भारत विभाजन की नयी विभीषिका
जो अल्पमत जबरदस्ती देश का विभाजन करा सकता है, उसे आप अल्पसंख्यक क्यूँ समझते हैं ? वह एक मजबूत सुसंगठित अल्पमत है, फिर उसे संरक्षण एवं विशेष सुविधाएं क्यूँ ? -- सरदार वल्लभ भाई पटेल-- (दिनाक२५-२६ मई १९४९ को संविधान सभा में)
साम्प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा निवारण विधेयक द्वारा केंद्र सरकार पूरे जोर-शोर से एक ऐसा क़ानून बनाने की तैय्यारी कर रही है, जो भारत में बड़े रक्तपात और विभाजन की बुनियाद रख सकता है। श्रीमती सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार पार्षद द्वारा तैयार इस कानून के हिन्दू विरोधी प्रारूप को शीघ्र अतिशीघ्र कानून का रूप देने के लिए केंद्र सरकार तत्पर है। यदि यह प्रारूप कानून का रूप लेता है तो इस देश में अल्पसंख्यक के बहाने मुसलमान और ईसाइयों के हाथों में सारे अधिकार और संसाधन सौंप दिए जायेंगे अर्थात अपने ही राष्ट्र में हिन्दू , दोयम दर्जे का एक भयभीत और गुलाम नागरिक होगा। क़ानून कितना भयावह होगा उसे स्वयं देखिये-----
यदि यह विधेयक नहीं रोका गया तो ----
- जिस मंडली ने इसका प्रारूप तैयार किया है उसमें वे सभी शामिल हैं जो राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के विरोधी हैं । जैसे राम जन्मभूमि आन्दोलन के घोर विरोधी हर्ष मंदर , गुजरात में मुसलामानों को सदैव उकसाने वाली अनु आगा, गुजरात दंगों में झूठे गवाह जुटाने का दुष्कृत्य करने वाली तीस्ता सीतलवाद, मुस्लिम इण्डिया चलाने वाले सैय्यद शहाबुद्दीन, भारत में धर्मांतरण कराने वाले जून दयाल, हिन्दू देवी-देवताओं का खुला अपमान करने वाले शबनम हाशमी तथा नियाज़ फारुखी आदि।
- यह सभी हिन्दू विरोधी तत्वों की वह जमात है जिसे किसी विधेयक को तैयार करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। एक ओर सरकार सिविल सोसायटी के औचित्य पर प्रश्न खड़ा करती है वहीँ दूसरी ओर ऐसे तत्वों को भारत विध्वंस की खुली छूट दे रखी है।
- यह विधेयक उस समय सार्वजनिक किया है जब अमेरिका की बदनाम इसाई संस्था अंतर्राष्ट्रीय धर्म स्वातंत्र्य आयोग ने भारत को अपनी निगरानी सूची में रखा है। इस आयोग ने गुजरात और उडीसा के दंगों का उल्लेख किया है लेकिन काश्मीर, त्रिपुरा और मणिपुर के जघन्य नरसंहारों पर मौन साध रखा है।
- यह विधेयक सांप्रदायिक हिंसा के अपराधियों को अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के आधार पर बांटने का अपराध करता है। अभी तक यही लोग कहते थे की अपराधी का कोई धर्म नहीं होता है , लेकिन इस विधेयक में क्यों सांप्रदायिक हिंसा के अल्पसंख्यक अपराधियों को दंड से मुक्त रखा रखा गया है।
- विधेयक का अनुच्छेद-८ , अल्पसंख्यकों की आलोचना को घृणा का प्रचार या अपराध मानता है परन्तु हिन्दुओं के विरुद्ध इनके नेता और संगठन खुले आम दुष्प्रचार करते हैं लेकिन उन्हें अपराधी नहीं माना जाता।
- स्वतंत्र भारत के इतिहास में कथित अल्पसंख्यक समाज के द्वारा हिन्दू समाज पर १,५०,००० से अधिक हमले हुए हैं तथा हिन्दुओं के मंदिरों पर लगभग ५०० बार हमले हुए। २०१० में बंगाल के देगंगा में हिन्दुओं पर भायक अत्याचार हुआ।
- अनुच्छेद-७ के अनुसार एक मुस्लिम महिला के साथ दुर्व्यवहार होता है तो वह अपराध है जबकि हिन्दू महिला के साथ किया बलात्कार भी अपराध नहीं है.
- यह हिन्दू समाज को विभक्त करने का षड्यंत्र है। संघर्षों को रोकने के लिए जिस सद्भाव की आवश्यकता होती है , इस कानून के बाद तो उसकी धज्जियाँ ही उड़ने वाली हैं।
- वो हिन्दू समाज जिसके कारण आज भारतवर्ष में धर्म-निरपेक्षता ज़िंदा है, उसे ही आज कटघरे में खड़ा किया जा रहा है इस विधेयक के माध्यम से।
- ये लोग सेक्युलेरिज्म की मनमानी परिभाषा देकर देशभक्तों को प्रताड़ित करना चाहते हैं । वन्देमातरम का उद्घोष और गो हत्या के खिलाफ बोलना भी कानूनी जुर्म हो जाएगा।
- सोनिया जी के अनुसार सेक्युलेरिज्म की परिभाषा है - अफज़ल गुरु को बचाना, आजमगढ़ जाकर आतंकवादियों के हौसले बढ़ाना , मुंबई हमले में बलिदान हुए लोगों के बलिदान पर प्रश्न चिन्ह लगाना, मदरसों में आतंकवाद के प्रशिक्षण को बढ़ावा देना, बंगलादेशी घुसपैठियों को बढ़ावा देना आदि।
- विधेयक के उपबंध ७४ के अनुसार यदि किसी व्यक्ति के ऊपर घृणा सम्बन्धी प्रचार या साम्प्रदायिक हिंसा का आरोप है तो उसे तब तक दोषी माना जाएगा जब तक वह निर्दोष सिद्ध न हो जाये । यह उपबंध संविधान की मूल भावना के विपरीत है जिसके अनुसार जब तक अपराध सिद्ध न हो जाए तब तक आरोपी को निर्दोष माना जाए। अतः अब किसी को जेल भेजने के लिए किसी हिन्दू पर आरोप लगाना मात्र ही पर्याप्त होगा।
- कोई कार्यकर्ता यदि आरोपी है तो संगठन का मुखिया भी अपराधी माना जाएगा। अतः आसानी से हिन्दू संगठनों और उनके नेताओं को जकड़ा जा सकेगा।
- यदि दुर्भाग्य से यह विधेयक पास हो जाता है तो राज्य सरकार के अधिकारों को केंद्र सरकार आसानी के साथ हड़प सकती है।
- प्रस्तावित अधिनियम में निगरानी व निर्णय लेने के लिए सात सदस्य होंगे जिसमें से चार अल्पसंख्यक होंगे। किसी न्यायिक प्राधिकरण का सांप्रदायिक आधार पर विभाजन देश को किस और ले जाएगा ?
- इस प्राधिकरण को असीमित अधिकार दिए गए हैं । यह न केवल सशस्त्र बालों को सीधे निर्देश दे सकता है अपितु इनके सामने दी गयी गवाही न्यायालय के सामने दी गयी गवाही न्यायलय के सामने दी गयी गवाही मानी जाएगी। इसका अर्थ है तीस्ता जैसी झूठा गवाह तैयार करने वाली अब अधिक खुलकर अपने षड्यंत्रों को अंजाम दे सकेंगीं।
- अनुच्छेद १३ सरकारी कर्मचारियों पर इस प्रकार शिकंजा कसता है की वे अल्पसंख्यकों का साथ देने के लिए मजबूर होंगे , चाहे वे ही अपराधी क्यों न हों। कोई अधिकारी इन लोगों से सहज काम भी नहीं करवा सकेगा । किसी अल्पसंख्यक की झूठी शिकायत पर भी हिन्दुओं को २-५ वर्ष की सश्रम कारावास का प्रावधान है। यानी पुलिस भी उनकी कठपुतली होगी।
- यदि यह विधेयक लागू हो जाता है तो किसी भी अल्पसंख्यक व्यक्ति के लिए किसी भी बहुसंख्यक को फंसाना आसान हो जाएगा । वह केवल पुलिस में शिकायत दर्ज कराएगा और पुलिस अधिकारी को उस हिन्दू को बिना किसी आधार के गिरफ्तार करना पड़ेगा। वह हिन्दू किसी सबूत की मांग नहीं कर सकता न ही शिकायतकर्ता का नाम पूछ सकता है। इसका अर्थ है अब कोई भी मौलवी या पादरी द्वारा किये हुए किसी भी दुष्प्रचार की शिकायत नहीं कर सकता ।
- इस विधेयक के अनुसार अब पुलिस अधिकारी के पास असीमित अधिकार होंगे। वह जब चाहे तब आरोपी हिन्दू के घर की तलाशी ले सकता है । यह अंग्रेजों द्वारा लाये गए कुख्यात 'रोलेट-एक्ट' से भी ज्यादा खतरनाक सिद्ध हो सकता है । इस विधेयक की धारा ८१ में कहा गया है की ऐसे मामलों में नियुक्त विशेष न्यायाधीश किसी अभियुक्त के ट्रायल के लिए उसके समक्ष प्रस्तुत किये बिना भी उसका संज्ञान ले सकेगा और उसकी संपत्ति को भी जब्त कर सकेगा।
- इसके अनुसार किसी अल्पसंख्यक के व्यापार में बाधा डालना भी इसमें अपराध है। यदि कोई मुसलमान किसी हिन्दू की संपत्ति को खरीदना चाहता है और वह हिन्दू माना करता है तो वह अपराधी कहलायेगा हिन्दू मकानमालिक , अल्पसंख्यक किरायेदार से अपना मकान खाली नहीं करा सकता । इस विधेयक में गृहस्वामी ही कटघरे में होगा।
- अब हिन्दू को इस अधिनियम में इस तरह कास दिया जाएगा की उसको अपने बचाव का बस एक ही रास्ता दिखाई देगा की वह धर्मांतरण को मजबूर हो जाएगा।
- इस विधेयक के भेदभाव का सबसे बड़ा नमूना यह है की जम्मू-काश्मीर और पूर्वांचल के जिन राज्यों में आज हिन्दू अल्पसंख्यक हो गया है , वहां यह कानून लागू नहीं होगा। अतः स्पष्ट है की यह विधेयक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए नहीं अपितु हिन्दुओं को प्रताड़ित और गुलाम बनाने के लिए लाया जा रहा है।
यदि यह विधेयक पास हो जाता है तो परिस्थिति और भी भयावह होगी । आपातकाल में किये गए मनमानीपूर्ण निर्णय भी फीके पड़ जायेंगे। हिन्दू का हिन्दू के रूप में रहना और भी मुश्किल हो जाएगा। भारतवासियों को दो हिस्से में बांटने की कानूनी साजिश और घृणा की स्थायी दीवार बनाकर , नए विभाजनों की नीव रखी जा रही है। श्री मनमोहन सिंह ने पहले कहा थी कि देश के संसाधनों पर मुसलामानों का पहला अधिकार है। यह विधेयक इस कथन का नया संस्करण है। इस विधेयक के विरोध में एक सशक्त आन्दोलन खड़ा करना होगा तभी इस तानाशाहीपूर्ण कदम पर रोक लगायी जा सकती है।
(http://zealzen.blogspot.com/2011/11/blog-post_13.html)
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