मंगलवार, नवंबर 15, 2011

बाल दिवस या भांड दिवस , निर्णय आप करें

बाल दिवस या भांड दिवस , निर्णय आप करें

by Ignited Mind

14 november के दिन 'नेहरू' के जन्म दिन को कांग्रेस पार्टी में नेहरु समर्थकों द्वारा 'बालदिवस' की तरह मनाना शुरु कर दिया गया और तभी से बालदिवस के दिन बच्चे किसी "महान बालक' के बजाये नेहरू का जन्मदिन मनाने में लग गये हैं। इस मौके पर हर स्कूल मे बच्चो के कई कार्यक्रम किये जाते है ओर नहरू का गुणगान इस प्रकार किया जाता है कि भारत के सकल इतिहास मे केवल वो ही देश का सच्चा सपूत था

बालदिवस पर उन महान के जन्मदिवस पर मनाया जाना चाहिए और उन बालकों को याद करना चाहिये जिन्होने देश या धर्म के लिये कुछ न कुछ अच्छा काम किया हो हमारे देश में शकुन्तला पुत्र 'भरत', 'श्री कृष्ण', 'चन्द्रगुप्त मौर्य', 'शिवाजी', 'वीर हकीकत राय' , ध्रुव , प्रहलाद, गोरा और बादल, अभिमन्यु, आरुणी , तथा 'गुरु गोबिन्द सिहं के सुपुत्रों' और इनके ही जैसे अनेक वीर बालक हुये हैं जो अपने सम्पूर्ण जीवन और बाल्यकाल के कर्मों के कारण आदर्श माने जाते हैं।

सवाल ये है कि इस नेहरु जैसे अय्याश इंसान के जन्म दिवस पर बच्चो को उसके घटिया आदर्श देना कहां तक उचित है.......।

और एक ये तर्क कि नेहरु को बच्चों से बहुत प्यार था इसलिए उनके जन्मदिन पर बालदिवस मनाया जाये , पर बच्चों से किसे प्यार नही है , क्या आपको और मुझे नहीं ! हम सबको बच्चों से बहुत प्यार है तो फिर नेहरु को बच्चों से प्यार था तो क्या बड़ा कम कर दिया उन्होंने बच्चों के लिए ??? ये तर्क बहुत ही बचकाना है,

आज देश में जो आतंकवाद , संप्रदायवाद की समस्या है । कश्मीर की समस्या , राष्ट्र भाषा हिन्दी की समस्या और चीन तथा पाकिस्तान द्वारा भारत की भूमि पर अतिक्रमण की समस्या है । इन सभी समस्याओं के मुख्य उत्तरदायी जवाहर लाल नेहरू है , जिन्हें भारत सरकार चाचा नेहरू कहती है ...

नेहरु ने अपनी सत्ता के लालच में पकिस्तान बना दिया,और कश्मीर को देशद्रोहियों और आतंकवादियों के हवाले कर दिया, चीन से दोस्ती के नाम पर भारत के बहादुर सेनिको को अंतिम समय तक आगे बढ़ने से रोके रखा और इस कारण से आज तक हज़ारों वर्गकिलोमीटर भारत की ज़मीन पर चीन का कब्ज़ा है,

सुरा ओर सुन्दरियो मे चूर हो कर इस व्यक्ति ने जो नये भारत की नींव डाली थी वहीं नींव आज भारत का दागदार ललाट बन चुकी है....

खानदानी गद्दार

नेहरू से पहले ….नेहरू की पीढ़ी इस प्रकार है ….

गंगाधर नेहरु GANGADHAR NEHARU

राज कुमार नेहरु RAJ KUMAR NEHARU

विद्याधर नेहरु VIDYADHAR NEHARU

मोतीलाल नेहरु MOTILAL NEHARU

जवाहर लाल नेहरु JAWAHAR LAL NEHARU

गंगाधर नेहरु (NEHARU) उर्फ़ GAYAS – UD – DIN SHAH जिसे GAZI की उपाधि दी गई थी ….जिसका मतलब होता है (KAFIR – KILLER)

इस गयासुद्दीन गाजी ने ही मुसलमानों को खबर (मुखबिरी ) दी थी की गुरु गोबिंद सिंह जी नांदेड में आये हुए हैं , इसकी मुखबिरी और पक्की खबर के कारण ही सिखों के दशम गुरु गोबिंद सिंह जी के ऊपर हमला बोला गया, जिसमे उन्हें चोट पहुंची और कुछ दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई थी.

और आज नांदेड में सिक्खों का बहुत बड़ा तीर्थ-स्थान बना हुआ है. जब गयासुद्दीन को हिन्दू और सिक्ख मिलकर चारों और ढूँढने लगे तो उसने अपना बादल लिया और गंगाधर राव बन गया, और उसे मुसलमानों ने पुरस्कार के रूप में अलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में इशरत मंजिल नामक महल/हवेली दिया, जिसका नाम आज आनंद भवन है

.आनंद भवन को आज अलाहाबाद में कांग्रेस का मुख्यालय बनाया हुआ है. इशरत मंजिल के बगल से एक नहर गुजरा करती थी, जिसके कारण लोग गंगाधर को नहर के पास वाला, नहर किनारे वाला, नहर वाला, neharua , आदि बोलते थे जो बाद में गंगाधर नेहरु अपना लिखने लगा इस प्रकार से एक नया उपनाम अस्तित्व में आया नेहरु और आज समय ऐसा है की एक दिन अरुण नेहरु को छोड़कर कोई नेहरु नहीं बचा

अपने आप को कश्मीरी पंडित कह कर रह रहा था गयासुद्दीन जिसने अपना नाम बदलकर गंगाधर रख लिया था जो की असल में एक अफगानी था और लोग आसानी से विश्वास कर लेते थे क्यूंकि कश्मीरी पंडित भी ऐसे ही लगते थे. अपने आप को पंडित साबित करने के लिए सबने नाम के आगे पंडित लगाना शुरू कर दिया

पंडित गंगाधर नेहरु

पंडित विद्याधर नेहरु

पंडित मोतीलाल नेहरु

पंडित जवाहर लाल नेहरु लिखा ..

और यही नाम व्यवहार में लाते गए

http://anil9gupta.jagranjunction.com/?p=270

नेहरु की दृष्टि में गाँधी

गांधी जी के सर्वाधिक प्रिय व खण्डित भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा – ” ओह दैट आफुल ओल्ड हिपोक्रेट ” Oh, that awful old hypocrite – ओह ! वह ( गांधी ) भयंकर ढोंगी बुड्ढा । यह पढकर आप चकित होगे कि क्या यह कथन सत्य है – गांधी जी के अनन्य अनुयायी व दाहिना हाथ माने जाने वाले जवाहर लाल नेहरू ने ऐसा कहा होगा , कदापि नहीं । किन्तु यह मध्याह्न के सूर्य की भाँति देदीप्यमान सत्य है – नेहरू ने ऐसा ही कहा था ।

प्रसंग लीजिये – सन 1955 में कनाडा के प्रधानमंत्री लेस्टर पीयरसन भारत आये थे । भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के साथ उनकी भेंट हुई थी । भेंट की चर्चा उन्होंने अपनी पुस्तक ” द इन्टरनेशनल हेयर्स ” में की है -

सन 1955 में दिल्ली यात्रा के दौरान मुझे नेहरू को ठीक – ठीक समझने का अवसर मिला था । मुझे वह रात याद है , जब गार्डन पार्टी में हम दोनों साथ बैठे थे , रात के सात बज रहे थे और चाँदनी छिटकी हुई थी । उस पार्टी में नाच गाने का कार्यक्रम था । नाच शुरू होने से पहले नृत्यकार दौडकर आये और उन्होंने नेहरू के पाँव छुए फिर हम बाते करने लगे ।

उन्होंने गांधी के बारे में चर्चा की , उसे सुनकर मैं स्तब्ध हो गया । उन्होंने बताया कि गांधी कैसे कुशल एक्टर थे ? उन्होंने अंग्रेजों को अपने व्यवहार में कैसी चालाकी दिखाई ? अपने इर्द – गिर्द ऐसा घेरा बुना , जो अंग्रेजों को अपील करे ।

गांधी के बारे में मेरे सवाल के जबाब में उन्होंने कहा – Oh, that awful old hypocrite नेहरू के कथन का अभिप्राय हुआ – ” ओह ! वह भयंकर ढोंगी बुड्ढा ” ।( ग्रन्थ विकास , 37 – राजापार्क , आदर्शनगर , जयपुर द्वारा प्रकाशित सूर्यनारायण चौधरी की ‘ राजनीति के अधखुले गवाक्ष ‘ पुस्तक से उदधृत अंश )

नेहरू द्वारा गांधी के प्रति व्यक्त इस कथन से आप क्या समझते है – नेहरू ने गांधी को बहुत निकट एवं गहराई से देखा था । वह भी उनके विरोधी होकर नहीं अपितु कट्टर अनुयायी होकर । फिर क्या कारण रहा कि वे गांधी जी के बारे में अपने उन दमित निश्कर्षो को स्वार्थवश या जनभयवश अपने देशवासियों के सामने प्रकट न कर सके , एक विदेशी प्रधानमंत्री के सामने प्रकट कर दिया ?

इस चरित्रहीन से क्या चरित्र सीखें हम और हमारी आने वाली पीढ़ी ?

जवाहर लाल नेहरू का जो अपनी बेटी समान लड़कियों को भी अपनी अय्याशी का साधन समझता रहा । इसके जैसे निर्लज्ज अय्याश पुरूष को बच्चे भी स्वीकारने को तैयार नहीं कि इसे चाचा कहा जाये ।

“ हमारे पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तो नास्तिक थे। वह विधुर थे। कई औरतें उनकी जिंदगी में थीं। उनमें पद्मजा नायडू और एडविना माउंटबेटन भी थीं।

एक श्रद्धा माता थीं। वह तांत्रिक थीं। उनके बारे में एमओ मथाई ने अपनी चर्चित किताब में काफी कुछ लिखा है। यह भी कि पंडितजी से उन्हें एक बच्चा भी हुआ था। वह खूबसूरत साध्वी थीं। मैं उन्हें ठीक से जानता था। मैं एक बार उनसे मिलने गया था,

तब वह निगमबोध घाट पर चिताओं के इर्द-गिर्द रहती थीं। बाद में वह जयपुर चली गई थीं। वहां महाराजा ने एक छोटा-सा किला उन्हें दे दिया था। उसमें कई परिवार सांपों और कुत्तों के बीच रहते थे। मैं जब भी जयपुर जाता, उनसे जरूर मिलता था। उन्होंने मान लिया था कि उनके पंडितजी से रिश्ते थे। “

{ खुशवंत सिंह, वरिष्ठ लेखक और पत्रकार }

एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक के पृष्ठ २०६ पर लिखते हैं - "१९४८ में वाराणसी से एक सन्यासिन दिल्ली आई जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था । वह संस्कृत की विद्वान थी और कई सांसद उसके व्याख्यान सुनने को बेताब रहते थे । वह भारतीय पुरालेखों और सनातन संस्कृति की अच्छी जानकार थी । नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी.उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को राजी हुए ।

चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और काम बहुत था, नेहरू ने अधिकतर बार इंटरव्य़ू आधी रात के समय ही दिये । मथाई के शब्दों में - एक रात मैने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा, वह बहुत ही जवान, खूबसूरत और दिलकश थी - । एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय श्रध्दामाता उनसे मिली और उपाध्याय जी हमेशा की तरह एक पत्र लेकर नेहरू के पास आये, नेहरू ने भी उसे उत्तर दिया, और अचानक एक दिन श्रद्धा माता गायब हो गईं, किसी के ढूँढे से नहीं मिलीं ।

नवम्बर १९४९ में बेंगलूर के एक कॉन्वेंट से एक सुदर्शन सा आदमी पत्रों का एक बंडल लेकर आया । उसने कहा कि उत्तर भारत से एक युवती उस कॉन्वेंट में कुछ महीने पहले आई थी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया ।

उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद ही उस बच्चे को वहाँ छोडकर गायब हो गई थी । उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी में लिखे कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं, पत्रों का वह बंडल उस आदमी ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया ।

मथाई लिखते हैं - मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की काफ़ी कोशिश की, लेकिन कॉन्वेंट की मुख्य मिस्ट्रेस, जो कि एक विदेशी महिला थी, बहुत कठोर अनुशासन वाली थी और उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं कहा.....लेकिन मेरी इच्छा थी कि उस बच्चे का पालन-पोषण मैं करुँ और उसे रोमन कैथोलिक संस्कारों में बडा करूँ, चाहे उसे अपने पिता का नाम कभी भी मालूम ना हो.... लेकिन विधाता को यह मंजूर नहीं था....

नेहरू–एडविना के प्रेम सम्बन्ध

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरू और अन्तिम वायसराय लार्ड माउन्टबेटेन की पत्नी एडविना के बीच रोमांस की चर्चा सर्वव्यापी है। एडविना की बेटी पामेला हिल्स ने भी इसे स्वीकार किया। दोनों के बीच भावनात्मक सम्बन्धों को नजदीक से देखा था।

एडविना की मृत्यु के बाद उनके सूटकेस से मिले नेहरू के सैकड़ों प्रेम–पत्रों ने इसकी पुष्टि की। इसी आधार पर पामेला ने ‘‘इण्डिया रिमेम्बर्ड : ए पर्सनल एकाउन्ट आफ द माउन्टबेटन ड्यूरिंग द ट्रांसफर आफ पावर’’ नामक पुस्तक लिखी।

पामेला ने पत्रकार करण थापर के साथ एक साक्षात्कार में बताया कि उसके पिता अपनी पत्नी से उस समय सहायता लिया करते थे, जब किसी मुद्दे पर नेहरू अड़ जाते थे। ऐसे समय में एडविना उन्हें मनाने में कामयाब हो जाती थी। एडविना की मृत्यु बोर्नियो में हुई। तब दोनों के प्रेम–पत्र पढ़ने को मिला।

सभी पत्र खूबसूरत तथा विस्मयकारी थे। पं. नेहरू जब अकेलापन महसूस करते थे तब एडविना उनकी सहायता करती थी, दोनों में दोस्ताना सम्बन्ध थे, वे दो शरीर एक आत्मा थे। भारत में ब्रिटेन के अंतिम गवर्नर जनरल की पत्नी लेडी एडविना का प्रयोग कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र में ले जाने के लिए भी किया गया। दोनों के बीच प्रेम प्रसंग पर अब फिल्म भी बनने वाली है।

नेहरु केसे बना प्रधानमन्त्री !

कांग्रेस में नेहरु को कोई पसंद नहीं करता था किन्तु नेहरु को पसंद करने वालों में सबसे ऊपर थे अंग्रेज़ और उन्ही अंग्रेजों का नुमाइंदा माउंट बैटन

माउंट बैटन को भारत भेजने का मुख्य कारण ही यह था कि अंग्रेज़ नेहरु को फाँसना चाहते थे और यह काम किया माउंट बैटन और उसकी पत्नी ने

नेहरु कोई जन नेता नहीं था उसे तो अंग्रेजों ने मीडिया द्वारा प्रचारित किया और उसकी उज्वल छवि बनानी चाहि

क्यों कि सभी अंग्रेज़ नेहरु के बारे में कहा करते थे कि यह आदमी शरीर से भारतीय है किन्तु इसकी आत्मा बिल्कुल अंग्रेज़ है, अंग्रेज़ भारत छोड़ भी दें तो नेहरु अंग्रेजों का शासन और उनके क़ानून भारत में चलाता रहेगा और भारत हमेशा के लिये British Domenion State बनकर रहेगा

कांग्रेस वर्किंग कमिटी के चुनावों में प्रधान मंत्री पद के लिए हुए चुनाव में 15 में से 14 वोट सरदार पटेल के पक्ष में पड़े थे और 1 नेहरु के ,

चुनाव हारने के बाद जब नेहरु को लगा कि अब मेरी दाल नहीं गलने वाली तो वह गांधी जी के पास गया और उन्हें धमकाया गांधी जी ने अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल की और सरदार पटेल को एक पत्र लिखा और उसमे गांधी जी ने पटेल से अपना नाम प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार से वापस लेने की प्रार्थना की और यह पत्र आप चाहें तो देख सकते हैं

गांधी वांग्मय के सौ अंक हैं जो भारत सरकार ने छापे और इनमे से अंतिम कुछ अंकों के आधार पर गांधी जी के सचीव कहे जाने वाले प्यारे मोहन ने एक किताब लिखी जिसका नाम है पूर्ण आहूति इस किताब में गांधी जी का यह पत्र भी है

पत्र पढने के बाद सरदार पटेल खुद गांधी जी के पास गए और उनसे कहा कि "बापू अगर आपकी अंतरात्मा कहती है तो मै तो आपका सेवक हूँ और यह पद मै नेहरु के लिये छोड़ सकता हूँ

" और सरदार पटेल ने दरियादिली दिखाते हुए आज़ाद भारत का पहला प्रधान मंत्री बनने का सौभाग्य छोड़ दिया और उसे हथिया लिया नेहरु ने

और उसी के बाद भारत पाकिस्तान के विभाज़न की बात सामने आई है,

सरदार पटेल यदि प्रधान मंत्री होते तो ऐसा कभी नहीं होने देते क्यों कि भारत की छोटी छोटी रियासतों को एक करने का काम पटेल ने ही किया था और कश्मीर का विलय भी भारत में पटेल ने ही किया किन्तु नेहरु ने वहां भी टांग अडाई और कश्मीर में धारा ३७० लागू नहीं हुई

और उसी के कारण आज आधा कश्मीर पाकिस्तान के कब्ज़े में है, लद्दाख का कुछ भाग और तिब्बत आज चीन के कब्ज़े में है

वरिष्ठ पत्रकार डॉ. रामप्रसाद मिश्र ने नेहरू को स्वतंत्र भारत का शोक कहा है। पं. जवाहर लाल नेहरू को कश्मीर समस्या का जनक बताया गया है। तिब्बत को चीन की झोली में डालने वाले तथा दलाईलामा को भारत में शरण देकर चीन को भारत का शत्रु बनाने वाले नेहरू ही थे। स्वतंत्र भारत को पाश्चात्य सभ्यता–संस्कृति का दास बनाने वाले, भाषा समस्या को उत्पन्न करने वाले मुख्य रूप से नेहरू दोषी हैं। नेहरू की असफलता और दुर्बलता के कई प्रमाण हैं।

आगे नेहरू वंश ने ‘बांटो और राज करो’ की नीति का घिनौना प्रयोग कर सफलता प्राप्त की। राष्ट्र को हिन्दू–मुसलमान, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध इत्यादि में बुरी तरह खण्डित किया, साथ ही हिन्दुओं का आर्य–द्रविण–सवर्ण–पिछड़ा–आदिवासी वर्गों में विभक्त किया।

डा. राममनोहर लोहिया के शब्दों में नेहरू के पूर्वज मुगलों की खिदमत करते रहे और उसी मुस्तैदी से अंग्रेजों की भी खिदमत किया। अत: मुगल संस्कार नेहरू वंश के रक्त में है। वंशानुगत मुगल सेवा का संस्कार काफी प्रबल थे।

अंग्रेजी भक्ति भी इस परिवार की बेजोड़ थी।

गोरों के प्रति उनकी नैसर्गिक श्रद्धा लार्ड माउन्टबेटन आदि से उनके गहरे सम्बन्ध रहे। सरदार पटेल, राजेन्द्र प्रसाद, राजगोपालाचारी, नरेन्द्रदेव, जयप्रकाश, लोहिया आदि से नेहरू की कभी नहीं पटी। इन लोगों का खान–पान, रहन–सहन सब अलग था।

नेहरू की पद्मजा नायडू, लेडी माउंटबेटेन से खूब पटती थी। श्रीमती बच्चन की चाय उन्हें बहुत पसन्द थी, नर्गिस–सुरैया के वे प्रशंसक थे, वैजयन्ती माला को वे सेब अपने हाथों से खिलाते थे। उनको खूबसूरत औरतें बहुत पसन्द थी।

कश्मीर में जब पाकिस्तानी सेना सर पर पैर रखकर भाग रही थी, उसी समय माउन्टबेटन ने युद्ध विराम करा दिया और 32000 वर्ग मील जमीन पाकिस्तान के कब्जे में चली गई।

इसे नेहरू की अदूरदर्शिता ही कहा जाएगा। यदि बहुमत का आदर किया गया होता तो सरदार पटेल भारत के प्रधानमंत्री होते, परन्तु गांधी, पटेल से घबराते थे। माउन्टबेटेन भी पटेल से चिढ़ते थे। नेहरू के कार्यकाल में ईसाई मिशनरियों को खुली छूट मिली।

इस नेहरु के ओछे व्यक्तिव और काले कारनामों कि उपरोक्त नोट केवल एक झलक मात्र है,

विदेश में पढ़ा एक व्यक्ति जो भारत की सनातन संस्कृतिका विरोधी था । जो अपने को हिन्दू कहलाने में अपमान समझता था । जो पराई स्त्री के चक्कर में इतना गिर सकता है कि जिसका कोई चरित्र ही नहीं हो , जो उन्मुक्त रूप से एक औरत के साथ सिगरेट पीता दिखाई देता है । ऐसे व्यक्ति के जन्मदिन को अगर हमारी सरकार बाल दिवस के रूप में मनाती है , विभिन्न प्रकार के सामाजिक कार्यक्रम करती है और कहती है इसने प्रेरणा ले ? अगर हमारे देश की आने वाली पीढ़ी इसके पद चिन्हों पर चलने लगे तो भारत का भविष्य क्या होगा ???

ऐसे व्यक्ति के जन्मदिवस पर बालदिवस मनाना कितना सही है जिसने 14 अगसत 1947 की रात 7 लाख 32 शहीदो के सपनो को मिट्टी में मिला कर केवल कुर्सी के लालच के लिये अंग्रेजों से समझोता कर लिया हो और उसके आदर्श चरित्र का घटियापन तो इन चित्रों में आपने देख ही लिया होगा ,

यदि आप लोगों को ये जानकारी उपयोगी लगे तो इसे सब तक पहुचाएं जिससे भारतीय जनता स्वयं निर्णय कर सके , वन्देमातरम...............

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