रविवार, नवंबर 24, 2019

हिन्दू साधु ध्यान कैसे कर रहे है वो भी सिख तीर्थ में ?

हिन्दू साधु ध्यान कैसे कर रहे है वो भी सिख तीर्थ में ? 



𝑻𝒉𝒆 𝑷𝒊𝒏𝒅𝒂𝒓𝒊
ये तस्वीर 1908 की है, अमृतसर के हरमंदिर साहेब की जिसे ईसाई वामपंथी गोल्डन टेंपल कहते है ।
अब आपके मन मे ये प्रश्न उठा कि हिन्दू साधु ध्यान कैसे कर रहे है वो भी सिख तीर्थ में ?
ज़रा इतिहास में चलते है।
सिखों के पहले गुरु गुरु नानक थे।
2-गुरु अंगददेव
3- गुरु अमरदास
4-गुरु रामदास
5- गुरु अर्जुनदेव
6- गुरु हरगोविंद
7- गुरु हरराय
8 - गुरु हरकिशन
9- गुरु तेगबहादुर
10- गुरु गोविंद सिंह

सभी गुरु के नाम मे #राम #अर्जुन #गोविंद यानी के कृष्ण व हर यानी के महादेव के नाम पर है।

जब औरँगजेब ने कश्मीर के पंडितो को इस्लाम स्वीकार करने के कहा तो कश्मीरी पंडित गुरू तेगबहादुर के पास मदद के लिये गए गुरु तेगबहादुर ने कहा जाओ औरंगजेब से कहना यदि गुरु तेगबहादुर मुसलमान बन गया तो हम भी मुसलमान बन जायगे ये बात पंडित औरंगजेब तक पहुंचा देते है।

औरंगजेब गुरु तेगबहादुर को दिल्ली बुलाकर मुसलमान बनने के लिए कहते गुरु द्वारा अस्वीकार करने पर उन्हें यातना दे कर मार दिया जाता है।
अब प्रश्न ये की सिख हिन्दू से अलग है, तो कश्मीरी पंडितओ के लिए गुरु तेगबहादुर ने अपने प्राण क्यो दिए ?

गुरु गोविन्द सिंह का प्रिय शिष्य बंदा बहादुर ( लक्ष्मण दास ) भारद्वाज कुल का ब्राम्हण था। जिसने गुरु गोविन्द सिंह के बाद पंजाब में मुगलो की सेना से संघर्ष किया -
कृष्णा जी दत्त जैसे ब्राह्मण ने गुरु के सम्मान के लिए अपने सम्पूर्ण परिवार को कुर्बान कर दिया।

राजा रणजीत सिंह कांगड़ा के ज्वालामुखी देवी के भक्त थे।उन्होंने देवी मंदिर का पुर्ननिर्माण कराया -
आज भी कई सिख व्यापारियों की दुकानों में गणेश व देवी की मूर्ति रहती है आज भी सिख नवरात्रि में अपने घरों जोत जलाते है नवजोत सिंह सिद्धू के घर मे शिवलिंग की पूजा होती है

***

अब प्रश्न ये की सिख क्यों व कैसे हिन्दू से अलग कर दिए गए ?

1857 की क्रांति से डरे ईसाई ( अंग्रेज़) ने हिन्दू समाज को को तोड़ने की साज़िश रची 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज का गठन किया।जिसका केंद्र पंजाब का लाहौर था।
स्वामी दयानंद ने ही सबसे पहले स्वराज्य की अवधारणा दी जब देश का नाम हिंदुस्तान तो ईसाईयों ( अंग्रेज़ ) का राज क्यों।
स्वामी दयानंद के इन विचारों से पंजाब में क्रांतिकारी गतिविधियों में बढ़ गयी। लाला हरदयाल लाला लाजपतराय सोहन सिंह भगतसिंह के चाचा अजीत सिंह जैसे क्रांन्तिकारी नेता आर्य समाजी थे,अतः ईसाई मिशनरियों( अंग्रेजो) ने अभियान चलाया की सिख व हिन्दू अलग है ताकि पंजाब में क्रांतिकारी आंदोलन को कमजोर किया जा सके इसके लिए अंग्रेज़ समर्थक सिखों ने अभियान चलाया की सिख हिन्दू नही है,और अलग धर्म का दर्जा देने की मांग की ( जैसे आज कर्नाटक में ईसाई बने लिंगय्यात हिन्दू धर्म से अलग करने की मांग कर रहे है। ) ईसाई मिशनरियों ( अंग्रेज़) ने 1922 में गुरुद्वारा एक्ट पारित कर सिखों को हिन्दू से अलग कर उन्हें अलग धर्म का घोषित कर दिया आजादी के बाद गुलाब चचा ने इसे बनाये रखा
दोस्तो हिन्दू सिखों का खून एक है।🚩

गुरु गोविन्द सिंह ने 1699 में खालसा( पवित्र) पंथ का गठन किया और कहा मै चारो वर्ण के लोगो को सिंह बना दूँगा।

" देश धर्म संस्कृति की रक्षा प्राण देकर ही नही प्राण लेकर भी की जाती है।"

📺𝐒𝐮𝐛𝐬𝐜𝐫𝐢𝐛𝐞: https://www.youtube.com/channel/UCCI5j_6mO-aUIFWHPlsBKoA

शनिवार, नवंबर 23, 2019

गाजी मियां - पीर या कातिल ?

गाजी मियां - पीर या कातिल ?
प्रसन्नता की बात है कि सभी मुसलमान पीर फकीरों की पोल प्रामाणिक हवालों के साथ खुल गयी है । चाहे वो अजमेर का फकीर हो या निजामुद्दीन का औलिया सभी यहां विदेशी मुसलमान हमलावरों के साथ आये और हिंदुओं का कत्ल और धर्मांतरण कराने के जिम्मेदार थे । ऐसा ही एक हिंदुओं का कातिल गाजी मियां है जिसकी बहराइच में स्थित दरगाह में लाखों हिंदू जाते हैं। उनको यह भी नही पता कि इस्लाम में काफिरों के कातिल को गाजी नाम देकर सम्मानित किया जाता है । इस लेख में इसी कातिल की चर्चा की जायेगी ।
गाजी मियां की पहली लूट :
गाजी मियां का पूरा नाम सैयद सालार मसऊद गाजी था जो गजनी के कुख्यात बादशाह महमूद गजनवी का रिश्ते में भांजा लगता था। गजनवी ने अजमेर नगर गाजी मियां के बाप सैयद सालार साहू को दे दिया था जहां गाजी मियां का जन्म हूआ । एक बार गाजी मियां ने गजनी पहुंचकर अपने मामा को हिंदुस्तान पर हमला करने , हिंदुओं को लूटने और जबरदस्ती मुसलमान बनाने की पट्टी पढाई। फिर क्या था ! मामा भांजे ने अस्सी हजार तीन सौ तुर्कों की सेना लेकर धावा बोल दिया। गाजी मियां ने नगरकोट और मथुरा को लूटकर गुजरात में जबरदस्त ऊधम मचाया । अनेक मदिर , मठ लूटकर , हजारों हिंदुओं का कत्ल कर , हीरे जवाहरात लूटकर मामा के साथ वापस गजनी चला गया।
गाजी मियां की दूसरी लूट :
पहली लूट के कुछ दिनों बाद उसके मामा बादशाह महमूद गजनवी ने अपने वजीर के कहने पर कुछ वजहों के चलते अपने भांजे को देश निकाले की सजा दे दी। कहीं कोई ठिकाना ना देख यह भाग कर फिर हिंदुस्तान आ गया जिसे चढाई का नाम दे दिया गया।
हिंदुस्तान के धर्मांतरित मुसलमानों ने गाजी मियां का साथ दिया। अबकी बार इसने सिंध में अर्जुन और मुल्तान में सेठ अनंगपाल को लूटा। दिल्ली, मेरठ और कन्नौज में लूटमार मचाते, हिंदुओं का कत्ल और उन्हें तलवार के जोर से मुसलमान बनाते वह बाराबंकी पहुंचा। यहां के पवित्र हिंदू तीर्थ स्थल तथा नगर को लूटकर इसने यहां अपनी छावनी बनाई। यहां मुसलमानों की बड़ी सेना बनाकर इसने सैफुद्दीन को बहराइच, मीर हसन को महोबा, अजीजुद्दीन को गोपामऊ, अहमद मलिक को लखनऊ और मलिक फैज को बनारस जिहाद के तहत हिंदुओं का कत्ल , लूटमार, धर्मपरिवर्तन और उनकी औरतों का बलात्कार करने भेजा। यही कुरानिक जिहाद है। खानजादे , बंजारा,कुंजड़े, रंकी आदि जो पहले हिंदू थे मुसलमान हो गये पर आज भी हिंदुओं की तरह ही रहते हैं। समय की मांग है कि अब इन सबकी घर वापसी करवा लेनी चाहिये ।
राजा सुहेलदेव पासी व गाजी मियां का युध्द:
कड़ा मानिकपुर के वीर हिंदुओं ने गाजी मियां की सेना से कड़ा युध्द किया। कड़ा मानिकपुर का राजपरिवार अनेक हिंदुओं के साथ वीरगति को प्राप्त हुआ लेकिन बहराइच में लड़ाई होती रही। सैफुद्दीन की हार होते जानकर गाजी मियां बहराइच में आकर लड़ने लगा। लेकिन वीर हिंदुओं के सामने गाजी मियां की एक ना चली । उसकी हार पर हार होती रही और उसकी सेना के सिकंदर, बरहना, मातुल, रजब, हठीले, इब्राहीम आदि सभी सभी योध्दा मारे गये । गाजी मियां एक महुये के पेड़ के नीचे ठहर कर लड़ने लगा। तभी महाराज सुहेलदेव जी ने एक बाण ऐसा तानकर मारा कि गाजी मियां अपनी घोड़ी लल्ली से नीचे गिरकर कुटिला (टेढ़ी) नदी के किनारे महुये के पेड़ के नीचे गिरकर मर गया।
गाजी मियां की दरगाह :
गाजी मियां सन 1034 में मारा गया। इसके मारे जाने के 317 साल बाद सन 1351 में फिरोज तुगलक ने अपनी मां के कहने पर इसकी मजार बनवाई। मजे की बात यह है कि मारे जाने के बाद इसकी लाश का क्या हुआ किसी को आजतक कुछ नही पता । जहां तुगलक ने इसकी दरगाह बनवाई वहां हिंदुओं का पवित्र बालार्क तीर्थ था और एक पवित्र सूर्यकुंड भी जहां ज्येष्ठ मास में स्नान का प्रसिध्द मेला लगता था। जब तुगलक को खोज के बाद भी गाजी मियां की लाश या कब्र का कुछ पता न चला तो कुछ मुसलमानों के यह कहने पर कि इसकी लाश को सूर्यकुंड में फेंक दिया गया था उसने कुंड को पाटकर गाजी मियां की दरगाह बनवा दी जो आज भी वहां मौजूद है।
हिंदू कभी अपने पवित्र कुंड में, जहां वो श्रध्दा से स्नान करते हैं, अपने दुश्मन की लाश भी नहीं डाल सकते। लेकिन एक बहाना ढ़ूंढ लिया गया। इस कब्र में गाजी मियां की लाश है ही नही जो जांच में भी साबित हो जायेगी। कुंड में हिंदुओं का जो मेला लगता था उसे मुसलमानों ने गाजी मियां की पूजा के मेले का रंग दे दिया। बौध्दों के पुराने मंदिर का नाम बदलकर 'कदम रसूल' कर दिया, शंकर भगवान के त्रिशूल को मुसलमान गाजी मियां की 'सांग ' कहने लगे। हिंदुओं को इसपर गम्भीरता से विचार करना चाहिये कि हिंदू मेला और तीर्थस्थान को गाजी मियां की दरगाह और पूजा का रूप दे दिया गया है। अत: एक भी हिंदू वहाँ ना जाकर इसे वापस लेने का आंदोलन शुरू करे।
गाजी मियां से जुड़ी गप्पें :
1- जुहरा बीबी रुदौली, जिला बाराबंकी, के एक तेली की अंधी लड़की थी। इसके मां बाप ने अधी होने के कारण इसे गाजी मियां की कब्र पर चढ़ा दिया था। मरने के बाद जुहरा भी वहीं दरगाह में दफना दी गयी । कुछ दिनों बाद जुहरा के घर वाले हर साल मरी हुयी जुहरा का गाजी मियां से ब्याह करने लगे। अभी भी जुहरा की पलंग पीढ़ी (डोली) रुदौली से दरगाह आती है और दोनों मरे हुओं का ब्याह हर साल होता है।
2- भूत भगाने का धधा :
दरगाह के एक ओर बरहना पीर के डंडे तार में बांधे हुये हैं और इनसे भूत भगाये जाते हैं।भूत अधिकतर औरतों को ही लगते हैं जो यहां भारी तादाद में पहुंचती हैं। जबकि बीते हुये काल को भूत कहते हैं। भूत ना तो किसी को लगता है और नही कोई भगाता है। लेकिन हिंदू औरतें इस बहकावे में आ जाती हैं।
3- कोढ़ी अच्छा करने का नाबदान :
दरगाह संगमरमर की बनी है। गाजी मियां की कब्र बीचों बीच है और अगल बगल जुहरा और उसके भाइयों की कब्रें हैँ। मरी हुयी जुहरा और गाजी के ब्याह के दिन कब्र को स्नान कराया जाता है। मैला पानी मोरी (नाबदान) में जमा हो जाता है। मेले के दिनों अनेक कोढी इसी गंदे नाबदान में आकर पड़े रहते हैं। सूर्यकुंड में पहले एक गर्म पानी का स्त्रोत था जिसमें नियमित स्नान करने से कोढ़ आदि अनेक चर्म रोग ठीक हो जाया करते थे। यह नाबदान उसी गर्म पानी के स्त्रोत की नकल है। अब देखिये कैसे कोढ़ ठीक होता है ? इन्हीं कोढ़ियों के बीच में योजनाबध्द तरीके से अचानक कभी कभी स्वस्थ मुसलमान कोढी होने का नाटक कर कूद जाते हैं, जो काया पावा, काया पावा (कोढ़ अच्छा हो गया) कहकर उछलते,कूदते और चिल्लाते हैं। यह शोर मेले भर में फैलाया जाता है कि गाजी मियां ने कोढ़ी का कोढ़ अच्छा कर दिया। हिंदू फिर गाजी मियां को करामाती देवता समझने लगते हैं।
जबकि गाजी ना कोई देवता है और ना ही उसमें कोई करामात है। उसे मरे 900 साल से भी अधिक हो गये। उसकी कब्र का भी कुछ पता नहीं है। कहीं होगी तो एक भी हड्डी सलामत नहीं बची होगी। कब्र पर ऐसा नाटक मुजावर और डफाली ही करते हैं ताकि हिंदुओं से पैसा ऐंठा जाये और उन्हें मुसलमान भी बना लिया जाये। ऐसे ही गाजी मियां जैसे हिंदुओं के कातिल पीर , मदार आदि की पूजा के बहानें हर साल लाखों हिंदू मुसलमान बनाये जा रहे हैं।
4- मामा भांजे की लड़ाई :
डफाली मेले में कहते फिरते हैं कि यह मामा भांजे की लड़ाई, गाजी मियां लक्ष्मण के अवतार थे और गाय बचाने की लड़ाई में मारे गये थे। डफालियों की यह बात सरासर झूठी है। मामा भांजे की लड़ाई नहीं, महमूद गजनवी और गाजी मियां ही मामा भांजे लगते थे जिन्होंने हिंदुओं को मारा, सताया और कत्ल किया। गाजी मियां लक्ष्मण का अवतार नहीं बल्कि दरिंदा मुसलमान था। गाय बचाने की कौन कहे, उसने तो खूद गायों और हिंदुओं का कत्ल ए आम किया था। किसी भी हिंदू को डफाली, मुजाफर फकीर आदि के बहकावे में कभी नहीं आना चाहिये ।
डफालियों की करतूत :
डफाली बाल लगा हुआ एक झंडा लिये रहते हैं जिससे हिंदू लड़कों, औरतों और बीमारों को झाडते फूंकते और गाजी मियां की तारीफ के गाने गाते हैं। इस झंडे की हकीकत यह है कि जब गाजी मियां तलवार के जोर पर हिंदुओं को मुसलमान बनाता था तो उनकी चोटियां काटकर एक झंडा बना लेता था। डफाली गाजी मियां की यही नकल करते हैं और अपने झंडे के बालों को सुरा गाय की पूंछ बताते हैं। अब ये अपने झंडों को सुरा गाय की पूंछ ना कहें तो तो कहें क्या ? अगर हिंदुओं को मालूम हो जाये कि यह बाल उनके पुरखों की चोटियां या नकल है तो भला कौन हिंदू इन्हें अपने दरवाजे पर खड़ा होने देगा ?
डफाली हिंदुओं को समझाते फिरते हैं कि गाजी मियां औलाद देते हैं, उनको पूजने से लड़के नहीं मरते , बड़ी बरक्कत होती है। अब जब इस दरिंदे की पोल खूल ही चुकी है तो हर पढ़े लिखे हिंदू को चाहिये वह गांव देहात के हर गरीब भोले भाले हिंदु भाई बहनों को समझा दे कि यह सारी बातें झूठी हैं। गाजी उनके पुरखों का कातिल था और इसकी फर्जी दरगाह सूर्यकुंड पर बनी है। डफालियों से कोई पूछे अगर ऐसा है तो गाजी मियां और उसके साथी कैसे मर गये ? अभी भी रोज कितने ही मुसलमान बीमार होकर मरते हैं, डफाली इन मुसलमानों से पूजा क्यों नहीं करवाते ? क्या गाजी मियां की पूजा का असर हिंदुओं पर ही अधिक होता है जो सारे मुसलमान डफाली , फकीर, मुजावर सिर्फ हिंदुओं के पीछे ही लगे रहते हैं ? सच तो यह है कि गाजी मियां, शहीद मर्द, पीर मजार, मस्जिद की फूंक भीख मांगने आदि का बहाना कर ये धूर्त आजतक हिंदुओं को मुसलमान बनाये जा रहे
हिंदू जागने लगा है :
बहुत से हिंदुओं ने अब गाजी मियां , ताजिया, पीर, मजार आदि मुसलमानी कब्रों को पूजना छोड़ दी है। बाकी लोग भी धीमें धीमें समझ रहे हैं कि गाजी मियां हिंदुओं और गौ माता का हत्यारा था और उसकी पूजा उन्हें नहीं करनी चाहिये। यह देखकर डफालियों को परेशानी हो रही है और नित नये नये हथकंडों से हिंदुओं को बहका और डरा रहे हैं कि तुम्हारे पुरखे गाजी मियां को पूजते थे। अब अगर तुम उनको नहीं पूजोगे तो गाजी मियां नाखुश होकर तुम्हारे बाल बच्चों का बुरा हाल कर देंगे। समस्त हिंदुओं को समझ लेना चाहिये कि इन शातिर मुसलमान पीरों की कब्र में सड़ी गली हड्डियां किसी काम की नहीं हैं। ये खूद को सड़ने गलने से बचा नहीं पायीं तो हिंदुओं का क्या खाक करेंगी !
इसबात को समझाने के लिये बस एक उदाहरण काफी है। सुल्तानपुर के दलित हिन्दू सम्पती ने पिछले कई साल से गाजी मियां की पूजा बिल्कुल बंद कर दी है । अपने घर से गाजी मियां की चौकी भी खोदकर बाहर फेंक दी है। जब डफाली रवाना बजाते हुये उसके घर आये तो उसने फटकार कर कह दिया कि-
"जाओ, मैं नहीँ पूजता तुम्हारे गाजी मियां को। मुझे मालूम चल गया है कि गाजी मियां कौन था और उसने हिंदुओं के साथ क्या क्या अत्याचार किया है ।"
डफालियों ने सम्पती को बहुत डराया धमकाया और समझाया पर उसने एक ना सुनी। अब न वो गाजी मियां की पूजा करता है और ना ही किसी कब्र, ताजिया आदि पर चढ़ाई रेवड़ी, बताशा, शर्बत, मलीदा आदि ही खाता है। दस साल में उसके तीन लड़के हुये जो सब स्वस्थ और प्रसन्न हैं। गाजी मियां उसकी किसी भी संतान का एक बाल तक टेढ़ा नही कर पाया।
गाजी मियां की पूजा किसी भी हिंदू को भूलकर नहीं करनी चाहिये। परम पिता परमेश्वर को प्रेम से पूजो ओर धर्म कर्म से रहो तो फिर देखो , एक गाजी मियां की कौन कहे, बीस गाजी मियां और समस्त मुसलमान पीरों की कब्र में सड़ी गली हड्डियां मिलकर भी किसी हिंदू का एक बाल भी टेढ़ा नहीं कर सकतीं। ऐसा ही सारे हिंदुओं को समझा देना चाहिये। सदियों से गाजी मियां और वीर हिंदुओं के बीच हुये युध्द पर गावों में गाये जा रहे आल्हा का आनंद लेते हुये बोलिये :
' सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय !'
' गाजी मियां की पूजा और हिंदू '
- पंडित गंगाप्रसाद उपाध्याय

रविवार, नवंबर 10, 2019

सिख पंथ में अलगाववाद कैसे फैलाया गया?

सिख पंथ में अलगाववाद कैसे फैलाया गया?
सिख , हिन्दू नहीं होते है , इस फर्ज़ीवाड़े को सबसे पहले गढ़ने वाला मैक्स आर्थर मेकलीफ़ ( Max Arthur Macauliffe) था ।
यह गुरुमुखी का विद्वान भी था जिसने Guru Granth Sahib का English translation भी किया था ।
Max Arthur Macauliffe जिसे सिख पंथ को एक धार्मिक संस्था का रूप दिया था का हिंदूइस्म के विषय में क्या विचार थे जरा ध्यान दे-
It (Hinduism) is like the boa constrictor of the Indian forests. When a petty enemy appears to worry it, it winds round its opponent, crushes it in its folds, and finally causes it to disappear in its capacious interior....Hinduism has embraced Sikhism in its folds; the still comparatively young religion is making a vigorous struggle for life, but its ultimate destruction is, it is apprehended, inevitable without State support.
【 हिंदी अनुवाद - यह (हिंदू धर्म) भारतीय जंगलों का Boa Constrictor (उष्णकटिबंधीय अमेरिका का एक बड़ा और
शक्तिशाली सर्प, कभी-कभी बीस या तीस फुट लंबा ) की तरह है। जब एक छोटा विरोधी इसकी चिंता करता प्रतीत होता है, तो यह अपने प्रतिद्वंद्वी के चारों ओर घूमता है, इसे अपने लपेटे में ले लेता है, और आखिरकार इसे अपने विशालता में गायब कर देता है .... हिंदू धर्म ने सिख धर्म को अपने लपेटे में लिया है; अभी भी तुलनात्मक रूप से यह युवा धर्म जीवन के लिए एक सशक्त संघर्ष कर रहा है, लेकिन इसका अंतिम विनाश यह है कि इसे राज्य समर्थन के बिना अपरिहार्य माना जाता है। 】
Max Arthur Macauliffe 1864 मे इंडियन सिविल सर्विसेज से पंजाब में आया था। 1882 में ये पंजाब का डिप्टी कमीशनर बना।
मेकलीफ़ वो पहला इंसान था जिसने सिख हिन्दू नहीं है कि परिकल्पना की थी। उसने देखा कि सिख एक मार्शल कौम है। इसलिए सिख आर्मी के लिए उपयुक्त है।
इसलिए इन्होंने पंजाब मे आर्मी की नौकरी में सिखों के लिए आरक्षण लागु कर दिया। जिसके परिणाम स्वरूप कोई भी राम कुमार सरकारी नौकरी नही पा सकता था पर वही राम कुमार दाड़ी मूछ और पगडी रखकर राम सिंह बनकर नौकरी पा सकता था। उस समय तक इसे धर्म परिवर्तन नहीं माना जाता था।
इसका नतीजा ये हुआ कि पंजाब मे सिख population 1881 से 1891 के बीच 8.5% बढी।
1891 से 1901 के बीच 14% बढी।
1901 से 1911 के बीच 37% बढी।
1911 से 1921 के बीच 8% बढी।
इनके पंजाबी के ट्यूटर थे Kahn Singh Nabha जिन्होने 1889 मे "हम हिन्दू नहीं" नामक पुस्तक लिखी । जिसको Macauliffe जी ने फंड किया ।
1909 मे खुद Macauliffe साहब ने भी Sikh religion: Its Gurus, Sacred writings, and authors नामक पुस्तक लिखी । जिसकी भूमिका में इन्होंने ये भी बताया है कि किस तरह इन्होंने खालसा पूजा पद्यति आरम्भ की और सिखो के लिए आर्मी में अलग शपथ परम्परा की शुरुआत की ।
इस समय तक गुरूद्वारो ( दरबार) महंतो और साधुओं की देखरेख मे होते थे। गुरूद्वारो के लिए महंतो और हिन्दु पुरोहित की जगह खालसा सिखो की प्रबंधक कमेटी का विचार भी इन्हीं का था। इन गुरूद्वारो से जुड़ी हुई जमीन और सम्पत्ति भी थी।
1920 के शुरूआत से महंतो से गुरूद्वारो को छीनने का अकाली दल का सिलसिला चालू हुआ। इसके लिए महंतो पर तरह तरह के आरोप लगाकर( महिलाओ से दुष्कर्म, गलत कर्मकांड आदि) उन्हे बदनाम किया गया, जनता मे उनके खिलाफ छवि बनाई गयी।
सबसे पहले बाबे दी बेर गुरूद्वारा, सियालकोट जो एक महंत की विधवा की देखरेख मे था, बलपूर्वक कब्जाया गया।
फिर हरमंदिर साहिब ( स्वर्ण मंदिर) छीना गया। फिर गुरूद्वारा पंजा साहिब कब्जाया गया। इसका कब्जे के विरोध 5-6 हजार लोगो ने गुरूद्वारा घेर लिया जिन्हे पुलिस ने बलपूर्वक हटाया।
फिर गुरूद्वारा सच्चा सौदा, गुरूद्वारा तरन तारन साहिब आदि महंतो पर आरोप लगा पुलिस के सहयोग से कब्जाये गये।
इन कब्जो के लिए महंतो को पीटा गया उनकी हत्यारे की गई। जिसके लिए बाकायदा बब्बर अकाली नामक दल का गठनकर मूवमेंट चलाया गया।
ननकाना साहिब गुरूद्वारे पर कब्जा सबसे अधिक बडा खूनी इतिहास है। जिसमे दोनो के कई सैकडो लोग तक मारे गये।
फिर गुरूद्वारा गंजसर नाभा और कई अन्य हिसंक तरीके एवं पुलिस के सहयोग से महंतो से छीने गये।
1925 मे सिख गुरूद्वारा बिल पारित हुआ और कानून बना कर गुरूद्वारो के कब्जे खालसा सिखो को दिये गये। SGPC का गठन हुआ।
फिर एक रेहता मर्यादा बनाई गई जो तय करती है कि कौन सिख है और कौन नही। जिसका पूर्णरूपेण उद्देश्य सिख से हिन्दू विघटन निकाला है।
SGPC के तत्वावधान मे सिख इतिहास को नये सिरे से लिखा गया। हिन्दू परछाई को को सिख मे से जितना हो सके अलग किया गया। नये नये हिन्दू ( खासकर ब्राह्मण) विलेन कैरेक्टर सिख इतिहास में घड़े गए।
पंजाबी मे पारसी भाषा के शब्दो का अधिकधिक प्रयोग किया गया। गंगू बामन और स्वर्ण मंदिर की नीव मुसलमान के हाथो रखवाना, जिसका इससे पहले कोई प्रमाण और इतिहास नही है, घडे गये और इनका प्रचार किया गया ।
गुरू गोविंद सिंह जी की वाणी दशम ग्रंथ मे चंडी दी वार और विचित्र नाटक को इसमे ब्राह्मणी मिलावट घोषित किया गया।
हकीकत राय, सति दास, मति दास, भाई दयाल आदि के बलिदानों को सिखों के बलिदान बताकर प्रचारित किया गया। जबकि इनके वंशज तो आज की तारीख मे भी हिन्दू है।
बंदा बहादुर जिसका की उस समय तत खालसा बनाकर विरोध किया गया और मुग़लों से मिलकर मिलकर उसे पकड़वाया गया था। SGPC आज उसे सिख हीरो के रूप में बताती है।
निर्मली अखाडा जोकि गुरू गोविंद सिंह जी का ही डाला हुआ है और संस्कृत एवं वेदांत के प्रचार प्रसार को समर्पित है हिन्दू विरोध की खातिर इस तक को SGPC ने सिख इतिहास से नकार दिया।
गुरू नानक के पुत्र थे श्रीचंद जोकि अपने समय कै महानतम और प्रसिद्ध योगी थे ने उदासीन पंथ की स्थापना की थी।
गुरू राम राय जोकि गुरू हर राय के बडे पुत्र थे ने देहरादून मे अपनी गद्दी स्थापित की। इनकी जगह इनके छोटे भाई कृष्ण राय ने पिता की गद्दी सम्भाली और अगले सिख गुरू कहलाये।
ये सभी अखाडे आज भी महंतो द्वारा संचालित है। समाज सेवा मे है।
आनंद मैरिज एक्ट पास कर सिखों के लिए अलग से विवाह पद्यति आरम्भ की गई। अन्यथा 1920 से पहले तक तो हिन्दू पुरोहित ही सिख घरों में विवाह आदि वैदिक संस्कार करवाने जाते थे।
पर Max Arthur Macauliffe की नीति जिससे एक अलग खालसा सिख पंथ की नीव पड़ी की परिणति खालिस्तान आन्दोलन के रूप में सामने आई। बब्बर खालसा उग्रवादियों ने करीब 50000 हजार निरपराध हिन्दुओं की हत्या कर दी। अवसरवादी राजनीती के चलते इन हत्याओ को इस देश ने भुला दिया।
सिखों का धार्मिक ग्रन्थ है "गुरु ग्रन्थ साहिब" इसको आप उठाकर पढ़ेंगे और देखेंगे तो इसमें "हरी" शब्द 8 हज़ार से भी अधिक बार इस्तेमाल किया गया है, वहीँ "राम" शब्द 2500 से अधिक बार, जबकि "वाहेगुरु" शब्द मात्र 17 बार गुरु ग्रन्थ साहिब को ही अब सिखों का गुरु माना जाता है, चूँकि सिख के आखिरी गुरु गोबिंद सिंह ने इसे ही आगे के लिए गुरु घोषित किया था।
गोविन्द सिंह का तो नाम भी "गोविन्द है" और "सिंह" हिन्दू उपनाम है, जो सिख समूह के बनने से पहले से ही हिन्दू इस्तेमाल करते आये है ।
खालिस्तानी वो लोग हैं जो श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में दर्ज हिंदुओं की बानी के बावजूद अपने ही धर्म ग्रन्थ को झुठला कर कहते हैं कि "यह वो राम , वो। कृष्णा, वो जगदीश " नहीं हैं। अपने ही दसवें गुरु के लिखे चण्डी दी वार " चढ़ मैदान चण्डी महिषासुर नु मारे" को झुठलाते हैं। "देव शिवा वर मोहे इहे" को झुठलाते हैं। लाखों खालिस्तानी है आज, इनका पूरा गैंग सक्रिय है, कनाडा, ब्रिटैन जैसे देशों में तो इनका पूरा गैंग ही सक्रिय है, और पाकिस्तान से इनकी बड़ी मित्रता है
ये हिन्दुओ को गाली देते है । ये हिन्दुओ की ही संतान, इन सभी के पूर्वज हिन्दू ही थे, स्वयं नानक भी पैदा होते हुए हिन्दू थे
उनके पिता का नाम कालू चंद, (कालू, कल्याण मेहता) था ।
और ये खालिस्तानी हिन्दुओ को गाली देते है, इन खालिस्तानियों को औरंगजेब और पाकिस्तान प्यारा है ।
आईये इस अलगववदवादी मानसिकता से बचे। एकता में ही शक्ति है। यह सन्देश स्मरण करे।
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सलंग्न चित्र-पाकिस्तान में स्थित एक गुरूद्वारे का है जिसमें पाकिस्तान सरकार ने एक इस्लामिक स्कूल में परिवर्तित कर दिया।

गुरुवार, सितंबर 19, 2019

कबीर जी मुस्लमान थे , संत रामपाल भी मुस्लिम है।

कबीर जी मुस्लमान थे । इसी कारण अपने मजहब को नहीँ तोडा और टोपी नहीँ उतारी और गँगा के घाट पर लेट कर रामानँद जी से छलावा करके राम नाम लिया क्युँकि रामानँद जी ने कबीर जी को दीक्षा देने से मना किया था और जब परीक्षा मेँ पास हुआ तो रामानँद जी ने कबीर को अपना चेला स्वीकार किया । कबीर मुस्लमान थे । और ये रामपाल और कबीर सागर किताब छापने वाले कहते है कि कबीर जी ने बाद मेँ रामानँद जी को अपना चेला बनाया । इन लोगोँ का पर्दाफाश अभी करते है । अगर कबीर ने रामानँद को चेला बनाया होता तो धर्मदास की तरह एक टोपी रामानँद के सिर पर भी होती । जबकि ऐसा नहीँ हुआ । अगर नानक जी कबीर का चेला होते तो नानक जी के सिर पर भी पठाणी कुल्ला मुल्ला टोपी होती धर्मदास और कबीर की तरह । अगर कबीरपँथी रामपाल और चेलोँ से पूछतेँ है कि कबीर का मुल्ला भेस क्युँ है ? तो बताते है यही भेस है इनका । पर ये स्वीकार नहीँ करते कि कबीर मुल्ला है । इसका मतलब ये सिद्ध होता है कि कबीर नकली मुल्ला था ? जी नहीँ कबीर असली मुल्ला था । आप सबूत देखिए पुरातन लिखत खरडे अनुसार पा॰ दसवीँ मुकम्मल (सौ साखी ) विजै मुक्त मेँ जनम साखी 10 वीँ पातशाही गुरु गोबिँद सिँह जी । साखी नँबर 74 मेँ पन्ना नँबर 217 । गुरु जी गरीबी भगत पवित्र है जी रविदास जी चमार दे साथ भेद भाव नहीँ रख्या .कुब्जा अराईयाँ की लडकी थी श्री कृष्ण भगवान ने उसकी गति करी थी । कबीर जी और फरीद जी दोनोँ मुस्लमान थे उनकी गती श्री गुरु अर्जुन साहिब जी ने की थी । अर्थात कबीर जी मुस्लमान ही थे ।
आज हिन्दू सनातन समाज मे झूठा संत रामपाल कबीर को ब्रह्मा विष्णु महेश का बाप बनाता है,  देवी देवताओं का मजाक उड़ाता है क्योंकि वो छुपा हुआ मुस्लिम है।

बुधवार, सितंबर 18, 2019

वीर शिरोमणि क्रांतिकारी शहीद बाबा गंगू जी को शत् शत् नमन।

महान सेना नायक बाबा गंगादीन भंगी की पुण्य तिथि पर
महान सेना नायक बाबा गंगादीन भंगी की पुण्य तिथि पर श्रद्दांजलिपेशवा बाजीराव तृतीय के निःसंतान रह जाने के कारण धोड़पत नाना साहब को गोद लिया गया।
नाना साहब पेशवा ने अपने विश्वस्त सूबेदार बाबा गंगादीन भंगी को अपने प्रधान पलटन का कर्नल बनाया। बाबा गंगादीन ही गंगू मेहत्तर थे, जिनके नेतृत्व में नाना साहब की फौजों ने अंग्रेजों पर कहर बरपाया
अब पढ़िए आगे का पूरा इतिहास Ashutosh Sharma की वाल से
महान सेना नायक बाबा गंगादीन भंगी की पुण्य तिथि पर श्रद्दांजलि
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1857 में कलकत्ता की बैरकपुर छावनी में कानपुर के रहने वाले शहीद मातादीन भंगी (अमर शहीद मंगल पाण्डे को अपवित्र कारतूसों की सूचना देने वाला) की शहादत रंग लाई और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की चिंगारी कानपुर झांसी एवं मेरठ की सैनिक छावनी तक फैल गयी.......................................
04 जून 1857 की आधी रात को भारतीय सैनिकों ने कानपुर में विद्रोह का बिगुल फूंक दिया।कानपुर के नवाबगंज का खजाना लूट लिया गया।जेल तोड़ कर कैदियों को मुक्त कराया गया।बिठूर-कानपुर में नेतृत्व था नाना साहब एवं तात्या टोपे का।
1818 में तृतीय मराठा युद्ध में हारने के बाद अंतिम पेशवा बाजीराव तृतीय को ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पूना से विस्थापित कर कानपुर के नजदीक बिठूर में जागीर देकर रहने को विवश कर दिया।
बिठूर में भंगियों की आबादी बहुत थी । पेशवा बाजीराव तृतीय के निःसंतान रह जाने के कारण धोड़पत नाना साहब को गोद लिया गया।
नाना साहब पेशवा ने अपने विश्वस्त सूबेदार बाबा गंगादीन भंगी को अपने प्रधान पलटन का कर्नल बनाया। बाबा गंगादीन ही गंगू मेहत्तर थे, जिनके नेतृत्व में नाना साहब की फौजों ने अंग्रेजों पर कहर बरपाया था............सैकड़ो अंग्रेज मारे गये ।अंग्रेजों ने गुस्से और नफरत से बाबा गंगादीन उर्फ गंगू मेहत्तर के जाति के लोगों को खोज खोज कर सूली पर लटका दिया। पकड़े जाने पर बाबा गंगादीन उर्फ गंगू मेहत्तर को अंग्रेजों ने सरेआम फाँसी पर लटका दिया।.....गंगू मेहत्तर जो नाना साहेब की सेना में कर्नल थे....पेशवा की सेना में जाने से पहले नगाड़ा बजाते थे,पहलवानी करते थे। कानपूर के सतीचौरा घाट पर उनका आखाड़ा था.....................................
गंगू भंगी जिसने आज़ादी की लड़ाई लड़ी ओर लगभग 200 अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था,आज के ही दिन 18 सितम्बर 1857 को कानपुर में चौराहे पर फाँसी पर चढा दिये गये, दुर्भाग्यवश वीर शिरोमणि गंगू जी के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है।
एक बात और , इस अति दलित जाति के क्रांतिकारी बाबा गंगू के राष्ट्रवादी वंशजो ने कभी राष्ट्र विरोधी षड्यन्त्रों को रचने वालों का साथ देकर किसी भीमा कोरेगांव पर जश्न मनाकर राष्ट्र की आत्मा को शर्मसार नहीं किया।
वीर शिरोमणि क्रांतिकारी शहीद बाबा गंगू जी को शत् शत् नमन।
Ashutosh Sharma

सोमवार, सितंबर 16, 2019

हमारा अंतरिक्ष विज्ञान हजारों साल पुराना है

पुरी दुनिया का अंतरिक्ष विज्ञान तो 300-400 साल पुराना है
जबकि हमारा अंतरिक्ष विज्ञान हजारों साल पुराना है :
चांद पर लैंडर उतारने में हम नाकामयाब क्या हुएं दुनिया के कुछ अखबारों ने बहुत ही चतुराई भरे शब्दों में हम पर व्यंग्य किया है।लोगों को यह पता होना ही चाहिए कि रुस ,अमेरिका,ब्रिटेन, जर्मनी फ्रांस और चीन यह सब जितने देश हैं उनका अंतरिक्ष विज्ञाण मात्र 300-400 साल पुराना है जबकि हमारा अंतरिक्ष ज्ञाण हजारों-हजार साल पुराना है।
...अमेरिका के जब आप इतिहास पढेंगें तो मालुम होगा कि 15 वीं शताब्दी के मध्य तक चंद्रग्रहण के संबध में अमेरिकी जनता को कुछ भी मालुम नही था।वें इसे कौतुहल मानते थें।कोलम्बस ने तो 14 वीं शताब्दी में चंद्रग्रहण के लाल चांद का डर दिखाकर इनसे अमेरिकी जनता से बहुत धन ठग लिया था।
...वहीं हमारा देश चंद्रग्रहण के वैज्ञानिक सिद्धांत से पुरी तरह परिचित था।ब्रह्मपुराण का एक श्लोक कहता है। --- " भूमिच्छाया गतश्चक्र चक्रगो अर्क कदाचन्।--- यानी चंद्रमा पर पृथ्वी की काली छाया पड़ने से यह खगोलीय घटना होती है।हजारों साल पहले पैदा हुए भारत के महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने तो जो वैज्ञानिक सिद्धांत लिख रखा है वहीं सिद्धांत आज पुरी दुनिया विज्ञान के पाठ्यपुस्तकों में पढ़ा रहा है।
....सूर्य के सात रंगों की खोज ऐसे तो न्यूटन को जाता है लेकिन न्यूटन से सहस्रो साल पहले वेदों और पुराणों में हमनें धार्मिक दृष्टिकोण से दुनिया को बता रखा है कि सूर्य सात घोडे़ वालें रथ पर विराजमान दिखाया है,तो ब्रह्माण्ड पुराण में सप्त रश्मि का उल्लेख है।जहां तक सूर्य की किरणें की गति का सवाल है तो 16 वीं शताब्दी में पुरी दुनिया ने आधा-अधुरा ज्ञान जाना बाद में 19 शताब्दी के शुरुआत में दुनिया ने सटीक तरीका से सूर्य के किरण की गति इतनी है जबकि हमारा महाभारत उससे हजारों साल पहले उसके किरण के गति का सिद्धांत दे रखा है।
...महाभारत के शांतिपर्व में उल्लेख है --" योजनानां सहस्रे द्वे द्वेशते द्वे च योजने।एकेन निमिषाद्वैन क्रममाण नमोsस्तुते। --अर्थ देखीए --सूर्य की किरणें एक निमिष में 2202 योजन जाती है।....जब थोड़ा निमिष को आप सेकेण्ड में बदल दिजीए तो निमिष एक सेकेंड का 16/75 वां भाग होता है।अब कैल्युकेलेट कर दिजीए योजन को मिल में बदल दिजीए और निमिष को सेकेंड में बदल दिजीए तो हुआ न लगभग 2 लाख 96 हजार किलोमीटर प्रति सेकेंड।आज का वैज्ञानिक सिद्धांत भी यही है।
...कहते हैं आकाशगंगा की खोज गैलेलियो ने की थी इसलिए पुरी दुनिया ने इसका नाम ही Galaxy दे दिया।किंतु आकाशगंगा पर एक टिपप्णी पुराणों मे देखीए।---"भ्रमानि कथमेनानी जोनिषि दिव मण्डलम्।व्हुहेन च सर्वाणि तथैवांस करेणवा।...अर्थात -- ये प्रकाशमान नक्षत्र और तारागण आकाश में किस प्रकार स्थिर है और एक-दूसरे से टकराते नही हैं।इसका कारण कुछ निश्चित गति है,जिसमें वें आकाश में संचरण करते हैं।
...दुरबीन जिसके खोज दुनिया के अनुसार हालैंड के हैंश लिपर्शे ने 1608 में किया था किंतु हमारे सबसे प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद के एक मंत्र का उदाहरण देखीए।--" यत्क सूर्य स्वर्भानुतमसा। विध्यतासुरः अक्षेत्र मुग्धा भुवनान्य दीर्घयु । गूढं तमसावतेन तूरियेण ब्रह्मा विन्ददसि।...अर्थ --: हे सूर्य, तुम चंद्र के अंधकार से आवृत हो।जो लोग ज्यमिति तथा ज्योतिष नही जानते हैं वे इसे देखकर सतम्भित है किंतु जो ज्ञानवान हैं वें तुम्हे तुरीय यंत्र के सहायता से देखते हैं।....ऋग्वेद का यह मंत्र हमें दो विषय की जानकारी दे रहा है एक सूर्यग्रहण की दुसरा दुरबीन के प्रयोग की।इतना ही दुरबीन कैसे बनाया जाता था इसका उल्लेख भी हमारे ग्रंथो मे है जो कमेंट में बताएगें क्योंकी अब पोस्ट अपडेट का समय हो चुका है।

शुक्रवार, अगस्त 30, 2019

आसमानी किताब की विकृत आयतों के कारण दुनिया के दो संपन्न देश इराक और सीरिया पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं.

खतरा कितना बड़ा है और स्थिति कितनी दुरूह है, इसकी आपको कल्पना नहीं है. अमेरिका के प्रशिक्षित लड़ाकू अपने पूरे संसाधनों के साथ बरसों से अफगानिस्तान में डटे हुए हैं. उसके बाद भी तालिबान को पूरी तरह समाप्त नहीं कर पाए हैं. आसमानी किताब की विकृत आयतों के कारण दुनिया के दो संपन्न देश इराक और सीरिया पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं. अल्लाह हू अकबर के नाम पर 21वीं सदी में लाखों लोग काल के गाल में समा गए हैं. दुनिया की 700 करोड़ की आबादी में 100 करोड़ हिंदु हजारों साल के कंठकाकीर्ण मार्ग को पार करते हुए अपने वैदिक धर्म और संस्कृति को बचाकर अस्तित्व में रह पाए हैं.
अच्छी तरह समझ लीजिए कि आज हिंदुओं का मुकाबला जहां एक ओर साम-दाम-दंड-भेद से आधी दुनिया को ईसाई बनाने में सफल रहे ईसा मसीह के पुजारियों से है, वहीं दूसरी ओर भूखे रहकर, जख्मी रहकर, परिवार छोड़कर, जीवन की सारी सुविधाएं छोड़कर, मानवता और दयालुता छोड़कर, आखरी सांस तक मजहब के नाम पर रक्त पात करने वाले अमानवीय हिंसक और जंगली लोगों से है. स्थिति की भयानकता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जब परिवार का बालक शरीर पर बम बांधकर चिथड़े चिथड़े हो जाता है तो परिवार में जश्न मनाया जाता है, कि बेटा मजहब के लिए जेहाद करते हुए अल्लाह ताला के पास जन्नत में चला गया है. आपका मुकाबला उन लोगों से हैं.
दूसरी और मुकाबला उन कायार लालची और गुलाम प्रवृत्ति के जयचंदों से भी है जिन्होंने धर्म के शत्रुओं की गोद में बैठ कर हमेशा हिंदुत्व को नुकसान पहुंचाया है. स्थिति की गंभीरता को समझिए और सावधान हो जाइए. आपकी पीढ़ी में आपकी जिम्मेदारी है कि जिस धर्म को शिवाजी और महाराणा प्रताप ने अपना रक्त देकर बचाया है आज उसकी अपेक्षाएं आपसे हैं. आपको तय करना है कि आप आने वाली पीढ़ियों को क्या देकर जाना चाहते हैं . एक सड़े हुए हिंसक मजहब में शामिल होने की मजबूरी या स्वतंत्रता के साथ अपने अति पुरातन और आधुनिक वैदिक सनातन धर्म के पालन करने की स्वतंत्रता.

सोमवार, अगस्त 12, 2019

तसलीमा नसरीन: ईद

तसलीमा नसरीन: ईद
ईद की सुबह स्‍नानघर में घर के सभी लोगो ने बारी-बारी से कोस्‍को साबुन लगा‍कर ठण्डे पानी से गुस्‍ल किया। मुझे नए कपड़े -जूते पहनाए गए, लाल रिबन से बाल से बाल संवारे गए, मेरे बदन पर इत्र लगाकर कान में इत्र का फाहा ठूंस दिया गया। घर के लड़कों ने कुर्ता-पाजामा पहनकर सिर पर टोपी लगाई । उनके कानों में भी इत्र के फाहे थे । पूरा घर इत्र से महकने लगा।
घर पुरूषों के साथ मैं भी ईद के मैदान की ओर चल पड़ी । ओह कितना विशाल मैदान था। घास पर बिस्‍तर के बड़े-बड़े चादर बिछाकर पिताजी ,बड़े भैया , छोटे भैया और बड़े मामा के अलावा मेरे सभी मामा वहां नमाज पढ़ने के लिए खड़े हो गए। पूरा मैदान लोगों से भरा हुआ था । नमाज शुरू होने के बाद जब सभी झुक गए, तब मै मुग्‍ध हो‍कर खड़ी-खड़ी वहां का दृश्‍य देखने लगी। बहुत कुछ हमारे स्‍कूल की असेम्‍बली के पीटी करने जैसा था , जब हम झुककर अपने पैरो की अगुलियां छूते थे , तब वहां भी कुछ ऐसा ही लगता होगा । नमाज खत्‍म होने के बाद पिताजी अपने परिचितों से गले मिलने लगे। गले मिलने का नियम सिर्फ लड़को में ही था । घर लौटकर मैंने अपनी मां से कहा, ''आओ मां ,हम भी गले मिलकर ईद मुबारक कहें।''
मां ने सिर हिलाकर कहा ,"लड़कियां गले नहीं मिलतीं ।"
"क्‍यों नहीं मिलतीं" पूछने पर वे बोलीं, "रिवाज नहीं है ।"
मेरे मन में सवाल उठा, "रिवाज क्‍यों नहीं है ?"
खुले मैदान में कुर्बानी की तैयारियां होने लगीं । तीन दिन पहले खरीदा गया काला सांड़ कड़ई पेड़ से बंधा था । उसकी काली आखों से पानी बह रहा था । यह देखकर मेरे दिल में हूक उठी कि एक जीवित प्राणी अभी पागुर कर रहा है , पूंछ हिला रहा है जो थोड़ी देर बाद गोश्‍त के रूप में बदलकर बाल्टियों में भर जाएगा । मस्जिद के इमाम मैदान में बैठकर छुरे की धार तेज कर रहे थे । हाशिम मामा कहीं से बांस ले आए । पिताजी ने आंगन में चटाई बिछा दी ,जहां बैठकर गोश्‍त काटा जानेवाला था । छुरे पर धार चढ़ाकर इमाम ने आवाज दी ।
हाशिम मामा , पिताजी और मुहल्‍ले के कुछ लोगों ने सांड़ को रस्‍सी से बांधकर बांस से लंगी लगाकर उसे जमीन पर गिरा दिया । सांड़ 'हम्‍बा' कहकर रो रहा था । मां और खाला वगैरह कुर्बानी देखने के लिए खिड़की पर खड़ी हो गई । सभी की आंखों में बेपनाह खुशी थी।
लुंगी पहने हुए बड़े मामा ने, जिन्‍होंने इत्र वगैरह नहीं लगाया था, मैदान के एक कोने पर खड़े होकर कहा, " ये लोग इस तरह निर्दयतापूर्वक एक बेजुबान जीव की हत्‍या कर रहे हैं। जिसे लोग कितनी खुशी से देख रहे हैं। वो सोचते हैं कि अल्‍लाह भी इससे खुश होते होंगे। दरअसल किसी में करुणा नाम की कोई चीज नहीं है।" बड़े मामा से कुर्बानी का वह वीभत्‍स दृश्‍य देखते नहीं बना। वे चले गए। मगर मैं खड़ी रही।
सांड़ हाथ-पैर पटक कर आर्तनाद कर रहा था। वह सात-सात तगड़े लोगों को झटक कर खड़ा हो गया। उसे फिर से लंगी मारकर गिराया गया। इस बार उसे गिराने के साथ ही इमाम ने धारदार छूरे से अल्‍लाह हो अकबर कहते हुए उसके गले को रेत दिया। खून की पिचकारी फूट पड़ी। गला आधा कट जाने के बाद भी सांड़ हाथ-पैर पटककर चीखता रहा।
मेरे सीने में चुनचुनाहट होने लगी, मैं एक प्रकार का दर्द महसूस करने लगी। बस मेरा इतना ही कर्तव्‍य था कि मैं खड़ी होकर कुर्बानी देख लूं। मां ने यही कहा था, इसे वे हर ईद की सुबह कुर्बानी के वक्‍त कहती थीं। इमाम सांड़ की खाल उतार रहे थे तब भी उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे। शराफ मामा और फेलू मामा उस सांड के पास से हटना ही नहीं चाहते थे। मैं मन्‍नू मियां की दुकान पर बांसुरी व गुब्‍बारे खरीदने चली गई। उस सांड के गोश्‍त के सात हिस्‍से हुए। तीन हिस्‍सा नानी के घरवालों का, तीन हिस्‍सा हमलोगों का और एक हिस्‍सा भिखाडि़यों व पड़ोसियों में बांट दिया गया।
****बड़े मामा लुंगी और एक पुरानी शर्ट पहनकर पूरे मुहल्‍ले का चक्‍कर लगाने के बाद कहते, ''पूरा मुहल्‍ला खून से भर गया है। कितनी गौएं कटी, इसका हिसाब नहीं। ये पशुधन किसानों को ही दे दिए जाते तो उनके काम आ सकते थे। कितने ही किसानों के पास गाय नहीं है। पता नहीं, आदमी इतना राक्षस क्‍यों है? समूची गाए काटकर एक परिवार गोश्‍त खाएगा, उधर कितने लोगों को भात तक नहीं मिलता।''
बड़े मामा को गुस्‍ल करके ईद के कपड़े पहनने के लिए तकादा देने का कोई लाभ नहीं था। आखिरकार हारकर नानी बोली, ''तूने ईद तो किया नहीं तो क्‍या इस वक्‍त खाएगा भी नहीं? चल खाना खा ले।'' '' खाऊंगा क्‍यों नहीं, मुझे आप खाना दीजिए। गोश्‍त के अलावा अगर कुछ और हो तो दीजिए।'' बड़े मामा गहरी सांस लेकर बोले।
नानी की आंखों में आंसू थे। बड़े मामा ईद की कुर्बानी का गोश्‍त नहीं खाएंगे, इसे वे कैसे सह सकती थीं। नानी ने आंचल से आंखें पोंछते हुए प्रण किया कि वे भी गोश्‍त नहीं छुएंगी। अपने बेटे को बिना खिलाए माताएं भला खुद कैसे खा सकती हैं। बड़े मामा के गोश्‍त न खाने की बात पूरे घर को मालूम हो गई। इसे लेकर बड़ों में एक प्रकार की उलझन खड़ी हो गई।
साभार: तसलीमा नसरीन: आत्‍मकथा भाग-एक, मेरे बचपन के दिन, वाणी प्रकाशन।

गुरुवार, अगस्त 01, 2019

पहली बार अगर किसी ने मुस्लिमों का विश्वास जितने की कोशिश करने वाले राजा दाहिर सेन थे मोहम्मद साहब के परिवार को शरण दी और बदले में उनको मौत मिली

पहली बार अगर किसी ने मुस्लिमों का विश्वास जीतने की कोशिश की होगी तो वो राजा दाहिर सेन थे मोहम्मद साहब के परिवार को शरण दी और बदले में उनको मौत मिली
राजा दाहिर सेन एक प्रजावत्सल राजा थे। गोरक्षक के रूप में उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। यह देखकर ईरान के शासक हज्जाम ने 712 ई0 में अपने सेनापति मोहम्मद बिन कासिम को एक विशाल सेना देकर सिन्ध पर हमला करने के लिए भेजा। कासिम ने देवल के किले पर कई आक्रमण किये; पर राजा दाहरसेन और हिन्दू वीरों ने हर बार उसे पीछे धकेल दिया।
सीधी लड़ाई में बार-बार हारने पर कासिम ने धोखा किया। 20 जून, 712 ई. को उसने सैकड़ों सैनिकों को हिन्दू महिलाओं जैसा वेश पहना दिया। लड़ाई छिड़ने पर वे महिला वेशधारी सैनिक रोते हुए राजा दाहरसेन के सामने आकर मुस्लिम सैनिकों से उन्हें बचाने की प्रार्थना करने लगे। राजा ने उन्हें अपनी सैनिक टोली के बीच सुरक्षित स्थान पर भेज दिया और शेष महिलाओं की रक्षा के लिए तेजी से उस ओर बढ़ गये, जहां से रोने के स्वर आ रहे थे।
इस दौड़भाग में वे अकेले पड़ गये। उनके हाथी पर अग्निबाण चलाये गये, जिससे विचलित होकर वह खाई में गिर गया। यह देखकर शत्रुओं ने राजा को चारों ओर से घेर लिया। राजा ने बहुत देर तक संघर्ष किया; पर अंततः शत्रु सैनिकों के भालों से उनका शरीर क्षत-विक्षत होकर मातृभूमि की गोद में सदा को सो गया। इधर महिला वेश में छिपे मुस्लिम सैनिकों ने भी असली रूप में आकर हिन्दू सेना पर बीच से हमला कर दिया। इस प्रकार हिन्दू वीर दोनों ओर से घिर गये और मोहम्मद बिन कासिम का पलड़ा भारी हो गया।
राजा दाहरसेन के बलिदान के बाद उनकी पत्नी लाड़ी और बहिन पद्मा ने भी युद्ध में वीरगति पाई। कासिम ने राजा का कटा सिर, छत्र और उनकी दोनों पुत्रियों (सूर्या और परमाल) को बगदाद के खलीफा के पास उपहारस्वरूप भेज दिया। जब खलीफा ने उन वीरांगनाओं का आलिंगन करना चाहा, तो उन्होंने रोते हुए कहा कि कासिम ने उन्हें अपवित्र कर आपके पास भेजा है।
इससे खलीफा भड़क गया। उसने तुरन्त दूत भेजकर कासिम को सूखी खाल में सिलकर हाजिर करने का आदेश दिया। जब कासिम की लाश बगदाद पहुंची, तो खलीफा ने उसे गुस्से से लात मारी। दोनों बहिनें महल की छत पर खड़ी थीं। जोर से हंसते हुए उन्होंने कहा कि हमने अपने देश के अपमान का बदला ले लिया है। यह कहकर उन्होंने एक दूसरे के सीने में विष से बुझी कटार घोंप दी और नीचे खाई में कूद पड़ीं।
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शनिवार, जुलाई 27, 2019

स्त्रियाँ, कुछ भी बर्बाद नही होने देतीं।

स्त्रियाँ, कुछ भी बर्बाद
नही होने देतीं।
वो सहेजती हैं।
संभालती हैं।
ढकती हैं।
बाँधती हैं।
उम्मीद के आख़िरी छोर तक।
कभी तुरपाई कर के।
कभी टाँका लगा के।
कभी धूप दिखा के।
कभी हवा झला के।
कभी छाँटकर।
कभी बीनकर।
कभी तोड़कर।
कभी जोड़कर।
देखा होगा ना ?
अपने ही घर में उन्हें
खाली डब्बे जोड़ते हुए।
बची थैलियाँ मोड़ते हुए।
बची रोटी शाम को खाते हुए।
दोपहर की थोड़ी सी सब्जी में तड़का लगाते हुए।
दीवारों की सीलन तस्वीरों से छुपाते हुए।
बचे हुए खाने से अपनी थाली सजाते हुए।
फ़टे हुए कपड़े हों।
टूटा हुआ बटन हो।
पुराना अचार हो।
सीलन लगे बिस्किट,
चाहे पापड़ हों।
डिब्बे मे पुरानी दाल हो।
गला हुआ फल हो।
मुरझाई हुई सब्जी हो।
या फिर
तकलीफ़ देता " रिश्ता "
वो सहेजती हैं।
संभालती हैं।
ढकती हैं।
बाँधती हैं।
उम्मीद के आख़िरी छोर तक...
इसलिए ,
आप अहमियत रखिये!
वो जिस दिन मुँह मोड़ेंगी
तुम ढूंढ नहीं पाओगे...।
" मकान" को "घर" बनाने वाली रिक्तता उनसे पूछो जिन घर मे नारी नहीं वो घर नहीं मकान कहे जाते हैं
इसलिए #नारी का #सम्मान करो

शनिवार, जुलाई 06, 2019

डॉ वफ़ा सुल्तान की आत्मकथात्मक पुस्तक A GOD WHO HATES

डॉ वफ़ा सुल्तान की आत्मकथात्मक पुस्तक A GOD WHO HATES बड़े काम की है। इस किताब को पढ़ने-गुनने के बाद आपको मुसलमानों पर सिर्फ दया आएगी क्योंकि वे इस्लाम नामक घातक बीमारी के शिकार हैं और उन्हें इस बीमारी से मुक्त कराना हम सबका वैश्विक कर्तव्य है।
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चीन में मुस्लिम बच्चों को उनके माँ-बाप से अलग किया जा रहा है ताकि इस्लाम की शिक्षा उन्हें न मिले और वे जिहादी होने से बच जाएँ। मानवाधिकार को सुनिश्चित करने के लिए इससे बड़ा कोई काम नहीं हो सकता। इसके लिए चीन की सरकार बधाई की पात्र है।
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ऐसा इसलिए कि मजहब की शक़्ल में इस्लाम एक मानव-घाती कब्ज़ावादी राजनीतिक विचारधारा है जिसे माननेवाला चुप्पा या सक्रिय जिहादी होता है। इस लिहाज से इस्लाम के सबसे बड़े शिकार ख़ुद मुसलमान हैं और वे पूरी दुनिया को अपना शिकार बना रहे हैं। चीन ने इस बात को न सिर्फ समझा है बल्कि उससे बचाव का कारगर तरीका भी अपनाया है जिसे देर-सबेर सभी देशों को स्वीकारना पड़ेगा।
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चीन के क़दम का महत्त्व सीरियाई मनोचिकित्सक डॉ वफ़ा सुल्तान के शोध-निष्कर्ष से समझा जा सकता है जिसमें वे कहती हैं कि क़ुरान पढ़ने के बाद भी मुसलमान बना रहनेवाला मनोरोगी होता है। दूसरी तरफ़ INFIDEL की लेखिका अयान हिरसी अली इसी बात से बहुत ख़ुश हैं कि दुनिया के अधिकतर मुसलमान वह सब नहीं करते जो ख़ुद हुज़ूर ने किया भले वे उसे सही कहते-मानते हों। अगर ऐसा नहीं होता तो दुनिया अबतक नरक हो गई होती।
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इस कठिन समय में चीन के जिनपिंग और सऊदी राजकुमार बिन सलमान दुनिया की आशा के केंद्र हैं। वे यह साबित करते हैं कि दुनिया कभी विकल्पहीन नहीं होती। जिन्हें इन बातों के महत्त्व पर भरोसा न हो उन्हें क़ुरआन जरूर पढ़ना चाहिए, मोहम्मद की जीवनी भी क्योंकि यह पढ़ना आपके और पूरी दुनिया के अस्तित्व से जुड़ा है।
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अंग्रेजी पढ़नेवालों के लिए डॉ वफ़ा सुल्तान की आत्मकथात्मक पुस्तक A GOD WHO HATES बड़े काम की है। इस किताब को पढ़ने-गुनने के बाद आपको मुसलमानों पर सिर्फ दया आएगी क्योंकि वे इस्लाम नामक बीमारी के शिकार हैं और उन्हें इस बीमारी से मुक्त कराना हम सबका वैश्विक कर्तव्य है। इस पोस्ट के साथ इस्लाम और मुसलमानों पर लिखी कुछ बहुचर्चित पुस्तकों का फ्रंट-कवर स्क्रीनशॉट संलग्न है।
©चन्द्रकान्त प्रसाद सिंह

इस बार फिर से भाजपा ,अचानक ऐसा लग रहा है जैसे हिन्दू विरोधी अपराधों की एक आंधी सी आ रही है

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इस बार फिर से भाजपा सरकार बनते ही
अचानक ऐसा लग रहा है जैसे हिन्दू विरोधी अपराधों की
एक आंधी सी आ रही है... लगातार जगह जगह छोटी छोटी
बच्चियों से बलात्कार, पिछले 10 दिनों में ही 6 जगह हिन्दुओं के
मुहल्लों में 500-600 लोगों की भीड़ घुसकर पथराव, तोड़फोड़ कर रही है, हिन्दू मंदिरों पर पथराव किया जा रहा है, वहां भी तोड़फोड़ की जा रही है. यहां कुछ चीजें ध्यान देने योग्य हैं...
1. विपक्ष को इस बार बिल्कुल भी यह आशा नहीं थी कि इस बार भी भाजपा की सरकार बन जायेगी. वो लोग बौखलाये हुये हैं. और इसी बौखलाहट में उनके समर्थक किसी भी कीमत पर देश भर में जगह जगह छोटे छोटे दंगे करवाना चाहते हैं जिससे मोदी सरकार को बदनाम किया जा सके, जिससे विकास की राजनीति की जगह आपसी लड़ाई झगड़े और दंगों की बातें देश और दुनिया में फैलें, और अन्ततः मोदी का प्रशंसक वर्ग उससे नाराज होकर अगली बार भाजपा को वोट न दे...
2. सभी जगहों पर एक प्लानिंग के तहत इकठ्ठा होकर और बहुत छोटी सी बात को जबरन तूल देते हुए असावधान हिन्दुओं पर अचानक हमला किया जा रहा है जिसका कोई प्रतिरोध हिन्दू कर ही नहीं सके. हिन्दुओं के मंदिरों का अपमान और हिन्दू बच्चियों का बलात्कार हिन्दुओं का मनोबल तोड़ने के लिए किया जा रहा है...
3. प्रधानमंत्री पद की मर्यादा के अनुसार मोदीजी इन घटनाओं पर कोई बयान नहीं दे पा रहे हैं और इसलिये बहुत से पुराने मोदीभक्त भी मोदीजी को गालियां देने लगे हैं. ऐसे लोगों का कहना है कि जब गोरक्षकों के हाथों दो -तीन मामलों में गौतस्कर मारे गये थे तब तो मोदीजी ने तुरन्त गोरक्षकों की बुराई कर दी थी, तो अब वह कुछ क्यों नहीं कह रहे ? और भी 2-3 मामलों में हिन्दुओं के हाथों किसी चोर की पिटाई होने से उसकी मृत्यु होने जैसे मामलों में भी मोदीजी ने ऐसा न करने व करने वालों पर कार्रवाई करने का कहा, लेकिन इन लगातार हिन्दुओं के ऊपर हो रहे आक्रमण पर मोदीजी का न बोलना लोगों को बहुत क्रोधित कर रहा है...
मेरे यहां अपने हिन्दू मित्रों से कुछ प्रश्न हैं :-
1. क्या आप किसी सामान्य चोर, बलात्कारी या गौहत्यारे को पकड़ कर पीटने लगो, पीट पीटकर उसकी हत्या कर दो -और स्वयं ही इसकी वीडियो बनाकर वाइरल कर दो, तो मोदीजी क्या आपकी इस हरकत की प्रशंसा करेंगे? क्षमा कीजिए, मैं खुद आपके ऐसे किसी भी काम का विरोध करूंगा जहां कानूनन गलत हरकत करते हुये आप खुद ही वीडियो बनाकर वाइरल कर दें. आप चोरों को पकड़िये, बलात्कारियों व गौहत्यारों को पकड़ कर पुलिस के हवाले कीजिये.. पीटने का अधिकार तो कानून नहीं देता. और अगर आप ऐसे दुष्टों को पीटते भी हैं तो उसके वीडियो क्यों बना रहे हैं? आप स्वयं यह सुबूत बनाकर और उनको वाइरल करके वामपंथी मीडिया व वामपंथी समाज को यह मौका देते हैं कि वो आपको बदनाम करें और आपको जेल भेजने जाना भी सुनिश्चित करें. माफ कीजिये, आप वीडियो बनाकर अपनी ऐसी कानून तोड़ती हरकत का प्रचार करेंगे तो मोदीजी कभी भी आपका समर्थन नहीं कर सकते, वह आपको जेल में डलवाने का आदेश ही दे सकते हैं...
2. क्या हिन्दूवीरों ने गौर किया कि किसी भी घटना में हिन्दुओं के दोषी होने पर शहर शहर कितने विरोध प्रदर्शन होते हैं? जगह जगह " I am a Hindu. I am ashamed of... " की तख्ती लिये लोग खड़े हो जाते हैं? आप लोग भी ऐसा क्यों नहीं कर सकते? बड़े बड़े शहरों के चौराहों पर ऐसी ही तख्ती लेकर " I am a Hindu girl, I don't want to be raped", या "Hindu temples are being attacked. Why you hate us Hindus? " या इसी तरह की कोई तख्ती लिये क्यों खड़े नहीं हो सकते. जब जगह जगह ऐसे विरोध प्रदर्शन होंगे और उनको जमकर सोशल मीडिया पर भी शेयर किया जायेगा तो टीवी व न्यूजपेपर मीडिया को भी मजबूरन आपके पक्ष में बोलना -लिखना पड़ेगा. लेकिन क्या आपने ऐसा किया?
3. आप अपने MLA, MP के पास सैकड़ों की संख्या में पहुँचकर उनसे बात कीजिये कि वो इन मुद्दों पर सामने आकर आपका सपोर्ट क्यों नहीं कर रहे हैं? वो खुद नहीं आयेंगे लेकिन जब आप एक भीड़ के रूप में उनके पास जायेंगे तो उन्हें भी आपके साथ आना ही पड़ेगा...
4. सभी हिन्दुओं से विनम्र निवेदन. सप्ताह में कम से कम एक बार अपने मुहल्ले के मंदिर में जरूर जायें, वहां मुहल्ले के अन्य लोगों से सम्बन्ध बढायें. Whatsapp आदि पर कुछ ग्रुप बनायें, जिससे जरुरत पढ़ने पर सब लोग एक साथ घर से निकलकर अपने मुहल्ले पर आक्रमण करते लोगों का मुकाबला कर सकें. खास तौर से लाइसेंसी पिस्टल, राइफल रखने वाले हिन्दू इस मामले में आगे रहें. चार फायर होते ही आक्रमणकारियों की 400-600 की भीड़ भी 5 मिनट में गायब हो जायेगी. लेकिन, भगवान के लिए ऐसी फायरिंग आदि की कोई वीडियो न बनाइये. वीडियो सिर्फ आक्रमणकारियों की बनायें जिससे आप पुलिस को बता पायें कि आक्रमण आप पर किया गया था और आपने self defense में सिर्फ हवा में कुछ फायर किये थे...
मोदी आपसे कुछ नहीं कहेगा जब आप गौहत्यारों या गौतस्करों को पीटेंगे बशर्ते कि आप इस बात की वीडियो न बनायें. आप किसी दुष्ट को पीटते की वीडियो वायरल करके बहुत बड़ी बेवकूफी कर रहे होते हैं. जो करना है -उसका सुबूत छोड़ना बिल्कुल गलत है. बाकी, कुछ 7-8 प्रदेशों को छोड़कर सभी जगह आपकी ही राज्य सरकार है, आपकी ही पुलिस है. गुन्डों और अपराधियों को पकड़ने व मारने में पुलिस का सहयोग कीजिये. पर जो भी कीजिये, कानून सम्मत कीजिये...
आप कानून सम्मत रहेंगे तो मोदीजी भी आपकी तारीफ करेंगे. बाकी, विश्वस्त रहिये कि मोदीजी और अमित शाह की नजर इस तरह की सब घटनाओं पर है. यह वही अमित शाह हैं, यह वही मोदी हैं जो 2002 में गुजरात में थे. लेकिन उन्होंने उस समय भी कुछ भी कानून तोड़ने वाला काम नहीं किया था. एक और अंतिम बात, मोदी और अमित शाह आपसे कम कट्टर हिन्दू नहीं हैं...
और हां
जय हिंद

किसी ने सोचा कि कश्मीर बंगाल में मंदिर टूटते टूटते आखिर दिल्ली में मंदिर कैसे टूटने लगे ?

किसी ने सोचा कि कश्मीर बंगाल में मंदिर टूटते टूटते आखिर दिल्ली में मंदिर कैसे टूटने लगे ?
सीरिया से होते कश्मीर और कश्मीर से होते मेरठ में परसों हज़ारों लोग isis के काले झंडे लेकर कैसे और क्यों लहराने लगे ?
दिल्ली मोदी की और मेरठ योगी की ?
और दोनों देश के सबसे बड़े हिंदूवादी और कड़क शासक की गिनती में आते हैं.... तो क्या दोनों जगहों पर कुछ परीक्षण किया गया ?
बिल्कुल किया गया... सबसे पहले देखा गया कि काले झंडे देखकर सामान्य हिंदुओं की प्रतिक्रिया कैसी है ? क्या वो उसी वक़्त प्रतिक्रिया देते हैं ?
उन्होंने देख लिया कि हिन्दू काले झंडे से पटे जुलूस को देखकर भी उद्वेलित नहीं हुआ और योगी सरकार ने सिवाय डंडे फटकारने के कुछ नहीं किया और वो भी पुलिस तब पहुंची जब पता चला कि ISIS के झंडे लहलहा रहे हैं...
दिल्ली में मंदिर हिंदुओं के सामने तोड़ा गया... वहां भी वही रिजल्ट मिला... सामान्य हिन्दू और पुलिस मौन है और शांत है.. कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली...
कुल मिलाकर सबकुछ अनुकूल है... बल्कि वैसा ही जैसा 1990 के कश्मीर में था...
तबरेज के बहाने से हर शहर में लाखों मुसलमानों को जुटाकर एक और परीक्षण किया जा रहा है... ये देखा जा रहा है कि हरेक शहर में सब तैयार हैं या नहीं ? जोश जज्बा भरपूर है या नहीं... लाखों की भीड़ सड़क पर आने के लिए तैयार है या नहीं ?
ये भी अबतक अनुकूल रहा है... सरकार को ये भी भनक नहीं मिल पा रही कि लाखों लोगों ने आज किस शहर के किस चौराहे पर जुटने का प्रोग्राम बनाया है...
ये कमाल है कि लाखों लोग कितने एकजुट है कि बात लीक नहीं होती और उनके पास उनके आका का msg घर घर पहुंच जाता है...
तो तैयार रहिए... अब उनके अगले कदम का... मुझे जो आहट सुनाई दे रही है.. अगर वो आपको भी सुनाई दे रही है तो... तैयारी में लग जाइये... कम से कम इतना तो कल्पना कीजिये कि उस विषम हालात में आप क्या करने वाले हैं ? किस किस का फोन नम्बर आपके पास है ? घर के आसपास की सुरक्षा क्या है ? पास के थानों के नम्बर क्या है और वो नम्बर लगता है या नहीं ? आपके शहर के कौन से हिन्दू संगठन सबसे ज्यादा एक्टिव है और नम्बर... अगर कुछ बड़ा होने वाला है तो इन संगठनों के पास सबसे पहले न्यूज़ आ जाती है..
ये भी पता कर लीजिए कि आपके घर के आसपास में आपके जैसे विचारों वाले हिन्दू भाई कौन कौन हैं... उनसे मिलकर तैयारी कीजिये...
ये सब यूपी बिहार बंगाल दिल्ली आदि से ही शुरू होगा... राजस्थान,महाराष्ट्र, गुजरात का नम्बर बाद में आएगा... क्योंकि इसी का तो परीक्षण हो रहा है कि किस जगह की सरकार सबसे ज्यादा फेल्योर है...
बाकी आपकी मर्जी है...🚩

शनिवार, जून 29, 2019

मालाबार और आर्यसमाज

मालाबार और आर्यसमाज
1921 में केरल में मोपला के दंगे हुए। मालाबार में रहने वाले मुसलमान जिन्हें मोपला कहा जाता था मस्जिद के मौलवी के आवाहन पर जन्नत के लालच में हथियार लेकर हिन्दू बस्तियों पर आक्रमण कर देते हैं। पहले इस्लाम ग्रहण करने का प्रलोभन दिया जाता हैं और हिन्दुओं की चोटी-जनेऊ को काट कर अपनी जिहादी पिपासा को शांत किया गया और जिस हिन्दू ने धर्मान्तरण से इंकार कर दिया उसे मार दिया गया, उसकी संपत्ति लूट ली गई और उसके घर को जला दिया गया। करीब 5000 हिन्दुओं का कत्लेआम करने एवं हज़ारों हिन्दुओं को इस्लाम में दीक्षित करने के बाद मालाबार में मुसलमानों ने समानांतर सरकार चलाई और अंग्रेज सरकार वहां नामोनिशान तक नहीं था। गांव के गांव का यही हाल था। अंत में अंग्रेजों की विशाल टुकड़ी मुसलमानों का मुकाबला करने मैदान में उतरी और इस्लामिक शरिया के इलाके को मुक्त किया गया। हिन्दुओं की व्यापक हानि हुई। उनकी धन सम्पत्ति लूट ली गई, उनके खेत जला दिए गए, उनके परिवार के सदस्यों को मार डाला गया एवं बचे खुचो को मुसलमान बना दिया गया था। त्रासदी इतनी व्यापक थी कि हिन्दुओं की लाशों से कुँए भर गए। केरल में हुई इस घटना की जानकारी अनेक हफ़्तों तक उत्तर भारत नहीं पहुंची। आर्यसमाज के शीर्घ नेताओं को लाहौर में जब इस घटना के विषय में मालूम चला तो पंडित ऋषिराम जी एवं महात्मा आनंद स्वामी जी को राहत सामग्री देकर सुदूर केरल भेजा गया। वहां पर उन्होंने आर्यसमाज की और से राहत शिविर की स्थापना करी जिसमें भोजन की व्यवस्था करी गई, जिन्हें जबरन मुसलमान बनाया गया था उन्हें शुद्ध कर वापिस से हिन्दू बनाया गया। आर्यसमाज के रिकार्ड्स के अनुसार करीब 5000 हिन्दुओं को वापिस से शुद्ध किया गया। इस घटना का यह परिणाम हुआ की हिन्दू समाज में आर्यसमाज को धर्म रक्षक के रूप में पहचाना गया। जो लोग आर्यसमाज के द्वारा करी गई शुद्धि का विरोध करते थे वे भी आर्यसमाज के हितैषी एवं प्रशंसक बन गए। सुदूर दक्षिण में करीब 4000 किलोमीटर दूर जाकर हिन्दू समाज के लिए जो सेवा करी उसके लिए मदन मोहन मालवीया जी, अनेक शंकराचार्यों, धर्माचार्यों आदि ने आर्यसमाज की प्रशंसा करी। समय की विडंबना देखिये केरल में 1947 के पश्चात बनी सेक्युलर कम्युनिस्ट सरकार ने मोपला के दंगों में अंग्रेजों द्वारा मारे गए मुसलमानों को क्रांतिकारी की परिभाषा देकर उन्हें स्वतंत्रता सैनानी की सुविधा जैसे पेंशन आदि देकर हिन्दुओं के जख्मों पर नमक लगाने का कार्य किया। आज भी केरल में उन अनेक मंदिरों में उन अवशेषों को जिनमें इस्लामिक दंगाइयों ने नष्ट किया था सुरक्षित रखा गया हैं ताकि आने वाली पीढ़ियां उस अत्याचार को भूल न सके।
आर्यसमाज द्वारा एक पुस्तक मालाबार और आर्यसमाज प्रकाशित की गई जिसमें मालाबार में हिन्दुओं पर हुए अत्याचार, कत्लेआम, राहत , शुद्धि आदि पर प्रामाणिक जानकारी देकर जनसाधारण को धर्म रक्षा के लिए संगठित होने की प्रेरणा दी गई।
डॉ विवेक आर्य

सलंग्न चित्र- मोपला दंगों में हिन्दू समाज की आप्तकाल में रक्षा हेतु लगाये गए रक्षा शिविर का दृश्य।

इस पुस्तक के पीडीएफ को नीचे दिए गए लिंक पर जाकर (Download) डाउनलोड किया जा सकता है।

मंगलवार, मई 07, 2019

आओ विकास करें

आओ विकास करें
(सिर्फ लोगो के विचार शेयर करने के कारण आज ये ब्लॉग बहुत  रिपोर्ट हो चुका है  जबकि हर पोस्ट करता का नाम लिंक मिलेगा अगर वो पोस्ट किसी की मूल है तो )
पत्तळ बनाम टिस्यू पेपर
साथियो एक कहानी सुनाना चाहता हूँ, अपने बारे में कुछ बताना चाहता हूँ। मैं आज कितना विकास कर गया ये सरल भाषा में समझना व समझाना चाहता हूँ।
कमाल कर गया हूँ मैं, अरे भाई इतना मॉडर्न हो गया कि पूछो मत, खाना खा कर टिस्यू पेपर से हाथ व मुहं पोछता हूँ तथा कभी किसी पांच सितारा होटल या विदेश में जाता हूँ तो वो भी मजबूरी में पोंछ लेता हूँ, हां भई वही सही सोच रहे हैं आप लोग। पहले तो मैं गांव में रहता था, ग्वांर था, गांव जंगल के में था तो मैं जंगली भी था। अरे गाय भैंस चराता था, गोबर बिटोलता था, गोबर से सारा घर आंगन लीपता था, तालाब में नहाता था, बैलगाड़ी पर बैठ कर खेत में भी जाता था।
छीं छीं मिट्टी के मकान में रहता था और मुलतानी से नहाता था, घर की सरसों का तेल चोपड़ लेता था। मेरा खाना भी बिलकुल निम्न स्तर का था, अरे वो प्रदूषण फैलाने वाले हारे में और थेपड़ी से चुल्हे में मिट्टी की हांडी में खाना बनता था मेरा। खाना भी क्या बस दलिया खिचड़ी, मलाई शक्कर रोटी, चटनी, दाल, साग, गुलगुले, पूड़े, सिवाली, सिम्मी, हलवा, खीर, गुड़भत्ता, गोजी गास, चूरमा, शीरा, गुड़, शक्कर, लापसी और कभी गाय या भैंस ब्या जाती थी तो खीश आदि।
कहने का मतलब है कि मैं आदिवासी था। प्रदूषण नहीं फैलाता था बिलकुल। जल खराब नहीं करता था। पैट्रोल डीजल नहीं फूंकता था। बिजली घर में थी ही नहीं बस सरसों के तेल का दीवा होता था।
बारात आ जाती या कोई सामुहिक भोज होता तो टाट बिछा कर आलथी पालथी मार कर धरती पर बैठ कर खाना खाता था। एक टोली होती थी जो बार बार पूछती रहती थी कि क्या खाओगे, बड़ा परेशान करते थे, पेट भरने के बाद भी एक आध लड्डू पत्तल पर टेक ही जाते थे। सच में असभ्य थे वो लोग!!!
खैर रोहतक विकसित होने (पढ़ने) आ गया और विकास करने लगा। 100 में से 100 नंबर लेणे की होड़ में लग गया। रोहतक में मेडिकल मोड़ पर मामा मिंया नाम का होटल नया नया खुला था, गर्मी के दिन थे, पहली बार उस में दोस्तों के साथ खाना खाने गया। खाना खाने के बाद वेटर ने एक कटोरी में गर्म पानी, कटा हुआ नींबू व एक टिस्यू पेपर रख गया। सब दोस्त हैरान किसी को नहीं पता था कि इस गर्म पानी, नींबू व टिस्यू पेपर का क्या करें। हम अपना अपना दिमाग लगाने लगे हंसने लगे, मेरे मन में जो ख्याल आया वो ये था की जरुर ये नींबू इस पानी में निचोड़ कर पीना है ताकि खाया पीया जल्दी हजम हो, पर कुछ देर बाद साथ वाली मेज पर भी नींबू पानी आ गया। जब उन्होंने पहले नींबू को हाथो पर रगड़ कर गर्म पानी में हाथ धोए व टिस्यू पेपर से हाथ पोंछे तक पता चला की ये तो हाजमे के लिए नहीं हाथ धोने के लिए है। उस दिन मैं ओर विकसित हो गया।
अब मुख्य मुद्दे पर आता हूँ क्या है टिस्यू पेपर व क्या है पत्तल?? टिस्यू पेपर रोजाना करीब 28000 हरे भरे पेड़ों का कचूमर निकाल कर, कई हजार किलो वॉट बिजली फूंक कर, क्लोरीन व अन्य जहरीले रसायनों द्वारा साफ कर, थोड़ा बहुत कुछ छाप कर आप की खाने की प्लेट तक पहुंचता है जिसमें थोड़े बहुत जहरीले तत्व रह सकते हैं, जो आपको बीमार कर सकते हैं, जबकी पत्तल का विज्ञान अद्भुत है।
जब हम विकसित नहीं थे तब करीब दो हजार वृक्षों के पत्तों पर खाना खाया करते थे। असभ्य लोगों को पता था कि कौन सी बीमारी किस पेड़ के पत्ते पर खाना खाने से ठीक होगी जैसे कि मंद बुद्धि बच्चे अगर पीपल के पत्ते पर खाना खाएंगे तो कुशाग्र बुद्धि हो जाएंगे। जोड़ो के दर्द का मरीज अगर करंज के पत्तों पर खाना खाएगा, लकवाग्रस्त अगर अमलतास के पत्तों, बवासीर का मरीज अगर सफेद फूलों वाले पलाश (ढाक) व पाचनतंत्र में गड़बड़ व अशुद्ध रक्त वाले मरीज अगर लाल फूल वाले पलाश के पत्तों पर खाना खाएंगे तो स्वस्थ हो जाएंगे। केले के पत्ते पर खाना खाने वाले को बीमार पड़ने की संभावना ना के बराबर है।
अब मैं दोबारा अविकसित व असभ्य बन रहा हूँ। मात्र दो ₹ प्रति दिन खर्च कर दोबारा रोजाना पत्तल पर ही खाना खाणा शुरु कर रहा हूँ जिससे मुझे तो स्वास्थ्य लाभ मिलेगा ही मेरी धरती मां का स्वास्थय भी ठीक रहेगा। 60/- ₹ महीने में बर्तन मांजने का झंझट खत्म, साबुन के पैसे बचेगें व तकरीबन तीस चालीस लीटर साफ मीठा पानी रोजाना बचेगा। खाना खा कर पत्तल को खेत में या अपनी बगीची में डाल दूंगा, बगीचे में खाद नहीं डालनी पड़ेगी। सबसे बड़ी बात मेरे इस कदम से किसी गरीब का रोजगार मिलेगा, किन्हीं हाथों को काम मिलेगा। एक बैल भी ले आया हूँ और कोशिश में लगा हूँ कि hp ( होर्सपावर) की जगह बलराम बैल की पावर का सदुपयोग कर सकूँ।
आप कब असभ्य व अविकसित होना शुरु हो रहें हैं??? या आपको अभी और पेड़ काट के और विकास कर के बीमार होना है???
आप के जवाब के इन्तजार में गोबर से वैदिक प्लास्टर इस लिए बणाता ताकी तुम्हारा घर दफ्तर ठंडा रहे।
अणपढ़ जाटः- डॉ. शिव दर्शन मलिक
वैदिक भवन रोहतक (हरियाणा)
9812054982

शनिवार, मार्च 30, 2019

दासता ए काफिर । सोच समझिये सोचिये । इस ब्लॉग की पोस्ट की बहुत रिपोर्टिंग हुई है। समर्थन कीजिये

 Soni Soni

ये तस्वीर है उन यजीदी महिलाओं की जिनके पति, पिता और भाइयों को मारकर जेहादियों ने सेक्स-स्लेव बनाकर
बच्चे पैदा करने के लिए अपने कैदखाने में रखा था।

जब अमेरिकी सेनाओं ने मोसुल नगर में ऐसे ही एक कैदखाने को अपने कब्जे में लेकर इन्हें आजाद कराया तो कोई भी महिला बिना बच्चों के न थी ,जेहादी हर दिन इन्हें अपनी हवश का शिकार बनाते थे और नए जेहादी पैदा करने के लिए इन्हें पालते थे।
यजीदी परिवारों के पुरुषों को मारने और इन्हें बंदी बनाने के पीछे की सोच मात्र यह है कि यजीदी काफ़िर हैं
और काफिरों के साथ उनका यह व्यवहार उनके इस्लामिक मजहब के अनुसार है।

उत्तरी इराक के दोहूक प्रान्त की रहने वाली 23 साल की यज़ीदी महिला फरीदा की शादी को अभी दो माह हुए थे कि एक रात जेहादियों ने उनके घर को घेर लिया और काफ़िर बताकर उनके सामने ही पांच भाइयो , पिता को मारकर
फरीदा और उसकी बहन को उठा ले गए थे ।
बाद में जब अमेरिकी सेना ने फरीदा को मोसुल के एक सेक्स-स्लेव सेंटर से आजाद कराया तो फरीदा ने बताया कि

‘मेरी बहन 16 साल की है. उसकी निकाह सात मर्दों से करा दी गई है. वह अभी भी सीरिया में ही है’. यह कहते हुए फरीदा फूट-फूट कर रोने लगती है. और फिर बताती है कि ‘मैंने एक आदमी को बारी-बारी से चार महिलाओं के साथ बलात्कार करते हुए देखा. और मैंने देखा कि इस्लामिक स्टेट के लोगों ने एक मां से उसके बच्चे को अलग कर दिया. वो भी तब जब वो अपने बच्चे को दूध पिला रही थी. उस बच्चे का मुंह उसकी मां के स्तन से लगा हुआ था. फिर उस औरत के साथ बलात्कार करने लगे. वहां एक बंदे से मेरा निकाह होने वाली था. फिर उसके दोस्त मुझे देखने आये. उसका एक दोस्त भी मुझे पसंद करने लगा. उसने मुझसे शादी का इरादा बना लिया. और बाद में मैं खुद पांच मर्दों को बेच दी गई.’

जब एक सेकुलर पत्रकार ने
फरीदा से पूछा कि ‘कई लोगों का ऐसा कहना है कि इस्लामिक स्टेट के लोग ड्रग लेते हैं. और इसलिए इस तरह हिंसा और बलात्कार की घटनाओं को अंजाम देते हैं’. इस पर फरीदा ने बताया कि ‘वे लोग ये काम बिल्कुल स्वतंत्र रूप से और दिल से करते हैं. वो इस्लाम की ही सांस लेते हैं, खाते और सोते हैं. और इसी के लिए वो पागल हैं. ये एक सनक है. उनके बच्चे भी उनसे यही सीख रहे हैं. वो भी आगे जाकर उनके जैसे ही बनेंगे. मैंने वहां किसी को भी इस मानसिकता से अलग नहीं देखा’.

इस्लामिक जेहादियों के चंगुल से किसी तरह जान बचा कर भागी 25 वर्षीय यजीदी महिला नादिया मुराद को वर्ष 2018 में शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया था

नादिया मुराद ने बताया कि इराक के सिंजर के निकट यजीदी समुदाय के गढ़ के गाँव कोचों में शांतिपूर्वक जीवन जी रहीं थी
वर्ष 2014 के
एक दिन काले झंड़े लगे जिहादियों के ट्रक उनके गांव कोचो में धड़धड़ाते हुए घुस आए। इन आंतकवादियों ने पुरूषों की हत्या कर दी, बच्चों को लड़ाई सिखाने के लिए और हजारों महिलाओं को यौन दासी बनाने और बल पूर्वक काम कराने के लिए अपने कब्जे में ले लिया।
छह भाइयों , पिता और वृद्ध माँ का कत्ल कर दिया और सैकड़ो गांवों के हजारों यजीदी लड़कियों के साथ
जेहादी मुराद को मोसुल ले आये ।
मोसुल आईएस की इस्लामिक खिलाफत की ‘राजधानी’थी। दरिंदगी की हदें पार करते हुए आतंकवादियों ने उनसे लगातार सामूहिक दुष्कर्म किया, यातानांए दी।

वह बताती हैं कि जिहादी महिलाओं और बच्चियों को बेचने के लिए दास बाजार लगते हैं और यजीदी महिलाओं को धर्म बदल कर इस्लाम धर्म अपनाने का भी दबाव बनाते हैं। मुराद ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आपबीती सुनाई। हजारों यजीदी महिलाओं की तरह मुराद का एक जिहादी के साथ जबरदस्ती निकाह कराया गया।

इस्लामिक स्टेट एक समय एक बड़े भूभाग पर शासन करने लगा था ।
ईराक , लीबिया और सीरिया के अनेकों तेल कुओं पर उसका कब्जा था जिससे तेल बेचकर इस्लामिक स्टेट रोज करोड़ों का मुनाफ़ा कमाता था और बाकायदा अन्य इस्लामिक देशों की तरह सरिया कानून लागू कर इस्लामिक शासन स्थापित किया था , जिसके समर्थन में पूरी दुनिया से मुसलमान इस्लामिक स्टेट के किये लड़ने रक्का और मोसुल में पहुंचे थे।
वैचारिक, सैनिक सहयोग के साथ करोड़ों रुपये प्रतिदिक मुसलमानों का आर्थिक सहयोग पूरी दुनिया से मोसुल में पहुंचता था ।

सुन्नी मुसलमानों की पूर्ण सहानुभूति इस्लामिक स्टेट के साथ इसलिए थी क्योंकि सीरिया, लीबिया,ईराक और लेबनान में शिया मुसलमान और यजीदी समुदाय पर इस्लामिक स्टेट क्रूरतम कहर ढा रहे थे

मुराद बताती हैं कि मोसुल में उन्हें एकबार भागने का मौका मिला. वह बागीचे की चहारदिवारी फांदने में सफल रहीं. लेकिन मोसुल की गलियों में भटकते हुए उन्हें जब समझ में नहीं आया कि क्या करें तो उन्होंने एक अनजान घर के दरवाजे की घंटी बजा दी और मदद की गुहार लगाई , घर एक मुसलमान का था उसने मुराद को तत्काल इस्लामिक स्टेट की सेना के हवाले कर दिया । भगाने की कोशिश करने वाली हर लड़की को सजा के रूप में सामूहिक बलात्कार की पीड़ा मिलती है
मुझे छह लड़ाकों की अपनी सेंट्री को सौंप दिया. उन सभी ने मेरे साथ तब तक बलात्कार किया, जब तक मैं होशो-हवास न खो बैठी."

मुराद बताती हैं कि इराक और सीरिया में उन्होंने देखा कि सुन्नी मुस्लिम आम जीवन जीते रहे, जबकि यजीदियों को IS के सारे जुल्म सितम सहने पड़े. मुराद बताती हैं कि हमारे लोगों की हत्याएं होती रहीं, रेप किए जाते रहे और सुन्नी मुस्लिम जुबान बंद किए सब देखते रहे. उन्होंने कुछ नहीं किया.

मुराद ने अपनी पुस्तक 'द लास्ट गर्ल : माई स्टोरी ऑफ कैप्टिविटी एंड माई फाइट अगेंस्ट द इस्लामिक स्टेट' में अपने साथ हुई बर्बरता का दिल दहला देने वाला वर्णन किया है.

ऐसा ही जेहादियों ने पिछले 1400 वर्षों में काफिरों के साथ किया है चाहे वह भारत की नारियों को अरब और अफगान की मंडियों में 2-2 दीनार में बेचना हो या कश्मीर में हिंदु पुरुषों को मारकर उनकी लड़कियों का बलात्कार करना हो
उनके लिए इसमें कुछ भी नया नहीं है।
कल जब भारत में इनकी संख्या बढ़ेगी, ये थोड़े और तागतवर होंगें तब यही हिंदुओं की बहन बेटियों के साथ होगा इसमें शंका न पालना 🤔🤔🤔

जाग सको तो जागो और जगाओ

इस्लाम शान्ति, प्रेम और भाईचारे का मजहब है इसलिए एक इस्लामिक परंपरा पैगम्बर मोहम्मद के समय से निभाई जाती है कि वृद्ध काफ़िर महिलाओं को मंडी में नहीं ले जाया जाता बल्कि काफ़िर वृद्ध महिलाओं का बलात्कार कर और काफ़िर पुरुषों के साथ ही ह्त्या कर दी जाती है .....!

दाँस्ता-ए-काफ़िर , भाग-1
क्रमश: ........

✍️ Vivekanand Vinayजी

।। जय श्रीराम ।।