चर्य चकित रह जाएंगे।
पहले जानते है भय्यू महाराज के बारे में । मध्यप्रदेश के शुजालपुर के जमींदार परिवार से ताल्लुक रखने वाले भैय्यू महाराज ने अपना करियर मॉडलिंग से शुरू किया था । किसी जमाने में वे सियाराम सूटिंग के कपड़ों की मॉडलिंग करते थे । उनका असली नाम उदय सिंह देशमुख था। बाद में वे गृहस्थ सन्त बन गए।भैय्यू महाराज के भक्तों की लिस्ट में पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, शिवसेना के उद्धव ठाकरे और मनसे के राज ठाकरे, आशा भोंसले, अनुराधा पौडवाल जैसे बड़े नाम शामिल रहे । भैय्यू महाराज तब ख़बरों में आए थे जब अन्ना हजारे अनशन पर बैठे थे और उन्होंने भैय्यू महाराज के हाथ से जूस पीकर अनशन तोड़ा था।नरेंद्र मोदी ने भी जब मुख्यमंत्री रहते सदभावना उपवास किया था, तब भी उन्होंने भय्यू महाराज के हाथों जूस पीकर अनशन समाप्त किया था । भय्यू महाराज की पहली पत्नी का नाम माधवी था जिनका पुणे में डेढ़ वर्ष पूर्व निधन हो गया था। माधवी से उनकी एक बेटी कुहू है, जो फिलहाल पुणे में पढ़ाई कर रही है। भय्यू महाराज ने गत वर्ष ही दूसरी शादी डॉक्टर आयुषी से की थी।
अब जानिए कि कैसे एक बेहद रसूखदार आदमी भी घर मे पत्नी के अत्याचार से पीड़ित हो सकता है। पीड़ित भी इतना कि आत्महत्या कर ले। तो भय्यूजी महाराज को पिछले साल संदेहास्पद परिस्थितियों में शिवपुरी निवासी पीएचडी धारी डॉ. आयुषी से शादी करनी पड़ी। बेहद खूबसूरत डॉ आयुषी ने शादी के कुछ ही दिनों में भय्यू महाराज के जीवन मे भूचाल ला दिया । पहली बार घर मे आते ही नवयौवना डॉ आयुषी ने सौतेली पुत्री से जोरदार झगड़ा किया । अंजाम यह हुआ कि भय्यू महाराज के पूजन स्थल से दीपक और सामान फेंक दिया गया ।
डॉ. आयुषी इस झगड़े से ज्यादा इस बात से दुखी हुई कि उनके पति ने उनका साथ नहीं दिया। इसके बाद घर मे रोजाना बवाल होने लगे।जब जब महाराज की बेटी पुणे से इंदौर आती घर रणक्षेत्र बन जाता।
डॉ. आयुषी ने शादी के कुछ समय बाद मकान का रंगरोगन करवाया। पुताई के दौरान उन्होंने कुहू की मां व भय्यू महाराज की पहली पत्नी माधवी की सारी तस्वीरें हटवा दीं। जब कुहू पूणे से घर आई और मां की तस्वीरें गायब देखी तो हंगामा कर दिया। डॉ. आयुषी और कुहू के बीच जमकर कहासुनी हुई। उस वक्त भी भय्यू महाराज बेटी के पक्ष में खड़े रहे। उन्होंने डॉ. आयुषी को समझाने की कोशिश की और कहा वह बेटी को कैसे डांट सकते हैं। इन दोनों घटनाओं से डॉ. आयुषी और गुस्सैल हो गई। अब वह भय्यू महाराज और उनके करीबी कर्मचारियों से भी सीधे लड़ने लगी थी। भय्यू महाराज बेटी और पत्नी के बीच फंस चुके थे। घर का हर कर्मचारी इस बात से भयभीत रहता था कि घर में किसी भी वक्त बवाल मच सकता है।
डॉ. आयुषी ने भय्यू महाराज के सामने अपने माता-पिता को साथ रखने का प्रस्ताव रख दिया। दबाव में भय्यू महाराज ने अपने घर के सामने ही बड़ा बंगला किराए पर लिया और डॉ. आयुषी के माता-पिता को ठहराया। जैसे ही कुहू को इस बारे में पता चला, उसने पिता से नाराजगी जताई। भय्यू महाराज ने बेटी को समझाने का प्रयास किया और कहा कि वह कुछ समय में सब कुछ ठीक कर देंगे। उन्होंने स्कीम-74 में 60 लाख रुपये का प्लॉट खरीद लिया है। वहां बड़ा बंगला बनाकर कुहू के साथ रहेंगे। कुहू ने उनकी बातों पर विश्वास करने से इन्कार कर दिया। भय्यू महाराज को हर वक्त यही लगता था कि पत्नी और बेटी में किसी भी वक्त हाथापाई हो सकती है। आश्रम के कर्मचारी और नौकर-नौकरानी भी गृह कलह से सहमे-सहमे रहते थे।
कल भी महाराज की बेटी कुहू करीब तीन महीने बाद इंदौर लौटी थी। गोली लगने की बात सुन वह सीधे बॉम्बे हॉस्पिटल पहुंची और पिता को देखा। पिता को खून से सना देख बदहवास हो गई। दोपहर में वह गुस्से में घर (सिल्वर स्प्रिंग) पहुंची और डॉ. आयुषी की तस्वीरों को फोड़ना शुरू कर दिया। उनके साथ मौजूद कांग्रेस की महिला नेता ने उसे संभाला और कमरे में लेकर गई। मां और बेटी में मारपीट न हो, इसके लिए दोनों को अलग रखा और उनके कमरों के बाहर महिला पुलिसकर्मियों को तैनात करना पड़ा।
अभी अभी सूचना मिली है कि भय्यू महाराज की पत्नी और बेटी दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ आरोप लगाते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस की है । आश्चर्य की बात यह है परिवार में अनेक सदस्यों के होने के बावजूद भय्यू महाराज ने अपने हस्तलिखित बयान में अपने सेवक विनायक को अपनी सारी संपत्ति का कस्टोडियन बनाने की बात कही है। जो भी हो भय्यू महाराज का जीवन दुःखद अध्याय के साथ समाप्त हो गया है।
हो सकता है कुछ वैचारिक विरोधी इसे महिलाओं के विरोध में कई गयी पोस्ट मान लेवे। लेकिन मैंने पूर्ण तथ्य रखे है।
मेरा सिर्फ इतना कहना है कि ताकत,पैसा और विचारो के अत्यधिक धनी भय्यू महाराज भी जब पारिवारिक महिलाओं के विवाद से डिप्रेशन में आ सकते है तो बाकी की क्या औकात है......
मस्त रहो व्यस्त रहो । भय्यू महाराज को विनम्र श्रद्धांजलि।
सादर
सुधांशु

मंगलवार, जून 12, 2018

राजीव गांधी की हत्या और अनकहे पहलू

Satish Chandra Mishra
# प्रधानमंत्री_की_हत्या_की_साज़िश_की_खबर_पर
# सोनिया_की_कांग्रेस_की_खिल्ली_ने_
# मुझे_चौंकाया_नहीं ।
21 मई 1991 की रात लगभग 9:40 पर तमिलनाडु के श्रीपेरम्बदूर में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या एक भयानक आत्मघाती बम विस्फोट के द्वारा कर दी गयी थी। आत्मघाती हमलावर का नाम धनु था और घटनास्थल पर रहकर हत्या की उस पूरी साज़िश को अंजाम देनेवाले आतंकी सरगना का नाम शिवरासन था। इतनी कहानी से तो लगभग पूरा देश परिचित है। लेकिन राजीव गांधी हत्याकांड के कुछ और सच भी थे। जो देश के सामने कभी सार्वजनिक नहीं हुए। कुछ लोगों को छोड़कर वह सच आजतक देश के सामने सार्वजनिक नहीं किये गए। उन सच्चाइयों की कोख से उपजे सवालों के जवाब ना खोजे गए, ना ही किसी और को खोजने दिया गया।
# पहला_सच
जिस श्रीपेरम्बदूर की चुनावी सभा में राजीव गांधी की हत्या हुई उस श्रीपेरम्बदूर की कांग्रेसी सांसद का नाम मार्गथम चन्द्रशेखर था और वही उस चुनावी सभा की मुख्य कर्ताधर्ता थी।
# दूसरा_सच
जिस आत्मघाती हमलावर धनु ने स्वयं को बम विस्फोट से उड़ाकर राजीव गांधी को मौत के घाट उतार दिया था। वह धनु श्रीलंका से भारत आकर तमिलनाडु में किसी और के घर में नहीं बल्कि मार्गथम चन्द्रशेखर के घर मे गेस्ट बनकर रह रही थी।
# तीसरा_सच
हाई सिक्योरिटी वाले जिस चुनावी सभा मे राजीव गांधी की हत्या हुई उस हाई सिक्योरिटी वाली चुनावी सभा तक मार्गथम चन्द्रशेखर की बेटी लता के साथ ही आत्मघाती हत्यारिन धनु पहुंची थी। लता बाद में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक भी बन गयी थी।
# चौथा_सच
जिस चुनावी सभा के मंच पर राजीव गांधी की हत्या हुई उस चुनावी सभा के आयोजन के लिए लिट्टे के आतंकी सरगना शिवरासन ने मार्गथम चन्द्रशेखर के बेटे ललित चन्द्रशेखर को 5 लाख रूपये दिए थे। ललित उसी श्रीपेरम्बदूर से ही कांग्रेस के टिकट पर विधायक का चुनाव लड़ रहा था। ललित की बीबी श्रीलंकाई थी और उसी के माध्यम से धनु मार्गथम चन्द्रशेखर के घर तक पहुंची थी।
ध्यान रखें कि जिस समय शिवरासन ने 5 लाख रुपये दिए थे उस समय देश में 10 ग्राम सोने की कीमत लगभग 3500 रुपये थी। अर्थात तब के 5 लाख आज के 50 लाख के बराबर थे। इतनी बड़ी रकम कोई व्यक्ति किसी अपरिचित अनजान या कम परिचित व्यक्ति से कभी नहीं लेता।
# पांचवा_सच
तमिलनाडु कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष वी राममूर्ति ने उस चुनावी सभा की कवरेज के लिए एक वीडियोग्राफर नियुक्त किया था जिसकी वीडियो फुटेज से यह पता चलता था कि हत्याकाण्ड से पहले धनु किन किन लोगों से घुलमिल कर बातें कर रही थी। वह वीडियो फुटेज उसके परिचितों की पहचान करा रही थी। वी राममूर्ति ने 22 मई को ही वह वीडियो हत्याकाण्ड की जांच के लिये आईबी के तत्कालीन चीफ एमके नारायणन को सौंप दिया था। जिसकी सूचना तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर को पत्र लिखकर भी दे दी गयी थी। लेकिन बाद में वह वीडियो गायब हो गया।
# छठा_सच
राजीव गांधी हत्याकांड के मुख्य जांच अधिकारी के.रागोथमन ने अपनी किताब Conspiracy to Kill Rajiv Gandhi: From the CBI Files. में बहुत साफ लिखा है कि हत्याकाण्ड की जांच के लिए बनी SIT के चीफ डी.कार्तिकेयन ने बाद में वी.राममूर्ति पर जबरदस्त दबाव डाला था कि वो वीडियो टेप देनेवाली बात पर ज्यादा जोर ना दे दें।
डी.कार्तिकेयन उस समय आईबी चीफ एमके नारायण के अधीन ही काम कर रहे थे। 2012 में एक इंटरव्यू में जब कार्तिकेयन से उस वीडियो के बारे में पूछा गया तो कार्तिकेयन ने साफ कह दिया था कि ऐसे किसी वीडियों की बात ही उन्हें याद नहीं।
# सातवां_सच
डी. कार्तिकेयन और एमके नारायणन ने मार्गथम चन्द्रशेखर और उसके परिवार के किसी भी सदस्य को गिरफ्तार कर उनसे कभी पूछताश ही नहीं की।
# आठवां_सच
इतने बड़े बम धमाके में उस चन्द्रशेखर परिवार के किसी सदस्य और किसी भी बड़े कांग्रेसी नेता को खरोंच तक नहीं आयी। जबकि रजीव जब मंच पर थे तब आयोजक उनके बिल्कुल निकट होने चाहिए थे लेकिन वो सब एक सुरक्षित दूरी पर रहे।
आखिर क्यों.?
# नौवां_सच
उस सर्वाधिक महत्वपूर्ण सबूत वाले वीडियो के गायब होने से अत्यन्त क्रोधित हुए थे 1992 में देश का प्रधानमंत्री बने पीवी नरसिम्हा राव। तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने 1992 में ही एमके नारायणन को आईबी चीफ के पद से हटाकर उनके खिलाफ आपराधिक केस दर्ज करने जांच करने का आदेश CBI को दिया था। लेकिन पीवी नरसिम्हा राव के पद से हटते ही वह केस खत्म हो गया था तथा यूपीए की सरकार में एमके नारायणन को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरीखा पद सौंप दिया गया था। उसके बाद यूपीए सरकार ने एमके नारायणन को बंगाल का गवर्नर बनाकर सम्मानित किया था।
के रागोथमन की किताब तथा श्रीलंका के एक अखबार में कई किस्तों में छपी राजीव हत्याकांड की जांच रिपोर्ट ऐसे कई अन्य तथ्यों से परिचित कराती है।
लेकिन उपरोक्त तथ्य ही मेरे लिए पर्याप्त हैं इसबात के लिए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या की साज़िश की खबर की यदि सोनिया की कांग्रेस खिल्ली उड़ा रही है तो उससे यही उम्मीद की भी जानी चाहिए।
Comments
इंदिरा गांधी राजीव गांधी और संजय गांधी इन तीनों की हत्याओं के पीछे भयंकर षडयंत्र इटली में बैठे ईसाई मठाधीशों द्वारा भारत की सत्ता को पिछले दरवाजे से कबजाने के लिए किया गया है सोनिया इस पूरे खेल में एक बड़ा मोहरा है बड़ा ही दीर्घकालिक सोच के साथ सोनिया को इंदिरा गांधी के परिवार में फिट किया गया उसके बाद धीरे-धीरे जो रास्ते में आता गया उसको समाप्त कर दिया गया

इस हत्याकांड के जीवित अपराधियो से 4 बार जेल में जाकर सोनिया गांधी मिली थीं और उनकी अनुशंसा पर अपराधियों को सुविधापूर्ण श्रेष्ठ श्रेणी मिली हुई थी जो कि बड़े राजनीतिक कैदियों को मामूली से सजा पर मिलता है।

एक महत्वपूर्ण तथ्य ये भी है कि राजीव गांधी की हत्या के बाद 7 वर्षों तक कांग्रेस और उसके समर्थन पर चलने वाली सरकारें रहीं लेकिन फिर भी जांच सही तरीके से नहीं हो पाई।
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शनिवार, जून 09, 2018

शरीर प्राण और चेतना...

शरीर प्राण और चेतना...
मानव अस्तित्व की ये तीनो फैकल्टी एक दूसरे से भिन्न हैं !! भिन्न का अर्थ यहां व्यघाती नही है अपितु स्वरूप और कर्म में भिन्न होना है...शरीर और आत्मा 2 ही भेद मानने वालों ने ही आत्मा के अस्तित्व के होने या न होने का विवाद उत्पन्न किया है !!
शरीर का स्वरूप भौतिक है और कर्म है धारण करना यह प्राण और चेतना दोनों का आश्रय स्थल है शरीर का अर्थ यहां अकेला मनुष्य शरीर नही अपितु हर तरह की बॉडी है चाहे वो किसी जानवर, पशु या पक्षी या कार या कोई निर्जीव वस्तु एक प्रकार का शरीर है ।।
प्राण का स्वरूप ऊर्जा या गति होता है ।। प्राण एक प्रकार का फ्यूल या ऊर्जा प्रदान करने वाला तत्व है जिस से गति या कर्म सम्भव होता है ।। प्राण जब तक शरीर मे न आये शरीर मृतप्राय है मात्र एक ढेला है भौतिक रुप से बना हुआ ।। प्राण ही वो मूल शक्ति है जो गति या कर्म को किसी शरीर या बॉडी में संभव बनाता है ..
तीसरा जो तत्व है वो है चेतना जो कि आत्मा का स्वरूप गुण है चेतना होना ही आत्मा के होने का प्रमाण है ।। आत्मरूप में चेतन होने का अर्थ गतिज होना नही अपितु बौद्धिक और स्वतंत्र होना है ।। गति देना प्राण का कार्य है आत्मा स्वतंत्रता देती है करने की न करने की चुनाव की आपके विवेक के अनुसार आपको फ्री होने की !! इसे ऐसे समझ सकते है कि एक कार में शरीर भी है और जब उसमे फ्यूल डाला जाता है तो वो गति भी करती है परन्तु.... उसकी गति उसकी मर्जी से नही है बल्कि उसके चालक की मर्जी से है और वो चालक मानुष्य है और यही आत्मा के अस्तित्व का प्रमाण है ।। चुनाव और कर्म की स्वतन्त्रता ही आत्मा को सिद्ध करती है वरना ऊर्जा यानी शक्ति और शरीर तो कार के पास भी है ......
इस डिबेट से ये तो सिद्ध होता है कि आत्मा का अस्तित्व है पर आत्मा की उत्पत्ति और विनाश के विषय मे कुछ पता नही चलता ।।
भाववादियों की बात करें तो उनके अनुसार आत्मा ही मूल तत्व है जो स्वतंत्र है और शरीर को आश्रयस्थल मानकर अपना कार्यव्यापार करती है और मृत्यु के बाद फिर कोई शरीर धारण करती है या स्वर्ग नरक या कयामत का दिन आदि कई प्रकार की थ्योरी है इस विषय मे !!
लेकिन भौतिकवादियों या विज्ञानवादियों की बात करें तो घोर आश्चर्य का विषय है भौतिकवादी मानते हैं कि ऊर्जा या प्राण ही उच्च स्तर पर आत्मा यानी चेतना बन जाता है चेतना या आत्मा कहीं बाहर से शरीर मे नही आती है.. जो इस बात पर विश्वास किया जाए तो इसमें कोई शक नही कि कल को कम्प्यूटर भी चेतनावान हो जाएं और मनुष्य के साथ उनका संघर्ष हो जैसे कि साइंस संभावना दर्शाता है रजनीकांत की एक फ़िल्म में ये दिखाने का प्रयास भी हुआ है ....और ये भी सम्भव है कि
# मनुष्य और पृथ्वी के #प्राणी उसी तरह के कम्प्यूटर्स है जिन्हें किसी मकसद से बनाया गया था और जिनकी चेतना विकसित हो गयी है आज!! इस विषय ओर बहुत से लेखकों और वैज्ञानिको ने लिखा है कि हमें बनाने वाले कोई और नही बल्कि कारोडो वर्ष पहले किसी अन्य ग्रह के एलियंस ने हमे बनाया था और वही हमारे भगवान हैं ।। यूट्यूब पर इस विषय पर हजारों वीडियो पड़े है जो सबूत के साथ इस रहस्य से पर्दा उठाते हैं ...और निकट भविष्य में इसी और वैज्ञानिको के प्रयोग हो रहे हैं ।। मनुष्य को किसी के द्वारा कम्प्यूटर्स के रूप में बनाया गया या उपयोग किया गया पर चेतना के विकास होने पर उसे छोड़ दिया गया...या हो सकता है आत्मा हमारा सॉफ्टवेयर है..?? विज्ञान की पीरियाडिक टेबल में पृथ्वी पर कुल 84 तत्व बताए गए है हो सकता है चेतना 85 वां तत्व हो जो पृथ्वी पर नही मिलता ??

जानेमाने पत्रकार डॉ. सैफुद्दीन जिलानी के साथ 30 जनवरी 1971 को श्री गुरूजी का कोलकाता में हुआ वार्तालाप


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का लक्ष्य सम्पूर्ण समाज को संगठित कर अपने हिन्दू जीवन दर्शन के प्रकाश में समाज की सर्वांगीण उन्नति करना यह है। रा.स्व.संघ का कार्य किसी भी मजहब विशेष के खिलाफ नहीं है। परन्तु किसी भी प्रकार की राष्ट्र विरोधीगतिविधी का संघ हमेशा विरोध करता आया है। समाज के वामपंथी एवं तथाकथित सेकुलर लेखक, जों संघ के विरुद्ध लगातार झूठा और गलत प्रचार करते आये है, संघ को मुस्लिम एवं ईसाई विरोधी बताने का प्रयास करते रहते है। मजहब के आधार पर मुस्लिम तथा ईसाईयों के साथ भेदभाव करने की संघ की नीति रही है ऐसा गलत प्रचार ये लोग करते है और इसके समर्थन में श्री गुरुजी द्वारा लिखित “वी एंड अवर नेशनहुड डिफाइनड” नामक पुस्तक का संदर्भ वे देते है। वास्तविक यह पुस्तक संघ का अधिकृत साहित्य नहीं है। जिस समय यह पुस्तक प्रकाशित हुई उस समय श्री गुरूजी संघ के सरसंघचालक तो नहीं थे वे संघ के पदाधिकारी भी नहीं थे। भारत में रहने वाले मुस्लिम तथा ईसाई बंधुओं के बार में संघ की सोच क्या है यह श्री गुरूजी ने प्रसिद्ध पत्रकार श्री सैफुद्दीन जिलानी को दी मुलाकात में स्पष्ट की है। यही संघ की अधिकृत भूमिका है। यह मुलाकात १९७२ में प्रकाशित हुई थी। इस मुलाकात के तथ्य नीचे प्रस्तुत है। इसे पढ़कर इस विषय में संघ की अधिकृत भूमिका क्या है यह सब जान सकेंगे। संघ के विरुद्ध निराधार दुष्प्रचार करने वालों के झूठ का पर्दाफाश होगा।
डॉ. जिलानी: देश के समक्ष आज जो संकट मुँह बाए खड़े है, उन्हें देखते हुए हिन्दू-मुस्लिम समस्या का कोई निश्चित हल ढूँढना, क्या आपको प्रतीत नहीं होता ?
श्री गुरुजी : देश का विचार करते समय मैं हिंदू और मुसलमान- इस रूप में विचार नहीं करता, परंतु इस प्रश्न की ओर लोग इस दृष्टि से देखते हैं। आजकल सभी लोग राजनीतिक दृष्टिकोण से ही विचार करते दिखाई देते हैं। हर कोई राजनीतिक स्थिति का लाभ उठाकर व्यक्तिगत अथवा जातिगत स्वार्थ सिद्ध करने में लिप्त है। इस परिस्थिति पर मात करने का केवल एक ही उपाय है और वह है राजनीति की ओर देशहित और केवल देशहित की ही दृष्टि से देखना। उस स्थिति में वर्तमान सभी समस्याएँ देखते ही देखते हल हो जाएँगी।
हाल ही में मैं दिल्ली गया था। उस समय अनेक लोग मुझसे मिलने आए थे। उनमें भारतीय क्राँति दल, संगठन कांग्रेस आदि दलों के लोग भी थे। संघ को हमने प्रत्यक्ष राजनीति से अलग रखा है, परंतु मेरे कुछ पुराने मित्र जनसंघ में होने के कारण कुछ मामलों में मैं मध्यस्थता करूँ इस हेतु से वे मुझे मिलने आए थे। उनसे मैंने एक सामान्य-सा प्रश्न पूछा- ‘आप लोग हमेशा अपने दल का और आपके दल के हाथ में सत्ता किस तरह आए, इसी का विचार किया करते हैं। परंतु दलीय निष्ठा व दलीय हितों का विचार करते समय क्या आप संपूर्ण देश के हितों का कभी विचार करते हैं?’ इस सामान्य से प्रश्न का ‘हाँ’ में उत्तर देने कोई सामने नहीं आया। समग्र देश के हितों का विचार सचमुच उनके सामने होता, तो वे वैसा साफ-साफ कह सकते थे, किंतु उन्होंने नहीं कहा। इसका अर्थ स्पष्ट है कि कोई भी दल समग्र देश का विचार नहीं करता। मैं समग्र देश का विचार करता हूं। इसलिए मैं हिंदुओं के लिए कार्य करता हूँ, परंतु कल यदि हिंदू भी देश के हितों के विरुद्ध जाने लगें, तब उनमें मेरी कौन-सी रुचि रह जाएगी?
रही मुसलमानों की बात। मैं यह समझ सकता हूँ कि अन्य लोगों की तरह उनकी भी न्यायोचित माँगें पूरी की जानी चाहिए, परंतु जब चाहे, तब विभिन्न सहूलियतों और विशेषाधिकारों की माँगें करते रहना कतई न्यायोचित नहीं कहा जा सकता। मैंने सुना है कि प्रत्येक प्रदेश में एक छोटे पाकिस्तान की माँग उठाई गई है। जैसा कि प्रकाशित हुआ है, एक मुस्लिम संगठन के अध्यक्ष ने तो लाल किले पर अपना झंडा फहराने की योजना की बात कही है। उन महाशय ने अब तक इसका खंडन भी नहीं किया है। ऐसी बातों से समग्र देश का विचार करनेवालों का संतप्त होना स्वाभाविक है।
उर्दू के आग्रह का विचार करें। पचास वर्षों के पूर्व तक विभिन्न प्रांतों के मुसलमान अपने-अपने प्रांतों की भाषाएँ बोला करते थे तथा उन्हीं भाषाओं में शिक्षा-ग्रहण किया करते थे। उन्हें कभी ऐसा नहीं लगा कि उनके धर्म की कोई अलग भाषा है।
उर्दू मुसलमानों की धर्म-भाषा नहीं है। मुगलों के समय में एक संकर भाषा के रूप में वह उत्पन्न हुई। इस्लाम के साथ उसका रत्ती-भर संबंध नहीं है। पवित्र कुरान अरबी में लिखा है। अतः मुसलमानों की अगर कोई धर्म-भाषा हो, तो वह अरबी ही होगी। ऐसा होते हुए भी आज उर्दू का इतना आग्रह क्यों? इसका कारण यह है कि इस भाषा के सहारे वे मुसलमानों को एक राजनीतिक शक्ति के रूप में संगठित करना चाहते हैं। यह संभावना ही नहीं तो एक निश्चित तथ्य है कि इस तरह की राजनीतिक शक्ति देशहित के विरुद्ध ही जाएगी।
कुछ मुसलमान कहते हैं कि उनका राष्ट्र-पुरुष रुस्तम है। सच पूछा जाए, तो मुसलमानों का रुस्तम से क्या संबंध? रुस्तम तो इस्लाम के उदय के पूर्व ही हुआ था। वह कैसे उनका राष्ट्र-पुरुष हो सकता है? और फिर, प्रभु रामचंद्र जी क्यों नहीं हो सकते? मैं पूछता हूँ कि आप यह इतिहास स्वीकार क्यों नहीं करते?
पाकिस्तान ने पाणिनि की 5 हजारवीं जयंती मनाई। इसका कारण यह है कि जो हिस्सा पाकिस्तान के नाम से पहचाना जाता है, वहीं पाणिनी का जन्म हुआ था। यदि पाकिस्तान के लोग गर्व के साथ यह कह सकते हैं कि पाणिनी उनके पूर्वजों में से एक हैं, तो फिर भारत के मुसलमान (मैं उन्हें हिंदू मुसलमान कहता हूँ) पाणिनी, व्यास, वाल्मीकि, राम, कृष्ण आदि को अभिमानपूर्वक अपने महान पूर्वज क्यों नहीं मानते?
हिंदुओं में ऐसे अनेक लोग हैं, जो राम, कृष्ण आदि को ईश्वर के अवतार नहीं मानते। फिर भी वे उन्हें महापुरुष मानते हैं, अनुकरणीय मानते हैं। इसलिए मुसलमान भी यदि उन्हें अवतारी पुरुष न मानें, तो कुछ नहीं बिगड़नेवाला, परंतु क्या उन्हें राष्ट्रपुरुष नहीं माना जाना चाहिए?
हमारे धर्म और तत्त्वज्ञान की शिक्षा के अनुसार हिंदू और मुसलमान समान ही हैं। ऐसी बात नहीं कि ईश्वरी सत्य का साक्षात्कार केवल हिंदू ही कर सकता है। अपने-अपने धर्म-मत के अनुसार कोई भी साक्षात्कार कर सकता है।
श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य का ही उदाहरण लें। यह उदाहरण, वर्तमान शंकराचार्य के गुरु का है। एक अमरीकी व्यक्ति उनके पास आया और उसने प्रार्थना की कि उसे हिंदू बना लिया जाए। इस पर शंकराचार्य जी ने उससे पूछा- ‘वह हिंदू क्यों बनना चाहता है’ उसने उत्तर दिया कि ईसाई धर्म से उसे शांति प्राप्त नहीं हुई है। आध्यात्मिक तृष्णा भी अतृप्त ही है।
इस पर शंकराचार्य जी ने उससे कहा- ‘क्या तुमने ईसाई धर्म का प्रमाणिकतापूर्वक पालन किया है? यदि तुम इस निष्कर्ष पर पहुँच चुके होगे कि ईसाई धर्म का पालन करने के बाद भी तुम्हे शांति नहीं मिली, तो मेरे पास अवश्य आओ।’
हमारा दृष्टिकोण इस तरह का है। हमारा धर्म, धर्म-परिवर्तन न करानेवाला धर्म है। धर्मांतरण तो प्रायः राजनीतिक अथवा अन्य हेतु से कराए जाते हैं। इस तरह का धर्म-परिवर्तन हमें स्वीकार नहीं है। हम कहते हैं- ‘यह सत्य है। तुम्हें जँचता हो तो स्वीकारो, अन्यथा छोड़ दो।’
दक्षिण की यात्रा के दौरान मदुरै में कुछ लोग मुझे मिलने के लिए आए। मुस्लिम-समस्या पर वे मुझसे चर्चा कर मुसलमानों के विषय में मेरा दृष्टिकोण चाहते थे। मैंने उनसे कहा- ‘आप लोग मुझसे मिलने आए, मुझे बड़ा आनंद हुआ। हमें यह बात हमेशा ध्यान में रखनी होगी कि हम सबके पूर्वज एक ही हैं। हम सब उनके वंशज हैं। आप अपने-अपने धर्मों का प्रमाणिकता से पालन करें, परंतु राष्ट्र के मामले में हम सबको एक रहना चाहिए। राष्ट्रहित के लिए बाधक सिद्ध होने वाले अधिकारों और सहूलियतों की माँग बंद होनी चाहिए। हम हिंदू हैं, इसलिए हम विशेष सहूलियतों या अधिकारों की कभी बात नहीं करते। ऐसी स्थिति में कुछ लोग यदि कहने लगें कि ‘हमें अलग होना है’, ‘हमें अलग प्रदेश चाहिए’ तो यह कतई सहन नहीं होगा।’
ऐसी बात नहीं है कि यह प्रश्न केवल हिंदू और मुसलमानों की बीच ही हो। यह समस्या तो हिंदुओं के बीच भी है। जैसे हिंदू समाज में जैन लोग हैं, तथाकथित अनुसूचित जातियाँ हैं। अनुसूचित जातियों में से कुछ लोगों ने डा. अम्बेडकर के अनुयायी बनकर बौद्ध धर्म ग्रहण किया। अब वे कहते हैं कि- ‘हम अलग हैं।’ अपने देश में अल्पसंख्यकों को कुछ विशेष राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं। इसलिए प्रत्येक गुट स्वयं को अल्पसंख्यक बताने का प्रयास कर रहा है तथा उसके आधार पर कुछ विशेष अधिकार और सहूलियतें माँग रहा है। इससे अपने देश के अनेक टुकड़े हो जाएँगे और सर्वनाश होगा। हम उसी दिशा में बढ़ रहे हैं। कुछ जैन-मुनि मुझे मिले। उन्होंने कहा ‘हम हिंदू नहीं है। अगली जनगणना में हम स्वयं को जैन के नाम से दर्ज कराएँगे।’ मैंने कहा- ‘आप आत्मघाती सपने देख रहे हो।’ अलगाव का अर्थ है देश का विभाजन और विभाजन का परिणाम होगा आत्मघात।
जब लोग प्रत्येक बात का विचार राजनीतिक स्वार्थ की दृष्टि से करने लगते हैं, तब अनेक भीषण समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, किंतु इस स्वार्थ को अलग रखते ही अपना देश एकसंघ बन सकता है। फिर हम संपूर्ण विश्व की चुनौती का सामना कर सकते हैं।
डॉ. जिलानी: भौतिकतावाद और विशेषतः साम्यवाद से अपने देश के लिए खतरा पैदा हो गया है। हिंदू और मुसलमान दोनों ही ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास रखते हैं। क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि दोनों मिलकर इस संकट का मुकाबला कर सकते हैं?
श्री गुरुजी: यही प्रश्न कश्मीर के सज्जन ने मुझसे किया था। उनका नाम संभवतः नाजिर अली है। अलीगढ़ में मेरे एक मित्र अधिवक्ता श्री मिश्रीलाल के निवास-स्थान पर वे मिले थे। उन्होंने कहा- ‘नास्तिकता और साम्यवाद हम सभी पर अतिक्रमण हेतु प्रयत्नशील हैं। अतः ईश्वर पर विश्वास रखनेवाले हम सभी को चाहिए कि हम सामूहिक रूप से इस खतरे का मुकाबला करें।
मैंने कहा, ‘मैं आपसे सहमत हूँ’, परंतु कठिनाई यह है कि हम सबने मानो ईश्वर की प्रतिमा के टुकड़े-टुकड़े कर डाले हैं और हरेक ने एक-एक टुकड़ा उठा लिया है। आप ईश्वर की ओर अलग दृष्टि से देखते हैं, ईसाई अलग दृष्टि से देखते हैं। बौद्ध लोग तो कहते हैं कि ईश्वर तो है ही नहीं; जो कुछ है, वह निर्वाण ही है। जैन लोग कहते हैं कि सब कुछ शून्याकार ही है। हममें से अनेक लोग राम, कृष्ण, शिव आदि के रूप में ईश्वर की उपासना करते हैं। इन सबको आप यह किस तरह कह सकेंगे कि एक ही सर्वमान्य ईश्वर को माना जाए। इसके लिए आपके पास क्या कोई उपाय है?’ मेरी यह धारणा थी कि सूफी ईश्वरवादी और विचारशील हुआ करते हैं, परंतु उस सूफी सज्जन ने जो उत्तर दिया, उसे सुनकर आप आश्चर्यचकित हो जाएँगे। उन्होंने कहा- ‘तो फिर आप सब लोग इस्लाम ही क्यों नहीं स्वीकार कर लेते?’
मैंने कहा- ‘फिर तो कुछ लोग कहेंगे कि ईसाई क्यों नहीं बन जाते? मेरे धर्म के प्रति मेरी निष्ठा है, इसलिए मैं यदि आपसे कहूं कि आप हिंदू क्यों नहीं बन जाते, तब? याने समस्या जैसी की वैसी रह गई। वह कभी हल नहीं होगी।
इस पर उन्होंने मुझसे पूछा कि आपकी क्या राय है? मैंने बताया कि सभी अपने-अपने धर्म का पालन करें। एक ऐसा सर्वसारभूत तत्वज्ञान है, जो केवल हिंदुओं का या केवल मुसलमानों का ही हो, ऐसी बात नहीं है। इस तत्त्वज्ञान को आप अद्वैत कहें या और कुछ। यह तत्त्वज्ञान कहता है कि एक एकमेवाद्वितीय शक्ति है, वही सत्य है, वही आनन्द है, वही सृजन, रक्षण और संहार करती है। अपनी ईश्वर की कल्पना उसी सत्य का सीमित अंश है। अंतिम सत्य का यह मूलभूत रूप किसी धर्म-विशेष का नहीं, अपितु सर्वमान्य है। यही रूप हम सबको एकत्रित कर सकता है। सभी धर्म वस्तुतः ईश्वर की ओर ही उन्मुख करते हैं। अतः यह सत्य आप क्यों स्वीकार नहीं करते कि मुसलमानों, ईसाईयों और हिंदुओं का परमात्मा एक ही है और हम सब उसके भक्त है। एक सूफी के रूप में तो आपको इसे स्वीकार करना चाहिए।
इसपर उनके पास कोई उत्तर नहीं था। दुर्भाग्य से हमारी बातचीत यहीं समाप्त हो गई।
डॉ. जिलानी: हिंदू और मुसलमानों की बीच आपसी सद्भावना बहुत है, फिर भी समय-समय पर छोटे-बड़े झगड़े होते ही रहते हैं। इन झगड़ों को मिटाने के लिए आपकी राय में क्या किया जाना चाहिए?
श्रीगुरुजी: आप अपने लेखों में इन झगड़ों का एक कारण हमेशा बताते हैं। वह कारण है गाय। दुर्भाग्य से अपने लोग और राजनीतिक नेता भी इस कारण का विचार नहीं करते। परिणामतः देश के बहुसंख्यकों में कटुता की भावना उत्पन्न होती है। मेरी समझ में नहीं आता कि गोहत्या के विषय में इतना आग्रह क्यों है? इसके लिए कोई कारण दिखाई नहीं देता। इस्लाम-धर्म गोहत्या का आदेश नहीं देता। पुराने जमाने में हिंदुओं को अपमानित करने का वह एक तरीका रहा होगा। अब वह क्यों चलना चाहिए?
इसी प्रकार की अनेक छोटी-बड़ी बातें हैं। आपस के पर्वों-त्यौहारों में हम क्यों सम्मिलित न हों? होलिकोत्सव समाज के सभी स्तरों के लोगों को अत्यंत उल्लासयुक्त वातावरण में एकत्रित करनेवाला त्यौहार है। मान लीजिये कि इस त्यौहार  के समय किसी मुस्लिम बंधु पर कोई रंग उड़ा देता है, तो इतने मात्र से क्या कुरान की आज्ञाओं का उल्लंघन हो जाता है? इन बातों की ओर एक सामाजिक व्यवहार के रूप मे देखा जाना चाहिए। मैं आप पर रंग छिड़कूँ, आप मुझ पर छि़ड़कें। हमारे लोग तो कितने ही वर्षों से मोहर्रम के सभी कार्यक्रमों में सम्मिलित होते आ रहे हैं। इतना हीं नहीं तो अजमेर के उर्स जैसे कितने ही उत्सवों-त्यौहारों में मुसलमानों के साथ हमारे लोग भी उत्साहपूर्वक सम्मिलित होते हैं। किंतु हमारी सत्यनारायण की पूजा में यदि कुछ मुसलमान बंधुओं को हम आमंत्रित करें तो क्या होगा? आपको विदित होगा कि द्रमुक के लोग अपने मंत्रिमंडल के एक मुस्लिम मंत्री को रामेश्वर के मंदिर में ले गए। मंदिर के अधिकारियों, पुजारियों और अन्य लोगों ने उक्त मंत्री का यथोचित मान-सम्मान किया, किंतु उसे जब मंदिर का प्रसाद दिया गया, तो उसने उसे फेंक दिया। प्रसाद ग्रहण करने मात्र से तो वह धर्मभ्रष्ट होनेवाला नहीं था। इसी तरह की छोटी-छोटी बातें हैं। अतः पारस्परिक आदर की भावना उत्पन्न की जानी चाहिए।
हमें जो वृत्ति अभिप्रेत है, वह सहिष्णुता मात्र नहीं है। अन्य लोग जो कुछ करते हैं, उसे सहन करना सहिष्णुता है। परंतु अन्य लोग जो कुछ करते हों, उसके प्रति आदर-भाव रखना सहिष्णुता से ऊँची बात है। इसी वृत्ति, इसी भावना को प्राधान्य दिया जाना चाहिए। हमें सबके विषय में आदर है। यही मार्ग मानवता के लिए हितकारक है। हमारा वाद सहिष्णुतावाद नहीं, अपितु सम्मानवाद है। दूसरों के मत का आदर करना हम सीखें तो सहिष्णुता स्वयमेव चली आएगी।
डॉ. जिलानी: हिंदू और मुसलमानों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के कार्य के लिए आगे आने की योग्यता किसमें है- राजनीतिक नेता में, शिक्षाशास्त्री में या धार्मिक नेता में?
श्रीगुरुजी: इस मामले में राजनीतिज्ञ का क्रम तो सबसे अंत में लगता है। धार्मिक नेताओं के विषय में भी यही कहना होगा। आज अपने देश में दोनों ही जातियों के धार्मिक नेता अत्यंत संकुचित मनोवृत्ति के हैं। इस काम के लिए नितांत अलग प्रकार के लोगों की आवश्यकता है। जो लोग धार्मिक तो हों, किंतु राजनीतिक नेतागिरी न करते हों और जिनके मन में समग्र राष्ट्र का विचार सदैव जागृत रहता हो। धर्म के अधिष्ठान के बिना कुछ भी हासिल नहीं होगा। धार्मिकता होनी ही चाहिए। रामकृष्ण मिशन को ही लें। यह आश्रम व्यापक और सर्वसमावेशक धर्म-प्रचार का कार्य कर रहा है। अतः आज तो इसी दृष्टिकोण और वृत्ति की आवश्यकता है कि ईश्वरोपासनाविषयक विभिन्न श्रद्धाओं को नष्ट न कर हम उनका आदर करें, उन्हें टिकाए रखें और उन्हें वृद्धिंगत होने दें।
राजनीतिक नेताओं के जो खेल चलते हैं, उन्हीं से भेदभाव उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है। जातियों, पंथो पर तो वे जोर देते हैं, साथ ही भाषा, हिंदू-मुस्लिम आदि भेद भी वे पैदा करते हैं। परिणामतः अपनी समस्याएँ अधिकाधिक जटिल होती जा रही हैं। जाति-संबंधी समस्या के मामले में तो राजनीतिक नेता ही वास्तविक खलनायक हैं। दुर्भाग्य से राजनीतिक नेता ही आज जनता का नेता बन बैठा है, जबकि चाहिए तो यह था कि सच्चे, विद्वान, सुशील और ईश्वर के परमभक्त महापुरुष जनता के नेता बनते। परंतु इस दृष्टि से आज उनका कोई स्थान ही नहीं है। इसके विपरीत नेतृत्व आज राजनीतिक नेताओं के हाथों में है। जिनके हाथों में नेतृत्व है, वे राजनीतिक पशु बन गए हैं। अतः हमें लोगों को जागृत करना चाहिए।
दो दिन पूर्व ही मैंने प्रयाग में कहा है कि लोगों को राजनीतिक नेताओं के पीछे नहीं जाना चाहिए, अपितु ऐसे स्तपुरुषों का अनुकरण करें, जो परमात्मा के चरणों में लीन हैं, जिनमें चारित्र्य है और जिनकी दृष्टि विशाल है।
डॉ. जिलानी: क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि जातीय सामंजस्य-निर्माण का उत्तरदायित्व बहुसंख्यक समाज के रूप में हिंदुओं पर है?
श्रीगुरुजी: हाँ। मुझे यही लगता है, परंतु कुछ कठिनाइयों का विचार किया जाना चाहिए। अपने नेतागण संपूर्ण दोष हिंदुओं पर लादकर मुसलमानों को दोषमुक्त कर देते हैं। इसके कारण जातीय उपद्रव करने के लिए अल्पसंख्यक समाज, याने मुस्लिमों को सब प्रकार का प्रोत्साहन मिलता है। इसलिए हमारा कहना है कि इस मामले में दोनों को अपनी जिम्मेदारियों का पालन करना चाहिए।
डॉ. जिलानी: आपकी राय में आपसी सामंजस्य की दिशा में तत्काल कौन से कदम उठाए जाने चाहिए?
श्रीगुरुजी: इस तरह से एकदम कुछ कहना बहुत ही कठिन है, फिर भी सोचा जा सकता है। व्यापक पैमाने पर धर्म की यथार्थ शिक्षा देना एक उपाय हो सकता है। राजनीतिक नेताओं द्वारा समर्थित आज जैसी धर्महीन शिक्षा नहीं, अपितु सच्चे अर्थों में धर्म-शिक्षा लोगों को इस्लाम व हिंदू धर्म का ज्ञान कराए। सभी धर्म मनुष्य को महान, पवित्र और मंगलमय बनने की शिक्षा देते हैं। यह लोगों को सिखाया जाए।
दूसरा उपाय यह हो सकता है कि जैसा हमारा इतिहास है, वैसा ही हम पढ़ाएँ। आज जो इतिहास पढ़ाया जाता है, वह विकृत रूप में पढ़ाया जाता है। मुस्लिमों ने इस देश पर आक्रमण किया हो तो वह हम स्पष्ट रूप से बताएँ, परंतु साथ ही यह भी बताएँ कि वह आक्रमणकारी भूतकालीन हैं और विदेशियों ने किया है। मुसलमान यह कहें कि वे इस देश के मुसलमान हैं और ये आक्रमण उनकी विरासत नहीं हैं। परन्तु जो सही है, उसे पढ़ाने के स्थान पर जो असत्य है, विकृत है, वही आज पढ़ाया जाता है। सत्य बहुत दिनों तक दबाकर नहीं रखा जा सकता। अंततः वह सामने आता है और तब उससे लोगों में दुर्भावना निर्माण होती है। इसलिए मैं कहता हूं इतिहास जैसा है वैसा ही पढ़ाया जाए। अफजलखाँ को शिवाजी ने मारा है, तो वैसा ही बताओ। कहो कि एक विदेशी आक्रामक और एक राष्ट्रीय नेता के तनावपूर्ण संबंधों के कारण यह घटना हुई। यह भी बताएँ कि हम सब एक ही राष्ट्र हैं, इसलिए हमारी परंपरा अफजलखाँ की नहीं है। परन्तु यह कहने की हिम्मत कोई नहीं करता। इतिहास के विकृतिकरण को मै अनेक बार धिक्कार चुका हूँ और आज भी उसे धिक्कारता हूँ।
डॉ. जिलानी: भारतीयकरण पर बहुत चर्चा हुई, भ्रम भी बहुत निर्माण हुए। क्या आप बता सकेंगे कि ये भ्रम कैसे दूर किए जा सकेंगे?
श्री गुरुजी: भारतीयकरण की घोषणा जनसंघ द्वारा की गई, किंतु इस मामले में संभ्रम क्यों होना चाहिए? भारतीयकरण का अर्थ सबको हिंदू बनाना तो है नहीं।
हम सभी को यह सत्य समझ लेना चाहिए कि हम इसी भूमि के पुत्र हैं। अतः इस विषय में अपनी निष्ठा अविचल रहना अनिवार्य है। हम सब एक ही मानवसमूह के अंग हैं, हम सबके पूर्वज एक ही हैं, इसलिए हम सबकी आकांक्षाएँ भी एक समान हैं- इसे समझना ही सही अर्थों में भारतीयकरण है।
भारतीयकरण का यह अर्थ नहीं कि कोई अपनी पूजा-पद्धति त्याग दे। यह बात हमने कभी नहीं कही और कभी कहेंगे भी नहीं। हमारी तो यह मान्यता है कि उपासना की एक ही पद्धति संपूर्ण मानव जाति के लिए सुविधाजनक नहीं।
डॉ. जिलानी: आपकी बात सही है। बिलकुल सौ फीसदी सही है। अतः इस सपष्टीकरण के लिए मैं आपका बहुत ही कृतज्ञ हूँ।
श्रीगुरुजी: फिर भी मुझे संदेह है कि सब बातें मैं स्पष्ट कर सका हूँ या नहीं।
डॉ. जिलानी: कोई बात नहीं। आपने अपनी ओर से बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट किया है। कोई भी विचारशील और भला आदमी आपसे असहमत नहीं होगा। क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि अपने देश का जातीय बेसुरापन समाप्त करने का उपाय ढूँढने में आपको सहयोग दे सकें, ऐसे मुस्लिम नेताओं की और आपकी बैठक आयोजित करने का अब समय आ गया है? ऐसे नेताओं से भेंट करना क्या आप पसंद करेंगे?
श्रीगुरुजी: केवल पसंद ही नहीं करूँगा, ऐसी भेंट का मैं स्वागत करूँगा।

शुक्रवार, जून 08, 2018

प्रोफेसर सादत बशीर ने छात्राओं से कहा कि आपको नंबर कटवाने हैं या इज्जत लुटवानी है.

क्या फर्क पड़ता है कल को किसी जेहादी की ही बीवी बनाना था और फिर तलाक के बाद हलाला भी करवाना था ........
प्रोफेसर सादत बशीर ने छात्राओं से कहा कि आपको नंबर कटवाने हैं या इज्जत लुटवानी है. अगर पास होना है तो अपना शरीर मुझे सौंपना पड़ेगा तथा अगर ऐसा नहीं करोगी तो फेल होने को तैयार हो जाओ. इस तरह प्रोफेसर सादत बशीर ने 80 छात्राओं की इज्जत को तार-तार कर दिया. ये आरोप पाकिस्तान के इस्लामाबाद मॉडल कॉलेज के शिक्षक प्रोफेसर सादत बशीर पर इस्लामाबाद में करीब एक दर्जन से ज्यादा कॉलेज छात्राओं ने फेडरल बोर्ड ऑफ इंटरमीडिए ऐंड सेकंडरी एजुकेशन की तरफ से भेजे गए एग्जामिनर पर यौन दुर्व्यवहार का आरोप लगाया है
पाकिस्तानी अखबार 'डेली पाकिस्तान' और 'डॉन न्यूज' के मुताबिक, ये आरोप इस्लामाबाद मॉडल कॉलेज में टीचर सादत बशीर पर लगा है. आरोपों के मुताबिक यह मामला पाकिस्तान के प्रतिष्ठित बहरिया कॉलेज के बायॉलजी प्रैक्टिल के दौरान का है. सादत बशीर पर प्रैक्टिल के दौरान लड़कियों को गलत तरीके से छूने, टटोलने का आरोप है. जिन लड़कियों ने इस बात का विरोध किया, उसे सादत बशीर ने नंबर कम देने की धमकी देकर चुप करा दिया था.
उन 80 पीड़ित लड़कियों में एक लड़की ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां किया है. उसने पूरा वाक्या बताते हुए पोस्ट किया, 'शनिवार (26 मई) को हमारा बायॉलजी HSC पार्ट 2 का प्रैक्टिकल चल रहा था. प्रैक्टिकल परीक्षा तीन अलग-अलग ग्रुप में हुआ था. पहले ग्रुप का प्रैक्टिकल शुक्रवार को, दूसरे का शनिवार को और तीसरे ग्रुप का प्रैक्टिकल रविवार को हुआ. पहले ग्रुप ने हमें बता दिया था कि एग्जामिनर बहुत सख्त हैं, टीचर्स की नहीं सुनते. वह शिक्षकों को लैबरेटरी के अंदर तक नहीं आने देते. प्रैक्टिकल के दौरान उन्होंने कई लड़कियों को जांघों के बीच छुआ तो कुछ को पीछे और कुछ लड़कियों के तो ब्रेस्ट तक को हाथ लगाया.'
छात्रा ने आगे अपने पोस्ट में लिखा, प्रैक्टिकल के दौरान उन्होंने मुझे भी दो बार छुआ. पहली बार जब मैं मॉडल की पहचान के लिए गई तो, उसने पहले मेरे कूल्हे छुए. मैं दोबारा स्लाइड्स बनाने गई तो वह पहले मेरे पीछे आए और मेरी ब्रा की स्ट्रैप छूने लगे. छात्र ने आगे लिखा, तीसरी बार जब मैं प्रैक्टिकल में मेंढक की चीड़फाड़ कर रही थी, तो मेरे पास आए और पूछा यह मेढ़क नर है या मादा. मैंने जवाब दिया, यह नर मेंढक है. इसके बाद उन्होंने बेहद बेकार तरीके से जवाब दिया कि यह मादा मेंढक है, क्या तुमको इसके अंडाशय नहीं दिख रहे. यह तुम्हारे अंदर भी हैं. ये सुन मैं एकदम घबरा गई और मुझे कुछ समझ नहीं आया कि मैं क्या करूं. छात्रा ने आगे लिखा, उसने कई लड़कियों के साथ ऐसा किया. लेकिन हम से किसी ने कुछ इसलिए नहीं कहा क्योंकि वह बार-बार नंबर कम देन की धमकी दे रहा था. हम सबने चुपचाप इसकी हरकतों को बर्दाश्त कर लिया. इस एक लडकी के सामने आने के बाद कई लडकियों ने सादत बशीर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया तथा अपनी अपनी आप बीती बताई.

मंगलवार, जून 05, 2018

अरब के बर्बर लुटेरे और फारस


सन 634 ई.
अरब के बर्बर लुटेरों के हाथ में सम्प्रदाय की तलवार आ गयी थी। युगों से असभ्यों की भांति जी रहे अरबी जानवरों को पहले पहल जन्नत का स्वप्न दिखाया गया था, और अब वे आतंक की सुनामी लेकर विश्व को रौंदने निकल पड़े थे।
अरब से सटा विश्व का सबसे प्राचीन साम्राज्य 'फारस' सुख की नींद सो रहा था। फारस का शासक 'यज्दजर्द' अपने शौर्य से संतुष्ट पड़ा था, कि उसकी पश्चिमी सीमा पर स्थित शहर 'कास्कर' पर एक दिन अरबी तलवार बरसी। इसके पूर्व युद्ध दो सेनाओं के मध्य हुआ करते थे, पर अरबी बर्बरों ने आम जनता को काटने की नई शैली विकसित की थी। वे नगर में घुसे और आम नागरिकों को काटना प्रारम्भ किया। अरबी हत्यारे हत्या, लूट और बलात्कार का लक्ष्य ले कर ही चले थे, क्योंकि उनके उपदेशकों ने उन्हें जन्नत पाने का यही तरीका बताया था। उनके मानस में भर गया था कि हम जितने काफिरों का सर काट लेंगे, जितनी स्त्रियों का बलात्कार कर लेंगे, जन्नत में उतना ही सुख भोगेंगे। कास्कर की प्रजा को आंधी की गति से काटा गया। बचने का मात्र एक ही उपाय था, इस्लाम स्वीकार कर लेना। ईरान की सेना जागती, तबतक आधा नगर काट डाला गया था और शेष मुसलमान बन चुके थे।
अरब सेनानायक 'साद-इब्न-बागा' ने फारस के सम्राट को सन्देश भेजा- "इश्लाम स्वीकार करो, या जजिया दो।"
फारस नरेश ने कहा- युद्ध करो...
637 ई.
फारस सम्राट को अपनी शक्ति पर विश्वास था। उसकी छोटी सैन्य टुकड़ी ने भी कई बार अरबी लुटेरों को पराजित किया था। वह पूरी तैयारी के साथ युद्ध में उतरा।
इधर अरब सेना का नेतृत्व हजरत "अली" कर रहे थे। हजरत ने अपनी आधी सेना ही युद्धभूमि में रखी, शेष सेना कहीं चुपचाप पड़ी हुई थी।
फारस की सेना जैसे ही युद्धक्षेत्र में पहुँची और युद्ध प्रारम्भ हुआ, युद्धक्षेत्र से अलग छिपी आधी अरब सेना फारस की राजधानी में घुस गई। फारस की सेना युद्ध लड़ रही थी, और अरबी लुटेरे इधर राजधानी में निरीह लोगों का सर काट रहे थे, स्त्रियों बच्चियों का बलात्कार कर रहे थे, घरों में आग लगा रहे थे।
युद्धक्षेत्र में फारस नरेश 'यज्द जर्द' तक बात पहुँचती तबतक अरबी लुटेरे राजधानी को ध्वस्त कर उनकी तीन वर्ष की पुत्री को उठा ले गए थे।
फारस नरेश को ऐसी नीचता की आशा नहीं थी। फारस की सेना अरबियों पर ईश्वरीय कोप बन कर टूट पड़ी। फलतः अरबी जान बचा कर भागे...
अरब पहुँच कर "हजरत अली" ने लूट का सामान बांटा, फारस नरेश की तीन साल की राजकुमारी उनके हिस्से में आई। दया के सागर 'अली' ने उसे अपनी पत्नी बना लिया।
फारस नरेश एक पिता था। उसे अपनी पुत्री से उतना ही स्नेह था, जितना एक सामान्य पिता को होता है। उसने प्रण किया कि वह कुछ भी कर के अपनी पुत्री को उन दुष्ट, बर्बर पशुओं से छुड़ा कर लाएगा। फारस की सेना अरब के लिए निकल पड़ी...
पर फारस नरेश को अरब के मरुस्थल की थाह नहीं थी। न उनकी सेना को बालू की आँधी से जूझने का अभ्यास था, न उनके घोड़े उस मरुस्थल में सफल हो पाए। फल यह हुआ कि अरबी तीरों से पूरी फ़ारसी सेना छेद दी गयी...
फारस नरेश के इस कृत्य की सजा पूरे फारस को मिली, अरब सेना ने शासक हीन फारस पर आक्रमण किया और हत्या, लूट, बलात्कार और इस्लामीकरण का नँगा खेल हुआ।
दस दिन के अंदर अधिकांश फारस इस्लाम स्वीकार कर चुका था, पर कुछ धर्म परायण फ़ारसी भाग कर खुरासान में आ छिपे।
खुरासान में सौ वर्षों तक पारसी छिपे रहे, पर सौ वर्ष बाद वहाँ भी इस्लाम की तलवार पहुँच गयी। निरीह पारसी फिर एक बड़े जहाज में बैठ कर भागे, और भारत के पश्चिमी तट पर उतरे...
दमन से पच्चीस मिल दक्षिण में सन 716 ई में अपनी पवित्र अग्नि और जेंडवेस्ता ले कर उतरे कुछ पारसियों ने भारत में अपनी नीव रखी। दमन के हिन्दू शासक ने उन्हें भूमि दी, और पारसियों ने अपनी जन्मभूमि के नाम पर भारत मे 'संजान' नगर बसाया।
युग बीत गए... पारसी धर्म अब मात्र भारत में बचा था। फारस अब ईरान बन चुका था। पर पारसियों के दुख के दिन अभी समाप्त नहीं हुए थे।
अरब से चली इस्लाम की तलवार भारत भी पहुँची, और पन्द्रहवी सदी में उन्होंने पारसियों को फिर से ढूंढ निकाला। फारसियों पर अरबी तलवार फिर बरसी, वे फिर भागे... संजान से भागे पारसी नवसारी में रुके...
आज दुनिया में जितने भी पारसी हैं, उनमें से अधिकांश नवसारी से निकले पारसी ही हैं।
भारत की सहिष्णुता पारसी ही जानते हैं।
क्षमा करना मित्र! इस तस्वीर में तुम्हें भले पहिये के नीचे कुचला हुआ आक्रमणकारी दिख रहा हो, मुझे इस गाड़ी से भागता हुआ एक पारसी दिखाई दे रहा है।
कश्मीर भारत का फारस है पार्थ!
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।

रविवार, जून 03, 2018

पैग़म्बर मुहम्मद जी के 52 वर्ष की आयु में 6 वर्ष की आयशा से निकाह और इस्लामी प्रमाण

Tufail Chaturvedi
इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद जी के 52 वर्ष की आयु में 6 वर्ष की आयशा से निकाह और 3 वर्ष बाद मुहम्मद जी के 55 वर्ष और आयशा के 9 वर्ष की आयु में यौन सम्बन्ध स्थापित करने के इस्लामी वांग्मय से ही प्रमाण
The Islamic Evidence
We now present the Islamic data showing that Aisha was a girl of nine when Muhammad consummated his marriage to her. All bold, capital and underlined emphasis is ours.
SAHIH AL-BUKHARI
Narrated Aisha:
The Prophet engaged me when I was a girl of six (years). We went to Medina and stayed at the home of Bani-al-Harith bin Khazraj. Then I got ill and my hair fell down. Later on my hair grew (again) and my mother, Um Ruman, came to me while I was playing in a swing with some of my girl friends. She called me, and I went to her, not knowing what she wanted to do to me. She caught me by the hand and made me stand at the door of the house. I was breathless then, and when my breathing became all right, she took some water and rubbed my face and head with it. Then she took me into the house. There in the house I saw some Ansari women who said, "Best wishes and Allah's Blessing and a good luck." Then she entrusted me to them and they prepared me (for the marriage). Unexpectedly Allah's Apostle came to me in the forenoon and my mother handed me over to him, and at that time I was a girl of nine years of age. (Sahih Al-Bukhari, Volume 5, Book 58, Number 234)
Narrated Hisham's father:
Khadija died three years before the Prophet departed to Medina. He stayed there for two years or so and then he married 'Aisha when she was a girl of six years of age, and he consumed that marriage when she was nine years old. (Sahih Al-Bukhari, Volume 5, Book 58, Number 236)
Narrated 'Aisha:
Allah's Apostle said to me, "You were shown to me twice (in my dream) before I married you. I saw an angel carrying you in a silken piece of cloth, and I said to him, 'Uncover (her),' and behold, it was you. I said (to myself), 'If this is from Allah, then it must happen.' Then you were shown to me, the angel carrying you in a silken piece of cloth, and I said (to him), 'Uncover (her), and behold, it was you. I said (to myself), 'If this is from Allah, then it must happen.'" (Sahih Al-Bukhari, Volume 9, Book 87, Number 140; see also Number 139)
Narrated 'Aisha:
that the Prophet married her when she was six years old and he consummated his marriage when she was nine years old, and then she remained with him for nine years (i.e., till his death). (Sahih Al-Bukhari, Volume 7, Book 62, Number 64; see also Numbers 65 and 88)
SAHIH MUSLIM
'A'isha (Allah be pleased with her) reported: Allah's Messenger (may peace be upon him) married me when I was six years old, and I was admitted to his house at the age of nine. She further said: We went to Medina and I had an attack of fever for a month, and my hair had come down to the earlobes. Umm Ruman (my mother) came to me and I was at that time on a swing along with my playmates. She called me loudly and I went to her and I did not know what she had wanted of me. She took hold of my hand and took me to the door, and I was saying: Ha, ha (as if I was gasping), until the agitation of my heart was over. She took me to a house, where had gathered the women of the Ansar. They all blessed me and wished me good luck and said: May you have share in good. She (my mother) entrusted me to them. They washed my head and embellished me and nothing frightened me. Allah's Messenger (may peace be upon him) came there in the morning, and I was entrusted to him. (Sahih Muslim, Book 008, Number 3309; see also 3310)
'A'isha (Allah be pleased with her) reported that Allah's Apostle (may peace be upon him) married her when she was seven years old, and he was taken to his house as a bride when she was nine, and her dolls were with her; and when he (the Holy Prophet) died she was eighteen years old. (Sahih Muslim, Book 008, Number 3311)
SUNAN ABU DAWUD
Aisha said: The Apostle of Allah (may peace be upon him) married me when I was seven years old. The narrator Sulaiman said: Or six years. He had intercourse with me when I was nine years old. (Sunan Abu Dawud, Number 2116)
Narrated Aisha, Ummul Mu'minin:
The Apostle of Allah (peace_be_upon_him) married me when I was seven or six. When we came to Medina, some women came. According to Bishr's version: Umm Ruman came to me when I was swinging. They took me, made me prepared and decorated me. I was then brought to the Apostle of Allah (peace_be_upon_him), and he took up cohabitation with me when I was nine. She halted me at the door, and I burst into laughter. (Sunan Abu Dawud, Book 41, Number 4915)
Narrated Aisha, Ummul Mu'minin:
The Prophet (peace_be_upon_him) used to kiss her and suck her tongue when he was fasting. (Sunan Abu Dawud, Book 13, Number 2380)
SUNAN NASA‘I
… When Hadrat Aisha passed nine years of marriage life, the Holy Prophet Muhammad (peace and blessings of Allah be upon him) fell in mortal sickness… ‘A’isha was eighteen years of age at the time when the Holy Prophet (peace and blessings of Allah be upon him) passed away and she remained a widow for forty-eight years till she died at the age of sixty-seven. She saw the rules of four Caliphs in her lifetime. She died on Ramadan 58 A.H. during the Caliphate of Hadrat Amir Mu‘awiya… (Sunan Nasa'i: English translation with Arabic Text, compiled by Imam Abu Abd-ur-Rahman Ahmad Nasa'i, rendered into English by Muhammad Iqbal Siddiqui [Kazi Publication, 121-Zulqarnain Chambers, Gampat Road, Lahore, Pakistan; first edition, 1994], Volume 1, p. 108)
SUNAN IBN-I-MAJAH
1876. ‘A’isha (Allah be pleased with her) is reported to have said: Allah’s Messenger (peace and blessings of Allah be upon him) contracted marriage with me while I was (yet) a six years [sic] old girl. Then we arrived at Medina and stayed with Banu Harith b. Khazraj. I fell victim to fever; then my hair (of the head fell off (and became scattered). Then they became plenty and hanged down upto [sic] the earlobes. My mother ‘Umm Ruman came to me while I was (playing) in a swing alongwith [sic] my play-mates. She (the mother) called me loudly. I went to her and I did not know what he [sic] wanted. She seized my hand and stopped me at the door of the house and I was hearing [sic] violently until the agitation of my heart was over. Then she took some water and wiped it over my face and head. Then she admitted me to the house when some woman [sic] of Ansar were present in the house. They said, "You have entered with blessings and good fortune." Then she (the mother) entrusted me to them. So they embellished me and nothing frightened me but Allah’s Messenger (peace and blessings of Allah be upon him) (when he came there) in the morning and they (the women) entrusted me to him. On that day, I was a nine years [sic] old girl."
1877. Abdullah (Allah be pleased with him) is reported to have said, "The Holy Prophet (peace and blessings of Allah be upon him) married ‘A’isha while she was a seven years [sic] old girl and took him [sic] to his house as a bride when she was nine years old and he parted with her (after his demise) when she was eighteen years old."
According to Al-Zawa‘id its isnad is sahih in accordance with the condition prescribed by Bukhari, but munqata because Abu ‘Ubaida did not hear from his father. Shu‘ba Abu Hatim and Ibn Hibban mentioned him amongst the authentic and reliable authorities. Tirmidhi in al-Jami’ and al-Mazzi in al-Atraf (has expressed the same opinion). Nasa‘i has transmitted this hadith in al-Sughra from the hadith ‘A’isha (Allah be pleased with her). (Sunan Ibn-I-Majah, Imam Abdullah Muhammad B. Yazid Ibn-I-Maja Al-Qazwini, English version by Muhammad Tufail Ansari [Kazi Publications, 121-Zulqarnain Chambers, Gampat Road, Lahore Pakistan, first edition, 1995], volume III, pp. 133-134)
IBN HISHAM
He married ‘A’isha in Mecca when she was a child of seven and lived with her in Medina when she was nine or ten. She was the only virgin that he married. Her father, Abu Bakr, married her to him and the apostle gave her four hundred dirhams. (Ibn Ishaq, Sirat Rasulullah (The Life of Muhammad), translated by Alfred Guillaume [Oxford University Press, Karachi, tenth impression 1995], p. 792)
AL-TABARI
In this year also the Messenger of God consummated his marriage with ‘A’ishah. This was in Dhu al-Qa‘dah (May-June 623) eight months after his arrival in Medina according to some accounts, or in Shawwal (April-May 623) seven months after his arrival according to others. He had married her in Mecca three years before the Hijrah, after the death of Khadijah. At that time she was six or, according to other accounts, seven years old.
According to ‘Ab al-Hamid b. Bayan al-Sukkari- Muhammad b. Yazid- Isma‘il (that is, Ibn Abi Khalid)- ‘Abd al-Rahman b. Abi al-Dahhak- a man from Quraysh- ‘Abd al-Rahman b. Muhammad: ‘Abd Allah b. Safwan together with another person came to ‘A’ishah, and ‘A’ishah said (to the latter), "O so-and-so, have you heard what Hafsah has been saying?" He said, "Yes, O Mother of the Faithful." ‘Abd Allah b. Safwan asked her, "What is that?" She replied, "There are nine special features in me that have not been in any woman, except for what God bestowed on Maryam bt. ‘Imran. By God, I do not say this to exalt myself over any of my companions." "What are these?" he asked. She replied, "The angel brought down my likeness; the Messenger of God married me when I was seven; my marriage was consummated when I was nine; he married me when I was a virgin, no other man having shared me with him; inspiration came to him when he and I were in a single blanket; I was one of the dearest people to him, a verse of the Qur’an was revealed concerning me when the community was almost destroyed; I saw Gabriel when none of his other wives saw him; and he was taken (that is, died) in his house when there was nobody with him but the angel and myself."
According to Abu Ja‘far (Al-Tabari): The Messenger of God married her, so it is said, in Shawwal, and consummated his marriage to her in a later year, also in Shawwal. (The History of Al-Tabari: The Foundation of the Community, translated by M.V. McDonald annotated by W. Montgomery Watt [State University of New York Press, Albany 1987], Volume VII, pp. 6-7)
Sa‘id b. Yahya b. Sa‘id al-Umawi- his father- Muhammad b. ‘Amr- Yahya b. ‘Abd al-Rahman b. Hatib- ‘A’isha: When Khadijah died, Khawlah bt. Hakim b. Umayyah b. al-Awqas, wife of ‘Uthman b. Maz‘un, who was in Mecca, said [to the Messenger of God], "O Messenger of God, will you not marry?" He replied, "Whom?" "A maiden," she said, "if you like, or a non-maiden." He replied, "Who is the maiden?" "The daughter of the dearest creature of God to you," she answered, "‘A’ishah bt. Abi Bakr." He asked, "And who is the non-maiden?" "Sawdah bt. Zam‘ah b. Qays," she replied, "she has [long] believed in you and has followed you." [So the Prophet] asked her to go and propose to them on his behalf.
She went to Abu Bakr’s house, where she found Umm Ruman, mother of ‘A’ishah, and said, "O Umm Ruman, what a good thing and a blessing has God brought to you!" She said, "What is that?" Khawlah replied, "The Messenger of God has sent me to ask for ‘A’ishah’s hand in marriage on his behalf." She answered, "I ask that you wait for Abu Bakr, for he should be on his way." When Abu Bakr came, Khawlah repeated what she had said. He replied, "She is [like] his brother’s daughter. Would she be appropriate for him?" When Khawlah returned to the Messenger of God and told him about it he said, "Go back to him and say that he is my brother in Islam and that I am his brother [in Islam], so his daughter is good for me." She came to Abu Bakr and told him what the Messenger of God had said. Then he asked her to wait until he returned.
Umm Ruman said that al-Mut‘im b. ‘Adi had asked ‘A’ishah’s hand for his son, but Abu Bakr had not promised anything. Abu Bakr left and went to Mut‘im while his wife, mother of the son for whom he had asked ‘A’ishah’s hand, was with him. She said, "O son of Abu Quhafah, perhaps we could marry our son to your daughter if you could make him leave his religion and bring him in to the religion which you practice." He turned to her husband al-Mut‘im and said, "What is she saying?" He replied, "She says [what you have heard]." Abu Bakr left, [realizing that] God had [just] removed the problem he had in his mind. He said to Khawlah, "Call the Messenger of God." She called him and he came. Abu Bakr married [‘A’ishah] to him when she was [only] six years old. (The History of Al-Tabari: The Last Years of the Prophet, translated and annotated by Ismail K. Poonawala [State University of New York Press, Albany 1990], Volume IX, pp. 129-130)
‘A’ishah states: We came to Medina and Abu Bakr took up quarters in al-Sunh among the Banu al-Harith b. al-Khazraj. The Messenger of God came to our house and men and women of the Ansar gathered around him. My mother came to me WHILE I WAS BEING SWUNG ON A SWING BETWEEN TWO BRANCHES AND GOT ME DOWN. Jumaymah, my nurse, took over and wiped my face with some water and started leading me. When I was at the door, she stopped so I could catch my breath. I was then brought [in] while the Messenger of God was sitting on a bed in our house. [My mother] made me sit on his lap and said, "These are your relatives. May God bless you with them and bless them with you!" Then the men and women got up and left. The Messenger of God consummated his marriage with me in my house when I was nine years old. Neither a camel nor a sheep was slaughtered on behalf of me. Only Sa‘d b. ‘Ubaidah sent a bowl of food which he used to send to the Messenger of God.
‘Ali b. Nasr- ‘Abd al-Samad b. ‘Abd al-Warith- ‘Abd al-Warith b. ‘Abd al-Samad- his father- Aban al-‘Attar- Hisham b. ‘Urwah- ‘Urwah: He wrote to ‘Abd al-Malik b. Marwan stating that he had written to him about Khadijah bt. Khuwaylid, asking him about when she died. She died three years or close to that before the Messenger of God’s departure from Mecca, and he married ‘A’ishah after Khadijah’s death. The Messenger of God saw ‘A’ishah twice- [first when] it was said to him that she was his wife (she was six years old at that time), and later [when] he consummated she was nine years old.
(The report goes back to Hisham b. Muhammad. See above, I, 1766). Then the Messenger of God married ‘A’ishah bt. Abi Bakr, whose name is ‘Atiq b. Abi Quhafah, who is ‘Uthman, and is called ‘Abd al-Rahman b. ‘Uthman b. ‘Amir b. ‘Amir b. Ka‘b b. Sa‘d b. Taym b. Murrah: [The Prophet] married her three years before the Emigration, when she was seven years old, and consummated the marriage when she was nine years old, after he had emigrated to Medina in Shawwal. She was eighteen years old when he died. The Messenger of God did not marry any maiden except her. (The History of al-Tabari, Volume IX, pp. 130-131)
‘A’ishah, daughter of Abu Bakr.
Her mother was Umm Ruman bt. ‘Umayr b. ‘Amr, of the Banu Duhman b. al-Harith b. Ghanm b. Malik b. Kinanah.
The Prophet married ‘A’ishah in Shawwal in the tenth year after the [beginning of his] prophethood, three years before Emigration. He consummated the marriage in Shawwal, eight months after Emigration. On the day he consummated the marriage with her she was nine years old.
According to Ibn ‘Umayr [al-Waqidi]- Musa b. Muhammad b. ‘Abd al-Rahman- Raytah- ‘Amrah [bt. ‘Abd al-Rahman b. Sa’d]: ‘A’ishah was asked when the Prophet consummated his marriage with her, and she said:
The Prophet left us and his daughters behind when he emigrated to Medina. Having arrived at Medina, he sent Zayd b. Harithah and his client Abu Rafi’ for us. He gave them two camels and 500 dirhams he had taken from Abu Bakr to buy [other] beasts they needed. Abu Bakr sent with them ‘Abdallah b. Urayqit al-Dili, with two or three camels. He wrote to [his son] ‘Abdallah b. Abi Bakr to take his wife Umm Ruman, together with me and my sister Asma’, al-Zubayr’s wife, [and leave for Medina]. They all left [Medina] together, and when they arrived at Qudayd Zayd b. Harithah bought three camels with those 500 dirhams. All of them then entered Mecca, where they met Talhah b. ‘Ubaydallah on his way to leave town, together with Abu Bakr’s family. So we all left: Zayd b. Harithah, Abu Rafi’, Fatimah, Umm Kulthum, and Sawdah bt. Zam‘ah. Ayd mounted Umm Ayman and [his son] Usamah b. Zayd on a riding beast; ‘Abdallah b. Abi Bakr took Umm Ruman and his two sisters, and Talhah b. ‘Ubaydallah came [too]. We all went together, and when we reached Bayd in Tamanni my camel broke loose. I was sitting in the litter together with my mother, and she started exclaiming "Alas, my daughter, alas [you] bride"; then they caught up with our camel, after it had safely descended the Lift. We then arrived at Medina, and I stayed with Abu Bakr’s children, and [Abu Bakr] went to the Prophet. The latter was then busy building the mosque and our homes around it, where he [later] housed his wives. We stayed in Abu Bakr’s house for a few days; then Abu Bakr asked [the Prophet] "O Messenger of God, what prevents you from consummating the marriage with your wife?" The Prophet said "The bridal gift (sadaq)." Abu Bakr gave him the bridal gift, twelve and a half ounces [of gold], and the Prophet sent for us. He consummated our marriage in my house, the one where I live now and where he passed away. (The History of Al-Tabari: Biographies of the Prophet’s Companions and Their Successors, translated by Ella Landau-Tasseron [State University of New York Press, Albany 1998], Volume XXXIX, pp. 171-173; underline emphasis ours)
IBN KATHIR
Yunus b. Bukayr stated, from Hisham b. ‘Urwa, from his father who said, "The Messenger of God (SAAS) married ‘A’isha three years after (the death of) Khadija. At that time (of the contract) ‘A’isha had been a girl of six. When he married her she was nine. The Messenger of God (SAAS) died when ‘A’isha was a girl of eighteen. "
This tradition is considered gharib (unique in this line).
Al-Bukhari had related, from ‘Ubayd b. Isma‘il, from Abu Usama, from Hisham b. ‘Urwa, from his father, who said, "Khadija died three years before the emigration of the Prophet (SAAS). He allowed a couple of years or so to pass after that, and then he contracted marriage with ‘A’isha when she was six, thereafter consummating marriage with her when she was nine years old."
What ‘Urwah stated here is mursal, incomplete, as we mentioned above, but in its content it must be judged as muttasil, uninterrupted.
His statement, "He contracted marriage with ‘A’isha when she was six, thereafter consummating marriage with her when she was nine" IS NOT DISPUTED BY ANYONE, and is well established in the sahih collections of traditions and elsewhere.
He consummated marriage with her during the second year following the emigration to Medina.
His contracting marriage with her took place some three years after Khadija’s death, though there is disagreement over this.
The hafiz Ya‘qub b. Sufyan stated, "Al-Hajjaj related to us, that Hammad related to him, from Hisham b. ‘Urwa, from his father, from ‘A’isha, who said, ‘The Messenger of God (SAAS), contracted marriage with me (after) Khadija’s death and before his emigration from Mecca, when I was six years old. After we arrived in Medina some women came to me while I was playing on a swing; my hair was like that of a boy. They dressed me up and put make-up on me, then took me to the Messenger of God (SAAS), and he consummated our marriage. I was a girl of nine.’"
The statement here "muttawaffa Khadija", "Khadija’s death" has to mean that it was shortly thereafter. Unless, that is, the word, ba‘da, "after", originally preceded this phrase and had been omitted from the account. The statement made by Yunus b. Bukayr and Abu Usama from Hisham b. ‘Urwa, from his father, is, therefore, not refuted. But God knows best. (Ibn Kathir, The Life of the Prophet Muhammad (Al-Sira al-Nabawiyya), Volume II, translated by professor Trevor Le Gassick, reviewed by Dr. Muneer Fareed [Garnet Publishing Limited, 8 Southern Court, south Street Reading RG1 4QS, UK; The Center for Muslim Contribution to Civilization, first paper edition, 2000], pp. 93-94)
IBN QAYYIM
Next, the Prophet… married Um Abdallah, Aishah, as-Siddiqah (the truthful one), daughter of as-Siddiq (the truthful one) Abu Bakr ibn Abi Qu’hafah, whom Allah has exonerated from above the seven heavens. ‘Aishah bint Abu Bakr was the beloved wife of the Prophet… The angel showed Aishah… to the Prophet… while she was wrapped in a piece of silk cloth, before he married her, and said to him. "This is your wife." The Prophet… married Aishah… during the lunar month of Shawwal, when she was six, and consummated the marriage in the first year after the Hijrah, in the month of Shawwal, when she was nine. The Prophet… did not marry any virgin, except Aishah… and the revelation never came to him while he was under the blanket with any of his wives, except Aishah. (Ibn Qayyim Al-Juaziyyah, Zad-ul Ma’ad fi Hadyi Khairi-l ‘Ibad (Provisions for the Hereafter, From the Guidance of Allah’s Best Worshipper), translated by Jalal Abualrub, edited by Alaa Mencke & Shaheed M. Ali [Madinah Publishers & Distributors, Orlando, Fl: First edition, December 2000], Volume I, pp. 157-158

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शुक्रवार, जून 01, 2018

मोदी से हिन्दुओ को शिकायत

कैराना को #हिंदुओं की हार बताने वालों जरा मेरी भी सुनते जाना।
ये 2014 के बाद हिंदुओं की पहली हार नही थी।
1. पहली हार तब हुई जब #गौ -सेवकों और रक्षकों को गुंडा बोला और उनपर कार्यवाई की गई सरकार की ओर से
2. दूसरी हार तब जब राम मंदिर का तिरपाल बदलवाने की जगह #अजमेर_शरीफ में चादर चढ़ाई गई
3. तीसरी हार तब जब देश का सच्चा आदर्श #मुहम्मद को बताया गया
4. चौथी हार तब जब किसानों को # गालियाँ और
# गोलियाँ दी गयी
5. पांचवी हार तब जब #रामलला को गाली देने वाले को पार्टी में शामिल करवाया गया
6. छठी हार तब जब आपने #महबूबा के साथ मिलकर सरकार बनाई #कश्मीर में
7. सातवी हार तब जब #आसिफा कांड में हिंदुओं को फसाया गया और आप चुप रहे
8. आठवीं हार तब जब #गोआ में #गौमांश की बिक्री पर छूट दी आपने
9. नौवीं हार तब जब आप सारे #मस्जिद और # दरगाह घूमते रहे मगर 4 साल में एक बार भी #राम_मंदिर नही गए दर्शन के लिए भी
10. दसवीं हार तब हुई जब # लालकिला , #एयर_इंडिया ,
# रेलवे_स्टेशन आदि बेच दिए
11. ग्यारहवीं हार तब हुई जब आपने #रमजान में #सीजफायर का आदेश दिया
12. बारहवीं हार तब मिली जब आपको
# उज्ज्वला_योजना की प्रेरणा किसी #हामिद से मिली न कि किसी #हरि_राम से
13. तेरहवीं हार तब मिली जब आपने # अपनी_हार का ठीकरा हमेशा #हिंदुओं के सर फोड़ा
14. चौदवीं हार #धारा_370 के न हटने पर हुई
15. पंद्रहवीं हार #कॉमन_सिविल_कोड के न आने पर हुई
16. सोलहवीं हार जब #राजस्थान #मध्यप्रदेश #बनारस , #महाराष्ट्र में मंदिर तोड़े गए
17. सत्रहवीं हार जब इस देश मे #भीम_आर्मी ने सवर्णों को मारा और आप चूप्पी साधे रहे
18. अठारहवीं हार सवर्णों के आंदोलन को आपने बल पूर्वक दबाया
19. उन्नीसवीं हार जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद आपने SC-ST कानून को बदलने से मना कर दिया
20. बीसवीं हार तब मिली जब आपने #इफ्तारी देनी शुरू की, हज के नियम बदल दिए
नोट :- और भी है परंतु अब लिखने में उंगलियाँ दर्द हो रही है
आपने हिंदुओं को इतने घाव दिए और जब हिंदुओं ने सवाल पूछ लिया तो आप तिलमिला उठे ।।

बैंकर माफिया और अनार्थशास्त्र

दिनेश कुमार प्रजापति
अगर आप पूरी सच्चाई जानना चाहते तो पूरी कहानी पढे ।
(१) भूतकाल
कहानी शुरू होती है कई सालो पहले जब सोने और चाँदी के सिक्के चलते थे। तक बैंकिंग सिस्टम नही था। सिर्फ अर्थ-शास्त्र था। आज अर्थ-शास्त्र को बैंकिंग सिस्टम और शेयर बाजार ने पूरी तरह से हथिया लिया है। ये सब कैसे हुआ ये जानते है।
पहले सोने और चाँदी के सिक्के चलने लगे। जब सोने और चाँदी के सिक्के चलते थे तब बैंकर लोगो ने योजना बनाई और इस योजना के चलते उन्होने लोगो से बोला की आप अपना सोना चाँदी हमारे पास रखो हम उसकी हिफाजत करेंगे। जब भी कोई सोना चाँदी बैंकर के पास रखता तो उसको रसीद के तौर पर एक "पेपर रसीद" मिल जाती थी। ये पेपर रसीद ही शुरूआती पेपर नोट थे। बैंकर लोगो को रसीद बनाना आसान था बजाय कि सोना खोदने की और लोगो को भी इन कागज के नोट को मार्केट में उपयोग करना आसान था।
तब जितना सोना होता था उतनी ही रसीद होती थी।
फिर बैंकर लोगो को अर्थव्यवस्था में कब्जा जमाने को पहला कदम मिला, उन लोगो ने उधार देना चालू कर दिया। जो लोग बचत करते थे उसी सोने में से ही किसी दूसरे को उधार (लोन) मिलता था। इस तरह बैंकर लोगो को पहली बार इतिहास में अर्थशास्त्र को अपनी मर्जी से मोडने का पहला प्रावधान मिला। क्योंकी वो उधार दे सकते थे इसका सबके बडा फायदा अमीर और बहुत अमीर लोगो को हुआ क्योंकी अमीरो को बडी पूँजी आसानी से मिल गई जिससे उन्होने बडे बडे कारखाने लगाये और वो अमीर होते चले गये क्योंकि पैसे से पैसे बनाना बहुत आसान होता है। गरीब को भी लोन मिलता था उससे कोई फायदा नही था ग़रीबों को।
चलो चलते है दूसरे कदम पर जिससे बैंकर लोगो ने अर्थव्यवस्था पर पूरी तरह से कब्जा जमाने के चाल चली
एक दिन बैंकर को लालच आया और ये सोचा की वो उतना ही उधार दे सकता है जितना कि उसके पास सोना होता है। अगर ऐसा हो जाये की वो उस सोने के नाम की नोट देना चालू कर दे जो उसकी तिजोरी में है ही नही तो कैसे रहेगा। ये था दूसरा प्रावधान जिससे काफी सारी ऐसी बैंक नोट बनाये गये जिसके समानांतर कोई सोना था ही नही ।
लोगो को इस लूट के बारे में पता ही नही चल पाया क्योंकी लोग अब सोने के सिक्को में लेनदेन करते ही नही थे, वो तो कागज के नोट से ही लेनदेन करते थे। और सारे लोग एक साथ मिलकर अपना सोना बैंक से निकलवाते नही थे। मान लो अगर सारे लोग अपना सोना बैंक से निकलवाने पहुँच जाये तो बैंक तो लुट जायेगी क्योंकी उसने जितने नोट (रसीद ) बाँट रखी है उतना सोना तो है ही नही बैंक में।
इस दूसरे कदम के चलते दुनिया के अमीर लोग महाअमीर हो गये क्योंकि अब वो बैंक में रखे सोने के बराबर लोन लेने तक सीमित नही थे, बैंक असली सोने से कई गुणा ज्यादा की रसीदे (नोट) देकर इन अमीर को बडे बडे लोन सस्ती ब्याज दरों पर देती थी । इस पैसे से इन अमीरों ने बडे बडे कारखाने लगाये।
इसके कारण गरीब और ज्यादा गरीब हो गया। कैसे ? अरे भाई मान लो १०० लोग है हर एक के पास १ किलो सोना है। पूरी अर्थव्य्वस्था है १०० किलो सोने की और हर एक बंदे का मार्केट में रूतबा १% का है। अब बैंकर लोगो ने ५०० किलो की रसीद बना दी है और ४०० किलो की रसीद २ अमीर लोगो को दे दी । इस कारण से ९८ गरीब लोगो के पास ९८ किलो सोना है और बाकी २ अमीर लोगो से पास ४०२ किलो सोना । यानी जिस आदमी में का रूतबा १% का था वो अब 0.2% हो गया । यानी बिना किसी मेहनत से बैंक की कृपा से 2 अमीर बंदे 1% के ४०.२% पहुँच गये (४० गुणा बडत) और ९८ गरीब बंदे १% से ०.२% पर लुडक गये (५ गुणा निचे) ।
जो गरीब और अमीर के बीच खाई है उसका मुख्य कारण बैंकिंग सिस्टम ही है।
इन दोनो कदमों के बाद बडते है तीसरे कदम की ओर ।
तीसरे कदम में ये हुआ की सरकार ने पुराने बैंक खतम कर दिये और सोने चाँदी के सिक्को की जगह पेपर नोट (कागज के नोट) को ही मुख्य करंसी मान लिया । नये बैंक बने जो इस पेपर नोट को रखते थे।
फिर पेपर नोट चलने लगे । जब पेपर नोट थे तब बैंकर लोगो ने योजना बनाई और इस योजना के चलते उन्होने लोगो से बोला की आप अपना पेपर नोट हमारे पास रखो हम उसकी हिफाजत करेंगे । जब भी कोई पेपर नोट बैंकर के पास रखता तो उसको रसीद के तौर पर एक "बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड" मिल जाती था । ये रसीद ही शुरूआती "बैंक मनी" थे।
बैंकर लोगो को “बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड” बनाना आसान था बजाय कि नोट छापने की और लोगो को भी इन "बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड" को मार्केट में उपयोग करना आसान था। तब जितना "पेपर मनी" होता था उतनी ही "बैंक मनी" (यानी डीजीटल मनी) होती थी ।
फिर बैंकर लोगो को अर्थव्यवस्था में कब्जा जमाने को चौथा कदम मिला, उन लोगो ने उधार देना चालू कर दिया ।
जो लोग बचत करते थे उसी पैसे में से ही किसी दूसरे को उधार (लोन) मिलता था । इस तरह बैंकर लोगो को फिर से अर्थशास्त्र को अपनी मर्जी से मोडने का प्रावधान मिला । क्योंकी वो उधार दे सकते थे इसका सबके बडा फायदा अमीर और बहुत अमीर लोगो को हुआ क्योंकी अमीरो को बडी पूँजी आसानी से मिल गई जिससे उन्होने बडे बडे कारखाने लगाये और वो अमीर होते चले गये क्योंकि पैसे से पैसे बनाना बहुत आसान होता है । गरीब को भी लोन मिलता था उससे कोई फायदा नही था गरीबो को।
चलो चलते है पाँचवे कदम पर जिससे बैंकर लोगो ने अर्थव्यवस्था पर पूरी तरह से कब्जा जमाने के चाल चली
एक दिन बैंकर को लालच आया और ये सोचा की वो उतना ही उधार दे सकता है जितना कि उसके पास पेपर नोट होता है । अगर ऐसा हो जाये की वो उस रूपये के नाम की “डीजिटल मनी (चेक, लोन)” देना चालू कर दे जो उसकी तिजोरी में है ही नही तो कैसे रहेगा। ये था पाँचवा कदम जिससे काफी सारी ऐसी बैंक मनी बनाये गये जिसके समानांतर कोई रूपया था ही नही।
लोगो को इस लूट के बारे में पता ही नही चल पाया क्योंकी लोग अब पेपर नोट में लेनदेन करते ही नही थे , वो तो “चेक, डेबिट कार्ड , क्रेडिट कार्ड और इंटरनेट बैंकिग” से ही लेनदेन करते थे । और सारे लोग एक साथ मिलकर अपना नोट बैंक से निकलवाते नही थे। मान लो अगर सारे लोग अपना पैसा बैंक से निकलवाने पहुँच जाये तो बैंक तो लुट जायेगी क्योंकी उसने जितने डिजीटल मनी बाँट रखी है उतने कागज के नोट तो है ही नही बैंक में।
(२) वर्तमान
आज दिल्ली जैसे महानगरो में रहने वाले लोगो की सेलेरी एटीएम कार्ड के अंदर आती है और कार्ड से ही खर्च हो जाती है । दिल्ली वालो को बस सब्जी और आटो वाले के लिये ही पेपर नोट की जरूरत पडती है ।
इस पाँचवे कदम के के चलते दुनिया के महाअमीर लोग और भी महामहाअमीर हो गये क्योंकि अब वो बैंक में रखे नोट के बराबर लोन लेने तक सीमित नही थे, बैंक इनको असली नोट से कई गुणा ज्यादा की बैंक मनी देकर इन अमीर को बडे बडे लोन सस्ती ब्याज दरों पर देने लगी । इस पैसे से इन अमीरों ने बडे बडे कारखाने लगाये ।
इसके कारण गरीब और गरीब हो गया। कैसे ? वो तो उपर बताया ही है । जो गरीब और अमीर के बीच खाई है उसका मुख्य कारण बैंकिंग सिस्टम ही है।
अब चलते है हमारे असली सवाल की ओर।
पहली ग़लतफ़हमी ये की बैंक आपका उधार में असली रूपया पैसा दे रहा है ।
दूसरी ग़लतफ़हमी ये की बैंक किसी दूसरे बंदे का पैसा आपको उधार या लोन दे रहा है । किसी दूसरे के पास ज्यादा पैसे थे उसने सोचा कि बैंक में रख देता हूँ ताकी थोडा बहुत ब्याज मिल जाये । और वो पैसे आपको लोन या उधार में मिल गये ।
तीसरी ग़लतफ़हमी ये है कि बैंक अपनी मेहनत की कमाई में से कुछ पैसा आपको उधार देता है।
ये तीनो बाते गलत है, मै बताता हूँ की असलीयत में क्या होता है। माना आपको २००० रूपये के केमरे की जरूरत है और आप किसी शोप पर क़ेडिट कार्ड उपयोग करते हो तो बैंक आपको कोई असली रूपया नही देता है । वो आपके खाते में लिख देगा -२००० (माइनस २ हजार) और दुकान वाले के खाते में लिख देगा +२००० ! चाहे आप लोन लो या किसी भी प्रकार का उधार, बैंक वाले आपको असली के नोट नही देते है वो आपको डीजीटल मनी देते है जिसका कोई अस्तित्व ही नही है।
आज हमारी अर्थव्यवस्था में ५% केश है और बाकी ९५% डीजीटल मनी है जो की हमारे बैंको ने मनमाने तरीके से मार्केट मे डाली है । ये सारा पैसा कंपुटर में ही अस्तित्व रखाता है । हमको पैसा कमाने में बहुत मेहनत लगती है लेकिन बैंक वाले बटन दबा कर मनचाही ”बैंक मनी” अमीर लोगो को धंधे खोलने के नाम पर दे देती है जिसको हमे वापस कमाने के लिये इन कंपनीयों के अंदर काम करना पडता है ।
आपको जानकर आश्चर्य होगा की ये सब एक प्रणाली के अंतर्गत होता है जिसको नाम दिया गया है - ”Fractional Reserve System” !
(४) Fractional Reserve System
दुनिया के सारे देशो में एक केंद्रिय बैंक होता है । जैसे युके में बैंक ओफ इंग्लैंड है, भारत में आरबीआई है अमेरीका में फेड है ।
ये केंद्रीय बैंक अपने अधीन बैंको के साथ ही Fractional Reserve System को चलाते है ।
हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते है पर बैंकिंग सिस्टम और उसकी प्रणाली में कोई लोकतंत्र नही है । FRS में जो भी नया पैसा बैंक पैदा करती है वो सारा पैसा उधार के रूप में पैदा होता है और उधार चुकाने पर खतम हो जाता है ।
FRS को समझना बहुत आसान है । मान लो रामू ने १०० रूपये (पेपर नोट) बैंक ने जमा किये । तो बैंक उसमें से ५ रूपये रख लेती है बाकी ९५ (डीजीटल मनी) वो किसी को लोन वो श्यामू को देती है । श्यामू इस लोन से मीरा से सामान लेता है, मीरा बैंक में ही ९५ लाकर जमा कर देती है ।
मीरा ने जो पैसे बैंक में डाले वो बैंक के ही थे जिसे हम बैंक मनी बोलते है, दिक्कत यहाँ से चालू होती है जब बैंक इस ९५ को भी नई जमा पूँजी मान लेती है और फिर से इसे लोन के लिये आगे कर देती है । इस बार बैंक ९५ में से ४.२५ अपने पास रख लेती है और बाकी के ९०.७५ रूपये फिर से लोन देती है । इस प्रकार बैंक ने दो बार लोन देकर १०० रूपये के १०० + ९५ + ९०.७५ = २८५.७५ रूपये दिखा दिये । बार बार इसी चक्र को बरा बार चलाया जाये तो होते है २००० रूपये ।
इस प्रकार जब भी बैक में १०० असली पैसा जमा होने पर बैंक २००० रूपया बना देती है । १९०० रूपया उधार के रूप में बनाया गया है । ये १९०० रूपया डीजीटल मनी है जो बैंक अपनी मनमानी तरीके से बाँटती है ।
भारत की सारी जनता उधार को कभी भी नही चुका सकती क्योंकी उधार ब्याज के साथ चुकाना पडता है और सारी जनता को ब्याज के साथ चुकाने के लिये जितनी डिजिटल मनी है उससे ज्यादा मनी लानी पडेगी । फिर से नई मनी (रूपया) बनाना पडेगा । बैंक नया रूपया उधार के रूप में ही बनाता है तो ये कभी उधार चुकने वाला नही है ।
आसानी से समझने के लिये पूरी दुनिया को एक गाँव मान ले, और सोने के सिक्को को रूपया । अब मान लो पूरी दुनिया का सोना १०० किलो ही है जो सारा का सारा उधार के रूप में बँट गया तो पूरी जनता को ११० किलो सोना लौटाना पडेगा जो की संभव ही नही है ।
जैसा की मैने बताया की जब भी बैंक नया लोन देती है वो डीजीटल मनी के रूप में नया पैसा पैदा करता है, इसके अलावा एक सच ये भी है की जब लोन चुकाया जाता है तो पैदा अर्थव्यवस्था से खतम भी होता है । अगर भारत की जनता किसी जादू से लोन चुका दे तो भारत की ९५% पूँजी खतम हो जायेगी ।
इसी बैंकींग सिस्टम ने ही अमीरो को महाअमीर और गरीबो को महागरीब बना दिया है । बडे हुये हाउसिंग प्राईज का जिम्मेदार भी यही सिस्टम है ।
(३) भविष्य
अब धीरे धीरे हमारा सिस्टम आखरी और छटे कदम की ओर जा रहा है । इस सिस्टम में जिस तरीके से सोने चाँदी के सिक्के गायब कर दिये गये उसी तरीके से पेपर नोट भी गायब कर दिये जायेंगे । हमें एक केशलेश (cashless) समाज की ओर धकेला जा रहा है । जहाँ पर अमीरो और गरीबो के बीच की खाई कभी नही भर पायेगी । सारी अर्थव्यवस्था की नकेल बैंकर माफीया लोग के साथ में आयेगी ।
यह मेरा पहला लेख है, भाषा को बहुत ज्यादा आसान बनाने की कोशिश की गई है । इस विषय पर मैं लगातार शोध कर रहा हूँ हो सकता है मेरी कोई बात थोडी सी गलत हो लेकिन मोटा मोटा आप ये मान ले की बैंकिंग सिस्टम को बैंकर माफिया चला रहे है ।
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