भगवान राम की अयोध्या
जिस श्रीरामजन्मभूमि पर स्थित मंदिर का जीर्णोद्धार कराते हुए २१०० साल पहले सम्राट शकारि विक्रमादित्य द्वारा काले रंग के कसौटी पत्थर वाले ८४ स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया गया था उस राम जन्मभूमि पर पुनः २० अक्तूबर १९९० के दिन अयोध्या में भव्य राम मंदिर के संकल्प को लेकर कार सेवा शुरू की गयी थी | विभिन्न हिन्दूवादी संघटनो ने कार सेवा में अपने तन मन धन से सहयोग बिना अपने प्राणों के मोह किये किया | सैकड़ो कारसेवक इस कार्य में सहयोग करते हुए भगवान् राम की पावन नगरी में अपने प्राण अर्पित कर मोक्ष के भागी बने और बाबरी विध्वंश में सहयोगी बने | किन्तु आज कई वर्ष बीत जाने के बाद भी उन शूरवीरो के त्याग का फल नहीं मिल पाया है | राम मंदिर और बाबरी मस्जिद प्रकरण आज भी अदालत में ये सिद्ध होने के बाद की वंहा राम मंदिर ही था लंबित है ||
ये कोई पहला संघर्ष का मामला नहीं है इससे पहले भी संघर्ष होते आये है राम मंदिर के लिए विडंबना तो ये है की १५२८ में खंडित किया गया राम मंदिर २०११ तक अपना अस्तित्व नहीं ले पाया है कभी हिंदुओं की उदासीनता तो कभी भाजपा की तरफ से नाकामी देखने को मिलती रही है लेकिन अगर इतिहास पर गौर करे तो राम मंदिर को बनाना हिन्दुओं को अपने अस्तित्व बचाने जैसा ही है | जो राम मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों आदि की नक्काशी का भाजपा के शाशन काल में चल रहा था उसे भी वर्तमान सरकार ने रुकवा दिया |भाजपा अगर अपने ६ वर्ष के शासन काल में मंदिर नहीं बनवा पायी तो शायद हिन्दुओं का भाजपा के ऊपर कम होता दबाब भी बड़ा कारण था जिस वजह से भाजपा दुबारा सत्ता में नहीं आ पायी और राम मंदिर का मुद्दा भी अंगार बनने के बाद अभी तक सुलग रहा है ||
ऐतिहासिक तथ्यों पर गौर करे तो मुग़ल बाबर १५२७ में फरगना से आया था उसने चित्तौरगढ़ के हिंदू राजा राणा संग्राम सिंह को फतेहपुर सिकरी में परास्त कर दिया था उसको हारने के लिए बाबर ने युद्ध में तोपों और गोलों का इस्तेमाल किया जबकि राणा संग्राम सिंह पर टोपे आदि नहीं थी | जीत के बाद बाबर ने इस क्षेत्र का प्रभार अपने विश्वशनीय सेनापति मीर बांकी को दे दिया था मीर बांकी ने उस क्षेत्र में मुस्लिम शासन लागू कर दिया और लोगो पर जजिया आदि कर्ज लगाये यंहा तक की मरने और बच्चा पैदा होने के संस्कारों तक पर कर वसूला जाता था विरोध करने पर जनता को काबू करने के लिए आतंक और अत्याचार की इंतहा कर दी थी इसके बाद मीर बांकी १५२८ में अयोध्या आया, मुस्लिम आक्रमणकारियों से मंदिर को बचाने के लिए रामभक्तों ने १५ दिन तक लगातार संघर्ष किया जिसके कारण आक्रांता मंदिर पर चढ़ाई न कर सके और अंत में मंदिर को तोपों से उड़ा दिया इस संघर्ष में एक लाख छियत्तर हज़ार (१,७६,००० ) रामभक्तों ने मंदिर की रक्षा हेतु अपने जीवन की आहुति दे दी बाजूद इसके ध्वस्त मंदिर के स्थान पर मंदिर के ही टूटे स्तंभों और अन्य सामग्री से मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मस्जिद जैसा दिखने वाला एक ढांचा जबरन वहां खड़ा किया लेकिन वो सूअर वंहा अजान के लिए मीनारें और वजू के लिए जगह कभी नहीं ले पाए |
इसके बाद १५२८ से १९४९ तक के कालखंड में श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण हेतु ७६ संघर्ष/युद्ध हुए। इस पवित्र स्थल हेतु श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज, महारानी राज कुंवर तथा अन्य कई विभूतियों ने भी संघर्ष किया था |
अंग्रेजो के आगमन के बाद सन १८८५ में निर्मोही आखाड़े द्वारा एक मुकदमा डाला गया जो ६० वर्षो तक (१९४५ के आसपास ) चला उस पर फैसला हिन्दुओं के पक्ष में आया परन्तु गांधी और नेहरू की कांग्रेस ने अंग्रेजो से सांठ गाँठ की बदोलत मुक़दमे के फैसले को रोके रखा गया और जब गोरे अंग्रेजो से सत्ता काले अंग्रेजो के हाथ में दी तब अंग्रेज न्यायधिशो को मसले को निपटने के लिए हिन्दुमाहसभा ने दबाब बनाया जिस पर कहा गया की अब इसका निस्तारण आने वाली सरकार करेगी आज भी उस फैसले की प्रति इंग्लैण्ड में और भारत के संघ्राल्याय में सुरक्षित है | यह अपने आपमें पहला ऐसा संवेदनशील मुकदमा रहा जिसको निपटाने में इतना लम्बा समय लगा। इसमें कुल ८२ गवाह पेश हुए। हिन्दू पक्ष की ओर से ५४ गवाह और मुस्लिम पक्ष की ओर से २८ गवाह पेश किये गये। हिन्दुओं की गवाही ७१२८ पृष्ठों में लिपिबद्ध की गयी जबकि मुसलमानों की गवाही ३३४३ पृष्ठों में कलमबद्ध हुई। पुरातात्विक महत्व के मुद्दों पर हिन्दुओं की ओर से चार गवाह और मुसलमानों की ओर से आठ गवाह पेश हुए। इस मामले में हिन्दू पक्ष की गवाही १२०९ तथा मुस्लिम पक्ष की गवाही २३११ पृष्ठ में दर्ज की गयी। हिन्दुओं की ओर से अन्य सबूतों के अलावा जिन साक्ष्यों का संदर्भ दिया गया उनमें अथर्ववेद, स्कन्द पुराण, नरसिंह पुराण, बाल्मीकि रामायण, रामचरित मानस, केनोपनिषद और गजेटियर आदि हैं। मुस्लिम पक्ष की ओर से राजस्व रिकार्डों के अलावा बाबरनामा, हुमायूंनामा, तुजुक-ए-जहांगीरी, तारीख-ए-बदायूंनी, तारीख-ए-फरिश्ता, आइना-ए-अकबरी आदि का हवाला दिया गया। पूरा फैसला ८१८९ पृष्ठों में समाहित है| २२ दिसंबर, १९४९ की मध्यरात्रि में जन्मभूमि पर रामलला की मूर्ति प्रकट हुयी वह स्थान ढांचे के बीच वाले गुम्बद के नीचे था। उस समय भारत के प्रधानमंत्री नेहरू और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे पंडित गोविंद वल्लभ पंत और केरल के श्री के.के.नैय्यर फैजाबाद के जिलाधिकारी थे राम भक्तों में राम जी के दर्शन को लेकर जबरदस्त उत्साह और आपर श्रधा थी किन्तु इसको दरकिनार करते हुए मुस्लिम प्रेम की वजह से कांग्रेस सरकार ने कानून और व्यवस्था के नाम पर हिन्दुओं की भावना से खिलवाड़ किया | तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट ने ढांचे को आपराधिक दंड संहिता की धारा १४५ के तहत रखते हुए प्रिय दत्त राम को रिसीवर नियुक्त किया। सिटी मजिस्ट्रेट ने मंदिर के द्वार पर ताले लगा दिए, लेकिन एक पुजारी को दिन में दो बार ढांचे के अंदर जाकर दैनिक पूजा और अन्य अनुष्ठान संपन्न करने की अनुमति दी। श्रद्धालुओं को तालाबंद द्वार तक जाकर दर्शन की अनुमति थी। ताला लगे दरवाजों के सामने स्थानीय श्रद्धालुओं और संतों ने "श्रीराम जय राम जय जय राम" का अखंड संकीर्तन आरंभ कर दिया।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता श्री दाऊ दयाल खन्ना ने मार्च, १९८३ में मुजफ्फरनगर में संपन्न एक हिन्दू सम्मेलन में अयोध्या, मथुरा और काशी के स्थलों को फिर से अपने अधिकार में लेने हेतु हिन्दू समाज का प्रखर आह्वान किया |अप्रैल, १९८४ में विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा विज्ञान भवन (नई दिल्ली) में आयोजित पहली धर्म संसद ने जन्मभूमि के द्वार से ताला खुलवाने हेतु जनजागरण यात्राएं करने का प्रस्ताव पारित किया गया था विश्व हिन्दू परिषद् ने अक्तूबर, १९८४ में जनजागरण हेतु सीतामढ़ी से दिल्ली तक राम-जानकी रथ यात्रा शुरू की। लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के चलते एक साल के लिए यात्राएं रोकनी पड़ी थीं। अक्तूबर, १९८५ में रथ यात्राएं पुन: प्रारंभ हुईं थी | इन रथ यात्राओं से हिन्दू समाज में ऐसा प्रबल उत्साह आया कि फैजाबाद के जिला दंडाधिकारी ने १ फरवरी, १९८६ को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के द्वार पर लगा ताला खोलने का आदेश दिया | तब भाजपा और विश्वहिंदू परिषद् के तत्वाधान में गुजरात के सुप्रसिद्ध मंदिर शिल्पकार श्री चंद्रकांत भाई सोमपुरा द्वारा प्रस्तावित मंदिर का रेखाचित्र तैयार किया गया जो आज भी भव्य राम मंदिर के लिए प्रस्तावित है |
जनवरी, १९८९ में प्रयागराज में कुंभ मेले के पवित्र अवसर पर त्रिवेणी के किनारे विश्व हिन्दू परिषद् ने धर्म संसद का आयोजन किया इसमें संघ से जुड़े बजरंग दल ,भाजपा हिन्दू जागरण मंच , समेत शिव सेना और भारत के सभी आखाड़ों के महंतों ने हिस्सा लिया पूज्य देवरहा बाबा की उपस्थिति में तय किया गया कि देश के हर मंदिर- हर गांव में रामशिला पूजन कार्यक्रम आयोजित किया जाए | पहली शिला का पूजन श्री बद्रीनाथ धाम में किया गया। देश और विदेश से ऐसी २,७५,००० रामशिलाएं अक्तूबर, १९८९ के अंत तक अयोध्या पहुंच गईं। इस कार्यक्रम में ६ करोड़ लोगों ने भाग लिया जो की एक रिकार्ड है ||
९ नवम्बर, १९८९ को बिहार के वंचित वर्ग के एक बंधु श्री कामेश्वर चौपाल द्वारा शिलान्यास किया गया | २४ जून, १९९० को संतों ने देवोत्थान एकादशी (३० अक्तूबर १९९०) से मंदिर निर्माण हेतु कारसेवा शुरू करने का आह्वान किया ,अयोध्या में अरणि मंथन से एक ज्योति प्रज्ज्वलित की गई। यह "राम ज्योति" देश भर में प्रत्येक हिन्दू घर में पहुंची और सबने मिलकर इस ज्योति से दीपावली मनाई गयी थी , ३० अक्तूबर १९९० को हजारों रामभक्तों ने मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खड़ी की गईं अनेक बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया | २ नवम्बर, १९९० को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें कोलकाता के राम कोठारी और शरद कोठारी (दोनों भाई) सहित अनेक रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं इस के बाद जनता में पनपे आक्रोश के चलते ४ अप्रैल १९९१ को कारसेवकों के हत्यारे मुलायम सिंह को अपना इस्तीफा देना पडा था ||
१९९२ में भाजपा और विश्वहिंदू परिषद् द्वारा भारत के गांव-गांव में श्री राम पादुका पूजन का आयोजन किया गया और ६ दिसंबर, १९९२ के दिन रामभक्तों से अयोध्या पहुंचने का आह्वान किया गया जिसके बाद उसी दिन बाबर की फैलाई गंदगी का दाग बाबरी मस्जिद को ढा दिया गया जिसे आज तक शुर्य दिवस के रूप में मनाया जाता है| इसके बाद कारसेवकों द्वारा तिरपाल की मदद से अस्थायी मंदिर का निर्माण किया गया यह मंदिर उसी स्थान पर बनाया गया जहां ध्वंस से पहले श्रीरामलला विराजमान थे श्रीरामलला की सुरक्षा के नाम पर लगभग ६७ एकड़ जमीन अधिग्रहीत की गई यह अध्यादेश संसद ने ७ जनवरी, १९९३ को एक कानून के जरिए पारित किया था जिसकी वजह से आज भी राम भक्तो को इसी ६७ एकड़ जमीन में पूजा और रामलला के दर्शन के सोभाग्य प्राप्त हेतु विश्वहिंदू परिषद् द्वारा श्रीरामलला की दैनिक सेवा-पूजा की अनुमति दिए जाने के संबंध में अधिवक्ता श्री हरिशंकर जैन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में याचिका दायर की। १ जनवरी, १९९३ को अनुमति दे दी गई। तब से दर्शन-पूजन का क्रम लगातार जारी है | मामला पुनः अदालत तक पंहुचा और इस बार आदालत ने पुरात्तत्व विभाग को मंदिर परिसर में खुदाई कर वास्तव स्थिथि पता करने के निर्देश दिए जिसके परिणाम स्वरुप पुरात्तत्व विभाग को ध्वस्त ढांचे की दीवारों से ५ फुट लंबी और २.२५ फुट चौड़ी पत्थर की एक शिला मिली। विशेषज्ञों ने बताया कि इस पर बारहवीं सदी में संस्कृत में लिखीं २० पंक्तियां उत्कीर्ण थीं। पहली पंक्ति की शुरुआत "ओम नम: शिवाय" से होती है। १५वीं, १७वीं और १९वीं पंक्तियां स्पष्ट तौर पर बताती हैं कि यह मंदिर "दशानन (रावण) के संहारक विष्णु हरि" को समर्पित है। मलबे से करीब ढाई सौ हिन्दू कलाकृतियां भी पाई गईं जो फिलहाल न्यायालय के नियंत्रण में आज भी सुरक्षित हैं ये खुदाई उन लोगो के मुह पर टाला लगाने के लिए काफी है जो प्रभु राम के अस्तित्व को नकारारते है अगस्त, २००२ में राष्ट्रपति के विशेष "रेफरेंस" का सीधा जवाब तलाशने के लिए उक्त पीठ ने उक्त स्थल पर "ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार सर्वे" का आदेश दिया जिसे कनाडा से आए विशेषज्ञों के साथ तोजो विकास इंटरनेशनल द्वारा किया गया। अपनी रपट में विशेषज्ञों ने ध्वस्त ढांचे के नीचे बड़े क्षेत्र तक फैले एक विशाल ढांचे के मौजूद होने का उल्लेख किया जो वैज्ञानिक तौर पर साबित करता था कि बाबरी ढांचा किसी खाली जगह पर नहीं बनाया गया था, जैसा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दिसंबर, १९६१ में फैजाबाद के दीवानी दंडाधिकारी के सामने दायर अपने मुकदमे में दावा किया है। विशेषज्ञों ने वैज्ञानिक उत्खनन के जरिए जीपीआरएस रपट की सत्यता हेतु अपना मंतव्य भी दिया | २००३ में उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को वैज्ञानिक तौर पर उस स्थल की खुदाई करने और जीपीआरएस रपट को सत्यापित करने का आदेश दिया। अदालत द्वारा नियुक्त दो पर्यवेक्षकों (फैजाबाद के दो अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी) की उपस्थिति में खुदाई की गई। संबंधित पक्षों, उनके वकीलों, उनके विशेषज्ञों या प्रतिनिधियों को खुदाई के दौरान वहां बराबर उपस्थित रहने की अनुमति दी गई। निष्पक्षता बनाए रखने के लिए आदेश दिया गया कि श्रमिकों में ४० प्रतिशत मुस्लिम होंगे ,भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा हर मिनट की वीडियोग्राफी और स्थिर चित्रण किया गया। यह खुदाई आंखें खोल देने वाली थी। कितनी ही दीवारें, फर्श और बराबर दूरी पर स्थित ५० जगहों से खंभों के आधारों की दो कतारें पायी गई थीं। एक शिव मंदिर भी दिखाई दिया। जीपीआरएस रपट और भारतीय सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट अब उच्च न्यायालय के रिकार्ड में दर्ज हैं ३० सितम्बर, २०१० को अयोध्या आंदोलन के इतिहास का ऐतिहासिक दिन माना जाएगा। इसी दिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने विवादित ढांचे के संबंध में निर्णय सुनाया। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति एस.यू. खान ने एकमत से माना कि जहां रामलला विराजमान हैं, वही श्रीराम की जन्मभूमि है फिर भी न्याधिशों ने एक अटपटा फैसला सुनाया जिसमे रामजन्मभूमि को तीन हिस्सों में बाटा गया जिसमे एक हिस्सा मुस्लिम समुदाय को एक हिस्सा वादी विश्व हिन्दू परिषद् को मंदिर निर्माण हेतु और एक हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया गया जिसका तीनो ही पक्षों ने विरोध किया और संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले का मज़ाक उड़ाते हुए कहा था की जब किसी ने बटवारे की बात ही नहीं कही तो अदालत ने रामजन्मभूमि को तीन हिस्सों में क्यों बाटा | आज भी सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के इंतज़ार की वजह से प्रभु राम की जन्म स्थली पर राम मंदिर का भव्य निर्माण नहीं हो पाया है किन्तु संत समाज ने संख्नाद कर दिया है प्रभु राम की पावन जन्मभूमि पर अब मंदिर निर्माण हो कर ही रहेगा भले ही इस बार गारे को हमारे खून से बनाया जाए |
रामलला हम आयेगे मंदिर वन्ही बनायेगे || जय जय सिया राम , जय जय माँ भारती ..
साहित्य , इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी , और स्वयं ज्ञान के आधार पर लिखा गया लेख .. जीत शर्मा " मानव "
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