१८५७ का पूरा सच .....
१८५७ का पूरा सच .....
देश में एक गीत बहुत ज्यादा गाया जाता है.... " दे दी हमे आजादी बिना खडग बिना ढाल साबरमती के संत तुने कर दिया कमाल... "
अब कोई ये बताये की जिस देश ने १८३० का संथाल, १८३९ का कूका आन्दोलन, १८३८ का भील आन्दोलन, सिख आन्दोलन, नागा साधू आन्दोलन में ४ करोड़ भारतीय शहीद हुए .... उसके बाद देश के इतिहास में महान प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हुए जिसमे १ करोड़ ७० लाख भारतीयों ने मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर किये...... देश में ७ लाख क्रान्तिकारियो जिनमे भगत सिंह, अशफाक उल्लाह खान, बटुकेश्वर दत्त, राजगुरु, सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद, राजेंदर लाहिरी, जतिन दस, रोशन लाल, भगवती चरण वोहरा, दुर्गा भाभी ने देश की अजादी के लिए प्राण न्योछावर कर दिए...... क्या देश इतनी साड़ी कुर्बानियां भूल गया........??????
१८५७ का महान स्वतंत्रता संग्राम जो अविस्मरनीय था, को कोंग्रेसि chaatukaro ने उस गाँधी को बड़ा दिखाने के लिए इतिहास से मिटा दिया ..... इस महान विद्रोह की शुरुआत १८५६ में हुई थी ..... १८५६ में बैरकपुर छावनी में अंग्रेजो ने नए कारतूस इस्तेमाल करने शुरू कर दिया.... इन kaartuso को banduk में भरने से पहले इनको मुह से छीला जाता था..... इन कारतूसो में गाय और सूअर की चर्बी मिली हुई थी.... जिसका छावनी के एक भारतीय सैनिक को pta चल गया था..... उस समय फौज में भरिय और ब्रिटिश सैनिको का अनुपात १२:१ था..... जब भारतीयों ने इन कारतूसो का विरोध किया तो ब्रिटिश अधिकारियों ने सैनिको को फौज से निकाल दिया.... मंगल पाण्डेय नाम के एक सैनिक ने अपने अंग्रेजी अधिकारी को गोली मार दी.... बाद में मंगल पाण्डेय को फांसी दे दी गई....
अप्रैल १८५७ में बैरकपुर छावनी में विद्रोह हो गया और विद्रोही भारतीय सैनिको ने बैरकपुर पर कब्ज़ा करके दिल्ली की और रुख्कारने का एलान किया ....... पूरा बंगाल विद्रोहियों से भर गया और विद्रोहियों ने बिहार की तरफ कूच किया...... १० मई को विद्रोह का दिन चुना गया ताकि पुरे देश में अंग्रेजो को भगाया जा सके.... उस समय झांसी में रानी लक्ष्मीबाई, मराठावाद में नानाजी राव, राजपुताना में राजपूत, दिल्ली में बहादुरशाह जफ़र, मध्य भारत में तात्या टोपे, बंगाल के नवाब और बिहार के जमींदारों ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया.... लेकिन सिंधिया परिवार, कुछ मराठी और कुछ राजपूत सियासतों ने सत्ता के लालच में ब्रिटिश हुकूमत का साथ दिया.... अंग्रेजो ने इस विद्रोह को कुचलने में पूरी ताकात लगा दी और कुछ जयचंदों और मीरजाफर जैसे गदारो की वजह से अंग्रेजो ने १८५८ में इस विद्रोह को काबू में कर लिया....... और इस विद्रोह में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को शहीद होना पड़ा..... अगर वो क्रान्ति तब सफल हो गई होती तो आज हमारे देश के हालत कुछ और होते..... भगत सिंह को कच्ची उम्र में शहादत न देनी पड़ती......... इस गयासुदीन अर्थात गांधी का इतना नाम न होता.... पाकिस्तान न होता ....... हम आज सुकून से अपने देश में रह रहे होते......
जरा सोचो इस कांग्रेस ने शुरू से ही इस देश का विनाश ही चाहा है.... और आज भी वही कर रही है.....
वन्दे मातरम........
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