हम कमज़ोर हैं क्या?
कई बार सच हमारे सामने होता है पर हम उसे देख नहीं पाते. भारत पर इस्लामी आक्रमणों के बारे में कुछ ऐसा ही हुआ है. अपनी स्थापना के चन्द दशकों के भीतर इस्लाम ने सारे अरब, अफ्रीका, आधे यूरोप को जीत लिया. इतिहास में ऐसा जोश और किसी में नज़र नहीं आता. यह कमाल मुहम्मद साहेब की दूर-दृष्टि का है. ‘भूतो न भविष्यति’ की कहावत जैसी स्थिति है. इससे पहले न कोई ऐसा सम्प्रदाय बना और न बनने की अब उम्मीद है. ऐसा कभी न हारनेवाला जनूनी मज़हब भारत पर सन ७०० के बाद से एक हज़ार साल तक हमले करता रहा पर उसे सफलता न मिली. ७०० साल के लम्बे संघर्ष के बाद कुछ सफल हुआ. क्या कायर भारत यह कमाल कर सकता था?
दुनिया में भारत के अलावा और कौन है जो इस्लाम के आगे टिका ही नहीं, अपनी पहचान को भी बनाए रख सका. और कोई कर सका यह कमाल? फिर हम कायर कैसे? भारत में अपने आगमन से अपने शासन की समाप्ति तक एक भी मुस्लिम शासक ऐसा नहीं था जिसका पूरे भारत देश पर राज्य स्थापित हो सका हो.
भारत में एक भी ऐसा कोई विदेशी शासक नहीं हुआ जो एक रात भी चैन की नीद सोया हो. एक भी दिन उसके शासन का ऐसा नहीं जब उसके राज्य में आज़ादी के लिए युद्ध या संघर्ष न हुआ हो. एक भी दिन ऐसा नहीं जिस दिन भारत के देशभक्तों का रक्त आज़ादी पाने के लिए न बहा हो.
दुनिया के इतिहास में एक भी उदाहरण नहीं है जब किसी समाज ने मुस्लिम आक्रमणकारियों के साथ इतना लंबा संघर्ष किया हो और अपनी पहचान, अपनी संस्कृती को बना-बचा कर रखा हो. इतनी लम्बी आजादी की लड़ाई लड़ने का और कोई एक भी उदाहरण संसार में नहीं मिलता.
स्मरणीय बात यह है कि यदि हम सदा हारते रहे, हम कायर थे तो फिर अरबी आक्रामकों को भारत में घुसने में ५-६ सौ साल कैसे लग गए.?
हज़ार साल तक विदेशी आक्रमणकारियों के साथ कोई कायर लड़ सकता है क्या? यह वह सच्चाई है जो सामने होते हुए भी हमको नज़र नहीं आती.
भारतीयों के पतन का काम मैकाले द्वारा १८४० में पहला कॉन्वेंट स्कुल खोलने के साथ शुरू हुआ. पर इसके कोई विशेष परिणाम अनेक दशकों तक नज़र नहीं आये. धीरे- धीरे ये कान्वेंट स्कूल बढ़ते गए और तथाकथित आज़ादी के बाद बहुत तेज़ी से बढे. तब हमारा चारित्रिक पतन अधिक तेज़ी से हुआ. जापान ने इस कान्वेंट स्कूलों के खतरे को समझ लिया था, अतः उन्होंने आज़ादी मिलते ही जो पहले काम किये उनमें एक था इन कान्वेंट स्कूलों को बंद करना.
मेरा, आपका जन्म भारत के इस पतन के बाद ही हुआ है न? अतः भारत की जो तस्वीर हम-आप देख रहे हैं वह असली भारत नहीं है. क्या इसे देखकर विदेशी विद्वान भारत के दीवाने बने और बन रहे हैं? उन्हों ने पश्चिम की असलियत और असली भारत की असलियत को ठीक से देखा है, जो अनेक लोग नहीं देख पा रहे.
यह वर्तमान परिदृश्य असली भारत नहीं, यह वह भारत है जो मैकाले जैसों ने बनाने का षड्यंत्र किया था. इस झूठ को चीर कर असली भारत को देखना थोड़ा सा मुश्किल ज़रूर है, पर असम्भव नहीं.
आप किसी एक क्या अनेक कहानीकारों और साहित्यकारों का उदाहरण दे सकते हैं जिन्हों ने भारत के बारे में बहुत कुछ बड़ा अपमानजनक लिखा है. ऐसे ही लोग पैदा करने के लिए मैकाले जैसों ने मेहनत की थी जो अपने आप को, अपनी जननी, अपनी मातृभूमि, अपनी परम्पराओं को गाली देने में प्रसन्नता अनुभव करते हैं.
इस प्रकार ऐतिहासिक तथ्यों के विश्लेषण से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इस्लामी संस्कृति के साथ एक हज़ार साल तक संघर्ष करने वाली विश्व की एकमात्र अविजित शक्ति हिन्दू शक्ति है जो आज भी अपनी पहचान को बनाए हुए है. संसार के इतिहास में कोई दूसरा एक भी ऐसा उदहारण दुर्लभ है. भारत और भारतीय संस्कृति व समाज की एकांगी निंदा करने वाले लोग सच्चाई को नहीं जानते और मैकाले के षड्यंत्रों के शिकार बन कर भारत व भारतीय समाज की केवल आलोचना करते रहते हैं और इसकी अच्छाईयों व विशेषताओं से अनजान हैं.
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