गुरुवार, नवंबर 17, 2011

आज हर एक मीडिया मे मोदी को दंगे के लिए दोषी माना जाता है लेकिन मीडिया कांग्रेस को क्यों छोड़ देती है..

आज हर एक मीडिया मे मोदी को दंगे के लिए दोषी माना जाता है लेकिन मीडिया कांग्रेस को क्यों छोड़ देती है..
क्या कोई भी भारतीय दिल्ली के कांग्रेस के द्वारा प्रायोजित सीख विरोधी दंगे जिसमे ५००० निर्दोष सिख्खो को मार डाला गया था . और भागलपुर मे कांग्रेस के राज मे १२०० मुसलमानों को मार डाला गया था . आज इन घटनाओ की चर्चा मीडिया मे क्यों नहीं होती ?

१९६९ के गुजरात दंगों की भयावहता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की वो महात्मा
गाँधी का जन्म शतब्दी वर्ष था और सीमान्त गाँधी खान अब्दुल घफ्फार खान राष्ट्रीय आयोजन के मुख्या अतिथि थे. वो पोरबंदर में गांधीजी के जन्मस्थान पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने आये थे लेकिन दंगों में फंस गए थे. तो दिल्ली से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को उन्हें सुरक्षित दिल्ली लेन के लिए विशेष सुरक्षा दल भेजना पड़ा था.१९६९ ही क्यों, १९८७ में उत्तर प्रदेश
के मेरठ में हुए दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के आदेश पर मुसलामानों को सबक सिखाने के लिए सेंकडों बेगुनाह मुस्लिम युवकों को मरवाकर गंगनहर में फिंकवा दिया था जिसमे से कुछ जिन्दा बच गए और ये कृत्य दुनिया के सामने आ गया.

दंगों की जिम्मेदारी न तो तत्कालीन प्रधानमंत्री, जो वीर बहादुर सिंह के मेंटर थे, और न ही मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने ही स्वीकार की. लेकिन देश के सेकुलर मीडिया ने आज तक
कांग्रेस से इस विषय में कोई सवाल नहीं किया. न ही कोई तीस्ता सेताल्वाद सामने आई और न ही कोई संजीव भट्ट.गुजरात के १९६९ के दंगों के कुछ महीनों बाद महाराष्ट्र में भी जलगाँव व भिवंडी में दंगे हुए. वसंतदादा पाटिल मुख्यमंत्री थे. किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली. इसके बाद फरवरी १९७० में पटनाके पास गंगा पर बन्ने वाले पुल का शिलान्यास करने पधारी इंदिरा गांधीजी से जब पत्रकारों ने दंगों के विषय में प्रश्न किया तो उन्होंने जवाब दिया,”औरों के विषय में तो मैं नहीं कह सकती लेकिन हिन्दुओं के विषय में अधिकार पूर्वक कह सकती हूँ की हिन्दू कभी दंगे की शुरुआत नहीं करता है” यह टिपण्णी उस समय के दिल्ली से छपनेवाले हिंदुस्तान अख़बार में छपी थी. संसद में प्रस्तुत की गयी एक रिपोर्ट के अनुसार भी नब्बे प्रतिशत दंगों की
शुरुआत मुस्लिमों द्वारा की गयी थी. मई १९७० में दंगों पर चर्चा के दौरान लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कहा था की दुनिया में हिन्दू सबसे अधिक सहिष्णु माना जाता है. उसने सात सौ साल तक बहुत मार खायी है लेकिन आज का हिन्दू ईंट का जवाब पत्थर से देने लगा है. हिन्दू के स्वाभाव में यह परिवर्तन क्यों आया है इस पर विचार होना चाहिए. लेकिन कुछ लोगों ने हल्ला करके चर्चा को सार्थक रूप से आगे नहीं बढ़ने दिया.आज की आवश्यकता है की
हिन्दू, और उनसे भी अधिक मुस्लमान ये स्वीकार करें की इस देश के सभी मुस्लमान अतीत में ऐतिहासिक कारणों से मतान्तरण के द्वारा मुस्लमान बने हैं.एक जांच के अनुसार इस देश के सभी हिन्दुओं व मुसलमानों का डी एन ऐ एक ही है अर्थात दोनों के बाप दादा एक ही थे. तो क्यों न इस सच्चाई को स्वीकार करके मुस्लमान या तो वापस हिन्दू हो जाएँ या अपनी भिन्न उपासना पद्धति के बावजूद अपने को मोहम्माद्पंथी हिन्दू स्वीकार करले. आखिर अब पाकिस्तान केवल
कुछ समय का मेहमान रह गया है. और २०१२ तक वहां तालिबान का कब्ज़ा होने पर मुसलमानों को वहां के और भी बदतर हालत देखने के लिए तैयार रहना चाहिए. ऐसे में भारत के मुसलमानों का भला यहाँ के हिन्दुओं के साथ भाइयों जैसे सम्बन्ध रखने से ही हो सकता है.

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